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शेरों के मुँह से बचाया गया!

शेरों के मुँह से बचाया गया!

आठवाँ अध्याय

शेरों के मुँह से बचाया गया!

1, 2. (क) दारा मादी ने अपने बढ़ते साम्राज्य में शासन का क्या इंतज़ाम किया? (ख) क्षत्रपों की ज़िम्मेदारी क्या थी और उनके पास कैसा अधिकार था?

विश्‍वशक्‍ति बाबुल गिर पड़ा! कुछ ही घंटों में उसकी शान खाक में मिल गई। उसकी जगह अब मादी-फारस विश्‍वशक्‍ति बनकर दुनिया पर हुकूमत करने लगा। इसी के साथ एक नया दौर शुरू हुआ। दारा मादी, बेलशस्सर की जगह बाबुल की राजगद्दी पर बैठ गया और अब उसे अपने बढ़ते साम्राज्य में शासन का मज़बूत इंतज़ाम करना था।

2 राजा दारा ने सबसे पहले अपने राज्य के ऊपर 120 अधिपति ठहराए, जिन्हें क्षत्रप कहा जाता था। यह माना जाता है कि ज़्यादातर, राज घराने के लोगों को ही अधिपति या क्षत्रप ठहराया जाता था। हरेक क्षत्रप, राज्य के एक प्रदेश या छोटे प्रांत पर अधिकार रखता था। (दानिय्येल 6:1) उसकी यह ज़िम्मेदारी थी कि वह अपने इलाके से कर वसूल करके शाही खज़ाने में दे। राजा समय-समय पर इन क्षत्रपों या अधिपतियों के पास अपना एक अधिकारी भेजता था जो उनसे हिसाब लेता था, लेकिन फिर भी इन अधिपतियों के पास बड़ा अधिकार था। राजा के बाद, अधिपतियों या क्षत्रपों को ही अपने-अपने प्रांतों का राजा माना जाता था। दरअसल, क्षत्रप शब्द का मतलब है “राज्य का रक्षक।”

3, 4. दारा ने दानिय्येल को शाही कामकाज के लिए क्यों रखा और वह उसे क्या बनाने की सोच रहा था?

3 लेकिन इस नए इंतज़ाम में दानिय्येल का क्या होता? वह अब करीब सौ साल का था। तो क्या दारा मादी इस बूढ़े यहूदी भविष्यवक्‍ता को उसके पद से हटा देता? जी नहीं! दारा को बेशक यह मालूम हो गया होगा कि दानिय्येल ने बाबुल के गिरने के बारे में पहले से ही बता दिया था और दारा जानता था कि ऐसी भविष्यवाणी करना मामूली इंसानों के बस की बात नहीं है। इसके अलावा वह यह भी जानता था कि दानिय्येल के पास शाही कामकाज करने का कई बरसों का तजुर्बा है, इसलिए वह बाबुल में रहनेवाले बंधुओं की अच्छी तरह निगरानी कर सकता है। दारा चाहता था कि वह अपने नए राज्य, बाबुल की प्रजा को खुश कर सके और उसके साथ अच्छा संबंध रखे। इसलिए उसे सलाह-मशविरे के लिए दानिय्येल जैसे बुद्धिमान और तजुर्बेकार आदमी की ज़रूरत थी। लेकिन सवाल यह था कि दानिय्येल को किस पद पर रखा जाए?

4 वह उसे एक क्षत्रप बना सकता था। लेकिन एक यहूदी बँधुए को क्षत्रप बनाना कितने ताज्जुब की बात होती। मगर, दारा ने तो दानिय्येल को उन सारे क्षत्रपों के भी ऊपर अध्यक्ष ठहराया। ज़रा सोचिए कि उस वक्‍त कितना हंगामा हुआ होगा जब दारा ने यह घोषणा की कि अब से दानिय्येल, क्षत्रपों के ऊपर तीन अध्यक्षों में से एक होगा? उसका ‘अच्छा चरित्र था और उसमें बड़ी योग्यताएँ’ थीं। (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) इसलिए वह उन दोनों अध्यक्षों से भी ‘अधिक प्रतिष्ठित’ होता चला गया। इतना ही नहीं, दारा तो उसे सारे राज्य के ऊपर प्रधान मंत्री बनाने की भी सोच रहा था।—दानिय्येल 6:2, 3.

5. दानिय्येल के पद पाने पर बाकी अध्यक्षों और अधिपतियों को क्या हुआ, और क्यों?

5 लेकिन यह सब देखकर जलन के मारे बाकी अध्यक्षों और अधिपतियों का खून खौल रहा होगा। वे यह बर्दाश्‍त नहीं कर पा रहे थे कि ऐसा कैसे हो सकता है कि दानिय्येल को उन पर अध्यक्ष ठहराया जाए, ना तो वह मादी था ना ही फारसी, ना ही वह शाही घराने से कोई ताल्लुक रखता था? वे सोच रहे होंगे कि दारा ने आखिर अपनी जाति के लोगों को छोड़कर, खुद अपने घराने को छोड़कर एक परदेशी बँधुए को हुकूमत करने का अधिकार क्यों दे दिया? उन्हें तो यह सरासर नाइंसाफी लगती होगी। इससे भी ज़्यादा इन अधिपतियों को दानिय्येल की ईमानदारी से खतरा महसूस होता होगा क्योंकि वे भ्रष्ट थे और बेईमानी से पैसे कमाते थे। लेकिन उनमें इतनी हिम्मत नहीं थी कि जाकर दारा के सामने अपना रोना रोएँ। क्योंकि दारा, दानिय्येल को बहुत चाहता था और उसकी बहुत इज़्ज़त करता था।

6. दानिय्येल को फँसाने के लिए अध्यक्षों और अधिपतियों ने क्या-क्या कोशिशें कीं और उनकी कोशिशें बेकार क्यों निकलीं?

6 इसलिए दानिय्येल से जलनेवाले इन अधिकारियों ने आपस में मिलकर उसे फँसाने की कोशिश की। वे “राजकार्य के विषय में दानिय्येल के विरुद्ध दोष ढूंढ़ने” लगे। लेकिन क्या ये अध्यक्ष और अधिपति दानिय्येल के किसी भी काम में उसे दोषी ठहरा सके? क्या वे उसे बेईमान साबित कर सके? नहीं, उनकी सारी कोशिशें बेकार निकलीं। वे दानिय्येल के काम में कोई भी कमी नहीं निकाल पाए ना ही वे उसे बेईमान साबित कर सके। तब उन्होंने आपस में यह मशविरा किया: “हम उस दानिय्येल के परमेश्‍वर की व्यवस्था को छोड़, और किसी विषय में उसके विरुद्ध कोई दोष न पा सकेंगे।” इसलिए एक ही बार में दानिय्येल का काम तमाम कर देने के लिए इन धूर्त लोगों ने एक खतरनाक साज़िश रची।—दानिय्येल 6:4, 5.

जान लेने की खतरनाक साज़िश

7. अध्यक्षों और अधिपतियों ने राजा को क्या मशविरा दिया, और उन्होंने किस ढंग से इसे राजा के सामने पेश किया?

7 तब ये सारे अध्यक्ष और अधिपति “टोली बना कर राजा के पास गए।” (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) अरामी भाषा के जिस शब्द का ‘टोली बनाकर आना’ अनुवाद किया गया है, उसका मतलब है एक बहुत बड़ी भीड़ जो शोर मचाती और हो-हल्ला करती हुई आ रही हो। ऐसे भीड़ बनाकर शोर मचाते हुए आने से वे दारा को यह दिखाना चाहते थे कि वे एक बहुत ही गंभीर मसले को लेकर उसके पास आए हैं, जिस पर फौरन ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है। और उन्होंने यह भी सोचा होगा कि अगर हम इस तरह साथ मिलकर राजा दारा को यह यकीन दिला दें कि हमारा मशविरा उसी की भलाई के लिए है तो वह फौरन हमारी बात मान लेगा और हमसे कोई सवाल नहीं करेगा। उन्होंने वक्‍त बर्बाद किए बिना राजा से सीधे यही कहा: “राज्य के सारे अध्यक्षों ने, और हाकिमों, अधिपतियों, न्यायियों, और गवर्नरों ने भी आपस में सम्मति की है, कि राजा ऐसी आज्ञा दे और ऐसी कड़ी आज्ञा निकाले, कि तीस दिन तक जो कोई, हे राजा, तुझे छोड़ किसी और मनुष्य वा देवता से बिनती करे, वह सिंहों की मान्द में डाल दिया जाए।” *दानिय्येल 6:6, 7.

8. (क) दारा को अध्यक्षों और अधिपतियों का मशविरा कैसा लगा होगा? (ख) अध्यक्षों और अधिपतियों का असली इरादा क्या था?

8 पुराने लेखों से पता चलता है कि मेसोपोटामिया (बाबुल और आसपास) के लोग राजाओं को देवता या ईश्‍वर का अवतार मानकर उनकी आराधना करते थे। तो इसमें कोई शक नहीं कि इन अध्यक्षों और अधिपतियों की यह बात सुनकर दारा वाकई खुश हुआ होगा। उसे इसमें अपनी हुकूमत का फायदा भी नज़र आया होगा। बाबुल के लोगों के लिए दारा एक विदेशी राजा था और अभी नया था। इसलिए उसने सोचा होगा कि यह आज्ञा बाबुल के लोगों पर यह साफ ज़ाहिर कर देगी कि वही बाबुल का राजा है और उन्हें नई हुकूमत के वफादार बने रहना होगा। मगर अध्यक्षों और अधिपतियों ने ये सब सोचकर राजा को यह आज्ञा निकालने का मशविरा नहीं दिया था। उन्हें राजा की भलाई की कोई परवाह नहीं थी। दरअसल, उनका असली इरादा तो बस दानिय्येल को फँसाना था। वे अच्छी तरह जानते थे कि दानिय्येल हर रोज़, दिन में तीन बार, घर की उपरौठी कोठरी में जाकर खिड़की के सामने अपने परमेश्‍वर से प्रार्थना करता है।

9. इस नई आज्ञा का पालन करने में गैर-यहूदी लोगों को कोई मुश्‍किल क्यों नहीं थी?

9 बाबुल के लोग कई देवी-देवताओं को मानते थे और उनसे प्रार्थना करते थे। मगर राजा को छोड़ किसी और देवता से प्रार्थना या बिनती ना करने की इस नई आज्ञा का पालन करने में क्या उन्हें कोई मुश्‍किल होती? नहीं, क्योंकि पहली बात तो यह थी कि यह पाबंदी सिर्फ एक महीने के लिए थी। इसके अलावा, इन गैर-यहूदी लोगों को अपने देवी-देवताओं को छोड़कर कुछ दिनों के लिए राजा से प्रार्थना करने में कोई आत्म-ग्लानि महसूस नहीं होती। जैसा कि एक बाइबल विद्वान भी कहते हैं: “मूर्ति-पूजा करनेवाले देशों में राजा की पूजा करना कोई बड़ी बात नहीं थी। इसीलिए जब नये राजा दारा मादी ने बाबुल के लोगों को अपनी उपासना करने का हुक्म दिया तो उन्होंने फौरन मान लिया। सिर्फ यहूदी लोगों को ही इस पर एतराज़ था।”

10. मादी-फारस के लोग राजा के हुक्म के बारे में क्या मानते थे?

10 इतना ही नहीं, इन अधिकारियों ने दारा से यह भी कहा: “ऐसी आज्ञा दे, और इस पत्र पर हस्ताक्षर कर, जिस से यह बात मादियों और फ़ारसियों की अटल व्यवस्था के अनुसार अदल-बदल न हो सके।” (दानिय्येल 6:8) पुराने ज़माने के मध्य-पूर्वी देशों में राजा के हुक्म को पत्थर की लकीर माना जाता था क्योंकि लोगों का विश्‍वास था कि राजा देवता का रूप है और उसकी मरज़ी हर हाल में पूरी होनी चाहिए। हर आज्ञा का पालन किया जाना था भले ही इसमें मासूम लोगों की जान ही क्यों ना लेनी पड़े!

11. दानिय्येल इस आज्ञापत्र का कैसे शिकार बनता?

11 तब दारा ने इस आज्ञापत्र पर हस्ताक्षर कर दिए और उसने दानिय्येल के बारे में सोचा तक नहीं। (दानिय्येल 6:9) उसे खबर भी न थी कि अनजाने में वह खुद अपने ही हाथों से अपने सबसे अज़ीज़ अधिकारी के लिए मौत का फरमान जारी कर रहा है। जी हाँ, जल्द ही यह फरमान दानिय्येल की मौत का सबब बननेवाला था।

लाचार दारा सज़ा का हुक्म देता है

12. (क) राजा को छोड़ किसी और से प्रार्थना करने की मनाही का पता चलने के फौरन बाद दानिय्येल ने क्या किया? (ख) दानिय्येल को कौन देख रहा था और क्यों?

12 दानिय्येल को जल्द ही पता चल गया कि राजा को छोड़ किसी और से प्रार्थना करने की मनाही है। फौरन वह अपने घर की उपरौठी कोठरी में गया जिसकी खिड़की यरूशलेम की तरफ खुली रहती थी। * और जैसे दिन में तीन बार प्रार्थना करने की उसकी “अपनी रीति” थी वह परमेश्‍वर से प्रार्थना करने लगा। दानिय्येल ने कभी सोचा भी न होगा कि कोई उसे देख रहा है लेकिन वे धूर्त अधिकारी उसे पकड़ने की ताक में बैठे थे। अचानक वे सब कोठरी में ‘उतावली से’ [“झुण्ड बना कर,” ईज़ी-टू-रीड वर्शन] घुस आए ठीक उसी तरह जैसे वे दारा के पास गए थे। दानिय्येल “अपने परमेश्‍वर के सामने बिनती करते और गिड़गिड़ाते हुए पाया” गया। उन्होंने सोचा होगा कि अब और क्या सबूत चाहिए, हमने तो खुद अपनी ही आँखों से देख लिया है। (दानिय्येल 6:10, 11) अब इन अध्यक्षों और अधिपतियों को राजा दारा के सामने दानिय्येल पर दोष लगाने का ठोस सबूत मिल गया था।

13. दानिय्येल के दुश्‍मनों ने राजा के पास जाकर क्या चुगली की?

13 दानिय्येल के इन दुश्‍मनों ने बड़ी चालाकी से दारा से पूछा: “हे राजा, क्या तू ने ऐसे आज्ञापत्र पर हस्ताक्षर नहीं किया कि तीस दिन तक जो कोई तुझे छोड़, किसी मनुष्य वा देवता से बिनती करेगा, वह सिंहों की मान्द में डाल दिया जाएगा?” दारा ने कहा: “हां, मादियों और फ़ारसियों की अटल व्यवस्था के अनुसार यह बात स्थिर है।” तब इन मक्कार षड्यन्त्रकारियों ने फौरन यह कहा, “यहूदी बंधुओं में से जो दानिय्येल है, उस ने, हे राजा, न तो तेरी ओर कुछ ध्यान दिया, और न तेरे हस्ताक्षर किए हुए आज्ञापत्र की ओर; वह दिन में तीन बार बिनती किया करता है।”—दानिय्येल 6:12, 13.

14. वे अधिकारी, दानिय्येल को “यहूदी बंधुओं में से” एक कहकर क्यों पुकारते हैं?

14 गौर कीजिए कि इन अधिकारियों ने दानिय्येल को क्या कहकर पुकारा। उन्होंने कहा कि वह “यहूदी बंधुओं में से” एक है। इससे वे राजा दारा को यह एहसास दिलाना चाहते थे कि जिस दानिय्येल को उसने इतना ऊँचा पद दे रखा है वह सिर्फ एक मामूली-सा यहूदी बँधुआ है। उनके मुताबिक दानिय्येल कानून से बड़ा नहीं हो सकता था भले ही राजा खुद दानिय्येल के बारे में कुछ भी क्यों ना सोचता हो!

15. (क) उन अधिकारियों की बात सुनकर दारा को क्या हुआ और उसने क्या किया? (ख) उन दुष्ट अधिकारियों ने आगे क्या किया?

15 शायद इन अधिकारियों ने उम्मीद की थी कि राजा उन्हें इनाम देगा क्योंकि उन्होंने राजा का हुक्म टालनेवाले एक अपराधी को पकड़वाया है। लेकिन यह उनकी गलतफहमी थी। उनकी यह बात सुनकर दारा बहुत उदास हो गया। उसे दानिय्येल पर गुस्सा नहीं आया, ना ही उसने उसे शेरों की मान्द में फिकवाने का हुक्म दिया बल्कि दानिय्येल को बचाने की कोशिश में उसने पूरा दिन लगा दिया। लेकिन उसकी सारी कोशिशें बेकार निकलीं। जल्द ही वे दुष्ट अधिकारी उसके पास उतावली से लौटे। अब वे इतनी नीचता पर उतर आए कि दानिय्येल की जान लेने की राजा से ज़िद्द करने लगे।—दानिय्येल 6:14, 15.

16. (क) दारा को दानिय्येल के परमेश्‍वर के लिए श्रद्धा क्यों थी? (ख) दानिय्येल के बारे में दारा ने क्या उम्मीद की होगी?

16 उन लोगों की नज़रों में दानिय्येल ने “गुनाह” किया था। दारा ना तो उस आज्ञा को बदल सका ना ही दानिय्येल को माफी ही दे सका। वह लाचार हो चुका था और दानिय्येल से बस इतना ही कह सका, “तेरा परमेश्‍वर जिसकी तू नित्य उपासना करता है, वही तुझे बचाए!” दारा को दानिय्येल के परमेश्‍वर के लिए श्रद्धा थी। शायद इसलिए क्योंकि यहोवा ही ने दानिय्येल के ज़रिए बाबुल के नाश की भविष्यवाणी करवाई थी और उसी ने दानिय्येल को ‘बड़ी योग्यताएँ’ दी थीं जिसकी वज़ह से वह बाकी अध्यक्षों से कहीं बढ़कर साबित हुआ था। शायद दारा को यह भी पता हो कि इससे कई बरस पहले यहोवा परमेश्‍वर ही ने तीन यहूदी नौजवानों को आग के धधकते भट्ठे में जलने से बचाया था। इसलिए उसने उम्मीद की होगी कि ‘मैं तो दानिय्येल को नहीं बचा सका शायद उसका परमेश्‍वर यहोवा उसे बचा ले।’ आखिरकार दानिय्येल को शेरों की मान्द में फेंक दिया गया। * उसके बाद “एक पत्थर लाकर उस गड़हे के मुंह पर रखा गया, और राजा ने उस पर अपनी अंगूठी से, और अपने प्रधानों की अंगूठियों से मुहर लगा दी कि दानिय्येल के विषय में कुछ बदलने न पाए।”—दानिय्येल 6:16, 17.

पासा पलटता है

17, 18. (क) कैसे पता चलता है कि दारा को दानिय्येल का बहुत दुख था? (ख) सुबह जब राजा शेरों की मान्द के पास गया तब क्या हुआ?

17 बहुत ही उदास होकर दारा अपने महल में लौट गया। उस रात उसने खाना नहीं खाया। वह नहीं चाहता था कि कोई उसके पास आए और गाने-बजाने से उसका मन बहलाए। इतना ही नहीं, सारी रात उसने बेचैनी में काट दी और “सो नहीं पाया।” (ईज़ी-टू-रीड वर्शन) पौ फटते ही दारा शेरों के गड़हे की तरफ दौड़ा चला गया। वह बहुत चिन्तित था और जब वह शेरों की मान्द के पास गया तो उसने दानिय्येल को ज़ोर से आवाज़ लगाई: “हे दानिय्येल, हे जीवते परमेश्‍वर के दास, क्या तेरा परमेश्‍वर जिसकी तू नित्य उपासना करता है, तुझे सिंहों से बचा सका है?” (दानिय्येल 6:18-20) मान्द के अंदर से आवाज़ सुनकर वह दंग रह गया और उसके जी में जी आया!

18 “हे राजा, तू युगयुग जीवित रहे!” राजा को आदर के साथ जवाब देने से पता चलता है कि दानिय्येल को दारा से कोई शिकवा नहीं था। उसे मालूम था कि इस सज़ा के लिए दारा कसूरवार नहीं बल्कि उससे जलनेवाले अध्यक्ष और अधिपति हैं। (मत्ती 5:44; प्रेरितों 7:60 से तुलना कीजिए।) दानिय्येल ने राजा को समझाया: “मेरे परमेश्‍वर ने अपना दूत भेजकर सिंहों के मुंह को ऐसा बन्द कर रखा कि उन्हों ने मेरी कुछ भी हानि नहीं की; इसका कारण यह है कि मैं उसके साम्हने निर्दोष पाया गया; और हे राजा, तेरे सम्मुख भी मैं ने कोई भूल नहीं की।”—दानिय्येल 6:21, 22.

19. अध्यक्षों और अधिपतियों ने अपना उल्लू सीधा करने के लिए किस तरह दारा को इस्तेमाल किया?

19 दानिय्येल की यह बात सुनकर दारा के ज़मीर ने उसे कितना कोसा होगा! वह अच्छी तरह से जानता था कि दानिय्येल ने कोई भी ऐसा कसूर नहीं किया था जिसके लिए उसे ऐसी सज़ा दी जाए। दारा जानता था कि अध्यक्षों और अधिपतियों ने मिलकर दानिय्येल को मरवाने के लिए यह चाल चली थी। उन्होंने यह दावा किया था कि “राज्य के सारे अध्यक्षों ने” (तिरछे टाइप हमारे।) आपस में सम्मति करके यह आज्ञा निकलवाने की माँग की है। लेकिन यह सरासर झूठ था, क्योंकि उन्होंने दानिय्येल से इसके बारे में कोई भी सलाह नहीं ली थी। दारा जान गया था कि उन्होंने तो बस अपना उल्लू सीधा करने के लिए उसे मोहरा बनाया है। लेकिन वह ऐसे मक्कारों की बाद में खबर लेता। सबसे पहले उसने दानिय्येल को शेरों की मान्द से बाहर खींच निकालने का हुक्म दिया। जब दानिय्येल बाहर आया तो सब यह देखकर हैरान रह गए कि उस पर एक खरोंच तक नहीं आयी थी!—दानिय्येल 6:23.

20. दानिय्येल की चुगली खानेवालों का क्या हश्र हुआ?

20 अब दारा का खून खौलने लगा। उसने “आज्ञा दी कि जिन पुरुषों ने दानिय्येल की चुगली खाई थी, वे अपने अपने लड़केबालों और स्त्रियों समेत लाकर सिंहों के गड़हे में डाल दिए जाएं; और वे गड़हे की पेंदी तक भी न पहुंचे कि सिंहों ने उन पर झपटकर सब हड्डियों समेत उनको चबा डाला।”—दानिय्येल 6:24.

21. पुराने ज़माने के कई देशों के कानून में और परमेश्‍वर द्वारा दी गई मूसा की कानून-व्यवस्था में क्या फर्क था?

21 गुनाहगारों के साथ-साथ उनके बीवी-बच्चों को भी सज़ा देना शायद बेरहमी और अन्याय लगे, खासकर जब हम इसकी तुलना मूसा की व्यवस्था में दिए गए परमेश्‍वर के कानूनों से करते हैं। व्यवस्था में कहा गया था: “पुत्र के कारण पिता न मार डाला जाए, और न पिता के कारण पुत्र मार डाला जाए; जिस ने पाप किया हो वही उस पाप के कारण मार डाला जाए।” (व्यवस्थाविवरण 24:16) लेकिन पुराने ज़माने के कई देशों में एक संगीन जुर्म करनेवाले के साथ उसके घरवालों को भी मरवा डालने का चलन था। ऐसा शायद इसलिए था कि कहीं बाद में उसके परिवार का कोई आदमी बदला ना ले। लेकिन हम यह ज़रूर कह सकते हैं कि इन अध्यक्षों और अधिपतियों के परिवार के साथ जो हुआ वह दानिय्येल की मरज़ी से नहीं हुआ था। उसे बहुत दुख हुआ होगा कि इन दुष्ट लोगों के पाप की सज़ा उनके परिवारवालों को भी भुगतनी पड़ी।

22. दारा ने कौन-सा नया फरमान जारी करवाया?

22 दानिय्येल से जलनेवाले भ्रष्ट और बेईमान अध्यक्षों और अधिपतियों का खात्मा हो चुका था। तब दारा ने एक नया फरमान जारी किया: “मैं यह आज्ञा देता हूं कि जहां जहां मेरे राज्य का अधिकार है, वहां के लोग दानिय्येल के परमेश्‍वर के सम्मुख कांपते और थरथराते रहें, क्योंकि जीवता और युगानयुग तक रहनेवाला परमेश्‍वर वही है; उसका राज्य अविनाशी और उसकी प्रभुता सदा स्थिर रहेगी। जिस ने दानिय्येल को सिंहों से बचाया है, वही बचाने और छुड़ानेवाला है; और स्वर्ग में और पृथ्वी पर चिन्हों और चमत्कारों का प्रगट करनेवाला है।”—दानिय्येल 6:25-27.

नित्य परमेश्‍वर की सेवा करना

23. दानिय्येल ने कामकाज में कैसी मिसाल कायम की और हम उसकी मिसाल पर कैसे चल सकते हैं?

23 आज परमेश्‍वर के सेवकों के लिए दानिय्येल ने एक बेहतरीन मिसाल कायम की है। वह अपने चालचलन में निर्दोष था। दानिय्येल अपने शाही कामकाज में “विश्‍वासयोग्य था, और उसके काम में कोई भूल वा दोष न निकला।” (दानिय्येल 6:4) उसी तरह आज एक मसीही को मेहनत और लगन से अपनी नौकरी करनी चाहिए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उसे अपनी कंपनी में प्रमोशन के पीछे भागना चाहिए और इसे पाने के लिए दूसरों से होड़ करनी चाहिए या अपने धंधे में ज़्यादा पैसा कमाने के लिए दूसरों का गला काटना चाहिए। (1 तीमुथियुस 6:10) बाइबल बताती है कि एक मसीही की यह ज़िम्मेदारी है कि वह काम में ईमानदार हो, और यह समझकर पूरे तन-मन से काम करे कि वह इंसानों के लिए नहीं बल्कि ‘यहोवा के लिए’ काम कर रहा है।—कुलुस्सियों 3:22, 23; तीतुस 2:7, 8; इब्रानियों 13:18.

24. दानिय्येल ने यह कैसे साबित किया कि वह अपनी उपासना में अटल है?

24 दानिय्येल ने यहोवा की सेवा भी तन-मन से की। वह अपनी उपासना में अटल रहा। सब लोग जानते थे कि वह अपने परमेश्‍वर से रोज़ प्रार्थना करता है। वे अध्यक्ष और अधिपति भी अच्छी तरह जानते थे कि दानिय्येल सच्चा भक्‍त है और अपने परमेश्‍वर की उपासना करना कभी नहीं छोड़ेगा। उन्हें इस बात का भी यकीन था कि चाहे कानून भी प्रार्थना करने के लिए मना क्यों न करे, दानिय्येल तब भी रोज़ प्रार्थना करता रहेगा। आज के मसीहियों के लिए यह कितना बेहतरीन उदाहरण है! दानिय्येल की तरह ही आज सच्चे मसीही भी अपनी ज़िंदगी में परमेश्‍वर की उपासना को पहली जगह देते हैं और दुनिया के लोग इस बात को अच्छी तरह जानते हैं। (मत्ती 6:33) हाँ, हमें भी अपने कामों से सबके सामने यह साफ ज़ाहिर करना चाहिए कि हम यहोवा के सेवक हैं, क्योंकि यीशु ने कहा था: “तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के साम्हने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में है, बड़ाई करें।”—मत्ती 5:16.

25, 26. (क) कुछ लोग दानिय्येल की विपत्ति के बारे में क्या कह सकते हैं? (ख) दानिय्येल की नज़रों में अपनी आदत में ज़रा भी फेर-बदल करना अपने ईमान से मुकरना क्यों था?

25 कुछ लोग कह सकते हैं कि दानिय्येल इस विपत्ति से बच सकता था। वह चुपचाप 30 दिन तक छिपकर प्रार्थना कर सकता था। परमेश्‍वर से प्रार्थना करने के लिए ज़रूरी नहीं कि किसी खास जगह जाकर ही, या किसी खास तरीके से ही प्रार्थना की जाए। यहाँ तक कि परमेश्‍वर तो मन ही मन की गई प्रार्थनाओं को भी सुनकर ग्रहण करता है। (भजन 19:14) इसलिए वे शायद कहें कि दानिय्येल प्रार्थना करने के अपने तरीके को बदल सकता था। लेकिन दानिय्येल की नज़रों में अपनी आदत में ज़रा-सी फेर बदल करने का मतलब था कि वह डर गया है और अपने ईमान से मुकर रहा है। ऐसा क्यों?

26 ज़रा सोचिए। सभी को यह मालूम था कि दानिय्येल किस तरीके से अपनी रीति के मुताबिक प्रार्थना करता है। अब अगर वह राजा की आज्ञा को सुनकर अपनी रीति बदल देता है तो लोग क्या सोचते? वे तो यही सोचते कि दानिय्येल के लिए राजा का हुक्म मानना परमेश्‍वर के कानूनों को मानने से बढ़कर है। वह इंसानों से डरता है परमेश्‍वर से नहीं। (भजन 118:6) लेकिन दानिय्येल ने अपनी रीति पर अटल रहकर यह साबित कर दिखाया कि वह यहोवा को छोड़ और किसी से नहीं डरता और सिर्फ उसी की उपासना करता है। (व्यवस्थाविवरण 6:14, 15; यशायाह 42:8) दानिय्येल ऐसा करके यह नहीं दिखा रहा था कि राजा का हुक्म उसकी नज़रों में कोई मायने नहीं रखता। लेकिन वह कायरों की तरह अपने ईमान से मुकरना भी नहीं चाहता था। बस, उसने अपनी उपरौठी कोठरी में प्रार्थना करना जारी रखा, वह “अपनी रीति के अनुसार जैसा वह . . . करता था, वैसा ही तब भी करता रहा।”

27. आज परमेश्‍वर के सेवक दानिय्येल के उदाहरण से (क) प्रधान अधिकारियों के अधीन रहने के बारे में क्या सीख सकते हैं? (ख) मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा मानने के बारे में क्या सीख सकते हैं? (ग) हर इंसान के साथ कैसा संबंध रखना सीखते हैं?

27 आज परमेश्‍वर के सेवक दानिय्येल के उदाहरण से बहुत कुछ सीख सकते हैं। वे जिस देश में रहते हैं वहाँ के “प्रधान अधिकारियों के आधीन” रहते हैं और कानून का पालन करते हैं। (रोमियों 13:1) लेकिन जब देश का कानून परमेश्‍वर की आज्ञा टालने के लिए कहता है तो वे वही रुख अपनाते हैं जो यीशु के प्रेरितों ने अपनाया था, जब उन्होंने बेधड़क होकर ऐलान किया: “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्त्तव्य कर्म है।” (प्रेरितों 5:29) लेकिन ऐसा रुख अपनाने का मतलब यह नहीं कि परमेश्‍वर के सेवक देश की सरकार के खिलाफ हैं। वे क्रांतिकारी या आंदोलनकारी नहीं हैं। वे हर इंसान के साथ शांति और मेल-मिलाप से रहना चाहते हैं ताकि वे ‘विश्राम और चैन के साथ सारी भक्‍ति और गम्भीरता से जीवन बिता’ सकें।—1 तीमुथियुस 2:1, 2; रोमियों 12:18.

28. दानिय्येल “नित्य” यहोवा की सेवा करता था, इसका क्या मतलब है?

28 दानिय्येल अपने परमेश्‍वर की “नित्य” सेवा करता था। दरअसल, दारा दो बार इसके बारे में ज़िक्र करता है। (दानिय्येल 6:16, 20) यहाँ जिस अरामी शब्द को “नित्य” अनुवाद किया गया है उसका मतलब है “परिक्रमा करना” यानी नियमित रूप से लगातार चलनेवाला चक्र, जिसका मार्ग पहले से ही तय हो। दानिय्येल की वफादारी का मार्ग भी ऐसा ही था। चाहे उसके सामने कोई भी, कैसी भी छोटी या बड़ी परीक्षा क्यों न आई, इस बात का पहले से ही अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि वह क्या रुख अपनाएगा। वह वफादारी के अपने इस मार्ग पर बचपन से लेकर बुढ़ापे तक चलता आया था और इसमें कोई शक नहीं था कि वह आगे भी इसी मार्ग पर चलता रहेगा।

29. दानिय्येल के वफादारी के मार्ग से आज यहोवा के सेवक क्या सीख सकते हैं?

29 आज परमेश्‍वर के सेवकों को भी दानिय्येल की तरह वफादारी के मार्ग पर चलना चाहिए। प्रेरित पौलुस ने भी कहा था कि सभी मसीहियों को परमेश्‍वर के प्राचीन सेवकों की मिसाल पर चलना चाहिए। उसने कहा कि विश्‍वास के ज़रिए ही उन सेवकों ने “धर्म के काम किए; प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएं प्राप्त कीं।” उसने आगे कहा कि उन्होंने “सिंहों के मुंह बन्द किए।” यहाँ बेशक प्रेरित पौलुस दानिय्येल की ही बात कर रहा था, जिसे शेरों की मान्द में फेंके जाने पर खरोंच तक नहीं आयी थी। इसलिए हम जो यहोवा के सेवक हैं, आइए आज दानिय्येल की तरह विश्‍वास दिखाएँ और उसी की तरह नित्य परमेश्‍वर की सेवा में लगे रहें और “वह दौड़ जिस में हमें दौड़ना है, धीरज से दौड़ें।”—इब्रानियों 11:32, 33; 12:1.

[फुटनोट]

^ पैरा. 7 पुराने शिलालेखों से पता चलता है कि बाबुल और उसके आस-पास के देशों के राजा अकसर चिड़ियाघर बनाते थे जिनमें ‘सिंहों की मान्दें’ भी थीं।

^ पैरा. 12 उपरौठी कोठरी एक कमरा होता था जिसे लोग अकेला रहने के लिए या एकांत पाने के लिए इस्तेमाल करते थे।

^ पैरा. 16 शेरों की मान्द, ज़मीन में एक गड्‌हे या तहखाने की तरह हुआ करती थी, जिसका मुँहाना ऊपर होता था और इस मान्द के अंदर, चारों तरफ कई कोठरियाँ होती थीं जिनमें दरवाज़ों या लोहे की सलाखों के पीछे शेरों को बंद रखा जाता था। इन कोठरियों के दरवाज़ों या सलाखों को खोलने पर शेर बीच मान्द में आ सकते थे।

आपने क्या समझा?

• दारा मादी ने दानिय्येल को ऊँचे पद पर शाही कामकाज के लिए क्यों रखा?

• अध्यक्षों और अधिपतियों ने कौन-सी धूर्त साज़िश रची थी? और यहोवा ने दानिय्येल को इससे कैसे बचाया?

• दानिय्येल के वफादारी के मार्ग पर ध्यान देने से आपने क्या सीखा?

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 114 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]

[पेज 121 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]

[पेज 127 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]

दानिय्येल “नित्य” यहोवा की सेवा करता था। क्या आप भी ऐसा कर रहे हैं?