सवाल 1
मैं कौन हूँ?
आप क्या करते?
ज़रा सोचिए: कैरन को एक पार्टी में आए अभी 10 मिनट भी नहीं हुए थे कि उसे पीछे से एक जानी-पहचानी आवाज़ सुनायी दी।
“अरे कैरन, तुम यहाँ खड़ी-खड़ी क्या कर रही हो!”
कैरन जैसे ही पीछे मुड़ती है, वह देखती है कि उसकी दोस्त जसिका दो बोतल लिए खड़ी है। वह समझ जाती है कि उसमें शराब है। जसिका एक बोतल कैरन की तरफ बढ़ाकर कहती है, “ये तुम्हारे लिए। अरे इतना क्या सोच रही हो, कुछ नहीं होगा! अब तुम बड़ी हो गयी हो।”
कैरन मना तो करना चाहती है, मगर जसिका को नाराज़ भी नहीं करना चाहती क्योंकि वह उसकी अच्छी दोस्त है। वह नहीं चाहती कि जसिका उसे बोरिंग समझे। वह मानती है कि जसिका एक अच्छी लड़की है और अगर वह पी रही है तो इसका मतलब पीने में कोई बुराई नहीं। कैरन मन-ही-मन कहती है, “यह तो सिर्फ एक ड्रिंक है, ड्रग्स थोड़ी न है!”
अगर आप कैरन की जगह होते तो क्या करते?
थोड़ा रुककर सोचिए!
ऐसे हालात में सही फैसला लेने के लिए ज़रूरी है कि आपको पता हो कि आप कैसे इंसान हैं यानी आपकी पहचान क्या है। यह एक ऐसा एहसास है जो आपको बताता है कि आप कौन हैं और किन उसूलों पर चलते हैं। अगर आप खुद को अच्छी तरह पहचानते हैं तो आप अपने फैसले खुद ले पाएँगे और दूसरों के हाथ की कठपुतली नहीं बनेंगे।—1 कुरिंथियों 9:26, 27.
ऐसा आत्म-विश्वास आप कैसे पैदा कर सकते हैं, यह जानने में आगे दिए सवाल आपकी मदद करेंगे।
1 मुझमें क्या खूबियाँ हैं?
अपनी काबिलीयत और खूबियाँ पहचानने से आपका आत्म-विश्वास बढ़ेगा।
शास्त्र से एक उदाहरण: यीशु के एक चेले पौलुस ने लिखा, “चाहे मैं बोलने में अनाड़ी सही, मगर ज्ञान में हरगिज़ नहीं हूँ।” (2 कुरिंथियों 11:6) पौलुस शास्त्र के बारे में अच्छी समझ रखता था इसलिए दूसरों के उकसाने पर भी वह डटा रहा। इस तरह के दबाव के बावजूद, उसका आत्म-विश्वास कम नहीं हुआ।—2 कुरिंथियों 10:10; 11:5.
खुद की जाँच कीजिए: अपनी एक काबिलीयत या हुनर लिखिए।
अब लिखिए कि आपमें कौन-सा एक अच्छा गुण है। (जैसे, क्या आप दूसरों की परवाह करते हैं? दरियादिल हैं? भरोसेमंद हैं? वक्त के पाबंद हैं?)
2 मेरी क्या कमज़ोरियाँ हैं?
ज़ंजीर के टूटने की गुंजाइश वहाँ ज़्यादा होती है, जहाँ कड़ी कमज़ोर हो। उसी तरह, जब आपकी कमज़ोरियाँ आप पर हावी हो जाती हैं तो आपको बिगड़ते देर नहीं लगती।
शास्त्र से एक उदाहरण: पौलुस अपनी कमज़ोरियाँ अच्छी तरह पहचानता था। उसने लिखा कि उसका दिल तो कहता है कि उसे सही काम करना चाहिए मगर उसकी इच्छाएँ कभी-कभी उस पर हावी हो जाती हैं और वह गलत काम कर बैठता है।—रोमियों 7:22, 23.
खुद की जाँच कीजिए: ऐसी कौन-सी कमज़ोरियाँ हैं जिन पर आप काबू पाना चाहते हैं?
3 मेरे लक्ष्य क्या हैं?
क्या आप किसी टैक्सी में बैठकर ड्राइवर से कहेंगे कि मोहल्ले का तब तक चक्कर लगाते रहो जब तक पेट्रोल खत्म नहीं हो जाता? नहीं! ऐसा करना बेवकूफी और फिज़ूलखर्ची होगी।
लक्ष्य न रखने की वजह से आप भटकते रहेंगे। मगर लक्ष्य रखने से आपको पता होगा कि आपको क्या करना है और कैसे करना है।
शास्त्र से एक उदाहरण: पौलुस ने लिखा, “मैं अंधाधुंध यहाँ-वहाँ नहीं दौड़ता।” (1 कुरिंथियों 9:26) उसने यह नहीं सोचा कि ज़िंदगी जहाँ ले जाएगी वहाँ चला जाऊँगा, इसके बजाय उसने लक्ष्य रखे और फिर उनके मुताबिक ज़िंदगी जी।—फिलिप्पियों 3:12-14.
खुद की जाँच कीजिए: ऐसे तीन लक्ष्य लिखिए जिन्हें आप अगले एक साल में पूरा करना चाहते हैं।
4 मैं किन बातों पर विश्वास करता हूँ?
अगर आपको यही नहीं पता कि किसी बारे में आपकी क्या राय है तो आप फैसले कैसे ले पाएँगे? कोई भी आपको कुछ भी बोलेगा और आप उसकी मान लेंगे। इसका मतलब कि आपकी अपनी कोई पहचान नहीं।
लेकिन अगर आपके अपने उसूल हैं और आप उन्हीं के मुताबिक काम करते हैं तो आपकी अपनी एक पहचान होगी, फिर चाहे कोई कुछ भी कहे।
शास्त्र से एक उदाहरण: भविष्यवक्ता दानिय्येल शायद नौजवान ही था, जब उसने “अपने मन में ठान लिया” कि वह परमेश्वर का कानून मानेगा, जबकि उस वक्त वह अपने परिवार से दूर था। (दानिय्येल 1:8) उसके इरादे इतने पक्के थे कि उसने कभी समझौता नहीं किया और वह अपने उसूलों पर चलता रहा।
खुद की जाँच कीजिए: आप क्या मानते हैं? क्या आप मानते हैं कि ईश्वर है? अगर हाँ, तो क्यों? किन सबूतों की वजह से आपको यकीन है कि वाकई ईश्वर है?
क्या आपको यकीन है कि ईश्वर के दिए नैतिक उसूलों पर चलने से आपका भला होगा? अगर हाँ, तो क्यों?
तो खुद से पूछिए कि आप किसकी तरह बनना चाहते हैं—एक पत्ते की तरह जो हवा के झोंके से यहाँ-वहाँ उड़ता फिरता है या फिर उस पेड़ की तरह जो ज़बरदस्त तूफान में भी खड़ा रहता है? अपनी पहचान बनाए रखिए तब आप उस पेड़ जैसे होंगे और इस सवाल का जवाब दे पाएँगे, मैं कौन हूँ?