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अध्याय 9

प्रचार काम के नतीजे​—‘खेत कटाई के लिए पक चुके हैं’

प्रचार काम के नतीजे​—‘खेत कटाई के लिए पक चुके हैं’

अध्याय किस बारे में है

यहोवा ने राज के बीजों को बढ़ाया है

1, 2. (क) यीशु के चेले क्यों उलझन में पड़ गए? (ख) यीशु किस कटाई की बात कर रहा था?

यीशु ने अपने चेलों से कहा, “अपनी आँखें उठाओ और खेतों पर नज़र डालो, वे कटाई के लिए पक चुके हैं।” उसने यह बात जौ के खेतों की तरफ इशारा करके कही थी। मगर जब चेलों ने उन खेतों को देखा तो वे उलझन में पड़ गए, क्योंकि खेत पके नहीं बल्कि हरे थे और उन पर अभी-अभी दाने लगे थे। उन्होंने सोचा होगा, ‘यीशु किस कटाई की बात कर रहा है? अभी तो जौ की कटाई में महीनों बाकी हैं।’​—यूह. 4:35.

2 लेकिन यीशु सचमुच की कटाई की नहीं बल्कि एक और किस्म की कटाई की बात कर रहा था। वह मसीही मंडली में लोगों को इकट्ठा करने के बारे में दो अहम बातें सिखा रहा था। ये बातें क्या हैं? जवाब के लिए आइए इस ब्यौरे की जाँच करें।

काम करने का बुलावा और खुशियों का वादा

3. (क) यीशु ने शायद क्या देखकर कहा, ‘खेत कटाई के लिए पक चुके हैं’? (ख) यीशु ने अपनी बात कैसे समझायी?

3 यीशु ने अपने चेलों से यह बात ईसवी सन्‌ 30 के आखिर में सामरिया के शहर सूखार के पास कही थी। जब चेले उस शहर के अंदर गए तो यीशु एक कुँए के पास बैठा। वहाँ उसने एक औरत को परमेश्‍वर के वचन की कुछ सच्चाइयाँ बतायीं। वह औरत फौरन समझ गयी कि यीशु की शिक्षाएँ कितनी अहमियत रखती हैं। जब चेले यीशु के पास लौटे तो वह औरत जल्दी-जल्दी सूखार गयी ताकि अपने पड़ोसियों को वे बढ़िया बातें बताए जो उसने सीखी थीं। उसकी बातें सुनकर बहुत-से लोगों में दिलचस्पी जागी और वे यीशु से मिलने फौरन कुँए के पास आए। शायद उसी वक्‍त यीशु ने खेतों के पास से चली आ रही सामरियों की भीड़ को देखते हुए कहा था, “खेतों पर नज़र डालो, वे कटाई के लिए पक चुके हैं।” फिर यह समझाने के लिए कि वह सचमुच की कटाई की नहीं बल्कि लोगों को इकट्ठा करने की बात कर रहा है, उसने कहा: “कटाई करनेवाला . . . हमेशा की ज़िंदगी के लिए फसल बटोर रहा है।”​—यूह. 4:5-30, 36.

4. (क) यीशु ने कटाई के बारे में कौन-सी दो अहम बातें सिखायीं? (ख) हम किन सवालों पर गौर करेंगे?

4 यीशु ने मसीही मंडली में लोगों को इकट्ठा करने के बारे में कौन-सी दो अहम बातें सिखायीं? पहली बात, काम जल्द-से-जल्द किया जाना है। जब यीशु ने कहा कि ‘खेत कटाई के लिए पक चुके हैं’ तो वह अपने चेलों को काम करने का बुलावा दे रहा था। उन्हें यह काम कितनी जल्दी पूरा करना था, यह बताने के लिए उसने कहा, “कटाई करनेवाला अभी से मज़दूरी पा रहा है।” जी हाँ, कटाई शुरू हो चुकी थी, उन्हें देर नहीं करनी थी! दूसरी बात, काम करनेवालों को खुशी मिलती है। यीशु ने वादा किया कि बोनेवाले और काटनेवाले ‘मिलकर खुशियाँ मनाएँगे।’ (यूह. 4:35ख, 36) जब यीशु ने देखा कि “बहुत-से सामरियों ने उस पर विश्‍वास किया” है तो उसे ज़रूर खुशी हुई होगी। उसी तरह जब चेले तन-मन से कटाई का काम करते तो उन्हें भी बहुत खुशी मिलती। (यूह. 4:39-42) इस वाकए से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं क्योंकि आज महान कटाई का काम चल रहा है। हमारे ज़माने में कटाई का काम कब शुरू हुआ? कौन इसमें हिस्सा ले रहे हैं? इसके क्या नतीजे रहे हैं?

हमारा राजा अब तक के सबसे महान कटाई के काम की अगुवाई करता है

5. (क) कौन कटाई के काम की अगुवाई करता है? (ख) यूहन्‍ना का दर्शन कैसे दिखाता है कि यह काम जल्द-से-जल्द किया जाना है?

5 यहोवा ने प्रेषित यूहन्‍ना को एक दर्शन में दिखाया कि लोगों को इकट्ठा करने के काम की अगुवाई करने के लिए उसने यीशु को ठहराया है। (प्रकाशितवाक्य 14:14-16 पढ़िए।) इस दर्शन में दिखाया गया है कि यीशु के सिर पर एक ताज है और हाथ में हँसिया है। “सोने का ताज” दिखाता है कि यीशु राजा के नाते हुकूमत कर रहा है। “तेज़ हँसिया” दिखाता है कि वह कटाई का काम कर रहा है। यहोवा ने एक स्वर्गदूत के ज़रिए कहा, “धरती की फसल पूरी तरह पक चुकी है।” इस तरह वह ज़ोर देकर कह रहा था कि यह काम जल्द-से-जल्द किया जाना है। वाकई “कटाई का वक्‍त  आ गया है,” अब देर नहीं करनी चाहिए! परमेश्‍वर यीशु को यह आज्ञा दे चुका है, “अपना हँसिया चला।” इसलिए यीशु हँसिया चला रहा है और धरती की कटाई की जा रही है यानी सारी दुनिया से लोगों को इकट्ठा करके मसीही मंडली में लाया जा रहा है। यह रोमांचक दर्शन दिखाता है कि आज हमारे दिनों में भी ‘खेत कटाई के लिए पक चुके हैं।’ मगर क्या इस दर्शन से पता चलता है कि पूरी दुनिया में कटाई का काम कब शुरू हुआ था? जी हाँ!

6. (क) “कटाई के दिन” कब शुरू हुए? (ख) “धरती की फसल” की कटाई कब शुरू हुई? समझाइए।

6 प्रकाशितवाक्य के अध्याय 14 में बताए दर्शन के मुताबिक, कटाई करनेवाला यीशु ताज पहना हुआ है (आयत 14)। इसका मतलब यह घटना 1914 में यीशु के राजा बनने के बाद की है। (दानि. 7:13, 14) राजा बनने के कुछ समय बाद उसे कटाई शुरू करने की आज्ञा दी गयी (आयत 15)। यीशु ने गेहूँ की कटाई की मिसाल में भी घटनाओं का यही क्रम बताया है। उसने कहा, “कटाई, दुनिया की व्यवस्था का आखिरी वक्‍त है।” यह दिखाता है कि कटाई के दिन और दुनिया की व्यवस्था का आखिरी वक्‍त एक ही समय शुरू हुए थे यानी 1914 में। ‘कटाई के दिनों’ में आगे चलकर फसल काटने का काम शुरू हुआ। (मत्ती 13:30, 39) आज जब हम बीती घटनाओं पर नज़र डालते हैं तो देख सकते हैं कि फसल की कटाई वाकई यीशु के राजा बनने के कुछ साल बाद शुरू हुई थी। सबसे पहले 1914 से लेकर 1919 के शुरूआती महीनों तक, यीशु ने अपने अभिषिक्‍त चेलों को शुद्ध किया। (मला. 3:1-3; 1 पत. 4:17) फिर 1919 में “धरती की फसल” की कटाई शुरू हुई। यीशु ने अभी-अभी जो विश्‍वासयोग्य दास ठहराया था उसके ज़रिए उसने फौरन अपने भाइयों को एहसास दिलाया कि प्रचार काम जल्द-से-जल्द पूरा किया जाना है। गौर कीजिए कि क्या हुआ था।

7. (क) हमारे भाइयों ने किन बातों के अध्ययन से समझा कि प्रचार काम जल्द-से-जल्द किया जाना है? (ख) भाइयों को क्या करने का बढ़ावा दिया गया?

7 जुलाई 1920 की एक प्रहरीदुर्ग  ने कहा, “शास्त्र के अध्ययन से प्रमाणित होता है कि चर्च को राज का समाचार सुनाने का सुअवसर दिया गया है।” मिसाल के लिए, यशायाह की भविष्यवाणी से भाई समझ गए कि राज की खबर पूरी दुनिया में सुनायी जानी है। (यशा. 49:6; 52:7; 61:1-3) वे नहीं जानते थे कि यह काम कैसे होगा, मगर उन्हें भरोसा था कि यहोवा उनके लिए रास्ता ज़रूर खोलेगा। (यशायाह 59:1 पढ़िए।) जब इस बात की साफ समझ मिली कि प्रचार काम जल्द-से-जल्द किया जाना है तो हमारे भाइयों को बढ़ावा दिया गया कि वे इस काम में तेज़ी लाएँ। भाइयों ने क्या किया?

8. सन्‌ 1921 में भाइयों ने प्रचार काम के बारे में कौन-सी दो बातें समझीं?

8 दिसंबर 1921 की एक प्रहरीदुर्ग  ने कहा, “1921 अब तक का सबसे उत्तम वर्ष रहा है। इस वर्ष इतने लोगों ने सत्य का समाचार सुना जितना पहले किसी भी वर्ष में नहीं सुना था।” पत्रिका में यह भी कहा गया, “अब भी बहुत काम बचा है। . . . आइए पूरे आनंद के साथ यह काम करें।” ध्यान दीजिए कि भाई प्रचार काम के बारे में वही दो अहम बातें समझ गए जो यीशु ने प्रेषितों के मन में बिठायी थीं: यह काम जल्द-से-जल्द किया जाना है और प्रचारकों को इससे बहुत खुशी मिलती है।

9. (क) 1954 में प्रहरीदुर्ग  ने कटाई के बारे में क्या कहा और क्यों? (ख) पिछले 50 सालों के दौरान, दुनिया-भर में प्रचारकों की गिनती कितनी बढ़ी? (यह चार्ट देखें: “ दुनिया-भर में बढ़ोतरी।”)

9 सन्‌ 1930 से 1940 के बीच, जब भाई समझ गए कि दूसरी भेड़ों की एक बड़ी भीड़ राज का संदेश स्वीकार करेगी तो प्रचार काम में और भी तेज़ी आ गयी। (यशा. 55:5; यूह. 10:16; प्रका. 7:9) नतीजा? सन्‌ 1934 में प्रचारकों की गिनती 41,000 थी, मगर 1953 तक यह गिनती बढ़कर 5,00,000 हो गयी! एक दिसंबर, 1954 की प्रहरीदुर्ग  ने बिलकुल सही बात कही, “यहोवा की पवित्र शक्‍ति और उसके वचन के बल से ही पूरे संसार में कटनी का यह महान काम हो पाया है।” *​—जक. 4:6.

 

दुनिया-भर में बढ़ोतरी

देश

1962

1987

2013

ऑस्ट्रेलिया

15,927

46,170

66,023

ब्राज़ील

26,390

2,16,216

7,56,455

फ्रांस

18,452

96,954

1,24,029

इटली

6,929

1,49,870

2,47,251

जापान

2,491

1,20,722

2,17,154

मैक्सिको

27,054

2,22,168

7,72,628

नाइजीरिया

33,956

1,33,899

3,44,342

फिलीपींस

36,829

1,01,735

1,81,236

अमरीका

2,89,135

7,80,676

12,03,642

ज़ाम्बिया

30,129

67,144

1,62,370

 

बाइबल अध्ययनों की गिनती में बढ़ोतरी

1950

2,34,952

1960

6,46,108

1970

11,46,378

1980

13,71,584

1990

36,24,091

2000

47,66,631

2010

80,58,359

मिसालों के ज़रिए बताया गया कि कटाई का क्या नतीजा होगा

10, 11. राई के दाने की मिसाल में बीज की बढ़ोतरी के बारे में कौन-सी बातें गौर करने लायक हैं?

10 यीशु ने राज के बारे में मिसालें देकर भविष्यवाणी की कि कटाई के काम में कैसे नतीजे मिलेंगे। आइए राई के दाने और खमीर की मिसाल पर गौर करें। हम खासकर देखेंगे कि ये मिसालें अंत के समय में कैसे पूरी हो रही हैं।

11 राई के दाने की मिसाल। एक आदमी अपने खेत में राई का दाना बोता है। यह उगता है और बढ़कर एक बड़ा पेड़ बन जाता है जिस पर पंछी बसेरा करते हैं। (मत्ती 13:31, 32 पढ़िए।) इस मिसाल में बीज के बढ़ने के बारे में कौन-सी बातें गौर करने लायक हैं? (1) बढ़ोतरी जिस पैमाने पर होती है वह सचमुच हैरानी की बात है। राई का दाना “बीजों में सबसे छोटा होता है,” मगर वह बढ़कर ऐसा पेड़ बन जाता है जिस पर “बड़ी-बड़ी डालियाँ” लगती हैं। (मर. 4:31, 32) (2) बीज का बढ़ना निश्‍चित है। राई का दाना ‘बोए जाने के बाद उगता है।’ यीशु ने यह नहीं कहा कि “वह शायद उगेगा” बल्कि उसने यकीन के साथ कहा, “वह उगता है।” उसे बढ़ने से कोई भी चीज़ रोक नहीं सकती। (3) जब वह बड़ा पेड़ बन जाता है तो ‘आकाश के पंछी आकर उसकी छाँव में बसेरा  करते हैं।’ ये तीनों बातें आज हो रही कटाई के मामले में कैसे सच साबित हुई हैं?

12. राई के दाने की मिसाल आज कटाई के काम के मामले में कैसे सच साबित हुई है? (यह चार्ट भी देखें: “ बाइबल अध्ययनों की गिनती में बढ़ोतरी।”)

12 (1) बढ़ोतरी बड़े पैमाने पर होगी: यह मिसाल दिखाती है कि राज का संदेश फैल जाएगा और मसीही मंडली में लोगों की गिनती बढ़ जाएगी। कटाई का काम करनेवाले जोशीले लोगों को 1919 से मसीही मंडली में इकट्ठा किया जाने लगा, जो तब तक बहाल हो चुकी थी। उस वक्‍त प्रचारकों की गिनती बहुत कम थी, मगर यह तेज़ी से बढ़ने लगी। पिछले 120 साल से प्रचारकों की गिनती में हुई बढ़ोतरी वाकई हैरतअंगेज़ है! (यशा. 60:22) (2) बढ़ोतरी निश्‍चित है: मसीही मंडली में लोगों की गिनती को बढ़ने से कोई भी चीज़ रोक नहीं पायी है। परमेश्‍वर के दुश्‍मनों ने कड़ा विरोध किया। वे एक तरह से इस छोटे-से बीज पर एक-के-बाद-एक चट्टान रखते गए, फिर भी यह बीज हर चट्टान को धकेलकर बढ़ता गया। (यशा. 54:17) (3) ‘पंछी बसेरा करेंगे’: पेड़ पर बसेरा करनेवाले “आकाश के पंछी” लाखों नेकदिल लोगों को दर्शाते हैं। करीब 240 देशों के इन लोगों ने राज का संदेश स्वीकार किया और मसीही मंडली का हिस्सा बन गए हैं। (यहे. 17:23) यहाँ वे परमेश्‍वर के वचन से सच्चाई सीखते हैं जो उनके लिए खाने की तरह है, साथ ही वे ताज़गी और हिफाज़त पाते हैं।​—यशा. 32:1, 2; 54:13.

राई के दाने की मिसाल दिखाती है कि लोग मसीही मंडली में आसरा और हिफाज़त पाते हैं (पैराग्राफ 11, 12 देखें)

13. खमीर की मिसाल में बढ़ोतरी के बारे में क्या बताया गया है?

13 खमीर की मिसाल। एक औरत जब आटे में थोड़ा-सा खमीर मिलाकर गूँध देती है तो सारा आटा खमीरा हो जाता है। (मत्ती 13:33 पढ़िए।) इस मिसाल में बढ़ोतरी के बारे में क्या बताया गया है? आइए दो बातों पर गौर करें। (1) बढ़ोतरी से बदलाव  होता है। खमीर से “आटा खमीरा हो” जाता है। (2) बढ़ोतरी पूरी हद तक  होती है। पूरा-का-पूरा आटा खमीरा हो जाता है। ये दोनों बातें आज के समय में हो रही कटाई के मामले में कैसे सच साबित हुई हैं?

14. खमीर की मिसाल आज कटाई के मामले में कैसे सच साबित हुई है?

14 (1) बढ़ोतरी से बदलाव होगा: खमीर का मतलब राज का संदेश है और आटे का मतलब सभी इंसान हैं। जैसे खमीर आटे को बदल देता है, वैसे ही राज का संदेश उन लोगों का दिल बदल देता है जो उसे स्वीकार करते हैं। (रोमि. 12:2) (2) बढ़ोतरी पूरी हद तक होगी: जैसे खमीर से पूरा आटा खमीरा हो जाता है, वैसे ही राज का संदेश पूरी दुनिया में फैल जाता है। खमीर धीरे-धीरे आटे में तब तक फैलता है जब तक पूरा आटा खमीरा नहीं हो जाता। उसी तरह, राज का संदेश “दुनिया के सबसे दूर के इलाकों” तक फैल गया है। (प्रेषि. 1:8) इससे यह भी पता चलता है कि जिन देशों में हमारे काम पर रोक है वहाँ भी राज का संदेश ज़रूर फैलेगा, इसके बावजूद कि वहाँ का प्रचार काम ज़्यादातर लोगों की नज़रों से छिपा हुआ है।

15. यशायाह 60:5, 22 की भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई है? (ये बक्स भी देखें: “ यहोवा ने मुमकिन किया” और “ ‘छोटे-से-छोटा’ कैसे एक ‘ताकतवर राष्ट्र’ बन गया।”)

15 यीशु के दिनों से करीब 800 साल पहले, यहोवा ने भी आज होनेवाली कटाई के बारे में एक ऐसी भविष्यवाणी की जो गौर करने लायक है। उसने यशायाह के ज़रिए बताया कि यह काम कितने बड़े पैमाने पर होगा और इससे उसके सेवकों को कितनी खुशी मिलेगी। * यहोवा ने कहा कि लोग “दूर-दूर से” उसके संगठन की तरफ धारा की तरह चले आएँगे। यहोवा उस भविष्यवाणी में एक “औरत” से बात करता है जो धरती पर बचे हुए अभिषिक्‍त मसीहियों को दर्शाती है। यहोवा उससे कहता है, “तेरा चेहरा दमक उठेगा, तेरा दिल उछल पड़ेगा और खुशी से भर जाएगा, क्योंकि समुंदर की दौलत तेरे पास चली आएगी, राष्ट्रों का खज़ाना तेरे पास आएगा।” (यशा. 60:1, 4, 5, 9) ये शब्द आज कितने सच साबित हुए हैं! कई देशों में लंबे अरसे से सेवा करनेवाले भाई-बहन जब देखते हैं कि उनके यहाँ प्रचारकों की गिनती कैसे चंद लोगों से बढ़कर हज़ारों तक पहुँच गयी है, तो उनका चेहरा खुशी से दमक उठता है।

यहोवा के सभी सेवक क्यों खुशियाँ मनाते हैं

16, 17. एक वजह बताइए कि क्यों ‘बोनेवाला और काटनेवाला मिलकर खुशी मनाते हैं’? (यह बक्स भी देखें: “ अमेज़न में कैसे दो परचों ने दो लोगों का दिल छू लिया।”)

16 आपको याद होगा कि यीशु ने प्रेषितों से कहा था, “कटाई करनेवाला . . . हमेशा की ज़िंदगी के लिए फसल बटोर रहा है ताकि बोनेवाला और काटनेवाला दोनों मिलकर खुशियाँ मनाएँ।” (यूह. 4:36) आज पूरी दुनिया में होनेवाले कटाई के काम की वजह से हम क्यों ‘मिलकर  खुशियाँ मनाते’ हैं? इसकी कई वजह हैं। आइए तीन वजहों पर गौर करें।

17 पहली वजह, हम यह देखकर खुश होते हैं कि यहोवा कैसे बीज को बढ़ाता है। जब हम राज का संदेश सुनाते हैं तो हम बीज बो रहे होते हैं। (मत्ती 13:18, 19) जब हम किसी को मसीह का चेला बनने में मदद देते हैं तो हम फल काट रहे होते हैं। जब हम देखते हैं कि यहोवा कैसे उस बीज को बढ़ाता है जिससे उसमें ‘अंकुर फूटते हैं और वह बढ़ता है,’ तो हम सबको हैरानी होती है और गहरी खुशी भी मिलती है। (मर. 4:27, 28) ऐसा भी होता है कि हम जो बीज बोते हैं उनमें से कुछ बाद में बढ़ते हैं और दूसरे उनकी फसल काटते हैं। शायद आपका भी ऐसा अनुभव रहा होगा। ब्रिटेन की एक बहन जोन, जिनका 60 साल पहले बपतिस्मा हुआ था, कहती हैं, “मैं ऐसे लोगों से मिली हूँ जिन्होंने मुझसे कहा कि मैंने बरसों पहले उन्हें प्रचार किया था और उनके दिल में सच्चाई का बीज बोया था। बाद में दूसरे साक्षियों ने उन्हें बाइबल सिखायी और यहोवा के सेवक बनने में उनकी मदद की, जबकि मुझे यह बात पता नहीं थी। मुझे यह देखकर खुशी होती है कि मैंने जो बीज बोए थे वे बढ़े और उनकी फसल काटी गयी।”​—1 कुरिंथियों 3:6, 7 पढ़िए।

18. पहला कुरिंथियों 3:8 में खुश होने की क्या वजह बतायी गयी है?

18 दूसरी वजह, हम इसलिए खुशी पाते हैं क्योंकि हम पौलुस की यह बात मन में रखते हैं: “हर कोई अपनी मेहनत  का इनाम पाएगा।” (1 कुरिं. 3:8) हर इंसान को उसकी मेहनत के हिसाब से इनाम मिलता है, न कि यह देखा जाता है कि उसने सच्चाई सीखने में कितने लोगों की मदद की। इससे उन मसीहियों को कितनी हिम्मत मिलती है जो ऐसे इलाकों में प्रचार करते हैं जहाँ खास नतीजे नहीं मिलते! हर वह साक्षी, जो बीज बोने का काम पूरे दिल से करता है, परमेश्‍वर की नज़र में “बहुत फल पैदा” करता है और इसलिए वह खुश हो सकता है।​—यूह. 15:8; मत्ती 13:23.

19. (क) मत्ती 24:14 में बतायी यीशु की भविष्यवाणी से हमारी खुशी कैसे जुड़ी है? (ख) चाहे हम चेला बनाने के काम में कामयाब न हों, फिर भी हमें क्या बात ध्यान में रखनी चाहिए?

19 तीसरी वजह, हम इसलिए खुशी पाते हैं क्योंकि हमारे काम से एक भविष्यवाणी पूरी होती है। जब प्रेषितों ने यीशु से पूछा, “तेरी मौजूदगी की और दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त की क्या निशानी होगी?” तो गौर कीजिए कि यीशु ने क्या जवाब दिया। उसने कहा कि निशानी का एक पहलू यह होगा कि पूरी दुनिया में प्रचार किया जाएगा। क्या वह चेला बनाने के बारे में बात कर रहा था? जी नहीं। उसने कहा, “राज की इस खुशखबरी का सारे जगत में प्रचार  किया जाएगा ताकि सब राष्ट्रों को गवाही दी जाए।” (मत्ती 24:3, 14) यह दिखाता है कि बीज बोना यानी राज का प्रचार करना, उस निशानी का पहलू है। इसलिए राज की खुशखबरी सुनाते वक्‍त हम यह बात ध्यान में रखते हैं कि भले ही हम चेला बनाने में कामयाब न हों, हम ‘गवाही देने’ में ज़रूर कामयाब होते हैं। * जी हाँ, लोग चाहे हमारा संदेश सुनें या न सुनें, हम सब यीशु की भविष्यवाणी पूरी कर रहे हैं और हमें “परमेश्‍वर के सहकर्मी” होने का सम्मान मिला है। (1 कुरिं. 3:9) सच, खुश होने की हमारे पास कितनी बढ़िया वजह है!

“पूरब से पश्‍चिम तक”

20, 21. (क) मलाकी 1:11 के शब्द आज कैसे पूरे हो रहे हैं? (ख) कटाई के मामले में आपने क्या करने की ठानी है और क्यों?

20 पहली सदी में यीशु ने अपने प्रेषितों को यह समझने में मदद दी कि कटाई का काम जल्द-से-जल्द किया जाना है। सन्‌ 1919 से भी यीशु ने अपने चेलों को यही सच्चाई समझने में मदद दी है। और परमेश्‍वर के लोगों ने उसकी बात मानकर अपने काम में तेज़ी लायी है। कटाई के काम को कोई रोक नहीं पाया है! जैसे भविष्यवक्‍ता मलाकी ने कहा था, आज प्रचार काम “पूरब से पश्‍चिम तक” किया जा रहा है। (मला. 1:11) इसका मतलब है कि आज दुनिया के हर कोने में बीज बोनेवाले और कटाई करनेवाले साथ मिलकर काम कर रहे हैं और खुशियाँ मना रहे हैं। “पूरब से पश्‍चिम तक” का यह भी मतलब है कि सूरज उगने से लेकर सूरज डूबने तक, यानी सुबह से लेकर शाम तक सारा दिन हम इस एहसास के साथ प्रचार करते हैं कि यह काम जल्द-से-जल्द किया जाना है।

21 जब हम बीते सौ सालों की घटनाएँ याद करते हैं और देखते हैं कि कैसे परमेश्‍वर के सेवकों का एक छोटा-सा समूह बढ़कर एक “ताकतवर राष्ट्र” बन गया है तो हमारा ‘दिल उछल पड़ता है और खुशी से भर जाता है।’ (यशा. 60:5, 22) हमारी दुआ है कि यह खुशी और “खेत के मालिक” यहोवा के लिए हमारा प्यार हमें उभारे कि हम कटाई के सबसे महान काम में अपना भाग अदा करते रहें जो बहुत जल्द पूरा होनेवाला है!​—लूका 10:2.

^ पैरा. 9 उन सालों के दौरान और उसके बाद क्या-क्या हुआ था, इस बारे में ज़्यादा जानने के लिए यहोवा के साक्षी​—परमेश्‍वर के राज के प्रचारक  (अँग्रेज़ी) किताब के पेज 425-520 पढ़िए। वहाँ बताया गया है कि 1919 से 1992 तक कटाई का काम कैसे चला।

^ पैरा. 15 इस दिलचस्प भविष्यवाणी के बारे में ज़्यादा जानने के लिए यशायाह की भविष्यवाणी​—सारे जगत के लिए उजियाला II  के पेज 303-320 देखें।

^ पैरा. 19 शुरू के बाइबल विद्यार्थियों ने भी यह अहम सच्चाई समझ ली थी। पंद्रह नवंबर, 1895 की प्रहरीदुर्ग  में लिखा था, “चाहे बहुत कम गेहूँ मिले, फिर भी सच्चाई के बारे में साक्षी  बढ़-चढ़कर दी जा सकती है। . . . सुसमाचार सुनाने का काम सब लोग कर सकते हैं।”