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अध्याय 20

राहत सेवा

राहत सेवा

अध्याय किस बारे में है

विपत्ति के समय मसीही प्यार ने कैसे भाई-बहनों को एक-दूसरे की मदद करने के लिए उभारा

1, 2. (क) यहूदिया के मसीही किस विपत्ति के शिकार हुए थे? (ख) उन्होंने क्या अनुभव किया?

करीब ईसवी सन्‌ 46 की बात है। पूरा यहूदिया प्रदेश अकाल की चपेट में आ गया था। जो थोड़ा-बहुत अनाज मिलता था उसका दाम आसमान छूने लगा था। वहाँ के यहूदी मसीहियों के पास इतने पैसे नहीं थे कि वे अनाज खरीद सकें। भूख से उनकी हालत खराब हो रही थी। मगर जल्द ही वे महसूस करनेवाले थे कि यहोवा कैसे उन्हें बचाएगा। यह एक ऐसा अनोखा अनुभव होता जो इससे पहले कभी मसीह के चेलों के साथ नहीं हुआ था। आखिर ऐसा क्या होनेवाला था?

2 जब सीरिया के अंताकिया के रहनेवाले यहूदी और गैर-यहूदी मसीहियों को खबर मिली कि यरूशलेम और यहूदिया के यहूदी मसीही बड़ी तकलीफ में हैं तो उन्होंने उनके लिए दान जमा किया। फिर उन्होंने अपने बीच से बरनबास और पौलुस को चुना ताकि ये भरोसेमंद भाई राहत का सामान यरूशलेम की मंडली के प्राचीनों तक पहुँचाएँ। (प्रेषितों 11:27-30; 12:25 पढ़िए।) ज़रा कल्पना कीजिए, अंताकिया के भाइयों का यह प्यार देखकर यहूदिया के भाइयों को कितना अच्छा लगा होगा!

3. (क) अंताकिया के मसीहियों की तरह आज भी परमेश्‍वर के लोग क्या करते हैं? एक अनुभव बताइए। (यह बक्स भी देखें: “ हमारे ज़माने का पहला बड़ा राहत काम।”) (ख) इस अध्याय में हम किन सवालों पर गौर करेंगे?

3 बाइबल के मुताबिक, इस तरह पहली बार दुनिया के एक कोने में रहनेवाले मसीहियों ने विपत्ति के समय दूसरे कोने में रहनेवाले अपने भाई-बहनों को राहत पहुँचायी थी। आज भी हम अंताकिया के उन भाइयों की मिसाल पर चलते हैं। जब हमें पता चलता है कि दुनिया के किसी इलाके में हमारे भाई-बहन कोई विपत्ति या मुसीबत झेल रहे हैं तो हम उनकी मदद करने के लिए कदम उठाते हैं। * राहत का काम कैसे हमारी सेवा से जुड़ा है, यह समझने के लिए आइए तीन सवालों पर गौर करें: हम ऐसा क्यों मानते हैं कि राहत काम, सेवा का एक तरीका है? हमारे राहत काम के लक्ष्य क्या हैं? हमें इस सेवा से कैसे फायदा होता है?

राहत काम क्यों “पवित्र सेवा” है?

4. पौलुस ने कुरिंथ के भाई-बहनों को मसीही सेवा के बारे में क्या बताया?

4 कुरिंथियों को लिखी दूसरी चिट्ठी में पौलुस ने समझाया कि हम मसीहियों की सेवा के दो पहलू हैं। हालाँकि पौलुस ने यह चिट्ठी अभिषिक्‍त मसीहियों को लिखी थी, मगर उसकी सलाह आज मसीह की ‘दूसरी भेड़ों’ पर भी लागू होती है। (यूह. 10:16) हमारी सेवा का एक पहलू है, प्रचार और सिखाने का काम जो कि “सुलह करवाने की सेवा” है। (2 कुरिं. 5:18-20; 1 तीमु. 2:3-6) दूसरा पहलू है, अपने भाई-बहनों की मदद करना। पौलुस ने खासकर मुसीबत के वक्‍त उन्हें “राहत पहुँचाने” की बात की। (2 कुरिं. 8:4) सेवा के इन दोनों पहलुओं के लिए यूनानी में एक ही शब्द दीआकोनीया  इस्तेमाल किया गया है। यह बात क्यों गौर करने लायक है?

5. यह क्यों गौर करने लायक बात है कि पौलुस ने राहत काम को एक सेवा कहा?

5 पौलुस ने दोनों तरह की सेवा के लिए एक ही यूनानी शब्द का इस्तेमाल करके दिखाया कि राहत काम भी उतना ही अहम है जितना कि मसीही मंडली में किए जानेवाले दूसरे काम हैं। उसने अपनी पहली चिट्ठी में कहा था, “सेवाएँ अलग-अलग तरह की हैं, फिर भी प्रभु एक ही है। और जो काम हो रहे हैं वे अलग-अलग तरह के हैं, . . . मगर ये सारे काम वही एक  पवित्र शक्‍ति करती है।” (1 कुरिं. 12:4-6, 11) पौलुस ने मंडली में होनेवाले सब तरह के कामों को “पवित्र सेवा” कहा। * (रोमि. 12:1, 6-8) इसीलिए उसने अपना कुछ समय “पवित्र जनों की सेवा करने” में लगाना ज़रूरी समझा!​—रोमि. 15:25, 26.

6. (क) जैसे पौलुस ने समझाया, राहत काम क्यों हमारी उपासना का एक हिस्सा है? (ख) बताइए कि आज पूरी दुनिया में राहत काम कैसे किया जाता है। (यह बक्स देखें: “ जब विपत्ति आती है!”)

6 पौलुस ने कुरिंथियों को समझाया कि राहत काम क्यों उनकी सेवा और यहोवा की उपासना का एक हिस्सा है। ध्यान दीजिए कि उसने क्या दलील दी: मसीही इसलिए दूसरों को राहत पहुँचाते हैं क्योंकि वे ‘मसीह के बारे में खुशखबरी के अधीन रहते हैं।’ (2 कुरिं. 9:13) हम यीशु की शिक्षाओं पर चलना चाहते हैं, इसीलिए हम भाई-बहनों की मदद करते हैं। पौलुस ने कहा कि जब हम इस तरह मदद करते हैं तो दरअसल यह “परमेश्‍वर की अपार महा-कृपा” का एक सबूत है। (2 कुरिं. 9:14; 1 पत. 4:10) इसलिए 1 दिसंबर, 1975 की प्रहरीदुर्ग  ने ज़रूरतमंद भाइयों की मदद करने के बारे में, जिसमें राहत काम भी शामिल है, बिलकुल सही बात कही: “हमें इस बात पर कभी संदेह नहीं करना चाहिए कि यहोवा परमेश्‍वर और उसका पुत्र यीशु मसीह इस तरह की सेवा को बहुत महत्त्व देते हैं।” जी हाँ, राहत का काम पवित्र सेवा का एक ज़रूरी हिस्सा है।​—रोमि. 12:1, 7; 2 कुरिं. 8:7; इब्रा. 13:16.

राहत काम के लक्ष्य

7, 8. राहत सेवा का पहला लक्ष्य क्या है? समझाइए।

7 राहत काम करने में हमारे लक्ष्य क्या हैं? पौलुस ने इस सवाल का जवाब कुरिंथियों को लिखी दूसरी चिट्ठी में दिया। (2 कुरिंथियों 9:11-15 पढ़िए।) इन आयतों में पौलुस ने बताया कि इस तरह की “जन-सेवा” यानी राहत का काम करके हम खासकर तीन लक्ष्य हासिल करते हैं। आइए एक-एक करके उन पर ध्यान दें।

8 पहला लक्ष्य, हम चाहते हैं कि राहत काम से यहोवा की महिमा हो। गौर कीजिए कि ऊपर बतायी पाँच आयतों में पौलुस ने कैसे बार-बार भाइयों का ध्यान यहोवा की तरफ खींचा। पौलुस ने उन्हें बताया कि इस काम की वजह से “परमेश्‍वर को धन्यवाद दिया” जाता है। उसने यह भी कहा कि “परमेश्‍वर का बहुत धन्यवाद किया” जाता है। (आयत 11, 12) उसने बताया कि राहत काम की वजह से मसीही कैसे “परमेश्‍वर की महिमा करते हैं” और “परमेश्‍वर की अपार महा-कृपा” की तारीफ करते हैं। (आयत 13, 14) पौलुस ने राहत पहुँचाने की सेवा के बारे में अपनी बात खत्म करते हुए कहा, ‘परमेश्‍वर का धन्यवाद हो।’​—आयत 15; 1 पत. 4:11.

9. हमारा राहत काम देखकर लोगों की राय कैसे बदल सकती है? एक अनुभव बताइए।

9 पौलुस की तरह आज भी परमेश्‍वर के सेवक मानते हैं कि राहत काम से यहोवा की महिमा होती है और उसकी शिक्षाओं की शोभा बढ़ती है। (1 कुरिं. 10:31; तीतु. 2:10) कई बार तो ऐसा हुआ है कि हमारा राहत काम देखकर लोगों ने यहोवा और उसके साक्षियों के बारे में अपनी गलत राय बदल दी। एक अनुभव पर गौर कीजिए। एक औरत ने अपने घर के दरवाज़े पर यह नोट लिखा था: “यहोवा के साक्षियो, यहाँ मत आना।” एक बार उस इलाके में जब तूफान आया तो उसके बाद उस औरत ने देखा कि सड़क के उस पार कुछ लोग एक टूटा हुआ घर बना रहे हैं। वह कई दिनों से देख रही थी कि वे कैसे मिल-जुलकर काम कर रहे हैं, इसलिए वह जानना चाहती थी कि वे कौन हैं। जब वह उनके पास गयी तो पता चला कि वे स्वयंसेवक, यहोवा के साक्षी हैं। वह हैरान रह गयी और उसने कहा, “आप लोगों के बारे में मेरी राय गलत थी।” इसके बाद क्या हुआ? उसने अपने घर के दरवाज़े से वह नोट हटा दिया।

10, 11. (क) कौन-से अनुभव दिखाते हैं कि हम राहत काम में दूसरा लक्ष्य हासिल कर रहे हैं? (ख) राहत पहुँचानेवालों के लिए कौन-सा प्रकाशन तैयार किया गया है? (यह बक्स देखें: “ राहत काम करनेवालों के लिए एक और मदद।”)

10 दूसरा लक्ष्य, हम चाहते हैं कि हमारे भाई-बहनों की “ज़रूरतें अच्छी तरह पूरी हों।” (2 कुरिं. 9:12क) हम चाहते हैं कि हम जल्द-से-जल्द भाई-बहनों को वे चीज़ें पहुँचाएँ जिनकी उन्हें सख्त ज़रूरत है और दुख से उबरने में उनकी मदद करें। क्यों? क्योंकि मसीही मंडली के सभी सदस्य मिलकर “एक ही शरीर” हैं और “अगर एक अंग को तकलीफ होती है, तो बाकी सभी अंग उसके साथ तकलीफ उठाते हैं।” (1 कुरिं. 12:20, 26) इसलिए जब कहीं विपत्ति आती है तो अपने भाई-बहनों के लिए प्यार मसीहियों को उभारता है कि वे जाकर उन्हें राहत पहुँचाएँ। वे फौरन अपना काम छोड़ देते हैं और अपने औज़ार लेकर निकल पड़ते हैं। (याकू. 2:15, 16) मिसाल के लिए, 2011 में जब जापान में सुनामी आयी थी तो अमरीका के शाखा दफ्तर ने अमरीका के क्षेत्रीय निर्माण-समितियों को खत भेजा और पूछा कि जापान में राज-घरों को दोबारा बनाने के लिए क्या “कुछ काबिल भाई” जा सकते हैं। जवाब क्या मिला? कुछ ही हफ्तों के अंदर करीब 600 स्वयंसेवकों ने वहाँ जाने के लिए अर्ज़ी भरी और वे अपने खर्चे पर जापान जाने के लिए तैयार हो गए! अमरीका के शाखा दफ्तर ने कहा, “भाइयों का यह जज़्बा देखकर हम फूले नहीं समाए!” जापान के एक भाई ने दूसरे देश से आए एक स्वयंसेवक से पूछा कि वह क्यों राहत पहुँचाने आया है। उसने कहा, “जापान के भाई-बहन ‘हमारे शरीर’ का हिस्सा हैं। हम उनका दुख और दर्द महसूस कर सकते हैं।” राहत पहुँचानेवाले स्वयंसेवकों ने कभी-कभी अपने भाई-बहनों की खातिर अपनी जान तक जोखिम में डाल दी है। *​—1 यूह. 3:16.

11 जो लोग साक्षी नहीं हैं वे भी हमारे राहत काम की तारीफ करते हैं। जब 2013 में अमरीकी राज्य अरकंसास में एक विपत्ति आयी तो साक्षियों ने फौरन वहाँ जाकर मदद की। इस बारे में वहाँ के एक अखबार ने कहा, “यहोवा के साक्षी अपने स्वयंसेवकों को इतनी अच्छी तरह संगठित करते हैं कि विपत्ति आने पर वे बहुत बढ़िया तरीके से मदद करते हैं।” जी हाँ, जैसे प्रेषित पौलुस ने कहा था, हम मुसीबत झेलनेवाले भाई-बहनों की “ज़रूरतें अच्छी तरह  पूरी” करते हैं।

12-14. (क) राहत काम का तीसरा लक्ष्य हासिल करना क्यों इतना ज़रूरी है? (ख) कौन-से अनुभव दिखाते हैं कि परमेश्‍वर की उपासना से जुड़े काम दोबारा शुरू करना बहुत ज़रूरी है?

12 तीसरा लक्ष्य, हम चाहते हैं कि विपत्ति के शिकार भाई-बहन परमेश्‍वर की उपासना से जुड़े काम दोबारा शुरू करें। यह क्यों ज़रूरी है? पौलुस ने कहा कि जिन लोगों को राहत पहुँचायी जाती है वे एहसान-भरे दिल से “परमेश्‍वर का बहुत धन्यवाद” करेंगे। (2 कुरिं. 9:12ख) धन्यवाद देने का इससे बढ़िया तरीका और क्या हो सकता है कि वे जितनी जल्दी हो सके उपासना से जुड़े काम दोबारा शुरू करें! (फिलि. 1:10) सन्‌ 1945 में एक प्रहरीदुर्ग  ने कहा था, “पौलुस ने दान जमा करने के काम को इसलिए उचित ठहराया . . . क्योंकि इससे विपत्ति के शिकार . . . भाइयों को आवश्‍यक वस्तुएँ मिलतीं और वे यहोवा के बारे में साक्षी देने का काम बिना किसी चिंता के और पूरे उत्साह से कर पाते थे।” हमारा भी यही लक्ष्य है। जब विपत्ति के शिकार भाई-बहन दोबारा प्रचार काम शुरू करते हैं तो वे न सिर्फ दूसरों को दिलासा देते हैं बल्कि खुद भी दिलासा पाते हैं।​—2 कुरिंथियों 1:3, 4 पढ़िए।

13 ऐसे कुछ भाई-बहनों के अनुभव सुनिए जिन्होंने मुसीबत के वक्‍त राहत का सामान पाने के बाद दोबारा प्रचार काम शुरू किया और ऐसा करने की वजह से मज़बूत हुए थे। एक भाई ने कहा, “प्रचार में जाना हमारे परिवार के लिए आशीष साबित हुआ। जब हम दूसरों को दिलासा देते थे तो कुछ वक्‍त के लिए अपनी चिंताएँ भूल जाते थे।” एक बहन ने कहा, “परमेश्‍वर की सेवा में लग जाने की वजह से मेरा ध्यान आस-पास मची तबाही से हट गया। मेरा डर और मेरी चिंताएँ कम होने लगीं।” एक और बहन ने कहा, “यह सच है कि हालात हमारे बस में नहीं थे, फिर भी प्रचार करने की वजह से हम भविष्य पर ध्यान लगाए रख सके। जब हम दूसरों को बताते थे कि नयी दुनिया आएगी तो हमारा खुद का भरोसा मज़बूत होता था कि सबकुछ नया कर दिया जाएगा।”

14 इसके अलावा, विपत्ति के शिकार भाई-बहनों को जितनी जल्दी हो सके सभाओं में जाना शुरू कर देना चाहिए। गौर कीजिए कि बहन कीयोको ने क्या किया जो करीब 60 साल की है। सुनामी में उसका सबकुछ लुट गया था। उसने जो कपड़े और जूते पहने थे उसके सिवा उसका कुछ नहीं बचा। वह समझ नहीं पा रही थी कि उसकी ज़िंदगी कैसे चलेगी। फिर एक प्राचीन ने उसे बताया कि उसकी कार में मसीही सभाएँ होंगी। बहन कीयोको कहती है, “प्राचीन और उनकी पत्नी, एक और बहन और मैं कार में बैठे। हमारी सभा बहुत सरल तरीके से चलायी गयी, फिर भी उस सभा ने चमत्कार कर दिया। सुनामी की याद मेरे दिमाग से अचानक हट गयी। मैंने मन-ही-मन सुकून महसूस किया। उस सभा से मुझे एहसास हुआ कि भाई-बहनों की संगति कितना अच्छा असर कर सकती है।” एक और बहन बताती है कि विपत्ति के बाद जब वह सभाओं में गयी तो उसे कैसा लगा: “सभाओं ने मुझे बहुत हौसला दिया।”​—रोमि. 1:11, 12; 12:12.

राहत सेवा से हमेशा के फायदे

15, 16. (क) राहत काम से कुरिंथ और दूसरे इलाकों के मसीहियों को क्या फायदे होते? (ख) आज हमें भी राहत काम करने से क्या फायदा होता है?

15 पौलुस ने राहत सेवा के बारे में बात करते वक्‍त कुरिंथ के मसीहियों को समझाया कि इस काम से उन्हें और दूसरे मसीहियों को क्या फायदा होता है। उसने कहा कि यरूशलेम में रहनेवाले यहूदी मसीही, जिन्हें मदद दी गयी थी, “तुम्हारे लिए परमेश्‍वर से मिन्‍नतें करते हैं  और तुमसे प्यार करते हैं  क्योंकि तुम पर परमेश्‍वर की अपार महा-कृपा हुई है।” (2 कुरिं. 9:14) जी हाँ, कुरिंथ के मसीहियों की दरियादिली देखकर यहूदी मसीही उनके लिए, यहाँ तक कि गैर-यहूदी मसीहियों के लिए प्रार्थना करते और उन मसीहियों के लिए यहूदी भाइयों का प्यार और भी गहरा होता।

16 एक दिसंबर, 1945 की प्रहरीदुर्ग  में बताया गया कि आज राहत के काम से वही फायदे कैसे मिलते हैं जिनका पौलुस ने ज़िक्र किया था: “जब परमेश्‍वर के पवित्र जनों का एक समूह, दूसरे समूह की आवश्‍यकताएँ पूरी करने के लिए दान देता है तो उनकी एकता और दृढ़ होती है!” आज राहत का काम करनेवालों का यही अनुभव रहा है। एक प्राचीन, जिसने बाढ़ के बाद राहत काम में हिस्सा लिया था, कहता है: “राहत काम करने की वजह से मैं पहले से ज़्यादा अपने भाइयों के करीब महसूस करता हूँ।” एक बहन को जब राहत का सामान दिया गया तो उसने एहसान-भरे दिल से कहा, “भाई-बहनों का यह प्यार आनेवाले फिरदौस की क्या ही बढ़िया झलक है!”​—नीतिवचन 17:17 पढ़िए।

17. (क) राहत काम के ज़रिए यशायाह 41:13 कैसे पूरा होता है? (ख) कुछ अनुभव बताइए जो दिखाते हैं कि राहत काम से यहोवा की महिमा होती है और हमारी एकता मज़बूत होती है। (यह बक्स भी देखें: “ पूरी दुनिया के स्वयंसेवक राहत पहुँचाते हैं।”)

17 जब किसी इलाके में विपत्ति के बाद राहत पहुँचानेवाले स्वयंसेवक जाते हैं, तो वहाँ के भाई-बहन परमेश्‍वर के इस वादे को एक अनोखे तरीके से पूरा होते देखते हैं, “मैं तेरा परमेश्‍वर यहोवा, तेरा दायाँ हाथ थामे हुए हूँ, मैं तुझसे कहता हूँ, ‘मत डर, मैं तेरी मदद करूँगा।’” (यशा. 41:13) एक बहन ने, जो विपत्ति से ज़िंदा बची थी, कहा: “तबाही देखकर मैंने सारी उम्मीदें खो दी थीं। मगर तभी यहोवा ने हाथ बढ़ाकर मुझे थाम लिया। भाइयों ने जिस तरह मदद की उसे मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकती।” जब एक इलाके में भूकंप आया और सबकुछ तहस-नहस हो गया, तो उसके बाद वहाँ की मंडलियों की तरफ से दो प्राचीनों ने लिखा: “भूकंप की वजह से हमें कई तकलीफें झेलनी पड़ीं। मगर हमने यह भी देखा कि यहोवा हमारे भाइयों के ज़रिए कैसे हमारी मदद करता है। हम राहत काम के बारे में पहले पढ़ा करते थे, मगर अब हमने अपनी आँखों से यह काम होते देखा है।”

क्या आप भी हाथ बँटा सकते हैं?

18. राहत काम में हिस्सा लेने के लिए आप क्या कर सकते हैं? (यह बक्स भी देखें: “ इससे उसकी ज़िंदगी बदल गयी।”)

18 क्या आप भी राहत काम से मिलनेवाली खुशी पाना चाहते हैं? अगर हाँ, तो याद रखिए कि राहत काम के लिए अकसर उन लोगों को चुना जाता है जो राज-घर निर्माण काम करते हैं। इसलिए प्राचीनों को बताइए कि आप इस काम के लिए अर्ज़ी भरना चाहते हैं। राहत काम में काफी तजुरबा रखनेवाला एक प्राचीन बताता है कि हमें यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए: “विपत्तिवाले इलाके तक सफर करके तभी जाइए जब विपत्ति राहत-समिति आपको वहाँ जाने के लिए कहती है।” ऐसा करने से राहत काम कायदे से हो पाएगा।

19. राहत काम करनेवाले कैसे एक खास तरीके से साबित करते हैं कि हम सचमुच मसीह के चेले हैं?

19 राहत पहुँचाने का काम वाकई एक खास तरीका है जिससे हम मसीह की यह आज्ञा मानते हैं: “एक-दूसरे से प्यार करो।” जब हम इस तरह भाई-बहनों से प्यार करते हैं तो साबित करते हैं कि हम सचमुच मसीह के चेले हैं। (यूह. 13:34, 35) यह कितनी बड़ी आशीष है कि आज इतने सारे लोग परमेश्‍वर के राज की वफादार प्रजा को मुसीबत के वक्‍त मदद देने के लिए आगे आ रहे हैं जिससे यहोवा की महिमा होती है!

^ पैरा. 3 इस अध्याय में हम देखेंगे कि भाई-बहनों की खातिर कैसे राहत का काम किया जाता है। कई बार हमारे इस काम से उन लोगों को भी फायदा होता है जो साक्षी नहीं हैं।​—गला. 6:10.

^ पैरा. 5 पौलुस ने दीआकोनोस (सेवक) के बहुवचन का इस्तेमाल ‘सहायक सेवकों’ का ज़िक्र करने के लिए किया।​—1 तीमु. 3:12.

^ पैरा. 10 एक नवंबर, 1994 की अँग्रेज़ी प्रहरीदुर्ग  के पेज 23-27 पर दिया यह लेख देखें: “बॉस्निया के भाई-बहनों की मदद की गयी।”