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अध्याय 11

नैतिक मामलों में शुद्ध किया गया​—परमेश्‍वर की तरह पवित्र

नैतिक मामलों में शुद्ध किया गया​—परमेश्‍वर की तरह पवित्र

अध्याय किस बारे में है

राजा ने कैसे अपनी प्रजा को परमेश्‍वर के नैतिक स्तरों पर चलना सिखाया

कल्पना कीजिए कि आप उस दरवाज़े के अंदर जा रहे हैं जो यहोवा के लाक्षणिक मंदिर के बाहरी आँगन में ले जाता है

1. यहेजकेल ने कैसा हैरतअंगेज़ दर्शन देखा?

करीब 2,500 साल पहले भविष्यवक्‍ता यहेजकेल को जो अनुभव हुआ था, वही अगर आपके साथ होता तो आपको कैसा लगता? ज़रा कल्पना कीजिए: आप एक मंदिर के पास जा रहे हैं जो बहुत बड़ा और आलीशान है और तेज़ चमक रहा है। वहाँ एक शक्‍तिशाली स्वर्गदूत है जो आपको वह जगह दिखाने के लिए तैयार है! मंदिर के अंदर जाने के लिए तीन दरवाज़े हैं और आप एक दरवाज़े तक पहुँचने के लिए सात सीढ़ियाँ चढ़ते हैं। दरवाज़ा देखकर आप दंग रह जाते हैं। उसकी ऊँचाई करीब 100 फुट है! दरवाज़े के अंदर पहरेदारों के खाने हैं। उसके खंभों पर खजूर के पेड़ों की खूबसूरत नक्काशी है।​—यहे. 40:1-4, 10, 14, 16, 22; 41:20.

2. (क) दर्शन का मंदिर किस बात को दर्शाता है? (फुटनोट भी देखें।) (ख) मंदिर के दरवाज़ों के हिस्सों से हम क्या सीख सकते हैं?

2 यहेजकेल ने यह मंदिर एक दर्शन में देखा था। उसने अपनी किताब में इस मंदिर की इतनी बारीक जानकारी दी कि अध्याय 40 से 48 तक इसका ब्यौरा मिलता है। यह मंदिर शुद्ध उपासना के उस इंतज़ाम को दर्शाता है जो यहोवा ने किया है। मंदिर के हर हिस्से से हम सीखते हैं कि आखिरी दिनों में हमें परमेश्‍वर की उपासना कैसे करनी चाहिए। * मंदिर के ऊँचे-ऊँचे दरवाज़े किस बात को दर्शाते हैं? यही कि जो लोग यहोवा के इंतज़ाम के मुताबिक उपासना करना चाहते हैं उन्हें उसके ऊँचे और नेक स्तरों पर चलना चाहिए। खजूर के पेड़ों की नक्काशी का भी यही मतलब है, क्योंकि बाइबल में कई बार इन पेड़ों का मतलब नेकी बताया गया है। (भज. 92:12) पहरेदारों के खाने किस बात को दर्शाते हैं? जो लोग परमेश्‍वर के स्तरों पर नहीं चलते उन्हें सच्ची उपासना की उस खूबसूरत राह पर कदम रखने नहीं दिया जाता जो जीवन की तरफ ले जाती है।​—यहे. 44:9.

3. मसीह के चेलों को लगातार शुद्ध करने की ज़रूरत क्यों पड़ी?

3 यहेजकेल के दर्शन की भविष्यवाणी कैसे पूरी हुई है? जैसे हमने अध्याय 2 में देखा, 1914 से 1919 के शुरूआती महीनों तक यहोवा ने मसीह के ज़रिए अपने लोगों को शुद्ध किया। क्या उसके बाद उन्हें शुद्ध नहीं किया गया? ऐसी बात नहीं है। पिछले सौ सालों से मसीह चालचलन के बारे में यहोवा के पवित्र स्तरों को मानने का बढ़ावा देता रहा है। यह दिखाता है कि मसीहियों को लगातार शुद्ध करने की ज़रूरत थी। क्यों? क्योंकि मसीह इस दुनिया से, जो नैतिक रूप से गिरी हुई है, अपने चेलों को इकट्ठा करता आया है और शैतान उन्हें वापस अनैतिकता के कीचड़ में खींचने की कोशिश कर रहा है। (2 पतरस 2:20-22 पढ़िए।) आइए देखें कि सच्चे मसीहियों को किन तीन पहलुओं में लगातार शुद्ध किया गया। पहले हम देखेंगे कि नैतिक मामलों में कौन-से सुधार किए गए। फिर हम मंडली को शुद्ध रखने के एक खास इंतज़ाम पर गौर करेंगे। आखिर में हम परिवार के मामले में हुए सुधार पर ध्यान देंगे।

नैतिक मामलों में सुधार

4, 5. शैतान लंबे समय से कौन-सा फंदा बिछा रहा है और उसे कितनी कामयाबी मिली है?

4 यहोवा के लोगों ने शुरू से ही सही चालचलन बनाए रखने की कोशिश की है। इसलिए इस मामले में जब उन्हें साफ-साफ हिदायतें दी गयीं तो उन्होंने माना। कुछ हिदायतों पर गौर कीजिए।

5 नाजायज़ यौन-संबंध: लैंगिक संबंध यहोवा की तरफ से एक तोहफे जैसा है। ये सिर्फ पति-पत्नी के बीच होने चाहिए, तभी ये यहोवा की नज़र में शुद्ध माने जाते हैं। मगर शैतान ने बढ़ावा दिया है कि शादी के दायरे से बाहर ये संबंध रखे जाएँ। इस तरह उसने इस अनमोल तोहफे को दूषित कर दिया है। शैतान ने यहोवा के लोगों को भी ऐसे गलत काम करने के लिए लुभाया है ताकि वे परमेश्‍वर की मंज़ूरी खो दें। बिलाम के दिनों में वह इसमें कामयाब हो गया और उसके बुरे अंजाम हुए। आज वह पहले से कहीं ज़्यादा यह फंदा बिछा रहा है।​—गिन. 25:1-3, 9; प्रका. 2:14.

6. (क) प्रहरीदुर्ग  में कौन-सी शपथ छापी गयी थी और उससे परमेश्‍वर के लोगों को कैसे मदद मिली? (फुटनोट भी देखें।) (ख) बाद में यह शपथ लेना क्यों बंद कर दिया गया?

6 शैतान के इस फंदे से हमें बचाने के लिए 15 जून, 1908 की प्रहरीदुर्ग  में एक शपथ छापी गयी जो हर मसीही को लेनी थी: “मैं हर समय, हर स्थान पर विपरीत लिंग के व्यक्‍ति के साथ एकांत में वैसा ही व्यवहार करूँगा जैसा व्यवहार मैं दूसरों के सामने उसके साथ करता हूँ।” * यह शपथ लेना एक माँग नहीं थी, फिर भी कई मसीहियों ने यह शपथ ली और अपना नाम प्रहरीदुर्ग  में छापने के लिए दिया। कई साल बाद संगठन ने देखा कि भले ही इस शपथ से कई लोगों को मदद मिली, मगर यह रिवाज़ जैसा बन गया था, इसलिए इसे लेना बंद कर दिया गया। फिर भी उस शपथ ने जिन ऊँचे नैतिक सिद्धांतों को बढ़ावा दिया था उनको परमेश्‍वर के लोग मानते रहे।

7. सन्‌ 1935 की एक प्रहरीदुर्ग  में किस समस्या के बारे में बताया गया और किस स्तर को मानने की सलाह दी गयी?

7 परमेश्‍वर के लोगों पर शैतान का हमला तेज़ होता गया। उनके बीच एक समस्या बढ़ रही थी जिसके बारे में 1 मार्च, 1935 की प्रहरीदुर्ग  में बताया गया। कुछ लोग सोचते थे कि प्रचार काम करने की वजह से उन्हें परमेश्‍वर के नैतिक स्तरों को न मानने की छूट मिल गयी है। प्रहरीदुर्ग  में साफ कहा गया, “एक व्यक्‍ति को याद रखना चाहिए कि साक्षी देने का काम करना पर्याप्त नहीं है। यहोवा के साक्षी उसके प्रतिनिधि हैं, इसलिए उनका कर्तव्य है कि वे वैसा चालचलन बनाए रखें जैसा यहोवा और उसके राज के प्रतिनिधियों का होना चाहिए।” लेख में शादी और यौन-संबंधों के बारे में साफ सलाह दी गयी। इस तरह परमेश्‍वर के लोगों को ‘नाजायज़ यौन-संबंधों से दूर भागने’ में मदद मिली।​—1 कुरिं. 6:18.

8. प्रहरीदुर्ग  में बार-बार क्यों समझाया गया कि नाजायज़ यौन-संबंध के लिए यूनानी शब्द का असली मतलब क्या है?

8 हाल के सालों में प्रहरीदुर्ग  में बार-बार समझाया गया कि नाजायज़ यौन-संबंध के लिए इस्तेमाल हुए यूनानी शब्द पोर्निया  का असल मतलब क्या है। इसका मतलब सिर्फ गलत लैंगिक संबंध रखना नहीं है बल्कि कई तरह के अनैतिक काम हैं, खासकर ऐसे नीच काम जो वेश्‍याओं के यहाँ होते हैं। इस तरह सही समझ देकर मसीहियों को घिनौने लैंगिक कामों से बचाया गया है जो आज दुनिया में बहुत आम हैं।​—इफिसियों 4:17-19 पढ़िए।

9, 10. (क) 1935 में प्रहरीदुर्ग  में किस नैतिक मसले के बारे में बताया गया? (ख) शराब के बारे में बाइबल कैसे सही नज़रिया रखना सिखाती है?

9 शराब का गलत इस्तेमाल: 1 मार्च, 1935 की प्रहरीदुर्ग  में एक और नैतिक मसले के बारे में बताया गया था: “यह भी देखा गया है कि कुछ लोग [शराब] के नशे में होते हुए प्रचार काम और संगठन के दूसरे काम करते हैं। शास्त्र के अनुसार किन परिस्थितियों में दाख-मदिरा पीना सही है? क्या एक व्यक्‍ति के लिए इतनी दाख-मदिरा पीना सही होगा कि वह प्रभु के संगठन में ठीक से सेवा न कर पाए?”

10 इन सवालों के जवाब देने के लिए लेख में समझाया गया कि परमेश्‍वर के वचन के मुताबिक शराब के बारे में कैसा नज़रिया रखना सही होगा। बाइबल यह नहीं कहती कि दाख-मदिरा या किसी और तरह की शराब सीमित मात्रा में पीना गलत है, मगर यह ज़रूर बताती है कि शराब पीकर धुत्त होना गलत है। (भज. 104:14, 15; 1 कुरिं. 6:9, 10) और जहाँ तक शराब के नशे में रहकर पवित्र सेवा करने की बात है, तो परमेश्‍वर के सेवकों को बहुत पहले से ही बताया जाने लगा कि ऐसा करना क्यों गलत है। उन्हें हारून के बेटों का वाकया याद दिलाया गया। जब उन दोनों ने परमेश्‍वर की वेदी पर ऐसी आग चढ़ायी जो नियम के खिलाफ थी तो परमेश्‍वर ने उन्हें मार डाला। इस घटना के बाद ही परमेश्‍वर ने नियम दिया कि कोई भी याजक शराब पीकर पवित्र सेवा न करे। इससे पता चलता है कि शराब के नशे में होते हुए पवित्र सेवा करने की वजह से उन दोनों को सज़ा दी गयी थी। (लैव्य. 10:1, 2, 8-11) मसीह के चेले इस ब्यौरे में दिए सिद्धांत को मानते हैं। इसलिए वे इस बात का ध्यान रखते हैं कि वे शराब के नशे में पवित्र सेवा न करें।

11. परमेश्‍वर के लोगों को जब शराब की लत के बारे में और अच्छी तरह समझाया गया तो उन्हें कैसे फायदा हुआ?

11 हाल के सालों में मसीह के चेलों को शराब की लत के बारे में और भी समझ दी गयी। इस बारे में समय पर दी गयी सलाह की वजह से कई लोग अपनी कमज़ोरी पर काबू कर पाए और अपनी ज़िंदगी को बरबाद होने से बचा पाए। कई लोगों को इस सलाह से इतनी मदद मिली कि वे इस समस्या में पड़ने से ही बच गए। किसी को भी शराब का इतना गुलाम नहीं बन जाना चाहिए कि वह अपनी गरिमा, अपना परिवार और सबसे बढ़कर यहोवा की शुद्ध उपासना करने का सम्मान खो दे।

“हम सोच भी नहीं सकते कि हमारे प्रभु के पास से सिगरेट की दुर्गंध आए या वह अपने मुँह में ऐसी कोई वस्तु डाले जिससे वह दूषित हो जाए।”​—सी. टी. रसल

12. आखिरी दिनों के शुरू होने से पहले ही मसीही तंबाकू के बारे में क्या मानते थे?

12 तंबाकू सेवन: आखिरी दिनों के शुरू होने से पहले से ही मसीह के सेवक तंबाकू के सेवन को गलत बताने लगे। बरसों पहले एक बुज़ुर्ग भाई चार्ल्स केपन ने बताया कि जब वे 13 साल के थे और उनकी मुलाकात भाई रसल से हुई तो क्या हुआ था। एक दिन वे और उनके तीन भाई पेन्सिलवेनिया के अलेगेनी में ‘बाइबल भवन’ की सीढ़ियों पर खड़े थे। जब भाई रसल उनके पास से गुज़र रहे थे तो उन्होंने उन चारों भाइयों से पूछा, “क्या तुम लोग सिगरेट पी रहे हो? मुझे सिगरेट की दुर्गंध आ रही है।” भाइयों ने कहा कि वे सिगरेट नहीं पी रहे हैं। उन्हें साफ समझ आ गया कि तंबाकू के बारे में भाई रसल की क्या राय है। एक अगस्त, 1895 की प्रहरीदुर्ग  में भाई रसल ने 2 कुरिंथियों 7:1 के बारे में यह बताया: “मुझे समझ नहीं आता कि अगर एक मसीही किसी भी तरह तंबाकू का सेवन करे तो इससे परमेश्‍वर की महिमा कैसे हो सकती है और उस मसीही को कैसे लाभ हो सकता है। . . . हम सोच भी नहीं सकते कि हमारे प्रभु के पास से सिगरेट की दुर्गंध आए या वह अपने मुँह में ऐसी कोई वस्तु डाले जिससे वह दूषित हो जाए।”

13. सन्‌ 1973 में नैतिक शुद्धता के मामले में क्या सुधार किया गया?

13 सन्‌ 1935 की एक प्रहरीदुर्ग  ने कहा कि तंबाकू “गंदा पत्ता” है और अगर बेथेल का कोई सदस्य तंबाकू चबाए या सिगरेट पीए तो वह बेथेल का सदस्य नहीं रहेगा। उसी तरह ऐसा मसीही न तो पायनियर सेवा करके और न ही सफरी काम करके परमेश्‍वर के संगठन का प्रतिनिधि बना रह सकता है। सन्‌ 1973 में नैतिक मामलों में एक और सुधार हुआ। एक जून की प्रहरीदुर्ग  में समझाया गया कि यहोवा का कोई भी साक्षी अगर तंबाकू का सेवन करता रहे तो वह मंडली का सदस्य नहीं बना रहेगा क्योंकि यह आदत शरीर को दूषित करती है, मौत लाती है और दूसरों का भी नुकसान करती है। और यह निर्देश दिया गया कि जो लोग तंबाकू नहीं छोड़ते उन्हें मंडली से बहिष्कृत किया जाए। * मसीह ने अपने चेलों को शुद्ध करने के लिए एक और अहम कदम उठाया।

14. (क) खून के बारे में परमेश्‍वर का क्या स्तर है? (ख) इलाज में खून चढ़वाना कैसे आम हो गया?

14 खून का गलत इस्तेमाल: नूह के दिनों में परमेश्‍वर ने बताया था कि खून खाना गलत है। उसने इसराएलियों को भी यही नियम देकर ज़ाहिर किया कि खून के बारे में उसका यही नज़रिया है। बाद में मसीही मंडली को भी उसने “खून से दूर” रहने का निर्देश दिया। (प्रेषि. 15:20, 29; उत्प. 9:4; लैव्य. 7:26) ताज्जुब नहीं कि शैतान ने हमारे ज़माने में लोगों से परमेश्‍वर का यह नियम तुड़वाने के लिए एक नयी तरकीब ढूँढ़ निकाली है। वह है इलाज में खून चढ़वाना। उन्‍नीसवीं सदी में डॉक्टर जाँच करने लगे कि इलाज का यह तरीका कितना कामयाब हो सकता है। बाद में जब पता लगाया गया कि खून के अलग-अलग ग्रुप होते हैं तो खून चढ़ाने का तरीका ज़्यादा-से-ज़्यादा अपनाया जाने लगा। सन्‌ 1937 से खून को जमा करके ब्लड बैंकों में रखा जाने लगा। फिर दूसरे विश्‍व युद्ध की वजह से खून चढ़ाने का तरीका ज़ोर पकड़ने लगा। देखते-ही-देखते इलाज का यह तरीका पूरी दुनिया में आम हो गया।

15, 16. (क) खून चढ़वाने के मामले में यहोवा के साक्षियों ने क्या फैसला किया? (ख) मसीह के चेलों को बिना खून इलाज करवाने के लिए क्या मदद दी गयी? (ग) इसका क्या नतीजा रहा है?

15 सन्‌ 1944 से ही प्रहरीदुर्ग  ने बताया कि खून चढ़वाना दरअसल खून खाने का ही एक तरीका है। अगले साल और भी सबूत देकर समझाया गया कि बाइबल के मुताबिक खून लेना क्यों गलत है। सन्‌ 1951 के आते-आते कई सवाल-जवाब प्रकाशित किए गए ताकि उनकी मदद से परमेश्‍वर के लोग डॉक्टरों को समझा सकें। दुनिया-भर में सच्चे मसीही खून के मामले में हिम्मत से अपने फैसले पर डटे रहे, इसके बावजूद कि कई बार उनकी खिल्ली उड़ायी गयी, उनसे नफरत की गयी और उन पर ज़ुल्म भी किए गए। मगर मसीह अपने संगठन को बढ़ावा देता रहा कि उसके चेलों को इस मामले में ज़रूरत के हिसाब से मदद दी जाए। ऐसे ब्रोशर और लेख प्रकाशित किए गए जिनमें इस विषय पर बारीक जानकारी दी गयी जो अच्छी तरह खोजबीन करके पायी गयी थी।

16 सन्‌ 1979 में कुछ प्राचीन, डॉक्टरों से मिलने लगे ताकि उन्हें अच्छी तरह बताएँ कि हम बाइबल में बतायी किन वजहों से खून नहीं लेते और बगैर खून इलाज के कौन-से तरीके उपलब्ध हैं। सन्‌ 1980 में अमरीका के 39 शहरों के प्राचीनों को इस काम के लिए खास प्रशिक्षण दिया गया। कुछ समय बाद शासी निकाय ने दुनिया-भर में अस्पताल संपर्क समितियाँ बनाने की मंज़ूरी दे दी। इतने सालों के दौरान क्या इन कोशिशों से कोई कामयाबी मिली है? बेशक मिली है। आज हज़ारों डॉक्टर और सर्जन बिना खून चढ़ाए साक्षियों का इलाज करते हैं। इस तरह वे हमारे फैसले की इज़्ज़त करते हैं। आज कई अस्पतालों में बिना खून चढ़ाए इलाज करने की सुविधाएँ उपलब्ध हैं। कुछ अस्पताल तो मानते हैं कि यही इलाज का सबसे उम्दा तरीका है। यीशु ने जिस तरह अपने चेलों को शैतान के हाथों दूषित होने से बचाया है, उस पर गौर करने से क्या हम रोमांचित नहीं होते?​—इफिसियों 5:25-27 पढ़िए।

आज बहुत-से अस्पतालों में बिना खून इलाज करने की सुविधाएँ हैं। कुछ अस्पताल तो मानते हैं कि यही इलाज का सबसे उम्दा तरीका है

17. मसीह जिस तरह अपने चेलों को शुद्ध करता आया है, उसके लिए हम कैसे कदर दिखा सकते हैं?

17 हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘मसीह जिस तरह अपने चेलों को शुद्ध करता आया है और हमें यहोवा के ऊँचे नैतिक स्तरों को मानना सिखा रहा है, क्या हम इसकी कदर करते हैं?’ अगर हाँ, तो आइए हम हमेशा याद रखें कि शैतान पूरी कोशिश कर रहा है कि हम परमेश्‍वर के नैतिक स्तरों का आदर करना छोड़ दें और इस तरह यहोवा और यीशु से दूर हो जाएँ। यहोवा का संगठन हमें शैतान के बुरे असर से बचाने के लिए दुनिया के अनैतिक रंग-ढंग से खबरदार करता है और हिदायतें देता रहता है। इसलिए आइए हम हमेशा सतर्क रहें और ऐसी सलाह मानें।​—नीति. 19:20.

मंडली को बदनामी से बचाने का इंतज़ाम

18. जानबूझकर पाप करनेवालों के मामले में यहेजकेल के दर्शन से क्या साफ पता चलता है?

18 नैतिकता के एक और पहलू में हुए सुधार पर गौर कीजिए। वह है मंडली को शुद्ध बनाए रखने के लिए उठाए गए कदम। दुख की बात है कि कुछ लोग चालचलन के बारे में यहोवा के स्तरों को स्वीकार तो करते हैं और अपना जीवन उसे समर्पित भी करते हैं, मगर बाद में अपने फैसले पर बने नहीं रहते। उनका मन बदल जाता है और वे जानबूझकर परमेश्‍वर के स्तरों को तोड़ देते हैं। ऐसे लोगों के साथ क्या किया जाना चाहिए? इसका जवाब हमें कुछ हद तक यहेजकेल के मंदिर के दर्शन से मिल सकता है। याद कीजिए कि मंदिर के दरवाज़े कितने ऊँचे थे। हर दरवाज़े के अंदर पहरेदारों के खाने थे। पहरेदार मंदिर का पहरा देते थे ताकि ऐसे लोग अंदर न जाएँ जो “मन से खतनारहित” थे। (यहे. 44:9) इससे साफ पता चलता है कि शुद्ध उपासना करना एक सम्मान है और यह सिर्फ उन लोगों को दिया जाता है जो चालचलन के बारे में यहोवा के शुद्ध स्तरों को मानने की पूरी कोशिश करते हैं। उसी तरह, मंडली के भाई-बहनों के साथ मिलकर उपासना करने का सम्मान भी आज हर किसी को नहीं दिया जाता।

19, 20. (क) मसीह ने गंभीर पाप के मामले निपटाने के तरीके में कैसे सुधार किया है? (ख) पश्‍चाताप न करनेवालों का बहिष्कार करने की तीन वजह क्या हैं?

19 सन्‌ 1892 की एक प्रहरीदुर्ग  ने कहा कि “उन मसीहियों का बहिष्कार करना  हमारा कर्तव्य है जो सीधे तौर पर या किसी और तरीके से इस बात को अस्वीकार करते हैं कि मसीह ने सबकी खातिर फिरौती [का बराबर दाम चुकाने] के लिए खुद को दे दिया।” (2 यूहन्‍ना 10 पढ़िए।) सन्‌ 1904 में नयी सृष्टि  (अँग्रेज़ी) किताब में बताया गया कि जो लोग गलत काम नहीं छोड़ते, वे मंडली के लिए खतरा हैं क्योंकि वे दूसरों का इरादा कमज़ोर कर सकते हैं। उन दिनों जब कोई गंभीर पाप करता तो ‘चर्च का मुकदमा’ होता और पूरी मंडली उसके मामले की जाँच करती थी। मगर इस तरह के मुकदमे बहुत कम हुए हैं। फिर 1944 की एक प्रहरीदुर्ग  में समझाया गया कि सिर्फ ज़िम्मेदारी सँभालनेवाले भाइयों को ऐसे मामले निपटाने चाहिए। सन्‌ 1952 की एक प्रहरीदुर्ग  में बताया गया कि बाइबल के मुताबिक न्यायिक मामलों को निपटाने का सही तरीका क्या है। लेख में समझाया गया कि पश्‍चाताप न करनेवालों का बहिष्कार करने की एक बड़ी वजह है, मंडली को शुद्ध रखना।

20 इसके बाद के सालों में मसीह ने अपने चेलों को गंभीर पाप के मामलों के बारे में और भी साफ समझ दी और उन्हें निपटाने के तरीके में भी सुधार किया गया। मसीही प्राचीनों को अच्छा प्रशिक्षण दिया जाता है कि वे न्यायिक मामलों को यहोवा के तरीके से कैसे निपटाएँ, यानी वे न्याय की माँग पूरी करने के साथ-साथ दया भी दिखाएँ। आज हम अच्छी तरह समझते हैं कि पश्‍चाताप न करनेवालों का मंडली से बहिष्कार करने की कम-से-कम तीन वजह हैं: (1) यहोवा का नाम बदनाम न हो, (2) मंडली पर गंभीर पाप का बुरा असर न हो और (3) गुनहगार को पश्‍चाताप करने का बढ़ावा मिले।

21. बहिष्कार का इंतज़ाम परमेश्‍वर के लोगों के लिए कैसे एक आशीष साबित हुआ है?

21 क्या आप समझ सकते हैं कि बहिष्कार का इंतज़ाम मसीहियों के लिए कैसे एक आशीष साबित हुआ है? प्राचीन इसराएल में कई बार गुनहगारों ने दूसरे लोगों को भी भ्रष्ट कर दिया जिस वजह से गुनहगारों की गिनती उन लोगों से ज़्यादा हो गयी जो यहोवा से प्यार करते थे और सही काम करते थे। इस तरह उस राष्ट्र ने कई बार यहोवा के नाम को बदनाम किया और उसकी मंज़ूरी खो दी। (यिर्म. 7:23-28) मगर आज यहोवा का किसी एक राष्ट्र से नहीं बल्कि सब देशों में रहनेवाले उन लोगों के साथ एक खास रिश्‍ता है, जिन्होंने उसकी सेवा करने और उसके निर्देश मानने का फैसला किया है। जो लोग ढीठ होकर गलत काम करते रहते हैं उन्हें हमारे बीच से निकाल दिया जाता है, इसलिए वे शैतान के हथियार बनकर मंडली को ज़्यादा नुकसान नहीं पहुँचा सकते, न ही उसे दूषित कर सकते हैं। उनका मंडली पर बहुत कम असर होता है। इसलिए हम भरोसा रख सकते हैं कि एक समूह के तौर पर हम पर यहोवा की मंज़ूरी है। याद कीजिए कि यहोवा ने हमसे वादा किया है: “तुम्हारे खिलाफ उठनेवाला कोई भी हथियार कामयाब नहीं होगा।” (यशा. 54:17) क्या हम हमेशा प्राचीनों का साथ देते हैं जो न्यायिक मामलों को निपटाने की भारी ज़िम्मेदारी निभाते हैं?

परमेश्‍वर की बदौलत हर परिवार वजूद में आया है

22, 23. (क) हम 20वीं सदी के शुरूआती सालों के भाई-बहनों के क्यों एहसानमंद हैं? (ख) क्या बात दिखाती है कि उन्हें पारिवारिक ज़िम्मेदारियों पर और भी ध्यान देना था?

22 नैतिकता का तीसरा पहलू है, शादीशुदा ज़िंदगी और परिवार। बीते सालों के दौरान इस मामले में हमारे नज़रिए में काफी सुधार किया गया है और इससे हमें फायदा हुआ है। मिसाल के लिए, 20वीं सदी के शुरूआती सालों के भाई-बहनों के बारे में जब हम पढ़ते हैं तो हम उनके त्याग की भावना की तारीफ किए बिना नहीं रहते। कई बार तो हम हैरान रह जाते हैं। हम दिल से एहसानमंद हैं कि उन्होंने पवित्र सेवा को ज़िंदगी की हर बात से ज़्यादा अहमियत दी थी। पर साथ ही हम देख सकते हैं कि उन्हें अलग-अलग ज़िम्मेदारियों के बीच सही तालमेल बिठाने की ज़रूरत थी। कैसे?

23 उन दिनों कुछ भाई परमेश्‍वर की सेवा से जुड़ी ज़िम्मेदारियाँ निभाने या सफरी काम के सिलसिले में महीनों परिवार से दूर रहते थे। शादी न करने की बाइबल की सलाह पर कभी-कभी हद-से-ज़्यादा ज़ोर दिया जाता था। मगर शादी का बंधन मज़बूत करने के बारे में बहुत कम सलाह दी जाती थी। क्या आज मसीहियों के बीच यही हालात हैं? जी नहीं।

परमेश्‍वर की सेवा से जुड़ी ज़िम्मेदारियाँ निभाने के लिए परिवार की ज़िम्मेदारियों को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए

24. मसीह ने अपने वफादार लोगों को शादी और परिवार के बारे में कैसे सही नज़रिया रखना सिखाया?

24 आज मसीहियों को बताया जाता है कि वे परमेश्‍वर की सेवा से जुड़ी ज़िम्मेदारियाँ निभाने के लिए परिवार की ज़िम्मेदारियों को नज़रअंदाज़ न करें। (1 तीमुथियुस 5:8 पढ़िए।) मसीह ने इस बात का भी ध्यान रखा है कि उसके चेलों को शादी और परिवार के बारे में बाइबल से अच्छी सलाह मिलती रहे। (इफि. 3:14, 15) सन्‌ 1978 में अपना पारिवारिक जीवन आनन्दित बनाना  (अँग्रेज़ी) किताब प्रकाशित की गयी। फिर करीब 18 साल बाद पारिवारिक सुख का रहस्य  किताब निकाली गयी। इसके अलावा, प्रहरीदुर्ग  में कई लेख छापे गए हैं जिनसे पति-पत्नी सीखते हैं कि वे अपनी शादीशुदा ज़िंदगी में बाइबल के सिद्धांत कैसे लागू करें।

25-27. बीते सालों के दौरान अलग-अलग उम्र के बच्चों की ज़रूरतों का कैसे ध्यान रखा गया?

25 बच्चों और जवानों की कैसे मदद की गयी है? बीते सालों के दौरान उनकी ज़रूरतों पर पहले से ज़्यादा ध्यान दिया गया है। यहोवा के संगठन ने बहुत पहले ही अलग-अलग उम्र के बच्चों के लिए प्रकाशन छापे थे, मगर वे इतने ज़्यादा नहीं थे। लेकिन आज लगातार इतने प्रकाशन छापे जाते हैं कि उनकी तुलना एक बहती धारा से की जा सकती है जो उमड़ रही है। सन्‌ 1919 से 1921 तक स्वर्ण युग  में “बच्चों-जवानों का बाइबल अध्ययन” नाम की शृंखला छापी गयी। सन्‌ 1920 में अँग्रेज़ी ब्रोशर स्वर्ण युग की बुनियादी बातें  और 1941 में अँग्रेज़ी किताब बच्चे  निकाली गयी। सन्‌ 1971 से 1979 के दौरान तीन अँग्रेज़ी किताबें निकाली गयीं। ये थीं: महान शिक्षक की सुनना, आपकी युवावस्था​—इसका पूरा लाभ उठाना  और बाइबल कहानियों की मेरी मनपसंद किताब। (हिंदी में यह किताब 1993 में निकाली गयी।) सन्‌ 1982 से सजग होइए! (अँग्रेज़ी) में “युवाओं के प्रश्‍न” नाम की शृंखला छापी जाने लगी और इन्हीं लेखों के आधार पर 1989 में युवाओं के प्रश्‍न​—व्यावहारिक उत्तर  (अँग्रेज़ी) किताब निकाली गयी। (हिंदी में यह किताब 1998 में निकाली गयी।)

जर्मनी के इस अधिवेशन में बच्चे बाइबल से मैंने सीखा  ब्रोशर पाकर बहुत खुश हैं

26 आज हमारे पास अँग्रेज़ी में नौजवानों के सवाल  किताब के दो खंड हैं जिनमें ताज़ा-तरीन जानकारी दी गयी है। साथ ही, नौजवानों के सवाल  शृंखला अब हमारी वेबसाइट jw.org पर प्रकाशित की जाती है। हमारे पास महान शिक्षक से सीखिए  किताब भी है। हमारी वेबसाइट पर छोटे और बड़े बच्चों के लिए ढेर सारी चीज़ें उपलब्ध हैं, जैसे बाइबल कार्ड, ‘थोड़ी जानकारी, थोड़ा मज़ा’ भाग, खेल, वीडियो, बाइबल कॉमिक और तीन साल और उससे कम उम्र के बच्चों के लिए लेख, ‘बाइबल से मैंने सीखा।’ बेशक, छोटे बच्चों के बारे में मसीह का नज़रिया बदला नहीं है। वह उनके बारे में वैसा ही महसूस करता है जैसा वह पहली सदी में महसूस करता था जब उसने छोटे बच्चों को अपनी बाँहों में लिया था। (मर. 10:13-16) वह चाहता है कि हमारे बीच जो बच्चे और जवान हैं उन्हें बहुत प्यार मिले और परमेश्‍वर की बातें अच्छी तरह सिखायी जाएँ।

27 यीशु यह भी चाहता है कि बच्चों को खतरों से बचाया जाए। आज दुनिया नीच कामों में डूबती जा रही है और ऐसे में बच्चों के साथ गंदे काम करना बहुत आम हो गया है। इसलिए हमारे प्रकाशनों में माता-पिताओं को साफ हिदायतें दी गयी हैं कि वे कैसे अपने बच्चों को इन खतरों से बचा सकते हैं। *

28. (क) अगर हम शुद्ध उपासना करना चाहते हैं तो यहेजकेल के दर्शन के मुताबिक क्या करना ज़रूरी है? (ख) आपने क्या करने की ठान ली है?

28 क्या यह देखकर हम रोमांचित नहीं होते कि मसीह कैसे अपने चेलों को शुद्ध करता रहा है और उन्हें यहोवा के ऊँचे नैतिक स्तरों का आदर करना, उन्हें मानना और उनसे फायदा पाना सिखाता रहा है? एक बार फिर यहेजकेल के दर्शन का वह मंदिर याद कीजिए। उसके ऊँचे-ऊँचे दरवाज़ों के बारे में सोचिए। यह सच है कि वह कोई सचमुच का नहीं बल्कि एक लाक्षणिक मंदिर है। वह यहोवा परमेश्‍वर की शुद्ध उपासना करने के इंतज़ाम को दर्शाता है। क्या हम उस इंतज़ाम को असली मानते हैं? हम किस मायने में इस मंदिर में प्रवेश करते हैं? सिर्फ राज-घर में जाना, बाइबल पढ़ना या प्रचार में जाना काफी नहीं। ये ऐसे काम हैं जो इंसानों को दिखायी देते हैं। एक कपटी इंसान भी ऐसे काम कर सकता है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि वह यहोवा के मंदिर के अंदर है। ऐसे काम करने के साथ-साथ अगर हम यहोवा के ऊँचे नैतिक स्तरों को मानें और सही इरादे से शुद्ध उपासना करें, तभी हम मंदिर के अंदर सेवा कर रहे होते हैं। आइए हम इस अनोखे सम्मान की हमेशा कदर करें। आइए हम यहोवा के नेक स्तरों को मानकर उसकी तरह पवित्र बने रहने की पूरी कोशिश करें!

^ पैरा. 2 सन्‌ 1932 में अँग्रेज़ी किताब दोषनिवारण  का दूसरा खंड निकाला गया। उसमें बताया गया कि बाइबल की जिन भविष्यवाणियों में कहा गया था कि परमेश्‍वर के लोग अपने देश लौट जाएँगे, वे आज लाक्षणिक  इसराएल पर पूरी होती हैं, न कि इसराएल राष्ट्र पर। इन भविष्यवाणियों में ज़ाहिर किया गया कि शुद्ध उपासना दोबारा शुरू की जाएगी। फिर 1 मार्च, 1999 की प्रहरीदुर्ग  ने समझाया कि यहेजकेल के मंदिर का दर्शन भी उन भविष्यवाणियों में से एक है, इसलिए वह आखिरी दिनों में खास तरीके से पूरी हो रही है।

^ पैरा. 6 उस शपथ में यह मनाही की गयी थी कि अगर एक आदमी और औरत पति-पत्नी नहीं हैं या नज़दीकी रिश्‍तेदार नहीं हैं, तो वे किसी कमरे में अकेले नहीं रह सकते। अगर वे होते हैं तो उन्हें दरवाज़ा पूरी तरह खुला रखना चाहिए। कुछ साल तक बेथेल में हर दिन ‘सुबह की उपासना’ कार्यक्रम में यह शपथ सुनायी जाती थी।

^ पैरा. 13 तंबाकू के गलत इस्तेमाल में सिगरेट पीना, तंबाकू चबाना या ऐसी चीज़ें बनाने के लिए तंबाकू की खेती करना भी शामिल है।

^ पैरा. 27 मिसाल के लिए, महान शिक्षक से सीखिए  किताब का अध्याय 32 देखें। अक्टूबर 2007 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी) के शुरूआती लेख देखें जो इस विषय पर हैं: “अपने बच्चों की सुरक्षा का ध्यान रखिए!”