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अध्याय 8

परमेश्‍वर साफ और शुद्ध लोगों से प्यार करता है

परमेश्‍वर साफ और शुद्ध लोगों से प्यार करता है

“जो खुद को शुद्ध बनाए रखता है उसे तू दिखाएगा कि तू शुद्ध है।”—भजन 18:26.

1-3. (क) एक माँ क्यों इस बात का ध्यान रखती है कि उसका बच्चा साफ-सुथरा रहे? (ख) यहोवा क्यों चाहता है कि उसके सेवक साफ और शुद्ध रहें? क्या बात हमें साफ और शुद्ध रहने के लिए उभारती है?

एक माँ अपने बच्चे को बाहर जाने के लिए तैयार करती है। वह उसे नहलाती है और साफ-सुथरे कपड़े पहनाती है। वह जानती है कि साफ-सफाई बच्चे की सेहत के लिए बहुत ज़रूरी है। वह यह भी जानती है कि बच्चा अगर साफ-सुथरा होगा, तो लोग माँ-बाप की तारीफ करेंगे और अगर गंदा रहेगा तो माँ-बाप की ही बुराई करेंगे।

2 यहोवा स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता है और चाहता है कि उसके सेवक साफ और शुद्ध रहें। उसका वचन कहता है, “जो खुद को शुद्ध बनाए रखता है उसे तू दिखाएगा कि तू शुद्ध है।” * (भजन 18:26) यहोवा हमसे प्यार करता है। वह जानता है कि साफ-सुथरा रहना हमारे भले के लिए है। वह हमसे यह उम्मीद भी करता है कि हम उसके साक्षी होने के नाते दूसरों पर अच्छी छाप छोड़ें जिससे वे परमेश्‍वर की तारीफ करें। जी हाँ, हमारी साफ-सफाई और अच्छा चालचलन देखकर लोग यहोवा और उसके पवित्र नाम की तारीफ करेंगे, बुराई नहीं।—यहेजकेल 36:22; 1 पतरस 2:12 पढ़िए।

3 यह जानकर कि परमेश्‍वर साफ और शुद्ध लोगों से प्यार करता है, हमारा दिल हमें उभारता है कि हम भी शुद्ध रहें। हम परमेश्‍वर से प्यार करते हैं इसलिए हम अपनी ज़िंदगी इस तरीके से जीना चाहते हैं जिससे उसका आदर हो। हम यह भी चाहते हैं कि हम परमेश्‍वर के प्यार के लायक बने रहें। इसलिए आइए देखें कि हमारे लिए साफ और शुद्ध रहना क्यों ज़रूरी है, इसमें क्या-क्या शामिल है और हम खुद को साफ और शुद्ध कैसे बनाए रख सकते हैं। इस तरह की जाँच से हम जान सकेंगे कि हमें किन मामलों में अपने अंदर सुधार करने की ज़रूरत है।

साफ और शुद्ध रहना क्यों ज़रूरी है?

4, 5. (क) हमारे साफ और शुद्ध रहने की सबसे बड़ी वजह क्या है? (ख) यहोवा की बनायी सृष्टि कैसे दिखाती है कि वह साफ-सफाई को बहुत अहमियत देता है?

4 साफ और शुद्ध रहने में यहोवा ने हमारे लिए एक मिसाल रखी है। इसलिए उसका वचन हमें सलाह देता है कि हम ‘परमेश्‍वर की मिसाल पर चलें।’ (इफिसियों 5:1) शुद्ध रहने की सबसे बड़ी वजह यह है कि यहोवा परमेश्‍वर, जिसकी हम उपासना करते हैं, वह हर मायने में साफ, शुद्ध और पवित्र है।—लैव्यव्यवस्था 11:44, 45 पढ़िए।

5 जैसे सृष्टि में यहोवा की रचनाओं से उसके कई गुणों का पता लगता है, वैसे ही सृष्टि से हम यह भी जान सकते हैं कि वह साफ-सफाई को कितनी अहमियत देता है। (रोमियों 1:20) यहोवा ने पृथ्वी को इस तरह बनाया कि यह इंसानों के लिए एक साफ-सुथरा घर हो। उसने ऐसे कुदरती चक्र बनाए हैं जो पृथ्वी की हवा और पानी को लगातार साफ करते रहते हैं। उसने कुछ ऐसे सूक्ष्म-जीव भी बनाए हैं जो सफाई-विभाग की तरह काम करते हैं। वे गंदगी को ऐसे पदार्थों में तबदील कर देते हैं जो नुकसानदेह नहीं होते। वैज्ञानिकों ने इन भूखे सूक्ष्म-जीवों को ऐसे तालाब और नदियाँ साफ करने के लिए इस्तेमाल किया है जो तेल के रिसाव और स्वार्थी और लालची इंसानों के फैलाए प्रदूषण से गंदे हो चुके हैं। इन सारी रचनाओं से यह बात साफ है कि साफ-सफाई उस परमेश्‍वर के लिए बहुत अहमियत रखती है जिसने “धरती बनायी” है। (यिर्मयाह 10:12) हमें भी इसे अहमियत देनी चाहिए।

6, 7. मूसा के कानून में इस बात पर कैसे ज़ोर दिया गया था कि यहोवा की उपासना करनेवालों का शुद्ध रहना ज़रूरी है?

6 शुद्ध रहने की एक और वजह यह है कि सारे जहान का मालिक यहोवा माँग करता है कि उसकी उपासना करनेवाले साफ और शुद्ध रहें। यहोवा ने इसराएल को जो कानून दिया था, उसके तहत शुद्धता का उपासना से गहरा ताल्लुक था। कानून में खास तौर पर बताया गया कि प्रायश्‍चित के दिन महायाजक एक बार नहीं बल्कि दो बार नहाए। (लैव्यव्यवस्था 16:4, 23, 24) सेवा करनेवाले याजकों के लिए यह नियम था कि वे यहोवा के आगे बलियाँ चढ़ाने से पहले अपने हाथ-पैर धोएँ। (निर्गमन 30:17-21; 2 इतिहास 4:6) कानून में करीब 70 ऐसी वजह बतायी गयी थीं जिनसे एक इसराएली शारीरिक तौर पर अशुद्ध हो सकता था और उपासना के लिए रखी गयी माँगों के मुताबिक अशुद्ध ठहरता था। एक इसराएली ऐसी अशुद्ध हालत में, परमेश्‍वर की उपासना से जुड़े किसी भी काम में हिस्सा नहीं ले सकता था। कुछ मामलों में ऐसा करनेवालों को मौत की सज़ा दी जाती थी। (लैव्यव्यवस्था 15:31) अगर एक इसराएली खुद को शुद्ध करने के नियमों को मानने से इनकार करता, जिसमें नहाना और अपने कपड़े धोना भी शामिल था, तो उसे “मौत की सज़ा” दी जानी थी।—गिनती 19:17-20.

7 हालाँकि आज हम मूसा के कानून के अधीन नहीं हैं, मगर इसमें दिए गए नियम हमें परमेश्‍वर की सोच के बारे में अंदरूनी समझ देते हैं। कानून में दिए नियमों से यह बात अच्छी तरह उभरकर सामने आती है कि परमेश्‍वर की उपासना करनेवालों से शुद्ध और साफ-सुथरा रहने की माँग की गयी थी। यहोवा बदला नहीं है, आज भी वह यही चाहता है। (मलाकी 3:6) वह हमारी उपासना इसी शर्त पर स्वीकार करेगा कि यह “शुद्ध और निष्कलंक” हो। (याकूब 1:27) इसलिए यह जानना ज़रूरी है कि शुद्ध रहने के मामले में वह हमसे क्या उम्मीद करता है।

परमेश्‍वर की नज़र में शुद्ध रहने में क्या-क्या शामिल है

8. यहोवा हमसे किन बातों में साफ और शुद्ध रहने की उम्मीद करता है?

8 बाइबल के हिसाब से, शुद्ध रहने का मतलब सिर्फ अपने शरीर को साफ-सुथरा रखना नहीं है। अगर हम चाहते हैं कि हम परमेश्‍वर की नज़र में शुद्ध ठहरें तो हमें अपनी ज़िंदगी के हर पहलू में शुद्ध होना चाहिए। यहोवा उम्मीद करता है कि हम इन चार खास बातों में साफ और शुद्ध रहें—उपासना में, चालचलन में, सोच-विचार में और शरीर से। आइए इनमें से हर बात पर गौर करें।

9, 10. उपासना में शुद्ध होने का मतलब क्या है? सच्चे मसीही कैसे कामों से दूर रहते हैं?

9 उपासना में शुद्धता। सीधे शब्दों में कहें तो अपनी उपासना को शुद्ध रखने का मतलब है, सच्ची उपासना में झूठी उपासना की मिलावट न करना। जब इसराएली यरूशलेम वापस जाने के लिए बैबिलोन छोड़ रहे थे, तो उन्हें परमेश्‍वर की यह हिदायत माननी थी: “वहाँ से निकल आओ, किसी भी अशुद्ध चीज़ को मत छूओ! . . . खुद को शुद्ध बनाए रखो।” (यशायाह 52:11) इसराएली इसलिए अपने देश लौट रहे थे कि वहाँ यहोवा की उपासना दोबारा शुरू करें। यही उनके लौटने की सबसे बड़ी वजह थी। उन्हें अपनी उपासना को हर हाल में शुद्ध रखना था। इसलिए उन्हें एहतियात बरतनी थी कि उनकी उपासना में बैबिलोन के धर्म की उन शिक्षाओं और रीति-रिवाज़ों की किसी भी तरह से मिलावट न हो जिनसे परमेश्‍वर की बदनामी होती है।

10 आज हम सच्चे मसीहियों को भी सावधान रहना चाहिए कि हम झूठी उपासना से अशुद्ध न हो जाएँ। (1 कुरिंथियों 10:21 पढ़िए।) इस मामले में सतर्क रहना बेहद ज़रूरी है क्योंकि आज झूठे धर्म का असर हर तरफ फैला हुआ है। कई देशों में ऐसी परंपराएँ और रस्में मानी जाती हैं और ऐसे काम किए जाते हैं जिनका ताल्लुक झूठी धार्मिक शिक्षाओं से है, जैसे यह शिक्षा कि इंसान का सिर्फ शरीर मरता है, आत्मा नहीं मरती। (सभोपदेशक 9:5, 6, 10) सच्चे मसीही ऐसे रिवाज़ों और दस्तूरों में हिस्सा नहीं लेते, जो झूठी धार्मिक शिक्षाओं को बढ़ावा देते हैं। * दूसरे हम पर चाहे कितना ही दबाव क्यों न डालें, हम ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जो बाइबल में बताए शुद्ध उपासना के स्तरों के खिलाफ हो।—प्रेषितों 5:29.

11. शुद्ध चालचलन बनाए रखने में क्या शामिल है? और इस मामले में शुद्धता बनाए रखना क्यों बेहद ज़रूरी है?

11 चालचलन शुद्ध रखना। शुद्ध चालचलन बनाए रखने में यह भी शामिल है कि हम किसी भी तरह का नाजायज़ यौन-संबंध न रखें। (इफिसियों 5:5 पढ़िए।) अपना चालचलन हर हाल में शुद्ध बनाए रखना बहुत अहमियत रखता है। जैसे हम अगले अध्याय में देखेंगे, परमेश्‍वर के प्यार के लायक बने रहने के लिए ज़रूरी है कि हम ‘नाजायज़ यौन-संबंधों से दूर भागें।’ जो लोग नाजायज़ यौन-संबंध रखते हैं और पश्‍चाताप नहीं करते, वे ‘परमेश्‍वर के राज के वारिस नहीं होंगे।’ (1 कुरिंथियों 6:9, 10, 18) परमेश्‍वर की नज़र में वे उन लोगों में गिने जाते हैं जो “अशुद्ध और घिनौने” हैं। अगर वे बुराई छोड़कर शुद्ध चालचलन नहीं अपनाते तो उनकी सज़ा “दूसरी मौत” होगी।—प्रकाशितवाक्य 21:8.

12, 13. हमारे सोच-विचार और कामों के बीच क्या नाता है? हम अपने सोच-विचार कैसे शुद्ध रख सकते हैं?

12 सोच-विचार शुद्ध रखना। जैसी सोच, वैसे काम। जी हाँ, अगर हम अपने दिलो-दिमाग में गलत विचारों को घर करने दें, तो यह तय है कि आज नहीं तो कल, हम अशुद्ध काम कर बैठेंगे। (मत्ती 5:28; 15:18-20) लेकिन अगर हम अपना दिमाग साफ-सुथरे, शुद्ध विचारों से भरें तो शुद्ध चालचलन बनाए रखने का हमारा इरादा मज़बूत होगा। (फिलिप्पियों 4:8 पढ़िए।) हम अपने सोच-विचार शुद्ध कैसे रख सकते हैं? इसका एक तरीका है, ऐसे किसी भी किस्म के मनोरंजन से दूर रहना जो हमारी सोच को गंदा कर सकता है। * इसके अलावा, अपने दिमाग में साफ-सुथरे विचार भरने के लिए हम हर दिन परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन कर सकते हैं।—भजन 19:8, 9.

13 तो हमने देखा है कि परमेश्‍वर के प्यार के लायक बने रहने के लिए कितना ज़रूरी है कि हम अपनी उपासना, अपने चालचलन और अपने सोच-विचार को शुद्ध बनाए रखें। इन तरीकों से साफ और शुद्ध रहने के बारे में इस किताब के दूसरे अध्यायों में और भी खुलकर चर्चा की गयी है। अब आइए हम चौथे तरीके पर ध्यान दें। वह है, शरीर और घर-बाहर साफ-सुथरा रखना।

हम अपना शरीर और घर-बाहर कैसे साफ-सुथरा रख सकते हैं?

14. शरीर और घर-बाहर को साफ-सुथरा रखना क्यों एक निजी मामला नहीं है?

14 साफ-सुथरे रहने का मतलब है कि हम अपना शरीर और घर-बाहर साफ-सुथरा रखें। लेकिन शायद कोई कहे, साफ-सफाई तो हरेक का निजी मामला है, इसमें दूसरों को दखल देने की क्या ज़रूरत है। यहोवा की उपासना करनेवाले ऐसा नज़रिया नहीं रखते। जैसा हम पहले देख चुके हैं, साफ-सफाई यहोवा के लिए बहुत अहमियत रखती है। सिर्फ इसलिए नहीं कि इसमें हमारी भलाई है, बल्कि इसलिए भी कि हमारी साफ-सफाई देखकर लोग यहोवा के बारे में राय कायम करते हैं। वह मिसाल याद कीजिए जिस पर हमने शुरू में चर्चा की थी। अगर एक बच्चा हमेशा गंदा रहता है और मैले-कुचैले कपड़े पहनता है, तो उसे देखकर क्या आप यह नहीं कहेंगे कि कैसे माँ-बाप हैं जो बच्चे का ध्यान नहीं रखते? उसी तरह, हम नहीं चाहते कि हमारे पहनावे या सजने-सँवरने के ढंग या जीने के तरीके में कहीं भी कुछ ऐसा हो जिससे हमारे पिता, यहोवा की बदनामी हो या हम जो संदेश सुनाते हैं उसका अनादर हो। परमेश्‍वर का वचन कहता है, “हम किसी भी तरह से ठोकर खाने की कोई वजह नहीं देते ताकि हमारी सेवा में कोई दोष न पाया जाए। हर तरह से हम परमेश्‍वर के सेवक होने का सबूत देते हैं।” (2 कुरिंथियों 6:3, 4) तो फिर, हम अपने शरीर और घर-बाहर की सफाई का कैसे ध्यान रख सकते हैं?

15, 16. साफ-सफाई की अच्छी आदतों का क्या मतलब है? हमारे कपड़े कैसे होने चाहिए?

15 हमारी साफ-सफाई की आदतें। माना कि अलग-अलग देशों के लोगों की संस्कृति अलग-अलग है और उनके जीने के हालात में भी बहुत फर्क है, फिर भी ज़्यादातर देशों में रोज़ नहाने और खुद को और अपने बच्चों को साफ-सुथरा रखने के लिए साबुन और पानी का इंतज़ाम करने में ज़्यादा मुश्‍किल नहीं होती। साफ-सफाई की अच्छी आदतें होने का मतलब है कि हम खाना खाने या खाने की चीज़ें छूने से पहले साबुन से अच्छी तरह हाथ धोएँ। और शौचालय (टॉयलेट) जाने के बाद या बच्चे के गंदे पोतड़े (डायपर) बदलने के बाद भी हमें साबुन लगाकर हाथ धोने चाहिए। साबुन और पानी से हाथ धोने की आदत से बीमारियों पर रोक लगती है, यहाँ तक कि लोगों की जानें बचती हैं। इससे कई खतरनाक बीमारियाँ लानेवाले कीटाणु (वाइरस और बैक्टीरिया) नहीं फैलते, और दस्त जैसी बीमारियों से बचाव होता है। जिन इलाकों में घर, मल-निकास की नालियों से जुड़े हुए नहीं हैं, वहाँ मल-त्याग करने के बाद उसे मिट्टी से ढक देना चाहिए, जैसे पुराने ज़माने में इसराएल देश में किया जाता था।—व्यवस्थाविवरण 23:12, 13.

16 हमारे कपड़े साफ-सुथरे और पहनने लायक रहें, इसके लिए इनकी नियमित धुलाई ज़रूरी है। यह ज़रूरी नहीं कि एक मसीही नए फैशन के और महँगे कपड़े पहने, मगर जो भी पहने वह साफ-सुथरा और शालीन होना चाहिए। (1 तीमुथियुस 2:9, 10 पढ़िए।) चाहे हम कहीं भी हों, हम चाहते हैं कि हम साफ-सुथरे रहें ताकि “हमारे उद्धारकर्ता परमेश्‍वर की शिक्षा की शोभा” बढ़े।—तीतुस 2:10.

17. हमारा घर और आस-पास क्यों दिखने में अच्छा और साफ-सुथरा होना चाहिए?

17 हमारा घर और आस-पास। हमारा घर शायद महलों जैसा आलीशान न हो, मगर हमारे हालात के हिसाब से जैसा भी है, उसे अच्छा और साफ-सुथरा रखना चाहिए। और अगर हमारे पास गाड़ी है जिसमें हम सभाओं के लिए और राज का संदेश सुनाने के लिए निकलते हैं, तो हम इसे अंदर-बाहर से साफ-सुथरा रखने की हर मुमकिन कोशिश कर सकते हैं। हमें यह बात याद रखनी चाहिए कि अगर हम अपना घर और आस-पास साफ-सुथरा रखते हैं तो ये भी एक गवाही का काम करते हैं। लोगों को हम यही तो सिखाते हैं कि यहोवा एक शुद्ध परमेश्‍वर है और वह “पृथ्वी को तबाह करनेवालों को खत्म” कर देगा और उसका राज बहुत जल्द हमारी धरती को एक खूबसूरत बाग या फिरदौस बना देगा। (प्रकाशितवाक्य 11:18; लूका 23:43) हम चाहते हैं कि हमारे घर और हमारी चीज़ों की साफ-सफाई देखकर लोगों को पता चले कि हम अभी से साफ-सफाई की ऐसी अच्छी आदतें डाल रहे हैं जो आनेवाली नयी दुनिया में भी होंगी।

साफ-सुथरा रहने का मतलब है कि हम अपना शरीर और घर-बाहर साफ-सुथरा रखें

18. हम अपने राज-घर के लिए कदरदानी कैसे दिखा सकते हैं?

18 हम जहाँ उपासना करते हैं। हम यहोवा से प्यार करते हैं, इसलिए अपने इलाके के राज-घर के लिए आदर दिखाते हैं, क्योंकि पूरे इलाके में यही वह जगह है जहाँ हम सच्ची उपासना के लिए इकट्ठा होते हैं। हम चाहते हैं कि जब नए लोग राज-घर में आएँ, तो उन पर अच्छा असर हो। हमारा राज-घर देखने में अच्छा और आकर्षक लगे, इसका ध्यान रखने के लिए ज़रूरी है कि इसकी नियमित साफ-सफाई की जाए और अगर कुछ टूट-फूट गया है तो उसकी मरम्मत की जाए। राज-घर को साफ-सुथरा और अच्छी हालत में रखने के लिए, हम अपनी तरफ से जितना कर सकते हैं वह करेंगे और इस तरह अपनी कदरदानी दिखाएँगे। अपनी उपासना की जगह को साफ-सुथरा रखने और उसकी “मरम्मत” करने के लिए खुशी-खुशी अपना समय देना हमारे लिए बड़े सम्मान की बात है। (2 इतिहास 34:10) यही सिद्धांत सम्मेलन भवन या किसी और जगह के बारे में भी लागू होता है, जहाँ हम सम्मेलनों या अधिवेशनों के लिए इकट्ठा होते हैं।

अशुद्ध करनेवाली आदतें और काम छोड़कर खुद को शुद्ध कीजिए

19. खुद को साफ-सुथरा रखने के लिए हमें कैसी आदतों से दूर रहना चाहिए? इस मामले में बाइबल कैसे हमारी मदद करती है?

19 साफ-सुथरा रहने के लिए ज़रूरी है कि हम ऐसी आदतों और कामों से दूर रहें जो हमारे शरीर को अशुद्ध करती हैं, जैसे सिगरेट पीना, हद-से-ज़्यादा शराब पीना और नशीली दवाइयाँ और ड्रग्स लेना। बाइबल उन सभी गंदी और घिनौनी आदतों के नाम नहीं बताती जिनका आज के ज़माने में चलन है। मगर इसमें ऐसे सिद्धांत ज़रूर पाए जाते हैं, जिनकी मदद से हम समझ पाएँगे कि इन बुरी आदतों के बारे में यहोवा कैसा महसूस करता है। जब हमें पता होता है कि यहोवा कैसा महसूस करता है तो उसके लिए प्यार हमें उभारता है कि हम उसी तरीके से ज़िंदगी जीएँ जिससे वह खुश हो। आइए बाइबल में दिए ऐसे पाँच सिद्धांतों पर चर्चा करें जिनसे यहोवा की सोच पता लगती है।

20, 21. यहोवा चाहता है कि हम किस किस्म की आदतों से दूर रहें? यहोवा की बात मानने की हमारे पास क्या ज़बरदस्त वजह है?

20 “प्यारे भाइयो, जब हमसे ये वादे किए गए हैं तो आओ हम तन और मन की हर गंदगी को दूर करके खुद को शुद्ध करें और परमेश्‍वर का डर मानते हुए पूरी हद तक पवित्रता हासिल करें।” (2 कुरिंथियों 7:1) यहोवा चाहता है कि हम ऐसी बुरी आदतों से दूर रहें जिनसे हमारा शरीर गंदा होता है और हमारा नज़रिया या हमारी सोच भ्रष्ट हो जाती है। इसलिए हमें ऐसी आदतों से दूर रहना चाहिए जो एक इंसान को अपना गुलाम बना लेती हैं और न सिर्फ तन को बल्कि मन को भी नुकसान पहुँचाती हैं।

21 बाइबल हमें ज़बरदस्त वजह बताती है कि हमें क्यों “हर गंदगी को दूर करके खुद को शुद्ध” करना चाहिए। गौर कीजिए कि 2 कुरिंथियों 7:1 की शुरूआत में क्या कहा गया है, “जब हमसे ये वादे किए गए हैं।” कौन-से वादे? इससे पहले की आयतों में यहोवा वादा करता है, “मैं तुम्हें अपने पास ले लूँगा . . . मैं तुम्हारा पिता बनूँगा।” (2 कुरिंथियों 6:17, 18) ज़रा इस वादे के बारे में सोचिए: यहोवा कहता है कि वह खुद आपकी रक्षा करेगा और जैसे एक पिता अपने बेटे या बेटी से प्यार करता है वैसे वह आपसे प्यार करेगा। लेकिन यहोवा ये वादे सिर्फ एक ही सूरत में पूरे करेगा, अगर आप “तन और मन” की हर गंदगी से दूर रहें। तो फिर, अपनी किसी गंदी और घिनौनी आदत की वजह से यहोवा के साथ ऐसा अनमोल और करीबी रिश्‍ता गँवा देना कितनी बड़ी बेवकूफी होगी!

22-25. बाइबल के कौन-से सिद्धांत हमें गंदी और घिनौनी आदतों से दूर रहने में मदद दे सकते हैं?

22 “तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपने पूरे दिमाग से प्यार करना।” (मत्ती 22:37) इस आज्ञा के बारे में यीशु ने बताया था कि यही सबसे बड़ी आज्ञा है। (मत्ती 22:38) यहोवा हमसे ऐसा प्यार पाने का हकदार है। यहोवा से अपने पूरे दिल, जान और दिमाग से प्यार करने के लिए हमें ऐसी आदतों से दूर रहना होगा जो वक्‍त से पहले हमें मौत के मुँह में धकेल सकती हैं या परमेश्‍वर की दी हुई सोचने-समझने की हमारी काबिलीयत को सुस्त कर देती हैं।

23 [यहोवा] सबको जीवन और साँसें और सबकुछ देता है।” (प्रेषितों 17:24, 25) जीवन परमेश्‍वर का दिया हुआ एक तोहफा है। हम जीवन देनेवाले इस परमेश्‍वर से प्यार करते हैं, इसलिए जो तोहफा उसने दिया है, उसके लिए हम कदर दिखाना चाहते हैं। हम ऐसी हर आदत और ऐसे हर काम से दूर रहते हैं जिससे हमारी सेहत को नुकसान पहुँचता है, क्योंकि हम जानते हैं कि जो ऐसे काम करते हैं वे जीवन के अनमोल तोहफे का घोर अनादर करते हैं।—भजन 36:9.

24 “तुम अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे तुम खुद से करते हो।” (मत्ती 22:39) गंदी और घिनौनी आदतों से सिर्फ उस इंसान का नुकसान नहीं होता जिसमें ये आदतें हैं बल्कि आस-पास के लोगों को भी होता है। मिसाल के लिए, सिगरेट पीनेवाला जो धुआँ छोड़ता है, उससे आस-पास मौजूद लोगों की सेहत को भी नुकसान पहुँचता है जो सिगरेट नहीं पी रहे हैं। जो इंसान अपने आस-पास के लोगों को नुकसान पहुँचाता है वह परमेश्‍वर की इस आज्ञा को तोड़ता है कि हम अपने पड़ोसी से प्यार करें। और ऐसा इंसान अगर दावा करे कि वह परमेश्‍वर से प्यार करता है तो वह झूठा है।—1 यूहन्‍ना 4:20, 21.

25 “उन्हें याद दिलाता रह कि सरकारों और अधिकारियों के अधीन रहें और उनकी आज्ञा मानें।” (तीतुस 3:1) कई देशों में अपने पास कुछ तरह की दवाइयाँ या ड्रग्स रखना या उनका इस्तेमाल करना कानूनन अपराध है। सच्चे मसीही होने के नाते हम ऐसे कोई भी गैर-कानूनी ड्रग्स अपने पास नहीं रखेंगे, न ही उन्हें इस्तेमाल करेंगे।—रोमियों 13:1.

26. (क) परमेश्‍वर के प्यार के लायक बने रहने के लिए क्या करना ज़रूरी है? (ख) परमेश्‍वर की नज़रों में शुद्ध बने रहना, जीने का सबसे बेहतरीन तरीका क्यों है?

26 परमेश्‍वर के प्यार के लायक बने रहने के लिए ज़रूरी है कि हम बस एक-दो बातों में नहीं बल्कि हर तरह से साफ और शुद्ध रहें। शरीर को गंदा करनेवाली आदतें और काम छोड़ना और उनसे दूर रहना शायद आसान न हो, मगर यह मुमकिन ज़रूर है। * सच तो यह है कि जीने का इससे बेहतर तरीका और कोई नहीं है, क्योंकि यहोवा हमेशा हमारी भलाई के लिए हमें सिखाता है। (यशायाह 48:17 पढ़िए।) सबसे ज़रूरी बात यह है कि साफ और शुद्ध रहने से हमें इस बात का सुकून रहता है कि लोग हमें देखकर हमारे प्यारे परमेश्‍वर यहोवा की तारीफ करते हैं। इस तरह हम उसके प्यार के लायक बने रहते हैं।

^ पैरा. 2 जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “शुद्ध” किया गया है, उसका मतलब है कि हम अपने शरीर को साफ-सुथरा रखने के साथ-साथ अपने चालचलन और उपासना को भी शुद्ध बनाए रखें।

^ पैरा. 12 अच्छा मनोरंजन कैसे चुनें, इस बारे में इस किताब के अध्याय 6 में चर्चा की गयी है।

^ पैरा. 67 नाम बदल दिया गया है।