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अध्याय 15

अपने काम से खुशी पाइए

अपने काम से खुशी पाइए

‘इंसान अपनी मेहनत से खुशी पाए।’​—सभोपदेशक 3:13.

1-3. (क) बहुत-से लोग अपनी नौकरी के बारे में कैसा महसूस करते हैं? (ख) इस अध्याय में हम किन बातों पर चर्चा करेंगे?

 पूरी दुनिया में लोग अपने परिवार का गुज़ारा करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। कई लोगों को अपनी नौकरी पसंद नहीं है, तो कुछ लोगों को काम पर जाने के खयाल से ही घबराहट होने लगती है। अगर आप भी अपने काम को लेकर परेशान हैं, तो आप क्या कर सकते हैं? आप अपने काम से खुशी कैसे पा सकते हैं? आप ऐसा क्या कर सकते हैं, जिससे आपको अपना काम अच्छा लगे?

2 यहोवा चाहता है, ‘इंसान खाए-पीए और अपनी मेहनत से खुशी पाए। यह परमेश्‍वर की देन है।’ (सभोपदेशक 3:13) यहोवा ने हमें इस तरह बनाया है कि हमारे लिए काम करना ज़रूरी है और काम करने की इच्छा हममें स्वाभाविक होती है। वह चाहता है कि हमें अपने काम से खुशी मिले।​—सभोपदेशक 2:24; 5:18 पढ़िए।

3 हम अपने काम से खुशी कैसे पा सकते हैं? एक मसीही को किस तरह की नौकरी नहीं करनी चाहिए? काम को अपनी जगह पर रखते हुए हम यहोवा की उपासना को सबसे ज़्यादा महत्त्व कैसे दे सकते हैं? हमारे लिए सबसे ज़रूरी काम कौन-सा है?

यहोवा और यीशु​—हमारे लिए बेहतरीन मिसाल

4, 5. काम के मामले में हम यहोवा के बारे में क्या कह सकते हैं?

4 यहोवा परमेश्‍वर को काम करना बेहद पसंद है। उत्पत्ति 1:1 में लिखा है, “शुरूआत में परमेश्‍वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की।” उसी अध्याय में आगे लिखा है कि उसने धरती पर पेड़-पौधे, जानवर और इंसान बनाए। यह सब बनाने के बाद उसे इतना अच्छा लगा कि उसने कहा, “सबकुछ बहुत बढ़िया” है। (उत्पत्ति 1:31) यहोवा अपने काम से बहुत खुश था।​—1 तीमुथियुस 1:11.

5 यहोवा हमेशा काम करता रहता है। सब चीज़ों की सृष्टि करने के बाद भी वह काम करता रहा। यीशु ने कहा था, “मेरा पिता अब तक काम कर रहा है।” (यूहन्‍ना 5:17) यहोवा ने आज तक जितने भी लाजवाब काम किए हैं, उन सबके बारे में तो हमें नहीं पता, मगर बाइबल से हमें कुछ कामों की जानकारी मिलती है। जैसे, वह कुछ इंसानों को चुनता आया है ताकि वे उसके बेटे यीशु मसीह के साथ स्वर्ग से राज करें। (2 कुरिंथियों 5:17) यहोवा मानवजाति को सही राह दिखाता आया है और उनकी ज़रूरतें पूरी करता आया है। वह पूरी दुनिया में प्रचार काम भी करवा रहा है। इस काम की वजह से लाखों लोगों ने उसे जाना है और उन्हें फिरदौस में हमेशा जीने की आशा मिली है।​—यूहन्‍ना 6:44; रोमियों 6:23.

6, 7. काम करने के मामले में यीशु का जज़्बा कैसा है?

6 यीशु को भी अपने पिता की तरह काम करना बहुत पसंद है। जब परमेश्‍वर स्वर्ग और धरती पर सबकुछ बना रहा था, तो यीशु ने उसका हाथ बँटाया। वह उसका “कुशल कारीगर” था। (नीतिवचन 8:22-31; कुलुस्सियों 1:15-17) जब वह धरती पर आया, तब भी वह मेहनत करता रहा। छोटी उम्र में उसने बढ़ई का काम सीखा। शायद वह मकान, मेज़, कुर्सियाँ वगैरह बनाता था। यीशु यह काम इतनी अच्छी तरह करता था कि वह एक “बढ़ई” के तौर पर जाना गया।​—मरकुस 6:3.

7 यीशु ने प्रचार काम पर सबसे ज़्यादा ध्यान दिया। उसे साढ़े तीन साल के अंदर यह काम पूरा करना था, इसलिए वह तड़के सुबह उठ जाता और देर रात तक लोगों को खुशखबरी सुनाता और यहोवा के बारे में सिखाता था। (लूका 21:37, 38; यूहन्‍ना 3:2) इस काम के सिलसिले में उसने सैकड़ों मील का सफर तय किया, वह भी धूल-भरी सड़कों पर पैदल चलकर। वह ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को खुशखबरी सुनाना चाहता था।​—लूका 8:1.

8, 9. हम कैसे कह सकते हैं कि यीशु को काम करना अच्छा लगता था?

8 यीशु के लिए परमेश्‍वर का काम करना खाना खाने जैसा था। इस काम से उसे ताकत और स्फूर्ति मिलती थी। कभी-कभी वह परमेश्‍वर की सेवा में इतना व्यस्त रहता था कि वह खाने के लिए भी वक्‍त नहीं निकालता था। (यूहन्‍ना 4:31-38) वह हर मौके पर लोगों को अपने पिता के बारे में सिखाता था। यही वजह है कि वह यहोवा से कह पाया, “जो काम तूने मुझे दिया है उसे पूरा करके मैंने धरती पर तेरी महिमा की है।”​—यूहन्‍ना 17:4.

9 जैसे हमने देखा, यहोवा और यीशु दोनों ही बहुत मेहनती हैं और अपने काम से खुशी पाते हैं। हमें भी ‘परमेश्‍वर की मिसाल’ पर और यीशु के “नक्शे-कदम पर नज़दीकी से” चलना चाहिए। (इफिसियों 5:1; 1 पतरस 2:21) हमें मेहनती होना चाहिए और हम जो भी काम करते हैं, अच्छे-से करना चाहिए।

काम के बारे में हमारी सोच कैसी होनी चाहिए?

10, 11. क्या बात याद रखने से हम अपनी नौकरी के बारे में सही सोच रख पाएँगे?

10 यहोवा के लोग होने के नाते हम अपने परिवार की रोज़ी-रोटी के लिए मेहनत करने से नहीं कतराते। पर हो सकता है कि हम जो काम कर रहे हैं, उससे हमें खुशी नहीं मिल रही है। ऐसे में हम क्या कर सकते हैं?

सही नज़रिया रखने से आप कोई भी काम खुशी से करेंगे

11 सही सोच रखिए। शायद हम किसी मजबूरी की वजह से ऐसी जगह नौकरी कर रहे हैं, जो हमें पसंद नहीं है या हमें बहुत ज़्यादा काम करना पड़ता है। हम अपने हालात बदल नहीं सकते, मगर नौकरी के बारे में अपनी सोच ज़रूर बदल सकते हैं। हमें जानना होगा कि यहोवा हमसे क्या उम्मीद करता है। तब हम सही सोच पैदा कर पाएँगे। जैसे, यहोवा चाहता है कि परिवार का मुखिया अपने घर-बार की अच्छी देखभाल करे। दरअसल बाइबल कहती है कि जो अपने परिवार की देखभाल नहीं करता, वह “अविश्‍वासी से भी बदतर है।” (1 तीमुथियुस 5:8) अगर आपका एक परिवार है, तो शायद आप उसकी ज़रूरतें पूरी करने के लिए बहुत मेहनत करते होंगे। चाहे आपको अपनी नौकरी पसंद हो या नहीं, याद रखिए कि जब आप अपनी ज़िम्मेदारी पूरी करते हैं, तो यहोवा आपसे खुश होता है।

12. हमें मेहनत और ईमानदारी से काम क्यों करना चाहिए?

12 जी लगाकर और ईमानदारी से काम कीजिए। अगर आप इस तरह काम करेंगे, तो आपको काम करने में मज़ा आएगा। (नीतिवचन 12:24; 22:29) आप अपने मालिक का भरोसा भी जीत पाएँगे। हर कोई ईमानदार आदमी को काम पर रखना पसंद करता है, क्योंकि वह न तो पैसे या चीज़ें चुराता है और न ही कामचोर होता है। (इफिसियों 4:28) इससे भी बड़ी बात यह है कि यहोवा आपकी मेहनत और ईमानदारी पर ध्यान देता है। यह जानकर कि परमेश्‍वर आपसे खुश है, आपको अच्छा लगेगा और आपका “ज़मीर साफ” रहेगा।​—इब्रानियों 13:18; कुलुस्सियों 3:22-24.

13. हमारी ईमानदारी का और कौन-सा अच्छा नतीजा निकल सकता है?

13 आपकी मेहनत और ईमानदारी से यहोवा की तारीफ हो सकती है। यह बात ध्यान में रखने से हम खुशी से काम करेंगे। (तीतुस 2:9, 10) यह भी हो सकता है कि आपके साथ काम करनेवाला कोई व्यक्‍ति आपका अच्छा रवैया देखकर बाइबल का अध्ययन करना चाहे।​—नीतिवचन 27:11; 1 पतरस 2:12 पढ़िए।

आपको कैसी नौकरी करनी चाहिए?

14-16. नौकरी का फैसला करते वक्‍त हमें किन बातों पर गौर करना चाहिए?

14 बाइबल में यह नहीं लिखा है कि मसीहियों को कौन-सी नौकरी करनी चाहिए और कौन-सी नहीं। लेकिन इसमें जो सिद्धांत दिए गए हैं, उन पर गहराई से सोचने से हम नौकरी के मामले में सही फैसला कर पाएँगे। (नीतिवचन 2:6) आइए देखें कि यह फैसला हम कैसे कर सकते हैं।

ऐसी नौकरी ढूँढ़िए, जिसमें आपको यहोवा के स्तरों के खिलाफ काम न करना पड़े

15 क्या मुझे इस नौकरी में कोई ऐसा काम करना पड़ेगा, जिसे यहोवा गलत कहता है? हम पहले सीख चुके हैं कि यहोवा की नज़र में कौन-कौन-से काम गलत हैं, जैसे चोरी करना और झूठ बोलना। (निर्गमन 20:4; प्रेषितों 15:29; इफिसियों 4:28; प्रकाशितवाक्य 21:8) हमें ऐसी कोई नौकरी नहीं करनी चाहिए, जिसमें हमें यहोवा के स्तरों के खिलाफ काम करना पड़ सकता है।​—1 यूहन्‍ना 5:3 पढ़िए।

16 क्या इस नौकरी से किसी ऐसे काम को बढ़ावा मिलता है, जो यहोवा की नज़र में गलत है? मान लीजिए, आपको एक गर्भपात केंद्र में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी मिलती है। क्या आप वह नौकरी करेंगे? रिसेप्शनिस्ट की नौकरी करना अपने आप में गलत नहीं है, लेकिन आप जानते हैं कि गर्भपात यहोवा की नज़र में पाप है। माना कि गर्भपात करने का काम आप नहीं, डॉक्टर करेगा, लेकिन वहाँ रिसेप्शनिस्ट की नौकरी करने से क्या आप उस पाप के साझेदार नहीं बन जाएँगे?​—निर्गमन 21:22-24.

17. हम सही फैसला कैसे कर सकते हैं?

17 परमेश्‍वर के सिद्धांतों पर गहराई से सोचने से हम बिलकुल वही कर रहे होंगे, जो इब्रानियों 5:14 में लिखा है। हम ‘अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति का इस्तेमाल कर रहे होंगे और सही-गलत में फर्क करना’ सीख रहे होंगे। खुद से पूछिए, ‘अगर मैं यह नौकरी करूँ, तो क्या किसी को ठोकर तो नहीं लगेगी? क्या मुझे अपने पति या पत्नी और बच्चों को छोड़कर विदेश जाना पड़ेगा? मेरे विदेश जाने से उन पर कैसा असर पड़ेगा?’

‘पहचानो कि ज़्यादा अहमियत रखनेवाली बातें क्या हैं’

18. यहोवा की उपासना को अहमियत देना मुश्‍किल क्यों हो सकता है?

18 आज हम ‘संकटों से भरे वक्‍त’ में जी रहे हैं। (2 तीमुथियुस 3:1) ऐसे में यहोवा की सेवा को सबसे ज़्यादा अहमियत देना आसान नहीं है। एक तो नौकरी मिलना ही बहुत मुश्‍किल है और मिल जाए, तो डर लगा रहता है कि कहीं छूट न जाए। परिवार की देखभाल करना हमारा फर्ज़ है, पर हम जानते हैं कि यहोवा की उपासना सबसे ज़रूरी है। हमें परिवार की ज़रूरतें पूरी करने में ही नहीं लग जाना चाहिए। (1 तीमुथियुस 6:9, 10) आइए देखें कि हम परिवार की देखभाल करने के साथ-साथ परमेश्‍वर की सेवा को “ज़्यादा अहमियत” कैसे दे सकते हैं?​—फिलिप्पियों 1:10.

19. यहोवा पर भरोसा रखने से हम नौकरी को कितनी अहमियत देंगे?

19 यहोवा पर पूरी तरह भरोसा कीजिए। (नीतिवचन 3:5, 6 पढ़िए।) यहोवा अच्छी तरह जानता है कि हमें कब किस चीज़ की ज़रूरत है और उसे हमारा खयाल रहता है। (भजन 37:25; 1 पतरस 5:7) बाइबल में सलाह दी गयी है, “तुम्हारे जीने का तरीका दिखाए कि तुम्हें पैसे से प्यार नहीं और जो कुछ तुम्हारे पास है उसी में संतोष करो। क्योंकि परमेश्‍वर ने कहा है, ‘मैं तुझे कभी नहीं छोड़ूँगा, न कभी त्यागूँगा।’” (इब्रानियों 13:5) यहोवा नहीं चाहता कि हम दिन-रात इसी चिंता में रहें कि हम अपने परिवार की देखभाल कैसे करेंगे। वह अपने लोगों की ज़रूरतें पूरी करने के काबिल है और वह हमेशा ऐसा करता है। (मत्ती 6:25-32) अपनी नौकरी की वजह से बाइबल का अध्ययन करना, प्रचार करना और मसीही सभाओं में जाना चाहे कितना ही मुश्‍किल क्यों न हो, हम यह सब करना कभी नहीं छोड़ते।​—मत्ती 24:14; इब्रानियों 10:24, 25.

20. सादा जीवन जीने के लिए हम क्या कर सकते हैं?

20 अपनी आँख एक ही चीज़ पर टिकाए रखिए। (मत्ती 6:22, 23 पढ़िए।) इसका मतलब है कि हमें सादा जीवन जीना चाहिए ताकि यहोवा की सेवा से हमारा ध्यान न भटके। हम जानते हैं कि यहोवा के साथ अपनी दोस्ती को दाँव पर रखकर पैसे के पीछे भागना, रहन-सहन का ऊँचा स्तर पाना या नए-से-नए मॉडल के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण पाने में लगे रहना बेवकूफी होगी। हम सही बातों को अहमियत कैसे दे सकते हैं? जहाँ तक हो सके, हमें कर्ज़ नहीं लेना चाहिए। अगर हमने कर्ज़ लिया है, तो उसे कम करने या पूरी तरह चुकाने के तरीके ढूँढ़ने चाहिए। ऐशो-आराम की चीज़ें पाने की धुन में हमारा बहुत-सा वक्‍त बरबाद हो सकता है और हम थककर पस्त हो सकते हैं। फिर प्रार्थना करने, अध्ययन करने और प्रचार करने के लिए हमारे पास वक्‍त ही नहीं बचेगा। सुख-सुविधाएँ पाने की चाहत में हमारी ज़िंदगी उलझकर रह जाएगी, इसलिए अगर हमारे पास “खाने और पहनने” को है, तो हमें उसी में संतोष करना चाहिए। (1 तीमुथियुस 6:8) हमारी आर्थिक स्थिति चाहे जैसी भी हो, हमें समय-समय पर देखना चाहिए कि हम यहोवा की सेवा और ज़्यादा किस तरह कर सकते हैं।

21. हमें ज़रूरी बातों को अहमियत क्यों देनी चाहिए?

21 ज़रूरी बातों को अहमियत दीजिए। हमें अपने समय, पैसे और अपनी ताकत का अच्छी तरह इस्तेमाल करना चाहिए, नहीं तो ऐसी बातों में हमारा समय बरबाद हो सकता है, जो ज़्यादा ज़रूरी नहीं हैं, जैसे पैसे कमाने या पढ़ाई-लिखाई में। यीशु ने कहा था, ‘पहले राज की खोज में लगे रहो।’ (मत्ती 6:33) हमारे फैसलों, हमारी आदतों, हमारी दिनचर्या और हमारे लक्ष्यों से पता चलता है कि हम किन बातों को ज़्यादा ज़रूरी समझते हैं।

सबसे ज़रूरी काम

22, 23. (क) मसीहियों के लिए सबसे ज़रूरी काम क्या है? (ख) किस बात को याद रखने से हम अपना काम खुशी से करेंगे?

22 एक मसीही के लिए सबसे ज़रूरी काम है, यहोवा की सेवा करना, खासकर लोगों को खुशखबरी सुनाना। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) यीशु की तरह हम यह काम जी-जान से करना चाहते हैं। कुछ भाई-बहन ऐसी जगहों में जाकर बस गए हैं, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। कुछ और भाई-बहन नयी भाषा सीख रहे हैं, ताकि वे उस भाषा के लोगों को प्रचार कर सकें। उन भाई-बहनों से पूछिए कि उन्होंने यह सब कैसे किया। उनका अनुभव सुनने से आप जान पाएँगे कि इस तरह यहोवा की सेवा करने की वजह से वे पहले से ज़्यादा खुश हैं।​—नीतिवचन 10:22 पढ़िए।

यहोवा की सेवा हमारे लिए सबसे ज़रूरी काम है

23 आज हममें से ज़्यादातर लोगों को घंटों काम करना पड़ता है या फिर एक-से-ज़्यादा नौकरी करनी पड़ती है। तब जाकर बड़ी मुश्‍किल से परिवार की ज़रूरतें पूरी होती हैं। यहोवा हमारे हालात अच्छी तरह समझता है और हमारी मेहनत की कदर करता है। यह बात याद रखने से हम अपना काम खुशी से करेंगे, फिर चाहे हमारी नौकरी जैसी भी हो। आइए, हम यहोवा और यीशु मसीह की तरह मेहनती बनें! हम यह भी न भूलें कि यहोवा की सेवा करना और राज की खुशखबरी सुनाना सबसे ज़रूरी काम है। इसी से हमें सच्ची खुशी मिलेगी।