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अध्याय 14

सब बातों में ईमानदार रहिए

सब बातों में ईमानदार रहिए

“हम सब बातों में ईमानदारी से काम करना चाहते हैं।”​—इब्रानियों 13:18.

1, 2. हमारी ईमानदारी देखकर यहोवा को कैसा लगता है?

 एक बच्चे को स्कूल से घर जाते वक्‍त सड़क पर पैसों से भरा एक बटुआ मिलता है। क्या वह उसे रख लेता है या उस आदमी को लौटा देता है, जिसका वह बटुआ है? वह उस आदमी को लौटा देता है। जब यह बात बच्चे की माँ को पता चलती है, तो उसे अपने बच्चे पर बहुत गर्व होता है।

2 जब माँ-बाप देखते हैं कि उनके बच्चे ईमानदार हैं, तो उन्हें बहुत खुशी होती है। उसी तरह जब हम ईमानदार होते हैं, तो हमारा पिता यहोवा भी खुश होता है, क्योंकि वह ‘सच्चाई का परमेश्‍वर’ है। (भजन 31:5) हम उसका दिल खुश करना चाहते हैं और “सब बातों में ईमानदारी से काम करना चाहते हैं।” (इब्रानियों 13:18) आइए अब हम अपने जीवन के चार पहलुओं पर ध्यान दें, जिनमें ईमानदार रहना कभी-कभी मुश्‍किल हो सकता है। फिर हम देखेंगे कि मुश्‍किल हालात में भी ईमानदार रहने से कौन-से अच्छे नतीजे मिलते हैं।

खुद से सच बोलिए

3-5. (क) एक मसीही खुद को धोखा कैसे दे रहा होगा? (ख) हम कैसे जान सकते हैं कि हम खुद को धोखा दे रहे हैं?

3 सबसे पहले तो हमें खुद से सच बोलना चाहिए यानी ध्यान देना चाहिए कि क्या हमारी सोच और हमारा व्यवहार वाकई सही है। यह कभी-कभी मुश्‍किल हो सकता है। पहली सदी में लौदीकिया के मसीही यह मान बैठे थे कि वे परमेश्‍वर को खुश कर रहे हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही थी। परमेश्‍वर उनसे खुश नहीं था। (प्रकाशितवाक्य 3:17) हम भी इस धोखे में रह सकते हैं कि हम परमेश्‍वर को खुश कर रहे हैं, मगर असल में शायद हम उसे दुखी कर रहे हों।

4 शिष्य याकूब ने कहा, “अगर कोई आदमी खुद को परमेश्‍वर की उपासना करनेवाला समझता है मगर अपनी ज़बान पर कसकर लगाम नहीं लगाता, तो वह अपने दिल को धोखा देता है और उसका उपासना करना बेकार है।” (याकूब 1:26) एक मसीही अगर सावधान न रहे, तो वह सोच सकता है कि मैं तो परमेश्‍वर की सेवा कर रहा हूँ, इसलिए अगर मैं दूसरों से कठोरता से बात करूँ, ताने मारूँ या कभी-कभार झूठ बोल दूँ, तो कुछ नहीं होगा, परमेश्‍वर मुझे माफ कर देगा। इस तरह सोचने से एक व्यक्‍ति खुद को ही धोखे में रख रहा होगा। हम कैसे जान सकते हैं कि कहीं हमारे अंदर तो ऐसी सोच नहीं पैदा हो रही?

5 जब हम आइने में खुद को देखते हैं, तो हमें सिर्फ बाहरी रूप नज़र आता है। लेकिन बाइबल पढ़ने से हम जान पाते हैं कि हम अंदर से कैसे इंसान हैं। हम अपने गुण और दोष जान पाते हैं। हम देख पाते हैं कि हमें अपनी सोच, अपने व्यवहार और अपनी बोली में क्या सुधार करना है। (याकूब 1:23-25 पढ़िए।) लेकिन अगर हम इस धोखे में रहें कि हमारे अंदर कोई कमी नहीं है, तो हम कभी सुधार नहीं कर पाएँगे। हमें बाइबल पढ़ते वक्‍त खुद को टटोलना चाहिए। इससे हम जान पाएँगे कि हम बाहर से जो दिखते हैं, क्या अंदर से भी वैसे ही हैं। (विलापगीत 3:40; हाग्गै 1:5) अपनी असलियत जानने का एक और तरीका है, प्रार्थना करना। हमें यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें जाँचे और अपनी कमज़ोरियाँ पहचानने में हमारी मदद करे, ताकि हम अपने अंदर सुधार कर सकें। (भजन 139:23, 24) यह सब करना ज़रूरी है, क्योंकि “यहोवा कपटी लोगों से नफरत करता है, मगर सीधे-सच्चे लोगों से गहरी दोस्ती रखता है।”​—नीतिवचन 3:32.

परिवार के लोगों के साथ सच्चाई से व्यवहार

6. पति-पत्नी को एक-दूसरे से कुछ छिपाना क्यों नहीं चाहिए?

6 परिवार के लोगों को आपस में सच्चाई से व्यवहार करना चाहिए। जो पति-पत्नी एक-दूसरे से कुछ नहीं छिपाते, वे एक-दूसरे पर भरोसा कर पाते हैं। लेकिन कुछ पति-पत्नी किसी पराए व्यक्‍ति के साथ फ्लर्ट करते हैं, अश्‍लील तसवीरें या फिल्में देखते हैं या चोरी-छिपे किसी और से प्यार करने लगते हैं और इस तरह अपने साथी को धोखा देते हैं। भजन के एक लेखक ने कहा, “मैं छल करनेवालों से मेल-जोल नहीं रखता, अपनी असलियत छिपानेवालों से दूर रहता हूँ।” (भजन 26:4) अगर आपके मन में भी अपने साथी को छोड़ किसी और का खयाल आता है, तो आपका शादी का बंधन खतरे में पड़ सकता है।

ऐसी हर चीज़ से मुँह फेर लीजिए, जो आपकी शादी के बंधन को कमज़ोर कर सकती है

7, 8. आप अपने बच्चों को ईमानदारी की अहमियत कैसे सिखा सकते हैं?

7 बच्चों को भी सीखना चाहिए कि ईमानदार होना क्यों ज़रूरी है। माता-पिता उन्हें बाइबल से अच्छी-बुरी मिसालें देकर इस बारे में सिखा सकते हैं। बाइबल में कुछ बेईमान और छल-कपट करनेवालों के बारे में बताया गया है, जैसे आकान, गेहजी और यहूदा। आकान ने चोरी की थी। गेहजी ने पैसे के लालच में झूठ बोला था। यहूदा पैसे चुराता था और उसने 30 चाँदी के सिक्कों के लिए यीशु के साथ विश्‍वासघात किया था।​—यहोशू 6:17-19; 7:11-25; 2 राजा 5:14-16, 20-27; मत्ती 26:14, 15; यूहन्‍ना 12:6.

8 बाइबल में ईमानदार और सच्चे लोगों के बारे में भी बताया गया है, जैसे याकूब, यिप्तह, उसकी बेटी और यीशु। याकूब ने अपने बेटों से दूसरों का पैसा लौटाने को कहा था। यिप्तह और उसकी बेटी ने परमेश्‍वर से जो वादा किया था, उसे निभाया। यीशु ने मुश्‍किल हालात में भी सच बोला। (उत्पत्ति 43:12; न्यायियों 11:30-40; यूहन्‍ना 18:3-11) माता-पिता अपने बच्चों को इन लोगों के बारे में बताकर उन्हें ईमानदारी की अहमियत सिखा सकते हैं।

9. माता-पिता की अच्छी मिसाल का बच्चों पर कैसा असर हो सकता है?

9 माता-पिताओं को खुद भी एक अच्छी मिसाल रखनी चाहिए। बाइबल का एक सिद्धांत है, “तू जो दूसरे को सिखाता है, क्या खुद को नहीं सिखाता? क्या तू जो प्रचार करता है कि ‘चोरी न करना,’ खुद चोरी करता है?” (रोमियों 2:21) अगर माता-पिता कहते कुछ हैं, लेकिन करते कुछ और, तो बच्चे इसे भाँप लेते हैं। अगर हम अपने बच्चों को सिखाएँ कि हमें सच बोलना चाहिए, मगर खुद झूठ बोलें, तो बच्चे समझ नहीं पाएँगे कि उन्हें क्या करना है। जब बच्चे माता-पिता को झूठ बोलते देखते हैं, फिर चाहे वह छोटी-छोटी बातों में ही क्यों न हो, तो शायद वे भी झूठ बोलने लगें। (लूका 16:10 पढ़िए।) लेकिन जब बच्चे माता-पिता को सच बोलते देखते हैं, तो इसका उन पर अच्छा असर होता है। जब वे बड़े होकर माँ-बाप बनेंगे, तो वे भी अपने बच्चों के लिए अच्छी मिसाल रख पाएँगे।​—नीतिवचन 22:6; इफिसियों 6:4.

मसीही भाई-बहनों के साथ सच्चाई से व्यवहार

10. बातचीत के मामले में हमें क्या ध्यान रखना चाहिए?

10 मसीही भाई-बहनों के साथ भी हमें सच्चाई से व्यवहार करना चाहिए। जैसे, बातचीत करते वक्‍त। कई बार शायद हमें पता ही न चले कि हम यूँ ही बात करते-करते कब किसी भाई या बहन के बारे में गलत बातें कहने लगें या फिर उसे बदनाम करने लगें। अगर हम सुनी-सुनायी बातें दूसरों को बता दें और एक पल के लिए भी न सोचें कि वे सच हैं या नहीं, तो हम झूठी बातें फैला रहे होंगे। अच्छा होगा कि हम अपनी “ज़बान पर काबू” रखें। (नीतिवचन 10:19) लेकिन सच बोलने का यह मतलब भी नहीं कि जो भी बात हमारे मन में आती है या जो भी हम जानते हैं या जो भी हमने सुना है, वह सब दूसरों को बता दें। भले ही कोई बात सच हो, लेकिन यह ज़रूरी नहीं कि वह हम दूसरों को बताएँ। हो सकता है कि उस बात का हमसे कोई लेना-देना न हो या वह बात दूसरों को बताना सही न हो या फिर ज़रूरी न हो। (1 थिस्सलुनीकियों 4:11) सच बोलने का यह मतलब भी नहीं कि हम दूसरों की भावनाओं का खयाल किए बिना सीधे-सीधे कोई बात बोल दें, जो उन्हें बुरी लग सकती है। कुछ लोग ऐसी बातें मुँह पर बोलकर सफाई में यह कहते हैं, “मैं दिल में कुछ नहीं रखता, सब साफ-साफ कह देता हूँ।” मगर यहोवा के लोगों को कभी-भी बेरुखी से नहीं, बल्कि हमेशा अदब से और प्यार से बात करनी चाहिए।​—कुलुस्सियों 4:6 पढ़िए।

11, 12. (क) अगर एक व्यक्‍ति पाप करने के बाद उसे छिपाए, तो इससे उसका नुकसान कैसे हो सकता है? (ख) अगर हमारा दोस्त पाप करे, तो हमें क्या नहीं करना चाहिए और क्यों? (ग) हमें यहोवा के संगठन को किन बातों की सही जानकारी देनी चाहिए?

11 मंडली की मदद करने की ज़िम्मेदारी यहोवा ने प्राचीनों को दी है। जो बातें प्राचीनों को जानने का हक है, वह हमें सही-सही उन्हें बतानी चाहिए, तब वे हमारी अच्छी तरह मदद कर पाएँगे। वह कैसे? मान लीजिए आप बीमार हैं और इलाज के लिए डॉक्टर के पास जाते हैं, लेकिन आप अपनी बीमारी के सारे लक्षण डॉक्टर को नहीं बताते, तो क्या वह आपका सही तरह से इलाज कर पाएगा? उसी तरह अगर हमने कोई पाप किया है, तो हमें छिपाना नहीं चाहिए, बल्कि खुद जाकर प्राचीनों को सच-सच बताना चाहिए। (भजन 12:2; प्रेषितों 5:1-11) अब एक और हालात के बारे में सोचिए। आपको पता चलता है कि आपके किसी दोस्त ने कोई पाप किया है। आप क्या करेंगे? (लैव्यव्यवस्था 5:1) क्या आप यह सोचेंगे, “मैं अपने दोस्त की यह बात किसी को कैसे बता सकता हूँ?” या आप यह सोचेंगे, “मुझे प्राचीनों को ज़रूर बताना चाहिए? वे उसकी मदद कर सकते हैं ताकि यहोवा के साथ वह अपना रिश्‍ता सुधारे और उसे मज़बूत करे।”​—इब्रानियों 13:17; याकूब 5:14, 15.

12 हम यहोवा के संगठन को जो जानकारी देते हैं, वह भी सही होनी चाहिए। जैसे, प्रचार की रिपोर्ट में सबकुछ सही-सही लिखना चाहिए। अगर हम पायनियर सेवा के लिए या किसी और सेवा के लिए अर्ज़ी भरते हैं, तो उसमें भी हर बात सच-सच लिखनी चाहिए।​—नीतिवचन 6:16-19 पढ़िए।

13. बिज़नेस और नौकरी के मामले में हमें किस बात का ध्यान रखना चाहिए?

13 हमें बिज़नेस में भी ईमानदार होना चाहिए। सबसे पहले तो हमें ध्यान रखना है कि जो समय उपासना के लिए अलग रखा जाता है, उस दौरान हम बिज़नेस न करें, जैसे राज-घर में या प्रचार करते वक्‍त। बिज़नेस में हमें अपने भाई-बहनों का फायदा नहीं उठाना चाहिए। जैसे अगर हमने किसी भाई या बहन को नौकरी पर रखा है, तो उसे वक्‍त पर तनख्वाह देनी चाहिए। जितनी रकम की बात हुई है, उतनी देनी चाहिए। कानून की माँगों के मुताबिक सुविधाएँ भी देनी चाहिए, जैसे स्वास्थ्य बीमा कराना या छुट्टियाँ देना। (1 तीमुथियुस 5:18; याकूब 5:1-4) अगर हम किसी साक्षी के यहाँ नौकरी कर रहे हैं, तो यह नहीं सोचना चाहिए कि हमें खास रिआयत दी जाए। (इफिसियों 6:5-8) जितना काम करने या जितनी देर तक काम करने की तनख्वाह मिलती है, हमें उतना काम ईमानदारी से करना चाहिए।​—2 थिस्सलुनीकियों 3:10.

14. मसीही भाई-बहनों के साथ कोई बिज़नेस शुरू करने से पहले हमें क्या करना चाहिए?

14 एक मसीही भाई या बहन के साथ बिज़नेस करते वक्‍त हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? जैसे, अगर हमने उसके साथ बिज़नेस में पैसा लगाया है या कर्ज़ लिया है, तो हमें क्या करना चाहिए? ऐसे हर मामले में बाइबल के इस सिद्धांत को मानना फायदेमंद होता है, ‘हर बात को लिखकर रखिए!’ जब भविष्यवक्‍ता यिर्मयाह ने ज़मीन का एक टुकड़ा खरीदा, तो उसने लेन-देन के दो दस्तावेज़ बनाए, एक दस्तावेज़ पर गवाहों से हस्ताक्षर करवाए और दोनों दस्तावेज़ सँभालकर रखे ताकि बाद में ज़रूरत पड़ने पर देख सके। (यिर्मयाह 32:9-12; उत्पत्ति 23:16-20 भी देखिए।) कुछ भाई-बहन सोचते हैं कि मसीही भाई-बहनों से लेन-देन करते वक्‍त हर बात लिखकर रखना ऐसा होगा, मानो हम उन पर भरोसा नहीं कर रहे। लेकिन सच तो यह है कि एग्रीमेंट लिखकर रखने से बाद में गलतफहमियाँ नहीं होतीं, एक-दूसरे को निराश करने की नौबत नहीं आती और न ही झगड़े होते हैं। याद रखिए कि बिज़नेस में लेन-देन से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है, मंडली में शांति बनाए रखना।​—1 कुरिंथियों 6:1-8; “बिज़नेस और कानूनी मसले” देखिए।

बेईमान दुनिया में ईमानदारी

15. बिज़नेस में होनेवाली बेईमानी के बारे में यहोवा को कैसा लगता है?

15 हम चाहे अपने मसीही भाई-बहनों से लेन-देन कर रहे हों या दुनिया के लोगों से, यहोवा चाहता है कि हम हर वक्‍त ईमानदार रहें। “बेईमानी के तराज़ू से यहोवा घिन करता है, लेकिन वह सही बाट-पत्थर से खुश होता है।” (नीतिवचन 11:1; 20:10, 23) बाइबल के ज़माने में व्यापारी तराज़ू का इस्तेमाल करते थे। लेकिन कुछ व्यापारी ग्राहकों को ठगते थे। वे या तो उन्हें कम सामान तौलकर देते थे या फिर ऊँचे दामों में सामान बेचते थे। आज भी बिज़नेस की दुनिया में बेईमानी बहुत आम है। लेकिन यहोवा को आज भी बेईमानी से उतनी ही नफरत है, जितनी उसे पहले थी।

16, 17. हमें और किन मामलों में ईमानदार रहना चाहिए?

16 हम सबके सामने ऐसे हालात पैदा होते हैं, जब ईमानदार रहना हमारे लिए मुश्‍किल हो सकता है। जैसे, नौकरी के लिए अर्ज़ी भरते वक्‍त, सरकारी फॉर्म भरते वक्‍त, स्कूल में परीक्षा देते वक्‍त। कई लोगों का मानना है कि अर्ज़ी या फॉर्म में झूठी बातें लिखना, किसी बात को बढ़ा-चढ़ाकर बताना या घुमा-फिराकर बातें लिखना गलत नहीं है। इस तरह का रवैया देखकर हमें हैरानी नहीं होती। बाइबल में पहले ही बताया गया था कि आखिरी दिनों में लोग ‘खुद से प्यार करनेवाले और पैसे से प्यार करनेवाले’ होंगे, मगर वे “भलाई से प्यार नहीं” करेंगे।​—2 तीमुथियुस 3:1-5.

17 कभी-कभी हमें लग सकता है कि इस दुनिया में बेईमान लोग ही कामयाब होते हैं। (भजन 73:1-8) ईमानदार होने से शायद एक मसीही नौकरी से हाथ धो बैठे, उसका घाटा हो जाए या काम की जगह उसके साथ बुरा सलूक किया जाए। लेकिन चाहे हमें जो भी नुकसान उठाना पड़े, ईमानदार रहने में ही हमारी भलाई है। वह कैसे?

ईमानदारी के फायदे

18. अच्छा नाम कमाने का फायदा क्या है?

18 अगर इस बेईमान दुनिया में लोग हमें ईमानदार और भरोसेमंद इंसान के तौर पर जानते हैं, तो यह एक बड़ी बात है। हम सबकी यही पहचान होनी चाहिए। (मीका 7:2) शायद आपकी ईमानदारी की वजह से कुछ लोग आपका मज़ाक उड़ाएँ या आपको बेवकूफ कहें। पर वहीं कुछ लोग आपकी ईमानदारी की कदर भी करेंगे और आप पर भरोसा करेंगे। दुनिया-भर में यहोवा के साक्षी ईमानदार होने के लिए जाने जाते हैं। जब नौकरी देने की बात आती है, तो कुछ लोग साक्षियों को सबसे पहले मौका देते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि साक्षी ईमानदार होते हैं। ऐसा भी हुआ है कि कुछ मालिकों ने अपने कर्मचारियों की बेईमानी की वजह से उन्हें नौकरी से निकाल दिया, मगर साक्षियों को नहीं निकाला क्योंकि वे ईमानदार थे।

हमारे मेहनती होने से यहोवा की महिमा होती है

19. ईमानदार रहने से यहोवा और हमारे बीच दोस्ती कैसे गहरी होगी?

19 हर बात में ईमानदार होने से हमारा ज़मीर साफ रहता है और हमें मन की शांति मिलती है। हम भी पौलुस की तरह कह सकेंगे, “हमें यकीन है कि हमारा ज़मीर साफ है।” (इब्रानियों 13:18) इससे भी बड़ी बात यह होगी कि हमारा पिता यहोवा हम पर गौर करेगा और उसे गर्व होगा कि हम हर बात में ईमानदार रहने की कोशिश करते हैं।​—भजन 15:1, 2; नीतिवचन 22:1 पढ़िए।