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 1 सिद्धांत

परमेश्‍वर ने बाइबल में जो सच्चाइयाँ लिखवायीं हैं, वे ही उसके सिद्धांत हैं। उसके नियम इन्हीं सिद्धांतों पर आधारित हैं। इन सिद्धांतों के बारे में जानने से हम समझ पाएँगे कि किसी भी मामले में यहोवा की सोच क्या है, उसकी पसंद-नापसंद क्या है। इससे हम सही फैसले कर पाते हैं। खासकर जिन मामलों में यहोवा ने कोई नियम नहीं दिया है, उनमें सिद्धांतों की मदद से हम जान पाते हैं कि हमें क्या करना है और क्या नहीं।

अध्याय 1, पैराग्राफ 8

 2 आज्ञा मानना

यहोवा की आज्ञा मानने का मतलब है कि वह हमसे जो भी कहता है, उसे दिल से मानना। वह चाहता है कि हमारे दिल में उसके लिए प्यार हो और इसी वजह से हम उसकी बात मानें। (1 यूहन्‍ना 5:3) अगर हम परमेश्‍वर से प्यार करते हैं और उस पर भरोसा करते हैं, तो हम हर मामले में उसकी बात मानेंगे। हम उस वक्‍त भी उसकी बात मानेंगे, जब हमारे लिए ऐसा करना मुश्‍किल हो। यहोवा की आज्ञा मानने में ही हमारी भलाई है। वह हमें बताता है कि आज हम एक अच्छी ज़िंदगी कैसे जी सकते हैं और उसने वादा किया है कि वह भविष्य में हमें बहुत-सी आशीषें देगा।​—यशायाह 48:17.

अध्याय 1, पैराग्राफ 10

 3 अपनी मरज़ी करने की आज़ादी

यहोवा ने हमें अपनी मरज़ी करने की आज़ादी दी है यानी हमें यह फैसला करने की काबिलीयत दी है कि हम किसी मामले में क्या करेंगे और क्या नहीं। उसने हमें रोबोट की तरह नहीं बनाया। (व्यवस्थाविवरण 30:19; यहोशू 24:15) अगर हम अपनी आज़ादी का सही तरह से इस्तेमाल न करें, तो हम गलत फैसले कर बैठेंगे। इस आज़ादी का मतलब यह भी है कि हम खुद यह फैसला कर सकते हैं कि हम यहोवा के वफादार रहेंगे या नहीं। अगर हम उसके वफादार रहें, तो हम साबित करेंगे कि हम वाकई उससे प्यार करते हैं।

अध्याय 1, पैराग्राफ 12

 4 नैतिक स्तर

यहोवा हमारे लिए नैतिक स्तर तय करता है यानी वह हमें बताता है कि हमारा चालचलन और व्यवहार कैसा होना चाहिए। बाइबल से हम जान सकते हैं कि ये स्तर कौन-से हैं और उन पर चलने से हम अच्छी ज़िंदगी कैसे जी पाएँगे। (नीतिवचन 6:16-19; 1 कुरिंथियों 6:9-11) इन स्तरों को समझने से हम जान पाते हैं कि यहोवा की नज़र में क्या सही है और क्या गलत। हम यह भी जान पाते हैं कि सबके साथ प्यार से कैसे रहें, सही फैसले कैसे करें और लोगों की मदद कैसे करें। हालाँकि दुनिया के लोगों के स्तर गिरते जा रहे हैं, लेकिन यहोवा के स्तर कभी नहीं बदलते। (व्यवस्थाविवरण 32:4-6; मलाकी 3:6) इन स्तरों पर चलने से हम कई तरह की शारीरिक तकलीफों से और चिंता और तनाव से भी बचते हैं।

अध्याय 1, पैराग्राफ 17

 5 ज़मीर

ज़मीर हमारे अंदर की आवाज़ है, जो हमें बताती है कि सही क्या है और गलत क्या। यहोवा ने हर इंसान को ज़मीर दिया है। (रोमियों 2:14, 15) अगर हम चाहते हैं कि हमारा ज़मीर सही तरह से काम करे, तो हमें इसे यहोवा के नैतिक स्तरों के मुताबिक प्रशिक्षित करना होगा। तब यह हमें ऐसे फैसले करने के लिए उभारेगा, जिनसे परमेश्‍वर खुश हो। (1 पतरस 3:16) अगर हम कोई गलती करने जा रहे हों, तो यह हमें सावधान करेगा या हमसे कोई गलती हो जाए, तो यह हमें बार-बार एहसास दिलाएगा कि हमने बहुत बुरा किया। हो सकता है कि कभी हमारा ज़मीर ठीक से काम न करे, लेकिन हम यहोवा की मदद से इसे दोबारा प्रशिक्षित कर सकते हैं। अच्छा ज़मीर होने से हमें मन की शांति मिलती है और हम अपना आत्म-सम्मान नहीं खोते।

अध्याय 2, पैराग्राफ 3

 6 परमेश्‍वर का डर

परमेश्‍वर का डर मानने का मतलब है उससे प्यार करना, उसका आदर करना और ऐसा कोई काम न करना, जिससे वह नाराज़ हो। परमेश्‍वर का डर मानने की वजह से हम भले काम करते हैं और हर बुरी बात से दूर रहते हैं। (भजन 111:10) हम परमेश्‍वर की कोई बात हलके में नहीं लेते। हम उसका बहुत आदर करते हैं, इसलिए हमने उससे जो भी वादा किया है, उसे निभाते हैं। हमारी यही कोशिश रहती है कि हमारी सोच परमेश्‍वर के जैसी हो, दूसरों के साथ हमारा व्यवहार अच्छा हो और हमारे फैसले ऐसे हों, जो उसे भाएँ।

अध्याय 2, पैराग्राफ 9

 7 पश्‍चाताप

पश्‍चाताप करने का मतलब है, कोई गलत काम करने पर गहरा दुख महसूस करना। हम यहोवा से बहुत प्यार करते हैं, इसलिए जब हम ऐसा कोई काम कर बैठते हैं, जिसे यहोवा ने मना किया है, तो हमें बहुत दुख होता है। ऐसे में हमें यहोवा से बिनती करनी चाहिए कि वह यीशु के फिरौती बलिदान के आधार पर हमें माफ कर दे। (मत्ती 26:28; 1 यूहन्‍ना 2:1, 2) हमें सच्चे मन से पश्‍चाताप करना चाहिए और वह गलती नहीं दोहरानी चाहिए। फिर हम यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमें माफ करेगा। इसके बाद हमें अपनी गलती के बारे में सोच-सोचकर परेशान नहीं होना है। (भजन 103:10-14; 1 यूहन्‍ना 1:9; 3:19-22) हमें अपनी गलतियों से सबक सीखना चाहिए। अगर किसी मामले में हमारी सोच गलत है, तो उसे सुधारने और यहोवा के स्तरों के मुताबिक जीने की हमें पूरी कोशिश करनी चाहिए।

अध्याय 2, पैराग्राफ 18

 8 बहिष्कार का इंतज़ाम

अगर एक मसीही बहुत बड़ा पाप करता है और पश्‍चाताप नहीं करता, तो वह मंडली का सदस्य नहीं रह सकता। उसका बहिष्कार करना ज़रूरी हो जाता है, क्योंकि वह यहोवा के स्तरों पर चलने से इनकार कर देता है। उस व्यक्‍ति से हम कोई नाता नहीं रखते, यहाँ तक कि उससे बात भी नहीं करते। (1 कुरिंथियों 5:11; 2 यूहन्‍ना 9-11) बहिष्कार करने के इंतज़ाम की वजह से यहोवा और मंडली का नाम बदनाम नहीं होता। (1 कुरिंथियों 5:6) इस इंतज़ाम से बहिष्कृत व्यक्‍ति का भी भला होता है, क्योंकि जब उसके साथ ऐसी सख्त कार्रवाई की जाती है, तो उसे एहसास हो सकता है कि उसे यहोवा के पास लौट आने के लिए पश्‍चाताप करना होगा।​—लूका 15:17.

अध्याय 3, पैराग्राफ 19

 9 मार्गदर्शन, निर्देश और सलाह

यहोवा हमसे प्यार करता है और हमारी मदद करना चाहता है। यही वजह है कि वह बाइबल और अपने सेवकों के ज़रिए हमारा मार्गदर्शन करता है, हमें निर्देश और सलाह देता है। अपरिपूर्ण होने की वजह से हमें कदम-कदम पर यहोवा की सलाह की ज़रूरत है। (यिर्मयाह 17:9) जिन लोगों के ज़रिए यहोवा हमारा मार्गदर्शन करता है, हमें उनकी बात दिल से माननी चाहिए। ऐसा करके हम यहोवा का आदर कर रहे होते हैं और उसकी आज्ञा मान रहे होते हैं।​—इब्रानियों 13:7.

अध्याय 4, पैराग्राफ 2

 10 घमंड और नम्रता

अपरिपूर्ण होने की वजह से हमारे अंदर स्वार्थ और घमंड बड़ी आसानी से पैदा हो सकता है, लेकिन यहोवा चाहता है कि हम नम्र हों। यहोवा कितना महान है और हम कितने छोटे हैं, यह बात समझने से हम नम्र होना सीखते हैं। (अय्यूब 38:1-4) जब हम खुद से ज़्यादा दूसरों के बारे में सोचते हैं और उनका भला करते हैं, तब भी हम नम्र होना सीखते हैं। एक घमंडी इंसान खुद को दूसरों से अच्छा समझता है। लेकिन एक नम्र इंसान खुद को उतना ही समझता है, जितना वह है। वह न सिर्फ अपनी अच्छाइयाँ बल्कि अपनी कमियाँ भी जानता है। गलती करने पर वह तुरंत मान लेता है और माफी माँगता है। जब उसे कोई सलाह या सुझाव दिया जाता है, तो वह उसे मान लेता है। एक नम्र इंसान यहोवा पर निर्भर रहता है और उसके मार्गदर्शन पर चलता है।​—1 पतरस 5:5.

अध्याय 4, पैराग्राफ 4

 11 अधिकार

अधिकार रखने का मतलब है, दूसरों को आदेश देने और फैसले करने का हक होना। स्वर्ग और धरती में सबसे ज़्यादा अधिकार यहोवा के पास है। उसने सबकुछ बनाया है, इसलिए वह पूरे जहान में सबसे बड़ा अधिकारी है। वह अपने अधिकार का इस्तेमाल हमेशा दूसरों की भलाई के लिए करता है। यहोवा ने कुछ इंसानों को हमारी देखभाल करने की ज़िम्मेदारी दी है, जैसे, माता-पिताओं, मंडली के प्राचीनों और सरकारी अधिकारियों को। उन्हें यहोवा ने कुछ अधिकार दिया है, इसलिए वह चाहता है कि हम उनकी बात मानें। (रोमियों 13:1-5; 1 तीमुथियुस 5:17) लेकिन कभी-कभी इंसान ऐसे कानून बना देते हैं, जो परमेश्‍वर के नियमों के हिसाब से नहीं होते। ऐसे में हमें उनके बजाय परमेश्‍वर की आज्ञा माननी चाहिए। (प्रेषितों 5:29) यहोवा ने जिन लोगों को अधिकार दिया है, उनकी बात मानने से हम यहोवा के फैसलों की इज़्ज़त कर रहे होते हैं।

अध्याय 4, पैराग्राफ 7

 12 प्राचीन

यहोवा ने मंडली की देखभाल करने के लिए प्राचीनों को ठहराया है। (व्यवस्थाविवरण 1:13; प्रेषितों 20:28) ये अनुभवी भाई कई तरह से हमारी मदद करते हैं, जिस वजह से हम यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत रख पाते हैं और उसकी उपासना बिना किसी रुकावट के और व्यवस्थित तरीके से कर पाते हैं। (1 कुरिंथियों 14:33, 40) प्राचीनों को पवित्र शक्‍ति के ज़रिए इस पद पर ठहराया जाता है, मगर इसके लिए उन्हें पहले बाइबल में बतायी कुछ योग्यताओं को पूरा करना होता है। (1 तीमुथियुस 3:1-7; तीतुस 1:5-9; 1 पतरस 5:2, 3) हम प्राचीनों की बात खुशी-खुशी मानते हैं, क्योंकि हमें यहोवा के संगठन पर भरोसा है और हम संगठन के निर्देशों को मानना चाहते हैं।​—भजन 138:6; इब्रानियों 13:17.

अध्याय 4, पैराग्राफ 8

 13 परिवार का मुखिया

यहोवा ने बच्चों और घर-बार की ज़िम्मेदारी माता-पिताओं को दी है। बाइबल के मुताबिक परिवार का मुखिया पति है। अगर एक परिवार में पिता नहीं है, तो उसमें मुखिया माँ होती है। परिवार के मुखिया का फर्ज़ बनता है कि वह अपने परिवार के लिए खाने, कपड़े और मकान का इंतज़ाम करे। इससे भी बड़ी उसकी ज़िम्मेदारी बनती है कि वह यहोवा की उपासना करने में अपने परिवार की मदद करे। उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पूरा परिवार नियमित तौर पर मंडली की सभाओं में जाए, प्रचार करे और साथ मिलकर बाइबल का अध्ययन करे। परिवार के लिए फैसले करने की ज़िम्मेदारी भी खास तौर से उसी की है। उसे यीशु के जैसे गुण दर्शाने चाहिए। उसे अपने घर के लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए, उनसे हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करनी चाहिए और कभी-भी कठोरता से व्यवहार नहीं करना चाहिए। तब घर में सबके बीच प्यार और अपनापन होगा और यहोवा के साथ उनका रिश्‍ता भी मज़बूत होगा।

अध्याय 4, पैराग्राफ 12

 14 शासी निकाय

अभिषिक्‍त भाइयों के एक छोटे समूह के ज़रिए परमेश्‍वर अपने लोगों का मार्गदर्शन करता है। इसी समूह को शासी निकाय कहते हैं। पहली सदी में भी यहोवा ने कुछ अभिषिक्‍त भाइयों के ज़रिए मसीही मंडली का मार्गदर्शन किया था। वे प्रचार काम और उपासना के मामले में मंडलियों को निर्देश देते थे। (प्रेषितों 15:2) आज भी शासी निकाय के भाई परमेश्‍वर के लोगों का मार्गदर्शन करते हैं, उन्हें हिदायतें देते हैं और उनकी हिफाज़त करते हैं। फैसले लेते वक्‍त वे परमेश्‍वर के वचन से सलाह लेते हैं और पवित्र शक्‍ति के लिए बिनती करते हैं। यीशु ने अभिषिक्‍त मसीहियों के इस समूह को “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” कहा।​—मत्ती 24:45-47.

अध्याय 4, पैराग्राफ 15

 15 सिर ढकना

कभी-कभी ऐसे हालात उठ सकते हैं, जब एक बहन को मंडली का कोई ऐसा काम करने के लिए कहा जाए, जिसे करना भाइयों की ज़िम्मेदारी है। ऐसा काम करते वक्‍त एक बहन को अपना सिर ढकना चाहिए। यह इस बात की निशानी है कि वह इस मामले में यहोवा के इंतज़ाम को मानती है। सिर ढकना कुछ ही हालात में ज़रूरी होता है। उदाहरण के लिए, जब एक बहन कोई बाइबल अध्ययन चला रही है और उसके साथ उसका पति या बपतिस्मा पाया हुआ कोई भाई है, तो उसे अपना सिर ढकना चाहिए।​—1 कुरिंथियों 11:11-15.

अध्याय 4, पैराग्राफ 17

 16 निष्पक्षता

निष्पक्षता का मतलब है, राजनैतिक मामलों में किसी का पक्ष न लेना। (यूहन्‍ना 17:16) यहोवा के लोग सिर्फ उसके राज का समर्थन करते हैं। यीशु की तरह वे भी दुनिया के मामलों में निष्पक्ष रहते हैं।

यहोवा ने आज्ञा दी है कि हम “सरकारों और अधिकारियों के अधीन रहें।” (तीतुस 3:1, 2; रोमियों 13:1-7) लेकिन जब सरकारें युद्ध में भाग लेने का हुक्म देती हैं, तो एक मसीही का ज़मीर उसे ऐसा करने से मना करता है, क्योंकि परमेश्‍वर ने यह आज्ञा भी दी है कि किसी का खून न करना। अगर सरकार फौज में भरती होने के बजाय किसी तरह की जन-सेवा करने के लिए कहती है, तो ऐसे में एक मसीही को अपने ज़मीर की सुनकर फैसला करना है कि वह ऐसी सेवा करेगा या नहीं।

हम सिर्फ यहोवा की उपासना करते हैं, क्योंकि वह हमारा सृष्टिकर्ता है। हम राष्ट्रीय चिन्हों का आदर करते हैं, लेकिन हम झंडे को सलामी नहीं देते, न ही राष्ट्रीय गीत गाते हैं। (यशायाह 43:11; दानियेल 3:1-30; 1 कुरिंथियों 10:14) हममें से हर किसी ने निजी तौर पर यह फैसला किया है कि हम किसी राजनैतिक पार्टी या उम्मीदवार को वोट नहीं देंगे। इसकी वजह यह है कि हमने परमेश्‍वर की सरकार का पक्ष लिया है।​—मत्ती 22:21; यूहन्‍ना 15:19; 18:36.

अध्याय 5, पैराग्राफ 2

 17 दुनिया की फितरत

यह दुनिया शैतान की सोच को बढ़ावा देती है। यह सोच खासकर उन लोगों में होती है, जो यहोवा से प्यार नहीं करते और उसके स्तरों पर नहीं चलते। (1 यूहन्‍ना 5:19) इस तरह के रवैए को बाइबल में दुनिया की फितरत कहा गया है। (इफिसियों 2:2) यहोवा के लोग इस बात का ध्यान रखते हैं कि यह फितरत उनमें न आ जाए। (इफिसियों 6:10-18) वे पूरी कोशिश करते हैं कि उनकी सोच यहोवा के जैसी हो, क्योंकि वे यहोवा से प्यार करते हैं।

अध्याय 5, पैराग्राफ 7

 18 परमेश्‍वर से बगावत करनेवाले

ये वे लोग हैं जो बाइबल की सच्चाई के खिलाफ काम करते हैं, यहोवा और उसके ठहराए राजा, यीशु मसीह के खिलाफ बगावत करते हैं और दूसरों को अपने साथ मिलाने की कोशिश करते हैं। इन्हें धर्मत्यागी भी कहा जाता है। (रोमियों 1:25) ये लोग यहोवा के उपासकों के मन में शक पैदा करने की कोशिश करते हैं। पुराने ज़माने में कुछ लोग ऐसे थे और आज भी ऐसे लोग हैं। (2 थिस्सलुनीकियों 2:3) हम इन बगावती लोगों से कोई नाता नहीं रखते, क्योंकि हम परमेश्‍वर के वफादार हैं। हम उनके बारे में जानने की कोई जिज्ञासा नहीं रखते। हम न तो उनके बारे में पढ़ते हैं, न ही सुनते हैं, फिर चाहे कोई हम पर ऐसा करने के लिए कितना ही ज़ोर क्यों न डाले। हम यहोवा की राह पर चलना कभी नहीं छोड़ते और सिर्फ उसकी उपासना करते हैं।

अध्याय 5, पैराग्राफ 9

 19 प्रायश्‍चित

जब इसराएल राष्ट्र पर मूसा का कानून लागू था, तो यहोवा ने उन्हें पापों की माफी पाने के लिए कुछ करने को कहा था। एक तो उन्हें यहोवा से बिनती करनी थी कि वह उन्हें माफ कर दे। दूसरा, उन्हें प्रायश्‍चित के लिए मंदिर में अनाज, तेल या जानवर चढ़ाना था। उन्हें यह सब करने के लिए कहकर यहोवा उन्हें बताना चाह रहा था कि वह उन्हें माफ करना चाहता है, फिर चाहे एक इंसान पाप करे या पूरा राष्ट्र। आगे चलकर यीशु ने अपना जीवन बलिदान किया ताकि इंसानों के पापों का प्रायश्‍चित हो। इसके बाद से दूसरे बलिदानों की ज़रूरत नहीं पड़ी। यीशु का बलिदान हर मायने में परिपूर्ण था और यह बलिदान उसने “एक ही बार हमेशा के लिए” दे दिया।​—इब्रानियों 10:1, 4, 10.

अध्याय 7, पैराग्राफ 6

 20 जानवरों की जान की कदर

मूसा के कानून में इसराएलियों को जानवरों का बलिदान चढ़ाने की आज्ञा दी गयी थी और वे उनका गोश्‍त भी खा सकते थे। (लैव्यव्यवस्था 1:5, 6) लेकिन यहोवा ने उन्हें जानवरों के साथ क्रूरता करने की इजाज़त कभी नहीं दी। (नीतिवचन 12:10) मूसा के कानून में ऐसे नियम भी थे, जिनकी वजह से कोई भी किसी जानवर के साथ बेरहमी नहीं कर सकता था। इसराएलियों को अपने जानवरों की अच्छी देखभाल करने की आज्ञा दी गयी थी।​—व्यवस्थाविवरण 22:6, 7.

अध्याय 7, पैराग्राफ 6

 21 खून के अंश और इलाज की प्रक्रियाएँ

खून के छोटे अंश। खून के चार बड़े अंश होते हैं। वे हैं, लाल कोशिकाएँ, श्‍वेत कोशिकाएँ, प्लेटलेट्‌स और प्लाज़्मा। इन चार बड़े अंशों से खून के छोटे-छोटे अंश निकाले जाते हैं। *

मसीही अपने शरीर में न तो खून चढ़वाते हैं, न ही उसके चार बड़े अंशों में से कोई अंश लेते हैं। मगर क्या वे खून के छोटे अंश ले सकते हैं? बाइबल में इस बारे में साफ तौर पर नहीं बताया गया है, इसलिए हर मसीही को बाइबल से प्रशिक्षित ज़मीर के हिसाब से खुद फैसला करना है।

कुछ मसीहियों ने फैसला किया है कि वे खून का कोई भी छोटा अंश नहीं लेंगे। वे इसकी यह वजह बताते हैं कि परमेश्‍वर ने इसराएलियों को नियम दिया था कि जानवरों को हलाल करने के बाद उनका खून “ज़मीन पर उँडेल” दिया जाए।​—व्यवस्थाविवरण 12:22-24.

मगर कुछ मसीहियों ने फैसला किया है कि ज़रूरत पड़ने पर वे खून के कुछ छोटे अंश लेंगे। उनका ज़मीर इसे गलत नहीं मानता, क्योंकि उनके हिसाब से ये अंश इतने छोटे होते हैं कि अब ये उस प्राणी के जीवन को नहीं दर्शाते, जिसके खून से ये निकाले गए हैं।

खून के छोटे अंश लेने या न लेने का फैसला करने से पहले आगे दिए सवालों पर गहराई से सोचिए:

  • खून के छोटे अंशों से ऐसी दवाइयाँ भी बनती हैं, जिनसे बीमारियों से लड़ने की ताकत मिलती है और खून का रिसाव बंद होता है। क्या मैं इस बात को समझता हूँ कि अगर मैं खून का कोई भी अंश न लेने का फैसला करता हूँ, तो मैं ऐसी कोई दवा भी नहीं ले सकता?

  • चाहे मैंने खून का एक या एक-से-ज़्यादा अंश लेने का फैसला किया हो या फिर न लेने का फैसला किया हो, क्या मैं डॉक्टर को इस फैसले की वजह बता सकता हूँ?

इलाज की प्रक्रियाएँ। यह बात तो साफ है कि मसीही न तो रक्‍तदान करते हैं, न ही अपने ऑपरेशन के लिए पहले से अपना खून जमा करवाते हैं। लेकिन इलाज के कुछ ऐसे तरीके हैं, जिनमें मरीज़ के अपने खून का इस्तेमाल किया जाता है। हर मसीही को यह फैसला करना है कि अगर इलाज की किसी प्रक्रिया, जाँच या ऑपरेशन के दौरान उसका अपना खून इस्तेमाल किया जाएगा, तो वह उस तरीके से इलाज करवाएगा या नहीं। इनमें से कुछ तरीकों में मरीज़ का खून कुछ वक्‍त के लिए उसके शरीर से बाहर निकाला जाता है।​—ज़्यादा जानकारी के लिए 15 अक्टूबर, 2000 की प्रहरीदुर्ग के पेज 30-31 पढ़िए।

उदाहरण के लिए, इलाज की एक प्रक्रिया है, हिमो-डाइल्युशन। इसमें ऑपरेशन से कुछ ही समय पहले मरीज़ के शरीर से थोड़ा खून बाहर निकाला जाता है और जो खून बाहर निकाला गया है, उसकी जगह एक द्रव्य शरीर में डाला जाता है। फिर ऑपरेशन के दौरान या उसके तुरंत बाद मरीज़ के शरीर से निकाला गया खून वापस उसके शरीर में पहुँचाया जाता है।

एक और प्रक्रिया है, सैल-साल्वेज। इसमें ऑपरेशन के दौरान बहनेवाला खून एक मशीन के ज़रिए इकट्ठा किया जाता है, उसे शुद्ध किया जाता है और फिर ऑपरेशन के दौरान या उसके तुरंत बाद मरीज़ के शरीर में लौटा दिया जाता है।

इन प्रक्रियाओं से इलाज करने के लिए अलग-अलग डॉक्टर जो तरीका अपनाते हैं, उसमें थोड़ा-बहुत फर्क हो सकता है। इस वजह से इलाज की कोई प्रक्रिया चुनने या कोई जाँच या ऑपरेशन करवाने से पहले एक मसीही को अच्छी तरह पता करना चाहिए कि उसका इलाज कैसे किया जाएगा।

अगर आपको फैसला करना है कि क्या आप ऐसी प्रक्रिया से इलाज करवाएँगे, जिसमें आपका खून इस्तेमाल किया जाएगा, तो नीचे दिए सवालों पर गौर कीजिए:

  • इलाज के कुछ ऐसे तरीके हैं, जिनमें एक ट्‌यूब के ज़रिए थोड़ा-सा खून शरीर से बाहर निकाला जाता है और कुछ मामलों में तो थोड़ी देर के लिए उसका बहाव रोक भी दिया जाता है। क्या मेरा ज़मीर ऐसे इलाज को मंज़ूर करेगा? क्या मेरा ज़मीर मानेगा कि वह खून अब भी मेरे शरीर का हिस्सा है और उसे ‘ज़मीन पर उँडेलने’ की ज़रूरत नहीं है?​—व्यवस्थाविवरण 12:23, 24.

  • अगर इलाज के दौरान मेरे शरीर से थोड़ा खून निकाला जाए और उसमें कोई फेरबदल करके दोबारा मेरे शरीर में पहुँचाया जाए, तो क्या मेरा ज़मीर मुझे कचोटेगा?

  • अगर मैंने ऐसा कोई भी इलाज नहीं करवाने का फैसला किया है, जिसमें मेरे खून का इस्तेमाल किया जाएगा, तो क्या मैं यह बात समझता हूँ कि मैं खून की जाँच (ब्लड टेस्ट) और हिमो-डाइलेसिस भी नहीं करवा सकता और न ही हार्ट-लंग बाइपास मशीन से इलाज करवा सकता हूँ?

खून के अंशों के बारे में और जिन प्रक्रियाओं में मरीज़ का अपना खून इस्तेमाल किया जाता है, उनके मामले में फैसला करने से पहले हमें यहोवा से मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करनी चाहिए और फिर खोजबीन करनी चाहिए। (याकूब 1:5, 6) इसके बाद बाइबल से प्रशिक्षित ज़मीर के मुताबिक हमें खुद फैसला करना चाहिए कि हम क्या करेंगे। हमें न तो दूसरों से यह पूछना चाहिए कि अगर वे हमारी जगह होते, तो क्या करते और न ही इलाज के मामले में दूसरों पर अपनी राय थोपनी चाहिए।​—रोमियों 14:12; गलातियों 6:5.

अध्याय 7, पैराग्राफ 11

 22 नैतिक शुद्धता

नैतिक शुद्धता का मतलब है कि हमारा चालचलन परमेश्‍वर की नज़र में शुद्ध हो। हमारा व्यवहार, हमारी बोली और सोच वैसी होनी चाहिए, जैसे यहोवा चाहता है। यहोवा ने हमें आज्ञा दी है कि हम हर तरह की लैंगिक अशुद्धता या अनैतिकता से दूर रहें। (नीतिवचन 1:10; 3:1) हमें यह पक्का निश्‍चय कर लेना चाहिए कि अगर कभी किसी हालात में हमारा मन हमें बुरे काम करने के लिए लुभाए, तो हम हर हाल में यहोवा के नैतिक स्तरों को मानेंगे। हमें अपने मन को शुद्ध रखने के लिए यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए और ठान लेना चाहिए कि हम अपने मन के बहकावे में कभी नहीं आएँगे।​—1 कुरिंथियों 6:9, 10, 18; इफिसियों 5:5.

अध्याय 8, पैराग्राफ 11

 23 निर्लज्ज काम और अशुद्धता

निर्लज्ज काम या निर्लज्ज व्यवहार का मतलब है, बेशर्मी से ऐसे काम करना या ऐसी बातें कहना, जिनसे परमेश्‍वर के नियमों का घोर उल्लंघन हो। ऐसे काम करनेवाला इंसान परमेश्‍वर के स्तरों को तुच्छ समझता है। अगर कोई इंसान निर्लज्ज काम करता है, तो उसका मामला न्याय-समिति निपटाएगी। अशुद्धता में कई तरह के गलत काम शामिल हैं। अशुद्धता के कुछ गंभीर मामलों को निपटाने के लिए न्याय-समिति की ज़रूरत पड़ सकती है।​—गलातियों 5:19-21; इफिसियों 4:19; ज़्यादा जानकारी के लिए 1 अक्टूबर, 2009 की प्रहरीदुर्ग में दिया लेख “पाठकों के प्रश्‍न” पढ़िए।

अध्याय 9, पैराग्राफ 7; अध्याय 12, पैराग्राफ 10

 24 हस्तमैथुन

यहोवा ने इंसानों में लैंगिक इच्छाएँ इसलिए डाली थीं, ताकि इस संबंध के ज़रिए पति-पत्नी एक-दूसरे को अपना प्यार जता सकें। उनके बीच होनेवाला संबंध ही परमेश्‍वर की नज़र में शुद्ध है। लेकिन अपनी लैंगिक इच्छाएँ पूरी करने के लिए हस्तमैथुन करना अशुद्ध होगा, क्योंकि ऐसा करनेवाला व्यक्‍ति अपने लैंगिक अंगों का गलत इस्तेमाल करता है। इस गंदी आदत की वजह से, एक व्यक्‍ति का यहोवा के साथ जो रिश्‍ता है, वह बिगड़ सकता है। हस्तमैथुन की वजह से उसमें गंदी इच्छाएँ उठ सकती हैं और लैंगिक संबंधों के बारे में उसका नज़रिया बिगड़ सकता है। (कुलुस्सियों 3:5) अगर एक व्यक्‍ति में यह गंदी आदत है और वह उसे छोड़ नहीं पा रहा, तो उसे हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। (भजन 86:5; 1 यूहन्‍ना 3:20) उसे मदद के लिए यहोवा से दिल से प्रार्थना करनी चाहिए। उसे अश्‍लील तसवीरें या वीडियो नहीं देखने चाहिए ताकि उसके मन में गंदे खयाल न आएँ। अगर उसके माता-पिता मसीही हैं, तो वह इस बारे में उनसे बात कर सकता है या किसी ऐसे दोस्त से बात कर सकता है, जो यहोवा के नियमों को मानता है और प्रौढ़ है। (नीतिवचन 1:8, 9; 1 थिस्सलुनीकियों 5:14; तीतुस 2:3-5) एक व्यक्‍ति अपना चालचलन शुद्ध रखने के लिए जो भी कोशिश करता है, यहोवा उसकी बहुत कदर करता है।​—भजन 51:17; यशायाह 1:18.

अध्याय 9, पैराग्राफ 9

 25 एक-से-ज़्यादा शादी

यहोवा ने शुरू से चाहा था कि एक आदमी की सिर्फ एक पत्नी हो और एक औरत का भी एक ही पति हो। पुराने ज़माने में जब परमेश्‍वर के सेवक एक-से-ज़्यादा पत्नियाँ रखने लगे, तो परमेश्‍वर ने उन्हें रोका नहीं। लेकिन यह परमेश्‍वर की मरज़ी के मुताबिक नहीं था। आज यहोवा ने अपने लोगों को एक-से-ज़्यादा पति या पत्नी रखने की इजाज़त नहीं दी है। एक आदमी की सिर्फ एक ही पत्नी हो सकती है और एक औरत का सिर्फ एक ही पति हो सकता है।​—मत्ती 19:9; 1 तीमुथियुस 3:2.

अध्याय 10, पैराग्राफ 12

 26 तलाक देना या अलग होना

यहोवा ने शुरू से यही चाहा है कि पति-पत्नी का बंधन उम्र-भर के लिए हो। (उत्पत्ति 2:24; मलाकी 2:15, 16; मत्ती 19:3-6; 1 कुरिंथियों 7:39) उसने इस बंधन को तोड़ने यानी तलाक देने की इजाज़त सिर्फ एक ही सूरत में दी है। वह यह कि अगर दोनों में से एक साथी ने व्यभिचार किया है, तो दूसरा साथी चाहे तो तलाक दे सकता है।​—मत्ती 19:9.

कुछ मसीहियों ने तलाक तो नहीं लिया है, लेकिन वे अपने साथी से अलग हुए हैं, जबकि दोनों में से किसी ने भी नाजायज़ संबंध नहीं रखे हैं। (1 कुरिंथियों 7:11) नीचे बताए कारणों से एक मसीही चाहे तो अलग होने की सोच सकता है।

  • जब साथी परिवार की ज़िम्मेदारी न निभाए: एक पति जानबूझकर अपने परिवार की ज़रूरतें पूरी नहीं करता, जिस वजह से बीवी-बच्चे खाने तक को मोहताज हो जाते हैं।​—1 तीमुथियुस 5:8.

  • जब साथी बहुत मारे-पीटे: कोई अपने साथी को इतना मारता-पीटता है कि उसकी सेहत खराब हो जाती है या उसकी जान खतरे में पड़ जाती है।​—गलातियों 5:19-21.

  • जब साथी की वजह से यहोवा के साथ रिश्‍ता कायम रखना ही मुश्‍किल हो जाए: साथी इतनी मुश्‍किलें खड़ी करता है कि एक मसीही यहोवा की सेवा नहीं कर पाता।​—प्रेषितों 5:29.

अध्याय 11, पैराग्राफ 19

 27 तारीफ करना और हिम्मत बँधाना

तारीफ और हौसला-अफज़ाई पाना हम सबकी एक ज़रूरत है। (नीतिवचन 12:25; 16:24) हम प्यार से बात करके एक-दूसरे की हिम्मत बँधा सकते हैं और एक-दूसरे को दिलासा दे सकते हैं। इससे भाई-बहनों को मुश्‍किलों के दौरान धीरज धरने की हिम्मत मिलती है और यहोवा की सेवा करने के लिए उनमें जोश भर जाता है। (नीतिवचन 12:18; फिलिप्पियों 2:1-4) अगर कोई निराश हो, तो हमें ध्यान से उसकी बातें सुननी चाहिए और समझने की कोशिश करनी चाहिए कि उस पर क्या बीत रही है। फिर हम जान पाएँगे कि हम उसकी मदद करने के लिए क्या कर सकते हैं या उससे क्या कह सकते हैं। (याकूब 1:19) अपने मसीही भाई-बहनों को अच्छी तरह जानने की कोशिश कीजिए ताकि आप समझ पाएँ कि उनकी ज़रूरत क्या है। तब आप उनका ध्यान यहोवा की ओर ला सकते हैं, जो हर तरह का दिलासा और हौसला देनेवाला परमेश्‍वर है। वह उनके मन को सुकून दे सकता है।​—2 कुरिंथियों 1:3, 4; 1 थिस्सलुनीकियों 5:11.

अध्याय 12, पैराग्राफ 16

 28 शादी की रस्में

शादी किस तरह होनी चाहिए, इस बारे में बाइबल में कोई नियम नहीं दिया गया है। शादी को लेकर हर जगह के अपने ही रीति-रिवाज़ और कानून होते हैं। (उत्पत्ति 24:67; मत्ती 1:24; 25:10; लूका 14:8) मसीहियों की शादियों की सबसे अहम बात है, शादी की शपथ जो दूल्हा-दुल्हन यहोवा के सामने लेते हैं। बहुत-से लोग इस मौके पर अपने परिवारवालों और दोस्तों को भी बुलाते हैं और एक प्राचीन से बाइबल पर आधारित भाषण देने की गुज़ारिश करते हैं। इसके बाद दूल्हा-दुल्हन चाहें तो कोई दावत रख सकते हैं। यह दावत कैसी होगी, यह फैसला भी वे खुद कर सकते हैं। (लूका 14:28; यूहन्‍ना 2:1-11) वे अपनी शादी के लिए जो भी प्रंबंध करें, उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि यहोवा की महिमा हो। (उत्पत्ति 2:18-24; मत्ती 19:5, 6) बाइबल में दिए सिद्धांतों को मानने से वे सही फैसले कर सकते हैं। (1 यूहन्‍ना 2:16, 17) अगर दावत में शराब रखी जाती है, तो अच्छी निगरानी का भी इंतज़ाम किया जाना चाहिए। (नीतिवचन 20:1; इफिसियों 5:18) अगर संगीत या मन-बहलाव के लिए कोई कार्यक्रम रखा जाता है, तो वह भी ऐसा होना चाहिए कि यहोवा की महिमा हो। लेकिन दूल्हा-दुल्हन को इस हद तक शादी के दिन की तैयारियों में नहीं लग जाना चाहिए कि वे अपने आपसी रिश्‍ते और यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को नज़रअंदाज़ कर दें।​—नीतिवचन 18:22; ज़्यादा जानकारी के लिए 1 नवंबर, 2006 की प्रहरीदुर्ग के पेज 12-23 पढ़िए।

अध्याय 13, पैराग्राफ 18

 29 सही फैसले

हम चाहते हैं कि हम बाइबल के सिद्धांतों के मुताबिक सही फैसले करें। मान लीजिए, एक बहन का पति यहोवा का साक्षी नहीं है और वह उसे त्योहार के दिन रिश्‍तेदारों के साथ खाना खाने के लिए कहता है। ऐसे में बहन को क्या करना चाहिए? अगर आप ऐसे हालात में हों, तो आप क्या करेंगे? अगर आपका ज़मीर कहे कि आप जा सकते हैं, तो आपको अपने साथी को पहले से बताना चाहिए कि अगर खाने के वक्‍त कोई झूठे धर्म के रिवाज़ मनाए जाएँगे, तो आप उन्हें नहीं मनाएँगे। पर साथ ही आपको दूसरों के ज़मीर का भी ध्यान रखना चाहिए कि कहीं आपके जाने से किसी को ठोकर तो नहीं लगेगी।​—1 कुरिंथियों 8:9; 10:23, 24.

हो सकता है कि आपका बॉस किसी त्योहार के वक्‍त आपको बोनस दे रहा है। क्या आपको उसे लेने से इनकार करना चाहिए? शायद नहीं। आपको देखना है कि बॉस किस इरादे से बोनस दे रहा है। क्या वह त्योहार के तोहफे के रूप में दे रहा है या बस इसलिए कि वह आपकी मेहनत की कदर करता है? इस तरह की बातों पर सोच-विचार करने से आप फैसला कर पाएँगे कि बोनस लें या नहीं।

शायद कोई आपको त्योहार के दिन तोहफा दे और कहे, “मैं जानता हूँ कि आप यह त्योहार नहीं मनाते, फिर भी मैं अपनी खुशी से यह दे रहा हूँ।” आपको देखना है कि क्या वह बस आपको प्यार से दे रहा है या वह आपको परख रहा है कि आपका धार्मिक विश्‍वास कितना पक्का है या फिर आपको किसी तरह त्योहार में शामिल करने की कोशिश कर रहा है? इन बातों पर सोचने के बाद यह फैसला आपको करना है कि आप तोहफा लेंगे या नहीं। हमें हमेशा ऐसे फैसले करने चाहिए, जिससे हमारा ज़मीर साफ रहे और हम यहोवा के वफादार रहें।​—प्रेषितों 23:1.

अध्याय 13, पैराग्राफ 22

 30 बिज़नेस और कानूनी मसले

जब भाई-बहनों के बीच कोई अनबन होती है और वे उसे फौरन शांति से सुलझा लेते हैं, तो मामला गंभीर रूप नहीं लेता। (मत्ती 5:23-26) सभी मसीहियों की कोशिश होनी चाहिए कि उनके व्यवहार से यहोवा की महिमा हो और मंडली में एकता रहे।​—यूहन्‍ना 13:34, 35; 1 कुरिंथियों 13:4, 5.

अगर दो मसीही साथ मिलकर बिज़नेस कर रहे हैं और उनके बीच मतभेद हो जाए, तो उन्हें आपस में ही मामला सुलझा लेना चाहिए, न कि अदालत जाना चाहिए। पहला कुरिंथियों 6:1-8 में प्रेषित पौलुस ने ऐसे मसीहियों को सलाह दी, जो एक-दूसरे पर मुकदमा कर रहे थे। भाई-बहनों को अदालत ले जाने से यहोवा और मंडली का नाम बदनाम हो सकता है। मसीहियों को गंभीर मामले कैसे निपटाने चाहिए, इस बारे में मत्ती 18:15-17 में अच्छी सलाह दी गयी है। यह ऐसे मामले हो सकते हैं, जैसे किसी की बदनामी हुई है या किसी के साथ धोखाधड़ी की गयी है। उन आयतों में तीन कदम बताए गए हैं: (1) उन्हें आपस में मामला सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए, (2) अगर मामला नहीं सुलझता, तो वे मंडली के एक-दो प्रौढ़ मसीहियों से मदद माँग सकते हैं, (3) इसके बाद भी अगर कोई हल न निकले, तो वे प्राचीनों के निकाय से मामला सुलझाने के लिए कह सकते हैं। प्राचीन इन भाइयों को बाइबल के सिद्धांत समझाते हैं, ताकि भाई आपस में समझौता करके एक बात पर राज़ी हो जाएँ और सुलह कर लें। लेकिन अगर उनमें से कुछ भाई बाइबल के सिद्धांत मानने के लिए तैयार नहीं हैं, तो प्राचीनों को न्यायिक कार्रवाई करनी पड़ सकती है।

कुछ मामलों में कानूनी कार्रवाई की ज़रूरत पड़ सकती है। जैसे, तलाक लेना, यह फैसला करना कि तलाक के बाद बच्चा किसके पास रहेगा, साथी को कितना गुज़ारा भत्ता मिलेगा, बीमा से मिलनेवाला मुआवज़ा कैसे बँटेगा, दिवालिएपन या वसीयत से जुड़े मामले। अगर एक मसीही इन मसलों को शांति से निपटाने के लिए कानून की मदद लेता है, तो वह पौलुस की सलाह के खिलाफ नहीं जा रहा होगा।

संगीन जुर्म के सिलसिले में सरकारी अधिकारियों के पास शिकायत दर्ज़ करवाना भी पौलुस की सलाह के खिलाफ नहीं होगा। यह ऐसे जुर्म हो सकते हैं, जैसे बलात्कार, बच्चों के साथ दुर्व्यवहार, मार-पीट, बहुत बड़ी चोरी या हत्या।

अध्याय 14, पैराग्राफ 14

 31 शैतान की चालें

अदन के बाग में हुई घटना के समय से शैतान इंसानों को धोखा देता आया है। (उत्पत्ति 3:1-6; प्रकाशितवाक्य 12:9) वह हमारी सोच बिगाड़ना चाहता है ताकि हमसे बुरे काम करवाना उसके लिए आसान हो जाए। (2 कुरिंथियों 4:4; याकूब 1:14, 15) वह राजनीति, धर्म, व्यापार, मनोरंजन, शिक्षा और दूसरी कई बातों के ज़रिए अपनी सोच इस तरह फैलाता है कि लोगों को उसमें कोई बुराई नज़र नहीं आती।​—यूहन्‍ना 14:30; 1 यूहन्‍ना 5:19.

शैतान जानता है कि उसके पास बहुत कम समय बचा है, इसलिए वह ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को गुमराह करने की कोशिश कर रहा है। खासकर वह यहोवा के सेवकों को बहकाना चाहता है। (प्रकाशितवाक्य 12:12) अगर हम सावधान न रहें, तो शैतान धीरे-धीरे हमारी सोच भ्रष्ट कर सकता है। (1 कुरिंथियों 10:12) शादी के बंधन की ही बात लीजिए। यहोवा चाहता है कि यह बंधन कभी न टूटे। (मत्ती 19:5, 6, 9) मगर आज कई लोग इस बंधन को एक मामूली-सी बात समझते हैं, जिसे जब चाहे तोड़ा जा सकता है। अकसर फिल्मों और टीवी कार्यक्रमों में भी यही दिखाया जाता है। हमें ध्यान रखना है कि हम दुनिया की यह सोच न अपना लें।

हमारी सोच भ्रष्ट करने के लिए शैतान एक और चाल चलता है। वह हमें अपनी मनमानी करने के लिए उकसाता है। (2 तीमुथियुस 3:4) अगर हम सावधान न रहें, तो हम भी मनमानी करने लग सकते हैं। शायद हम उन लोगों का आदर न करें, जिन्हें यहोवा ने हम पर अधिकार दिया है। जैसे, एक भाई प्राचीनों के निर्देश न माने या एक बहन अपने पति के अधिकार पर सवाल उठाए।​—1 कुरिंथियों 11:3; इब्रानियों 12:5.

हमें ठान लेना चाहिए कि हम शैतान की सोच नहीं अपनाएँगे, बल्कि यहोवा की सोच अपनाएँगे और “अपना ध्यान स्वर्ग की बातों पर” लगाएँगे।​—कुलुस्सियों 3:2; 2 कुरिंथियों 2:11.

अध्याय 16, पैराग्राफ 9

 32 इलाज

हम सब सेहतमंद रहना चाहते हैं। यही वजह है कि बीमार होने पर हम अच्छे-से-अच्छा इलाज करवाने की कोशिश करते हैं। (यशायाह 38:21; मरकुस 5:25, 26; लूका 10:34) आज डॉक्टरों और वैद्यों वगैरह के पास इलाज की तकनीकों, दवाइयों और नुस्खों की कोई कमी नहीं है। इस वजह से हमें बाइबल के सिद्धांतों को ध्यान में रखकर फैसला करना है कि हम किस तरह का इलाज करवाएँगे। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सिर्फ परमेश्‍वर के राज में ही बीमारियाँ पूरी तरह से दूर होंगी। इस वजह से आज हमें अपनी सेहत को लेकर इतना परेशान नहीं होना चाहिए कि हम यहोवा की उपासना को ही नज़रअंदाज़ कर दें।​—यशायाह 33:24; 1 तीमुथियुस 4:16.

अगर हमें लगे कि किसी तरह के इलाज में रहस्यमयी शक्‍ति काम करती है, जो असल में दुष्ट स्वर्गदूतों की तरफ से है, तो हमें उसे स्वीकार नहीं करना चाहिए। (व्यवस्थाविवरण 18:10-12; यशायाह 1:13) हमें आँख मूँदकर कोई दवा या इलाज स्वीकार नहीं करना चाहिए, बल्कि हमें उसके बारे में पूरी जानकारी लेनी चाहिए और पता लगाना चाहिए कि कहीं उसका नाता दुष्ट स्वर्गदूतों से तो नहीं। (नीतिवचन 14:15) हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि शैतान हमें धोखे में डालकर जादू-टोने में फँसा सकता है। अगर किसी इलाज के बारे में हमें ज़रा-सी भी शंका हो कि उसका जादू-टोने से कोई नाता है, तो ऐसा इलाज न करवाना ही बेहतर होगा।​—1 पतरस 5:8.

अध्याय 16, पैराग्राफ 18

^ कुछ डॉक्टरों का मानना है कि खून के चार बड़े अंश भी छोटे अंशों की तरह असल में खून नहीं हैं। इसलिए जब आप इलाज के मामले में डॉक्टर से बात करते हैं, तो आपको उसे साफ-साफ बताना चाहिए कि आप न तो खून लेंगे और न ही उसके चार बड़े अंशों (लाल कोशिकाएँ, श्‍वेत कोशिकाएँ, प्लेटलेट्‌स या प्लाज़्मा) में से कोई अंश लेंगे।