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अध्याय 7

परमेश्‍वर की तरह क्या आप जीवन को अनमोल समझते हैं?

परमेश्‍वर की तरह क्या आप जीवन को अनमोल समझते हैं?

“तू ही जीवन देनेवाला है।”​—भजन 36:9.

1, 2. (क) परमेश्‍वर ने हमें कौन-सा बेशकीमती तोहफा दिया है? (ख) हम एक अच्छी ज़िंदगी जी सकें, इसके लिए यहोवा ने हमें क्या दिया है?

 यहोवा ने हम सबको एक बेशकीमती तोहफा दिया है, वह है जीवन। (उत्पत्ति 1:27) वह चाहता है कि हम यह ज़िंदगी अच्छी तरह जीएँ। उसने हमें कुछ सिद्धांत दिए हैं ताकि हम सही फैसले कर सकें। हमें इन सिद्धांतों को ध्यान में रखकर “सही-गलत में फर्क” करना चाहिए। (इब्रानियों 5:14) ऐसा करने से हम यहोवा से सीख रहे होते हैं कि हमें अपनी सोचने-समझने की शक्‍ति को कैसे काम में लाना चाहिए। यहोवा के सिद्धांतों को मानने से हम अपनी ज़िंदगी में फर्क देख पाएँगे, तब हम जान पाएँगे कि उसके सिद्धांत कितने बढ़िया हैं।

2 ज़िंदगी में कई बार ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं कि हम समझ नहीं पाते कि हम क्या करें। ऐसा भी होता है कि उन हालात या मामलों के बारे में बाइबल में सीधे-सीधे कोई नियम नहीं दिया होता। जैसे, इलाज का मामला। कुछ तरह के इलाज में खून का इस्तेमाल किया जाता है। शायद हमें यह फैसला करना पड़े कि हम इस तरह का इलाज करवाएँ या नहीं। हम सही फैसला कैसे कर सकते हैं, जिससे यहोवा खुश हो? बाइबल में कुछ सिद्धांत दिए गए हैं, जिनसे हमें पता चलता है कि जीवन और खून के मामले में यहोवा का नज़रिया क्या है। अगर हम इन सिद्धांतों को समझ लें, तो हम सही फैसला कर पाएँगे और हमारा ज़मीर भी साफ रहेगा। (नीतिवचन 2:6-11) आइए इनमें से कुछ सिद्धांतों के बारे में देखें।

जीवन और खून के बारे में परमेश्‍वर का नज़रिया

3, 4. (क) परमेश्‍वर ने खून के बारे में अपना नज़रिया कैसे ज़ाहिर किया? (ख) खून किस चीज़ को दर्शाता है?

3 बाइबल में खून को पवित्र कहा गया है, क्योंकि यह जीवन को दर्शाता है। जीवन यहोवा की नज़र में अनमोल है। जब कैन ने अपने भाई को मार डाला, तो यहोवा ने उससे कहा, “तेरे भाई का खून ज़मीन से चीख-चीखकर मुझे न्याय की दुहाई दे रहा है।” (उत्पत्ति 4:10) यहोवा ने जब कहा कि हाबिल का खून दुहाई दे रहा है, तो वह उसके जीवन की बात कर रहा था, क्योंकि खून जीवन को दर्शाता है।

4 जल-प्रलय के बाद परमेश्‍वर ने नूह से कहा कि अब से इंसान जानवरों का माँस खा सकते हैं। पर उसने यह भी कहा, “तुम माँस के साथ खून मत खाना क्योंकि खून जीवन है।” (उत्पत्ति 9:4) नूह की तरह उसके सभी वंशजों को यह आज्ञा माननी थी। इसका मतलब यह है कि आज हमें भी इसे मानना चाहिए। यहोवा की नज़र में खून जीवन को दर्शाता है। हमें भी खून के बारे में यहोवा जैसा नज़रिया रखना चाहिए।​—भजन 36:9.

5, 6. मूसा के कानून से जीवन और खून के बारे में यहोवा का नज़रिया कैसे पता चलता है?

5 मूसा के कानून में यहोवा ने कहा था, “अगर कोई किसी भी जीव का खून खाता है, तो मैं उसे बेशक ठुकरा दूँगा और उसे मौत की सज़ा दूँगा। क्योंकि हरेक जीवित प्राणी की जान उसके खून में है।”​—लैव्यव्यवस्था 17:10, 11.

6 यहोवा ने यह भी कहा था कि अगर कोई जानवर का माँस खाने के लिए उसे हलाल करे, तो वह उसका खून ज़मीन पर उँडेल दे। ऐसा करके वह एक तरह से उस जानवर की जान यहोवा को लौटा देता, जो उस जान का मालिक है। (व्यवस्थाविवरण 12:16; यहेजकेल 18:4) लेकिन यहोवा ने इसराएलियों से यह नहीं कहा कि उन्हें जानवर के खून का एक-एक कतरा निकालना है। बस उन्हें खून अच्छी तरह निकाल देना था। फिर वे बेझिझक उसका माँस खा सकते थे और परमेश्‍वर की नज़र में उनका ज़मीर भी साफ रहता। इस तरह जानवर के खून को अनमोल समझकर वे जीवनदाता यहोवा का आदर करते। इसराएलियों को यह आज्ञा भी दी गयी थी कि वे पापों की माफी के लिए जानवरों का बलिदान चढ़ाएँ।​—“प्रायश्‍चित” और “जानवरों की जान की कदर” देखिए।

7. खून को अनमोल समझने की वजह से दाविद ने क्या किया?

7 खून कितना अनमोल है, यह हम दाविद से सीख सकते हैं। एक बार वह पलिश्‍तियों से युद्ध करने गया हुआ था। उसे बहुत प्यास लगी थी, इसलिए उसके आदमी अपनी जान जोखिम में डालकर दुश्‍मनों के इलाके में गए और उसके लिए पानी लाए। पर जब उन्होंने दाविद को पानी दिया, तो उसने वह पानी नहीं पीया, बल्कि उसे “यहोवा के सामने उँडेल दिया।” उसने कहा, “हे यहोवा, मैं यह पानी पीने की सोच भी नहीं सकता। मैं इन आदमियों का खून कैसे पी सकता हूँ जिन्होंने अपनी जान जोखिम में डाल दी थी?” दाविद जानता था कि परमेश्‍वर की नज़र में जीवन और खून बहुमूल्य है।​—2 शमूएल 23:15-17.

8, 9. खून के बारे में आज मसीहियों की सोच कैसी होनी चाहिए?

8 पहली सदी के मसीहियों को भी खून को पवित्र मानना था। हालाँकि उस समय तक जानवरों का बलिदान चढ़ाने का नियम रद्द हो गया था, लेकिन मूसा के कानून के कुछ नियम रद्द नहीं हुए थे, जैसे यह नियम कि वे ‘खून से दूर रहें।’ इस आज्ञा को मानना मसीहियों के लिए उतना ही ज़रूरी था, जितना नाजायज़ यौन-संबंध और मूर्ति पूजा से दूर रहने की आज्ञा को मानना।​—प्रेषितों 15:28, 29.

क्या आप खून के अंशों के बारे में अपना फैसला दूसरों को समझा पाएँगे?

9 खून के बारे में यहोवा का नियम मानना आज भी ज़रूरी है। हम मसीही जानते हैं कि यहोवा ही सबको जीवन देता है और सबकी ज़िंदगी का मालिक वही है। हम यह भी मानते हैं कि खून पवित्र है और यह जीवन को दर्शाता है। यही वजह है कि हम इलाज के मामले में भी सावधानी बरतते हैं, क्योंकि कुछ तरह के इलाज में खून का इस्तेमाल होता है। ऐसा इलाज हम स्वीकार करें या नहीं, इसका फैसला करने के लिए हमें बाइबल के सिद्धांतों पर गौर करना चाहिए।

इलाज में खून का इस्तेमाल

10, 11. (क) खून और उसके चार बड़े अंश लेने के बारे में यहोवा के साक्षियों का क्या मानना है? (ख) किन मामलों में हर मसीही को खुद फैसला करना है?

10 हम यहोवा के साक्षी इस बात को समझते हैं कि ‘खून से दूर’ रहने का मतलब सिर्फ यह नहीं कि खून खाना मना है, बल्कि हमें उसे न तो चढ़वाना है, न रक्‍तदान करना है और न ही अपना खून इस मकसद से जमा करवाना है कि ज़रूरत पड़ने पर हम उसे चढ़वा सकें। खून के जो चार बड़े अंश होते हैं, वे भी हमें नहीं लेने चाहिए यानी लाल रक्‍त कोशिकाएँ, श्‍वेत रक्‍त कोशिकाएँ, प्लेटलेट्‌स और प्लाज़मा।

11 इन चार बड़े अंशों से खून के छोटे-छोटे अंश निकाले जाते हैं। हर मसीही को खुद फैसला करना है कि वह इन छोटे अंशों को लेगा या नहीं। उसी तरह हर मसीही को यह फैसला भी करना है कि अगर इलाज की किसी प्रक्रिया, जाँच या ऑपरेशन के दौरान उसका अपना खून इस्तेमाल किया जाएगा, तो वह उस तरह का ऑपरेशन, जाँच या प्रक्रिया से इलाज करवाएगा या नहीं।​—“खून के अंश और इलाज की प्रक्रियाएँ” देखिए।

12. (क) जो फैसला हम अपने ज़मीर की सुनकर करते हैं, उस पर यहोवा ध्यान क्यों देता है? (ख) इलाज के मामले में हम फैसला कैसे कर सकते हैं?

12 क्या यहोवा ध्यान देता है कि जो मामले ज़मीर पर छोड़े गए हैं, उनमें हम क्या फैसला करते हैं? बिलकुल। यहोवा हममें से हरेक पर ध्यान देता है कि हमारी सोच कैसी है और हम किस इरादे से कोई फैसला करते हैं। (नीतिवचन 17:3; 24:12 पढ़िए।) इस वजह से हमें इलाज के मामले में कोई फैसला करने से पहले यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए कि वह हमें सही राह दिखाए। फिर हमें इलाज के बारे में जानकारी इकट्ठी करनी चाहिए, इसके बाद बाइबल से प्रशिक्षित ज़मीर के मुताबिक खुद फैसला करना चाहिए। हमें दूसरों से नहीं पूछना चाहिए कि अगर वे हमारी जगह होते, तो क्या करते। इसके अलावा किसी को भी दूसरों पर अपनी राय नहीं थोपनी चाहिए। हर मसीही को “अपना बोझ खुद” उठाना है।​—गलातियों 6:5; रोमियों 14:12.

यहोवा के नियमों से उसका प्यार झलकता है

13. खून के मामले में यहोवा के नियमों और सिद्धांतों से हम उसके बारे में क्या सीखते हैं?

13 जो भी यहोवा हमसे करने के लिए कहता है, वह हमारे भले के लिए होता है। वह हमसे बहुत प्यार करता है। (भजन 19:7-11) पर हम उसकी आज्ञा सिर्फ इसलिए नहीं मानते कि उसमें हमारा फायदा है, बल्कि इसलिए कि हम उससे प्यार करते हैं। खून न चढ़वाने की भी यही वजह है। (प्रेषितों 15:20) लेकिन इसकी वजह से हमें कुछ फायदे भी होते हैं। हम उन बीमारियों से बचते हैं, जो खून चढ़वाने से हो सकती हैं। यह बात आज बहुत-से लोग जानते हैं और कई डॉक्टरों का भी मानना है कि बगैर खून के ऑपरेशन करना ही इलाज का बेहतर तरीका है। वाकई यहोवा के नियम मानने में कितनी बुद्धिमानी है।​—यशायाह 55:9 पढ़िए; यूहन्‍ना 14:21, 23.

14, 15. (क) यहोवा ने अपने लोगों की सुरक्षा के लिए कौन-से नियम दिए? (ख) जिन सिद्धांतों पर ये नियम आधारित हैं, उन्हें हम लागू कैसे कर सकते हैं?

14 यहोवा के नियम मानने से हमेशा उसके लोगों का भला हुआ है। यहोवा ने प्राचीन इसराएल के लोगों को कुछ नियम दिए थे, जिन्हें मानने से वे बड़े-बड़े हादसों से बच सकते थे। उदाहरण के लिए, एक नियम यह था कि उन्हें अपने घर की छत पर मुँडेर बनानी है ताकि कोई छत से गिर न पड़े। (व्यवस्थाविवरण 22:8) एक और नियम जानवरों को लेकर था। अगर किसी का बैल बहुत सींग मारता था, तो उस बैल को बाँधकर रखना था ताकि वह किसी को घायल न कर दे या जान न ले ले। (निर्गमन 21:28, 29) अगर एक इसराएली इन नियमों को नहीं मानता और उसकी गलती की वजह से किसी की जान चली जाती, तो वह दोषी माना जाता।

15 इन नियमों से साफ पता चलता है कि यहोवा की नज़र में जीवन अनमोल है। हमारा भी यही नज़रिया होना चाहिए और हमें जीवन की कदर करनी चाहिए। जिस तरह हम अपने घर और अपनी गाड़ी का रख-रखाव करते हैं, जिस तरह गाड़ी चलाते हैं और जो मनोरंजन करते हैं, उससे पता चलता है कि हमें जीवन की कदर है या नहीं। कुछ लोग इन मामलों में कोई सावधानी नहीं बरतते, क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें कुछ नहीं होगा। ऐसी फितरत खासकर जवानों में होती है और वे कोई भी खतरा मोल लेते हैं। यहोवा नहीं चाहता कि हम इस तरह की लापरवाही बरतें। वह चाहता है कि हम अपनी और दूसरों की जान की कदर करें।​—सभोपदेशक 11:9, 10.

16. गर्भपात के बारे में यहोवा का नज़रिया क्या है?

16 यहोवा के लिए हर इंसान की जान कीमती है, यहाँ तक कि गर्भ में पल रहे बच्चे की जान भी। मूसा के कानून में बताया गया था कि अगर एक व्यक्‍ति गलती से किसी गर्भवती स्त्री को चोट पहुँचाए और वह स्त्री या उसका बच्चा मर जाए, तो यहोवा उस व्यक्‍ति को हत्या का दोषी ठहराएगा। भले ही उसने जानबूझकर ऐसा नहीं किया, फिर भी उसकी गलती से किसी की जान गयी, इसलिए बदले में उसे भी प्राणदंड मिलता। (निर्गमन 21:22, 23 पढ़िए।) यहोवा की नज़र में अजन्मा बच्चा भी एक जीवित व्यक्‍ति है। तो फिर गर्भपात के बारे में क्या कहा जा सकता है? जब यहोवा देखता है कि हर साल लाखों बच्चों को गर्भ में ही मार डाला जाता है, तो उसे कैसा लगता होगा?

17. अगर एक स्त्री ने यहोवा को जानने से पहले गर्भपात करवाया था, तो उसे किस बात से दिलासा मिल सकता है?

17 अगर एक स्त्री ने यहोवा को जानने से पहले गर्भपात करवाया था, तो क्या उसे माफी मिलेगी? ज़रूर। वह इस बात से दिलासा पा सकती है कि यीशु के बलिदान के आधार पर यहोवा उसे माफ कर देगा। (लूका 5:32; इफिसियों 1:7) अगर उसे अपनी गलती का सच में अफसोस है, तो उसे खुद को बार-बार कोसने की ज़रूरत नहीं है। ‘यहोवा दयालु और करुणा से भरा है। पूरब पश्‍चिम से जितना दूर है, वह हमारे अपराधों को हमसे उतना ही दूर फेंक देता है।’​—भजन 103:8-14.

मन से नफरत निकालिए!

18. हमें अपने मन से नफरत क्यों मिटा देनी चाहिए?

18 हमें दिल से मानना चाहिए कि जीवन परमेश्‍वर की देन है। अगर हम वाकई ऐसा मानते हैं, तो यह इस बात से पता चलेगा कि हम दिल में दूसरों के लिए कैसा महसूस करते हैं। अगर हम एक व्यक्‍ति को बिलकुल पसंद नहीं करते, तो कुछ समय बाद हम उससे नफरत करने लग सकते हैं। प्रेषित यूहन्‍ना ने लिखा था, “हर कोई जो अपने भाई से नफरत करता है वह कातिल है।” (1 यूहन्‍ना 3:15) जब कोई किसी से नफरत करता है, तो हो सकता है कि वह उसका आदर न करे, उस पर झूठे इलज़ाम लगाए, यहाँ तक कि उसकी मौत की कामना भी करे। यहोवा जानता है कि हम दूसरों के लिए कैसा महसूस करते हैं। (लैव्यव्यवस्था 19:16; व्यवस्थाविवरण 19:18-21; मत्ती 5:22) अगर हम मन-ही-मन किसी से नफरत कर रहे हैं, तो हमें ऐसे खयालों को मन से निकालने की पूरी कोशिश करनी चाहिए।​—याकूब 1:14, 15; 4:1-3.

19. हम और किस तरह दिखा सकते हैं कि हम जीवन को अनमोल समझते हैं?

19 हम एक और तरह से दिखा सकते हैं कि हम जीवन को अनमोल समझते हैं। भजन 11:5 में बताया गया है कि यहोवा “हिंसा से प्यार करनेवाले से नफरत करता है।” अगर हम ऐसी फिल्में या टीवी कार्यक्रम देखते हैं, जिनमें मार-धाड़ या खून-खराबा भरा होता है, तो इसका यही मतलब होगा कि हमें हिंसा बहुत पसंद है। ऐसी चीज़ें देखने से हम अपने दिलो-दिमाग को गाली-गलौज, खतरनाक साज़िशों और दिल-दहलानेवाले दृश्‍यों से भर रहे होंगे। इसके बजाय कितना अच्छा होगा कि हम उसे शुद्ध और अच्छे विचारों से भरें!​—फिलिप्पियों 4:8, 9 पढ़िए।

ऐसे संगठनों का भाग मत बनिए, जो जीवन की कदर नहीं करते

20-22. (क) शैतान की दुनिया को यहोवा किस नज़र से देखता है? (ख) परमेश्‍वर के लोग दुनिया से अलग कैसे रहते हैं?

20 शैतान की दुनिया में जीवन का कोई मोल नहीं। यह दुनिया यहोवा की नज़र में खून की दोषी है। सदियों से कई राजनैतिक शक्‍तियों ने लाखों लोगों की जान ली है। यहोवा के कुछ सेवक भी उनके हाथों मारे गए हैं। बाइबल में इन शक्‍तियों या सरकारों को खूँखार जंगली जानवर कहा गया है। (दानियेल 8:3, 4, 20-22; प्रकाशितवाक्य 13:1, 2, 7, 8) आज इतने बड़े पैमाने पर हथियार बेचे और खरीदे जाते हैं कि यह एक बहुत बड़ा व्यापार बन गया है। इन घातक हथियारों के व्यापार में लोग बहुत पैसा कमाते हैं। ये सारी बातें साफ दिखाती हैं कि “सारी दुनिया शैतान के कब्ज़े में पड़ी हुई है।”​—1 यूहन्‍ना 5:19.

21 लेकिन यहोवा के लोग इस “दुनिया के नहीं” हैं। वे राजनीति और युद्धों में पूरी तरह निष्पक्ष रहते हैं। न वे किसी की जान लेते हैं और न ही ऐसे संगठनों का समर्थन करते हैं, जो लोगों की मौत के ज़िम्मेदार हैं। (यूहन्‍ना 15:19; 17:16) जब मसीहियों पर ज़ुल्म ढाए जाते हैं, तो वे हिंसा का रुख नहीं अपनाते। वे यीशु की यह बात मानते हैं कि हमें अपने दुश्‍मनों से भी प्यार करना चाहिए।​—मत्ती 5:44; रोमियों 12:17-21.

22 धर्म भी लाखों लोगों की मौत की वजह रहा है। महानगरी बैबिलोन यानी पूरी दुनिया में साम्राज्य की तरह फैले झूठे धर्मों के बारे में बाइबल कहती है, “इसी नगरी में भविष्यवक्‍ताओं, पवित्र जनों और उन सबका खून पाया गया जिनका धरती पर कत्ल किया गया था।” यही वजह है कि यहोवा हमें आज्ञा देता है, “मेरे लोगो, उसमें से बाहर निकल आओ।” जो यहोवा की उपासना करते हैं, वे झूठे धर्मों से कोई नाता नहीं रखते।​—प्रकाशितवाक्य 17:6; 18:2, 4, 24.

23. झूठे धर्म से नाता तोड़ने के लिए हमें क्या-क्या करना होगा?

23 अगर हम महानगरी बैबिलोन से ‘बाहर निकल’ आए हैं, तो यह साफ नज़र आना चाहिए कि हमने झूठे धर्मों से नाता तोड़ लिया है। अगर हम किसी झूठे धर्म के सदस्य रहे हैं, तो हमें वहाँ से अपना नाम कटवा लेना चाहिए। पर यह काफी नहीं है। हमें वे बुरे काम भी नहीं करने चाहिए जो झूठे धर्मों में किए जाते हैं, यहाँ तक कि हमें उन कामों से नफरत करनी चाहिए। झूठे धर्मों में अनैतिक कामों पर कोई रोक नहीं लगायी जाती, राजनैतिक मामलों में भाग लिया जाता है और दौलत के पीछे भागने का बढ़ावा दिया जाता है। (भजन 97:10 पढ़िए; प्रकाशितवाक्य 18:7, 9, 11-17) सदियों से लाखों लोगों ने इन सब कामों में फँसकर अपनी जान गँवायी है।

24, 25. यहोवा के बारे में जानने से हम मन की शांति और साफ ज़मीर कैसे पा सकते हैं?

24 यहोवा को जानने से पहले हम सब इस दुनिया का भाग थे और हमने किसी-न-किसी तरह इसके बुरे कामों का साथ दिया था। लेकिन अब हमने दुनिया से नाता तोड़ लिया है। हमने यीशु के फिरौती बलिदान पर विश्‍वास किया और अपना जीवन परमेश्‍वर को समर्पित किया है। आज हम परमेश्‍वर का दिल खुश कर रहे हैं, इसलिए हमने मन की शांति और साफ ज़मीर पाया है। जैसा बाइबल कहती है, ‘हम यहोवा की तरफ से ताज़गी के दिनों’ का आनंद ले रहे हैं।​—प्रेषितों 3:19; यशायाह 1:18.

25 हो सकता है कि हम पहले ऐसे संगठन का भाग थे, जिसमें जीवन की कदर नहीं की जाती, इसलिए हम भी दोषी थे। लेकिन यीशु के फिरौती बलिदान के आधार पर यहोवा हमें माफ करता है। हम जीवन को यहोवा का दिया एक अनमोल वरदान मानते हैं। यही वजह है कि हम दूसरों को यहोवा के बारे में सिखाने के लिए मेहनत करते हैं और शैतान की दुनिया से आज़ाद होने और यहोवा के अच्छे दोस्त बनने में उनकी मदद करते हैं।​—2 कुरिंथियों 6:1, 2.

राज का संदेश दीजिए

26-28. (क) यहोवा ने यहेजकेल को कौन-सा काम सौंपा था? (ख) आज यहोवा ने हमें कौन-सा काम सौंपा है?

26 पुराने ज़माने में यहोवा ने भविष्यवक्‍ता यहेजकेल को एक काम सौंपा। उसे इसराएलियों को बताना था कि यरूशलेम का जल्द नाश हो जाएगा। उसे उन्हें यह भी समझाना था कि बचने के लिए उन्हें क्या करना होगा। अगर वह उन्हें यह संदेश नहीं देता और वे मारे जाते, तो यहोवा उसे उनकी मौत का ज़िम्मेदार ठहराता। (यहेजकेल 33:7-9) यहेजकेल जीवन की कदर करता था, इसलिए उसने लोगों को यह संदेश देने के लिए बहुत मेहनत की।

27 आज यहोवा ने हमें भी एक काम सौंपा है। हमें लोगों को संदेश देना है कि शैतान की दुनिया जल्द नाश की जाएगी और उन्हें यहोवा के बारे में सिखाना है ताकि वे नाश न हों और नयी दुनिया में जी सकें। (यशायाह 61:2; मत्ती 24:14) हम लोगों तक यह संदेश पहुँचाने में कोई कसर नहीं छोड़ते, ताकि हम भी पौलुस की तरह कह सकें, “मैं सब लोगों के खून से निर्दोष हूँ। क्योंकि मैं परमेश्‍वर की मरज़ी के बारे में तुम्हें सारी बातें बताने से पीछे नहीं हटा।”​—प्रेषितों 20:26, 27.

28 यहोवा के प्यार के लायक बने रहने के लिए जीवन और खून को पवित्र मानना काफी नहीं है, यहोवा की नज़र में शुद्ध रहना भी ज़रूरी है। इस बारे में हम अगले अध्याय में सीखेंगे।