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अध्याय 5

दुनिया से अलग कैसे रहें?

दुनिया से अलग कैसे रहें?

“तुम दुनिया के नहीं हो।”​—यूहन्‍ना 15:19.

1. यीशु को अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात किस बात की चिंता थी?

 जब धरती पर यीशु की ज़िंदगी की आखिरी रात थी, तो उसे अपने चेलों की बहुत चिंता हो रही थी कि न जाने आगे उनका क्या होगा। इसकी वजह थी कि यीशु जल्द ही अपने चेलों को छोड़कर स्वर्ग जानेवाला था। उसने अपने चेलों से कहा, “तुम दुनिया के नहीं हो।” (यूहन्‍ना 15:19) फिर कुछ देर बाद उसने अपने पिता से प्रार्थना करते वक्‍त उनके बारे में कहा, “वे दुनिया के नहीं हैं, ठीक जैसे मैं दुनिया का नहीं हूँ।” (यूहन्‍ना 17:15, 16) यीशु के कहने का क्या मतलब था?

2. यीशु ने जिस “दुनिया” की बात की, वह क्या है?

2 यीशु ने जिस “दुनिया” की बात की, उसका मतलब वे लोग हैं, जो यहोवा की सेवा नहीं करते और जिन पर शैतान राज कर रहा है। (यूहन्‍ना 14:30; इफिसियों 2:2; याकूब 4:4; 1 यूहन्‍ना 5:19) मगर हम यहोवा के सेवक इस “दुनिया के नहीं” हैं। दुनिया से अलग रहने के कुछ तरीकों के बारे में हम इस अध्याय में देखेंगे। जैसे, हमें परमेश्‍वर के राज के वफादार रहना चाहिए, हमें निष्पक्ष रहना चाहिए यानी राजनीति में किसी का पक्ष नहीं लेना चाहिए, हमें दुनिया की फितरत से दूर रहना चाहिए, पहनावे और बनाव-शृंगार के मामले में शालीन रहना चाहिए और पैसे के पीछे नहीं भागना चाहिए। इस अध्याय में हम इस बारे में भी चर्चा करेंगे कि परमेश्‍वर के दिए सारे हथियार बाँधने से हमें दुनिया से अलग रहने में मदद कैसे मिलती है।​—“निष्पक्षता” देखिए।

परमेश्‍वर के राज के वफादार रहिए

3. राजनीति के मामले में यीशु का नज़रिया क्या था?

3 जब यीशु धरती पर था, तो उसने देखा कि लोगों की ज़िंदगी में बड़ी-बड़ी समस्याएँ थीं। उसे लोगों की परवाह थी और वह उनकी मदद करना चाहता था। तो क्या यीशु एक राजनेता बन गया? जी नहीं, वह जानता था कि असल में परमेश्‍वर का राज ही लोगों की समस्याओं का हल कर सकता है। इसी राज के बारे में खास तौर से यीशु ने प्रचार किया और आगे चलकर वह इसी राज का राजा बननेवाला था। (दानियेल 7:13, 14; लूका 4:43; 17:20, 21) यीशु ने राजनीति में हिस्सा नहीं लिया और वह निष्पक्ष रहा। उसने रोमी राज्यपाल पुन्तियुस पीलातुस से कहा था, “मेरा राज इस दुनिया का नहीं है।” (यूहन्‍ना 18:36) अँग्रेज़ी में लिखी किताब सभ्यता की राह पर में लिखा है कि शुरू के मसीही “किसी भी राजनैतिक पद पर काम नहीं करते थे।” आज सच्चे मसीही भी राजनीति में हिस्सा नहीं लेते। हम परमेश्‍वर के राज का साथ देते हैं और इस दुनिया के राजनैतिक मामलों में निष्पक्ष रहते हैं।​—मत्ती 24:14.

क्या आप दूसरों को बता सकते हैं कि आप परमेश्‍वर के राज का साथ क्यों देते हैं?

4. सच्चे मसीही परमेश्‍वर के राज का साथ कैसे देते हैं?

4 जब राजदूत किसी पराए देश में रहते हैं, तो वे अपने देश के प्रतिनिधि बनकर काम करते हैं और उस देश की राजनीति में बिलकुल भाग नहीं लेते। उसी तरह जब तक अभिषिक्‍त मसीही धरती पर हैं, तब तक वे राजदूतों जैसे ही काम करते हैं। पौलुस ने अपने एक खत में लिखा, “हम मसीह के बदले काम करनेवाले राजदूत हैं।” (2 कुरिंथियों 5:20) अभिषिक्‍त मसीही परमेश्‍वर के राज यानी उसकी सरकार के प्रतिनिधि हैं, इसलिए वे दुनिया के राजनैतिक और सरकारी मसलों में नहीं पड़ते। (फिलिप्पियों 3:20) इसके बजाय वे लोगों को परमेश्‍वर की सरकार के बारे में सिखाते हैं। लाखों लोगों ने उनसे सीखकर नयी दुनिया में हमेशा की ज़िंदगी की आशा पायी है । इन लोगों को बाइबल में “दूसरी भेड़ें” कहा गया है। वे अभिषिक्‍त मसीहियों का पूरा साथ देते हैं और उनकी तरह निष्पक्ष रहते हैं। (यूहन्‍ना 10:16; मत्ती 25:31-40) इससे साफ हो जाता है कि कोई भी सच्चा मसीही राजनीति में भाग नहीं लेता।​—यशायाह 2:2-4 पढ़िए।

5. एक वजह बताइए कि मसीही युद्ध में भाग क्यों नहीं लेते?

5 हम मसीही युद्ध में भाग नहीं लेते। हमारा मानना है कि सभी सच्चे मसीही एक ही परिवार के लोग हैं, फिर चाहे वे किसी भी देश या इलाके से हों। (1 कुरिंथियों 1:10) अगर मसीही युद्ध में भाग लेंगे, तो वे अपने ही परिवार के लोगों से लड़ रहे होंगे, जबकि यीशु ने आज्ञा दी है कि मसीहियों को एक-दूसरे से प्यार करना है। (यूहन्‍ना 13:34, 35; 1 यूहन्‍ना 3:10-12) यीशु ने तो कहा था कि उन्हें अपने दुश्‍मनों से भी प्यार करना चाहिए।​—मत्ती 5:44; 26:52.

6. यहोवा के लोग सरकार के नियमों को कितनी अहमियत देते हैं?

6 हालाँकि हम सच्चे मसीही निष्पक्ष रहते हैं, लेकिन हम अच्छे नागरिक होने का फर्ज़ निभाते हैं। जैसे, हम सरकारी अधिकारियों का आदर करते हैं, सरकार के नियमों को मानते हैं और कर देते हैं। पर हम यह भी ध्यान रखते हैं कि जो ‘परमेश्‍वर का है वह परमेश्‍वर को’ दें। (मरकुस 12:17; रोमियों 13:1-7; 1 कुरिंथियों 6:19, 20) हम यह कैसे करते हैं? हम परमेश्‍वर से प्यार करते हैं, उसकी आज्ञा मानते हैं और उसकी उपासना करते हैं। हम किसी भी हाल में परमेश्‍वर की आज्ञा नहीं तोड़ते, फिर चाहे हमें जान भी क्यों न गँवानी पड़े।​—लूका 4:8; 10:27; प्रेषितों 5:29; रोमियों 14:8 पढ़िए।

“दुनिया की फितरत” को खुद पर हावी मत होने दीजिए

7, 8. (क) “दुनिया की फितरत” क्या है? (ख) यह लोगों पर कैसा असर करती है?

7 शैतान की दुनिया से अलग रहने का एक और तरीका है, “दुनिया की फितरत” से बचकर रहना। आज लोगों की जो सोच है और वे जो बुरे काम करते हैं, उन बातों को दुनिया की फितरत कहा जाता है। उनमें ऐसी फितरत पैदा करनेवाला शैतान है। यह फितरत उन लोगों पर हावी रहती है, जो यहोवा की सेवा नहीं करते। मगर मसीही अपने अंदर इस फितरत को पनपने नहीं देते। पौलुस ने कहा था, “हमने दुनिया की फितरत नहीं पायी बल्कि पवित्र शक्‍ति पायी है जो परमेश्‍वर की तरफ से है।”​—1 कुरिंथियों 2:12; इफिसियों 2:2, 3; “दुनिया की फितरत” देखिए।

8 दुनिया की फितरत लोगों को स्वार्थी, घमंडी और विद्रोही बनाती है। यह फितरत उनमें यह सोच पैदा करती है कि उन्हें परमेश्‍वर की आज्ञा मानने की ज़रूरत नहीं। शैतान यही चाहता है कि लोग जो जी में आए वह करें, फिर चाहे उन्हें जो भी अंजाम भुगतने पड़ें। वह एक तरह से उनसे कहता है कि सिर्फ अपने लिए जीओ, हमेशा अपनी इच्छाएँ पूरी करो। (1 यूहन्‍ना 2:16; 1 तीमुथियुस 6:9, 10) शैतान खासकर यहोवा के लोगों को अपना निशाना बनाता है। वह हरदम इस कोशिश में रहता है कि कैसे उन्हें बहकाए कि वे भी उसकी तरह सोचने लगें।​—यूहन्‍ना 8:44; प्रेषितों 13:10; 1 यूहन्‍ना 3:8.

9. दुनिया की फितरत हम पर असर कैसे कर सकती है?

9 दुनिया की फितरत हवा की तरह हमारे चारों तरफ फैली है। हमें इस फितरत से बचने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी, नहीं तो यह हम पर भी धीरे-धीरे असर करने लगेगी। (नीतिवचन 4:23 पढ़िए।) शायद हम दुनिया के लोगों की ऐसी सोच और बातें अपनाने लगें, जो हमें इतनी बुरी न लगें। (नीतिवचन 13:20; 1 कुरिंथियों 15:33) यह भी हो सकता है कि हम कुछ ऐसे काम करने लगें, जैसे अश्‍लील तसवीरें या फिल्में देखना, उन लोगों की बातों में आना जो परमेश्‍वर यहोवा से बगावत करते हैं या ऐसे खेलों का मज़ा लेना जिनमें हर हाल में जीतने का जुनून सवार रहता है।​—“परमेश्‍वर से बगावत करनेवाले” देखिए।

10. दुनिया की फितरत को ठुकराने के लिए हमें क्या करना चाहिए?

10 हम पर इस दुनिया की फितरत हावी न हो, इसके लिए हमें क्या करना होगा? हमें यहोवा के करीब रहना है, उसकी बतायी राह पर चलना है, लगातार उससे पवित्र शक्‍ति माँगते रहना है और उसकी सेवा में व्यस्त रहना है। यहोवा पूरे विश्‍व में सबसे शक्‍तिशाली है। हम भरोसा रख सकते हैं कि दुनिया की फितरत को ठुकराने में वह ज़रूर हमारी मदद करेगा।​—1 यूहन्‍ना 4:4.

अपने पहनावे से परमेश्‍वर की महिमा कीजिए

11. दुनिया की फितरत का लोगों के पहनावे पर कैसा असर हुआ है?

11 हम जिस तरह के कपड़े पहनते हैं और खुद को जिस तरह सँवारते हैं, उससे भी दिखा सकते हैं कि हम दुनिया के भाग नहीं हैं। बहुत-से लोग ऐसे कपड़े पहनते हैं कि सबकी नज़र उन पर जाए या देखनेवालों के मन में गलत खयाल आएँ। कभी-कभी वे यह भी जताना चाहते हैं कि वे समाज के नियमों के हिसाब से नहीं चलना चाहते। कुछ तो महँगे-से-महँगे कपड़े पहनकर अपने पैसों का दिखावा करते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कैसे दिखते हैं, वे हमेशा गंदे रहते हैं। लेकिन हमें पहनावे और सजने-सँवरने के मामले में दुनिया के लोगों की तरह हरगिज़ नहीं होना चाहिए।

क्या मेरे पहनावे से यहोवा की महिमा होती है?

12, 13. कपड़ों के मामले में हमें कौन-से सिद्धांत मन में रखने चाहिए?

12 हम यहोवा के सेवक हैं, इसलिए हमारे कपड़े साफ-सुथरे, सलीकेदार और मौके के हिसाब से होने चाहिए। हमारे कपड़ों से झलकना चाहिए कि हम “मर्यादा” में रहते हैं, “सही सोच रखते” हैं और “परमेश्‍वर की भक्‍ति” करनेवाले लोग हैं।​—1 तीमुथियुस 2:9, 10; यहूदा 21.

13 हम जिस तरह के कपड़े पहनते हैं, उससे लोग यहोवा और उसके सेवकों के बारे में या तो अच्छा सोचेंगे या बुरा। हम “सबकुछ परमेश्‍वर की महिमा के लिए” करना चाहते हैं। (1 कुरिंथियों 10:31) हम मर्यादा में रहते हैं यानी हम दूसरों की भावनाओं की कदर करते हैं और इस बात का खयाल रखते हैं कि उन्हें बुरा न लगे। इस वजह से जब हम कपड़े खरीदते हैं या खुद को सँवारते हैं, तो हम याद रखते हैं कि हमारी पसंद-नापसंद का दूसरों पर असर पड़ता है।​—1 कुरिंथियों 4:9; 2 कुरिंथियों 6:3, 4; 7:1.

14. प्रचार और सभाओं के लिए कपड़े चुनते वक्‍त हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

14 हमें ध्यान देना चाहिए कि हम प्रचार या मसीही सभाओं के लिए कैसे कपड़े पहनते हैं। क्या सबकी नज़र हमारी तरफ जाती है? क्या लोग हमारे पास आने से झिझकते हैं? क्या हम यह सोचते हैं कि मैं जो चाहे पहनूँ, दूसरों को इससे क्या? (फिलिप्पियों 4:5; 1 पतरस 5:6) हम सब चाहते हैं कि हम अच्छे दिखें, लेकिन हम सच में सुंदर तभी लगेंगे, जब हममें मसीह के जैसे गुण होंगे। यहोवा भी जब हमें देखता है, तो वह हमारा रंग-रूप नहीं बल्कि हमारे गुणों को देखता है। इन गुणों से ‘हमारे अंदर का इंसान झलकता है जो परमेश्‍वर की नज़रों में अनमोल है।’​—1 पतरस 3:3, 4.

15. पहनावे और बनाव-शृंगार के मामले में यहोवा ने नियमों की सूची क्यों नहीं दी है?

15 यहोवा ने नियमों की कोई सूची नहीं दी है कि हम किस तरह के कपड़े पहनें और किस तरह के नहीं। इसके बजाय उसने बाइबल में कुछ सिद्धांत बताए हैं, जिन्हें ध्यान में रखकर हम सही फैसले कर सकते हैं। (इब्रानियों 5:14) वह चाहता है कि हमारे हर छोटे-बड़े फैसले से यहोवा और लोगों के लिए प्यार झलके। (मरकुस 12:30, 31 पढ़िए।) पूरी दुनिया में यहोवा के लोग अपने इलाके की संस्कृति और अपनी पसंद के हिसाब से कपड़े पहनते हैं। हमारी यह अलग-अलग वेश-भूषा हमारे भाईचारे को बहुत खूबसूरत बनाती है।

पैसों के बारे में सही नज़रिया रखिए

16. (क) पैसों के बारे में दुनिया की सोच और यीशु की शिक्षा में फर्क क्या है? (ख) हमें खुद से कौन-से सवाल करने चाहिए?

16 शैतान चाहता है कि लोग यही सोचें कि पैसे और सुख-सुविधा की चीज़ों से ही खुशी मिलती है, लेकिन यहोवा के सेवक जानते हैं कि यह सच नहीं है। हम मानते हैं कि यीशु ने जो कहा था वह बिलकुल सच है, “चाहे इंसान के पास बहुत कुछ हो, तो भी उसकी दौलत उसे ज़िंदगी नहीं दे सकती।” (लूका 12:15) पैसा हमें सच्ची खुशी नहीं दे सकता। यह हमें सच्चे दोस्त नहीं दिला सकता और न ही मन की शांति या हमेशा की ज़िंदगी दे सकता है। यीशु ने सिखाया कि परमेश्‍वर के साथ एक अच्छा रिश्‍ता होने से और उसकी उपासना को ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत देने से ही सच्ची खुशी मिल सकती है। (मत्ती 5:3; 6:22, फुटनोट) बेशक हमारे पास ज़रूरत की चीज़ें होनी चाहिए और हम भी ज़िंदगी का थोड़ा-बहुत मज़ा ले सकते हैं। लेकिन हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या मैं भी दुनिया के लोगों की तरह सोचने लगा हूँ कि पैसा ही सब कुछ है? क्या मैं हर वक्‍त पैसों के बारे में सोचता या बात करता हूँ?’​—लूका 6:45; 21:34-36; 2 यूहन्‍ना 6.

17. अगर हम पैसे के पीछे न भागें, तो हमें क्या फायदा होगा?

17 अगर हम यहोवा की सेवा पर ध्यान लगाएँ और दुनिया की तरह पैसे के पीछे न भागें, तो हम एक अच्छी ज़िंदगी जी पाएँगे। (मत्ती 11:29, 30) हमारे पास जो है, उसमें हम संतुष्ट रहेंगे और मन की शांति पाएँगे। (मत्ती 6:31, 32; रोमियों 15:13) हमें सुख-सुविधाएँ हासिल करने की चिंता नहीं होगी। (1 तीमुथियुस 6:9, 10 पढ़िए।) हम अपने परिवार और दोस्तों के साथ ज़्यादा समय बिता पाएँगे। हम दूसरों की मदद कर पाएँगे और खुश रहेंगे। (प्रेषितों 20:35) हमें नींद भी अच्छी आएगी।​—सभोपदेशक 5:12.

‘सारे हथियार बाँध लीजिए’

18. शैतान किस कोशिश में लगा हुआ है?

18 यहोवा के साथ हमारा जो अच्छा रिश्‍ता है, उसे बरकरार रखने के लिए हमें बहुत मेहनत करनी चाहिए। शैतान इस रिश्‍ते को तोड़ने की कोशिश कर रहा है। उसके साथ ‘शक्‍तिशाली दुष्ट दूत’ भी हैं। मानो उनके साथ हमारी लड़ाई चल रही है। (इफिसियों 6:12) वे नहीं चाहते कि हम खुश रहें या हमेशा की ज़िंदगी पाएँ। (1 पतरस 5:8) हमारे ये दुश्‍मन बहुत ताकतवर हैं, फिर भी हम उनसे जीत सकते हैं, क्योंकि यहोवा हमारे साथ है।

19. इफिसियों 6:14-18 में किन ‘हथियारों’ के बारे में बताया गया है?

19 पुराने ज़माने में सैनिक युद्ध के मैदान में जाने से पहले सुरक्षा कवच पहनते थे, ताकि उन्हें चोट न लगे। हमें भी यहोवा के दिए “सारे हथियार” बाँध लेने चाहिए। (इफिसियों 6:13) ये शैतान से हमारी हिफाज़त करेंगे। इफिसियों 6:14-18 में उन हथियारों के बारे में बताया गया है। वहाँ लिखा है, “सच्चाई के पट्टे से अपनी कमर कसकर और नेकी का कवच पहनकर डटे रहो और पैरों में शांति की खुशखबरी सुनाने की तैयारी के जूते पहनकर डटे रहो। इन सबके अलावा, विश्‍वास की बड़ी ढाल उठा लो, जिससे तुम शैतान के सभी जलते हुए तीरों को बुझा सकोगे। और उद्धार का टोप पहनो और पवित्र शक्‍ति की तलवार यानी परमेश्‍वर का वचन हाथ में ले लो। हर मौके पर पवित्र शक्‍ति के मुताबिक हर तरह की प्रार्थना और मिन्‍नतें करते रहो।”

20. यहोवा के दिए हथियार हमारी रक्षा करें, इसके लिए हमें क्या करना होगा?

20 अगर एक सैनिक शरीर के किसी एक हिस्से का कवच नहीं पहनता, तो दुश्‍मन उसी हिस्से पर वार कर सकता था। उसी तरह अगर हम चाहते हैं कि हमारे “हथियार” हमारी रक्षा करें, तो हमें एक भी हथियार नहीं भूलना चाहिए। हमें हर वक्‍त इन हथियारों से लैस रहना चाहिए और उन्हें अच्छी हालत में रखना चाहिए। जब तक दुनिया का नाश नहीं होता और शैतान और उसके दूतों को कैद में नहीं डाल दिया जाता, तब तक हमें यह लड़ाई लड़नी है। (प्रकाशितवाक्य 12:17; 20:1-3) हो सकता है कि हम अपनी किसी बुरी इच्छा या किसी कमज़ोरी पर काबू पाने के लिए संघर्ष कर रहे हों। हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए।​—1 कुरिंथियों 9:27.

21. हम शैतान से कैसे जीत सकते हैं?

21 देखा जाए तो हम शैतान से ताकतवर नहीं हैं। मगर यहोवा हमारे साथ है, इसलिए हम शैतान से जीत सकते हैं! हमें यहोवा से प्रार्थना करनी चाहिए, उसके वचन का अध्ययन करना चाहिए और भाई-बहनों की संगति करनी चाहिए। (इब्रानियों 10:24, 25) ये सारी बातें परमेश्‍वर के वफादार रहने और अपने विश्‍वास के पक्ष में बोलने के लिए हमारी मदद करेंगी।

अपने विश्‍वास के पक्ष में बोलने के लिए तैयार रहिए

22, 23. (क) अपने विश्‍वास के पक्ष में बोलने के लिए हम पहले से कैसे तैयारी कर सकते हैं? (ख) अगले अध्याय में हम किस विषय पर चर्चा करेंगे?

22 हमें अपने विश्‍वास के पक्ष में बोलने के लिए हर वक्‍त तैयार रहना चाहिए। (यूहन्‍ना 15:19) कुछेक मामलों में यहोवा के साक्षियों का विश्‍वास दुनिया के ज़्यादातर लोगों से बिलकुल अलग है। खुद से पूछिए, ‘क्या मैंने अच्छी तरह समझा है कि हम साक्षी फलाँ मामले में ऐसा विश्‍वास क्यों करते हैं? क्या मुझे पूरा यकीन है कि बाइबल में जो लिखा है और विश्‍वासयोग्य दास जो बताता है, वह सही है? (मत्ती 24:45; यूहन्‍ना 17:17) क्या मैं यहोवा का एक साक्षी होने पर गर्व महसूस करता हूँ? (भजन 34:2; मत्ती 10:32, 33) मैं जो मानता हूँ, क्या उसकी वजह मैं दूसरों को बता सकता हूँ?’​—1 पतरस 3:15 पढ़िए।

23 कई मामलों में हम अच्छी तरह जानते हैं कि दुनिया से अलग रहने के लिए हमें क्या करना है। लेकिन कुछ मामलों में हमें साफ पता नहीं होता। ऐसे में शैतान हमें कई तरीकों से फँसाने की कोशिश करता है। उसका एक फंदा है, मनोरंजन। हम कैसे जान सकते हैं कि किस तरह का मनोरंजन अच्छा है और किस तरह का नहीं? इस बारे में हम अगले अध्याय में देखेंगे।