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अध्याय 9

“नाजायज़ यौन-संबंधों से दूर भागो!”

“नाजायज़ यौन-संबंधों से दूर भागो!”

“अपने शरीर के उन अंगों को मार डालो जिनमें ऐसी लालसाएँ पैदा होती हैं जैसे, नाजायज़ यौन-संबंध, अशुद्धता, बेकाबू होकर वासनाएँ पूरी करना, बुरी इच्छाएँ और लालच जो कि मूर्तिपूजा के बराबर है।”​—कुलुस्सियों 3:5.

1, 2. बिलाम ने यहोवा के लोगों को फँसाने के लिए कौन-सी चाल चली?

 क्या आपने कभी एक मछुवारे को मछली पकड़ते देखा है? अगर उसे एक खास किस्म की मछली चाहिए, तो वह उसी तालाब में जाता है, जहाँ वह मिलती है। वह सोच-समझकर चारा चुनता है। फिर उसे काँटे में लगाकर पानी में डालता है और इंतज़ार करने लगता है। जैसे ही मछली आती है और चारा खाने लगती है, तो मछुवारा झट-से काँटा उसके जबड़े में फँसाकर उसे ऊपर खींच लेता है।

2 कुछ इसी तरह इंसानों को भी फँसाया जा सकता है। इसराएलियों के साथ हुई एक घटना पर ध्यान दीजिए। वे मोआब के मैदानों में डेरा डाले हुए थे और वादा किए गए देश में जाने ही वाले थे। मोआब के राजा ने बिलाम से वादा किया कि अगर वह इसराएलियों को शाप देगा, तो वह उसे बहुत धन-दौलत देगा। आखिरकार बिलाम को एक ऐसी तरकीब सूझी, जिससे इसराएली खुद अपने ऊपर शाप ले आते। उसने बहुत सोच-समझकर चारा डाला। उसने कुछ जवान मोआबी औरतों को इसराएलियों की छावनी में भेजा, ताकि वे इसराएली आदमियों को लुभाकर उन्हें अनैतिक काम में फँसाएँ।​—गिनती 22:1-7; 31:15, 16; प्रकाशितवाक्य 2:14.

3. बिलाम की चाल कैसे कामयाब हुई?

3 क्या बिलाम की चाल कामयाब हुई? जी हाँ, हज़ारों इसराएली आदमी “मोआबी औरतों” के झाँसे में आ गए और उन्होंने उनके साथ “नाजायज़ यौन-संबंध” रखे। वे मोआबियों के झूठे देवताओं को भी पूजने लगे, जिनमें से एक था, पोर का बाल देवता। वह काम-वासना का देवता था। इस सबका अंजाम यह हुआ कि 24,000 इसराएली वादा किए गए देश की सरहद पर ही मारे गए।​—गिनती 25:1-9.

4. हज़ारों इसराएलियों ने पाप क्यों किया?

4 आखिर इतने सारे इसराएली इस फँदे में क्यों फँस गए? उनका ध्यान बस अपने शरीर की इच्छाएँ पूरी करने पर लगा था और वे भूल गए कि यहोवा ने उन पर कितने उपकार किए थे। उसने उन्हें मिस्र की गुलामी से छुड़ाया था, वीराने में उनकी देखभाल की थी और वादा किए गए देश की सरहद तक सुरक्षित पहुँचाया था। (इब्रानियों 3:12) फिर भी उन्होंने उसकी बात नहीं मानी और वे अनैतिक काम कर बैठे। इसी घटना का ज़िक्र करते हुए प्रेषित पौलुस ने सलाह दी, ‘हम नाजायज़ यौन-संबंध रखने का पाप न करें, जैसे उनमें से कुछ ने किया था और मारे गए।’​—1 कुरिंथियों 10:8.

5, 6. वादा किए गए देश की सरहद पर जो हुआ, उससे हम क्या सीखते हैं?

5 हम नयी दुनिया के बहुत करीब हैं। मानो हम भी उसकी सरहद पर पहुँच गए हैं, जैसे इसराएली वादा किए गए देश की सरहद पर थे। (1 कुरिंथियों 10:11) आज की दुनिया पुराने ज़माने के मोआबियों से भी बदतर है और सेक्स के पीछे पागल है। दुनिया की यह सोच यहोवा के लोगों पर बड़ी आसानी से असर कर सकती है। लोगों को फँसाने के लिए शैतान का जो चारा सबसे ज़्यादा काम करता है, वह है नाजायज़ यौन-संबंध।​—गिनती 25:6, 14; 2 कुरिंथियों 2:11; यहूदा 4.

6 हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘क्या मैं शरीर की इच्छाएँ पूरी करके पल-भर की खुशी चाहता हूँ या परमेश्‍वर की बात मानकर नयी दुनिया में खुशियों से भरी हमेशा की ज़िंदगी?’ यहोवा की आज्ञा है, “नाजायज़ यौन-संबंधों से दूर भागो!” इस आज्ञा को मानने के लिए हमें चाहे जो भी संघर्ष करना पड़े, इसमें हमारी ही भलाई है।​—1 कुरिंथियों 6:18.

नाजायज़ यौन-संबंधों में क्या शामिल है?

7, 8. (क) नाजायज़ यौन-संबंध में क्या शामिल है? (ख) यह एक गंभीर मामला क्यों है?

7 आज ज़्यादातर लोग बेशर्मी की सारी हदें पार करके खुलेआम अनैतिक काम करते हैं। बाइबल के हिसाब से नाजायज़ यौन-संबंध का मतलब है, ऐसे दो लोगों के बीच यौन-संबंध, जिनकी परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक शादी नहीं हुई है। इसमें कई तरह के काम शामिल हैं, जैसे आदमी का आदमी के साथ, औरत का औरत के साथ और इंसान का जानवर के साथ लैंगिक संबंध। इसमें मुख मैथुन, गुदा मैथुन और गलत इरादे से किसी के गुप्त अंगों को छूना भी शामिल है।​—“निर्लज्ज काम और अशुद्धता” देखिए।

8 बाइबल से साफ पता चलता है कि अगर एक मसीही नाजायज़ यौन-संबंध रखने का पाप करता रहे, तो वह मंडली का सदस्य नहीं रह सकता। (1 कुरिंथियों 6:9; प्रकाशितवाक्य 22:15) इतना ही नहीं, ऐसा व्यक्‍ति खुद की नज़रों में गिर जाता है और दूसरों का भी उस पर से भरोसा उठ जाता है। नाजायज़ यौन-संबंधों का अंजाम हमेशा बुरा ही होता है। दोष की भावना, अनचाहा गर्भ, पति-पत्नी के बीच समस्याएँ, बीमारियाँ, यहाँ तक कि मौत भी हो सकती है। (गलातियों 6:7, 8 पढ़िए।) अगर एक इंसान सोचे कि नाजायज़ यौन-संबंधों का अंजाम कितना बुरा हो सकता है, तो वह शायद ऐसे काम कभी नहीं करेगा। मगर अनैतिकता की राह पर चलनेवाले ज़्यादातर लोग सिर्फ अपनी इच्छाओं के बारे में सोचते हैं। अकसर इस राह का सबसे पहला कदम होता है, अश्‍लील तसवीरें देखना।

अश्‍लील तसवीरें​—गलत राह पर पहला कदम

9. अश्‍लील तसवीरें देखना खतरनाक क्यों होता है?

9 अश्‍लील तसवीरें यौन इच्छाएँ भड़काने के लिए बनायी जाती हैं। आज अश्‍लील बातें हर कहीं देखने को मिलती हैं, किताबों-पत्रिकाओं में, संगीत में, टीवी कार्यक्रमों में और इंटरनेट पर भी। कई लोगों को लगता है कि ऐसी बातें देखने-सुनने में कोई नुकसान नहीं, लेकिन यह असल में बहुत खतरनाक होता है। अश्‍लील तसवीरें देखनेवाले के मन में हमेशा गंदी बातें घूमती रहती हैं और ऐसी इच्छाएँ पैदा हो सकती हैं, जो बिलकुल भी स्वाभाविक नहीं होतीं। उसे हस्तमैथुन की लत लग सकती है, उसकी शादीशुदा ज़िंदगी में समस्याएँ खड़ी हो सकती हैं और तलाक की भी नौबत आ सकती है।​—रोमियों 1:24-27; इफिसियों 4:19; “हस्तमैथुन” देखिए।

इंटरनेट का इस्तेमाल करते वक्‍त सावधानी बरतनी चाहिए

10. याकूब 1:14, 15 में दिए सिद्धांत पर ध्यान देने से हम नाजायज़ यौन-संबंध रखने के फँदे से कैसे बच सकते हैं?

10 यह समझना ज़रूरी है कि हम नाजायज़ यौन-संबंधों की तरफ कैसे लुभाए जा सकते हैं। याकूब 1:14, 15 में लिखा है, “हर किसी की इच्छा उसे खींचती और लुभाती है, जिससे वह परीक्षा में पड़ता है। फिर इच्छा गर्भवती होती है और पाप को जन्म देती है और जब पाप कर लिया जाता है तो यह मौत लाता है।” मन में गलत खयाल आते ही उसे फौरन निकाल दीजिए। इत्तफाक से आपकी नज़र किसी भड़काऊ तसवीर पर चली जाए, तो नज़रें फेर लीजिए! अगर कंप्यूटर या टीवी पर अचानक गंदी तसवीर आ जाए, तो उसे बंद कर दीजिए या चैनल बदल दीजिए। इन्हें देखते रहने से मन में बुरी इच्छाएँ आ सकती हैं और ये इस कदर हावी हो सकती हैं कि इन पर काबू पाना बहुत मुश्‍किल हो सकता है।​—मत्ती 5:29, 30 पढ़िए।

11. गलत खयालों पर काबू पाने में यहोवा हमारी मदद कैसे कर सकता है?

11 परमेश्‍वर हमारे बारे में हमसे बेहतर जानता है। वह जानता है कि हमारे अंदर कितनी कमज़ोरियाँ हैं। लेकिन वह यह भी जानता है कि हम अपनी गलत इच्छाओं पर काबू पा सकते हैं। वह हमसे कहता है, “अपने शरीर के उन अंगों को मार डालो जिनमें ऐसी लालसाएँ पैदा होती हैं जैसे, नाजायज़ यौन-संबंध, अशुद्धता, बेकाबू होकर वासनाएँ पूरी करना, बुरी इच्छाएँ और लालच जो कि मूर्तिपूजा के बराबर है।” (कुलुस्सियों 3:5) ऐसा करना आसान नहीं है, पर यहोवा हमारी मदद करता है। वह हमारे साथ बहुत सब्र से पेश आता है। (भजन 68:19) एक जवान भाई को गंदी तसवीरें देखने और हस्तमैथुन करने की लत लग गयी थी। उसके स्कूल के दोस्त कहते थे कि इसमें कोई बुराई नहीं है, यह तो सब करते हैं। भाई कहता है, ‘मेरा ज़मीर सुन्‍न पड़ गया था और मैं अनैतिक जीवन जीने लगा था।’ उसे एहसास हुआ कि उसे अपनी इच्छाओं पर काबू पाना ही होगा और यहोवा की मदद से उसने इस लत से छुटकारा पा लिया। अगर आपके मन में भी अनैतिक खयाल आते हैं, तो उन्हें ठुकराने के लिए यहोवा से ऐसी ताकत माँगिए, जो “आम इंसानों की ताकत से कहीं बढ़कर” है। तब वह आपको अपना मन शुद्ध रखने में मदद करेगा।​—2 कुरिंथियों 4:7; 1 कुरिंथियों 9:27.

12. हमें “अपने दिल की हिफाज़त” क्यों करनी चाहिए?

12 सुलैमान ने लिखा, “सब चीज़ों से बढ़कर अपने दिल की हिफाज़त कर, क्योंकि जीवन के सोते इसी से निकलते हैं।” (नीतिवचन 4:23) यहाँ “दिल” का मतलब है, अंदर का इंसान जिस पर यहोवा ध्यान देता है। हम जो देखते हैं, उसका हम पर गहरा असर होता है। वफादार सेवक अय्यूब ने कहा था, “मैंने अपनी आँखों के साथ करार किया है। फिर मैं किसी कुँवारी को गलत नज़र से कैसे देख सकता हूँ?” (अय्यूब 31:1) अय्यूब की तरह हमें भी खुद के साथ सख्ती बरतनी चाहिए और न बुरी बातें देखनी चाहिए, न सोचनी चाहिए। भजन के एक लेखक की तरह हमारी भी यही प्रार्थना होनी चाहिए, “मेरी आँखों को बेकार की चीज़ों से फेर दे।”​—भजन 119:37.

दीना का गलत फैसला

13. दीना ने किस तरह के लोगों से दोस्ती की?

13 हमारे दोस्तों का हम पर या तो अच्छा असर पड़ता है या बुरा। इस वजह से ऐसे लोगों से दोस्ती कीजिए, जो परमेश्‍वर के स्तरों को मानते हैं। इससे आप भी उन स्तरों पर चल पाएँगे। (नीतिवचन 13:20; 1 कुरिंथियों 15:33 पढ़िए।) दीना के साथ जो हुआ, उससे हम सीखते हैं कि हमें सोच-समझकर दोस्त बनाने चाहिए। याद कीजिए कि दीना याकूब की बेटी थी यानी वह ऐसे परिवार में पली-बढ़ी, जिसमें सब यहोवा की उपासना करते थे। दीना का चालचलन बुरा नहीं था, मगर उसने कनानी लड़कियों से दोस्ती की, जो झूठे देवताओं की उपासना करती थीं। लैंगिकता के मामले में कनानी लोगों का नज़रिया यहोवा के लोगों से बिलकुल अलग था और वे अनैतिक काम करने के लिए बदनाम थे। (लैव्यव्यवस्था 18:6-25) कनानी लड़कियों की संगति करते वक्‍त दीना की मुलाकात शेकेम नाम के एक जवान कनानी आदमी से हुई। वह दीना पर फिदा हो गया। शेकेम भले ही अपने परिवार में “सबसे इज़्ज़तदार आदमी” माना जाता था, लेकिन वह यहोवा से प्यार नहीं करता था।​—उत्पत्ति 34:18, 19.

14. दीना के साथ क्या हुआ?

14 शेकेम दीना की तरफ आकर्षित हो गया था, इसलिए एक दिन उसने दीना को “पकड़ लिया” और “उसे भ्रष्ट कर डाला।” यह काम शेकेम की नज़रों में गलत नहीं था, क्योंकि कनानी लोगों में यह आम बात थी। (उत्पत्ति 34:1-4 पढ़िए।) इस एक अपराध की वजह से ऐसी घटनाएँ घटीं कि दीना और उसके परिवार को भारी कीमत चुकानी पड़ी।​—उत्पत्ति 34:7, 25-31; गलातियों 6:7, 8.

15, 16. हम बुद्धिमान कैसे बन सकते हैं?

15 दीना ने गलती करके सीखा कि यहोवा के नैतिक स्तर कितने सही हैं। मगर हमें गलती करके सीखने की ज़रूरत नहीं है। नीतिवचन 13:20 में लिखा है, “बुद्धिमानों के साथ रहनेवाला बुद्धिमान बनेगा, लेकिन मूर्खों के साथ मेल-जोल रखनेवाला बरबाद हो जाएगा।” बाइबल पढ़कर यहोवा की ‘भली राहों’ को अच्छी तरह समझने की कोशिश कीजिए। तब आपको बेवजह मुसीबतें और दुख-दर्द नहीं झेलने पड़ेंगे।​—नीतिवचन 2:6-9; भजन 1:1-3.

16 अगर हम बाइबल का अध्ययन करें, कोई भी फैसला करने से पहले यहोवा से प्रार्थना करें और विश्‍वासयोग्य दास की सलाह मानें, तो हम बुद्धिमान बन सकते हैं। (मत्ती 24:45; याकूब 1:5) यह सच है कि हम सब अपरिपूर्ण हैं और हममें कई कमज़ोरियाँ हैं। (यिर्मयाह 17:9) लेकिन अगर हम गलत राह पर निकल पड़ें और कोई हमें सावधान करे, तो हम क्या करेंगे? क्या हम बुरा मान जाएँगे और उसकी सलाह ठुकरा देंगे? या फिर नम्रता से सलाह मान लेंगे?​—2 राजा 22:18, 19.

17. एक उदाहरण देकर बताइए कि दूसरों की सलाह मानने से हमारा भला कैसे होगा।

17 मान लीजिए, एक बहन जहाँ नौकरी करती है, वहाँ एक आदमी उसका कुछ ज़्यादा ही खयाल रखता है और उसके साथ कहीं जाकर कुछ पल बिताना चाहता है। वह यहोवा का सेवक नहीं है, पर भला इंसान मालूम पड़ता है, इसलिए बहन उसके साथ जाती है। एक और बहन उन दोनों को साथ वक्‍त बिताते देख लेती है। बाद में वह उस बहन को समझाती है कि वह जो कर रही है, सही नहीं है। अब इस बहन को क्या करना चाहिए? क्या उसे अपनी सफाई देनी चाहिए या मान लेना चाहिए कि बहन ठीक कह रही है? पहली बहन शायद यहोवा से बहुत प्यार करती है और जो सही है, वही करना चाहती है। लेकिन अगर वह उस आदमी के साथ वक्‍त बिताती रहेगी, तो क्या वह ‘नाजायज़ यौन-संबंधों से दूर भाग’ रही होगी? क्या इससे यह ज़ाहिर नहीं होगा कि वह “अपने दिल पर भरोसा” कर रही है?​—नीतिवचन 22:3; 28:26; मत्ती 6:13; 26:41.

यूसुफ की मिसाल से सीखिए

18, 19. यूसुफ नाजायज़ यौन-संबंध से इनकार क्यों कर पाया?

18 जब यूसुफ जवान था, तो वह मिस्र में एक गुलाम था। वहाँ हर दिन उसकी मालकिन उससे कहती कि वह उसके साथ संबंध रखे, लेकिन वह जानता था कि यह गलत है। यूसुफ यहोवा से प्यार करता था और उसे नाराज़ नहीं करना चाहता था। यही वजह है कि जब भी उसकी मालकिन उसे लुभाती, तो वह इनकार कर देता। लेकिन गुलाम होने की वजह से यूसुफ अपने मालिक का घर छोड़ नहीं सकता था। एक दिन जब उसकी मालकिन ने ज़बरदस्ती उसके साथ संबंध रखने की कोशिश की, तो वह उसके पास से “भाग गया।”​—उत्पत्ति 39:7-12 पढ़िए।

19 अगर यूसुफ हमेशा अनैतिक खयालों में खोया रहता या अपनी मालकिन के साथ संबंध रखने के बारे में कल्पनाएँ करता, तो शायद वह अनैतिक काम कर बैठता। मगर यूसुफ के लिए यहोवा के साथ उसका रिश्‍ता किसी भी चीज़ से ज़्यादा मायने रखता था। उसने अपनी मालकिन से कहा, ‘मेरे मालिक ने अपना सबकुछ मेरे हाथ में कर दिया है, सिवा तेरे क्योंकि तू उसकी पत्नी है। तो भला मैं इतना बड़ा दुष्ट काम करके परमेश्‍वर के खिलाफ पाप कैसे कर सकता हूँ?’​—उत्पत्ति 39:8, 9.

20. हम कैसे कह सकते हैं कि यहोवा यूसुफ से खुश था?

20 यूसुफ अपने घर-परिवार से बहुत दूर था, फिर भी उसने यहोवा की बात माननी नहीं छोड़ी, इसलिए यहोवा ने उसे आशीष दी। (उत्पत्ति 41:39-49) उसकी वफादारी देखकर यहोवा बहुत खुश था। (नीतिवचन 27:11) यह सच है कि अनैतिक कामों से इनकार करना बहुत मुश्‍किल हो सकता है, लेकिन बाइबल में लिखी यह बात याद रखिए, “यहोवा से प्यार करनेवालो, बुराई से नफरत करो। वह अपने वफादार लोगों की जान की हिफाज़त करता है, उन्हें दुष्टों के हाथ से छुड़ाता है।”​—भजन 97:10.

21. एक जवान भाई यूसुफ की तरह वफादार कैसे रहा?

21 यहोवा के सेवक ‘बुराई से नफरत करते हैं और भलाई से प्यार करते’ हैं। इसके लिए उन्हें हर दिन हिम्मत से काम लेना पड़ता है। (आमोस 5:15) चाहे आप छोटे हों या बड़े, आप यहोवा के वफादार रह सकते हैं। एक बार स्कूल में पढ़नेवाले एक जवान भाई की वफादारी की परख हुई। एक लड़की ने उससे कहा कि अगर वह गणित की परीक्षा में उसकी मदद करेगा, तो वह उसके साथ यौन-संबंध रखेगी। भाई ने क्या किया? वह कहता है, ‘मैंने फौरन इनकार कर दिया। यहोवा की बात मानने की वजह से मैंने अपना आत्म-सम्मान नहीं खोया।’ यह भाई यूसुफ की तरह वफादार रहा। अनैतिक काम करने से सिर्फ ‘चंद दिनों का सुख’ मिलता है, मगर बाद में दुख-दर्द ही भोगना पड़ता है। (इब्रानियों 11:25) वहीं यहोवा के वफादार रहने से हम खुश रहेंगे और बेवजह मुसीबत में नहीं पड़ेंगे।​—नीतिवचन 10:22.

यहोवा मदद करता है

22, 23. चाहे हम कोई बड़ा पाप भी कर बैठें, तो यहोवा कैसे हमारी मदद कर सकता है?

22 शैतान लैंगिक अनैतिकता का जाल बिछाकर हमें फँसाने की कोशिश करता है। इसका सामना करना बहुत मुश्‍किल हो सकता है। हम सबके मन में कभी-न-कभी बुरे विचार उठते हैं। (रोमियों 7:21-25) यह बात यहोवा भी समझता है और याद रखता है कि हम “मिट्टी ही हैं।” (भजन 103:14) मान लीजिए एक मसीही ने नाजायज़ यौन-संबंध जैसा बड़ा पाप किया है, तो क्या अब वह किसी लायक नहीं रहा? अगर वह दिल से पश्‍चाताप करे, तो यहोवा उसकी मदद करेगा। बाइबल कहती है कि यहोवा “माफ करने को तत्पर रहता है।”​—भजन 86:5; याकूब 5:16; नीतिवचन 28:13 पढ़िए।

23 यहोवा ने हमारी मदद करने के लिए प्राचीनों का इंतज़ाम किया है। वे “आदमियों के रूप में तोहफे” हैं। (इफिसियों 4:8, 12; याकूब 5:14, 15) वे हमारी परवाह करते हैं। जिन लोगों का यहोवा के साथ रिश्‍ता बिगड़ गया है, उन्हें दोबारा वह रिश्‍ता कायम करने में प्राचीन मदद करते हैं।​—नीतिवचन 15:32.

“समझ” से काम लीजिए

24, 25. “समझ” से काम लेने से हम नाजायज़ यौन-संबंधों के फँदे से कैसे बच सकते हैं?

24 सही काम करने के लिए हमें यह समझ होनी चाहिए कि यहोवा के नियमों को मानने से हमारा भला होता है। नीतिवचन 7:6-23 में एक जवान के बारे में बताया गया है, जिसमें “बिलकुल समझ नहीं” थी, इसलिए वह लैंगिक अनैतिकता के फंदे में फँस गया। हम उस जवान की तरह नहीं बनना चाहते। बाइबल के मुताबिक समझ का मतलब सिर्फ अक्लमंदी नहीं है, बल्कि इसका मतलब है, किसी मामले के बारे में परमेश्‍वर की सोच जानना और उसके मुताबिक काम करना। नीतिवचन 19:8 में लिखी यह बात हमें याद रखनी चाहिए, “जो समझ हासिल करता है वह खुद से प्यार करता है, जो पैनी समझ को अनमोल जानता है उसे कामयाबी मिलती है।”

25 क्या आपको यकीन है कि परमेश्‍वर के स्तर सही हैं? क्या आप मानते हैं कि इन स्तरों पर चलने से आप खुश रहेंगे? (भजन 19:7-10; यशायाह 48:17, 18) अगर आपको यकीन नहीं है, तो याद कीजिए कि यहोवा ने आपके लिए कितने भले काम किए हैं। ‘परखकर देखिए कि यहोवा कितना भला है।’ (भजन 34:8) आप जितना ज़्यादा मनन करेंगे कि यहोवा ने आपके लिए क्या-क्या किया है, उतना ज़्यादा आप उससे प्यार करेंगे। यहोवा जिन बातों से प्यार करता है, उनसे प्यार कीजिए और जिन बातों से नफरत करता है, उनसे नफरत कीजिए। अपने मन को ऐसी बातों से भरिए जो सच्ची, नेक, शुद्ध, चाहने लायक और सद्‌गुण की हैं। (फिलिप्पियों 4:8, 9) आप यूसुफ की तरह हो सकते हैं, जिसे यहोवा की बात मानने से आशीषें मिलीं।​—यशायाह 64:8.

26. अगले दो अध्यायों में किस बारे में बात की जाएगी?

26 चाहे आप विवाहित हों या अविवाहित, यहोवा चाहता है कि आप खुश रहें। अगले दो अध्यायों में ऐसे सिद्धांतों पर चर्चा की जाएगी, जिन्हें मानने से शादीशुदा ज़िंदगी खुशहाल बनायी जा सकती है।