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अध्याय 8

यहोवा चाहता है कि उसके लोग शुद्ध रहें

यहोवा चाहता है कि उसके लोग शुद्ध रहें

“जो खुद को शुद्ध बनाए रखता है उसे तू दिखाएगा कि तू शुद्ध है।”​—भजन 18:26.

1-3. (क) एक माँ अपने बच्चे को साफ-सुथरा क्यों रखती है? (ख) यहोवा क्यों चाहता है कि उसके सेवक शुद्ध रहें?

 जो माँ अपने बच्चे से प्यार करती है, वह उसकी साफ-सफाई का भी ध्यान रखती है। जैसे, उसे स्कूल भेजने से पहले नहलाती है और साफ कपड़े पहनाती है। वह जानती है कि साफ-सुथरा रहने से बच्चा तंदुरुस्त रहेगा और इससे माता-पिता की ही तारीफ होगी कि वे अपने बच्चे का अच्छा खयाल रखते हैं।

2 हमारा पिता यहोवा भी चाहता है कि हम साफ-सुथरे रहें और शुद्ध रहें। (भजन 18:26) वह जानता है कि साफ-सुथरे और शुद्ध रहने में ही हमारी भलाई है। इसके अलावा, इससे हमारे परमेश्‍वर यहोवा की महिमा भी होती है।​—यहेजकेल 36:22; 1 पतरस 2:12 पढ़िए।

3 साफ-सुथरे और शुद्ध रहने से हमारा भला कैसे होता है? शुद्ध रहने में क्या-क्या शामिल है? इन सवालों पर हम इस अध्याय में चर्चा करेंगे। ऐसा करने पर शायद हमें लगे कि शुद्धता के मामले में हमें भी कुछ सुधार करना चाहिए।

हमें शुद्ध क्यों रहना चाहिए?

4, 5. (क) हमें शुद्ध क्यों रहना चाहिए? (ख) सृष्टि से कैसे पता चलता है कि यहोवा साफ-सफाई को ज़रूरी समझता है?

4 शुद्ध रहने में खुद यहोवा हमारे लिए एक अच्छी मिसाल है। (लैव्यव्यवस्था 11:44, 45) हमें “उसकी मिसाल” पर चलने के लिए कहा गया है। यही हमारे शुद्ध रहने का सबसे मुख्य कारण है।​—इफिसियों 5:1.

5 साफ-सफाई को यहोवा कितना ज़रूरी समझता है, यह बात हम उसकी बनायी चीज़ों से बहुत अच्छी तरह जान सकते हैं। यहोवा ने प्राकृतिक चक्र इस तरह बनाए हैं कि पृथ्वी पर हवा और पानी लगातार शुद्ध होता रहता है। (यिर्मयाह 10:12) जब हम यह देखते हैं कि इंसान के प्रदूषण फैलाने के बावजूद पृथ्वी कैसे खुद-ब-खुद साफ होती रहती है, तो हम दंग रह जाते हैं। उदाहरण के लिए, यहोवा ने कुछ सूक्ष्म जीव बनाए हैं, जिन्हें सूक्ष्मदर्शी यंत्र से ही देखा जा सकता है। ये जीव ज़हरीले पदार्थों को ऐसे पदार्थों में बदल सकते हैं, जिनसे कोई हानि नहीं होती। साफ-सफाई की इस प्रक्रिया का जवाब नहीं! वैज्ञानिक भी इन सूक्ष्म-जीवों का इस्तेमाल करके प्रदूषण से होनेवाले नुकसान को ठीक करते हैं।​—रोमियों 1:20.

6, 7. मूसा के कानून से कैसे पता चलता है कि यहोवा की उपासना करनेवालों को शुद्ध रहना चाहिए?

6 यहोवा ने मूसा के ज़रिए इसराएलियों को जो कानून दिया था, उससे भी हम साफ-सफाई की अहमियत समझ सकते हैं। एक नियम यह था कि उन्हें अपनी शारीरिक स्वच्छता का ध्यान रखना था, तभी यहोवा उनकी उपासना स्वीकार करता। प्रायश्‍चित के दिन महायाजक को दो बार नहाना था। (लैव्यव्यवस्था 16:4, 23, 24) बाकी याजकों को बलिदान चढ़ाने से पहले अपने हाथ-पैर धोने थे। (निर्गमन 30:17-21; 2 इतिहास 4:6) शुद्धता के कुछ नियमों को मानना इतना ज़रूरी था कि इन नियमों को तोड़नेवालों को मौत की सज़ा दी जाती थी।​—लैव्यव्यवस्था 15:31; गिनती 19:17-20.

7 मूसा के कानून से हम यहोवा के स्तरों के बारे में बहुत कुछ सीख सकते हैं। उससे पता चलता है कि इसराएलियों को हर हाल में शुद्ध रहना था। यहोवा के स्तर बदले नहीं हैं। (मलाकी 3:6) आज भी वह यही चाहता है कि उसके लोग शुद्ध रहें।​—याकूब 1:27.

शुद्ध रहने में क्या-क्या शामिल है?

8. हमें किन मामलों में शुद्ध रहना चाहिए?

8 यहोवा के नज़रिए से देखें, तो शुद्धता का मतलब सिर्फ यह नहीं कि हम अपने तन को साफ रखें, साफ-सुथरे कपड़े पहनें और अपना घर साफ रखें, बल्कि हम जीवन के हर मामले में शुद्ध रहें। हमारी उपासना, हमारा चालचलन और हमारी सोच भी शुद्ध होनी चाहिए। जब हम इन सारे मामलों में शुद्ध रहेंगे, तो ही यहोवा हमें शुद्ध मानेगा।

9, 10. हम अपनी उपासना शुद्ध कैसे रख सकते हैं?

9 शुद्ध उपासना। हम किसी भी तरह से झूठे धर्म से नाता नहीं रख सकते। जब इसराएली बैबिलोन में बंदी बनाए गए थे, तो उनके आस-पास के लोग झूठे धर्म को मानते थे और वे अपनी उपासना के दौरान अनैतिक काम भी करते थे। यशायाह ने भविष्यवाणी की थी कि इसराएली एक दिन अपने देश लौट जाएँगे और वहाँ शुद्ध उपासना का इंतज़ाम दोबारा शुरू करेंगे। जब वे बैबिलोन छोड़नेवाले थे, तो यहोवा ने उनसे कहा, ‘वहाँ से निकल आओ, किसी भी अशुद्ध चीज़ को मत छूओ! उसमें से निकल आओ और खुद को शुद्ध बनाए रखो।’ इसराएलियों को ध्यान रखना था कि वे अपनी उपासना को बैबिलोन के झूठे धर्म की शिक्षाओं और रीति-रिवाज़ों से दूषित न करें।​—यशायाह 52:11.

10 आज सच्चे मसीही भी झूठे धर्म से कोई नाता नहीं रखते। (1 कुरिंथियों 10:21 पढ़िए।) दुनिया-भर में ऐसी परंपराएँ और रस्में मानी जाती हैं, जिनका ताल्लुक झूठी धार्मिक शिक्षाओं से है। उदाहरण के लिए, कई धर्मों में माना जाता है कि इंसान का सिर्फ शरीर मरता है, मगर उसके अंदर साए जैसी कोई चीज़ रहती है, जो अमर होती है। इस धारणा से जुड़े कई रीति-रिवाज़ भी हैं। (सभोपदेशक 9:5, 6, 10) मसीहियों को ये रिवाज़ नहीं मानने चाहिए। शायद हमारे परिवार के लोग हम पर ज़ोर डालें कि हम भी उनके साथ ये रिवाज़ मानें। लेकिन हम यहोवा की नज़र में शुद्ध रहना चाहते हैं, इसलिए हम ऐसा नहीं करते।​—प्रेषितों 5:29.

11. अपने चालचलन को शुद्ध रखने का क्या मतलब है?

11 शुद्ध चालचलन। हमें किसी भी तरह का अनैतिक काम नहीं करना चाहिए, तभी यहोवा की नज़र में हमारा चालचलन शुद्ध होगा। (इफिसियों 5:5 पढ़िए।) यहोवा ने हमें आज्ञा दी है कि हम ‘नाजायज़ यौन-संबंधों से दूर भागें।’ उसने साफ बताया है कि जो अनैतिक काम करते हैं और पश्‍चाताप नहीं करते, वे ‘उसके राज के वारिस नहीं होंगे।’​—1 कुरिंथियों 6:9, 10, 18; “नैतिक शुद्धता” देखिए।

12, 13. हमारे मन के विचार शुद्ध क्यों होने चाहिए?

12 शुद्ध विचार। हम जिस तरह की बातें सोचते हैं, अकसर उसी तरह के काम भी करते हैं। (मत्ती 5:28; 15:18, 19) अगर हमारे विचार अच्छे होंगे, तो हमारे काम भी अच्छे होंगे। यह सच है कि अपरिपूर्ण होने की वजह से कभी-कभी हमारे मन में गलत विचार पैदा होते हैं। लेकिन हमें तुरंत मन से वे बातें निकाल देनी चाहिए, वरना कुछ समय बाद हमारा मन बुरी बातों से दूषित हो जाएगा। यहाँ तक कि हम वे बुरे काम भी करने लगेंगे, जिनके बारे में हम मन में सोचते रहते हैं। तो यह कितना ज़रूरी है कि हम अपने मन को अच्छे विचारों से भरें। (फिलिप्पियों 4:8 पढ़िए।) हमें अनैतिकता और हिंसा से भरी बातों से मनोरंजन नहीं करना चाहिए। हमें बहुत सावधान रहना है कि हम कैसी किताबें पढ़ते हैं, कैसी फिल्में वगैरह देखते हैं और दूसरों से कैसी बातें करते हैं।​—भजन 19:8, 9.

13 जैसे हमने देखा, परमेश्‍वर के प्यार के लायक बने रहने के लिए हमें अपनी उपासना, अपना चालचलन और अपनी सोच शुद्ध रखनी चाहिए। पर साथ ही हमें शारीरिक स्वच्छता का भी ध्यान रखना चाहिए।

शारीरिक स्वच्छता में क्या शामिल है?

14. शारीरिक स्वच्छता ज़रूरी क्यों है?

14 अगर हम अपना शरीर और आस-पास का सबकुछ साफ रखते हैं, तो हमें फायदा होगा और अच्छा भी लगेगा। इससे दूसरों को भी फायदा होगा और उन्हें हमारे साथ रहना अच्छा लगेगा। लेकिन शारीरिक स्वच्छता का ध्यान रखने की सबसे खास वजह है कि इससे यहोवा की महिमा होती है। ज़रा सोचिए, अगर एक बच्चा हमेशा गंदा रहता है, तो क्या लोग यह नहीं कहेंगे कि उसके माँ-बाप को उसकी कोई परवाह नहीं? उसी तरह, अगर हम अपनी साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखेंगे, तो यहोवा के नाम की बदनामी हो सकती है। पौलुस ने कहा था, “हम किसी भी तरह से ठोकर खाने की कोई वजह नहीं देते ताकि हमारी सेवा में कोई दोष न पाया जाए। हर तरह से हम परमेश्‍वर के सेवक होने का सबूत देते हैं।”​—2 कुरिंथियों 6:3, 4.

यहोवा के लोगों को साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए

15, 16. हम स्वच्छता का ध्यान कैसे रख सकते हैं?

15 शरीर और कपड़े। तन को साफ-सुथरा रखना हमारी दिनचर्या का हिस्सा होना चाहिए। हमें हर रोज़ नहाना चाहिए। खाना पकाने और खाने से पहले साबुन से हाथ धोने चाहिए। शौचालय जाने और कोई गंदी चीज़ छू लेने के बाद तो ज़रूर साबुन से हाथ धोने चाहिए। शायद हाथ धोना हमें इतना ज़रूरी न लगे, लेकिन यह आदत हमारी जान बचा सकती है। इससे रोगाणु नहीं फैलते। अगर हमारे घर में शौचालय नहीं है, तो हम मल-विसर्जन का कोई और इंतज़ाम कर सकते हैं। जब इसराएलियों के यहाँ मल-निकास का इंतज़ाम नहीं था, तो वे घरों और पानी के सोतों से दूर जाकर शौच करते और उसे मिट्टी से ढाँप देते थे।​—व्यवस्थाविवरण 23:12, 13.

16 कपड़ों की बात लें, तो यह ज़रूरी नहीं कि हमारे कपड़े बहुत महँगे या नए फैशन के हों। मगर ये साफ-सुथरे होने चाहिए। (1 तीमुथियुस 2:9, 10 पढ़िए।) हमारा पहनावा ऐसा होना चाहिए, जिससे यहोवा की तारीफ हो।​—तीतुस 2:10.

17. हमें अपना घर-आँगन साफ क्यों रखना चाहिए?

17 घर-आँगन। हमारा घर चाहे जैसा भी हो, उसे साफ-सुथरा रखना चाहिए। अगर हमारे पास कार, स्कूटर, बाइक या कोई और गाड़ी है, तो उसे भी साफ रखना चाहिए, खासकर तब जब हम सभाओं या प्रचार के लिए जाते हैं। हम दूसरों को यह संदेश देते हैं कि बहुत जल्द यह धरती खूबसूरत और साफ-सुथरी हो जाएगी। (लूका 23:43; प्रकाशितवाक्य 11:18) अगर हम अपना घर-आँगन साफ रखें, तो यह ज़ाहिर होगा कि हम अभी से एक साफ-सुथरी नयी दुनिया में जीने की तैयारी कर रहे हैं।

18. हमें अपनी उपासना की जगह साफ क्यों रखनी चाहिए?

18 उपासना की जगह। हमें अपनी उपासना की जगह भी साफ रखनी चाहिए, जैसे राज-घर और सम्मेलन की जगह। इससे पता चलता है कि साफ-सफाई हमारे लिए बहुत मायने रखती है। जब लोग पहली बार राज-घर आते हैं, तो सबसे पहले उनका ध्यान वहाँ की साफ-सफाई पर जाता है। इससे यहोवा की महिमा होती है। हम सब मंडली का भाग हैं, इसलिए हम सबके पास मौका है कि हम अपने राज-घर की साफ-सफाई और रख-रखाव में हाथ बँटाएँ।​—2 इतिहास 34:10.

बुरी आदतों से छुटकारा पाइए

19. हमें किन चीज़ों की लत में नहीं पड़ना चाहिए?

19 बाइबल में हर बुरी आदत का ज़िक्र नहीं किया गया है। मगर इसमें दिए सिद्धांतों पर गौर करने से हम जान सकते हैं कि यहोवा की नज़र में कौन-सी बातें बुरी हैं। परमेश्‍वर के दोस्त सिगरेट, शराब और नशीली दवाओं जैसी चीज़ों की लत में नहीं पड़ते, क्योंकि वे जीवन की बहुत कदर करते हैं। ऐसी आदतें हमें वक्‍त से पहले ही मौत के मुँह में पहुँचा सकती हैं और हमारी और हमारे इर्द-गिर्द रहनेवालों की सेहत को नुकसान पहुँचा सकती हैं। कई लोग सिर्फ इसलिए इन बुरी आदतों को छोड़ने की कोशिश करते हैं कि उन्हें कोई बीमारी न लगे। लेकिन इन आदतों को छोड़ने की हमारी वजह कुछ और ही है। हम यहोवा के दोस्त बनना चाहते हैं और उससे प्यार करते हैं। एक जवान लड़की कहती है, “यहोवा की मदद से मैंने अपनी बुरी लतों से छुटकारा पा लिया और अब मैं एक साफ-सुथरी ज़िंदगी जीती हूँ। . . . शायद मैं अपने बलबूते इतने सारे बदलाव कभी नहीं कर पाती।” आइए, हम बाइबल के पाँच सिद्धांतों पर गौर करें, जिनकी मदद से एक इंसान बुरी लत से छुटकारा पा सकता है।

20, 21. हमें कैसी आदतें नहीं अपनानी चाहिए?

20 “प्यारे भाइयो, जब हमसे ये वादे किए गए हैं तो आओ हम तन और मन की हर गंदगी को दूर करके खुद को शुद्ध करें और परमेश्‍वर का डर मानते हुए पूरी हद तक पवित्रता हासिल करें।” (2 कुरिंथियों 7:1) यहोवा चाहता है कि हम ऐसी चीज़ों की आदत न लगाएँ, जिससे हमारा तन या मन गंदा हो सकता है।

21 हमें अपने “तन और मन को हर गंदगी” से दूर क्यों रखना चाहिए, इसकी एक बड़ी वजह 2 कुरिंथियों 6:17, 18 में बतायी गयी है। इन आयतों में यहोवा हमसे कहता है, “अशुद्ध चीज़ को छूना बंद करो।” फिर वह हमसे वादा करता है, ‘मैं तुम्हें अपने पास ले लूँगा। मैं तुम्हारा पिता बनूँगा और तुम मेरे बेटे-बेटियाँ बनोगे।’ जब हम हर तरह की अशुद्ध चीज़ से दूर रहेंगे, तभी यहोवा एक पिता की तरह हमसे प्यार करेगा।

22-25. बाइबल के किन सिद्धांतों को मानने से हम बुरी आदतें नहीं अपनाएँगे?

22 “तुम अपने परमेश्‍वर यहोवा से अपने पूरे दिल, अपनी पूरी जान और अपने पूरे दिमाग से प्यार करना।” (मत्ती 22:37) यही सबसे बड़ी आज्ञा है। (मत्ती 22:38) हमें यहोवा से दिलो-जान से प्यार करना चाहिए। कुछ आदतें इतनी नुकसानदेह होती हैं कि ये एक इंसान की जान ले सकती हैं या फिर उसके मस्तिष्क पर बुरा असर कर सकती हैं। अगर हम ऐसी आदतों के गुलाम हैं, तो हम यहोवा से प्यार कैसे कर सकते हैं? जीवन परमेश्‍वर की देन है, हमें इसकी कदर करनी चाहिए।

23 ‘यहोवा सबको जीवन और साँसें और सबकुछ देता है।’ (प्रेषितों 17:24, 25) अगर आपका दोस्त आपको एक बहुत अच्छा तोहफा देता है, तो क्या आप उसे फेंक देंगे या तोड़-फोड़ देंगे? आप बेशक ऐसा नहीं करेंगे। जीवन भी यहोवा का दिया एक बेशकीमती तोहफा है। हम इस तोहफे के लिए दिल से एहसानमंद हैं। हमें इस तरह जीना चाहिए, जिससे यहोवा की महिमा हो।​—भजन 36:9.

24 “तुम अपने पड़ोसी से वैसे ही प्यार करना जैसे तुम खुद से करते हो।” (मत्ती 22:39) बुरी आदतें सिर्फ हमें नहीं बल्कि हमारे आस-पास के लोगों को भी नुकसान पहुँचाती हैं, खासकर हमारे परिवारवालों को, जिनसे हम बहुत प्यार करते हैं। जैसे, अगर कोई सिगरेट पीए, तो उसके धुएँ से उसके घर के लोगों को भी बड़ी-बड़ी बीमारियाँ हो सकती हैं। अगर हम सचमुच दूसरों से प्यार करते हैं, तो बुरी आदतें छोड़ देंगे।​—1 यूहन्‍ना 4:20, 21.

25 “उन्हें याद दिलाता रह कि सरकारों और अधिकारियों के अधीन रहें और उनकी आज्ञा मानें।” (तीतुस 3:1) कई देशों में यह कानून है कि लोग नशीली चीज़ें न तो अपने पास रखें, न ही उनका सेवन करें। हमें इस तरह के कानून मानने चाहिए, क्योंकि यहोवा की आज्ञा है कि हम सरकारों के अधीन रहें।​—रोमियों 13:1.

हमारे शुद्ध चालचलन से यहोवा की महिमा होती है

26. (क) यहोवा के दोस्त बनने के लिए हमें क्या करना होगा? (ख) हमें परमेश्‍वर की नज़र में शुद्ध रहने की पुरज़ोर कोशिश क्यों करनी चाहिए?

26 यहोवा के दोस्त बनने के लिए शायद हमें शुद्धता के मामले में कुछ बदलाव करने पड़ें। इसके लिए हमें फौरन कदम उठाना चाहिए। बुरी आदतें छोड़ना आसान नहीं होता, मगर हम इन्हें छोड़ सकते हैं। यहोवा ने वादा किया है कि वह हमारी मदद करेगा। वह हममें से हरेक से कहता है, “मैं ही तेरा परमेश्‍वर यहोवा हूँ, जो तुझे तेरे भले के लिए सिखाता हूँ और जिस राह पर तुझे चलना चाहिए उसी पर ले चलता हूँ।” (यशायाह 48:17) जब हम शुद्ध रहने की पुरज़ोर कोशिश करते हैं, तो हम यकीन रख सकते हैं कि हम अपने परमेश्‍वर की महिमा कर रहे हैं।