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अध्याय 12

ऐसी बोली बोलिए जो दूसरों की हिम्मत बँधाए

ऐसी बोली बोलिए जो दूसरों की हिम्मत बँधाए

‘कोई बुरी बात तुम्हारे मुँह से न निकले, मगर सिर्फ अच्छी बात निकले जो हिम्मत बँधाए।’​—इफिसियों 4:29.

1-3. (क) यहोवा ने हमें कौन-सा तोहफा दिया है? उस तोहफे का हमसे गलत इस्तेमाल कैसे हो सकता है? (ख) हमें ज़बान का इस्तेमाल कैसे करना चाहिए?

 एक पिता अपने बेटे को तोहफा देना चाहता है। वह उसके लिए एक नयी साइकिल खरीदकर लाया है। अपने बेटे को यह तोहफा देकर उसे बड़ी खुशी होती है। पर ज़रा सोचिए, अगर वह लड़का अंधाधुंध साइकिल चलाए और किसी को घायल कर दे, तो पिता को कैसा लगेगा?

2 हमारे पिता यहोवा ने भी हमें कई ‘अच्छे तोहफे और उत्तम देन’ दिए हैं। (याकूब 1:17) इनमें से एक है, बात करने की हमारी काबिलीयत। हम जो सोचते हैं और जो महसूस करते हैं, वह हम दूसरों को बता पाते हैं। हम उनसे ऐसी बातें कह पाते हैं, जिससे उन्हें अच्छा लगे। लेकिन यह भी हो सकता है कि हम कुछ ऐसा कह बैठें, जिससे उन्हें दुख हो या नुकसान पहुँचे।

3 हमारी बातों का दूसरों पर गहरा असर हो सकता है, इसलिए यहोवा हमें इस काबिलीयत का सही इस्तेमाल करना सिखाता है। वह हमसे कहता है, “कोई बुरी बात तुम्हारे मुँह से न निकले, मगर सिर्फ अच्छी बात निकले जो ज़रूरत के हिसाब से हिम्मत बँधाए ताकि सुननेवालों को फायदा हो।” (इफिसियों 4:29) आइए देखें कि हम अपनी ज़बान का अच्छा इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं, ताकि परमेश्‍वर हमसे खुश हो और हमारी बातों से दूसरों की हिम्मत बँधे।

अपनी ज़बान पर लगाम क्यों रखें?

4, 5. बाइबल में दिए नीतिवचनों से हम बोली के बारे में क्या सीखते हैं?

4 शब्दों में काफी ताकत होती है, इसलिए हमें ध्यान देना चाहिए कि हम किस तरह की बातें करते हैं और कैसे बात करते हैं। नीतिवचन 15:4 में लिखा है, “शांति देनेवाली ज़बान जीवन का पेड़ है, मगर टेढ़ी बातें मन को कुचल देती हैं।” जैसे एक हरे-भरे पेड़ की छाया से हमें ठंडक मिलती है, वैसे ही हमारी मीठी बोली दूसरों के मन को ठंडक पहुँचा सकती है। वहीं अगर हम कड़वे शब्द बोलें, तो एक व्यक्‍ति को ठेस लग सकती है।​—नीतिवचन 18:21.

मीठी बोली मन को ठंडक पहुँचाती है

5 नीतिवचन 12:18 में लिखा है, “बिना सोचे-समझे बोलना, तलवार से वार करना है।” कड़वी बातें दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुँचा सकती हैं, यहाँ तक कि रिश्‍ते भी तोड़ सकती हैं। शायद कभी आपसे भी किसी ने रुखाई से बात की हो, जिससे आपको बहुत दुख हुआ होगा। वहीं अगर कोई आपसे कोई अच्छी बातें कहता है, तो इसका आप पर अच्छा असर हो सकता है। यही बात नीतिवचन 12:18 में आगे कही गयी है, “बुद्धिमान की बातें मरहम का काम करती हैं।” किसी के दुखी मन को दिलासा देने के लिए हम कोई अच्छी बात कहें, तो उसका दर्द कम हो सकता है। अगर गलतफहमी की वजह से किसी से हमारी दोस्ती टूट गयी है, तो हम उससे प्यार से बात करके गलतफहमी दूर कर सकते हैं और दोबारा दोस्त बन सकते हैं। (नीतिवचन 16:24 पढ़िए।) हमें याद रखना है कि हमारी बातों का दूसरों पर असर पड़ता है, इसलिए हमें सोच-समझकर बात करनी चाहिए।

6. अपनी ज़बान पर लगाम लगाना मुश्‍किल क्यों हो सकता है?

6 हम सब अपरिपूर्ण हैं। यह एक और वजह है कि हमें अपनी बोली पर ध्यान देना चाहिए। “इंसान के मन का झुकाव बुराई की तरफ होता है” और यह बात हमारी बोली से साफ पता चल जाती है। (उत्पत्ति 8:21; लूका 6:45) अपनी ज़बान पर लगाम लगाना वाकई मुश्‍किल हो सकता है। (याकूब 3:2-4 पढ़िए।) फिर भी हमें अपनी बोली को सुधारने के लिए कोशिश करते रहना चाहिए।

7, 8. अपनी बोली पर ध्यान न देने से क्या हो सकता है?

7 हम यहोवा के सामने जवाबदेह हैं। यह भी एक वजह है कि हमें ध्यान देना चाहिए कि हम कैसी बातें बोलते हैं और किस तरह से बोलते हैं। याकूब 1:26 में लिखा है, “अगर कोई आदमी खुद को परमेश्‍वर की उपासना करनेवाला समझता है मगर अपनी ज़बान पर कसकर लगाम नहीं लगाता, तो वह अपने दिल को धोखा देता है और उसका उपासना करना बेकार है।” अगर हम इस बात का खयाल न रखें कि हम क्या बोलते हैं, तो यहोवा के साथ हमारा जो रिश्‍ता है, वह बिगड़ सकता है या फिर पूरी तरह खत्म हो सकता है।​—याकूब 3:8-10.

8 अब तक हमने कुछ कारण देखे कि हमें क्यों ध्यान देना चाहिए कि हम कैसी बातें बोलते हैं और किस तरह से बोलते हैं। अगर हम चाहते हैं कि हमारी बोली वैसी हो, जैसा यहोवा चाहता है, तो हमें यह जानना होगा कि किस तरह की बातें हमें नहीं करनी हैं।

ऐसी बोली जो हिम्मत तोड़ दे

9, 10. (क) आज कैसी बातें करना आम है? (ख) हमें अश्‍लील बातें क्यों नहीं करनी चाहिए?

9 गंदी और अश्‍लील बातें करना आज बहुत आम हो गया है। कई लोगों को लगता है कि जब तक वे कोई गंदी बात न कहें या गाली न दें, तब तक उनकी बातों में दम नहीं होगा। हास्य कार्यक्रमों में लोगों को हँसाने के लिए गंदे चुटकुले और घटिया बातें बोली जाती हैं। मगर प्रेषित पौलुस ने मसीहियों को सलाह दी, “तुम इन सब बातों को खुद से पूरी तरह दूर करो, जैसे क्रोध, गुस्सा, बुराई, गाली-गलौज और मुँह से अश्‍लील बातें कहना।” (कुलुस्सियों 3:8) उसने यह भी कहा कि मसीहियों के बीच ‘अश्‍लील मज़ाक का ज़िक्र तक’ नहीं होना चाहिए।​—इफिसियों 5:3, 4.

10 अश्‍लील बातों से यहोवा नफरत करता है और उसके लोग भी नफरत करते हैं। ऐसी बातें अशुद्ध होती हैं। बाइबल के मुताबिक “अशुद्धता” भी ‘शरीर के कामों’ में से एक है। (गलातियों 5:19-21) “अशुद्धता” में कई तरह की गंदी आदतें शामिल हैं। अगर एक व्यक्‍ति को एक अशुद्ध या गंदी आदत लग जाए, तो दूसरी गंदी आदत लगने में देर नहीं लगती। जो मसीही बहुत ही बेहूदा और अश्‍लील बातें करने लगता है और समझाने पर भी नहीं छोड़ता, वह मंडली का सदस्य नहीं रह सकता।​—2 कुरिंथियों 12:21; इफिसियों 4:19; “निर्लज्ज काम और अशुद्धता” देखिए।

11, 12. (क) किस तरह की गपशप नुकसान पहुँचाती है? (ख) हमें किसी को बदनाम क्यों नहीं करना चाहिए?

11 हमें ऐसी गपशप भी नहीं करनी चाहिए, जिससे नुकसान होता है। दूसरों का हाल-चाल जानना और अपने दोस्तों और परिवारवालों के बारे में दूसरों को बताना हमें अच्छा लगता है। पहली सदी में भी मसीही जानना चाहते थे कि उनके मसीही भाई-बहन कैसे हैं और क्या वे उनकी कुछ मदद कर सकते हैं। (इफिसियों 6:21, 22; कुलुस्सियों 4:8, 9) इस तरह की बातें करना अच्छी बात है, लेकिन दूसरों के बारे में बात करते-करते हम कब उनकी बुराई करने लग जाएँ, शायद हमें पता भी न चले। सुनी-सुनायी बातें करने से हम शायद दूसरों को ऐसी बातें बता दें, जो सच नहीं हैं या जिन्हें गुप्त रखा जाना चाहिए। अगर हम अपनी जीभ को काबू में न रखें, तो हम गपशप करते-करते दूसरों की बुराई करने लगेंगे या उन्हें बदनाम कर देंगे। फरीसियों ने यीशु को बदनाम करने के लिए उस पर झूठे इलज़ाम लगाए। (मत्ती 9:32-34; 12:22-24) किसी को बदनाम करने से उसकी इज़्ज़त मिट्टी में मिल सकती है, लड़ाई-झगड़े हो सकते हैं, ठेस पहुँच सकती है और दोस्ती भी टूट सकती है।​—नीतिवचन 26:20.

12 यहोवा चाहता है कि हम ऐसी बातें करें, जिन्हें सुनकर दूसरों को अच्छा लगे, न कि ऐसी बातें जिससे दोस्त भी दुश्‍मन बन जाएँ। यहोवा उन लोगों से नफरत करता है, जो “भाइयों में फूट” डालते हैं। (नीतिवचन 6:16-19) दूसरों को बदनाम करनेवाला सबसे पहला व्यक्‍ति था, शैतान। उसने परमेश्‍वर को बदनाम किया। (प्रकाशितवाक्य 12:9, 10) आज के ज़माने में एक-दूसरे के बारे में झूठ बोलना बहुत आम हो गया है। पर हम मसीहियों को ऐसा नहीं करना चाहिए। (गलातियों 5:19-21) हमें सोच-समझकर बोलना चाहिए। किसी के बारे में दूसरों को कुछ बताने से पहले ज़रा सोचिए, ‘मैं जो बताने जा रहा हूँ, क्या वह सच है? क्या यह बात बताना ठीक रहेगा? मैं जिसके बारे में बता रहा हूँ, अगर उसे पता चले, तो उसे कैसा लगेगा? अगर कोई मेरे बारे में दूसरों को ऐसी बातें बताए, तो मुझे कैसा लगेगा?’​—1 थिस्सलुनीकियों 4:11 पढ़िए।

13, 14. (क) दूसरों के साथ गाली-गलौज करने से उन पर कैसा असर हो सकता है? (ख) मसीहियों को अपमानजनक शब्द क्यों नहीं कहने चाहिए?

13 हम सबके मुँह से कभी-न-कभी ऐसी बातें निकल जाती हैं, जिसके लिए हमें बाद में अफसोस होता है। पर हमारी यह आदत नहीं होनी चाहिए कि हम जब देखो तब दूसरों की नुक्‍ताचीनी कर रहे हैं या उनके बारे में बुरी बातें कह रहे हैं। हमें कभी-भी गाली-गलौज नहीं करना चाहिए। पौलुस ने कहा, ‘हर तरह की जलन-कुढ़न, गुस्सा, क्रोध, चीखना-चिल्लाना और गाली-गलौज को खुद से दूर करो।’ (इफिसियों 4:31) कुछ बाइबलों में “गाली-गलौज” की जगह “बुरी बातें,” “चोट पहुँचानेवाली बातें” और “अपमानजनक बातें” लिखा गया है। हमें दूसरों से कभी ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिए, क्योंकि इससे उनकी गरिमा छिन जाती है और वे खुद को बिलकुल बेकार समझने लगते हैं। खासकर बच्चों से हमें गाली-गलौज नहीं करना चाहिए, वरना हम उनके फूल जैसे नाज़ुक मन को कुचल रहे होंगे।​—कुलुस्सियों 3:21.

14 कुछ लोगों की आदत होती है कि वे दूसरों को नीचा दिखाने के लिए जानबूझकर अपमानजनक शब्द कहते हैं। पर बाइबल चेतावनी देती है कि मसीहियों में यह आदत नहीं होनी चाहिए। किसी मसीही को अपनी पत्नी से या पति से या फिर बच्चों से ऐसे अपमानजनक शब्द नहीं कहने चाहिए। ऐसा करना बहुत ही दुख की बात होगी। यह एक गंभीर मामला है, क्योंकि जो मसीही इस तरह की आदत नहीं छोड़ता, उसका मंडली से बहिष्कार किया जा सकता है। (1 कुरिंथियों 5:11-13; 6:9, 10) जैसे हमने देखा, जो बातें अश्‍लील हैं, सच्ची नहीं हैं और दूसरों को नुकसान पहुँचा सकती हैं, वे हमें नहीं करनी चाहिए। इससे यहोवा और दूसरों के साथ हमारा जो रिश्‍ता है, वह बिगड़ सकता है।

ऐसी बोली बोलिए जो हिम्मत बँधाए

15. किस तरह की बातें दूसरों की हिम्मत बँधा सकती हैं?

15 अब आइए देखें कि किस तरह की बोली यहोवा को भाती है। बाइबल में यह तो नहीं लिखा है कि हमें कौन-से शब्द बोलने चाहिए और कौन-से नहीं, लेकिन यह ज़रूर लिखा है कि हमें ‘सिर्फ अच्छी बातें’ करनी चाहिए ताकि दूसरों की ‘हिम्मत बँधे।’ (इफिसियों 4:29) जो बातें भली और सच्ची होती हैं और जिनमें अश्‍लीलता नहीं होती, उनसे हिम्मत बँधती है। यहोवा चाहता है कि हमारी बोली से हमेशा दूसरों का भला हो। पर यह आसान नहीं होता। बुरी बातें तो झट-से मुँह पर आ जाती हैं, लेकिन अच्छी बातें कहने के लिए बहुत सोचना पड़ता है। (तीतुस 2:8) तो आइए देखें कि हम किस तरह अच्छी बातें कह सकते हैं।

16, 17. (क) हमें दूसरों की तारीफ क्यों करनी चाहिए? (ख) हम किन लोगों की तारीफ कर सकते हैं?

16 अच्छी बातें कहने का एक तरीका है, दूसरों की तारीफ करना। यहोवा और यीशु दिल खोलकर दूसरों की तारीफ करते हैं। (मत्ती 3:17; 25:19-23; यूहन्‍ना 1:47) दूसरों की तारीफ करने के लिए हमें उनकी अच्छाइयों पर गौर करना चाहिए और उनमें रुचि लेनी चाहिए। नीतिवचन 15:23 कहता है, “सही वक्‍त पर कही गयी बात क्या खूब होती है!” जब कोई हमारी कड़ी मेहनत की या हमारे किसी काम की सराहना करता है, तो हमें बहुत अच्छा लगता है।​—मत्ती 7:12 पढ़िए;तारीफ करना और हिम्मत बँधाना” देखिए।

17 अगर आप लोगों की अच्छाइयों पर गौर करने की आदत बना लें, तो आप दिल से उनकी तारीफ कर पाएँगे। हो सकता है कि एक भाई अच्छा भाषण देता है या अच्छे जवाब देता है, तो इसका मतलब है कि वह इसके लिए अच्छी तैयारी करता होगा। या एक जवान भाई या बहन स्कूल में कई मुश्‍किलों का सामना करते हुए भी यहोवा का वफादार है या फिर एक भाई बुज़ुर्ग होने के बावजूद कभी प्रचार करना नहीं छोड़ता। इस तरह के भाई-बहनों की प्रशंसा करने से उनकी हिम्मत बँध सकती है। वैसे ही परिवार के लोगों को भी एक-दूसरे की तारीफ करनी चाहिए। पति को अपनी पत्नी से कहना चाहिए कि वह उससे प्यार करता है और उसकी मेहनत की बहुत कदर करता है। (नीतिवचन 31:10, 28) जैसे पौधों को सूरज की रौशनी और पानी की ज़रूरत होती है, वैसे ही इंसानों की यह ज़रूरत होती है कि कोई उनकी तारीफ करे। खासकर बच्चों को शाबाशी देना बहुत ज़रूरी है। उनके अच्छे गुणों की और उनकी मेहनत की तारीफ कीजिए। इससे उनकी हिम्मत बँधेगी, उनका आत्म-विश्‍वास बढ़ेगा और अच्छे काम करने के लिए वे और भी मेहनत करेंगे।

अच्छी बातें कहने और सही तरीके से बोलने से दूसरों की हिम्मत बँध सकती है

18, 19. हमें दूसरों की हिम्मत क्यों बँधानी चाहिए? यह हम कैसे कर सकते हैं?

18 दूसरों की हिम्मत बँधाना और उन्हें दिलासा देना अच्छी बातें करने का एक और तरीका है। इस मामले में भी यहोवा हमारे लिए एक मिसाल है। वह “दीन” और “कुचले” हुए लोगों की बहुत परवाह करता है। (यशायाह 57:15) वह चाहता है कि हम “एक-दूसरे को मज़बूत करते” रहें और “जो मायूस हैं उन्हें अपनी बातों से तसल्ली” देते रहें। (1 थिस्सलुनीकियों 5:11, 14) जब हम ऐसा करते हैं, तो यहोवा ध्यान देता है और हमारी कदर करता है।

19 अगर आपकी मंडली का कोई भाई या बहन निराश या मायूस है, तो आप उसकी हिम्मत कैसे बँधा सकते हैं? शायद आप उसकी समस्या सुलझा न पाएँ, लेकिन उसे यह एहसास दिला सकते हैं कि आपको उसकी फिक्र है। उसके साथ थोड़ा वक्‍त बिताकर उससे बात कर सकते हैं। उसकी हिम्मत बँधाने के लिए बाइबल से कोई आयत पढ़कर सुना सकते हैं और प्रार्थना भी कर सकते हैं। (भजन 34:18; मत्ती 10:29-31) उसे भरोसा दिलाइए कि मंडली के लोग उसके भाई-बहन हैं और उससे प्यार करते हैं। (1 कुरिंथियों 12:12-26; याकूब 5:14, 15) उससे हमदर्दी जताइए और जो भी कहिए दिल से कहिए।​—नीतिवचन 12:25 पढ़िए।

20, 21. किस तरह की सलाह मानना आसान होता है?

20 अपनी बोली से दूसरों को फायदा पहुँचाने का एक और तरीका है, नसीहत देना। अपरिपूर्ण होने की वजह से हम सबको समय-समय पर सलाह की ज़रूरत पड़ती है। नीतिवचन 19:20 में लिखा है, “सलाह को सुन और शिक्षा कबूल कर, ताकि तू आगे चलकर बुद्धिमान बने।” यह मत सोचिए कि सलाह या नसीहत देने का काम सिर्फ प्राचीनों का है। माता-पिता अपने बच्चों को समझा सकते हैं। (इफिसियों 6:4) बहनें भी एक-दूसरे को नसीहत दे सकती हैं। (तीतुस 2:3-5) हम अपने भाई-बहनों से प्यार करते हैं, इसलिए उन्हें सलाह देते वक्‍त हमें ध्यान रखना है कि उन्हें बुरा न लगे। हम सलाह किस तरह दे सकते हैं?

21 शायद आपको याद हो कि कभी आपको भी किसी ने कोई अच्छी सलाह दी थी और वह भी इस तरह कि आप उसे मान पाए थे। आप उसकी सलाह क्यों मान पाए थे? आप शायद महसूस कर पाए कि उस व्यक्‍ति को सच में आपकी फिक्र थी या हो सकता है कि उसने आपको बहुत प्यार से समझाया। (कुलुस्सियों 4:6) शायद उसकी सलाह बाइबल से थी। (2 तीमुथियुस 3:16) हम दूसरों को जो भी नसीहत देते हैं वह बाइबल से होनी चाहिए, फिर चाहे हम कोई आयत बताएँ या नहीं। किसी को भी अपनी राय दूसरों पर नहीं थोपनी चाहिए और न ही अपने विचारों को सही ठहराने के लिए आयतों का गलत इस्तेमाल करना चाहिए। आपको जिस तरह सलाह दी गयी थी, उसे याद रखने से आप भी दूसरों को अच्छी तरह सलाह दे पाएँगे।

22. आप बोलने की काबिलीयत का इस्तेमाल कैसे करना चाहते हैं?

22 बात करने की काबिलीयत हमें परमेश्‍वर से एक तोहफे के रूप में मिली है। हमें परमेश्‍वर से प्यार है, इसलिए हमें इस काबिलीयत का सही इस्तेमाल करना चाहिए। हमें याद रखना है कि हमारी बातों से किसी की हिम्मत बँध सकती है या टूट सकती है। आइए हम पूरी कोशिश करें कि हमारी बोली ऐसी हो, जिससे दूसरों का हौसला बढ़े।