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अध्याय 11

शादी के बाद

शादी के बाद

“प्यार कभी नहीं मिटता।”​—1 कुरिंथियों 13:8.

1, 2. क्या पति-पत्नी के बीच समस्याएँ होने का यह मतलब है कि वे अपना रिश्‍ता निभाने में नाकाम हो गए? समझाइए।

 यहोवा ने शादी का बंधन एक तोहफे के रूप में दिया है। शादी से एक इंसान की ज़िंदगी में कई खुशियाँ आ सकती हैं। लेकिन कभी-कभी समस्याएँ भी आती हैं। ऐसा लग सकता है कि समस्याएँ कभी हल नहीं होंगी। इससे पति-पत्नी के बीच दूरियाँ आ सकती हैं और उनका प्यार ठंडा पड़ सकता है।

2 अगर हमारी शादीशुदा ज़िंदगी में समय-समय पर मुश्‍किलें आती हैं, तो हमें परेशान नहीं होना चाहिए। हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हम यह रिश्‍ता निभाने में नाकाम हो गए। कुछ ऐसे पति-पत्नी हैं जिनका रिश्‍ता टूटने की कगार पर था, मगर उन्होंने अपना रिश्‍ता सुधारा और अपनी शादी का बंधन मज़बूत किया। वे यह कैसे कर पाए?

परमेश्‍वर के और अपने साथी के करीब आइए

3, 4. कुछ पति-पत्नियों के रिश्‍ते में दूरियाँ कैसे आ जाती हैं?

3 शादी ऐसे दो लोगों को एक बंधन में बाँधती है, जो एक-दूसरे से काफी अलग होते हैं। उनकी पसंद-नापसंद, उनकी सोच और तौर-तरीके भी काफी अलग होते हैं। कुछ पति-पत्नियों की भाषा और संस्कृति भी एक-दूसरे से अलग होती है। दोनों को ही एक-दूसरे को जानने और समझने की कोशिश करनी पड़ती है और इसमें वक्‍त लगता है।

4 शादी के बाद जैसे-जैसे वक्‍त गुज़रता है, पति-पत्नी शायद अपने-अपने काम में इतने व्यस्त हो जाएँ कि उनके रिश्‍ते में दूरियाँ आ सकती हैं। कई बार ऐसा भी लग सकता है कि वे दोनों अलग-अलग ज़िंदगी जी रहे हैं। वे एक-दूसरे के करीब रहें, इसके लिए क्या बात उनकी मदद कर सकती है?

बाइबल की सलाह मानने से ही शादीशुदा ज़िंदगी खुशहाल होगी

5. (क) अपने साथी के करीब आने में क्या बात एक मसीही की मदद कर सकती है? (ख) इब्रानियों 13:4 के मुताबिक हमें शादी के बंधन के लिए कैसा नज़रिया रखना चाहिए?

5 यहोवा की सलाह एक पति-पत्नी की मदद कर सकती है। उसे मानने से वे यहोवा के और एक-दूसरे के भी करीब आ सकते हैं। (भजन 25:4; यशायाह 48:17, 18) परमेश्‍वर हमसे कहता है, “शादी सब लोगों में आदर की बात समझी जाए।” (इब्रानियों 13:4) किसी चीज़ को आदर की बात समझने का मतलब है, उसे अनमोल मानना, उसकी हिफाज़त करना और उसे मामूली नहीं समझना। यहोवा चाहता है कि हम शादी के बंधन के लिए यही नज़रिया रखें।

यहोवा के लिए प्यार शादी का बंधन मज़बूत करेगा

6. मत्ती 19:4-6 के मुताबिक शादी के बारे में यहोवा का नज़रिया क्या है?

6 पहले पुरुष और स्त्री को यहोवा ने ही शादी के बंधन में बाँधा था। यहोवा के बेटे यीशु ने कहा, “क्या तुमने नहीं पढ़ा कि जिसने उनकी सृष्टि की थी, उसने शुरूआत से ही उन्हें नर और नारी बनाया था और कहा था, ‘इस वजह से आदमी अपने माता-पिता को छोड़ देगा और अपनी पत्नी से जुड़ा रहेगा और वे दोनों एक तन होंगे’? तो वे अब दो नहीं रहे बल्कि एक तन हैं। इसलिए जिसे परमेश्‍वर ने एक बंधन में बाँधा है, उसे कोई इंसान अलग न करे।” (मत्ती 19:4-6) यहोवा ने शुरू से ही चाहा है कि शादी एक अटूट बंधन हो। वह चाहता है कि परिवार के सब लोग मिलकर खुशी से रहें।

7. पति-पत्नी अपने रिश्‍ते को टूटने से कैसे बचा सकते हैं?

7 आज शादीशुदा ज़िंदगी में तनाव और मुश्‍किलें पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ गयी हैं। कभी-कभी पति-पत्नी के बीच तनाव इतना बढ़ जाता है कि उन्हें लगता है कि अब वे साथ नहीं रह सकते और वे रिश्‍ता तोड़ लेते हैं। लेकिन अगर पति-पत्नी शादी के बारे में यहोवा के जैसा नज़रिया रखें, तो वे अपने रिश्‍ते को टूटने से बचा सकते हैं।​—1 यूहन्‍ना 5:3.

8, 9. (क) पति-पत्नी को यहोवा की सलाह कैसे वक्‍त में भी माननी चाहिए? (ख) अगर वे शादी के बंधन को अनमोल समझते हैं, तो वे क्या करेंगे?

8 यहोवा की सलाह हमेशा हमारे भले के लिए होती है। जैसा हमने देखा, उसने यह सलाह दी है, “शादी सब लोगों में आदर की बात समझी जाए।” (इब्रानियों 13:4; सभोपदेशक 5:4) यहोवा की बात मानना पति-पत्नी को कभी-कभी शायद मुश्‍किल लगे। फिर भी अगर वे मानें, तो उनका भला ही होगा।​—1 थिस्सलुनीकियों 1:3; इब्रानियों 6:10.

9 अगर हम अपने शादी के बंधन को अनमोल समझेंगे, तो हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे, जिससे यह रिश्‍ता बिगड़ जाए। इसके बजाय हम यह रिश्‍ता दिन-ब-दिन मज़बूत करने की कोशिश करेंगे। यह हम कैसे कर सकते हैं?

अपनी बोली और व्यवहार से इस रिश्‍ते का मान रखिए

10, 11. (क) कुछ पति-पत्नियों के बीच कौन-सी गंभीर समस्या है? (ख) यह ध्यान देना क्यों ज़रूरी है कि हम अपने साथी से कैसे बात करते हैं?

10 कई बार एक व्यक्‍ति जाने-अनजाने अपने साथी का दिल दुखाता है। वह कभी कुछ ऐसा कह देता है या कर देता है, जिससे उसके साथी को बहुत दुख होता है। हम मसीही जानते हैं कि हमें अपने साथी पर कभी हाथ नहीं उठाना चाहिए, उसे मारना-पीटना नहीं चाहिए और शायद हम ऐसा कभी करें भी न। लेकिन कई बार हो सकता है कि हम अपने शब्दों से उसे ठेस पहुँचाएँ। ये तीर की तरह चुभ सकते हैं। एक औरत ने कहा, ‘मेरा पति मुझे मारता नहीं, लेकिन शब्दों के बाण चलाता है। मेरे घाव ऐसे नहीं जो दिखायी दें, लेकिन उसकी बातों से मेरा दिल छलनी हो गया है। दिन-रात वह मुझे जली-कटी सुनाता है। वह जब देखो कहता है, “तंग आ गया हूँ मैं तुझसे!” “तू किसी काम की नहीं।”’ वहीं एक आदमी भी बताता है कि उसकी पत्नी उसे हमेशा नीचा दिखाती है। वह कहता है, “वह मुझे ऐसी बातें सुनाती है, जो मैं चार लोगों के बीच कह भी नहीं सकता, इसलिए मैं चाहकर भी उससे बात नहीं कर पाता और देर तक काम करता रहता हूँ। नौकरी की जगह मैं ज़्यादा सुकून से रहता हूँ।” अपने साथी को गालियाँ देना और तीखे शब्द बोलना आज आम बात हो गयी है।

11 शब्दों के तीर से जो घाव होते हैं, उन्हें भरने में काफी लंबा समय लग सकता है। यहोवा बिलकुल नहीं चाहता कि पति-पत्नी एक-दूसरे से ऐसी बातें कहें। लेकिन कई बार हो सकता है कि आप अनजाने में ही अपने साथी को ठेस पहुँचा दें। आपको शायद लगे कि आप अपने साथी से हमेशा प्यार से बात करते हैं, लेकिन क्या आपके साथी को भी आपके बारे में ऐसा लगता है? अगर आपकी कुछ बातें उसे चुभती हैं, तो क्या आप अपने अंदर बदलाव करेंगे?​—गलातियों 5:15; इफिसियों 4:31 पढ़िए।

12. एक पति या पत्नी का यहोवा के साथ रिश्‍ता कैसे बिगड़ सकता है?

12 यहोवा ध्यान देता है कि आप अपने साथी से कैसे बात करते हैं। चाहे आप अकेले में उससे बात कर रहे हों या लोगों के बीच, यहोवा देखता है। (1 पतरस 3:7 पढ़िए।) याद कीजिए कि याकूब 1:26 में क्या लिखा है, “अगर कोई आदमी खुद को परमेश्‍वर की उपासना करनेवाला समझता है मगर अपनी ज़बान पर कसकर लगाम नहीं लगाता, तो वह अपने दिल को धोखा देता है और उसका उपासना करना बेकार है।”

13. एक व्यक्‍ति के किस व्यवहार से उसके साथी को ठेस पहुँच सकती है?

13 ऐसे और भी कुछ मामले हैं, जिनमें पति-पत्नी को एक-दूसरे की भावनाओं का खयाल रखना चाहिए। जैसे, किसी पराए व्यक्‍ति के साथ ज़रूरत से ज़्यादा समय नहीं बिताना चाहिए। ज़रा सोचिए, अगर एक भाई किसी और बहन के साथ बहुत ज़्यादा समय बिताए, तो उसकी पत्नी को कैसा लगेगा? शायद भाई सिर्फ उस बहन के साथ प्रचार करे या किसी समस्या का हल करने में उसकी मदद करे। ये काम भले ही अपने आप में गलत नहीं हैं, मगर उसे सोचना चाहिए कि कहीं उसके व्यवहार से उसकी पत्नी को बुरा तो नहीं लग रहा। एक बहन कहती है, “जब मैं देखती हूँ कि मेरा पति मंडली की एक बहन का ज़रूरत-से-ज़्यादा खयाल रखता है, तो मेरे लिए यह सहना बहुत मुश्‍किल होता है। मैं खुद को एकदम बेकार समझने लगती हूँ।”

14. (क) उत्पत्ति 2:24 से हम क्या सीखते हैं? (ख) हमें खुद से क्या पूछना चाहिए?

14 यह सच है कि अपने माता-पिता और मंडली के भाई-बहनों की मदद करना सभी मसीहियों का फर्ज़ है। लेकिन जब एक मसीही शादी कर लेता है, तो उसकी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी अपने साथी की तरफ बनती है। यहोवा ने कहा था कि पति “अपनी पत्नी से जुड़ा रहेगा।” (उत्पत्ति 2:24) एक मसीही के लिए उसके साथी की भावनाएँ बहुत मायने रखती हैं। खुद से पूछिए, ‘क्या मैं अपने पति/पत्नी को उतना समय और प्यार देती/देता हूँ, जितना मुझे देना चाहिए?’

15. शादीशुदा मसीहियों को किसी पराए के साथ ज़्यादा दोस्ती क्यों नहीं करनी चाहिए?

15 अगर एक शादीशुदा मसीही किसी पराए व्यक्‍ति से ज़्यादा दोस्ती करे, तो उसकी शादीशुदा ज़िंदगी में तनाव पैदा हो सकता है। हो सकता है कि उस मसीही को उस व्यक्‍ति से लगाव हो जाए और वह मन-ही-मन उसे चाहने लगे। (मत्ती 5:28) यह लगाव बढ़ सकता है और शायद वह कुछ ऐसा कर बैठे, जिससे उसकी शादी की सेज दूषित हो जाए।

“शादी की सेज दूषित न की जाए”

16. बाइबल में शादी के बारे में क्या आदेश दिया गया है?

16 ‘शादी आदर की बात समझी जाए,’ यह बताने के फौरन बाद बाइबल आदेश देती है, “शादी की सेज दूषित न की जाए क्योंकि परमेश्‍वर नाजायज़ यौन-संबंध रखनेवालों और व्यभिचारियों को सज़ा देगा।” (इब्रानियों 13:4) इस आयत में “शादी की सेज” पति-पत्नी के बीच होनेवाले लैंगिक संबंधों को दर्शाती है। (नीतिवचन 5:18) हमें लैंगिक संबंधों को पवित्र मानना चाहिए और इस रिश्‍ते को दूषित नहीं करना चाहिए। आइए देखें कि हम यह कैसे कर सकते हैं?

17. (क) कई लोग व्यभिचार के बारे में क्या सोचते हैं? (ख) इस बारे में मसीहियों का नज़रिया क्या होना चाहिए?

17 कुछ लोग सोचते हैं कि अपने साथी को छोड़ किसी पराए व्यक्‍ति के साथ संबंध रखना गलत नहीं है। लेकिन हमें ध्यान रखना है कि यह सोच हम पर असर न करे। यहोवा ने साफ बताया है कि वह लैंगिक अनैतिकता और व्यभिचार से नफरत करता है। (रोमियों 12:9 पढ़िए; इब्रानियों 10:31; 12:29) अगर हम अपने जीवन-साथी को छोड़ किसी और के साथ संबंध रखें, तो हम अपनी शादी की सेज दूषित कर रहे होंगे। इस तरह यहोवा के स्तरों को हलके में लेने से उसके साथ हमारा रिश्‍ता टूट जाएगा। यही वजह है कि हमें मन में किसी पराए व्यक्‍ति के बारे में गलत खयालों को पनपने नहीं देना चाहिए।​—अय्यूब 31:1.

18. (क) व्यभिचार करने और झूठे देवताओं को पूजने में क्या समानता थी? (ख) इसराएलियों के ज़माने में व्यभिचार के बारे में यहोवा का नज़रिया क्या था?

18 मूसा के कानून में इसराएलियों को बताया गया था कि व्यभिचार एक बहुत बड़ा पाप है। यह उतना ही बड़ा पाप है, जितना झूठे देवताओं को पूजना। इन दोनों पापों की सज़ा मौत थी। (लैव्यव्यवस्था 20:2, 10) व्यभिचार करने और झूठे देवताओं को पूजने में क्या समानता थी? जो इसराएली झूठे देवताओं को पूजता, वह यहोवा का वफादार रहने का वादा तोड़ देता। उसी तरह जो व्यभिचार करता, वह अपने साथी का वफादार रहने का वादा तोड़ देता। (निर्गमन 19:5, 6; व्यवस्थाविवरण 5:9; मलाकी 2:14 पढ़िए।) इससे हम जान सकते हैं कि इसराएलियों के ज़माने में व्यभिचार के बारे में यहोवा का नज़रिया क्या था। वह इसे बहुत बड़ा पाप समझता था।

19. किस बात को याद रखने से हम कभी व्यभिचार नहीं करेंगे?

19 क्या व्यभिचार के बारे में आज भी यहोवा यही सोचता है? हालाँकि आज मूसा का कानून लागू नहीं होता, मगर व्यभिचार के बारे में यहोवा की सोच अब भी वही है। जैसे हम झूठे देवताओं को पूजने की कभी सोच भी नहीं सकते, वैसे ही अपने साथी से बेवफाई करने का खयाल तक हमारे मन में नहीं आना चाहिए। (भजन 51:1, 4; कुलुस्सियों 3:5) जो मसीही व्यभिचार करता है, वह अपनी शादी के बंधन का और अपने परमेश्‍वर यहोवा का भी अपमान करता है।​—“तलाक देना या अलग होना” देखिए।

शादी का बंधन मज़बूत कैसे करें?

20. बुद्धि से काम लेने से शादीशुदा ज़िंदगी कैसी होगी?

20 आप अपनी शादी का बंधन मज़बूत कैसे कर सकते हैं? परमेश्‍वर का वचन कहता है, ‘घर बुद्धि से बनता है और पैनी समझ से कायम रहता है।’ (नीतिवचन 24:3) एक घर या तो सूना-सूना हो सकता है या फिर आरामदायक और सुकून देनेवाला। पति-पत्नी का रिश्‍ता भी कुछ ऐसा ही है। यह रिश्‍ता या तो सूना-सूना हो सकता है या फिर दोनों को खुशी, सुकून और सुरक्षा का एहसास दिलानेवाला। जो पति-पत्नी बुद्धि से काम लेते हैं, उनकी शादीशुदा ज़िंदगी खुशनुमा होगी और वे अपने रिश्‍ते को टूटने से बचाएँगे।

21. ज्ञान लेने से पति-पत्नी का रिश्‍ता मज़बूत कैसे हो सकता है?

21 घर की ही मिसाल देकर बाइबल आगे कहती है, ‘ज्ञान की बदौलत घर के कमरे तरह-तरह की कीमती और मनभावनी चीज़ों से भरे रहते हैं।’ (नीतिवचन 24:4) शादीशुदा ज़िंदगी के बारे में बाइबल जो बताती है, उसका ज्ञान लेने से आप दोनों का रिश्‍ता दिनों-दिन मज़बूत होता जाएगा। (रोमियों 12:2; फिलिप्पियों 1:9) साथ मिलकर बाइबल और उससे जुड़े प्रकाशन पढ़िए। फिर चर्चा कीजिए कि उसमें दी सलाह को लागू कैसे किया जा सकता है। अपने साथी के लिए कुछ-न-कुछ कीजिए, जिससे उसे एहसास हो कि आप उससे प्यार करते हैं, उसका आदर करते हैं और उसका खयाल रखते हैं। यहोवा से मदद माँगिए कि आप ऐसे गुण पैदा कर सकें, जिससे आपका साथी आपके और करीब महसूस करे और आपसे प्यार करे।​—नीतिवचन 15:16, 17; 1 पतरस 1:7.

पारिवारिक उपासना में यहोवा से मदद माँगिए

22. आपको अपने साथी के लिए प्यार और इज़्ज़त क्यों होनी चाहिए?

22 अपने साथी से प्यार कीजिए और उसकी इज़्ज़त कीजिए। इस रिश्‍ते को निभाने के लिए वह सब कीजिए, जो आप कर सकते हैं। तब आप दोनों एक-दूसरे के और करीब आएँगे और आपका बंधन अटूट रहेगा। सबसे बड़ी बात, यहोवा खुश होगा।​—भजन 147:11; रोमियों 12:10.