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अध्याय 10

शादी का बंधन​—परमेश्‍वर का तोहफा

शादी का बंधन​—परमेश्‍वर का तोहफा

“जो डोरी तीन धागों से बटी हो वह आसानी से नहीं टूटती।”​—सभोपदेशक 4:12.

1, 2. (क) शादीशुदा ज़िंदगी को लेकर लोगों के क्या-क्या अरमान होते हैं? (ख) इस अध्याय में हम किन सवालों पर चर्चा करेंगे?

 शादी का दिन दूल्हा-दुल्हन के लिए बहुत खुशी का होता है। उन्होंने साथ मिलकर कई सपने संजोए होते हैं और वे उम्र-भर एक दूसरे का साथ देना चाहते हैं। बड़े अरमानों से वे अपनी ज़िंदगी का नया सफर शुरू करते हैं।

2 ज़्यादातर लोगों के लिए यह सफर शुरू में तो बहुत सुहाना रहता है, लेकिन थोड़े समय बाद यही सफर बहुत मुश्‍किल लगने लगता है। इस वजह से ज़रूरी है कि पति-पत्नी परमेश्‍वर की सलाह मानें, तभी वे सारी ज़िंदगी एक-दूसरे का साथ दे पाएँगे और खुश रहेंगे। आइए देखें कि बाइबल शादी से जुड़े कुछ सवालों के क्या जवाब देती है। जैसे, शादी करने के फायदे क्या हैं? अगर आप शादी करने की सोच रहे हैं, तो आप एक अच्छा जीवन-साथी कैसे चुन सकते हैं? आप खुद एक अच्छे साथी कैसे बन सकते हैं? आप दोनों मिलकर शादी का बंधन मज़बूत कैसे कर सकते हैं?​—नीतिवचन 3:5, 6 पढ़िए।

शादी करें या नहीं?

3. क्या आप मानते हैं कि शादी के बिना ज़िंदगी अधूरी है? समझाइए।

3 कुछ लोग सोचते हैं कि शादी के बिना ज़िंदगी अधूरी है। मगर यह सच नहीं है। यीशु ने कहा था कि अविवाहित रहना परमेश्‍वर से मिले एक तोहफे जैसा है। एक व्यक्‍ति शादी किए बिना भी खुश रह सकता है। (मत्ती 19:10-12) प्रेषित पौलुस ने अविवाहित जीवन के कुछ फायदे बताए। (1 कुरिंथियों 7:32-38) लेकिन आप शादी करेंगे या नहीं, यह फैसला आपको खुद करना है। आपको सिर्फ इसलिए शादी नहीं करनी चाहिए कि आपकी संस्कृति में यह ज़रूरी माना जाता है या आपके दोस्त या घरवाले आप पर दबाव डालते हैं।

4. पति-पत्नी का रिश्‍ता मज़बूत होने से क्या फायदे होते हैं?

4 बाइबल बताती है कि जैसे अविवाहित रहना एक तोहफे जैसा है, उसी तरह शादी का बंधन भी परमेश्‍वर से मिले एक तोहफे जैसा है और इसके भी कुछ फायदे हैं। यहोवा ने आदम के बारे में कहा, “आदमी के लिए यह अच्छा नहीं कि वह अकेला ही रहे। मैं उसके लिए एक मददगार बनाऊँगा, ऐसा साथी जो उससे मेल खाए।” (उत्पत्ति 2:18) परमेश्‍वर ने हव्वा को इसलिए बनाया कि वह आदम का जीवन-साथी बने। इस तरह मानव परिवार की शुरूआत हुई। अगर एक परिवार में बच्चे हैं, तो उस परिवार का माहौल ऐसा होना चाहिए कि बच्चों की अच्छी परवरिश हो। इसके लिए पति-पत्नी का आपसी रिश्‍ता अच्छा होना चाहिए। पर शादी का मकसद सिर्फ परिवार बढ़ाना नहीं होना चाहिए।​—भजन 127:3; इफिसियों 6:1-4.

5, 6. शादी का बंधन ‘तीन धागों की डोरी’ की तरह कैसे हो सकता है?

5 राजा सुलैमान ने लिखा, “एक से भले दो हैं क्योंकि उनकी मेहनत का उन्हें अच्छा फल मिलता है। अगर उनमें से एक गिर जाए, तो उसका साथी उसे उठा लेगा। लेकिन जो अकेला है उसे गिरने पर कौन उठाएगा? . . . जो डोरी तीन धागों से बटी हो वह आसानी से नहीं टूटती।”​—सभोपदेशक 4:9-12.

6 अगर पति-पत्नी का रिश्‍ता अच्छा है, तो वे दोनों अच्छे दोस्त होते हैं। वे एक-दूसरे की मदद करते हैं, हिम्मत बँधाते हैं और एक-दूसरे की हिफाज़त करते हैं। प्यार शादी के बंधन को मज़बूत करता है और जो पति-पत्नी मिलकर यहोवा की उपासना करते हैं, उनके बीच यह बंधन और भी मज़बूत हो जाता है। उनका बंधन “तीन धागों” से बनी डोरी की तरह अटूट होता है। ऐसी डोरी दो धागों से बनी डोरी से कहीं मज़बूत होती है। जब यहोवा उनके इस बंधन का एक भाग यानी तीसरा धागा होता है, तो उनका रिश्‍ता और गहरा होता है।

7, 8. शादी के बारे में पौलुस ने क्या सलाह दी?

7 जब एक लड़का-लड़की शादी करते हैं, तो वे एक-दूसरे की यौन-इच्छाएँ पूरी करके खुशी पा सकते हैं। (नीतिवचन 5:18) लेकिन अगर कोई सिर्फ इसी इरादे से शादी करना चाहता है, तो वह शायद जीवन-साथी चुनने के मामले में गलत फैसला कर बैठेगा। पौलुस ने सलाह दी कि एक व्यक्‍ति को “जवानी की कच्ची उम्र” पार करने के बाद ही शादी के बारे में सोचना चाहिए, क्योंकि इस उम्र में यौन इच्छाएँ बहुत प्रबल होती हैं। (1 कुरिंथियों 7:36) बेहतर यही होगा कि वह तब तक इंतज़ार करे, जब तक कि वह इन इच्छाओं पर काबू पाना सीख न ले। फिर वह सोच-समझकर सही फैसला कर पाएगा।​—1 कुरिंथियों 7:9; याकूब 1:15.

8 अगर आप शादी करने की सोच रहे हैं, तो यह मत सोचिए कि शादी सिर्फ खुशियों की सौगात लाएगी। सच तो यह है कि शादी के बाद हर किसी को मुश्‍किलों का सामना करना पड़ता है। पौलुस ने कहा था कि जो शादी करेंगे, उन्हें “शारीरिक दुख-तकलीफें झेलनी पड़ेंगी।” (1 कुरिंथियों 7:28) चाहे पति-पत्नी के बीच कितना ही अच्छा रिश्‍ता क्यों न हो, उन्हें मुसीबतों के तूफान से गुज़रना ही पड़ता है। यही वजह है कि आपको सोच-समझकर जीवन-साथी चुनना है।

जीवन-साथी कैसे चुनें?

9, 10. अगर शादी “प्रभु में” न की जाए, तो क्या हो सकता है?

9 जीवन-साथी चुनने के मामले में बाइबल का एक सिद्धांत काफी मदद कर सकता है। वह सिद्धांत है, “अविश्‍वासियों के साथ बेमेल जुए में न जुतो।” (2 कुरिंथियों 6:14) बेमेल जुए की मिसाल खेती-बाड़ी से जुड़ी है। अगर एक बड़े या ताकतवर जानवर को छोटे या कमज़ोर जानवर के साथ जुए में जोता जाए, तो दोनों को ही तकलीफ होगी। उसी तरह अगर यहोवा का एक सेवक ऐसा जीवन-साथी चुने, जो यहोवा की उपासना नहीं करता, तो उनके बीच कई समस्याएँ खड़ी हो सकती हैं। यही वजह है कि बाइबल “सिर्फ प्रभु में” शादी करने की सलाह देती है।​—1 कुरिंथियों 7:39.

10 कुछ मसीहियों को लगता है कि अकेले ज़िंदगी गुज़ारने से तो अच्छा है कि वे किसी से भी शादी कर लें, फिर चाहे वह यहोवा की उपासना न भी करता हो। लेकिन बाइबल की सलाह न मानने से अकसर दुख झेलना पड़ता है। यहोवा के लोगों की ज़िंदगी का मकसद उसकी सेवा करना है। सोचिए अगर इस मकसद में आपका साथी आपका साथ न दे, तो आपको कितना दुख होगा! कई लोगों ने यह फैसला किया है कि वे अविवाहित रह लेंगे, बजाय इसके कि वे ऐसे व्यक्‍ति से शादी करें, जो यहोवा की उपासना नहीं करता।​—भजन 32:8 पढ़िए।

11. आप एक सही जीवन-साथी कैसे चुन सकते हैं?

11 इसका यह मतलब नहीं कि कोई भी जो यहोवा की सेवा करता है, आपके लिए एक अच्छा साथी ठहरेगा। ऐसा साथी चुनिए, जिसे आप वाकई पसंद करते हैं और जिससे आपकी बनती है। जब तक आपको ऐसा साथी नहीं मिलता, जिसके लक्ष्य आपके जैसे हैं और जो यहोवा की सेवा को सबसे ज़्यादा अहमियत देता है, तब तक इंतज़ार कीजिए। विश्‍वासयोग्य दास ने प्रकाशनों में शादी के मामले में जो बढ़िया सलाह दी है, उसे पढ़िए और उस पर गहराई से सोचिए।​—भजन 119:105 पढ़िए।

12. बाइबल के ज़माने में जिस तरह से शादियाँ होती थीं, उससे हम क्या सीखते हैं?

12 कुछ देशों में माता-पिता अपने बेटे-बेटियों के लिए रिश्‍ता ढूँढ़ते हैं। वहाँ माना जाता है कि माता-पिता ही बच्चों के लिए सही फैसला कर सकते हैं। बाइबल के ज़माने में भी यही दस्तूर आम था। अगर आपके परिवारवाले भी यही मानते हैं, तो आपके माता-पिता को बाइबल से काफी मदद मिल सकती है ताकि वे आपके लिए एक अच्छा जीवन-साथी ढूँढ़ सकें। इसमें बताया है कि उन्हें एक लड़के या लड़की में कौन-से गुण देखने चाहिए। जब अब्राहम अपने बेटे इसहाक के लिए लड़की ढूँढ़ रहा था, तो वह यह नहीं देख रहा था कि लड़की के घरवाले दौलतमंद हैं या नहीं या समाज में उनकी कितनी इज़्ज़त है। वह सिर्फ यह देख रहा था कि लड़की यहोवा से प्यार करनेवाली है या नहीं।​—उत्पत्ति 24:3, 67; “एक-से-ज़्यादा शादी” देखिए।

एक अच्छा साथी कैसे बनें?

13-15. (क) एक लड़का अच्छा पति कैसे बन सकता है? (ख) एक लड़की अच्छी पत्नी कैसे बन सकती है?

13 अगर आप शादी करने की सोच रहे हैं, तो सबसे पहले आपको उसके काबिल बनना चाहिए। शायद आप सोचें कि आप बिलकुल काबिल हैं। फिर भी आइए बाइबल से देखें कि शादी के काबिल बनने के लिए आपमें क्या-क्या बातें होनी चाहिए। हो सकता है कि उन बातों को जानकर आपको लगे कि अभी आपको बहुत कुछ सीखना है।

बाइबल में शादी के बारे में दी गयी सलाह पढ़िए और उस पर गहराई से सोचिए

14 बाइबल के मुताबिक परिवार में पति और पत्नी की अलग-अलग भूमिका होती है। एक लड़के और लड़की को शादी के काबिल बनने के लिए अलग-अलग बातों पर ध्यान देना चाहिए। एक लड़के को सोचना चाहिए कि क्या वह परिवार को अच्छी तरह चला सकता है। पति की यह ज़िम्मेदारी है कि वह अपनी पत्नी और बच्चों के लिए खाने-कपड़े का इंतज़ाम करे और उन्हें प्यार दे। इसके अलावा यहोवा चाहता है कि वह उपासना करने में अपने परिवार की अगुवाई करे, जो उसकी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है। बाइबल बताती है कि जो आदमी अपने परिवार की अच्छी देखभाल नहीं करता, वह “अविश्‍वासी से भी बदतर है।” (1 तीमुथियुस 5:8) जो लड़का शादी करना चाहता है, उसे बाइबल के इस सिद्धांत के बारे में सोचना चाहिए: “पहले बाहर के कामों की योजना बना और अपना खेत तैयार कर, फिर अपना घर बना।” दूसरे शब्दों में कहें, तो आपको देखना चाहिए कि क्या आप ऐसे पति बन सकते हैं, जैसा यहोवा चाहता है।​—नीतिवचन 24:27.

15 एक लड़की को भी सोचना चाहिए कि क्या वह एक पत्नी की ज़िम्मेदारियाँ अच्छी तरह निभा पाएगी। आगे चलकर अगर वह माँ बनेगी, तो क्या वह यह ज़िम्मेदारी भी निभा सकेगी? बाइबल में लिखा है कि एक अच्छी पत्नी अपने पति और बच्चों का खयाल रखने के लिए कितना कुछ करती है। (नीतिवचन 31:10-31) आज जब लोग शादी करने की सोचते हैं, तो वे यही सोचते हैं कि उनका साथी उनके लिए क्या-क्या कर सकता है। मगर यहोवा चाहता है कि हम यह सोचें कि हम अपने साथी के लिए क्या-क्या कर सकते हैं।

16, 17. शादी करने से पहले एक लड़के और लड़की को किन बातों पर गहराई से सोचना चाहिए?

16 शादी करने से पहले इस बारे में गहराई से सोचिए कि यहोवा ने पति-पत्नी के लिए क्या सलाह दी है। एक लड़के को याद रखना चाहिए कि पति परिवार का मुखिया होता है, मगर उसे यह छूट नहीं मिल जाती कि वह जैसा चाहे वैसा व्यवहार करे, पत्नी और बच्चों को मारे-पीटे या उन्हें चुभनेवाली बातें कहे। एक अच्छा पति यीशु की तरह हमेशा प्यार और कृपा से पेश आएगा। (इफिसियों 5:23) वहीं एक लड़की को सोचना चाहिए कि अपने पति को मुखिया मानकर उसके फैसलों का साथ देने और उसे सहयोग देने में क्या-क्या शामिल है। (रोमियों 7:2) उसे याद रखना है कि उसका पति भी एक अपरिपूर्ण इंसान होगा। क्या वह खुशी-खुशी उसके अधीन रह पाएगी? अगर उसे लगे कि वह अधीन नहीं रह पाएगी, तो शायद बेहतर होगा कि वह फिलहाल शादी की न सोचे।

17 एक पति या पत्नी को खुद से ज़्यादा अपने साथी की खुशी का खयाल रखना चाहिए। (फिलिप्पियों 2:4 पढ़िए।) पौलुस ने लिखा, “तुममें से हरेक अपनी पत्नी से वैसा ही प्यार करे जैसा वह अपने आप से करता है। और पत्नी भी अपने पति का गहरा आदर करे।” (इफिसियों 5:21-33) पुरुष और स्त्री दोनों ही चाहते हैं कि उन्हें प्यार और इज़्ज़त मिले। लेकिन खासकर पुरुष चाहते हैं कि उनकी पत्नियाँ उनकी इज़्ज़त करें और स्त्रियाँ चाहती हैं कि उनके पति उनसे प्यार करें। जब दोनों ही एक-दूसरे की यह ज़रूरत पूरी करते हैं, तो उनका रिश्‍ता गहरा होता है और वे खुश रहते हैं।

18. शादी से पहले की मुलाकातों में किन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है?

18 अगर एक लड़का-लड़की शादी करना चाहते हैं और एक-दूसरे को जानने के लिए मुलाकातें करते हैं, तो वे एक-दूसरे की संगति का आनंद ले सकते हैं। पर उन्हें एक-दूसरे के साथ वैसे ही पेश आना चाहिए, जैसे वे असल में हैं और खयाली दुनिया में खोकर हकीकत को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। तब वे फैसला कर पाएँगे कि आगे की ज़िंदगी साथ बिताना सही रहेगा या नहीं। इन मुलाकातों के दौरान वे एक-दूसरे से अपनी बात कहना सीख सकते हैं और एक-दूसरे को अच्छी तरह जान सकते हैं। लेकिन जब उनके बीच दोस्ती गहरी होगी, तो उनके बीच आकर्षण बढ़ सकता है। ऐसे में उन्हें अपनी भावनाओं को काबू में रखना चाहिए ताकि वे शादी से पहले कोई गलत काम न करें। सच्चा प्यार हो, तो वे संयम बरतेंगे और ऐसा कुछ नहीं करेंगे, जिससे उनका आपसी रिश्‍ता और यहोवा से रिश्‍ता टूट जाए।​—1 थिस्सलुनीकियों 4:6.

शादी के इरादे से मिलते वक्‍त लड़का-लड़की एक-दूसरे से अपनी बात कहना सीख सकते हैं

शादीशुदा ज़िंदगी को कामयाब कैसे बनाएँ?

19, 20. शादी के बंधन के बारे में हम मसीहियों का नज़रिया कैसा होना चाहिए?

19 अकसर किताबों और फिल्मों में दिखाया जाता है कि प्रेम-कहानी के अंत में लड़का-लड़की बड़ी धूम-धाम से शादी करते हैं और ज़िंदगी-भर खुश रहते हैं। लेकिन असल ज़िंदगी में शादी बस एक रिश्‍ते की शुरूआत होती है। यहोवा ने शुरू से ही चाहा है कि शादी का बंधन कभी न टूटे।​—उत्पत्ति 2:24.

20 आज ज़्यादातर लोग शादी को उम्र भर का बंधन नहीं मानते। शादी करना और तलाक देना आसान हो गया है। शादी के बाद जब उनके बीच समस्याएँ उठती हैं, तो कई लोग सोचते हैं कि अब उन्हें अलग हो जाना चाहिए और यह रिश्‍ता खत्म कर देना चाहिए। मगर बाइबल की वह बात याद कीजिए कि यह रिश्‍ता तीन धागों से बनी डोरी की तरह है, जो एक-दूसरे से गुँथे हुए हैं। ऐसी डोरी को तोड़ने के लिए चाहे कितना भी ज़ोर लगाया जाए, वह नहीं टूटती। समस्याएँ उठने पर अगर हम इस डोरी के तीसरे धागे यानी यहोवा की मदद लें, तो हमारी शादी का बंधन अटूट रहेगा। यीशु ने कहा था, “जिसे परमेश्‍वर ने एक बंधन में बाँधा है, उसे कोई इंसान अलग न करे।”​—मत्ती 19:6.

21. शादीशुदा ज़िंदगी खुशहाल बनाने के लिए पति-पत्नी को क्या करना चाहिए?

21 हम सबमें कुछ-न-कुछ अच्छाइयाँ और कमज़ोरियाँ होती हैं। दूसरों की कमज़ोरियों पर ध्यान देना बहुत आसान है, खासकर अपने जीवन-साथी की। लेकिन ऐसा करने से हम खुश नहीं रह पाएँगे। वहीं अगर हम अपने साथी के अच्छे गुणों पर ध्यान दें, तो शादीशुदा ज़िंदगी खुशहाल रहेगी। क्या यह मुमकिन है कि हम अपने साथी की कमज़ोरियाँ जानते हुए भी सिर्फ उसकी अच्छाइयों पर ध्यान दें? बिलकुल! ज़रा सोचिए यहोवा हमारे साथ कैसे पेश आता है। वह जानता है कि हममें कितनी खामियाँ हैं, फिर भी वह हमारे अच्छे गुणों पर ध्यान देता है। अगर वह ऐसा न करता, तो हमारा क्या होता? भजन के एक लेखक ने कहा, ‘हे यहोवा, अगर तू हमारे गुनाहों पर ही नज़र रखता, तो तेरे सामने कौन खड़ा रह सकता?’ (भजन 130:3) यहोवा की तरह पति-पत्नी को भी एक-दूसरे की अच्छाइयों पर ध्यान देना चाहिए और गलतियाँ होने पर एक-दूसरे को जल्द-से-जल्द माफ कर देना चाहिए।​—कुलुस्सियों 3:13 पढ़िए।

22, 23. अब्राहम और सारा से पति-पत्नी क्या सीख सकते हैं?

22 जैसे-जैसे साल गुज़रते हैं, शादी का बंधन और भी मज़बूत हो सकता है। अब्राहम और सारा ने बरसों एक-दूसरे का साथ निभाया और उनका वैवाहिक जीवन सुख से गुज़रा। जब यहोवा ने अब्राहम को अपना शहर ऊर छोड़ने के लिए कहा, तब सारा की उम्र 60 से ज़्यादा थी। ज़रा सोचिए, इस उम्र में अपना आरामदायक घर छोड़कर तंबुओं में रहना सारा के लिए कितना मुश्‍किल रहा होगा। पर वह अब्राहम की एक अच्छी संगिनी थी और दिल से उसकी इज़्ज़त करती थी, इसलिए उसने अब्राहम के फैसलों का पूरा साथ दिया।​—उत्पत्ति 18:12; 1 पतरस 3:6.

23 पति-पत्नी के बीच अच्छा रिश्‍ता होने का मतलब यह नहीं कि वे हर बात पर एक-दूसरे से राज़ी हों। एक बार अब्राहम भी सारा की बात से राज़ी नहीं हुआ। तब यहोवा ने उससे कहा, “सारा की बात मान।” उसने सारा की सुनी और इसका अच्छा नतीजा निकला। (उत्पत्ति 21:9-13) अगर कभी-कभी आप एक-दूसरे से राज़ी नहीं होते, तो निराश मत होइए। भले ही आप एक-दूसरे से सहमत न हों, लेकिन ज़रूरी यह है कि आप प्यार और इज़्ज़त से पेश आएँ।

शादी के दिन से ही परमेश्‍वर के वचन से सलाह लेते रहिए

24. हमारी शादीशुदा ज़िंदगी से यहोवा की महिमा कैसे हो सकती है?

24 मसीही मंडलियों में आज ऐसे हज़ारों पति-पत्नी हैं, जो खुशी से साथ रह रहे हैं। अगर आप शादी करना चाहते हैं, तो जीवन-साथी सोच-समझकर चुनिए। यह एक बहुत ही अहम फैसला है, क्योंकि यह आपकी पूरी ज़िंदगी बदल सकता है। यहोवा से मार्गदर्शन माँगिए। तब आप सही जीवन-साथी चुन पाएँगे, खुद एक अच्छा साथी बन पाएँगे और अपने साथी के साथ मिलकर प्यार का अटूट बंधन कायम कर पाएँगे, जिससे यहोवा की महिमा होगी।