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अध्याय 3

परमेश्‍वर के दोस्तों को अपने दोस्त बनाइए

परमेश्‍वर के दोस्तों को अपने दोस्त बनाइए

“बुद्धिमानों के साथ रहनेवाला बुद्धिमान बनेगा।”​—नीतिवचन 13:20.

1-3. (क) हम नीतिवचन 13:20 से क्या सीखते हैं? (ख) हमें किसी से सोच-समझकर दोस्ती क्यों करनी चाहिए?

 क्या आपने कभी गौर किया है कि एक दूध पीता बच्चा किस तरह अपने माता-पिता को ध्यान से देखता है? इससे पहले कि वह बोलना सीखे, वह उन बातों को धीरे-धीरे समझने लगता है, जिन्हें वह आस-पास देखता या सुनता है। जैसे-जैसे वह बड़ा होने लगता है, वह किसी के सिखाए बिना खुद-ब-खुद अपने माता-पिता की तरह बरताव करने लगता है। कई बार बड़े भी उन लोगों जैसा बरताव करने लगते हैं, जिनके साथ वे ज़्यादा समय बिताते हैं। वे उन्हीं की तरह सोचने या काम करने लगते हैं।

2 नीतिवचन 13:20 में लिखा है, “बुद्धिमानों के साथ रहनेवाला बुद्धिमान बनेगा।” इस आयत में ‘साथ रहने’ का मतलब सिर्फ एक व्यक्‍ति के आस-पास रहना नहीं, बल्कि उसके साथ वक्‍त बिताना, उसके लिए दिल में प्यार होना और उसके करीब महसूस करना है। जिन लोगों के हम करीब महसूस करते हैं, उनके साथ ज़्यादा समय बिताने से उनका हम पर बहुत असर होता है।

3 हमारे दोस्तों का हम पर या तो अच्छा असर पड़ सकता है या बुरा। नीतिवचन 13:20 में यह भी लिखा है, “मूर्खों के साथ मेल-जोल रखनेवाला बरबाद हो जाएगा।” इब्रानी भाषा में “मेल-जोल” शब्द का मतलब है, किसी के ‘साथ रहना’ और उसके दोस्त होना। (नीतिवचन 22:24; न्यायियों 14:20) परमेश्‍वर से प्यार करनेवाले दोस्त हमें परमेश्‍वर के वफादार रहने का बढ़ावा देंगे। हम सोच-समझकर दोस्ती कैसे कर सकते हैं, यह जानने के लिए आइए देखें कि यहोवा किस तरह के लोगों को अपना दोस्त बनाता है।

परमेश्‍वर के दोस्त कौन हैं?

4. (क) परमेश्‍वर के दोस्त होना क्यों एक बड़ी बात है? (ख) यहोवा ने अब्राहम को अपना “दोस्त” क्यों कहा?

4 ज़रा सोचिए, यहोवा के दोस्त बनना हमारे लिए कितनी बड़ी बात है! वह सारे जहान का मालिक है, फिर भी वह चाहता है कि हम उसके दोस्त बनें। लेकिन यहोवा हर किसी को अपना दोस्त नहीं बनाता। वह सिर्फ उनसे दोस्ती करता है, जो उससे प्यार करते हैं और उस पर विश्‍वास करते हैं। अब्राहम का उदाहरण लीजिए। वह परमेश्‍वर का वफादार था और उसकी आज्ञा मानता था। वह परमेश्‍वर से इतना प्यार करता था कि वह उसके लिए कुछ भी करने को तैयार था। वह अपने बेटे इसहाक की बलि चढ़ाने से भी पीछे नहीं हटा। उसे विश्‍वास था कि “परमेश्‍वर उसके बेटे को मरे हुओं में से भी ज़िंदा करने के काबिल है।” (इब्रानियों 11:17-19; उत्पत्ति 22:1, 2, 9-13) अब्राहम के प्यार और वफादारी की वजह से ही यहोवा ने उसे अपना “दोस्त” कहा।​—यशायाह 41:8; याकूब 2:21-23.

5. जो लोग यहोवा के वफादार हैं, उनके बारे में उसे कैसा लगता है?

5 यहोवा अपने दोस्तों को बहुत अनमोल समझता है। उसके दोस्तों को हमेशा यह खयाल रहता है कि वे किसी और से ज़्यादा उसके प्रति वफादार रहें। (2 शमूएल 22:26 पढ़िए।) वे यहोवा से प्यार करते हैं, इसलिए वे उसके प्रति वफादार रहते हैं और उसकी आज्ञा मानते हैं। बाइबल में बताया गया है कि यहोवा “सीधे-सच्चे लोगों से गहरी दोस्ती रखता है” यानी उसकी आज्ञा माननेवालों से। (नीतिवचन 3:32) वह अपने दोस्तों को अपने “तंबू” में खास मेहमान होने का न्यौता देता है। इसका मतलब है कि उसने उन्हें यह सम्मान दिया है कि वे उसकी उपासना करें और जब चाहें उससे प्रार्थना करें।​—भजन 15:1-5.

6. अगर हम यीशु से प्यार करते हैं, तो हम क्या करेंगे?

6 यीशु ने कहा था, “अगर कोई मुझसे प्यार करता है, तो वह मेरे वचन पर चलेगा और मेरा पिता उससे प्यार करेगा।” (यूहन्‍ना 14:23) यहोवा हमसे तभी प्यार करेगा, जब हम यीशु से प्यार करेंगे और उसकी आज्ञा मानेंगे। जैसे, यह आज्ञा कि हम खुशखबरी का प्रचार करें और लोगों को उसके चेले बनाएँ। (मत्ती 28:19, 20; यूहन्‍ना 14:15, 21) हमें यीशु से प्यार होगा, तो हम उसके नक्शे-कदम पर नज़दीकी से चलेंगे। (1 पतरस 2:21) हमें पूरी कोशिश करनी चाहिए कि हमारी बोली और हमारा व्यवहार यीशु जैसा हो। हमारी यह कोशिश देखकर यहोवा को बहुत खुशी होगी।

7. हमें यहोवा के दोस्तों से दोस्ती क्यों करनी चाहिए?

7 यहोवा के दोस्त भरोसे के लायक, वफादार और आज्ञाकारी होते हैं और उसके बेटे से प्यार करते हैं। यहोवा जिस तरह के लोगों को अपना दोस्त बनाता है, क्या हम भी उसी तरह के लोगों से दोस्ती करते हैं? हमें उन लोगों से दोस्ती करनी चाहिए, जो अपने अंदर यीशु के जैसे गुण बढ़ाने और लोगों को परमेश्‍वर के राज के बारे में सिखाने में मेहनत करते हैं। उनकी संगति से हमें अच्छे इंसान बनने और यहोवा के प्रति वफादार रहने में मदद मिलेगी।

दोस्ती के बारे में बाइबल से सीखिए

8. रूत और नाओमी की दोस्ती के बारे में आपको क्या बात अच्छी लगती है?

8 बाइबल में ऐसे कई लोगों के बारे में बताया गया है, जो एक-दूसरे के अच्छे दोस्त थे, जैसे रूत और उसकी सास नाओमी। ये दोनों सास-बहु अलग-अलग देश और संस्कृति से थीं। नाओमी उम्र में रूत से बहुत बड़ी थी। दोनों यहोवा से प्यार करती थीं, इसलिए वे एक-दूसरे की अच्छी दोस्त बन पायीं। जब नाओमी ने मोआब देश छोड़कर इसराएल लौटना चाहा, तो रूत “उस से अलग न हुई।” (रूत 1:14, 16) रूत नाओमी का बहुत खयाल रखती थी। जब वे दोनों इसराएल पहुँचीं, तो रूत ने नाओमी की ज़रूरतें पूरी करने के लिए बहुत मेहनत की। नाओमी भी रूत से बहुत प्यार करती और उसे अच्छी सलाह देती थी। रूत ने उसकी सलाह मानी, इसलिए दोनों को बहुत-सी आशीषें मिलीं।​—रूत 3:6.

9. दाविद और योनातान की दोस्ती के बारे में क्या बात आपके दिल को छू जाती है?

9 दाविद और योनातान भी ऐसे दोस्त थे, जो यहोवा के वफादार थे। योनातान दाविद से 30 साल बड़ा था और इसराएल का अगला राजा बननेवाला था। (1 शमूएल 17:33; 31:2; 2 शमूएल 5:4) फिर भी जब उसे पता चला कि यहोवा ने उसके बदले दाविद को राजा चुना है, तो वह न तो दाविद से जला, न ही उसने ऐसा कुछ किया जिससे वह खुद राजा बन जाए। इसके बजाय उसने दाविद का पूरा-पूरा साथ दिया। एक बार जब दाविद की जान खतरे में थी, तो योनातान ने उसकी मदद की, ‘यहोवा पर उसका भरोसा बढ़ाया।’ उसने दाविद की खातिर अपनी जान तक जोखिम में डाल दी। (1 शमूएल 23:16, 17) दाविद भी योनातान का वफादार रहा। उसने योनातान से वादा किया कि वह उसके परिवार का खयाल रखेगा। दाविद ने अपना यह वादा योनातान की मौत के बाद भी निभाया।​—1 शमूएल 18:1; 20:15-17, 30-34; 2 शमूएल 9:1-7.

10. तीन इब्री लड़कों से आप दोस्ती के बारे में क्या सीखते हैं?

10 शदरक, मेशक और अबेदनगो नाम के तीन इब्री जवान भी अच्छे दोस्त थे। उन्हें अपने घर से दूर एक पराए देश ले जाया गया था। वहाँ उनके साथ उनके परिवारवाले नहीं थे। इन हालात में उन्होंने यहोवा के वफादार रहने में एक-दूसरे की मदद की। जब वे बड़े हुए, तो एक बार उनकी वफादारी की परीक्षा हुई। राजा नबूकदनेस्सर ने एक फरमान जारी किया कि सब लोग सोने की एक मूरत की पूजा करें। मगर शदरक, मेशक और अबेदनगो ने उसे पूजने से इनकार कर दिया और राजा से कहा, “हम न तेरे देवताओं की सेवा करेंगे, न ही तेरी खड़ी करायी मूरत की पूजा करेंगे।” इस तरह इन तीनों दोस्तों ने परीक्षा की घड़ी में भी अपने परमेश्‍वर की उपासना करना नहीं छोड़ा।​—दानियेल 1:1-17; 3:12, 16-28.

11. पौलुस और तीमुथियुस अच्छे दोस्त कैसे बने?

11 जब प्रेषित पौलुस की मुलाकात तीमुथियुस नाम के नौजवान से हुई, तो उसने देखा कि तीमुथियुस को यहोवा से कितना प्यार है और वह मंडली की कितनी चिंता करता है। यही वजह है कि पौलुस तीमुथियुस को अपने साथ अलग-अलग जगह ले गया और उसे भाई-बहनों की मदद करना सिखाया। (प्रेषितों 16:1-8; 17:10-14) तीमुथियुस ने जी-जान से परमेश्‍वर की सेवा की थी, इसलिए पौलुस ने उसके बारे में कहा कि “उसने खुशखबरी फैलाने में मेरे साथ कड़ी मेहनत की है।” पौलुस को यकीन था कि तीमुथियुस अपने भाई-बहनों की ‘सच्चे दिल से परवाह करेगा।’ उन दोनों ने मिलकर बहुत मेहनत से यहोवा की सेवा की, इसलिए वे अच्छे दोस्त बने।​—फिलिप्पियों 2:20-22; 1 कुरिंथियों 4:17.

दोस्त किन्हें बनाएँ?

12, 13. (क) मंडली में भी हमें सोच-समझकर दोस्त क्यों बनाने चाहिए? (ख) प्रेषित पौलुस ने 1 कुरिंथियों 15:33 में क्या सलाह दी?

12 हम अपनी मंडली के भाई-बहनों से काफी कुछ सीख सकते हैं और सच्चाई में मज़बूत रहने में एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं। (रोमियों 1:11, 12 पढ़िए।) मगर मंडली में भी हमें ध्यान रखना होगा कि हम किन लोगों के साथ ज़्यादा उठते-बैठते हैं, क्योंकि मंडली में तरह-तरह के लोग होते हैं। कुछ लोग अलग-अलग भाषा और संस्कृति के हैं, शायद कुछ लोग सच्चाई में नए हैं, तो कुछ लोग सालों से यहोवा की सेवा कर रहे हैं। यहोवा के साथ अपना रिश्‍ता मज़बूत करने में एक इंसान को समय लगता है, ठीक जैसे एक फल को पकने में समय लगता है। इस वजह से हमें एक-दूसरे के साथ प्यार और सब्र से पेश आना चाहिए और हमेशा सोच-समझकर दोस्त बनाने चाहिए।​—रोमियों 14:1; 15:1; इब्रानियों 5:12–6:3.

13 कभी-कभी हमें संगति के मामले में खास सावधानी बरतनी पड़ सकती है। शायद एक भाई या बहन ऐसे काम कर रहा हो, जो बाइबल के मुताबिक गलत हैं या उसे नुक्‍ताचीनी करने की आदत पड़ गयी हो, जिससे मंडली पर बुरा असर पड़ सकता है। यह देखकर हमें ताज्जुब नहीं करना चाहिए, क्योंकि पहली सदी में भी मंडलियों में समस्याएँ खड़ी हो जाती थीं। यही वजह है कि प्रेषित पौलुस ने उस ज़माने के मसीहियों से कहा, “धोखा न खाओ। बुरी संगति अच्छी आदतें बिगाड़ देती है।” (1 कुरिंथियों 15:12, 33) पौलुस ने तीमुथियुस को सलाह दी कि दोस्त बनाने के मामले में उसे सोच-समझकर काम लेना चाहिए। हमें भी ऐसा ही करना चाहिए।​—2 तीमुथियुस 2:20-22 पढ़िए।

14. अगर हम बुरे लोगों से दोस्ती करें, तो यहोवा के साथ हमारा रिश्‍ता कैसे खतरे में पड़ सकता है?

14 हमारा यहोवा के साथ जो रिश्‍ता है, उसे हमें कभी खतरे में नहीं डालना चाहिए। यह रिश्‍ता हमारे लिए किसी भी रिश्‍ते से बढ़कर है। हमें ऐसे लोगों से कभी दोस्ती नहीं करनी चाहिए, जिनकी वजह से यह रिश्‍ता खतरे में पड़ सकता है। अगर हम एक स्पंज को सिरके में डुबोएँ, तो वह सिरका ही सोखेगा, पानी नहीं। उसी तरह अगर हम बुरे काम करनेवालों से दोस्ती करें, तो हम बुराई को ही अपनाएँगे और सही काम करना मुश्‍किल हो जाएगा। वाकई, दोस्ती के मामले में हमें बहुत सावधानी बरतनी है।​—1 कुरिंथियों 5:6; 2 थिस्सलुनीकियों 3:6, 7, 14.

आपको ऐसे दोस्त मिल सकते हैं, जो यहोवा से प्यार करते हैं

15. मंडली में अच्छे दोस्त पाने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

15 मंडली में आपको ऐसे दोस्त मिलेंगे, जो यहोवा से दिल से प्यार करते हैं। वे आपके सच्चे दोस्त बन सकते हैं। (भजन 133:1) सिर्फ उनसे दोस्ती मत कीजिए, जो आपकी उम्र, भाषा या संस्कृति के हैं। याद कीजिए कि योनातान दाविद से उम्र में बहुत बड़ा था और रूत नाओमी से बहुत छोटी थी। हमें बाइबल की यह सलाह माननी चाहिए, “अपने दिलों को बड़ा करो।” (2 कुरिंथियों 6:13; 1 पतरस 2:17 पढ़िए।) आप जितना ज़्यादा यहोवा के जैसे गुण अपने अंदर बढ़ाएँगे, उतना ही लोग आपसे दोस्ती करना चाहेंगे।

जब मुश्‍किलें खड़ी होती हैं

16, 17. अगर कोई भाई या बहन हमें ठेस पहुँचाए, तो हमें मंडली से दूर क्यों नहीं जाना चाहिए?

16 जिस तरह परिवार में सब लोग एक जैसे नहीं होते, सबका स्वभाव, सोच और तौर-तरीके एक-दूसरे से अलग होते हैं, उसी तरह मंडली में भी सब एक-दूसरे से अलग होते हैं। इस फर्क की वजह से हमें एक-दूसरे का साथ बहुत अच्छा लगता है और हम बहुत कुछ सीख पाते हैं। लेकिन कभी-कभी यही फर्क हमारे बीच गलतफहमियाँ पैदा कर सकता है और हम एक-दूसरे से चिढ़ सकते हैं। हो सकता है कि हमें उनकी कोई बात बुरी लगे और हमें ठेस पहुँचे। (नीतिवचन 12:18) ऐसे में क्या हमें नाराज़ हो जाना चाहिए या मंडली से दूर हो जाना चाहिए?

17 नहीं। चाहे कोई हमें ठेस पहुँचाए, तो भी हमें मंडली से दूर नहीं जाना चाहिए। मंडली का इंतज़ाम यहोवा ने किया है ताकि हमारा विश्‍वास मज़बूत हो। (इब्रानियों 13:17) यहोवा ने तो हमें ठेस नहीं पहुँचायी है, बल्कि उसने हमें जीवन और बाकी सारी चीज़ें दी हैं। इस वजह से हमें उससे प्यार करना चाहिए और उसके वफादार रहना चाहिए। (प्रकाशितवाक्य 4:11) हमें किसी और की वजह से मंडली से दूर नहीं जाना चाहिए।​—भजन 119:165 पढ़िए।

18. (क) हम भाई-बहनों के साथ अच्छा रिश्‍ता कैसे रख सकते हैं? (ख) हमें दूसरों को माफ क्यों करना चाहिए?

18 हम अपने भाई-बहनों से प्यार करते हैं और उनके साथ एक अच्छा रिश्‍ता रखना चाहते हैं। यहोवा किसी भी इंसान से उम्मीद नहीं करता कि वह कभी कोई गलती न करे। हमें भी किसी से ऐसी उम्मीद नहीं करनी चाहिए। (नीतिवचन 17:9; 1 पतरस 4:8) हम सबसे कई बार गलतियाँ होती हैं, लेकिन अगर हमें एक-दूसरे से प्यार होगा, तो हम “दिल खोलकर माफ” करेंगे। (कुलुस्सियों 3:13) कोई गलतफहमी होने पर हम बात का बतंगड़ नहीं बनाएँगे। यह सच है कि जब कोई हमें ठेस पहुँचाता है, तो हमें बहुत गुस्सा आता है और हम नाराज़ हो जाते हैं। उस बात को भूलना आसान नहीं होता। इससे हमारी खुशी छिन जाती है और हम मन-ही-मन कुढ़ते रहते हैं। लेकिन अगर हम उस व्यक्‍ति को माफ कर दें, तो हमें मन की शांति मिलेगी, मंडली की एकता नहीं टूटेगी और सबसे अहम बात यह होगी कि हम यहोवा के साथ एक अच्छे रिश्‍ते का आनंद उठाएँगे।​—मत्ती 6:14, 15; लूका 17:3, 4; रोमियों 14:19.

जब किसी का बहिष्कार कर दिया जाए

19. हमें मंडली के किसी व्यक्‍ति से मेल-जोल रखना कब बंद कर देना चाहिए?

19 जिस परिवार में प्यार होता है, वहाँ हर कोई अपनी ज़िम्मेदारी अच्छी तरह निभाता है, जिससे सब खुश रहें। लेकिन मान लीजिए, उनमें से एक जन परिवार के नियमों के हिसाब से नहीं चलता। परिवार के सब लोग उसे समझाते हैं, मगर वह किसी की नहीं सुनता। फिर वह घर छोड़कर चला जाता है या हो सकता है कि परिवार का मुखिया उसे घर छोड़कर जाने के लिए कहे। ऐसा ही कुछ मंडली में भी हो सकता है। एक भाई या बहन शायद जानबूझकर ऐसे काम करे, जिससे यहोवा नाराज़ हो और मंडली पर बुरा असर पड़े। उसे समझाया जाता है, मगर वह नहीं सुनता और अपनी मनमानी करता है। एक तरह से वह यह जताता है कि अब वह मंडली का सदस्य नहीं रहना चाहता। हो सकता है कि वह खुद ही मंडली छोड़ दे या उसका बहिष्कार कर दिया जाए। बाइबल साफ बताती है कि हमें ऐसे व्यक्‍ति से “मेल-जोल रखना बंद कर” देना चाहिए। (1 कुरिंथियों 5:11-13 पढ़िए; 2 यूहन्‍ना 9-11) अगर कोई दोस्त या हमारे परिवार का एक व्यक्‍ति ऐसा करता है, तो उससे मेल-जोल बंद करना बहुत मुश्‍किल हो सकता है। ऐसे में हमें याद रखना है कि हमें किसी भी इंसान से ज़्यादा यहोवा के प्रति वफादार रहना है।​—“बहिष्कार का इंतज़ाम” देखिए।

20, 21. (क) बहिष्कार के इंतज़ाम से प्यार कैसे झलकता है? (ख) हमें सोच-समझकर दोस्त क्यों बनाने चाहिए?

20 बहिष्कार करने का इंतज़ाम यहोवा का एक प्यार-भरा इंतज़ाम है। इस इंतज़ाम की वजह से मंडली पर ऐसे लोगों का बुरा असर नहीं पड़ता, जो यहोवा के स्तरों पर नहीं चलते। (1 कुरिंथियों 5:7; इब्रानियों 12:15, 16) हमें यह दिखाने का मौका मिलता है कि हमें यहोवा, उसके पवित्र नाम और उसके ऊँचे स्तरों से कितना प्यार है। (1 पतरस 1:15, 16) इस इंतज़ाम से बहिष्कृत व्यक्‍ति का भी भला होता है। कैसे? जब उसके साथ इतनी सख्त कार्रवाई की जाती है, तो उसे शायद एहसास हो कि उसके काम गलत हैं और उसे वे काम छोड़ने होंगे। बहिष्कृत किए गए कई लोग यहोवा के पास लौट आए हैं और मंडली में उन्हें एक बार फिर प्यार से अपना लिया गया है।​—इब्रानियों 12:11.

21 हमारे दोस्त हम पर या तो अच्छा असर कर सकते हैं या बुरा, इसलिए हमें सोच-समझकर दोस्त बनाने चाहिए। हमें ऐसे लोगों से दोस्ती करनी चाहिए, जिनसे यहोवा प्यार करता है। तब हम हर वक्‍त उन लोगों से घिरे रहेंगे, जिनकी मदद से हम सदा यहोवा के वफादार रह पाएँगे।