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प्रार्थना में परमेश्‍वर के क़रीब आना

प्रार्थना में परमेश्‍वर के क़रीब आना

पाठ ७

प्रार्थना में परमेश्‍वर के क़रीब आना

नियमित रूप से प्रार्थना करना क्यों महत्त्वपूर्ण है? (१)

हमें किससे प्रार्थना करनी चाहिए, और कैसे? (२, ३)

प्रार्थना के लिए उचित विषय कौन-से हैं? (४)

आपको कब प्रार्थना करनी चाहिए? (५, ६)

क्या परमेश्‍वर सभी प्रार्थनाओं को सुनता है? (७)

१. प्रार्थना नम्रतापूर्वक परमेश्‍वर से बात करना है। आपको नियमित रूप से परमेश्‍वर से प्रार्थना करनी चाहिए। इस प्रकार आप एक प्रिय मित्र की तरह उसके क़रीब महसूस कर सकते हैं। यहोवा इतना महान और सामर्थ्यवान है, फिर भी वह हमारी प्रार्थनाओं को सुनता है! क्या आप नियमित रूप से परमेश्‍वर से प्रार्थना करते हैं?—भजन ६५:२; १ थिस्सलुनीकियों ५:१७.

२. प्रार्थना हमारी उपासना का भाग है। अतः, हमें केवल  यहोवा परमेश्‍वर से प्रार्थना करनी चाहिए। जब यीशु पृथ्वी पर था, उसने हमेशा अपने पिता से, न कि किसी और से प्रार्थना की। हमें भी यही करना चाहिए। (मत्ती ४:१०; ६:९) लेकिन, हमारी सभी प्रार्थनाएँ यीशु के नाम से  की जानी चाहिए। यह दिखाता है कि हम यीशु के पद का आदर करते हैं और हमें उसके छुड़ौती बलिदान पर विश्‍वास है।—यूहन्‍ना १४:६; १ यूहन्‍ना २:१, २.

३. जब हम प्रार्थना करते हैं तो हमें अपने दिल से परमेश्‍वर से बात करनी चाहिए। हमें रटी-रटाई प्रार्थनाएँ नहीं करनी चाहिए या किसी प्रार्थना पुस्तक से उन्हें पढ़ना नहीं चाहिए। (मत्ती ६:७, ८) हम किसी भी आदरपूर्ण स्थिति में, किसी भी समय, और किसी भी स्थान पर प्रार्थना कर सकते हैं। परमेश्‍वर हमारे हृदय में कही गयी मूक प्रार्थनाओं को भी सुन सकता है। (१ शमूएल १:१२, १३) अपनी व्यक्‍तिगत प्रार्थनाएँ करने के लिए अन्य लोगों से दूर किसी एकान्त स्थान का पता लगाना अच्छा है।—मरकुस १:३५.

४. आप किन विषयों के बारे में प्रार्थना कर सकते हैं? ऐसी कोई भी बात जो उसके साथ आपकी मित्रता को प्रभावित कर सकती है। (फिलिप्पियों ४:६, ७) आदर्श प्रार्थना दिखाती है कि हमें यहोवा के नाम और उद्देश्‍य के बारे में प्रार्थना करनी चाहिए। हम अपनी भौतिक ज़रूरतों की पूर्ति के लिए, अपने पापों की क्षमा के लिए, और प्रलोभन का विरोध करने के लिए मदद भी माँग सकते हैं। (मत्ती ६:९-१३) हमारी प्रार्थनाएँ स्वार्थपूर्ण नहीं होनी चाहिए। हमें केवल उन बातों के लिए प्रार्थना करनी चाहिए जो परमेश्‍वर की इच्छा के सामंजस्य में हैं।—१ यूहन्‍ना ५:१४.

५. जब कभी आपका हृदय आपको परमेश्‍वर का धन्यवाद या उसकी स्तुति करने के लिए प्रेरित करता है आप प्रार्थना कर सकते हैं। (१ इतिहास २९:१०-१३) जब आपको समस्याएँ होती हैं और आपके विश्‍वास की परीक्षा हो रही है तब आपको प्रार्थना करनी चाहिए। (भजन ५५:२२; १२०:१) अपना भोजन खाने से पहले प्रार्थना करना उचित है। (मत्ती १४:१९) यहोवा हमें “हर समय” प्रार्थना करने का आमंत्रण देता है।—इफिसियों ६:१८.

६. यदि हमने एक गंभीर पाप किया है तो हमें विशेषकर प्रार्थना करने की ज़रूरत है। ऐसे समय पर हमें यहोवा की दया और क्षमा के लिए याचना करनी चाहिए। यदि हम अपने पापों को उसके सामने स्वीकार करें और उन्हें न दोहराने का अपना पूरा प्रयास करें, तो परमेश्‍वर “क्षमा करने को तत्पर रहता है।”—भजन ८६:५, NHT; नीतिवचन २८:१३.

७. यहोवा केवल धर्मी लोगों की प्रार्थनाओं को सुनता है। परमेश्‍वर हमारी प्रार्थनाएँ सुने, इसके लिए ज़रूरी है कि आप उसके नियमों के अनुसार जीने की पूरी कोशिश करें। (नीतिवचन १५:२९; २८:९) जब आप प्रार्थना करते हैं तब आपको नम्र होना चाहिए। (लूका १८:९-१४) आप जिसके लिए प्रार्थना करते हैं उसके सामंजस्य में आपको कार्य करने की ज़रूरत है। आप इस प्रकार साबित करेंगे कि आपके पास विश्‍वास है और आपका अभिप्राय वही है जो आप कह रहे हैं। केवल तभी यहोवा आपकी प्रार्थनाओं का जवाब देगा।—इब्रानियों ११:६.