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अध्याय छः

अपने किशोर को फलने-फूलने में मदद दीजिए

अपने किशोर को फलने-फूलने में मदद दीजिए

१, २. किशोरावस्था कौन-सी चुनौतियाँ और कौन-से आनन्द ला सकती है?

घर में एक किशोर का होना एक पाँच-वर्षीय या यहाँ तक कि एक दस-वर्षीय बच्चे के होने से बहुत भिन्‍न है। किशोरावस्था स्वयं अपनी चुनौतियाँ और समस्याएँ लाती है, लेकिन वह आनन्द और प्रतिफल भी ला सकती है। यूसुफ, दाऊद, योशिय्याह, और तीमुथियुस जैसे उदाहरण दिखाते हैं कि युवा लोग ज़िम्मेदार ढंग से कार्य कर सकते हैं और यहोवा के साथ एक उत्तम सम्बन्ध रख सकते हैं। (उत्पत्ति ३७:२-११; १ शमूएल १६:११-१३; २ राजा २२:३-७; प्रेरितों १६:१, २) आज अनेक किशोर इसी बात को साबित करते हैं। संभव है कि आप उनमें से कुछ को जानते हैं।

फिर भी, कुछ के लिए किशोरावस्था कोलाहलमय होती है। किशोर भावात्मक उतार-चढ़ाव का अनुभव करते हैं। किशोर-किशोरियाँ शायद ज़्यादा स्वतंत्र होना चाहें, और जब उनके माता-पिता उन पर सीमाएँ लगाते हैं तब उन्हें शायद कुढ़न हो। फिर भी, ऐसे युवा अभी-भी काफ़ी अनुभवहीन हैं और उन्हें अपने माता-पिता की ओर से प्रेममय, धैर्यपूर्ण मदद की ज़रूरत है। जी हाँ, किशोरावस्था उत्तेजक हो सकती है, लेकिन वह उलझानेवाली भी हो सकती है—माता-पिताओं और किशोरों दोनों के लिए। इस अवस्था के दौरान युवाओं की मदद कैसे की जा सकती है?

३. किस प्रकार माता-पिता अपनी किशोर संतान को जीवन में एक उत्तम अवसर दे सकते हैं?

जो माता-पिता बाइबल सलाह पर चलते हैं वे अपनी किशोर संतान को ज़िम्मेदार प्रौढ़ावस्था तक पहुँचने के लिए उन परीक्षाओं से सफलतापूर्वक अपना मार्ग बनाने का यथासंभव अवसर देते हैं। हर देश में और हर समयावधि के दौरान, जिन माता-पिताओं और किशोरों ने एकसाथ बाइबल सिद्धान्तों को लागू किया उन्हें सफलता की आशिष प्राप्त हुई है।—भजन ११९:१.

निष्कपट और खुला संचार

४. अंतरंग बातचीत ख़ासकर किशोरावस्था के दौरान क्यों महत्त्वपूर्ण है?

बाइबल कहती है: “बिना सम्मति [“अंतरंग बातचीत,” NW] की कल्पनाएं निष्फल हुआ करती हैं।” (नीतिवचन १५:२२) यदि अंतरंग बातचीत तब ज़रूरी थी जब बच्चे छोटे थे, तो यह ख़ासकर किशोरावस्था के दौरान अति-महत्त्वपूर्ण है—जब युवजन संभवतः घर में कम समय और स्कूल के मित्रों या दूसरे साथियों के साथ ज़्यादा समय बिताते हैं। यदि बच्चों और माता-पिताओं के बीच कोई अंतरंग वार्तालाप—कोई निष्कपट और खुला संचार—नहीं होता है, तो किशोर घर में अजनबी बन सकते हैं। सो संचार मार्ग कैसे खुले रखे जा सकते हैं?

५. किशोरों को अपने माता-पिता के साथ संचार करने के मामले को किस दृष्टि से देखने के लिए प्रोत्साहित किया गया है?

इसमें किशोरों और माता-पिताओं दोनों को अपना भाग अदा करने की ज़रूरत है। यह सच है कि किशोर अपने माता-पिता से बात करना शायद ज़्यादा मुश्‍किल पाएँ जितना कि वे तब नहीं पाते थे जब वे छोटे थे। फिर भी, याद रखिए कि “जहां बुद्धि की युक्‍ति [“कुशल मार्गदर्शन,” NW] नहीं, वहां प्रजा विपत्ति में पड़ती है; परन्तु सम्मति देनेवालों की बहुतायत के कारण बचाव होता है।” (नीतिवचन ११:१४) बूढ़ों और जवानों, सभी पर ये शब्द एकसमान लागू होते हैं। जिन किशोरों को इसका बोध होता है वे समझेंगे कि उन्हें अभी-भी कुशल मार्गदर्शन की ज़रूरत है, चूँकि वे पहले से ज़्यादा जटिल समस्याओं का सामना कर रहे हैं। उन्हें स्वीकार करना चाहिए कि उनके विश्‍वासी माता-पिता सलाहकारों के रूप में सुयोग्य हैं क्योंकि वे जीवन में अधिक अनुभवी हैं और उन्होंने अनेक सालों के दौरान अपनी प्रेममय चिन्ता साबित की है। अतः, अपने जीवन के इस चरण में, बुद्धिमान किशोर अपने माता-पिता से मुँह नहीं मोड़ेंगे।

६. अपने किशोरों के साथ संचार करने के बारे में बुद्धिमान और प्रेममय माता-पिता कैसी मनोवृत्ति रखेंगे?

खुले संचार का अर्थ है कि जनक उस समय उपलब्ध होने की पूरी कोशिश करेगा जब किशोर बात करने की ज़रूरत महसूस करता है। यदि आप एक जनक हैं, तो यह निश्‍चित कीजिए कि संचार कम-से-कम आपकी ओर से तो खुला है। यह शायद आसान न हो। बाइबल कहती है कि “चुप रहने का समय, और बोलने का भी समय है।” (सभोपदेशक ३:७) जब आपका किशोर महसूस करता है कि यह बोलने का समय है, तो यह शायद आपके चुप रहने का समय हो। संभवतः आपने वह समय व्यक्‍तिगत अध्ययन, विश्राम, या घर के काम के लिए अलग रखा है। फिर भी, यदि आपका युवा आपसे बात करना चाहता है, तो अपनी योजनाओं को समंजित करने की कोशिश कीजिए और सुनिए। नहीं तो, वह शायद फिर से कोशिश न करे। यीशु के उदाहरण को याद रखिए। एक अवसर पर, उसने विश्राम करने के लिए एक समय रखा था। लेकिन जब लोग उसकी सुनने के लिए भीड़ लगाने लगे, तो उसने आराम छोड़कर उन्हें सिखाना शुरू कर दिया। (मरकुस ६:३०-३४) अधिकांश किशोरों को इसका बोध होता है कि उनके माता-पिता व्यस्त जीवन व्यतीत करते हैं, लेकिन उन्हें इस आश्‍वासन की ज़रूरत होती है कि यदि ज़रूरत पड़ी तो उनके माता-पिता उनके लिए वहाँ हैं। अतः, उपलब्ध होइए और सहानुभूतिपूर्ण होइए।

७. माता-पिताओं को किस बात से दूर रहने की ज़रूरत है?

यह याद करने की कोशिश कीजिए कि जब आप एक किशोर थे तब कैसा था, और अपनी विनोदवृत्ति मत खोइए! माता-पिताओं को अपने बच्चों के साथ होने का आनन्द लेने की ज़रूरत है। जब खाली समय उपलब्ध होता है, तब माता-पिता उसे कैसे बिताते हैं? यदि वे हमेशा अपने खाली समय को उन कार्यों को करने में बिताना चाहते हैं जिनमें उनका परिवार सम्मिलित नहीं होता, तो उनके किशोर इसे जल्द ही नोट कर लेंगे। यदि किशोर इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि स्कूल के मित्र उनका ज़्यादा सम्मान करते हैं जितना कि उनके माता-पिता नहीं करते, तो उन्हें समस्याएँ निश्‍चित ही होएँगी।

क्या संचार करें

८. बच्चों के मन में ईमानदारी, परिश्रम, और सही चालचलन के प्रति मूल्यांकन कैसे बिठाया जा सकता है?

यदि माता-पिताओं ने पहले ही यत्नपूर्वक अपने बच्चों को ईमानदारी और परिश्रम का मूल्यांकन करना नहीं सिखाया है, तो उन्हें हर हालत में किशोरावस्था के दौरान ऐसा करना चाहिए। (१ थिस्सलुनीकियों ४:११; २ थिस्सलुनीकियों ३:१०) उनके लिए यह निश्‍चित करना भी अत्यावश्‍यक है कि उनके बच्चे एक नैतिक और स्वच्छ जीवन जीने के महत्त्व में पूरे हृदय से विश्‍वास करते हैं। (नीतिवचन २०:११) इन क्षेत्रों में एक जनक काफ़ी कुछ उदाहरण के द्वारा संचार करता है। जैसे अविश्‍वासी पति “बिना वचन के अपनी अपनी पत्नी के चालचलन के द्वारा खिंच” सकते हैं, बिलकुल वैसे ही किशोर अपने माता-पिता के चालचलन से सही सिद्धान्त सीख सकते हैं। (१ पतरस ३:१) फिर भी, अपने आप में उदाहरण कभी-भी काफ़ी नहीं है, चूँकि बच्चे घर के बाहर अनेक बुरे उदाहरणों और बहुत सारे प्रलोभक प्रसार के प्रभाव में भी आते हैं। इसलिए, परवाह करनेवाले माता-पिताओं को यह जानने की ज़रूरत है कि उनके किशोर जो देखते और सुनते हैं उसके बारे में उनके क्या विचार हैं, और यह अर्थपूर्ण वार्तालाप की माँग करता है।—नीतिवचन २०:५.

९, १०. माता-पिताओं को यह क्यों निश्‍चित करना चाहिए कि अपने बच्चों को लैंगिक मामलों के बारे में उपदेश दें, और वे यह कैसे कर सकते हैं?

यह ख़ासकर तब सच है जब लैंगिक मामलों की बात आती है। माता-पिताओं, क्या आप अपने बच्चों के साथ सॆक्स के बारे में चर्चा करने से लजाते हैं? यदि ऐसा है, तो भी बात करने का प्रयास कीजिए, क्योंकि आपके युवा इस विषय के बारे में किसी से तो निश्‍चित ही सीखेंगे। यदि वे आपसे नहीं सीखते, तो कौन जाने कैसी उलटी-सीधी जानकारी उनको मिले? बाइबल में, यहोवा लैंगिक स्वभाव के मामलों को नहीं टालता, और माता-पिताओं को भी नहीं टालना चाहिए।—नीतिवचन ४:१-४; ५:१-२१.

१० शुक्र है कि बाइबल में लैंगिक आचरण के क्षेत्र में स्पष्ट मार्गदर्शन है, और वॉचटावर सोसाइटी ने यह दिखाते हुए काफ़ी सहायक जानकारी प्रकाशित की है कि यह मार्गदर्शन इस आधुनिक संसार में अभी-भी लागू होता है। क्यों न इस मदद का लाभ उठाएँ? उदाहरण के लिए, क्यों न अपने पुत्र या पुत्री के साथ पुस्तक युवाओं के प्रश्‍न—व्यावहारिक उत्तर (अंग्रेज़ी) में भाग “सॆक्स और नैतिकता” पर पुनर्विचार करें? आपको परिणामों से शायद सुखद आश्‍चर्य हो।

११. माता-पिताओं द्वारा अपने बच्चों को यह सिखाने का कि यहोवा की सेवा कैसे करें, एक अति प्रभावकारी ढंग क्या है?

११ वह सबसे महत्त्वपूर्ण विषय कौन-सा है जिस पर माता-पिताओं और बच्चों को चर्चा करनी चाहिए? प्रेरित पौलुस ने इसका उल्लेख किया जब उसने लिखा: “प्रभु की शिक्षा और अनुशासन में [अपने बच्चों का] पालन-पोषण करो।” (इफिसियों ६:४, NHT) बच्चों को यहोवा के बारे में सीखते रहने की ज़रूरत है। ख़ासकर, उन्हें उससे प्रेम रखना सीखने की ज़रूरत है, और उन्हें उसकी सेवा करने की इच्छा होनी चाहिए। यहाँ भी, काफ़ी कुछ उदाहरण के द्वारा सिखाया जा सकता है। यदि किशोर देखते हैं कि उनके माता-पिता परमेश्‍वर से “अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ” प्रेम रखते हैं, और कि यह उनके माता-पिता के जीवन में अच्छे फल उत्पन्‍न करता है, तो अति संभव है कि वे भी ऐसा ही करने के लिए प्रभावित होंगे। (मत्ती २२:३७) उसी प्रकार, यदि युवा लोग देखते हैं कि उनके माता-पिता भौतिक वस्तुओं के बारे में संतुलित दृष्टिकोण रखते हैं, और परमेश्‍वर के राज्य को पहला स्थान देते हैं, तो उन्हें समान मनोवृत्ति विकसित करने में मदद मिलेगी।—सभोपदेशक ७:१२; मत्ती ६:३१-३३.

नियमित बाइबल अध्ययन परिवार के लिए अनिवार्य है

१२, १३. यदि पारिवारिक अध्ययन को सफल होना है तो कौन-से मुद्दों को ध्यान में रखा जाना चाहिए?

१२ एक साप्ताहिक पारिवारिक बाइबल अध्ययन युवा लोगों के साथ आध्यात्मिक मूल्यों पर संचार करने में एक उल्लेखनीय मदद है। (भजन ११९:३३, ३४; नीतिवचन ४:२०-२३) नियमित रूप से एक ऐसा अध्ययन करना अत्यावश्‍यक है। (भजन १:१-३) माता-पिताओं और उनके बच्चों को इसका बोध होना चाहिए कि पारिवारिक अध्ययन को योजित अन्य गतिविधियों से प्रमुखता मिलनी चाहिए, न कि इसका उलटा। इसके अतिरिक्‍त, यदि पारिवारिक अध्ययन को प्रभावकारी होना है तो सही मनोवृत्ति अनिवार्य है। एक पिता ने कहा: “इसका रहस्य है कि संचालक पारिवारिक अध्ययन के दौरान एक तनावमुक्‍त परन्तु आदरपूर्ण वातावरण का प्रोत्साहन दे—अनौपचारिक लेकिन बेतुका नहीं। सही संतुलन बनाना शायद हमेशा आसान न हो, और युवजनों को बारंबार मनोवृत्ति में बदलाव करने की ज़रूरत पड़ेगी। यदि एक या दो बार स्थिति ठीक नहीं है, तो प्रयास करते रहिए और अगली बार की आस देखिए।” इसी पिता ने कहा कि हर अध्ययन से पहले अपनी प्रार्थना में, वह सम्मिलित सभी जनों के सही दृष्टिकोण के लिए यहोवा से मदद का विशिष्ट रूप से निवेदन करता था।—भजन ११९:६६.

१३ पारिवारिक अध्ययन संचालित करना विश्‍वासी माता-पिताओं की ज़िम्मेदारी है। यह सच है कि कुछ माता-पिता शायद प्रतिभा-संपन्‍न शिक्षक न हों, और उनके लिए पारिवारिक अध्ययन को दिलचस्प बनाने के तरीक़े ढूँढना शायद मुश्‍किल हो। फिर भी, यदि आप अपने किशोरों को “काम और सत्य के द्वारा” प्रेम करते हैं, तो आप उनको आध्यात्मिक रूप से प्रगति करने में एक नम्र और निष्कपट रीति से मदद देने की अभिलाषा करेंगे। (१ यूहन्‍ना ३:१८) वे शायद कभी-कभार शिक़ायत करें, लेकिन संभव है कि वे उनके कल्याण में आपकी गहरी दिलचस्पी को भाँप लेंगे।

१४. किशोरों के साथ आध्यात्मिक बातों पर संचार करते समय व्यवस्थाविवरण ११:१८, १९ को कैसे लागू किया जा सकता है?

१४ आध्यात्मिक रूप से महत्त्वपूर्ण मामलों पर संचार करने के लिए पारिवारिक अध्ययन ही एकमात्र अवसर नहीं है। क्या आपको माता-पिताओं को दी गयी यहोवा की आज्ञा याद है? उसने कहा: “तुम मेरे ये वचन अपने अपने मन और प्राण में धारण किए रहना, और चिन्हानी के लिये अपने हाथों पर बान्धना, और वे तुम्हारी आंखों के मध्य में टीके का काम दें। और तुम घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते-उठते इनकी चर्चा करके अपने लड़केबालों को सिखाया करना।” (व्यवस्थाविवरण ११:१८, १९. व्यवस्थाविवरण ६:६, ७ भी देखिए।) इसका यह अर्थ नहीं कि माता-पिताओं को अपने बच्चों को निरन्तर भाषण देते रहना है। लेकिन एक प्रेममय पारिवारिक सिर को हमेशा ऐसे अवसरों की ताक में रहना चाहिए जब उसके परिवार का आध्यात्मिक दृष्टिकोण बढ़ेगा।

अनुशासन और आदर

१५, १६. (क) अनुशासन क्या है? (ख) अनुशासन देने के लिए कौन ज़िम्मेदार है, और यह निश्‍चित करने की ज़िम्मेदारी किसकी है कि उसका पालन किया जाएगा?

१५ अनुशासन वह प्रशिक्षण है जो सुधारता है, और इसमें संचार सम्मिलित है। अनुशासन में सज़ा से ज़्यादा सुधार का विचार है—हालाँकि सज़ा ज़रूरी हो सकती है। आपके बच्चों को अनुशासन की ज़रूरत थी जब वे छोटे थे, और अब जब वे किशोर हैं, उन्हें किसी-न-किसी रूप में इसकी ज़रूरत अभी-भी है, संभवतः और भी ज़्यादा। बुद्धिमान किशोर जानते हैं कि यह सच है।

१६ बाइबल कहती है: “मूर्ख अपने पिता की ताड़ना का तिरस्कार करता है, परन्तु जो पिता की डाँट-डपट का आदर करता है, वह चतुर है।” (नीतिवचन १५:५, NHT) हम इस शास्त्रवचन से काफ़ी कुछ सीखते हैं। यह सूचित करता है कि अनुशासन दिया जाएगा। एक किशोर “डाँट-डपट का आदर” नहीं कर सकता यदि वह दी न जाए। यहोवा अनुशासन देने की ज़िम्मेदारी माता-पिता को, ख़ासकर पिता को देता है। लेकिन, उस अनुशासन को सुनने की ज़िम्मेदारी किशोर की है। यदि वह अपने माता-पिता का बुद्धिमत्तापूर्ण अनुशासन मानता है तो वह ज़्यादा सीखेगा और कम ग़लतियाँ करेगा। (नीतिवचन १:८) बाइबल कहती है: “जो शिक्षा को सुनी-अनसुनी करता वह निर्धन होता और अपमान पाता है, परन्तु जो डांट को मानता, उसकी महिमा होती है।”—नीतिवचन १३:१८.

१७. अनुशासन देते समय माता-पिताओं को कौन-से संतुलन का लक्ष्य रखने की ज़रूरत है?

१७ किशोरों को अनुशासन देते समय माता-पिताओं को संतुलित होने की ज़रूरत है। उन्हें इतना सख़्त नहीं होना चाहिए कि वे अपनी संतान को खिज दिला दें, संभवतः अपने बच्चों के आत्म-विश्‍वास को भी हानि पहुँचा दें। (कुलुस्सियों ३:२१) और इसके बावजूद माता-पिता इतनी ढील नहीं देना चाहते कि उनके युवजन अत्यावश्‍यक प्रशिक्षण से वंचित रह जाएँ। ऐसी ढील अनर्थकारी हो सकती है। नीतिवचन २९:१७ (NHT) कहता है: “अपने पुत्र की ताड़ना कर, और उस से तुझे सुख मिलेगा। वह तेरे प्राण को भी आनन्दित करेगा।” परन्तु, आयत २१ (NW) कहती है: “यदि कोई अपने सेवक को लड़कपन से लाड़-प्यार कर रहा है, वह बड़ा होकर कृतघ्न भी बन जाएगा।” हालाँकि यह आयत एक सेवक के बारे में बात कर रही है, यह घराने में किसी युवा पर भी उतनी ही लागू होती है।

१८. अनुशासन किसका प्रमाण है, और जब माता-पिता संगत अनुशासन देते हैं तब क्या नहीं होता?

१८ असल में, उचित अनुशासन अपने बच्चे के प्रति जनक के प्रेम का एक प्रमाण है। (इब्रानियों १२:६, ११) यदि आप एक जनक हैं, तो आप जानते हैं कि संगत, कोमल अनुशासन बनाए रखना कठिन है। शान्ति के वास्ते, एक हठीले किशोर को अपनी मनमानी करने देना शायद ज़्यादा आसान लगे। लेकिन आगे चलकर, एक जनक जो यह आसान मार्ग अपनाता है वह इसका मूल्य चुकाएगा क्योंकि उसका घराना नियंत्रण से बाहर हो जाएगा।—नीतिवचन २९:१५; गलतियों ६:९.

कार्य और खेल

१९, २०. अपने किशोरों के लिए मनोरंजन के मामले के साथ माता-पिता बुद्धिमानी से कैसे निपट सकते हैं?

१९ पहले के समय में बच्चों से सामान्यतः यह अपेक्षा की जाती थी कि घर में या खेत में मदद करें। आज अनेक किशोरों के पास ढेर सारा खाली समय होता है जिस पर निरीक्षण नहीं होता। उस फ़ुरसत के समय को भरने के लिए, व्यापार जगत अत्यधिक मात्रा में सामग्री प्रदान करता है। इसमें यह तथ्य जोड़िए कि संसार नैतिकता के बाइबल स्तरों को बहुत कम महत्त्व देता है, और आपके पास है संभावित विपत्ति का एक सूत्र।

२० अतः, समझदार जनक मनोरंजन के बारे में अन्तिम फ़ैसले करने का अधिकार अपने पास रखता है। लेकिन, यह मत भूलिए कि किशोर बढ़ रहा है। हर साल, वह संभवतः आशा करेगा या करेगी कि उसके साथ ज़्यादा एक वयस्क के रूप में व्यवहार किया जाए। अतः, एक जनक के लिए यह बुद्धिमानी की बात है कि जैसे-जैसे किशोर बड़ा होता जाता है उसे मनोरंजन के चुनाव में ज़्यादा छूट दे—बशर्ते कि वे चुनाव आध्यात्मिक प्रौढ़ता की ओर उन्‍नति प्रतिबिंबित करें। कभी-कभी, किशोर शायद संगीत, साथियों इत्यादि के बारे में मूर्खतापूर्ण चुनाव करे। जब ऐसा होता है, तो किशोर के साथ इसकी चर्चा की जानी चाहिए जिससे कि भविष्य में बेहतर चुनाव किए जाएँ।

२१. मनोरंजन में बिताए गए समय के बारे में संतुलन एक किशोर को कैसे बचा सकता है?

२१ मनोरंजन के लिए कितना समय रखा जाना चाहिए? कुछ देशों में किशोरों को यह विश्‍वास करने की ओर ले जाया जाता है कि वे सतत मनबहलाव के हक़दार हैं। अतः, एक किशोर शायद अपनी सारणी ऐसी बनाए कि वह निरन्तर “मौज” मनाता रहे। यह पाठ सिखाना माता-पिता पर है कि परिवार, व्यक्‍तिगत अध्ययन, आध्यात्मिक रूप से प्रौढ़ व्यक्‍तियों के साथ संगति, मसीही सभाओं, और घर के काम जैसी दूसरी बातों में भी समय बिताया जाना चाहिए। यह “जीवन के सुख विलास” को परमेश्‍वर के वचन को दबाने से रोकेगा।—लूका ८:११-१५.

२२. एक किशोर के जीवन में मनोरंजन को किन बातों के साथ संतुलित होना चाहिए?

२२ राजा सुलैमान ने कहा: “मैं ने जान लिया है कि मनुष्यों के लिये आनन्द करने और जीवन भर भलाई करने के सिवाय, और कुछ भी अच्छा नहीं; और यह भी परमेश्‍वर का दान है कि मनुष्य खाए-पीए और अपने सब परिश्रम में सुखी रहे।” (सभोपदेशक ३:१२, १३) जी हाँ, आनन्द करना एक संतुलित जीवन का भाग है। लेकिन परिश्रम भी करना है। आज अनेक किशोर वह संतुष्टि जो परिश्रम से आती है या आत्म-सम्मान की वह भावना जो एक समस्या से जूझने और उसे हल करने से आती है, नहीं जानते। कुछ को एक कौशल या हुनर विकसित करने का अवसर नहीं दिया जाता जिसके द्वारा वे बड़े होकर अपने आपको संभाल सकें। यह जनक के लिए एक असली चुनौती है। क्या आप निश्‍चित करेंगे कि आपके युवा को ऐसे अवसर मिलते हैं? यदि आप अपने किशोर को परिश्रम को महत्त्व देना और यहाँ तक कि उसका आनन्द लेना सिखाने में सफल हो सकते हैं, तो वह एक हितकर दृष्टिकोण विकसित करेगा या करेगी जो जीवन भर लाभ लाएगा।

किशोर से वयस्क

अपने बच्चों के प्रति प्रेम और मूल्यांकन व्यक्‍त कीजिए

२३. माता-पिता अपने किशोरों को कैसे प्रोत्साहित कर सकते हैं?

२३ जब आपको अपने किशोर के साथ समस्याएँ होती हैं तब भी, यह शास्त्रवचन लागू होता है: “प्रेम कभी टलता नहीं।” (१ कुरिन्थियों १३:८) कभी वह प्रेम दिखाना न छोड़िए जो कि आप निश्‍चित ही महसूस करते हैं। अपने आपसे पूछिए, ‘क्या मैं समस्याओं से निपटने या बाधाओं को पार करने में उसकी सफलताओं के लिए हरेक बच्चे की सराहना करता हूँ? क्या मैं अपने बच्चों के प्रति अपने प्रेम और मूल्यांकन को व्यक्‍त करने के लिए अवसरों का लाभ उठाता हूँ, इससे पहले कि वे अवसर निकल जाएँ?’ हालाँकि कभी-कभी ग़लतफ़हमियाँ हो सकती हैं, यदि किशोर उनके प्रति आपके प्रेम के बारे में आश्‍वस्त महसूस करते हैं तो यह अधिक संभव है कि बदले में वे भी प्रेम देंगे।

२४. बच्चों को बड़ा करने के बारे में कौन-सा शास्त्रीय सिद्धान्त सामान्यतः लागू होता है, लेकिन किस बात को मन में रखा जाना चाहिए?

२४ निःसंदेह, जैसे-जैसे बच्चे वयस्कता की ओर बढ़ते हैं, वे अंततः अपने लिए बहुत भारी फ़ैसले करेंगे। कुछ मामलों में माता-पिता शायद उन फ़ैसलों को पसन्द न करें। यदि उनका बच्चा यहोवा परमेश्‍वर की सेवा करना जारी नहीं रखने का फ़ैसला करता है तब क्या? यह हो सकता है। स्वयं यहोवा के कुछ आत्मिक पुत्रों ने भी उसकी सलाह को ठुकरा दिया और विद्रोही साबित हुए। (उत्पत्ति ६:२; यहूदा ६) बच्चे कम्प्यूटर नहीं हैं, जिन्हें हमारी इच्छा के अनुसार चलने के लिए प्रोग्राम किया जा सकता है। वे स्वतंत्र इच्छायुक्‍त जीव हैं, जो अपने फ़ैसलों के लिए यहोवा के सामने ज़िम्मेदार हैं। फिर भी, नीतिवचन २२:६ सामान्यतः लागू होता है: “लड़के को शिक्षा उसी मार्ग की दे जिस में उसको चलना चाहिये, और वह बुढ़ापे में भी उस से न हटेगा।”

२५. माता-पिताओं द्वारा जनकता के विशेषाधिकार के लिए यहोवा को कृतज्ञता दिखाने का सबसे अच्छा तरीक़ा क्या है?

२५ तो फिर, अपने बच्चों को ढेर सारा प्रेम दिखाइए। उनको पालने में बाइबल सिद्धान्तों पर चलने का भरसक प्रयत्न कीजिए। ईश्‍वरीय चालचलन का एक उत्तम उदाहरण रखिए। इस प्रकार आप अपने बच्चों को ज़िम्मेदार, परमेश्‍वर का भय माननेवाले वयस्क बनने के लिए बड़ा होने का सर्वोत्तम अवसर देंगे। माता-पिताओं द्वारा जनकता के विशेषाधिकार के लिए यहोवा को कृतज्ञता दिखाने का यह सबसे अच्छा तरीक़ा है।