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अध्याय तीन

एक स्थायी विवाह की दो कुंजियाँ

एक स्थायी विवाह की दो कुंजियाँ

१, २. (क) विवाह को कितने समय तक चलने के लिए रचा गया था? (ख) यह कैसे संभव है?

जब परमेश्‍वर ने प्रथम पुरुष और स्त्री को विवाह में जोड़ा, तब इस बात का कोई संकेत नहीं था कि यह बंधन केवल तात्कालिक होता। आदम और हव्वा को आजीवन एकसाथ रहना था। (उत्पत्ति २:२४) एक आदरणीय विवाह के लिए परमेश्‍वर का स्तर है एक नर और एक नारी का मिलन। एक या दोनों साथियों की तरफ़ से केवल घोर लैंगिक अनैतिकता ही तलाक़ के लिए शास्त्रीय आधार प्रदान करती है जिसके बाद पुनःविवाह किया जा सकता है।—मत्ती ५:३२.

क्या दो व्यक्‍तियों के लिए बहुत लम्बे समय तक एकसाथ सुखपूर्वक रहना संभव है? जी हाँ, और बाइबल दो अत्यावश्‍यक तत्वों, या कुंजियों की पहचान कराती है, जो इसे संभव बनाने में मदद देती हैं। यदि पति-पत्नी दोनों इनका प्रयोग करें, तो वे सुख और अनेक आशिषों का द्वार खोल पाएँगे। ये कुंजियाँ क्या हैं?

पहली कुंजी

३. विवाह-साथियों को कौन-से तीन प्रकार के प्रेम विकसित करने चाहिए?

पहली कुंजी है प्रेम। दिलचस्पी की बात है कि बाइबल में कई प्रकार के प्रेम की पहचान करायी गयी है। एक है किसी व्यक्‍ति के लिए स्नेही, व्यक्‍तिगत प्रीति, उस प्रकार का प्रेम जो घनिष्ठ मित्रों के बीच होता है। (यूहन्‍ना ११:३) दूसरा है वह प्रेम जो परिवार के सदस्यों के बीच बढ़ता है। (रोमियों १२:१०) तीसरा है रोमानी प्रेम जो एक व्यक्‍ति विपरीत लिंग के एक सदस्य से कर सकता है। (नीतिवचन ५:१५-२०) निःसंदेह, एक पति-पत्नी को ये सभी विकसित करने चाहिए। लेकिन एक चौथे प्रकार का प्रेम है, दूसरों से अधिक महत्त्वपूर्ण।

४. चौथे प्रकार का प्रेम कौन-सा है?

मसीही यूनानी शास्त्र की मौलिक भाषा में, इस चौथे प्रकार के प्रेम के लिए शब्द है अगापे। यह शब्द १ यूहन्‍ना ४:८ में प्रयोग किया गया है, जहाँ हमसे कहा गया है: “परमेश्‍वर प्रेम है।” सचमुच, “हम इसलिये प्रेम करते हैं, कि पहिले [परमेश्‍वर] ने हम से प्रेम किया।” (१ यूहन्‍ना ४:१९) एक मसीही ऐसा प्रेम पहले यहोवा परमेश्‍वर के लिए और फिर संगी मनुष्यों के लिए विकसित करता है। (मरकुस १२:२९-३१) शब्द अगापे इफिसियों ५:२ में भी प्रयोग किया गया है, जो कहता है: “प्रेम में चलो; जैसे मसीह ने भी तुम से प्रेम किया; और हमारे लिये अपने आप को . . . बलिदान कर दिया।” यीशु ने कहा कि इस प्रकार का प्रेम उसके सच्चे अनुयायियों की पहचान कराता: “यदि आपस में प्रेम [अगापे] रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्‍ना १३:३५) पहला कुरिन्थियों १३:१३ में भी अगापे के प्रयोग पर ध्यान दीजिए: “विश्‍वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थाई हैं, पर इन में सब से बड़ा प्रेम [अगापे] है।”

५, ६. (क) प्रेम विश्‍वास और आशा से बड़ा क्यों है? (ख) इसके कुछ कारण क्या हैं कि क्यों प्रेम एक विवाह को स्थायी बनाने में मदद देगा?

कौन-सी बात इस अगापे प्रेम को विश्‍वास और आशा से बड़ा बनाती है? यह सिद्धान्तों द्वारा नियंत्रित है—सही सिद्धान्त—जो परमेश्‍वर के वचन में पाए जाते हैं। (भजन ११९:१०५) यह दूसरों के प्रति वह करने की निःस्वार्थ चिन्ता है जो परमेश्‍वर के दृष्टिकोण से सही और भला है, चाहे प्रापक उसके योग्य प्रतीत होता हो या नहीं। ऐसा प्रेम विवाह-साथियों को बाइबल की यह सलाह मानने में समर्थ करता है: “यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो।” (कुलुस्सियों ३:१३) प्रेममय विवाहित दम्पति “एक दूसरे से अधिक प्रेम [अगापे]” रखते हैं और वे इसे विकसित करते हैं “क्योंकि प्रेम अनेक पापों को ढांप देता है।” (१ पतरस ४:८) ध्यान दीजिए कि प्रेम ग़लतियों को ढांप देता है। वह उनको मिटा नहीं देता, चूँकि कोई भी अपरिपूर्ण मनुष्य दोष से मुक्‍त नहीं हो सकता।—भजन १३०:३, ४; याकूब ३:२.

जब एक विवाहित दम्पति परमेश्‍वर और एक दूसरे के प्रति ऐसा प्रेम विकसित करते हैं, तब उनका विवाह स्थायी और सुखी होगा, क्योंकि “प्रेम कभी टलता नहीं।” (१ कुरिन्थियों १३:८) प्रेम “एकता का सिद्ध बन्ध है।” (कुलुस्सियों ३:१४, NHT) यदि आप विवाहित हैं, तो आप और आपका साथी इस प्रकार के प्रेम को कैसे विकसित कर सकते हैं? परमेश्‍वर के वचन को एकसाथ पढ़िए, और उसके बारे में बात कीजिए। प्रेम के सम्बन्ध में यीशु के उदाहरण का अध्ययन कीजिए और उसका अनुकरण करने, उसके जैसे सोचने और कार्य करने की कोशिश कीजिए। इसके अलावा, मसीही सभाओं में उपस्थित होइए, जहाँ परमेश्‍वर का वचन सिखाया जाता है। और इस उन्‍नत प्रकार के प्रेम को विकसित करने के लिए, जो कि परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा का एक फल है, परमेश्‍वर की मदद के लिए प्रार्थना कीजिए।—नीतिवचन ३:५, ६; यूहन्‍ना १७:३; गलतियों ५:२२; इब्रानियों १०:२४, २५.

दूसरी कुंजी

७. आदर क्या है, और विवाह में किसे आदर दिखाना चाहिए?

यदि दो विवाहित लोग सचमुच एक दूसरे से प्रेम करते हैं, तो वे एक दूसरे का आदर भी करेंगे, और आदर एक सुखी विवाह की दूसरी कुंजी है। आदर को ऐसे परिभाषित किया गया है, “दूसरों के प्रति विचारशील होना, उनका सम्मान करना।” परमेश्‍वर का वचन सभी मसीहियों को सलाह देता है, जिसमें पति-पत्नियाँ सम्मिलित हैं: “परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।” (रोमियों १२:१०) प्रेरित पतरस ने लिखा: “हे पतियो, तुम भी बुद्धिमानी से [अपनी] पत्नियों के साथ जीवन निर्वाह करो और स्त्री को निर्बल पात्र जानकर उसका आदर करो।” (१ पतरस ३:७) पत्नी को सलाह दी गयी है कि ‘अपने पति का गहरा आदर करे।’ (इफिसियों ५:३३, NW) यदि आप किसी व्यक्‍ति का सम्मान करना चाहते हैं, तो आप उस व्यक्‍ति के प्रति कृपालु होते हैं, उसकी गरिमा और व्यक्‍त विचारों का आदर करते हैं, और आपसे किया गया कोई भी उचित निवेदन पूरा करने के लिए तैयार रहते हैं।

८-१०. कौन-से कुछ तरीक़ों से आदर एक वैवाहिक बंधन को स्थिर और सुखी बनाने में मदद देगा?

जो एक सुखी विवाह का आनन्द उठाना चाहते हैं वे “अपनी ही हित की नहीं, बरन [अपने साथी] की हित की भी चिन्ता” करने के द्वारा अपने साथी के प्रति आदर दिखाते हैं। (फिलिप्पियों २:४) वे उस पर विचार नहीं करते जो केवल उनके लिए अच्छा है—जो कि स्वार्थ होता। इसके बजाय, वे उस पर विचार करते हैं जो उनके साथी के लिए भी सर्वोत्तम है। वास्तव में, वे उसे प्राथमिकता देते हैं।

आदर विवाह-साथियों को यह स्वीकार करने में मदद देगा कि विचारों में अन्तर होता है। यह अपेक्षा करना तर्कसंगत नहीं है कि दो व्यक्‍तियों का हर बात पर समान विचार हो। जो शायद एक पति के लिए महत्त्वपूर्ण हो वह एक पत्नी के लिए शायद उतना महत्त्वपूर्ण न हो, और जो एक पत्नी को पसन्द हो वह शायद एक पति की पसन्द न हो। लेकिन हरेक को दूसरे के विचारों और पसन्द का आदर करना चाहिए, बशर्ते कि ये यहोवा के नियमों और सिद्धान्तों की सीमाओं के अन्दर हैं। (१ पतरस २:१६. फिलेमोन १४ से तुलना कीजिए।) इसके अलावा, सबके सामने हो या अकेले में, दूसरे को अपमानजनक टिप्पणियों या हँसी का पात्र न बनाने के द्वारा हरेक को दूसरे की गरिमा का आदर करना चाहिए।

१० जी हाँ, परमेश्‍वर के और एक दूसरे के प्रति प्रेम और परस्पर आदर एक सफल विवाह की दो अत्यावश्‍यक कुंजियाँ हैं। ये विवाहित जीवन के कुछ ज़्यादा महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में कैसे लागू की जा सकती हैं?

मसीह-तुल्य मुखियापन

११. शास्त्रानुसार, एक विवाह में सिर कौन है?

११ बाइबल हमें बताती है कि पुरुष उन गुणों के साथ सृजा गया था जो उसे एक सफल पारिवारिक सिर बनाते। सो, पुरुष यहोवा के सामने अपनी पत्नी और बच्चों के आध्यात्मिक और भौतिक हित के लिए ज़िम्मेदार होता। उसे संतुलित फ़ैसले करने होते जो यहोवा की इच्छा प्रतिबिम्बित करते और उसे धर्म-परायण आचरण का एक अच्छा उदाहरण होना था। “हे पत्नियो, अपने अपने पति के ऐसे आधीन रहो, जैसे प्रभु के। क्योंकि पति पत्नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है।” (इफिसियों ५:२२, २३) लेकिन, बाइबल कहती है कि पति का भी एक सिर है, वह जिसे उस पर अधिकार है। प्रेरित पौलुस ने लिखा: “मैं चाहता हूं, कि तुम यह जान लो, कि हर एक पुरुष का सिर मसीह है: और स्त्री का सिर पुरुष है: और मसीह का सिर परमेश्‍वर है।” (१ कुरिन्थियों ११:३) स्वयं अपने सिर, मसीह यीशु का अनुकरण करने के द्वारा बुद्धिमान पति सीखता है कि मुखियापन कैसे चलाना है।

१२. अधीनता दिखाने और मुखियापन चलाने, दोनों ही में यीशु ने कौन-सा उत्तम उदाहरण रखा?

१२ यीशु का भी एक सिर है, यहोवा, और वह सही ढंग से उसके अधीन है। यीशु ने कहा: “मैं अपनी इच्छा नहीं, परन्तु अपने भेजनेवाले की इच्छा चाहता हूं।” (यूहन्‍ना ५:३०) क्या ही श्रेष्ठ उदाहरण! यीशु “सारी सृष्टि में पहिलौठा है।” (कुलुस्सियों १:१५) वह मसीहा बना। उसे अभिषिक्‍त मसीहियों की कलीसिया का सिर और सभी स्वर्गदूतों के ऊपर, परमेश्‍वर के राज्य का चुना हुआ राजा होना था। (फिलिप्पियों २:९-११; इब्रानियों १:४) इतने ऊँचे पद और इतनी उन्‍नत प्रत्याशाओं के बावजूद, मनुष्य यीशु कठोर, अनम्य, या अत्यधिक माँग करनेवाला नहीं था। वह एक तानाशाह नहीं था, जो अपने शिष्यों को हमेशा याद दिलाता रहे कि उन्हें उसकी आज्ञा माननी थी। यीशु प्रेममय और करुणामय था, ख़ासकर पददलितों के प्रति। उसने कहा: “हे सब परिश्रम करनेवालो और बोझ से दबे हुए लोगो, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे। क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हलका है।” (मत्ती ११:२८-३०) उसकी संगति में रहना आनन्दप्रद था।

१३, १४. एक प्रेममय पति यीशु की नक़ल करते हुए अपना मुखियापन कैसे चलाएगा?

१३ एक सुखी पारिवारिक जीवन की अभिलाषा करनेवाला पति यीशु के उत्तम गुणों पर विचार करने में भला करता है। एक अच्छा पति कठोर और निरंकुश नहीं होता, जो अपनी पत्नी पर धौंस जमाने के लिए एक हथियार के रूप में अपने मुखियापन का दुरुपयोग करे। इसके बजाय, वह उसको प्रेम करता और सम्मान देता है। यदि यीशु “मन में दीन” था, तो पति के पास दीन होने का और भी कारण है क्योंकि यीशु से भिन्‍न, वह ग़लतियाँ करता है। जब वह करता है, तब वह अपनी पत्नी की हमदर्दी चाहता है। इसलिए, नम्र पति अपनी ग़लतियाँ मानता है, हालाँकि ये शब्द कहना शायद मुश्‍किल हो, “मुझे क्षमा कर दीजिए, आप सही थीं।” एक पत्नी एक घमण्डी और हठीले पति के बनिस्बत एक मर्यादित और नम्र पति के मुखियापन का आदर करना कहीं ज़्यादा आसान पाएगी। क्रमशः, आदरमय पत्नी भी क्षमा माँगती है जब उससे भूल होती है।

१४ परमेश्‍वर ने स्त्री को उत्तम गुणों के साथ सृजा जिन्हें वह एक सुखी विवाह में योग देने के लिए प्रयोग कर सकती है। एक बुद्धिमान पति इसे पहचानेगा और उसको दबाएगा नहीं। लगता है कि अनेक स्त्रियों में ज़्यादा करुणा और संवेदनशीलता होती है, वे गुण जिनकी एक परिवार की देखरेख करने और मानव सम्बन्धों को पोषित करने में ज़रूरत होती है। प्रायः, स्त्री घर को रहने के लिए एक सुखद स्थान बनाने में काफ़ी निपुण होती है। नीतिवचन अध्याय ३१ में वर्णित “भली पत्नी” के पास अनेक उत्कृष्ट गुण और अत्युत्तम कौशल थे, और उसके परिवार ने उनसे पूरा-पूरा लाभ उठाया। क्यों? क्योंकि उसके पति के मन में उसके प्रति “विश्‍वास” है।—नीतिवचन ३१:१०, ११.

१५. एक पति अपनी पत्नी के लिए मसीह-तुल्य प्रेम और आदर कैसे दिखा सकता है?

१५ कुछ संस्कृतियों में, एक पति के अधिकार पर ज़रूरत से ज़्यादा ज़ोर दिया जाता है, जिससे कि उससे एक प्रश्‍न पूछना भी अनादरपूर्ण समझा जाता है। वह शायद अपनी पत्नी के साथ मानो एक दासी के समान व्यवहार करे। मुखियापन का ऐसा ग़लत प्रयोग न सिर्फ़ उसकी पत्नी के साथ बल्कि परमेश्‍वर के साथ भी एक तुच्छ सम्बन्ध में परिणित होता है। (१ यूहन्‍ना ४:२०, २१ से तुलना कीजिए।) दूसरी ओर, कुछ पति अगुवाई लेने में लापरवाही करते हैं और अपनी पत्नियों को घरबार पर प्रभुत्व करने देते हैं। जो पति सही ढंग से मसीह के अधीन है वह अपनी पत्नी का शोषण नहीं करता या उसे गरिमा से वंचित नहीं करता। इसके बजाय, वह यीशु के आत्म-बलिदानी प्रेम की नक़ल करता है और पौलुस की सलाह को मानता है: “हे पतियो, अपनी अपनी पत्नी से प्रेम रखो, जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिये दे दिया।” (इफिसियों ५:२५) मसीह यीशु अपने अनुयायियों से इतना प्रेम करता था कि वह उनके लिए मर गया। एक अच्छा पति उस निःस्वार्थ मनोवृत्ति की नक़ल करने की कोशिश करेगा, अपनी पत्नी से अधिक माँग करने के बजाय उसकी भलाई चाहेगा। जब एक पति मसीह के अधीन है और मसीह-तुल्य प्रेम और आदर दिखाता है, तो उसकी पत्नी उसके अधीन होने के लिए प्रेरित होगी।—इफिसियों ५:२८, २९, ३३.

पत्नीवत्‌ अधीनता

१६. अपने पति से साथ अपने सम्बन्ध में एक पत्नी को कौन-से गुण दिखाने चाहिए?

१६ आदम की सृष्टि के कुछ समय बाद, “यहोवा परमेश्‍वर ने आगे कहा: ‘यह अच्छा नहीं कि पुरुष अकेला रहे। मैं उसके एक सम्पूरक के रूप में उसके लिए एक सहायक बनाऊँगा।’” (उत्पत्ति २:१८, NW) परमेश्‍वर ने हव्वा को “एक सम्पूरक” के रूप में सृजा था, एक प्रतिद्वंद्वी के रूप में नहीं। विवाह को एक ऐसे जहाज़ के समान नहीं होना था जिसमें दो प्रतिद्वंद्वी कप्तान हों। पति को प्रेममय मुखियापन चलाना था, और पत्नी को प्रेम, आदर, और ऐच्छिक अधीनता दिखानी थी।

१७, १८. कौन-से कुछ तरीक़ों से एक पत्नी अपने पति के लिए एक वास्तविक सहायक हो सकती है?

१७ लेकिन, एक अच्छी पत्नी मात्र अधीनता ही नहीं दिखाती। वह एक वास्तविक सहायक होने की कोशिश करती है, पति जो फ़ैसले करता है उनमें उसका समर्थन करती है। निःसंदेह, जब वह उसके फ़ैसलों से सहमत होती है तब उसके लिए यह करना ज़्यादा आसान होता है। लेकिन जब वह सहमत नहीं होती, तब भी उसके सक्रिय समर्थन से पति के फ़ैसले को अधिक सफल परिणाम पाने में मदद मिल सकती है।

१८ एक पत्नी अन्य तरीक़ों से अपने पति को एक अच्छा सिर होने में मदद दे सकती है। वह अगुवाई लेने में उसके प्रयासों के लिए मूल्यांकन व्यक्‍त कर सकती है, बजाय इसके कि उसकी आलोचना करे या उसे यह महसूस कराए कि वह उसे कभी संतुष्ट नहीं कर सकता। अपने पति के साथ एक सकारात्मक रीति से व्यवहार करते समय, उसे याद रखना चाहिए कि ‘नम्रता और मन की दीनता का परमेश्‍वर की दृष्टि में बड़ा मूल्य है,’ केवल उसके पति की दृष्टि में ही नहीं। (१ पतरस ३:३, ४; कुलुस्सियों ३:१२) यदि पति एक विश्‍वासी नहीं है तब क्या? चाहे वह है या नहीं, शास्त्र पत्नियों को प्रोत्साहित करता है कि “अपने पतियों और बच्चों से प्रीति रखें। और संयमी, पतिव्रता, घर का कारबार करनेवाली, भली और अपने अपने पति के आधीन रहनेवाली हों, ताकि परमेश्‍वर के वचन की निन्दा न होने पाए।” (तीतुस २:४, ५) अंतःकरण के मामले उठने पर, यदि बात “मृदुल भाव और गहरे आदर” (NW) के साथ प्रस्तुत की जाए तो इसकी संभावना अधिक है कि एक अविश्‍वासी पति अपनी पत्नी की स्थिति का आदर करेगा। कुछ अविश्‍वासी पति “[उनके] पवित्र और सम्माननीय चाल-चलन को ध्यानपूर्वक देखकर वचन बिना ही अपनी अपनी पत्नियों के व्यवहार से जीते” गए हैं।—१ पतरस ३:१, २, १५, NHT; १ कुरिन्थियों ७:१३-१६.

१९. यदि एक पति अपनी पत्नी से परमेश्‍वर का नियम तोड़ने को कहता है तब क्या?

१९ यदि एक पति अपनी पत्नी से कोई ऐसा कार्य करने को कहता है जो परमेश्‍वर द्वारा निषिद्ध है तब क्या? यदि ऐसा होता है, तो उसे याद रखना चाहिए कि परमेश्‍वर उसका सर्वोच्च शासक है। अधिकारियों द्वारा परमेश्‍वर के नियम का उल्लंघन करने के लिए कहे जाने पर प्रेरितों ने जो किया वह उसे एक उदाहरण के रूप में लेती है। प्रेरितों ५:२९ कहता है: “पतरस और, और प्रेरितों ने उत्तर दिया, कि मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन करना ही कर्तव्य कर्म है।”

अच्छा संचार

२०. एक अति-महत्त्वपूर्ण क्षेत्र कौन-सा है जहाँ प्रेम और आदर अनिवार्य हैं?

२० प्रेम और आदर विवाह के एक और क्षेत्र में अनिवार्य हैं—संचार। प्रेममय पति अपनी पत्नी के साथ उसकी गतिविधियों, उसकी समस्याओं, विभिन्‍न विषयों पर उसके विचारों के बारे में बातचीत करेगा। पत्नी को इसकी ज़रूरत है। एक पति जो अपनी पत्नी के साथ बात करने के लिए समय निकालता है और जो उसकी बात वास्तव में सुनता है वह उसके प्रति अपना प्रेम और आदर दिखाता है। (याकूब १:१९) कुछ पत्नियाँ शिक़ायत करती हैं कि उनके पति उनके साथ बातचीत करने में बहुत कम समय बिताते हैं। यह दुःख की बात है। यह सच है कि इस व्यस्त समय में पति शायद घर से बाहर देर-देर तक काम करें, और आर्थिक स्थिति के कारण कुछ पत्नियों को भी नौकरी करनी पड़े। लेकिन एक विवाहित दम्पति को एक दूसरे के लिए समय अलग रखने की ज़रूरत है। नहीं तो, वे शायद एक दूसरे से स्वतंत्र हो जाएँ। और यदि वे वैवाहिक प्रबन्ध के बाहर सहानुभूतिपूर्ण संगति ढूँढने के लिए विवश महसूस करें, तो यह गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है।

२१. समुचित बोली एक विवाह को सुखी रखने में कैसे मदद देगी?

२१ पत्नियाँ और पति जिस ढंग से संचार करते हैं वह महत्त्वपूर्ण है। “मनभावने वचन . . . प्राणों को मीठे लगते, और हड्डियों को हरी-भरी करते हैं।” (नीतिवचन १६:२४) चाहे साथी एक विश्‍वासी है या नहीं, बाइबल सलाह लागू होती है: “तुम्हारा वचन सदा अनुग्रह सहित और सलोना हो,” अर्थात्‌ मधुर हो। (कुलुस्सियों ४:६) जब एक व्यक्‍ति का दिन अच्छा नहीं गुज़रा, तो अपने साथी के कुछ कृपा और सहानुभूति से भरे शब्द काफ़ी भला कर सकते हैं। “जैसे चान्दी की टोकरियों में सोनहले सेब हों वैसा ही ठीक समय पर कहा हुआ वचन होता है।” (नीतिवचन २५:११) सुर और शब्दों का चयन बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए, एक चिड़चिड़े, रोबीले ढंग से एक जन दूसरे को कह सकता है: “दरवाज़ा बंद कर!” लेकिन एक शान्त, हमदर्दी-भरी आवाज़ में कहे गए ये शब्द कितने अधिक ‘सलोने’ हैं, “कृपया दरवाज़ा बंद कर दीजिए!”

२२. अच्छा संचार बनाए रखने के लिए दम्पतियों को कैसी मनोवृत्तियों की ज़रूरत है?

२२ जब नरमी से कहे शब्द, शालीन भाव-भंगिमा, कृपालुता, समझदारी, और कोमलता होती है, तो अच्छा संचार फलता-फूलता है। अच्छा संचार बनाए रखने के लिए मेहनत करने के द्वारा, पति-पत्नी दोनों अपनी ज़रूरतें खुलकर व्यक्‍त कर पाएँगे, और वे निराशा या तनाव के समय में एक दूसरे के लिए सांत्वना और सहायता के स्रोत हो सकते हैं। “हताश प्राणों से सांत्वनापूर्वक बोलो,” परमेश्‍वर का वचन आग्रह करता है। (१ थिस्सलुनीकियों ५:१४, NW) ऐसे समय होंगे जब पति उदास होता है और ऐसे भी समय होंगे जब पत्नी उदास होती है। वे ‘सांत्वनापूर्वक बोल’ सकते हैं और एक दूसरे का हौसला बढ़ा सकते हैं।—रोमियों १५:२.

२३, २४. मतभेद होने पर प्रेम और आदर कैसे मदद करेंगे? एक उदाहरण दीजिए।

२३ प्रेम और आदर दिखानेवाले विवाह-साथी हर मतभेद को एक चुनौती के रूप में नहीं देखेंगे। वे एक दूसरे से “अत्यधिक क्रोधित” न होने का पूरा प्रयास करेंगे। (कुलुस्सियों ३:१९, NW) दोनों को याद रखना चाहिए कि “कोमल उत्तर सुनने से जलजलाहट ठण्डी होती है।” (नीतिवचन १५:१) ध्यान रखिए कि एक साथी जो अपनी हार्दिक भावनाएँ उँडेलता है उसे नीचा न दिखाएँ अथवा उसकी निन्दा न करें। इसके बजाय, ऐसी अभिव्यक्‍तियों को दूसरे के दृष्टिकोण में अंतर्दृष्टि पाने का एक अवसर समझिए। एकसाथ, मतभेदों को दूर करने की कोशिश कीजिए और एक आपसी समझौते पर पहुँचिए।

२४ याद कीजिए वह अवसर जब सारा ने अपने पति, इब्राहीम को अमुक समस्या का एक हल बताया और वह उसकी भावनाओं से मेल नहीं खाया। फिर भी, परमेश्‍वर ने इब्राहीम से कहा: “उसकी सुन।” (उत्पत्ति २१:९-१२, NHT) इब्राहीम ने सुना, और उसे आशिष मिली। उसी प्रकार, यदि एक पत्नी उससे किसी भिन्‍न बात का सुझाव रखती है जो उसके पति के मन में है, तो कम-से-कम उसे सुनना चाहिए। साथ ही साथ, एक पत्नी को सारे समय ख़ुद ही बोलते नहीं रहना चाहिए बल्कि सुनना चाहिए कि उसके पति को क्या कहना है। (नीतिवचन २५:२४) पति या पत्नी, दोनों में से किसी के लिए भी हर समय अपनी बात मनवाने का हठ करना प्रेमरहित और अनादरपूर्ण है।

२५. अच्छा संचार वैवाहिक जीवन के अंतरंग पहलुओं में सुख पाने में कैसे योग देगा?

२५ अच्छा संचार एक दम्पति के लैंगिक सम्बन्ध में भी महत्त्वपूर्ण है। स्वार्थ और आत्म-संयम की कमी विवाह में इस अति अंतरंग सम्बन्ध को गंभीर रूप से क्षति पहुँचा सकते हैं। धैर्य के साथ-साथ, खुला संचार अति-महत्त्वपूर्ण है। जब हरेक निःस्वार्थ होकर दूसरे का हित चाहता है, तब लैंगिक सम्बन्ध शायद ही कभी एक गंभीर समस्या होता है। अन्य मामलों की तरह इसमें भी ‘कोई अपने ही हित की चिन्ता न करे परन्तु दूसरे के हित की भी चिन्ता करे।’—१ कुरिन्थियों ७:३-५; १०:२४, NHT.

२६. हालाँकि हर विवाह में अपने उतार-चढ़ाव आएँगे, परमेश्‍वर के वचन की सुनना विवाहित दम्पतियों को सुख पाने में कैसे मदद देगा?

२६ परमेश्‍वर का वचन क्या ही उत्तम सलाह देता है! यह सच है कि हर विवाह में अपने उतार-चढ़ाव आएँगे। लेकिन जब विवाह-साथी यहोवा के सोच-विचार के अधीन होते हैं, जो बाइबल में प्रकट किए गए हैं, और अपने सम्बन्ध को सैद्धान्तिक प्रेम और आदर पर आधारित करते हैं, तब वे विश्‍वस्त हो सकते हैं कि उनका विवाह स्थायी और सुखी होगा। इस प्रकार वे न सिर्फ़ एक दूसरे को बल्कि विवाह के आरंभक, यहोवा परमेश्‍वर को भी सम्मान देंगे।