कहानी 25
पूरा परिवार मिस्र आ गया
अब यूसुफ से रहा नहीं जा रहा था। वह अपने भाइयों को अपनी असली पहचान बताना चाहता था। इसलिए उसने अपने सारे नौकरों को कमरे से बाहर जाने के लिए कहा। जब वह अपने भाइयों के साथ अकेला रह गया, तो वह फूट-फूटकर रोने लगा। सोचिए, यह देखकर उसके भाई कितने हैरान रह गए होंगे। उनकी तो समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर वह रो क्यों रहा है। तब यूसुफ ने उनसे कहा: ‘मैं यूसुफ हूँ। पिताजी कैसे हैं?’
यह सुनकर उसके भाई चौंक गए। वे इतने डर गए कि उनकी बोलती बंद हो गयी। लेकिन यूसुफ ने उनसे कहा: ‘घबराओ नहीं। मेरे पास आओ।’ जब वे उसके पास गए, तो यूसुफ ने उनसे कहा: ‘मैं तुम्हारा भाई हूँ, यूसुफ, जिसे तुमने बेच दिया था।’
यूसुफ ने उनसे प्यार से कहा: ‘तुम इस बात के लिए खुद को दोष मत दो कि तुमने मुझे बेच दिया था। यह सब परमेश्वर की मरज़ी से हुआ है। वह चाहता था कि मैं मिस्र लाया जाऊँ, ताकि लोगों की जान बचायी जा सके। अब फिरौन ने मुझे पूरे देश का अधिकारी बना दिया है। इसलिए तुम पिताजी के पास जाओ, उन्हें ये सारी बातें बताओ और उनसे यहाँ आकर रहने को कहो।’
फिर यूसुफ अपने सभी भाइयों से गले मिला। जब फिरौन को यह खबर मिली कि यूसुफ के भाई आए हुए हैं, तो उसने यूसुफ से कहा: ‘अपने भाइयों के साथ कुछ बैलगाड़ियाँ भी भिजवा दो। और अपने पिता और उनके सारे परिवार को यहाँ ले आने के लिए कहो। मैं उन्हें रहने के लिए मिस्र की अच्छी-से-अच्छी जगह दूँगा।’
जैसा फिरौन ने कहा, यूसुफ के भाइयों ने वैसा ही किया। वे अपने पिता और सारे परिवार को लेकर मिस्र आ गए। देखिए, यहाँ यूसुफ कैसे अपने पिता से गले मिल रहा है।
याकूब का परिवार पहले से बहुत बड़ा हो गया था। 70 जन तो सिर्फ याकूब और उसके बेटे-बेटियाँ और पोते-पोतियाँ थे। इनके अलावा, याकूब की बहुएँ और कई नौकर-चाकर भी थे। वे सब मिस्र में रहने लगे। उन सभी को इस्राएली कहा जाने लगा, क्योंकि परमेश्वर ने याकूब का नाम बदलकर इस्राएल रख दिया था। आगे चलकर इस्राएली यहोवा परमेश्वर के लोग कहलाए। वह उनकी कदम-कदम पर मदद करता रहा। इस बारे में हम आगे और देखेंगे।