कोने का पत्थर
इमारत की दो दीवारें जहाँ मिलती थीं, उस कोने पर लगाया जानेवाला पत्थर। दीवारों को जोड़ने और मज़बूत करने के लिए यह पत्थर ज़रूरी होता था। कोने का वह पत्थर सबसे अहम होता था जो नींव में डाला जाता था। इसलिए सार्वजनिक इमारतों और शहरपनाहों में यह पत्थर मज़बूत किस्म का होता था। ये शब्द लाक्षणिक तौर पर भी इस्तेमाल हुए हैं जैसे, धरती की नींव डालने के लिए। मसीही मंडली की तुलना परमेश्वर के भवन से की गयी है और यीशु को उसकी “नींव के कोने का पत्थर” कहा गया है।—इफ 2:20; अय 38:6.