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अध्याय 3

“मैं . . . दिल से दीन हूँ”

“मैं . . . दिल से दीन हूँ”

“तेरा राजा तेरे पास आएगा””

1-3. यीशु किस तरह यरूशलेम आता है? उसे देखकर कुछ लोग क्यों हक्के-बक्के रह जाते हैं?

 यरूशलेम में चारों तरफ काफी चहल-पहल है। थोड़ी ही देर में वहाँ एक महान व्यक्‍ति आनेवाला है! शहर के बाहर, सड़क के किनारे लोगों का ताँता लगा है। सबकी आँखें उस आदमी को देखने के लिए तरस रही हैं! कुछ लोगों का कहना है कि वह राजा दाविद के वंश का है और इसराएल पर हुकूमत करने का असली हकदार है। उसका स्वागत करने के लिए बहुत-से लोग हाथों में खजूर की डालियाँ लिए खड़े हैं, तो दूसरे अपने ओढ़ने और पेड़ की डालियाँ सड़क पर बिछा रहे हैं और उसके लिए रास्ता तैयार कर रहे हैं। (मत्ती 21:7, 8; यूहन्‍ना 12:12, 13) रह-रहकर लोगों के मन में यही सवाल घूम रहा है कि न जाने वह महान व्यक्‍ति किस तरह शहर में दाखिल होगा।

2 कुछ लोग सोच रहे हैं कि वह व्यक्‍ति पूरी ठाठ-बाट से आएगा। उन्हें ऐसे कितने ही नामी लोगों के बारे में मालूम है जो बड़ी धूमधाम से आए थे। उदाहरण के लिए, जब दाविद के बेटे अबशालोम ने खुद को राजा घोषित किया, तो उसने अपने रथ के आगे-आगे दौड़ने के लिए 50 आदमियों को ठहराया। (2 शमूएल 15:1, 10) रोमी सम्राट जूलियस सीज़र ने इससे भी बढ़कर शानो-शौकत दिखायी। एक बार अपनी जीत की खुशी में उसने रोम में जूपिटर के मंदिर तक शानदार जुलूस निकाला। उसके दायीं और बायीं तरफ 40 हाथी जलते हुए लैंप लिए चल रहे थे। लेकिन अब यरूशलेम के लोग, इनसे कहीं ज़्यादा महान व्यक्‍ति की राह देख रहे हैं। चाहे भीड़ को मालूम हो या न हो, मगर यही मसीहा है, धरती पर जीनेवाला सबसे महान पुरुष। लेकिन भविष्य में बननेवाला यह राजा जब शहर में दाखिल होता है, तो कुछ लोग हक्के-बक्के रह जाते हैं।

3 उन्हें न तो कोई रथ नज़र आता है, न दौड़नेवाले, न घोड़े और न ही हाथी। यीशु एक मामूली बोझ ढोनेवाले जानवर, एक गधी के बच्चे पर सवार है। a न तो यीशु की पोशाक से और न ही उसकी सवारी से राजसी ठाठ-बाट झलक रहा है। महँगी काठी की जगह यीशु के करीबी चेलों ने गधी के बच्चे पर कुछ ओढ़ने डाले हैं। यीशु ने इस तरह यरूशलेम आने का फैसला क्यों किया जबकि उससे कम महान पुरुष कहीं ज़्यादा धूम-धड़क्के के साथ आए थे?

4. मसीहाई राजा जिस तरह यरूशलेम आएगा, उस बारे में बाइबल की भविष्यवाणी क्या बताती है?

4 दरअसल यीशु एक भविष्यवाणी पूरी कर रहा था: “बहुत ही मगन हो! हे यरूशलेम जयजयकार कर! क्योंकि तेरा राजा तेरे पास आएगा; वह धर्मी और उद्धार पाया हुआ है, वह दीन है, और गदहे पर वरन गदही के बच्चे पर चढ़ा हुआ आएगा।” (जकर्याह 9:9) यह भविष्यवाणी दिखाती है कि परमेश्‍वर का अभिषिक्‍त जन यानी मसीहा, एक दिन परमेश्‍वर के चुने हुए राजा की हैसियत से यरूशलेम के लोगों के सामने आएगा। इतना ही नहीं, वह किस तरह आएगा और अपने लिए कौन-सी सवारी चुनेगा, उससे उसके एक बेहतरीन गुण का पता चलेगा। वह है नम्रता का गुण।

5. यीशु की नम्रता पर मनन करने से यह हमारे दिल को क्यों छू जाती है? यीशु की तरह नम्र बनना क्यों ज़रूरी है?

5 यीशु की नम्रता उसके मनभावने गुणों में से एक है। जब हम उसके इस गुण पर मनन करते हैं, तो यह हमारे दिल को छू जाता है। हमने पिछले अध्याय में चर्चा की थी कि यीशु ही “वह राह, सच्चाई और जीवन” है। (यूहन्‍ना 14:6) इसमें कोई शक नहीं कि परमेश्‍वर का यह बेटा धरती पर जीनेवाले अरबों लोगों से कहीं ज़्यादा महान है। फिर भी यीशु में दूर-दूर तक कोई घमंड नहीं था जबकि असिद्ध इंसानों में यह अकसर देखा जाता है। मसीह के चेले बनने के लिए हमें घमंड करने की फितरत से लड़ना होगा। (याकूब 4:6) याद रखिए, यहोवा को घमंड से सख्त नफरत है। इसलिए यह जानना बेहद ज़रूरी है कि हम यीशु की तरह नम्र कैसे बन सकते हैं।

उसने सदियों से नम्रता दिखायी

6. नम्रता का क्या मतलब है? यहोवा को कैसे मालूम था कि मसीहा नम्र होगा?

6 नम्रता का मतलब है मन की दीनता, जिसमें अहंकार की कोई जगह नहीं। नम्रता की शुरूआत एक इंसान के दिल से होती है और उसकी बोली, चालचलन और दूसरों के साथ उसके व्यवहार में यह साफ झलकती है। यहोवा को कैसे मालूम था कि मसीहा नम्र होगा? क्योंकि यहोवा नम्र है और वह जानता है कि उसका बेटा बिलकुल उसके जैसा है। (यूहन्‍ना 10:15) यही नहीं, उसने अपने बेटे को नम्रता का गुण ज़ाहिर भी करते देखा था।

7-9. (क) शैतान के साथ बहस करते वक्‍त मीकाएल ने किस तरह नम्रता दिखायी? (ख) नम्रता दिखाने में मसीही कैसे मीकाएल के जैसा बन सकते हैं?

7 इसकी एक दिलचस्प मिसाल यहूदा की किताब में दी गयी है। वहाँ हम पढ़ते हैं: “जब प्रधान स्वर्गदूत मीकाएल की मूसा की लाश के मामले में शैतान के साथ बहस हुई, तो उसने शैतान के खिलाफ बेइज़्ज़ती करनेवाले शब्दों का इस्तेमाल कर उसे दोषी ठहराने की जुर्रत नहीं की बल्कि यह कहा: ‘यहोवा तुझे डाँटे।’” (यहूदा 9) धरती पर आने से पहले यीशु का नाम मीकाएल था और स्वर्ग लौटने के बाद भी उसका यही नाम रहा। उसे यह नाम इसलिए दिया गया था क्योंकि वह यहोवा के स्वर्गदूतों की सेना का प्रधान स्वर्गदूत है। b (1 थिस्सलुनीकियों 4:16) गौर फरमाइए कि मीकाएल ने शैतान के साथ हुए झगड़े का सामना कैसे किया।

8 यहूदा किताब में दर्ज़ ब्यौरा यह तो नहीं बताता कि शैतान, मूसा की लाश का क्या करना चाहता था। मगर हम इतना ज़रूर जानते हैं कि उसके इरादे नेक नहीं थे। शायद वह मूसा की लाश का इस्तेमाल झूठी उपासना को बढ़ावा देने के लिए करना चाहता था। हालाँकि मीकाएल ने शैतान की इस घिनौनी चाल का विरोध किया, मगर उसने खुद पर गज़ब का काबू भी रखा। वह कैसे? शैतान ने जो काम किया था, उसके लिए वह फटकारे जाने के लायक था। लेकिन उस वक्‍त तक मीकाएल को “न्याय करने की सारी ज़िम्मेदारी” नहीं दी गयी थी। इसलिए उसे लगा कि शैतान को सज़ा देने का अधिकार सिर्फ यहोवा को है। (यूहन्‍ना 5:22) प्रधान स्वर्गदूत की हैसियत से मीकाएल के पास बहुत अधिकार था। फिर भी जो अधिकार उसे नहीं दिया गया, उसे हथियाने की उसने कोशिश नहीं की। बल्कि मामला यहोवा पर छोड़कर नम्रता दिखायी। नम्रता के साथ-साथ उसने यह भी दिखाया कि वह अपनी हद पहचानता है।

9 यहूदा ने परमेश्‍वर की प्रेरणा से यह वाकया दर्ज़ किया था और इसकी एक खास वजह थी। उसके दिनों में बहुत-से मसीहियों में नम्रता नहीं थी। वे घमंड से भरे हुए थे और “जिन बातों की समझ नहीं रखते उन सबके बारे में बुरी-बुरी बातें कहते” थे। (यहूदा 10) हम असिद्ध इंसान बड़ी आसानी से घमंड से फूल उठते हैं। मान लीजिए, मसीही मंडली में प्राचीनों का निकाय कोई फैसला लेता है और हम उनके फैसले को समझ नहीं पाते। ऐसे में हम क्या करेंगे? अगर हम पूरी बात न जानते हुए प्राचीनों की बुराई करें और उनमें मीनमेख निकालें, तो क्या हम नम्रता दिखा रहे होंगे? आइए हम भी मीकाएल यानी यीशु की तरह उन मामलों में न्याय करने से दूर रहें, जिनमें परमेश्‍वर से हमें कोई अधिकार नहीं मिला है।

10, 11. (क) परमेश्‍वर का बेटा खुशी-खुशी धरती पर सेवा करने आया, यह बात क्यों गौरतलब है? (ख) हम यीशु की तरह नम्रता कैसे दिखा सकते हैं?

10 परमेश्‍वर के बेटे ने एक और तरीके से नम्रता दिखायी। उसने खुशी-खुशी धरती पर आने की ज़िम्मेदारी कबूल की। ध्यान दीजिए कि धरती पर आने से पहले वह प्रधान स्वर्गदूत और “वचन” था यानी यहोवा का प्रवक्‍ता। (यूहन्‍ना 1:1-3) वह स्वर्ग में रहता था जो यहोवा का “पवित्र और महिमापूर्ण वासस्थान” है। (यशायाह 63:15) मगर “उसने अपना सबकुछ त्याग दिया और एक दास का स्वरूप ले लिया और इंसान बन गया।” (फिलिप्पियों 2:7) ज़रा सोचिए, यीशु के लिए धरती पर अपनी सेवा पूरी करने में क्या-क्या शामिल था। उसका जीवन भ्रूण के रूप में एक यहूदी कुँवारी के गर्भ में डाला गया, जहाँ वह नौ महीने तक पला। फिर उसका जन्म एक लाचार शिशु की तरह एक गरीब बढ़ई के घर में हुआ। धीरे-धीरे वह बड़ा होता गया और जवान बन गया। यीशु सिद्ध था, फिर भी बचपन से लेकर जवानी तक वह अपने असिद्ध इंसानी माता-पिता के अधीन रहा। (लूका 2:40, 51, 52) यीशु ने कमाल की नम्रता दिखायी।

11 क्या हम यीशु के जैसी नम्रता दिखा सकते हैं? और क्या हम भी सेवा के ऐसे काम खुशी-खुशी कबूल कर सकते हैं जो मामूली और कमतर लगें? मिसाल के लिए, प्रचार में जब लोग हमारे संदेश में दिलचस्पी नहीं लेते, हमारा मज़ाक उड़ाते या विरोध करते हैं, तो शायद हम इस काम को छोटा समझने लगें। (मत्ती 28:19, 20) लेकिन अगर हम प्रचार में लगे रहें तो बहुतों की ज़िंदगी बचा सकते हैं। चाहे हम ऐसा करने में कामयाब हों या न हों, एक बात तो पक्की है। हम नम्रता का गुण सीख सकेंगे और अपने मालिक, यीशु मसीह के नक्शे-कदम पर चल सकेंगे।

धरती पर यीशु की नम्रता

12-14. (क) जब लोग यीशु की वाह-वाही करते, तब वह किस तरह नम्रता दिखाता था? (ख) यीशु किन तरीकों से दूसरों के साथ नम्रता से पेश आया? (ग) क्या दिखाता है कि यीशु की नम्रता दिखावटी नहीं थी, न ही यह सिर्फ अदब-कायदे से पेश आने की निशानी थी?

12 धरती पर अपनी सेवा के शुरू से लेकर आखिर तक यीशु अपनी नम्रता के लिए जाना गया। उसने सारी स्तुति और महिमा अपने पिता को देकर नम्रता दिखायी। ऐसा कई बार हुआ जब लोगों ने यीशु की बुद्धि-भरी बातें सुनकर, उसके चमत्कार करने की शक्‍ति और उसकी अच्छाई देखकर उसकी तारीफ की। लेकिन यीशु ने वाह-वाही लूटने के बजाय हर बार सारी महिमा यहोवा को दी।—मरकुस 10:17, 18; यूहन्‍ना 7:15, 16.

13 यीशु ने लोगों के साथ अपने व्यवहार में भी नम्रता दिखायी। दरअसल उसने साफ कहा था कि वह सेवा करवाने नहीं, बल्कि सेवा करने आया है। (मत्ती 20:28) वह लोगों के साथ कोमलता से पेश आता और उनसे हद-से-ज़्यादा की उम्मीद नहीं करता था। एक मौके पर जब उसके चेलों ने उसे निराश किया, तब वह उन पर बरस नहीं पड़ा, बल्कि उन्हें प्यार से समझाने की कोशिश की। (मत्ती 26:39-41) एक बार यीशु आराम करने के लिए एकांत और शांत जगह ढूँढ़ रहा था। भीड़ वहाँ भी उसके पीछे-पीछे चली आयी। ऐसे में यीशु ने उन्हें भगा नहीं दिया, बल्कि अपना आराम त्यागकर वह उन्हें “बहुत-सी बातें” सिखाने लगा। (मरकुस 6:30-34) जब एक गैर-इसराएली स्त्री उसके आगे गिड़गिड़ायी कि वह उसकी बेटी को चंगा कर दे, तब उसने गुस्से से इनकार तो नहीं किया पर यह जताया कि वह ऐसा नहीं करना चाहता। मगर फिर उस स्त्री का अनोखा विश्‍वास देखकर, यीशु ने उसकी बात मान ली। इस बारे में हम अध्याय 14 में और चर्चा करेंगे।—मत्ती 15:22-28.

14 यीशु बेहिसाब तरीकों से अपने इन शब्दों पर खरा उतरा: “मैं कोमल-स्वभाव का, और दिल से दीन हूँ।” (मत्ती 11:29) उसकी नम्रता दिखावटी नहीं थी, न ही यह सिर्फ अदब-कायदे से पेश आने की निशानी थी। यीशु के शब्द दिखाते हैं कि वह दिल से नम्र था। इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि उसने अपने चेलों को बार-बार सिखाया कि नम्र होना कितना ज़रूरी है।

चेलों को सिखाया नम्र बनना

15, 16. दुनिया के अधिकारियों का जो रवैया है और यीशु के चेलों में जो रवैया होना चाहिए, इस बारे में यीशु ने क्या कहा?

15 नम्रता का गुण बढ़ाने में यीशु के प्रेषितों को वक्‍त लगा। यीशु ने भी उन्हें नम्रता सिखाने में हार नहीं मानी। मिसाल के लिए, एक मौके पर याकूब और यूहन्‍ना ने अपनी माँ के ज़रिए यीशु से दरख्वास्त की कि वह उन्हें परमेश्‍वर के राज में ऊँचा पद देने का वादा करे। यीशु ने अपनी हद पहचानते हुए जवाब दिया: “मेरी दायीं या बायीं तरफ बैठने की इजाज़त देना मेरे अधिकार में नहीं, लेकिन ये जगह उनके लिए हैं, जिनके लिए मेरे पिता ने इन्हें तैयार किया है।” जब बाकी दस प्रेषितों को इस बारे में पता चला तो वे याकूब और यूहन्‍ना पर बहुत “नाराज़” हुए। (मत्ती 20:20-24) यीशु ने इस समस्या को कैसे सुलझाया?

16 उसने प्यार से सभी प्रेषितों को ताड़ना दी: “तुम जानते हो कि दुनिया के अधिकारी उन पर हुक्म चलाते हैं और उनके बड़े लोग उन पर अधिकार जताते हैं। मगर तुम्हारे बीच ऐसा नहीं है; बल्कि तुममें जो बड़ा बनना चाहता है, उसे तुम्हारा सेवक होना चाहिए, और जो कोई तुममें पहला होना चाहता है, उसे तुम्हारा दास होना चाहिए।” (मत्ती 20:25-27) प्रेषित देख सकते थे कि “दुनिया के अधिकारी” कितने मगरूर और लालची हैं और किस कदर उन पर ताकत हासिल करने का जुनून सवार है। यीशु ने समझाया कि उसके चेलों को ताकत के भूखे इन ज़ालिम शासकों के जैसा नहीं बनना था। उन्हें नम्र बनना था। क्या यीशु की बातों से प्रेषितों ने नम्रता का सबक सीखा?

17-19. (क) अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात, यीशु ने किस तरह अपने चेलों को नम्रता का एक यादगार सबक सिखाया? (ख) धरती पर रहते वक्‍त यीशु ने नम्रता का कौन-सा सबसे ज़बरदस्त सबक सिखाया?

17 प्रेषितों ने नम्रता का सबक तुरंत नहीं सीखा। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि यीशु यह बात उन्हें न तो पहली दफा समझा रहा था और न ही आखिरी बार। इससे पहले भी जब वे आपस में झगड़ रहे थे कि उनमें सबसे बड़ा कौन है, तो यीशु ने उनके बीच एक बच्चे को खड़ा किया और कहा कि उन्हें छोटे बच्चों के जैसा बनना चाहिए। बच्चों में घमंड, बड़ा बनने की चाहत और यह फिक्र नहीं होती कि दूसरे उनके बारे में क्या सोचेंगे, जबकि बड़ों में यह कूट-कूट कर भरी होती है। (मत्ती 18:1-4) इतना सब समझाने के बावजूद, यीशु ने अपनी ज़िंदगी की आखिरी रात देखा कि उसके प्रेषितों में अब भी घमंड है। तब उसने उन्हें एक यादगार सबक सिखाया। उसने अपनी कमर पर एक तौलिया बाँधा और वह काम किया जो उस ज़माने में नौकर, घर आए महमानों के लिए करते थे। यीशु ने अपने हरेक प्रेषित के पैर धोए, यहूदा के भी, जो थोड़ी ही देर में उसे धोखे से पकड़वानेवाला था।—यूहन्‍ना 13:1-11.

18 उनके पैर धोने के बाद यीशु ने कहा: “मैंने तुम्हारे लिए नमूना छोड़ा है।” (यूहन्‍ना 13:15) क्या आखिरकार प्रेषितों ने नम्रता का सबक सीखा? उसी रात उनमें फिर झगड़ा हो गया कि सबसे बड़ा कौन है! (लूका 22:24-27) यीशु ने तब भी सब्र से काम लिया और उन्हें बड़ी नम्रता से समझाया। इसके बाद उसने नम्रता का सबसे ज़बरदस्त सबक सिखाया: “उसने खुद को नम्र किया और इस हद तक आज्ञा माननेवाला बना कि उसने मौत भी, हाँ, यातना की सूली पर मौत भी सह ली।” (फिलिप्पियों 2:8) यीशु पर एक अपराधी होने और परमेश्‍वर की तौहीन करने का झूठा आरोप लगाया गया। मगर उसने खुशी-खुशी एक शर्मनाक मौत मरने के लिए खुद को दे दिया। इस तरह, परमेश्‍वर का यह बेटा पूरी तरह नम्रता दिखाने में स्वर्गदूतों और इंसानों में सबसे बेजोड़ साबित हुआ।

19 नम्रता का यह आखिरी सबक जो यीशु ने धरती पर रहते वक्‍त सिखाया था, शायद इसी सबक ने वफादार प्रेषितों के दिल पर गहरी छाप छोड़ दी। बाइबल बताती है कि ये लोग सालों तक नम्रता से यहोवा की सेवा करते रहे। आज हमारे बारे में क्या?

क्या आप यीशु के नमूने पर चलेंगे?

20. हम कैसे जान सकते हैं कि हम दिल से दीन हैं?

20 पौलुस हम सबको उकसाता है: “तुम मन का वैसा स्वभाव पैदा करो जैसा मसीह यीशु का था।” (फिलिप्पियों 2:5) यीशु की तरह हमें भी दिल से दीन होने की ज़रूरत है। हम कैसे जान सकते हैं कि हम वाकई दिल से नम्र हैं? गौर कीजिए, पौलुस ने कहा कि हमें ‘झगड़ालूपन या अहंकार की वजह से कुछ नहीं करना चाहिए, मगर मन की दीनता के साथ दूसरों को खुद से बेहतर समझना चाहिए।’ (फिलिप्पियों 2:3) तो फिर, ऊपर दिए सवाल का जवाब इस बात पर निर्भर करता है कि हम दूसरों को अपने आगे क्या समझते हैं। हमें उन्हें खुद से बेहतर समझना चाहिए। क्या आप यह सलाह मानेंगे?

21, 22. (क) मसीही निगरानों को नम्र क्यों होना चाहिए? (ख) हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमने नम्रता धारण की है?

21 यीशु की मौत के कई साल बाद भी, प्रेषित पतरस नम्रता की अहमियत नहीं भूला था। उसने मसीही निगरानों को सिखाया कि वे अपनी ज़िम्मेदारियाँ नम्रता से निभाएँ और कभी-भी यहोवा की भेड़ों पर अधिकार जतानेवाले न बनें। (1 पतरस 5:2, 3) ज़िम्मेदारी मिलना हमें घमंड करने की छूट नहीं देता। उलटा, ज़िम्मेदारी आने से सच्ची नम्रता दिखाना और भी ज़रूरी हो जाता है। (लूका 12:48) लेकिन यह गुण सिर्फ निगरानों के लिए नहीं, हर मसीही के लिए ज़रूरी है।

22 पतरस उस रात को कभी नहीं भुला पाया होगा जब उसके मना करने पर भी यीशु ने उसके पैर धोए थे। (यूहन्‍ना 13:6-10) पतरस ने मसीहियों को लिखा: “तुम सभी एक-दूसरे से पेश आते वक्‍त मन की दीनता धारण करो।” (1 पतरस 5:5) जिस मूल यूनानी शब्द का अनुवाद “धारण करो” किया गया है, उससे इस बात का इशारा मिलता है कि एक नौकर क्या करता है। वह कमर पर अंगोछा बाँधकर छोटे-से-छोटा काम करने में जुट जाता है। इन शब्दों से शायद हमें वह घटना याद आए, जब यीशु ने अपनी कमर पर तौलिया बाँधा और झुककर प्रेषितों के पैर धोए। अगर हम यीशु की मिसाल पर चलें, तो परमेश्‍वर से मिला भला कौन-सा काम करने से हम छोटे हो जाएँगे? लोगों को साफ नज़र आना चाहिए कि हम दिल से नम्र हैं मानो हमने दीनता को धारण किया हुआ है।

23, 24. (क) हमें घमंड करने की फितरत से क्यों दूर रहना चाहिए? (ख) अगले अध्याय में नम्रता के बारे में किस सोच को गलत साबित किया जाएगा?

23 घमंड, ज़हर की तरह है। इसके अंजाम बहुत भयानक हो सकते हैं। घमंड काबिल-से-काबिल और गुणी इंसान को भी परमेश्‍वर की नज़र में निकम्मा बना देता है। वहीं दूसरी तरफ, नम्रता का गुण होने से ऐसा इंसान भी यहोवा के बहुत काम आ सकता है जिसमें कोई खास हुनर न हो। अगर हम नम्रता से मसीह के नक्शे-कदम पर चलकर इस अनमोल गुण को हर दिन बढ़ाएँ, तो इनाम वाकई बढ़िया होगा। इस बारे में सोचकर ही हम सिहर उठते हैं! पतरस ने लिखा: “परमेश्‍वर के शक्‍तिशाली हाथ के नीचे खुद को नम्र करो, ताकि वह सही वक्‍त पर तुम्हें ऊँचा करे।” (1 पतरस 5:6) इसमें कोई शक नहीं कि यहोवा ने यीशु को ऊँचा किया क्योंकि उसने खुद को पूरी तरह नम्र कर दिया था। उसी तरह, नम्रता दिखाने के लिए परमेश्‍वर आपको भी खुशी-खुशी इनाम देगा।

24 लेकिन दुख की बात है कि कुछ लोग सोचते हैं कि नम्रता कमज़ोरी की निशानी है। यीशु की मिसाल हमें समझने में मदद देती है कि यह सरासर गलत है। क्योंकि यीशु सबसे नम्र होने के साथ-साथ सबसे साहसी भी था। अगले अध्याय में हम उसके साहस के बारे में सीखेंगे।

a इस घटना का ब्यौरा देते हुए, एक किताब कहती है कि ये जानवर “बहुत मामूली होते हैं। इनकी चाल धीमी होती है और ये ढीठ किस्म के होते हैं। ये आम तौर पर गरीबों के लिए बोझ ढोने का काम करते हैं और दिखने में कुछ खास नहीं होते।”

b मीकाएल ही यीशु है, इस बारे में और सबूत जानने के लिए बाइबल असल में क्या सिखाती है? किताब के पेज 218-19 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।