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अध्याय 17

“इससे बढ़कर प्यार कोई क्या करेगा”

“इससे बढ़कर प्यार कोई क्या करेगा”

1-4. (क) जब पीलातुस ने अपने महल के बाहर गुस्से से भड़की भीड़ के सामने यीशु को पेश किया तो क्या हुआ? (ख) जब यीशु का अपमान किया गया और उसे तड़पाया गया, तब उसने कैसा रवैया दिखाया? और इससे कौन-से अहम सवाल खड़े होते हैं?

 ईसवी सन्‌ 33 की बात है। फसह के दिन सुबह के वक्‍त रोमी राज्यपाल पुन्तियुस पीलातुस अपने महल के बाहर गुस्से से भड़की भीड़ के सामने यीशु मसीह को पेश करता है और कहता है: “देखो! यह है वह आदमी!” (यूहन्‍ना 19:5) कुछ ही दिन पहले जब यीशु परमेश्‍वर के ठहराए राजा के तौर पर यरूशलेम में दाखिल हुआ था, तब लोगों की भीड़ यीशु की जयजयकार करती नहीं थक रही थी। लेकिन अब पीलातुस के महल के बाहर खड़ी भीड़ यीशु के खिलाफ हो गयी है और उसे राजा मानने से इनकार करती है।

2 शाही घराने के लोगों की तरह, यीशु के शरीर पर बैंजनी रंग का कपड़ा डाला गया है और उसे एक मुकुट भी पहनाया गया है। लेकिन यह उसका ऊँचा रुतबा दिखाने के लिए नहीं, उसका मज़ाक बनाने के लिए किया गया है। उस पर बैंजनी कपड़ा डाला तो गया है, मगर वह उसके घावों पर पड़ा है। उसकी पीठ कोड़ों की मार से ज़ख्मी है और घावों से खून बह रहा है। उसे जो मुकुट पहनाया गया है, वह काँटों का बना है। काँटे उसके सिर में गड़ रहे हैं जिसकी वजह से खून रिस रहा है। प्रधान याजकों ने लोगों को भड़का दिया है, इसलिए लोग सामने खड़े इस ज़ख्मी आदमी को अपना राजा मानने से इनकार कर देते हैं। याजक चिल्लाते हैं: “इसे सूली पर चढ़ा दे! इसे सूली पर चढ़ा दे!” यीशु के खून की प्यासी भीड़ चीख-चीखकर कहती है: “यह मौत की सज़ा के लायक है।”—यूहन्‍ना 19:1-7.

3 यीशु का बहुत अपमान किया जाता है, उसे बुरी तरह तड़पाया जाता है, लेकिन वह बिना एक शब्द कहे गरिमा और साहस दिखाते हुए सब सह लेता है। a वह अपनी जान कुरबान करने के लिए पूरी तरह तैयार है। उसी दिन वह खुद को यातना की सूली पर एक दर्दनाक मौत के हवाले कर देता है।—यूहन्‍ना 19:17, 18, 30.

4 यीशु ने अपनी जान देकर साबित किया कि वह अपने चेलों का सच्चा दोस्त है। उसने कहा, “इससे बढ़कर प्यार कोई क्या करेगा कि वह अपने दोस्तों की खातिर अपनी जान दे दे।” (यूहन्‍ना 15:13) इससे कुछ अहम सवाल खड़े होते हैं। क्या यह वाकई ज़रूरी था कि यीशु ये सारी दुख-तकलीफें सहे और आखिर में मर जाए? वह इस तरह के हालात से गुज़रने के लिए क्यों तैयार था? उसके “दोस्त” और चेले होने के नाते हम कैसे उसकी मिसाल पर चल सकते हैं?

यह क्यों ज़रूरी था कि यीशु दुख-तकलीफें सहे और मर जाए?

5. यीशु कैसे जानता था कि उसे कौन-कौन से ज़ुल्म सहने पड़ेंगे?

5 यीशु वादा किया हुआ मसीहा था और वह इस बात से वाकिफ था कि उसे क्या-क्या सहना पड़ेगा। दरअसल इब्रानी शास्त्र में मसीहा के बारे में बहुत-सी भविष्यवाणियाँ दर्ज़ थीं जिनमें खुलकर बताया गया था कि उसे कैसी-कैसी दुख-तकलीफें सहनी पड़ेंगी और उसे किस तरह मौत के घाट उतारा जाएगा। यीशु को ये सारी भविष्यवाणियाँ पता थीं। (यशायाह 53:3-7, 12; दानिय्येल 9:26) वह जानता था कि आगे चलकर उसे ज़ुल्म सहने पड़ेंगे और इसके लिए उसने पहले से अपने चेलों को तैयार किया। (मरकुस 8:31; 9:31) जब वह आखिरी बार फसह का त्योहार मनाने के लिए यरूशलेम जा रहा था, तब उसने अपने प्रेषितों से साफ-साफ कहा: “इंसान का बेटा प्रधान याजकों और शास्त्रियों के हवाले किया जाएगा और वे उसे मौत की सज़ा सुनाएँगे और उसे दूसरी जातियों के लोगों के हवाले करेंगे। वे उसका मज़ाक उड़ाएँगे और उस पर थूकेंगे और कोड़े लगाएँगे और उसे मार डालेंगे।” (मरकुस 10:33, 34) ये खोखली बातें नहीं थीं। यीशु के साथ वाकई ऐसा हुआ। जैसा कि हमने देखा, उसका मज़ाक उड़ाया गया, उस पर थूका गया, उसे कोड़े लगाए गए और उसे मार डाला गया।

6. यह क्यों ज़रूरी था कि यीशु दुख-तकलीफें सहे और आखिर में उसकी मौत हो जाए?

6 लेकिन यह क्यों ज़रूरी था कि यीशु दुख-तकलीफें सहे और मर जाए? इसकी कई अहम वजह हैं। पहली, परमेश्‍वर का वफादार बने रह कर यीशु अपनी खराई का सबूत देता और यहोवा की हुकूमत को बुलंद करता। याद कीजिए शैतान ने इंसानों पर इलज़ाम लगाया था कि वे सिर्फ अपने मतलब के लिए परमेश्‍वर की सेवा करते हैं। (अय्यूब 2:1-5) “यातना की सूली पर मौत” तक वफादार रहकर यीशु ने शैतान के इस बेबुनियाद इलज़ाम का मुँह-तोड़ जवाब दिया। (फिलिप्पियों 2:8; नीतिवचन 27:11) दूसरी वजह, इसी से इंसानों को अपने पापों की माफी मिलती। (यशायाह 53:5, 10; दानिय्येल 9:24) यीशु ने “बहुतों की फिरौती के लिए अपनी जान बदले में” दी। इस तरह उसने हमारे लिए रास्ता खोला ताकि हम यहोवा के साथ अच्छा रिश्‍ता बना सकें। (मत्ती 20:28) तीसरी वजह, हर तरह की मुश्‍किल और दुख-तकलीफ सहकर यीशु की “हमारी तरह सब बातों में परीक्षा हुई।” इसीलिए वह करुणा दिखानेवाला महायाजक है, जो ‘हमारी कमज़ोरियों में हमसे हमदर्दी रख सकता है।’—इब्रानियों 2:17, 18; 4:15.

यीशु अपनी जान देने के लिए क्यों तैयार था?

7. धरती पर आने के लिए यीशु को क्या-क्या छोड़ना पड़ा?

7 यीशु जो करने के लिए तैयार था, उसे अच्छी तरह समझने के लिए ज़रा इस बारे में सोचिए: ऐसा कौन होगा, जो अपना घर-परिवार छोड़कर विदेश जा बसे, जबकि उसे पता है कि वहाँ के लोग उसे नहीं अपनाएँगे, उसकी बेइज़्ज़ती करेंगे, वहाँ उसे दुख-तकलीफों से गुज़रना पड़ेगा और आखिर में उसे मार डाला जाएगा? अब ज़रा सोचिए कि यीशु ने क्या किया। धरती पर आने से पहले, स्वर्ग में यीशु का अपने पिता के साथ एक खास ओहदा था। लेकिन यीशु ने खुशी-खुशी स्वर्ग छोड़ दिया और इंसान के रूप में धरती पर आया। वह जानता था कि ज़्यादातर लोग उसे ठुकरा देंगे, उसकी बहुत बेइज़्ज़ती करेंगे, उसे बुरी तरह तड़पाया जाएगा और उसे बड़ी बेरहमी से मार डाला जाएगा, फिर भी वह धरती पर आया। (फिलिप्पियों 2:5-7) किस वजह से यीशु ने यह त्याग किया?

8, 9. किन वजहों से यीशु अपनी जान देने के लिए तैयार था?

8 सबसे बड़ी वजह, वह अपने पिता से बेइंतहा प्यार करता था। यीशु ने हर हाल में धीरज धरा, उसका धीरज इस बात का सबूत था कि वह यहोवा से प्यार करता है। इसीलिए उसे अपने पिता के नाम की फिक्र थी। (मत्ती 6:9; यूहन्‍ना 17:1-6, 26) सबसे बढ़कर यीशु चाहता था कि उसके पिता के नाम पर लगा कलंक मिट जाए। वह जानता था कि उसकी खराई उसके पिता का गौरवशाली नाम पवित्र करने में एक भाग अदा करेगी, इसलिए उसने सच्चाई की खातिर सारी दुख-तकलीफें सहने को सबसे बड़ा सम्मान समझा।—1 इतिहास 29:13.

9 एक और वजह से यीशु अपनी जान कुरबान करने के लिए तैयार था, वह है मानवजाति के लिए प्यार। यह प्यार उसके दिल में नया-नया नहीं पनपा था, वह तो इंसानों की सृष्टि के समय से ही उनसे प्यार करता था। यीशु के धरती पर आने से बहुत पहले ही बाइबल ने ज़ाहिर किया कि वह इंसानों के लिए कैसा महसूस करता है: “मेरा सुख मनुष्यों की संगति से होता था।” (नीतिवचन 8:30, 31) और धरती पर रहते वक्‍त उसने इस प्यार को बखूबी ज़ाहिर किया। जैसा कि हमने इस किताब के पिछले तीन अध्यायों में देखा, यीशु ने कई तरीकों से सभी इंसानों के लिए और खासकर अपने चेलों के लिए अपना प्यार ज़ाहिर किया। लेकिन ईसवी सन्‌ 33 के निसान 14 को यीशु ने हम सबकी खातिर अपनी जान दे दी। (यूहन्‍ना 10:11) इंसानों के लिए अपना प्यार दिखाने का इससे बेहतर तरीका और क्या हो सकता था! इस मामले में क्या हमें भी उसकी मिसाल पर नहीं चलना चाहिए? बिलकुल चलना चाहिए। सच तो यह है कि हमें ऐसा करने की आज्ञा दी गयी है।

“एक-दूसरे से प्यार करो . . . जैसे मैंने तुमसे प्यार किया है”

10, 11. यीशु ने अपने चेलों को कौन-सी नयी आज्ञा दी? इसमें क्या शामिल है और इस आज्ञा को मानना हमारे लिए क्यों ज़रूरी है?

10 अपनी मौत से पहले की रात, यीशु ने अपने सबसे करीबी चेलों से कहा: “मैं तुम्हें एक नयी आज्ञा देता हूँ कि तुम एक-दूसरे से प्यार करो। ठीक जैसे मैंने तुमसे प्यार किया है, वैसे ही तुम भी एक-दूसरे से प्यार करो। अगर तुम्हारे बीच प्यार होगा, तो इसी से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्‍ना 13:34, 35) “एक-दूसरे से प्यार करो,” यह “एक नयी आज्ञा” क्यों है? मूसा के नियम में पहले से बताया गया था: “अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना।” (लैव्यव्यवस्था 19:18, NHT) लेकिन नयी आज्ञा में इससे भी बढ़कर प्यार दिखाने की बात कही गयी है, ऐसा प्यार जो हमें दूसरों की खातिर अपनी जान तक कुरबान करने के लिए उभारता है। यीशु ने यह बात और भी साफ ज़ाहिर कर दी, जब उसने कहा: “मेरी यह आज्ञा है कि तुम वैसे ही एक-दूसरे से प्यार करो जैसे मैंने तुमसे प्यार किया है। इससे बढ़कर प्यार कोई क्या करेगा कि वह अपने दोस्तों की खातिर अपनी जान दे दे।” (यूहन्‍ना 15:12, 13) नयी आज्ञा में एक तरह से कहा गया है: “दूसरों से अपने समान नहीं, बल्कि अपने से बढ़कर प्यार करो।” इस मामले में यीशु ने बेहतरीन मिसाल कायम की। उसने जिस तरह ज़िंदगी जी और अपनी जान कुरबान की, उससे उसने दिखाया कि वह अपने से बढ़कर दूसरों से प्यार करता है।

11 यह क्यों ज़रूरी है कि हम नयी आज्ञा मानें? याद कीजिए, यीशु ने क्या कहा था: “इसी से [खुद को कुरबान कर देनेवाले प्यार से] सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो।” जी हाँ, खुद को कुरबान कर देनेवाले प्यार से ही हम पहचाने जाते हैं कि हम सच्चे मसीही हैं। यह उसी तरह है, जैसे एक बैज कार्ड से एक इंसान की पहचान होती है। यहोवा के साक्षियों के सालाना अधिवेशनों में हाज़िर होनेवाले बैज कार्ड पहनते हैं। कार्ड से उसके पहननेवाले के बारे में पता चल जाता है कि उसका क्या नाम है और वह किस मंडली का है। एक-दूसरे के लिए खुद को कुरबान कर देनेवाला प्यार, वह “बैज” है जिससे सच्चे मसीहियों की पहचान होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो हम एक-दूसरे के लिए जो प्यार दिखाते हैं वह लोगों को एक बैज कार्ड की तरह दिखायी देना चाहिए, जिससे वे पहचान जाएँ कि हम वाकई मसीह के सच्चे चेले हैं। हममें से हरेक को खुद से पूछना चाहिए, ‘क्या खुद को कुरबान कर देनेवाले प्यार का “बैज कार्ड” मेरी ज़िंदगी में ज़ाहिर होता है?’

खुद को कुरबान कर देनेवाला प्यार—इसमें क्या शामिल है?

12, 13. (क) एक-दूसरे के लिए अपना प्यार जताने के लिए हमें किस हद तक त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए? (ख) आत्म-त्याग की भावना दिखाने का क्या मतलब है?

12 यीशु के चेले होने के नाते, हमें एक-दूसरे से वैसा ही प्यार करने की ज़रूरत है जैसा उसने हमसे किया। इसका मतलब हमें अपने संगी विश्‍वासियों की खातिर त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए। हमें किस हद तक त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए? बाइबल कहती है: “प्यार क्या है, यह हमने इस बात से जाना है कि यीशु मसीह ने हमारे लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी और हमारा यह फर्ज़ बनता है कि हम अपने भाइयों के लिए अपनी जान न्यौछावर करें।” (1 यूहन्‍ना 3:16) यीशु की तरह, हमें एक-दूसरे की खातिर अपनी जान देने के लिए तैयार रहना चाहिए। जब हम पर ज़ुल्म ढाए जाते हैं, तो हम अपने मसीही भाइयों के साथ विश्‍वासघात करके उनकी जान खतरे में डालने के बजाय अपनी जान दे देंगे। जिन देशों में जाति के नाम पर लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं, वहाँ हम अपनी जान खतरे में डालकर अपने भाइयों की हिफाज़त करते हैं, फिर चाहे वे किसी भी जाति के क्यों न हों। जब देशों के बीच युद्ध होते हैं, तो हम अपने भाइयों और दूसरे लोगों के खिलाफ हथियार नहीं उठाएँगे। इसके लिए चाहे हमें जेल जाना पड़े या मौत के घाट उतार दिया जाए।—यूहन्‍ना 17:14, 16; 1 यूहन्‍ना 3:10-12.

13 क्या अपने भाइयों के लिए अपनी जान देकर ही हम इस तरह का प्यार दिखा सकते हैं? नहीं। हममें से हरेक को इतना बड़ा त्याग करने की ज़रूरत नहीं पड़ती। लेकिन अगर हम अपने भाइयों से इतना प्यार करते हैं कि हम उनकी खातिर मरने को तैयार हैं, तो क्या हमें आज उनकी मदद के लिए छोटे-छोटे त्याग नहीं करने चाहिए? आत्म-त्याग की भावना दिखाने का मतलब है खुद का फायदा या आराम त्याग कर दूसरों के फायदे की सोचना। अपनी भलाई या ज़रूरतों से ज़्यादा उनकी भलाई के बारे में सोचना और उनकी ज़रूरतों का खयाल रखना, तब भी जब ऐसा करना हमारे लिए आसान नहीं होता। (1 कुरिंथियों 10:24) हम किन व्यावहारिक तरीकों से खुद को कुरबान कर देनेवाला प्यार दिखा सकते हैं?

मंडली और परिवार में

14. (क) प्राचीनों को कौन-से त्याग करने पड़ते हैं? (ख) अपनी मंडली के मेहनती प्राचीनों के बारे में आप कैसा नज़रिया रखते हैं?

14 मसीही मंडली में प्राचीन ‘चरवाहों की तरह झुंड की देखभाल करने’ के लिए कई त्याग करते हैं। (1 पतरस 5:2, 3) अपने परिवार की देखभाल करने के अलावा, उन्हें मंडली के काम भी करने होते हैं, जैसे कि सभाओं के भाग तैयार करना, चरवाही भेंट करना और न्यायिक मामलों पर गौर करना। इसके लिए शायद उन्हें शाम के वक्‍त या शनिवार-रविवार को काफी समय बिताना पड़े। कई प्राचीन और भी त्याग करते हैं, वे सम्मेलनों और अधिवेशनों की तैयारी में कड़ी मेहनत करते हैं और अस्पताल संपर्क समितियों, मरीज़ मुलाकात दलों और क्षेत्रीय निर्माण समितियों के सदस्य के तौर पर सेवा करते हैं। प्राचीनो, यह मत भूलिए कि जब आप सेवा की भावना दिखाते हैं यानी झुंड की देखभाल करने के लिए खुशी-खुशी अपना समय, ताकत और साधन लगाते हैं, तो असल में आप खुद को कुरबान कर देनेवाला प्यार दिखा रहे होते हैं। (2 कुरिंथियों 12:15) आप बिना किसी स्वार्थ के जिस तरह अपने भाई-बहनों की सेवा करते हैं उसकी यहोवा बहुत कदर करता है साथ ही आपकी मंडली के भाई-बहन भी।—फिलिप्पियों 2:29; इब्रानियों 6:10.

15. (क) प्राचीनों की पत्नियाँ कौन-कौन से त्याग करती हैं? (ख) जो पत्नियाँ आपकी मंडली में अपने पति का साथ देने के लिए त्याग करती हैं, उनके बारे में आप कैसा महसूस करते हैं?

15 अब ज़रा प्राचीनों की पत्नियों के बारे में सोचिए। क्या वे अपने पतियों का सहयोग करने के लिए त्याग नहीं करतीं, ताकि उनके पति झुंड की अच्छी देखभाल कर सकें? जब एक पति मंडली की देखभाल करने में समय बिताता है जो असल में वह अपने परिवार के साथ बिता सकता था, तो वाकई उसकी पत्नी त्याग की भावना दिखाती है। अब ज़रा सफरी निगरानों की पत्नियों के बारे में विचार कीजिए। जब उनके पति एक मंडली से दूसरी मंडली या एक सर्किट से दूसरे सर्किट में जाते हैं, तो अपने पति का साथ देने के लिए वे काफी त्याग करती हैं। वे खुद का अपना घर होने की खुशी से महरूम रहती हैं और उन्हें हर हफ्ते अलग घर में रहना पड़ता है। जो पत्नियाँ अपनी इच्छाओं को मारकर मंडली की ज़रूरतों और भलाई के बारे में सोचती हैं, वे वाकई खुद को कुरबान कर देनेवाला प्यार दिखाने के लिए तारीफ के काबिल हैं।—फिलिप्पियों 2:3, 4.

16. मसीही माता-पिता अपने बच्चों के लिए क्या-क्या त्याग करते हैं?

16 हम परिवार में इस तरह का प्यार कैसे दिखा सकते हैं? माता-पिताओ, आप अपने बच्चों की देखभाल करने और उन्हें “यहोवा की तरफ से आनेवाला अनुशासन देते हुए और उसी की सोच के मुताबिक उनके मन को ढालते हुए उनकी परवरिश” करने में कई त्याग करते हैं। (इफिसियों 6:4) अपने बच्चों की बुनियादी ज़रूरतें पूरी करने, जैसे कि रोटी-कपड़ा और मकान का इंतज़ाम करने में ही शायद आपको देर रात तक ऐसा काम करना पड़ता हो जिसमें आप पूरी तरह थक जाते हों। आप शायद अपना पेट काटकर अपने बच्चों की ज़रूरतें पूरी करते हों। इसके अलावा, बच्चों के साथ अध्ययन करने, उन्हें मसीही सभाओं में ले जाने और उनके साथ प्रचार करने में भी आप काफी मेहनत करते हैं। (व्यवस्थाविवरण 6:6, 7) खुद को कुरबान कर देनेवाला प्यार दिखाने से आप परिवार की शुरूआत करनेवाले को खुश करते हैं और इससे आपके बच्चों को हमेशा की ज़िंदगी मिल सकती है।—नीतिवचन 22:6; इफिसियों 3:14, 15.

17. मसीही पति, यीशु की तरह निस्वार्थ स्वभाव कैसे दिखा सकते हैं?

17 पतियो, खुद को कुरबान कर देनेवाला प्यार दिखाने में आप यीशु की मिसाल पर कैसे चल सकते हैं? बाइबल इसका जवाब देती है: “हे पतियो, अपनी-अपनी पत्नी से प्यार करते रहो, ठीक जैसे मसीह ने भी मंडली से प्यार किया और अपने आपको उसकी खातिर दे दिया।” (इफिसियों 5:25) जैसा कि हमने देखा, यीशु अपने चेलों से इतना प्यार करता था कि उसने उनकी खातिर अपनी जान दे दी। यीशु ने कभी “खुद को खुश नहीं किया।” एक मसीही पति भी यीशु के जैसा निस्वार्थ स्वभाव दिखाता है। (रोमियों 15:3) ऐसा पति अपनी ज़रूरतों से पहले पत्नी की ज़रूरतों और खुशियों का ध्यान रखता है। वह हमेशा अपनी मन-मरज़ी नहीं चलाता। और अगर पत्नी की बात मानने में बाइबल का कोई सिद्धांत नहीं टूटता, तो उसकी बात मानने के लिए तैयार रहता है। जो पति खुद को कुरबान कर देनेवाला प्यार दिखाता है, उस पर यहोवा की मंज़ूरी बनी रहती है, उसे अपनी पत्नी और बच्चों से प्यार और इज़्ज़त मिलती है।

आप क्या करेंगे?

18. क्या बात हमें एक-दूसरे से प्यार करने की नयी आज्ञा मानने के लिए उकसाती है?

18 एक-दूसरे से प्यार करने की यीशु की नयी आज्ञा मानना आसान नहीं है। लेकिन यह आज्ञा मानने की हमारे पास एक ज़बरदस्त वजह है। प्रेषित पौलुस ने लिखा: “मसीह का प्यार हमें मजबूर करता है, क्योंकि हमने यह निचोड़ निकाला है: एक आदमी सबके लिए मरा। . . . वह सबके लिए मरा ताकि जो जीते हैं वे अब से खुद के लिए न जीएँ, बल्कि उसके लिए जीएँ जो उनके लिए मरा और जी उठाया गया।” (2 कुरिंथियों 5:14, 15) यीशु ने हमारी खातिर अपनी जान दी, तो क्या हमें भी उसकी मिसाल पर चलते हुए खुद को कुरबान कर देनेवाला प्यार नहीं दिखाना चाहिए?

19, 20. यहोवा ने हमें कौन-सा अनमोल तोहफा दिया है? हम कैसे दिखा सकते हैं कि हमें वह तोहफा कबूल है?

19 यीशु ने कहा: “इससे बढ़कर प्यार कोई क्या करेगा कि वह अपने दोस्तों की खातिर अपनी जान दे दे।” (यूहन्‍ना 15:13) यीशु बढ़ा-चढ़ाकर बात नहीं कह रहा था। जिस तरह उसने हमारे लिए खुशी-खुशी अपनी जान दे दी, वह उसके प्यार का सबसे बड़ा सबूत है। लेकिन किसी और ने यीशु से भी बढ़कर प्यार दिखाया। यीशु ने समझाया: “परमेश्‍वर ने दुनिया से इतना ज़्यादा प्यार किया कि उसने अपना इकलौता बेटा दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्‍वास दिखाता है, वह नाश न किया जाए बल्कि हमेशा की ज़िंदगी पाए।” (यूहन्‍ना 3:16) जी हाँ, परमेश्‍वर हमसे इतना ज़्यादा प्यार करता है कि उसने फिरौती के तौर पर अपना बेटा दे दिया, ताकि हमें पाप और मौत से छुटकारा मिल सके। (इफिसियों 1:7) फिरौती परमेश्‍वर की तरफ से एक अनमोल तोहफा है, मगर इसे कबूल करने के लिए वह हमसे ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं करता।

20 यह हम पर है कि हम यहोवा का तोहफा कबूल करेंगे या नहीं। हम कैसे उसका तोहफा कबूल कर सकते हैं? उसके बेटे पर ‘विश्‍वास दिखाने’ के ज़रिए। लेकिन विश्‍वास सिर्फ बातों से नहीं बल्कि हमारे कामों और जीने के तरीके से ज़ाहिर होता है। (याकूब 2:26) हम हर दिन यीशु मसीह के पीछे चलने के ज़रिए उस पर अपने विश्‍वास का सबूत देते हैं। ऐसा करने से हमें आज और भविष्य में बेशुमार आशीषें मिलेंगी, जैसा कि इस किताब के आखिरी अध्याय में बताया गया है।

a उस दिन यीशु पर दो बार थूका गया, पहले धर्म-गुरुओं ने और फिर रोमी सैनिकों ने। (मत्ती 26:59-68; 27:27-30) इतनी ज़िल्लत सहने पर भी उसने किसी पर कोई दोष नहीं लगाया। और इस तरह भविष्यवाणी के ये शब्द पूरे किए: “अपमानित होने और उनके थूकने से मैं ने मुंह न छिपाया।”—यशायाह 50:6.