इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

अध्याय 18

“मेरे पीछे चलना जारी रख”

“मेरे पीछे चलना जारी रख”

1-3. (क) यीशु किस तरह अपने प्रेषितों को छोड़कर स्वर्ग गया? क्यों यह बिछड़ना ऐसा नहीं था जिससे यीशु के चेले बहुत दुखी होते? (ख) स्वर्ग जाने के बाद यीशु ने जो किया उस बारे में जानना हमारे लिए क्यों ज़रूरी है?

 एक पहाड़ पर 11 आदमी एक-साथ खड़े हैं। वे बारहवें व्यक्‍ति को देख रहे हैं, जिसके लिए उनके दिल में गहरा प्यार और आदर है। वह 12वाँ व्यक्‍ति कोई और नहीं दोबारा ज़िंदा किया गया यीशु है, जो उनके सामने इंसानी शरीर में खड़ा है। अब वह फिर से यहोवा के आत्मिक बेटों में सबसे महान है। स्वर्ग जाने से पहले आखिरी बार यीशु ने अपने प्रेषितों को यहाँ जैतून पहाड़ पर इकट्ठा किया।

2 यरूशलेम की तरफ से देखें तो जैतून पहाड़ चूने-पत्थर की उस पर्वतमाला का भाग है, जो किद्रोन घाटी के पार है। यहाँ यीशु को पुरानी कई बातें याद आने लगी होंगी। जैतून पहाड़ की ढलान पर बैतनिय्याह नाम का कसबा है, जहाँ यीशु ने लाज़र को ज़िंदा किया था। और पास ही बैतफगे नाम की जगह है, जहाँ से कुछ ही हफ्तों पहले यीशु राजा के तौर पर यरूशलेम आया था। जैतून पहाड़ पर ही शायद गतसमनी का बाग है, जहाँ यीशु ने गिरफ्तारी से पहले का वक्‍त बिताया। उस वक्‍त वह गहरी वेदना से गुज़र रहा था। अब आज इसी पहाड़ पर यीशु अपने सबसे करीबी दोस्तों और चेलों को छोड़कर स्वर्ग चला जाएगा। जाने से पहले वह उनसे प्यार-भरे आखिरी शब्द कहता है। फिर वह धीरे-धीरे ऊपर उठने लगता है! प्रेषित वहीं जड़ हो जाते हैं और एक टक अपने गुरु को स्वर्ग की ओर जाते देखते हैं। तब एक बादल बीच में आ जाता है और यीशु उनकी आँखों से ओझल हो जाता है। इसके बाद वे उसे दोबारा कभी नहीं देखते।—प्रेषितों 1:6-12.

3 क्या यह वाकया पढ़कर आपको लगता है कि यीशु के स्वर्ग जाने पर उसके चेलों को खुशी तो हुई होगी, लेकिन इस बात का दुख भी होगा कि अब वे उसे देख नहीं पाएँगे? सच तो यह है कि यीशु की भूमिका यहीं खत्म नहीं हो जाती, जैसा कि दो स्वर्गदूतों ने प्रेषितों को याद दिलाया। (प्रेषितों 1:10, 11) अभी स्वर्ग जाकर यीशु को बहुत-से काम करने थे। परमेश्‍वर का वचन हमें साफ-साफ बताता है कि स्वर्ग जाने के बाद यीशु ने क्या किया। उसने जो भी किया, वह जानना हमारे लिए बहुत ज़रूरी है। क्यों? याद कीजिए कि यीशु ने पतरस को क्या आज्ञा दी थी: “मेरे पीछे चलना जारी रख।” (यूहन्‍ना 21:19, 22) हम सभी को यह आज्ञा मानने की ज़रूरत है। लेकिन सिर्फ कुछ समय के लिए नहीं, बल्कि पूरी ज़िंदगी यीशु के पीछे चलना है, जैसे कि यह हमारे जीने का तरीका हो। और इसके लिए ज़रूरी है कि हम समझें कि हमारा प्रभु आज स्वर्ग में क्या कर रहा है और उसे वहाँ क्या ज़िम्मेदारियाँ मिली हैं।

स्वर्ग लौटने के बाद से यीशु की ज़िंदगी

4. बाइबल में कैसे यह पहले ही बता दिया गया था कि यीशु के स्वर्ग जाने पर वहाँ क्या होगा?

4 स्वर्ग जाने पर यीशु का कैसा स्वागत किया गया और अपने पिता से दोबारा मिलकर यीशु को कितनी खुशी हुई, इस बारे में बाइबल कुछ नहीं बताती। लेकिन बाइबल में पहले से यह ज़रूर बता दिया गया था कि यीशु के स्वर्ग जाने पर जल्द ही वहाँ क्या होगा। एक हज़ार पाँच सौ साल से भी ज़्यादा समय से यहूदी एक पवित्र समारोह मनाते आ रहे थे। साल में एक बार महायाजक मंदिर के परम-पवित्र स्थान में जाता था और करार के संदूक के सामने प्रायश्‍चित दिन पर चढ़ाए गए बलिदानों का लहू छिड़कता था। उस दिन, महायाजक मसीहा को दर्शाता था। उस समारोह को मनाने का मकसद था, पापों की माफी। लेकिन यीशु ने एक ही बार में हमेशा के लिए इंसानों के पापों की माफी की कीमत अदा कर दी। वह स्वर्ग में सारी सृष्टि के राजा यहोवा के सामने हाज़िर हुआ, उस जगह जो पूरे जहान की सबसे पवित्र जगह है और अपने पिता के सामने अपने फिरौती बलिदान की कीमत अदा की। (इब्रानियों 9:11, 12, 24) क्या यहोवा ने उसे कबूल किया?

5, 6. (क) किस बात से पता चलता है कि यहोवा ने मसीह का फिरौती बलिदान कबूल किया? (ख) फिरौती से कौन फायदा पाते हैं और कैसे?

5 यहोवा ने यीशु के फिरौती बलिदान की कीमत कबूल की या नहीं, इसका जवाब हमें उस घटना से मिलता है जो यीशु के स्वर्ग जाने के कुछ दिन बाद घटी। उस दिन, करीब 120 मसीहियों का एक छोटा-सा समूह यरूशलेम के एक घर के ऊपरवाले कमरे में इकट्ठा था। तभी अचानक तेज़ आँधी की सी आवाज़ हुई, जिससे पूरा कमरा गूँज उठा। सारे चेलों के सिरों पर जीभ जैसी आग की लपटें दिखाई दीं। वे सभी पवित्र शक्‍ति से भर गए और अलग-अलग भाषाएँ बोलने लगे। (प्रेषितों 2:1-4) इस तरह एक नया राष्ट्र, यानी आत्मिक इसराएल वजूद में आया। यह राष्ट्र परमेश्‍वर का “चुना हुआ वंश” और “शाही याजकों का दल” है, जिसे उसने धरती पर अपनी मरज़ी पूरी करने के लिए चुना है। (1 पतरस 2:9) इससे साफ ज़ाहिर है कि यहोवा परमेश्‍वर ने मसीह का फिरौती बलिदान कबूल किया और उसे मंज़ूरी दी। मसीह के चेलों पर पवित्र शक्‍ति का उँडेला जाना, वह पहली आशीष है जो फिरौती के ज़रिए मुमकिन हुई।

6 तब से पूरी दुनिया में फैले मसीह के चेले फिरौती की वजह से बहुत-सी आशीषें पा रहे हैं। हम सभी को मसीह के बलिदान से फायदा होता है, फिर चाहे हम “छोटे झुंड” के अभिषिक्‍त सदस्य हों, जो स्वर्ग में मसीह के साथ शासन करेंगे, या ‘दूसरी भेड़ों’ के सदस्य जो उसके शासन के अधीन धरती पर रहेंगे। (लूका 12:32; यूहन्‍ना 10:16) इसी बलिदान के आधार पर हमें हमेशा की ज़िंदगी की आशा और पापों की माफी मिलती है। अगर हम यीशु के फिरौती बलिदान पर ‘विश्‍वास दिखाते’ रहेंगे, उसके पीछे-पीछे चलते रहेंगे, तो हम एक साफ ज़मीर और भविष्य की एक शानदार आशा का लुत्फ उठाते रहेंगे।—यूहन्‍ना 3:16.

7. स्वर्ग लौटने पर यीशु को क्या अधिकार दिया गया? उसे सहयोग देने के लिए आप क्या कर सकते हैं?

7 स्वर्ग वापस जाने के बाद यीशु को क्या काम सौंपा गया? उसे बहुत बड़ा अधिकार दिया गया है। (मत्ती 28:18) जी हाँ, यहोवा ने उसे मसीही मंडली पर अधिकार दिया है। इस ज़िम्मेदारी को वह बड़े प्यार और अच्छी तरह से निभा रहा है। (कुलुस्सियों 1:13) जैसे कि भविष्यवाणी की गयी थी, यीशु ने अपने झुंड की देखभाल करने के लिए ज़िम्मेदार पुरुषों को ठहराया है। (इफिसियों 4:8) मिसाल के तौर पर, उसने पौलुस को “गैर-यहूदी राष्ट्रों के लिए प्रेषित” ठहराया और उसे दूर-दूर के देशों में खुशखबरी सुनाने के लिए भेजा। (रोमियों 11:13; 1 तीमुथियुस 2:7) पहली सदी के आखिर में, यीशु ने एशिया के रोमी प्रांत की सात मंडलियों को पैगाम भेजा, जिसमें उसने उनकी तारीफ की, उन्हें सलाह और ताड़ना दी। (प्रकाशितवाक्य, अध्याय 2-3) क्या आप मानते हैं कि यीशु मसीही मंडली का सिर है? (इफिसियों 5:23) यीशु के पीछे चलते रहने के लिए ज़रूरी है कि आप अपनी मंडली में एक ऐसा माहौल बनाएँ, जिसमें भाई-बहन प्राचीनों की बात मानते हों और एक-दूसरे को सहयोग देते हों।

8, 9. सन्‌ 1914 में यीशु को क्या अधिकार मिला? इस बात को ध्यान में रखकर हमें कैसे फैसले लेने चाहिए?

8 सन्‌ 1914 में यीशु को और ज़्यादा अधिकार दिया गया। उसे यहोवा के मसीहाई राज का राजा ठहराया गया और उसने हुकूमत करनी शुरू कर दी। उसी साल “स्वर्ग में युद्ध छिड़ गया।” नतीजा क्या हुआ? शैतान और उसके दुष्ट स्वर्गदूतों को धरती पर फेंक दिया गया, जिसकी वजह से यहाँ दुख-तकलीफों का दौर शुरू हो गया। आज इंसानों को एक-के-बाद-एक युद्धों, जुर्म, आतंक, बीमारियों, भूकंपों और अकाल का सामना करना पड़ता है, ये सारी घटनाएँ हमें याद दिलाती हैं कि यीशु स्वर्ग में हुकूमत कर रहा है। मगर “इस दुनिया का राजा” आज भी शैतान ही है और उसका “बहुत कम वक्‍त बाकी रह गया है।” (प्रकाशितवाक्य 12:7-12; यूहन्‍ना 12:31; मत्ती 24:3-7; लूका 21:11) लेकिन यीशु पूरी दुनिया के लोगों को उसकी हुकूमत के अधीन होने का मौका दे रहा है।

9 यह बहुत ही ज़रूरी है कि हम मसीहाई राजा का पक्ष लें। रोज़ाना के फैसले करते वक्‍त, हमें यह देखना चाहिए कि उससे मसीह को खुशी होगी या इस भ्रष्ट दुनिया को। जब “राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु” मानवजाति को देखता है, तो कुछ लोगों को देखकर उसका दिल खुशी से झूम उठता है और कुछ लोगों को देखकर उसका गुस्सा भड़क उठता है। (प्रकाशितवाक्य 19:16) क्यों?

मसीहाई राजा के खुश और गुस्सा होने की वजह

10. यीशु का स्वभाव कैसा है? मगर वह किस वजह से भड़क उठता है?

10 अपने पिता की तरह, हमारा प्रभु भी बहुत खुश रहता है। (1 तीमुथियुस 1:11) इस धरती पर रहते वक्‍त वह न तो लोगों की नुक्‍ताचीनी करता था और न ही उनसे हद-से-ज़्यादा की उम्मीद करता था। फिर भी आज दुनिया में बहुत कुछ ऐसा हो रहा है, जिसे देखकर वह ज़रूर भड़क उठता होगा। उसे उन धार्मिक संगठनों पर गुस्सा आता होगा, जो उसके नुमाइंदे होने का झूठा दावा करते हैं। उसने तो ऐसे लोगों के बारे में यह तक कहा: “जो मुझे ‘हे प्रभु, हे प्रभु’ कहते हैं, उनमें से हर कोई स्वर्ग के राज में दाखिल नहीं होगा, मगर जो मेरे स्वर्गीय पिता की मरज़ी पूरी कर रहा है, वही दाखिल होगा। उस दिन बहुत-से लोग मुझसे कहेंगे, ‘हे प्रभु, हे प्रभु, क्या हमने तेरे नाम से . . . बहुत-से शक्‍तिशाली काम नहीं किए?’ तब मैं उनसे साफ-साफ कह दूँगा: मैंने तुम्हें कभी नहीं जाना! अरे दुराचारियो, मेरे सामने से दूर हो जाओ।”—मत्ती 7:21-23.

11-13. जो लोग यीशु के नाम से “बहुत-से शक्‍तिशाली काम” करते हैं, उसने उन्हें जो फटकार लगायी, उसे पढ़कर क्यों कुछ लोग उलझन में पड़ जाते हैं? आखिर यीशु उन पर इतना क्यों भड़क उठता है? उदाहरण देकर समझाइए।

11 आज मसीही होने का दावा करनेवाले बहुत-से लोग यीशु के इन शब्दों का मतलब नहीं समझ पाते। आखिर जो लोग यीशु के नाम से “बहुत-से शक्‍तिशाली काम” करते हैं, उन्हें उसने ऐसी फटकार क्यों लगायी? ईसाईजगत के चर्चों ने दान-धर्म के काम किए हैं, गरीबों की मदद की है, अस्पताल और स्कूल बनवाए हैं और दूसरे बहुत-से काम किए हैं। फिर भी उन पर यीशु का गुस्सा भड़क उठता है। आखिर क्यों? इसे समझने के लिए एक उदाहरण पर गौर कीजिए।

12 मान लीजिए एक परिवार में माता-पिता को कहीं सफर पर जाना है, लेकिन वे बच्चों को अपने साथ नहीं ले जा सकते। इसलिए बच्चों की देखभाल करने के लिए वे एक आया का इंतज़ाम करते हैं। वे उसे साफ-साफ हिदायतें देते हैं: “बच्चों की अच्छी देखभाल करना। उनके खाने-पीने, साफ-सफाई का ध्यान रखना। और उन पर नज़र रखना कि उन्हें कोई नुकसान न पहुँचे, कोई चोट न लगे।” लेकिन सफर से लौटने पर माता-पिता जो देखते हैं, उसे देखकर उनके होश उड़ जाते हैं। बच्चे भूख के मारे बिलख रहे हैं। उन्हें कई दिनों से नहलाया नहीं गया है। देखने से लगता है कि वे बहुत बीमार हैं और उनके चेहरे मुरझा गए हैं। वे बुरी तरह रो रहे हैं, लेकिन आया उनके रोने पर कान नहीं देती। क्यों? क्योंकि वह सीढ़ी पर चढ़कर खिड़कियाँ साफ करने में लगी है। बच्चों का ये हाल देखकर माता-पिता बौखला जाते हैं और वे आया से पूछते हैं कि उसने उनके बच्चों का ध्यान क्यों नहीं रखा। आया जवाब देती है: “देखिए, मैंने घर का कितना सारा काम निपटा दिया है। घर की खिड़कियाँ साफ की हैं, घर की मरम्मत भी की है। ये सब मैंने आपके लिए ही तो किया है!” क्या उसके इस जवाब से माता-पिता को तसल्ली होगी? हरगिज़ नहीं! उन्होंने आया को ये काम करने के लिए नहीं कहा था। वे तो सिर्फ इतना चाहते थे कि वह बच्चों की अच्छी देखभाल करे। बच्चों की देखभाल के बारे में माता-पिता की दी गयी हिदायतों को आया ने अनसुना कर दिया। ऐसे में माता-पिता का भड़क उठना लाज़िमी है।

13 ईसाईजगत के काम भी इस आया की तरह ही हैं। यीशु ने जाने से पहले अपने चेलों को हिदायतें दी थीं कि उन्हें लोगों को आध्यात्मिक भोजन देना है, यानी परमेश्‍वर के वचन की सच्चाई सिखानी है। साथ ही, उनकी मदद करनी है ताकि वे आध्यात्मिक तौर पर साफ-सुथरे रह सकें। (यूहन्‍ना 21:15-17) लेकिन ईसाईजगत ने यीशु के निर्देशनों को नहीं माना। उन्होंने लोगों को आध्यात्मिक भोजन से महरूम रखा है, झूठी शिक्षाएँ सिखाकर उन्हें उलझन में डाल दिया है और उन्हें बाइबल की बुनियादी सच्चाइयाँ भी नहीं सिखायी हैं। (यशायाह 65:13; आमोस 8:11) माना कि ईसाईजगत ने दुनिया को बेहतर बनाने की तमाम कोशिशें की हैं, मगर यीशु की आज्ञा न मानकर उन्होंने जो गलती की है, उसे कतई माफ नहीं किया जा सकता। उन्हें ऐसा करने की कोई ज़रूरत नहीं थी, क्योंकि यह दुनिया एक ऐसे मकान की तरह है, जिसे एक दिन ढा दिया जाएगा! परमेश्‍वर का वचन साफ-साफ बताता है कि जल्द ही शैतान की इस दुनिया का नाश कर दिया जाएगा।—1 यूहन्‍ना 2:15-17.

14. आज यीशु को किस काम से खुशी होती है और क्यों?

14 वहीं दूसरी तरफ, लाखों लोग हैं जो यीशु की दी हिदायतें मान रहे हैं और चेला बनाने का काम कर रहे हैं। जब यीशु स्वर्ग से उन्हें देखता होगा, तो उसे बड़ी खुशी होती होगी, क्योंकि यही वह काम है जो उसने स्वर्ग जाने से पहले अपने चेलों को सौंपा था। (मत्ती 28:19, 20) मसीहाई राजा को खुश करना कितने बड़े सम्मान की बात है! आइए ठान लें कि ‘विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाले दास’ का साथ हम कभी नहीं छोड़ेंगे। (मत्ती 24:45) अभिषिक्‍त भाइयों का यह छोटा समूह, ईसाईजगत के पादरियों से बिलकुल अलग है। इस समूह ने यीशु की आज्ञा मानते हुए खुशखबरी सुनाने के काम में ज़ोर-शोर से अगुवाई ली है और पूरी वफादारी से मसीह की भेड़ों को भोजन दिया है।

15, 16. (क) इस दुनिया में जिस तरह इंसानों के बीच प्यार खत्म होता जा रहा है, उसे देखकर यीशु कैसा महसूस करता है? हम यह कैसे जानते हैं? (ख) किस वजह से यीशु को ईसाईजगत पर गुस्सा आता है?

15 जब यीशु यह देखता है कि इंसानों के बीच जो प्यार होना चाहिए वह आज दुनिया में खत्म होता जा रहा है, तो यकीन मानिए वह ज़रूर दुखी और गुस्सा होता होगा। याद कीजिए कि जब यीशु सब्त के दिन बीमारों को ठीक करता था, तो फरीसी उसकी कितनी निंदा करते थे। फरीसी इतने पत्थर-दिल और ढीठ हो गए थे कि वे मूसा के दिए कानून का जो मतलब निकालते थे और उन्होंने जो मौखिक नियम बनाए थे, उनके मानने पर ही ज़ोर देते थे। हालाँकि यीशु के किए चमत्कारों से लोगों को बहुत फायदे हुए, लोगों को बहुत खुशी और राहत मिलती थी, उनका विश्‍वास मज़बूत होता था। लेकिन फरीसियों को इससे कोई लेना-देना नहीं था। उन फरीसियों के बारे में यीशु ने कैसा महसूस किया? एक बार वह “उनके दिलों की कठोरता देखकर . . . बेहद दुःखी हुआ और उसने क्रोध से भरकर उन सब पर नज़र डाली।”—मरकुस 3:5.

16 आज यीशु ऐसा और भी बहुत कुछ देखता है जिससे वह “बेहद दुःखी” होता है। ईसाईजगत के अगुवे लकीर के फकीर बनकर उन रस्मों-रिवाज़ों और शिक्षाओं को मानते रहते हैं, जो बाइबल से बिलकुल मेल नहीं खातीं। इतना ही नहीं, जब वे देखते हैं कि परमेश्‍वर के राज की खुशखबरी सुनायी जा रही है, तो उनका पारा चढ़ जाता है। आज सच्चे मसीही वही संदेश सुनाने में लगे हुए हैं, जो यीशु सुनाता था। यह बात पादरियों से बरदाश्‍त नहीं होती, इसलिए दुनिया की कई जगहों में वे सच्चे मसीहियों पर ज़ुल्म ढाने के लिए लोगों को भड़काते हैं। (यूहन्‍ना 16:2; प्रकाशितवाक्य 18:4, 24) साथ ही, ये पादरी अपने लोगों को युद्ध में शामिल होने और दूसरों की जान लेने के लिए भड़काते हैं, मानो इससे वे यीशु को खुश कर रहे हैं!

17. यीशु के सच्चे चेले किस तरह यीशु का दिल खुशी से भर देते हैं?

17 जहाँ एक तरफ दुनिया में नफरत भरी हुई है, वहीं दूसरी तरफ यीशु के सच्चे चेले दूसरों के लिए प्यार दिखाते हैं। वे विरोध के बावजूद, यीशु की तरह “सब किस्म के लोगों” को खुशखबरी सुनाते हैं। (1 तीमुथियुस 2:4) वे एक-दूसरे के लिए जो प्यार दिखाते हैं, वह लोगों को साफ नज़र आता है। यही प्यार उनकी सबसे बड़ी पहचान है। (यूहन्‍ना 13:34, 35) जब वे अपने संगी मसीहियों के साथ प्यार, आदर और गरिमा से पेश आते हैं, तो वे सचमुच यीशु की मिसाल पर चल रहे होते हैं। और इस तरह वे मसीहाई राजा का दिल खुशी से भर देते हैं!

18. किस बात से हमारे प्रभु को दुख होता है? हम उसे कैसे खुश कर सकते हैं?

18 हमें यह भी याद रखना चाहिए कि जब यीशु के चेले धीरज धरने में हार मानने लगते हैं, यहोवा के लिए अपना प्यार कम होने देते हैं और उसकी सेवा में ढीले पड़ जाते हैं, तो यह देखकर हमारे प्रभु को बहुत दुख होता है। (प्रकाशितवाक्य 2:4, 5) लेकिन जो लोग अंत तक धीरज धरते हैं, उनसे यीशु खुश होता है। (मत्ती 24:13) इसलिए आइए हम मसीह की यह आज्ञा कभी न भूलें कि “मेरे पीछे चलना जारी रख” और इसे मानने की पूरी-पूरी कोशिश करें। (यूहन्‍ना 21:19) आइए उन आशीषों में से कुछ पर गौर करें, जो मसीहाई राजा उन लोगों को देगा जो अंत तक धीरज धरे रहेंगे।

राजा की वफादार प्रजा को मिलनेवाली आशीषें

19, 20. (क) यीशु के पीछे चलने से आज हमें क्या आशीषें मिलती हैं? (ख) हमें ‘अनन्तकाल के पिता’ की ज़रूरत है, यीशु के पीछे चलने से कैसे हमारी यह ज़रूरत पूरी होती है?

19 यीशु के पीछे चलने से आज के दौर में भी एक इंसान की ज़िंदगी खुशियों से भर सकती है। दुनिया के लोग भी आशीषों का खज़ाना ढूँढ़ रहे हैं, मगर यह उन्हें नहीं मिलता। क्योंकि यह उन लोगों को ही मिलता है जो मसीह को अपना प्रभु मानते हैं, उसके निर्देशन और मिसाल पर चलते हैं। अगर हम ऐसा करेंगे, तो हमें वह खज़ाना मिलेगा। हम ऐसे काम करेंगे जिससे हम मकसद-भरी ज़िंदगी जीएँगे, संगी विश्‍वासियों के साथ एक परिवार की तरह सच्चे प्यार के रिश्‍ते में बँध जाएँगे। इतना ही नहीं, हमें साफ ज़मीर मिलेगा और मन की शांति भी। सौ बात की एक बात, हम एक खुशहाल और संतोष-भरी ज़िंदगी जी पाएँगे। इसके अलावा हमें और भी आशीषें मिलेंगी।

20 जिन लोगों को धरती पर हमेशा तक जीने की आशा है, उनके लिए यहोवा ने यीशु को “अनन्तकाल का पिता” ठहराया है। हमारे पहले पिता आदम ने तो अपनी सारी संतानों को धोखा देकर हमें पाप और मौत के दलदल में धकेल दिया, मगर यीशु ने हमारा पिता बनकर उस दलदल से हमें निकाला है। (यशायाह 9:6, 7) जब हम यीशु को अपना “अनन्तकाल का पिता” मानते हैं, उस पर विश्‍वास दिखाते हैं, तो हमें हमेशा की ज़िंदगी की पक्की आशा मिलती है। इसके अलावा हम यहोवा के और भी करीब आते रहते हैं। जैसा कि हमने सीखा, अगर हम हर दिन यीशु की मिसाल पर चलने की कोशिश करते रहेंगे, तो हम परमेश्‍वर की प्रेरणा से लिखी इस आज्ञा को अच्छी तरह मान सकेंगे: “परमेश्‍वर के प्यारे बच्चों की तरह उसकी मिसाल पर चलो।”—इफिसियों 5:1.

21. अंधकार में पड़ी इस दुनिया में मसीह के पीछे चलनेवाले कैसे रौशनी फैलाते हैं?

21 यीशु और उसके पिता, यहोवा की मिसाल पर चलने से हमें एक बहुत बड़ा सम्मान मिलता है। वह सम्मान है उनसे मिलनेवाली रौशनी को दुनिया में फैलाना। एक तरफ जहाँ यह दुनिया अंधकार में पड़ी है और अरबों लोग शैतान के धोखे में पड़े हैं और उसी के नक्शे-कदम पर चल रहे हैं, वहीं हम जो मसीह से पीछे चलते हैं, बड़े पैमाने पर सबसे तेज़ रौशनी फैलाने का काम कर रहे हैं। यह रौशनी है, परमेश्‍वर के वचन में दी सच्चाई, मसीह के जैसे बेहतरीन गुण, दिली खुशी, सच्ची शांति और असली प्यार की रौशनी। रौशनी फैलाने के साथ-साथ हम यहोवा के भी करीब आते जाते हैं। और उसके करीब आना ही हमारी ज़िंदगी का सबसे बड़ा लक्ष्य है। हर बुद्धिमान प्राणी के लिए इससे बड़ा लक्ष्य और कोई नहीं हो सकता।

22, 23. (क) जो लोग वफादारी से यीशु के पीछे चलते रहते हैं, उन्हें भविष्य में क्या आशीषें मिलेंगी? (ख) हमें क्या ठान लेना चाहिए?

22 यहोवा अपने मसीहाई राजा के ज़रिए भविष्य में आपके लिए जो करेगा, ज़रा उस बारे में सोचिए। मसीहाई राजा बहुत जल्द शैतान की दुष्ट व्यवस्था के खिलाफ युद्ध करेगा। यीशु की जीत पक्की है! (प्रकाशितवाक्य 19:11-15) उसके बाद, मसीह इस धरती पर अपना हज़ार साल का शासन शुरू करेगा। स्वर्ग में बनी उसकी सरकार, हर वफादार इंसान को फिरौती से मिलनेवाले फायदे पहुँचाएगी और उन्हें सिद्धता की ओर ले जाएगी। सोचिए, उस वक्‍त आप हमेशा जवान और सेहतमंद रहेंगे, आप एकता की डोर में बँधे इंसानी परिवार के साथ मिलकर खुशी-खुशी इस धरती को फिरदौस में तबदील करेंगे! हज़ार साल के शासन के आखिर में, यीशु अपना शासन वापस पिता के हाथ में सौंप देगा। (1 कुरिंथियों 15:24) अगर आप वफादारी से यीशु के पीछे चलना जारी रखें, तो आप एक ऐसी शानदार आशीष से नवाज़े जाएँगे, जिसकी कल्पना करना भी मुश्‍किल है—आप ‘परमेश्‍वर के बच्चे होने की शानदार आज़ादी पाएँगे!’ (रोमियों 8:21) जी हाँ, हम उन सारी आशीषों का लुत्फ उठा पाएँगे जो आदम और हव्वा ने गवाँ दीं। विरासत में आदम से मिले पाप से हमें आज़ाद किया जाएगा और हम सही मायने में यहोवा के बेटे और बेटियाँ कहलाएँगे। फिर ‘मौत न रहेगी,’ उसका नामो-निशान मिटा दिया जाएगा।—प्रकाशितवाक्य 21:4.

23 अब ज़रा उस अमीर नौजवान अधिकारी को याद कीजिए, जिसका ज़िक्र इस किताब के अध्याय 1 में किया गया है। उसने यीशु का यह न्यौता ठुकरा दिया था: “आकर मेरा चेला बन जा और मेरे पीछे हो ले।” (मरकुस 10:17-22) आप ऐसी गलती कभी मत कीजिएगा! हम चाहते हैं कि आप यीशु का यह न्यौता खुशी-खुशी और जोश के साथ कबूल करें। हमारी दुआ है कि आप हर हाल में धीरज धरने, दिन-ब-दिन और साल-ब-साल बेहतरीन चरवाहे के पीछे चलना जारी रखने की ठान लें और यीशु को यहोवा के सारे मकसद शानदार तरीके से पूरा करता देखें!