अध्याय 11
“आज तक किसी भी इंसान ने इस तरह बात नहीं की”
1, 2. (क) यीशु को गिरफ्तार करने के लिए जिन पहरेदारों को भेजा गया था, वे खाली हाथ क्यों लौट आए? (ख) यीशु क्यों बेमिसाल शिक्षक था?
फरीसी गुस्से से भड़के हुए हैं। यीशु मंदिर में अपने पिता के बारे में सिखा रहा है। लेकिन सुननेवाले एक मत नहीं हैं। कई लोग उस पर विश्वास करते हैं, तो कुछ उसे गिरफ्तार करवाना चाहते हैं। धार्मिक अगुवे अपने गुस्से पर काबू नहीं रख पाते, वे यीशु को गिरफ्तार करने के लिए पहरेदारों को भेजते हैं। a लेकिन पहरेदार खाली हाथ लौट आते हैं। प्रधान याजक और फरीसी उनसे इसकी वजह पूछते हैं: “तुम उसे पकड़कर क्यों नहीं लाए?” पहरेदार जवाब देते हैं: “आज तक किसी भी इंसान ने इस तरह बात नहीं की जिस तरह वह करता है।” यीशु की बातों ने उन पहरेदारों के मन पर ऐसी गहरी छाप छोड़ी कि उनके दिल ने गवारा नहीं किया कि वे उसे गिरफ्तार करें।—यूहन्ना 7:45, 46.
2 यीशु की शिक्षाओं का असर सिर्फ उन पहरेदारों पर ही नहीं हुआ। उसकी बातें सुनने के लिए भारी तादाद में लोग जमा होते थे। (मरकुस 3:7, 9; 4:1; लूका 5:1-3) यीशु क्यों इतना बेमिसाल शिक्षक था? जैसा कि हमने अध्याय 8 में सीखा, वह जो सच्चाई सिखाता था उससे और जिन लोगों को वह सिखाता था, उनसे उसे बेहद प्यार था। वह लोगों को सिखाने के लिए जो तरीके इस्तेमाल करता था, उसकी कोई बराबरी नहीं कर सकता। आइए उन तीन तरीकों पर गौर करें जो उसने सिखाने के लिए इस्तेमाल किए और देखें कि हम उन पर कैसे चल सकते हैं।
सरलता से सिखाइए
3, 4. (क) लोगों को सिखाते वक्त यीशु ने सरल भाषा क्यों इस्तेमाल की? (ख) पहाड़ी उपदेश कैसे इस बात का एक उदाहरण है कि यीशु सरलता से सिखाता था?
3 यीशु के पास शब्दों का बहुत बड़ा भंडार था! लेकिन उसने सिखाते वक्त कभी भी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जो उसके सुननेवालों को समझ न आएँ। उसके सुननेवालों में ज़्यादातर लोग “कम पढ़े-लिखे, मामूली” थे। (प्रेषितों 4:13) वह सीखने-समझने की उनकी सीमा पहचानता था और उन्हें दुनिया-भर की जानकारी नहीं देता था। (यूहन्ना 16:12) उसके शब्द आसान होते थे, लेकिन उनके ज़रिए वह लोगों को गूढ़-से-गूढ़ सच्चाइयाँ भी समझा देता था।
4 उदाहरण के लिए मत्ती 5:3–7:27 में दर्ज़ पहाड़ी उपदेश की बात लीजिए। इस उपदेश में यीशु ने जिन मुद्दों पर सलाहें दीं, वह उन मुद्दों की जड़ तक गया। इस उपदेश में ऐसा एक भी विचार या शब्द नहीं, जिसे समझना मुश्किल हो। उसकी बातें इतनी सरल हैं कि छोटा-बड़ा हर कोई आसानी से समझ सकता है! इसलिए ताज्जुब की बात नहीं कि जब यीशु ने अपना उपदेश खत्म किया तो सारे लोग, जिनमें शायद बहुत-से किसान, चरवाहे और मछुवारे थे, “उसका सिखाने का तरीका देखकर दंग रह” गए।—मत्ती 7:28.
5. यीशु की कही कुछ बातों का उदाहरण दीजिए जो सरल थीं, मगर जिनमें गहरा मतलब छिपा था।
5 सिखाते वक्त यीशु अकसर थोड़े शब्दों में अपनी बात कहता था, जो कहने को तो सरल थीं मगर उनमें गहरा मतलब छिपा होता था। उस ज़माने में जब किताबें नहीं छपती थीं, यीशु ने सुननेवालों के दिलो-दिमाग पर अपने संदेश की ऐसी गहरी छाप छोड़ी जिसे भूलना उनके लिए मुश्किल था। कुछ उदाहरणों पर गौर कीजिए: “दोष लगाना बंद करो ताकि तुम पर दोष न लगाया जाए।” “जो सेहतमंद हैं, उन्हें वैद्य की ज़रूरत नहीं होती, मगर बीमारों को होती है।” “दिल तो . . . तैयार है, मगर शरीर कमज़ोर है।” “जो सम्राट का है वह सम्राट को चुकाओ, मगर जो परमेश्वर का है वह परमेश्वर को।” “लेने से ज़्यादा खुशी देने में है।” b (मत्ती 7:1; 9:12; 26:41; मरकुस 12:17; प्रेषितों 20:35) यीशु की कही इन बातों को करीब 2,000 साल हो चुके हैं मगर ये आज भी लोगों की ज़बान पर हैं।
6, 7. (क) सरलता से सिखाने के लिए क्यों ज़रूरी है कि हम आसान भाषा का इस्तेमाल करें? (ख) हम कैसे बाइबल विद्यार्थी के दिमाग में ढेर सारी जानकारी भरने से दूर रह सकते हैं?
6 हम लोगों को सरलता से कैसे सिखा सकते हैं? एक ज़रूरी बात है कि हमें ऐसी भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए जिसे ज़्यादातर लोग आसानी से समझ सकें। परमेश्वर के वचन की बुनियादी सच्चाइयाँ समझने में मुश्किल नहीं हैं। यहोवा ने अपना मकसद उन लोगों पर ज़ाहिर किया है जो दिल के सच्चे और नम्र हैं। (1 कुरिंथियों 1:26-28) ध्यान से चुने गए सरल शब्द परमेश्वर के वचन की सच्चाई को बखूबी बयान कर सकते हैं।
7 सरलता से सिखाने के लिए ज़रूरी है कि हम अपने बाइबल विद्यार्थी को ढेर सारी जानकारी देने की कोशिश न करें। इसलिए जब हम किसी को बाइबल अध्ययन कराते हैं तो हमें हर छोटी-से-छोटी बात खुलकर समझाने की ज़रूरत नहीं है। और न ही यह सोचकर जल्दबाज़ी में अध्ययन कराना चाहिए कि हमें एक बार में इतना भाग खत्म करना ही है। इसके बजाय समझदारी इसी में होगी कि अपने विद्यार्थी की ज़रूरत और काबिलीयत को ध्यान में रखते हुए अध्ययन कराएँ। हमारा मकसद होता है विद्यार्थी को मसीह के पीछे चलने और यहोवा का उपासक बनने में मदद देना। इसके लिए चाहे जितना भी समय लगे हमें उसकी परवाह नहीं करनी चाहिए। विद्यार्थी जो सीख रहा है उसे अच्छी तरह समझ में आना चाहिए। तभी बाइबल की सच्चाई विद्यार्थी के दिल को छू पाएगी और वह सीखी बातों को अपनी ज़िंदगी में लागू कर पाएगा।—रोमियों 12:2.
सही सवाल पूछना
8, 9. (क) यीशु सवाल क्यों पूछता था? (ख) यीशु ने सवालों के ज़रिए मंदिर का कर चुकाने के मामले में किस तरह पतरस को सही नतीजे पर पहुँचने में मदद दी?
8 कभी-कभी यीशु अपनी बात सीधे-सीधे कहकर कम वक्त में समझा सकता था, फिर भी उसने सवालों का बखूबी इस्तेमाल किया। वह सवाल क्यों पूछता था? कई बार सवालों के ज़रिए वह अपने विरोधियों के बुरे इरादों का खुलासा करता था और इस तरह उनके मुँह बंद कर देता था। (मत्ती 21:23-27; 22:41-46) लेकिन कई मौकों पर वह सवाल इसलिए पूछता था ताकि उसके चेले अपने दिल की बात ज़ाहिर कर सकें, सोचने के लिए मजबूर हों और उनकी सोच को सुधारा जा सके। इसलिए वह उनसे इस तरह के सवाल पूछता था, “तुम क्या सोचते हो?” और ‘क्या तुम इस पर विश्वास करते हो?’ (मत्ती 18:12; यूहन्ना 11:26) सवालों के ज़रिए यीशु अपने चेलों के दिल तक पहुँच सका और उन्हें सही बात समझा सका। एक उदाहरण पर गौर कीजिए।
9 एक बार कर वसूलनेवालों ने पतरस से पूछा कि क्या यीशु मंदिर का कर देता है। c पतरस ने बिना सोचे-समझे तुरंत कहा, “हाँ, देता है।” बाद में यीशु ने उससे तर्क किया: “शमौन, तू क्या सोचता है? दुनिया के राजा चुंगी या कर किससे लेते हैं? अपने बेटों से या परायों से?” पतरस ने जवाब दिया: “परायों से।” तब यीशु ने उससे कहा: “इसका मतलब है कि बेटे कर से मुक्त हैं।” (मत्ती 17:24-27) यीशु के सवालों के ज़रिए पतरस उसकी बात समझ गया। वह जानता था कि राजा के परिवार के सदस्यों को कर देने की ज़रूरत नहीं है। और यरूशलेम के मंदिर में स्वर्ग में रहनेवाले राजा की उपासना की जाती थी, जिसका इकलौता बेटा यीशु था। तो ज़ाहिर-सी बात थी कि यीशु को कर देने की ज़रूरत नहीं। ध्यान दीजिए कि पतरस को सीधे-सीधे बात बताने के बजाय यीशु ने बड़ी समझदारी से सवाल पूछकर उसे सही नतीजे पर पहुँचने में मदद दी। और शायद यह देखने में भी मदद दी कि आगे से वह किसी भी सवाल का जवाब सोच-समझकर दे।
10. घर-घर का प्रचार करते वक्त हम सवालों का बखूबी इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं?
10 हम प्रचार में सवालों का कैसे बखूबी इस्तेमाल कर सकते हैं? घर-घर प्रचार करते वक्त लोगों की दिलचस्पी जगाने के लिए हम सवालों का इस्तेमाल कर सकते हैं, ताकि राज संदेश सुनाने का रास्ता खुल जाए। उदाहरण के लिए, अगर एक बुज़ुर्ग आदमी दरवाज़ा खोलता है तो आप आदर के साथ उससे यह सवाल कर सकते हैं, “आपने अपनी ज़िंदगी में इस दुनिया को कैसे बदलते देखा है?” जवाब के लिए रुकिए फिर उससे पूछिए, “आपको क्या लगता है, इस दुनिया को बेहतर बनाने के लिए क्या करना होगा?” (मत्ती 6:9, 10) अगर एक माँ दरवाज़े पर आती है जिसके छोटे-छोटे बच्चे हैं तो आप पूछ सकते हैं: “क्या आपने कभी सोचा है कि जब आपके बच्चे बड़े होंगे तो इस दुनिया की हालत कैसी होगी?” (भजन 37:10, 11) जब हम किसी घर में प्रचार के लिए जाते हैं तो हमें चारों तरफ गौर करना चाहिए ताकि हम ऐसे विषय पर सवाल पूछ सकें जिसमें घर-मालिक को दिलचस्पी हो।
11. बाइबल अध्ययन कराते वक्त हम कैसे सवालों का अच्छा इस्तेमाल कर सकते हैं?
11 बाइबल अध्ययन कराते वक्त हम कैसे सवालों का अच्छा इस्तेमाल कर सकते हैं? अगर हम सोच-समझकर सवाल पूछें, तो हम विद्यार्थी के दिल की बात जान पाएँगे। (नीतिवचन 20:5) मान लीजिए कि आप बाइबल असल में क्या सिखाती है? d किताब के अध्याय “ऐसी ज़िंदगी जीना जिससे परमेश्वर ” से अध्ययन करा रहे हैं। इस अध्याय में लैंगिक अनैतिकता, पियक्कड़पन और झूठ बोलने के बारे में परमेश्वर के नज़रिए पर चर्चा की गयी है। बाइबल विद्यार्थी के जवाबों से शायद ज़ाहिर हो कि बाइबल जो सिखाती है वह उसे समझता है, लेकिन वह जो सीख रहा है क्या उससे सहमत है? यह जानने के लिए हम उससे पूछ सकते हैं: “इन मामलों को परमेश्वर जिस नज़र से देखता है क्या वह आपको सही लगता है?” हम यह भी पूछ सकते हैं: “इस जानकारी को आप अपनी ज़िंदगी में कैसे लागू कर सकते हैं?” लेकिन ध्यान रखिए कि ऐसे सवाल न पूछें जिससे विद्यार्थी की गरिमा को ठेस पहुँचे और उसे शर्मिंदगी महसूस हो।— खुश होनीतिवचन 12:18.
दमदार दलीलें इस्तेमाल करना
12-14. (क) यीशु ने तर्क देने की अपनी काबिलीयत का किस तरह इस्तेमाल किया? (ख) जब फरीसियों ने यीशु पर यह इलज़ाम लगाया कि वह शैतान की ताकत से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालता है, तो उसने कैसी दमदार दलील पेश की?
12 यीशु के पास सिद्ध दिमाग था इसलिए वह तर्क करने में माहिर था। जब उसके विरोधी उस पर गलत इलज़ाम लगाते थे, तो वह ज़बरदस्त दलीलें देकर उन्हें झूठा साबित करता था। कई बार वह अपने चेलों को अहम सबक सिखाने के लिए भी तर्क देता था। आइए कुछ उदाहरणों पर गौर करें।
13 एक बार जब यीशु ने एक अंधे और गूँगे आदमी को ठीक किया जिसमें दुष्ट स्वर्गदूत समाया था, तो फरीसियों ने उस पर इलज़ाम लगाया: “यह आदमी, दुष्ट स्वर्गदूतों के राजा बालज़बूल [शैतान] की मदद के बिना दुष्ट स्वर्गदूतों को नहीं निकालता।” ध्यान दीजिए कि इस बात से फरीसियों ने खुद कबूल किया कि दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालने के लिए इंसानी ताकत से बड़ी ताकत की ज़रूरत है। लेकिन उन्होंने कहा कि यीशु शैतान की ताकत से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालता है। उनका यह इलज़ाम न सिर्फ झूठा था बल्कि उसका कोई तुक भी नहीं बनता था। उनकी बुरी सोच पर से नकाब उतारने के लिए यीशु ने उन्हें जवाब दिया: “ऐसा हर राज्य जिसमें फूट पड़ जाए, उजड़ जाता है और ऐसा हर शहर या घर जिसमें फूट पड़ जाए, टिक नहीं पाएगा। उसी तरह, अगर शैतान ही शैतान को निकाले, तो उसमें फूट पड़ गयी है और वह खुद अपने खिलाफ हो गया है। तो फिर उसका राज्य कैसे टिका रहेगा?” (मत्ती 12:22-26) एक तरह से यीशु कह रहा था: “अगर मैं शैतान का साथी हूँ और शैतान के कामों को ही मिटा रहा हूँ, तब तो शैतान अपने ही मंसूबों के खिलाफ काम कर रहा है और वह जल्द ही तबाह हो जाएगा।” क्या यीशु की इस दलील का फरीसियों के पास कोई जवाब था?
14 यीशु ने अपनी बात यहीं खत्म नहीं की। वह जानता था कि फरीसियों के कुछ चेले भी दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालते हैं, इसलिए उसने एक आसान-सा मगर दमदार सवाल पूछा: “अगर मैं बालज़बूल की मदद से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालता हूँ, तो तुम्हारे बेटे [या चेले] किसकी मदद से इन्हें निकालते हैं?” (मत्ती 12:27) यीशु एक तरह से कह रहा था: “अगर मैं शैतान की ताकत से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालता हूँ तो तुम्हारे चेले भी इसी ताकत का इस्तेमाल करते होंगे।” अब फरीसी क्या कहते? वे कभी-भी यह बात नहीं मान सकते थे कि उनके चेले शैतान की ताकत से काम करते हैं। यीशु की दलील से फरीसी अपने ही बिछाए जाल में फँस गए। यीशु का दिया तर्क वाकई लाजवाब था! उसकी कही बातें पढ़कर ही हम दंग रह जाते हैं, तो सोचिए जिन लोगों ने उसे अपनी आँखों से देखा होगा, उसकी आवाज़ सुनी होगी उन पर कितना ज़बरदस्त असर हुआ होगा!
15-17. एक उदाहरण बताइए कि यीशु ने “और भी बढ़कर . . . क्यों न” तर्क का इस्तेमाल करके कैसे लोगों को अपने पिता के बारे में दिल छू लेनेवाली सच्चाइयाँ सिखायीं।
15 अपने पिता के बारे में दिल छू लेनेवाली सच्चाई सिखाने के लिए भी यीशु बेहतरीन तर्क देता था, जिससे उसकी बात सुननेवालों के ज़हन में उतर जाती थी। इसके लिए वह अकसर “और भी बढ़कर . . . क्यों न,” यह कहकर तर्क करता था। वह दो बातों के बारे में बताता, जिनमें ज़मीन-आसमान का फर्क होता था। पहले वह लोगों को कोई ऐसी बात बताता जिससे वे अच्छी तरह वाकिफ होते थे और फिर उसी के आधार पर वह उन्हें अहम सच्चाई सिखाता। इस तरह तर्क करने से सच्चाई लोगों के दिल में बैठ जाती है। आइए दो उदाहरणों पर गौर करें।
16 एक बार चेलों ने उससे कहा कि वह उन्हें प्रार्थना करना सिखाए। जवाब देते वक्त यीशु ने उन्हें असिद्ध इंसानी माता-पिता का उदाहरण दिया कि वे अपने बच्चों को “अच्छी चीज़ें” देने के लिए तैयार रहते हैं। फिर उसने आखिर में कहा: “इसलिए, जब तुम दुष्ट होते हुए भी यह जानते हो कि अपने बच्चों को अच्छी चीज़ें कैसे देनी हैं, तो स्वर्ग में रहनेवाला पिता और भी बढ़कर, अपने माँगनेवालों को पवित्र शक्ति क्यों न देगा!” (लूका 11:1-13) उसने ऐसी दो बातें बतायीं जिनमें ज़मीन-आसमान का फर्क है। अगर पापी माता-पिता अपने बच्चों की ज़रूरतों का खयाल रख सकते हैं तो स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता जो हर तरह से सिद्ध और धर्मी है, अपने उन वफादार सेवकों को पवित्र शक्ति क्यों न देगा जो उससे माँगते हैं!
17 हद-से-ज़्यादा चिंता न करने के बारे में बुद्धि-भरी सलाह देते वक्त भी यीशु ने ऐसी ही दलील पेश की। उसने कहा: “ध्यान दो कि कौवे न तो बीज बोते हैं, न कटाई करते हैं, न उनके अनाज के भंडार होते हैं, न ही गोदाम, फिर भी परमेश्वर उन्हें खिलाता है। तो फिर, तुम्हारा मोल पक्षियों से कितना बढ़कर होगा? ध्यान दो कि सोसन के फूल कैसे उगते हैं। वे न तो कड़ी मज़दूरी करते हैं न ही सूत कातते हैं। . . . इसलिए, अगर परमेश्वर मैदान में उगनेवाले घास-फूस को, जो आज मौजूद है और कल तंदूर की आग में झोंक दिया जाएगा, ऐसे कपड़े पहनाता है, तो अरे कम विश्वास रखनेवालो, वह तुम्हें इससे भी बढ़कर क्यों न पहनाएगा!” (लूका 12:24, 27, 28) अगर यहोवा पंछियों और फूलों की देखभाल करता है तो फिर वह उन इंसानों की और भी बढ़कर देखभाल करेगा जो उससे प्यार करते हैं और उसकी उपासना करते हैं! बेशक, इस तरह के तर्क से उसकी बातें सुननेवालों का दिल छू गयी होंगी।
18, 19. अगर कोई हमसे कहे कि वह परमेश्वर में विश्वास नहीं करता क्योंकि वह उसे देख नहीं सकता, तो हम उससे कैसे तर्क कर सकते हैं?
18 प्रचार सेवा में झूठे विश्वासों को गलत साबित करने के लिए हमें भी दमदार दलीलों का इस्तेमाल करना चाहिए। साथ ही, लोगों को यहोवा के बारे में सच्चाई सिखाने के लिए उनके साथ तर्क करना चाहिए। (प्रेषितों 19:8; 28:23, 24) तो क्या हमें ऐसी दलीलें देनी चाहिए जो पेचीदा हों? नहीं। यीशु की मिसाल से हम सीखते हैं कि अगर हम ऐसी दलीलें पेश करें जो समझने में आसान हों, तो उनका बहुत गहरा असर होता है।
19 अगर कोई हमसे कहता है कि वह परमेश्वर में विश्वास नहीं करता क्योंकि वह उसे देख नहीं सकता, तो हम उसे क्या जवाब दे सकते हैं? हम उसे प्रकृति के एक नियम कारण और परिणाम का उदाहरण दे सकते हैं। जब हम कोई परिणाम देखते हैं, तो हम कबूल करते हैं कि उसके पीछे कोई-न-कोई कारण ज़रूर होगा। हम उस व्यक्ति से कह सकते हैं: “मान लीजिए आप किसी सुनसान जगह से जा रहे हैं और वहाँ आपको एक अच्छा घर दिखायी देता है जिसमें खाने-पीने की चीज़ें (परिणाम) भरी पड़ी हैं। ऐसे में क्या आप यह नहीं मानेंगे कि किसी ने (कारण) उस घर को बनाया होगा और उसकी अलमारियों में खाने-पीने की चीज़ें (परिणाम) रखी होंगी? ठीक उसी तरह जब हम कुदरत में मौजूद रचना और पृथ्वी की ‘अलमारियों’ में ढेर-सारी खाने की चीज़ें (परिणाम) देखते हैं, तो क्या यह मानना सही नहीं होगा कि इन सबको किसी ने (कारण) बनाया है? इसी बात पर बाइबल इस तरह से तर्क करती है: ‘हर घर का कोई न कोई बनानेवाला होता है, मगर जिसने सबकुछ बनाया वह परमेश्वर है।’” (इब्रानियों 3:4) यह बात सच है कि हम चाहे कितना भी अच्छा तर्क क्यों न दें हर कोई हमारी बात से सहमत नहीं होगा।—2 थिस्सलुनीकियों 3:2.
20, 21. (क) यहोवा के गुणों और तौर-तरीकों के बारे में सिखाने के लिए हम “और भी बढ़कर . . . क्यों न” तर्क का कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं? (ख) अगले अध्याय में हम किस बात पर चर्चा करेंगे?
20 हम सिखाते वक्त “और भी बढ़कर . . . क्यों न” तर्क का इस्तेमाल करके यहोवा के गुणों और तौर-तरीकों के बारे में बता सकते हैं, फिर चाहे हम प्रचार में हों या मंडली में। जैसे यह दिखाने के लिए कि नरक की आग में हमेशा-हमेशा तक तड़पाने की शिक्षा से यहोवा का अपमान होता है, हम कह सकते हैं: “क्या ऐसा कोई प्यार करनेवाला पिता होगा जो अपने बच्चे को सज़ा देने के लिए उसका हाथ आग में झोंक दे? जब एक प्यार करनेवाला पिता ऐसा नहीं कर सकता तो सोचिए स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता जो हमसे बेहद प्यार करता है, इंसानों को नरक की आग में तड़पाने के खयाल से ही और भी कितनी ज़्यादा नफरत करता होगा!” (यिर्मयाह 7:31) जब हमारा कोई संगी विश्वासी निराश हो जाता है, तो उसे यहोवा के प्यार का यकीन दिलाने के लिए हम उससे कह सकते हैं: “अगर यहोवा एक छोटी-सी चिड़िया का मोल समझता है, तो ज़रा सोचिए धरती पर रहनेवाले अपने हर उपासक की, आपकी भी वह और भी बढ़कर परवाह क्यों न करेगा!” (मत्ती 10:29-31) इस तरह के तर्क से हम अपनी बात लोगों के दिल तक पहुँचा सकते हैं।
21 इस अध्याय में हमने यीशु के सिखाने के महज़ तीन तरीकों पर गौर किया। इसी से साफ हो जाता है कि जब पहरेदार यीशु को गिरफ्तार किए बिना लौट आए और कहा: “आज तक किसी भी इंसान ने इस तरह बात नहीं की” तो वे बात को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बोल रहे थे। अगले पाठ में हम यीशु के सिखाने के एक और तरीके पर चर्चा करेंगे, जिसके लिए वह सबसे ज़्यादा जाना जाता है। वह तरीका है मिसालों का इस्तेमाल।
a ये पहरेदार शायद महासभा के लिए काम करते थे और प्रधान याजकों के अधीन थे।
b इस पैराग्राफ में यीशु की कही आखिरी बात प्रेषितों 20:35 से ली गयी है जिसके बारे में सिर्फ प्रेषित पौलुस ने बताया। शायद यह बात उसने किसी से सुनी होगी (किसी चेले से जिसने यीशु को यह कहते सुना था, या पुनरुत्थान पाए यीशु से) या परमेश्वर ने उस पर यह बात ज़ाहिर की होगी।
c यहूदियों को हर साल दो द्राख्मा मंदिर के कर के रूप में देने पड़ते थे, जो लगभग दो दिन की मज़दूरी के बराबर थे। एक किताब कहती है: “कर में मिले पैसे से रोज़ाना चढ़ायी जानेवाली होमबलि और लोगों के नाम से चढ़ाए जानेवाले सभी बलिदानों का खर्चा उठाया जाता था।”
d इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।