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अध्याय 12

“वह बगैर मिसाल के उनसे बात नहीं करता था”

“वह बगैर मिसाल के उनसे बात नहीं करता था”

1-3. (क) यीशु के साथ रहनेवाले चेलों के पास क्या अनोखा सम्मान था? यीशु की बातें उसके सुननेवालों को याद रहें, इसके लिए उसने क्या किया? (ख) अच्छी मिसालों को याद रखना क्यों आसान होता है?

 यीशु के साथ रहनेवाले चेलों के पास बहुत-ही अनोखा सम्मान था। महान शिक्षक खुद उन्हें सिखाता था। वह उनकी आँखों के सामने परमेश्‍वर के वचन में लिखी बातों का मतलब समझाता और दिलचस्प सच्चाइयाँ सिखाता। फिलहाल चेलों को उसकी बातें अपने दिल में सँजोकर रखनी थी, क्योंकि अभी उन्हें लिखने का वक्‍त नहीं आया था। a हालाँकि उसकी बातें याद रखना चेलों के लिए मुश्‍किल था, लेकिन यीशु ने इसे आसान कर दिया। कैसे? अपने सिखाने के तरीके के ज़रिए, खास तौर से मिसालों का इस्तेमाल करने की अपनी कमाल की काबिलीयत के ज़रिए।

2 इसमें कोई शक नहीं कि अच्छी मिसालें भुलाए नहीं भूलतीं। एक लेखक ने कहा कि मिसालें “कानों को आँखों में बदल देती हैं” और इनसे “सुननेवाले अपने मन में तसवीर खींचने लगते हैं।” जब हम किसी बात की मन में तसवीर बना लेते हैं, तो उसे समझना आसान होता है। इसलिए मिसालों की मदद से विचारों को समझना मुश्‍किल नहीं होता। मिसालें शब्दों में जान फूँक देती हैं और हमें ऐसे सबक सिखा देती हैं जो हमारे दिलो-दिमाग पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

3 धरती पर ऐसा एक भी शिक्षक नहीं, जो मिसालों का कुशलता से इस्तेमाल करने में यीशु मसीह की बराबरी कर सके। आज भी उसकी मिसालें लोगों की ज़बान पर हैं। यीशु सिखाने का यह तरीका इतना ज़्यादा क्यों इस्तेमाल करता था? उसकी मिसालें क्यों इतनी दमदार थीं? हम कैसे सिखाने के इस तरीके का इस्तेमाल करना सीख सकते हैं?

यीशु ने सिखाते वक्‍त मिसालों का इस्तेमाल क्यों किया

4, 5. यीशु ने मिसालों का इस्तेमाल क्यों किया?

4 यीशु मिसालों का इस्तेमाल क्यों करता था, बाइबल इसकी दो अहम वजह बताती है। पहली, उसका ऐसा करने से एक भविष्यवाणी पूरी हुई। मत्ती 13:34, 35 में हम पढ़ते हैं: “यीशु ने भीड़ से ये सारी बातें मिसालों में कहीं। वाकई, वह बगैर मिसाल के उनसे बात नहीं करता था, ताकि यह बात पूरी हो जो भविष्यवक्‍ता से कहलवायी गयी थी: ‘मैं मिसालों के साथ अपना मुँह खोलूँगा।’” मत्ती ने जिस भविष्यवक्‍ता का ज़िक्र किया वह भजन 78:2 का लेखक था। भजनहार ने परमेश्‍वर की पवित्र शक्‍ति से प्रेरित होकर यीशु के जन्म से सदियों पहले यह बात लिखी थी। ज़रा इसके मतलब पर गौर कीजिए। सैकड़ों साल पहले यहोवा ने यह तय कर दिया था कि मसीहा मिसालों के ज़रिए सिखाएगा। इससे पता चलता है कि यहोवा सिखाने के इस तरीके की कितनी कदर करता है!

5 दूसरी वजह, यीशु ने बताया कि वह मिसालों का इस्तेमाल इसलिए करता है ताकि वह उन लोगों को अलग किया जा सके जिनका दिल “पत्थर हो चुका है।” (मत्ती 13:10-15; यशायाह 6:9, 10) उसकी मिसालों में ऐसी क्या बात थी जिससे लोगों के मंसूबे उजागर हुए? कभी-कभी वह चाहता था कि उसके सुननेवाले उसकी बात का मतलब पूछें, ताकि वे बात को पूरी तरह समझ सकें। नम्र लोग उससे पूछने के लिए तैयार रहते थे, लेकिन घमंडी लोग ऐसा नहीं करते थे। (मत्ती 13:36; मरकुस 4:34) इस तरह यीशु की मिसालों ने उन लोगों पर सच्चाई ज़ाहिर की जो इसके भूखे थे, मगर साथ-साथ उन लोगों से सच्चाई छिपायी जो घमंडी थे।

6. यीशु की मिसालों से क्या फायदे हुए?

6 यीशु ने जो मिसालें दीं उनसे और भी कई फायदे हुए। उनसे लोगों की दिलचस्पी जागती थी और वे सुनने के लिए मजबूर हो जाते थे। मिसालों को सुनकर लोगों के मन में उसकी तसवीर उभर आती थी, जिससे वे किसी बात को आसानी से समझ पाते थे। जैसा कि हमने शुरू में देखा, यीशु की मिसालें सुननेवालों को उसकी बातें याद रखने में मदद करती थीं। मत्ती 5:37:27 में दिया पहाड़ी उपदेश एक बेहतरीन उदाहरण है, जिसमें यीशु ने ढेर सारी जीती-जागती मिसालों का इस्तेमाल किया। एक जानकारी के मुताबिक इस उपदेश में यीशु ने 50 से भी ज़्यादा अलंकारों का इस्तेमाल किया। यीशु के इस उपदेश को करीब 20 मिनट में पढ़ा जा सकता है। इस हिसाब से, करीब हर 20 सेकंड में यीशु ने एक अलंकार का इस्तेमाल किया! वाकई, यीशु जानता था कि मिसालों की मदद से लोगों के मन में तसवीर खींचना कितना ज़रूरी है!

7. यीशु की तरह हमें भी क्यों मिसालों का इस्तेमाल करना चाहिए?

7 यीशु जिस तरह मिसालों के ज़रिए और दूसरे तरीकों से लोगों को सिखाता था, उसके चेले होने के नाते हमें भी उसी तरह सिखाना चाहिए। जिस तरह मसाला डालने से खाना ज़ायकेदार बनता है, उसी तरह सही मिसाल इस्तेमाल करने से हमारी बातें सुननेवालों को अच्छी लगेंगी। जब हम सोच-विचारकर ऐसी मिसालों का इस्तेमाल करेंगे जिससे लोगों के मन में एक तसवीर उभर आए, तो उन्हें अहम सच्चाइयाँ समझने में आसानी होगी। आइए हम ऐसी कुछ बातों पर गौर करें, जिनकी वजह से यीशु की मिसालें इतनी असरदार बनीं। तब हम यह जान पाएँगे कि सिखाने के इस अहम तरीके का हम कैसे अच्छी तरह इस्तेमाल कर सकते हैं।

आसान तुलनाओं का इस्तेमाल

यह बताने के लिए कि परमेश्‍वर हमारी ज़रूरतें पूरी करता है, यीशु ने किस तरह पंछियों और फूलों की मिसाल दी?

8, 9. यीशु ने कैसे आसानी से समझ में आनेवाली तुलनाओं का इस्तेमाल किया? उन तुलनाओं को किस बात ने इतना असरदार बनाया?

8 सिखाते वक्‍त यीशु अकसर दो चीज़ों के बीच तुलना करता था, जो समझने में आसान होती थीं और जिन्हें कुछ ही शब्दों में बताया जा सकता था। लेकिन ये थोड़े-से शब्द ही सुननेवाले के मन में तसवीर खींच देते थे और उसे परमेश्‍वर, उसके स्तरों और मकसद के बारे में सच्चाई साफ समझ में आ जाती थी। उदाहरण के लिए, जब वह अपने चेलों को सिखा रहा था कि उन्हें रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिए हद-से-ज़्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए तो उसने उनके हालात की तुलना “आकाश में उड़नेवाले पंछियों” और “मैदान में उगनेवाले सोसन के फूलों” से की। पंछी न तो बोते और काटते हैं, न ही सोसन के फूल कातते और बुनते हैं, फिर भी परमेश्‍वर उनका खयाल रखता है। इस मिसाल के पीछे छिपे मुद्दे को समझना आसान है। वह यह कि परमेश्‍वर जब पंछियों और फूलों का खयाल रखता है, तो वह उन इंसानों की ज़रूरतें भी पूरी करेगा, जो “पहले उसके राज और उसके स्तरों के मुताबिक जो सही है उसकी खोज में लगे” रहते हैं।—मत्ती 6:26, 28-33.

9 यीशु ने रूपक अलंकार का भी खूब इस्तेमाल किया। इस तरह की तुलना और भी ज़बरदस्त होती है। इसमें एक वस्तु को ऐसे बताया जाता है मानो वह दूसरी वस्तु हो। रूपक अलंकार का इस्तेमाल करते वक्‍त भी यीशु ने आसान तुलनाएँ कीं। एक मौके पर उसने अपने चेलों से कहा: “तुम दुनिया की रौशनी हो।” शायद ही कोई ऐसा चेला हो जो इस तुलना का मतलब न समझ पाया हो। वे समझ गए कि वे अपनी बातों और कामों से आध्यात्मिक सच्चाई की रौशनी चमका सकते हैं और दूसरों को भी परमेश्‍वर की महिमा करने में मदद दे सकते हैं। (मत्ती 5:14-16) यीशु ने जिन दूसरी मिसालों में रूपक अलंकार का इस्तेमाल किया, उनमें से कुछ हैं: “तुम पृथ्वी के नमक हो” और “मैं अंगूर की बेल हूँ और तुम डालियाँ हो।” (मत्ती 5:13; यूहन्‍ना 15:5) इस तरह के अलंकार समझने में आसान होते हैं, इसलिए उनका असर बड़ा ज़बरदस्त होता है।

10. ऐसे कुछ उदाहरण दीजिए जिनमें आप सिखाते वक्‍त मिसालों का इस्तेमाल कर सकते हैं।

10 लोगों को सिखाते वक्‍त आप मिसालों का इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं? आपको लंबी-चौड़ी कहानियाँ गढ़ने की ज़रूरत नहीं है। बस छोटी-छोटी तुलनाओं के बारे में सोचने की कोशिश कीजिए। कल्पना कीजिए कि आप मरे हुओं को दोबारा ज़िंदा किए जाने के विषय पर बात कर रहे हैं और आप बताना चाहते हैं कि यहोवा के लिए ऐसा करना कोई मुश्‍किल काम नहीं है। इसके लिए आप कौन-सी तुलना दे सकते हैं? बाइबल मौत की तुलना नींद से करती है। आप कह सकते हैं, “परमेश्‍वर मरे हुओं को उतनी ही आसानी से ज़िंदा कर सकता है जितनी आसानी से हम किसी को नींद से जगा सकते हैं।” (यूहन्‍ना 11:11-14) मान लीजिए, आप किसी को बताना चाहते हैं कि बच्चों की अच्छी परवरिश के लिए उन्हें प्यार और अपनापन देना ज़रूरी है, तो आप कौन-सा उदाहरण देंगे? बाइबल में यह तुलना दी गयी है: बच्चे “जलपाई के पौधे” के जैसे होते हैं। (भजन 128:3) आप कह सकते हैं, “एक बच्चे के लिए प्यार और अपनापन उतना ही ज़रूरी हैं जितना एक पौधे के लिए सूरज की रौशनी और पानी।” तुलना जितनी आसान होगी, सुननेवालों को उतनी जल्दी समझ में आएगी।

रोज़मर्रा की ज़िंदगी से मिसालें देना

11. ऐसी कुछ मिसालों के बारे में बताइए जिनमें यीशु ने उन कामों का ज़िक्र किया जो उसने गलील में बड़े होते वक्‍त देखे थे।

11 यीशु लोगों की ज़िंदगी से जुड़ी मिसालें देने में माहिर था। उसकी कई मिसालें लोगों के रोज़मर्रा के कामों से जुड़ी थीं, जिन्हें शायद उसने गलील में बड़े होते वक्‍त देखा था। कुछ देर के लिए उसके बचपन के बारे में सोचिए। उसने कितनी ही बार अपनी माँ को अनाज पीसते, आटे में खमीर मिलाते, दीया जलाते या घर में झाड़ू लगाते देखा होगा। (मत्ती 13:33; 24:41; लूका 15:8) उसने कई बार गलील की झील में मछुवारों को जाल डालते देखा होगा। (मत्ती 13:47) कितनी ही बार उसने बाज़ार में बच्चों को खेलते देखा होगा। (मत्ती 11:16) इसके अलावा उसने अपनी मिसालों में और भी कई आम बातों का ज़िक्र किया, जैसे बीज बोना, शादी की दावतें, खेतों में खड़ी फसल का धूप में पकना।—मत्ती 13:3-8; 25:1-12; मरकुस 4:26-29.

12, 13. यह क्यों गौर करनेवाली बात है कि पड़ोसी सामरी की मिसाल देते वक्‍त यीशु ने ‘यरूशलेम से यरीहो’ जानेवाले रास्ते का ज़िक्र किया?

12 यीशु अपनी मिसालों में ऐसी जानकारी देता था जिसके बारे में उसके सुननेवाले अच्छी तरह जानते थे। उदाहरण के लिए, पड़ोसी सामरी की मिसाल देते हुए उसने कहा: “एक आदमी यरूशलेम से नीचे उतरकर यरीहो जा रहा था और लुटेरों ने उसे घेर लिया। उन्होंने उसके कपड़े तक उतरवा लिए और उसका सब कुछ छीनकर . . . अधमरा छोड़कर वहाँ से चले गए।” (लूका 10:30) गौर कीजिए कि यीशु ने अपनी बात बताने के लिए ‘यरूशलेम से यरीहो’ जानेवाले रास्ते का ज़िक्र किया। जब वह यह मिसाल दे रहा था उस वक्‍त वह यहूदिया में था जो यरूशलेम से ज़्यादा दूर नहीं है। इसलिए इसमें कोई शक नहीं कि उसके सुननेवाले उस रास्ते के बारे में जानते थे। वह रास्ता बहुत खतरनाक था, खास तौर पर तब जब कोई अकेला सफर कर रहा हो। वह रास्ता बड़ा घुमावदार और सुनसान था। उसमें ऐसी कई जगहें थीं जहाँ डाकू घात लगाकर बैठ सकते थे।

13 ‘यरूशलेम से यरीहो’ जानेवाले रास्ते के बारे में यीशु ने कुछ और जानी-पहचानी बातें बतायीं। यीशु ने कहा कि उस रास्ते से पहले एक याजक फिर एक लेवी गुज़रा, लेकिन दोनों में से एक भी उस ज़ख्मी आदमी की मदद के लिए नहीं रुका। (लूका 10:31, 32) याजक यरूशलेम के मंदिर में सेवा करते थे और लेवी उनकी मदद करते थे। जब मंदिर में उनका काम खत्म हो जाता था, तो कई याजक और लेवी यरीहो में रहते थे जो यरूशलेम से सिर्फ 23 किलोमीटर की दूरी पर था। इसलिए उनका उस रास्ते से आना-जाना होता था। यह भी ध्यान दीजिए कि यीशु ने कहा कि वह मुसाफिर “यरूशलेम से नीचे उतरकर” जा रहा था न कि ऊपर की तरफ। सुननेवाले यह बात अच्छी तरह समझ सकते थे, क्योंकि यरूशलेम यरीहो से ऊँचाई पर बसा था। इसलिए जब यीशु ने कहा कि मुसाफिर “यरूशलेम से” जा रहा था, तो लाज़िमी है कि वह “नीचे उतरकर” जा रहा होगा। b यीशु ने वाकई अपने सुननेवालों को ध्यान में रखा।

14. मिसालों का इस्तेमाल करते वक्‍त हम कैसे अपने सुननेवालों को ध्यान में रख सकते हैं?

14 हम भी जब मिसालों का इस्तेमाल करते हैं तो हमें अपने सुननेवालों को ध्यान में रखना चाहिए। हमारे सुननेवालों से ताल्लुक रखनेवाली ऐसी कौन-सी कुछ बातें हैं जिन्हें ध्यान में रखकर हम मिसालों का चुनाव कर सकते हैं? हम उनकी उम्र, संस्कृति, परिवार का माहौल और उनके काम-काज को ध्यान में रख सकते हैं। उदाहरण के लिए, कोई ऐसी मिसाल जिसमें खेती-बाड़ी के बारे में जानकारी दी गयी हो वह उन लोगों को आसानी से समझ में आ जाएगी जो गाँव-देहात में रहते हैं। लेकिन उन लोगों की समझ से बाहर होगी जो बड़े-बड़े शहरों में रहते हैं। हम अपने सुननेवालों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी और काम-काज, जैसे उनके बच्चे, घर, उनके शौक, खान-पान के बारे में भी मिसालें दे सकते हैं।

सृष्टि से मिसालें देना

15. इसमें क्यों ताज्जुब नहीं कि यीशु सृष्टि से अच्छी तरह वाकिफ था?

15 यीशु की दी कई मिसालों से पता चलता है कि उसे प्रकृति का, जैसे पेड़-पौधों, जानवरों और मौसम का अच्छा ज्ञान था। (मत्ती 16:2, 3; लूका 12:24, 27) उसे इतना ज्ञान कहाँ से मिला? बचपन में जब वह गलील में था, तो बेशक उसके पास सृष्टि को निहारने के कई मौके थे। इससे भी बढ़कर यीशु “सारी सृष्टि में पहलौठा है” और यहोवा ने सृष्टि करने में उसे “कुशल कारीगर” (NHT) की तरह इस्तेमाल किया था। (कुलुस्सियों 1:15, 16; नीतिवचन 8:30, 31) इसलिए इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि यीशु सृष्टि से अच्छी तरह वाकिफ था। आइए देखें कि उसने अपने इस ज्ञान का कैसे कुशलता से इस्तेमाल किया।

16, 17. (क) किस बात से पता चलता है कि यीशु भेड़ों के स्वभाव से अच्छी तरह वाकिफ था? (ख) कौन-सा उदाहरण दिखाता है कि भेड़ें सचमुच अपने चरवाहे की आवाज़ सुनती हैं?

16 याद कीजिए कि यीशु ने खुद को “बेहतरीन चरवाहा” और अपने चेलों को ‘भेड़’ कहा। यीशु के शब्दों से पता चलता है कि वह भेड़ों के स्वभाव से अच्छी तरह वाकिफ था। वह जानता था कि चरवाहा और उसकी भेड़ों के बीच एक अनोखा बंधन होता है। उसने गौर किया कि भेड़ें अपने चरवाहे पर पूरा भरोसा रखती हैं और वह उन्हें जहाँ ले जाना चाहता है, उसके पीछे-पीछे चल देती हैं। भेड़ें क्यों अपने चरवाहे के पीछे-पीछे चल देती हैं? यीशु ने कहा, “क्योंकि वे उसकी आवाज़ पहचानती हैं।” (यूहन्‍ना 10:2-4, 11) क्या भेड़ें वाकई अपने चरवाहे की आवाज़ पहचानती हैं?

17 जॉर्ज ए. स्मिथ ने अपनी किताब पवित्र देश का प्राचीन भूगोल (अँग्रेज़ी) में आँखों-देखी एक घटना के बारे में लिखा: “हम कभी-कभी दोपहर के वक्‍त यहूदिया के किसी कुएँ के पास आराम करते थे। वहाँ तीन-चार चरवाहे अपनी भेड़ों के झुंड को पानी पिलाने लाते थे। सारे झुंड एक-दूसरे से मिल जाते थे और उन्हें देखकर हम सोच में पड़ जाते थे कि चरवाहे अपने-अपने झुंड की भेड़ों को अलग कैसे करेंगे। लेकिन जब भेड़ों का पानी पीना और कूदना-फाँदना खत्म हो जाता, तो चरवाहे एक-एक करके घाटी की अलग-अलग दिशाओं में जाते और हरेक अपने अनोखे तरीके से आवाज़ देता। तब भीड़ में से हर झुंड की भेड़ें निकलकर अपने-अपने चरवाहे के पास चली जाती थीं और सारे झुंड उसी तरतीब से लौट जाते जैसे वे पानी पीने आए थे।” यीशु ने अपनी बात समझाने के लिए क्या ही उम्दा मिसाल दी! वह सिखाना चाहता था कि अगर हम उसकी शिक्षाओं को जानें, उनको मानें और उसकी दिखायी राह पर चलें, तो “बेहतरीन चरवाहा” प्यार से हमारी देखभाल करेगा।

18. यहोवा की रचनाओं के बारे में जानकारी हम कहाँ पा सकते हैं?

18 हम कैसे सृष्टि की कुछ मिसालों का इस्तेमाल करना सीख सकते हैं? हम जानवरों के अनोखे स्वभाव पर आसान, मगर असरदार तुलना कर सकते हैं। यहोवा की रचनाओं के बारे में जानकारी हमें कहाँ से मिल सकती है? बाइबल में कई तरह के जानवरों के बारे में ढेर सारी जानकारी दी गयी है और कभी-कभी जानवरों के स्वभाव को मिसालों के रूप में इस्तेमाल किया गया है। बाइबल पहाड़ी मृग या चीते की तरह तेज़, साँप की तरह सतर्क और कबूतर की तरह सीधा होने के बारे में बताती है। c (1 इतिहास 12:8; हबक्कूक 1:8; मत्ती 10:16) इसके अलावा प्रहरीदुर्ग, सजग होइए! और यहोवा के साक्षियों द्वारा प्रकाशित दूसरे साहित्य से भी हमें अहम जानकारी मिलती है। इनमें यहोवा की रचनाओं से ली गयी सरल तुलनाओं का इस्तेमाल किया गया है। इनसे आप काफी कुछ सीख सकते हैं।

जाने-पहचाने उदाहरणों से मिसालें देना

19, 20. (क) एक झूठे विश्‍वास को गलत ठहराने के लिए यीशु ने कौन-सी हाल की घटना का इस्तेमाल किया? (ख) सिखाते वक्‍त हम कैसे असल ज़िंदगी के उदाहरणों और अनुभवों का इस्तेमाल कर सकते हैं?

19 असल ज़िंदगी के उदाहरणों से भी असरदार मिसालें ली जा सकती हैं। एक बार यीशु ने हाल की एक घटना का इस्तेमाल करके इस झूठे विश्‍वास को गलत साबित किया कि मुसीबत उन्हीं लोगों पर आती है जो बुरे काम करते हैं। उसने कहा: “[क्या] वे अठारह लोग, जिन पर सिलोम का बुर्ज गिरा था और जो दबकर मर गए थे, यरूशलेम में रहनेवाले दूसरे सभी लोगों से बढ़कर पापी साबित हुए थे?” (लूका 13:4) वाकई, वे 18 लोग इसलिए नहीं मरे क्योंकि उन्होंने कोई पाप किया था जिसकी सज़ा उन्हें परमेश्‍वर दे रहा था। उनकी मौत तो “समय और संयोग” की वजह से हुई थी। (सभोपदेशक 9:11) इस तरह यीशु ने उस घटना का ज़िक्र किया जिसे उसके सुननेवाले अच्छी तरह जानते थे और उसके आधार पर एक झूठी शिक्षा को गलत ठहराया।

20 सिखाते वक्‍त हम कैसे असल ज़िंदगी के उदाहरणों और अनुभवों का इस्तेमाल कर सकते हैं? मान लीजिए, आप इस विषय पर बात कर रहे हैं कि यीशु ने अपनी मौजूदगी के बारे में जो भविष्यवाणी की थी वह पूरी हो रही है। (मत्ती 24:3-14) आप युद्ध, अकाल या भूकंप के बारे में हाल की खबरों का ज़िक्र कर सकते हैं और बता सकते हैं कि यीशु की दी निशानी के ये खास पहलू आज पूरे हो रहे हैं। या कल्पना कीजिए कि आप एक अनुभव के ज़रिए यह बताना चाहते हैं कि नयी शख्सियत को पहनने के लिए हमें कौन-से बदलाव करने होंगे। (इफिसियों 4:20-24) इस तरह का अनुभव आपको कहाँ मिल सकता है? आप अपने संगी विश्‍वासियों के या यहोवा के साक्षियों के साहित्य में छपे किसी अनुभव का इस्तेमाल कर सकते हैं।

21. परमेश्‍वर के वचन का अच्छा शिक्षक बनने से क्या आशीषें मिलती हैं?

21 यीशु वाकई सबसे अच्छा शिक्षक था! हमने इस भाग में देखा कि ‘सिखाना और राज की खुशखबरी का प्रचार करना’ उसकी ज़िंदगी का सबसे अहम काम था। (मत्ती 4:23) यह हमारी ज़िंदगी का भी सबसे अहम काम है। एक अच्छा शिक्षक बनने से कई आशीषें मिलती हैं। जब हम दूसरों को सिखाते हैं तो असल में हम उन्हें दे रहे होते हैं और इस तरह देने से खुशी मिलती है। (प्रेषितों 20:35) यह खुशी इस बात से मिलती है कि हम दूसरों को ऐसा कुछ दे रहे होते हैं जो सच्चा है और जिससे हमेशा के फायदे होते हैं। जी हाँ, हम उन्हें यहोवा के बारे में सच्चाई सिखा रहे होते हैं। साथ ही, हमें यह जानकर संतोष मिलता है कि हम इस धरती के सबसे महान शिक्षक यीशु के उदाहरण पर चल रहे हैं।

a मत्ती की खुशखबरी की किताब यीशु की मौत के करीब आठ साल बाद लिखी गयी। यह शायद वह पहली किताब है, जिसमें परमेश्‍वर की प्रेरणा से यीशु के जीवन का ब्यौरा लिखा गया।

b यीशु ने यह भी कहा कि याजक और लेवी “यरूशलेम से” यानी मंदिर से आ रहे थे। इसलिए दोनों में से कोई भी यह बहाना नहीं कर सकता था कि उन्होंने उस आदमी की इसलिए मदद नहीं की क्योंकि कहीं अगर वह मरा होता और वे उसे छू लेते तो वे अशुद्ध हो जाते और कुछ समय के लिए मंदिर में सेवा नहीं कर पाते।—लैव्यव्यवस्था 21:1; गिनती 19:16.

c बाइबल जानवरों के स्वभाव का किस तरह लाक्षणिक रूप से इस्तेमाल करती है, इस बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए इंसाइट ऑन द स्क्रिप्चर्स्‌, भाग 1 पेज 268, 270-1 देखिए। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।