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अश्‍शूर से मत डर

अश्‍शूर से मत डर

बारहवाँ अध्याय

अश्‍शूर से मत डर

यशायाह 10:5-34

1, 2. (क) इंसान की नज़र से देखें तो, अश्‍शूरियों को प्रचार करने के काम से योना का जी चुराना वाजिब क्यों था? (ख) नीनवे के लोगों ने योना का संदेश सुनने के बाद क्या किया?

सामान्य युग पूर्व नौवीं सदी के बीच अमित्तै के पुत्र, इब्रानी भविष्यवक्‍ता योना ने अश्‍शूरी साम्राज्य की राजधानी, नीनवे जाने का जोखिम उठाया। वह बहुत ही ज़रूरी और गंभीर संदेश सुनाने वहाँ गया था। यहोवा ने उससे कहा था: “उठकर उस बड़े नगर नीनवे को जा, और उसके विरुद्ध प्रचार कर; क्योंकि उसकी बुराई मेरी दृष्टि में बढ़ गई है।”—योना 1:2,3.

2 जब उसे पहली बार यह काम सौंपा गया तो योना, नीनवे जाने के बजाय बिलकुल उल्टी दिशा में तर्शीश की तरफ निकल भागा था। अगर इंसान की नज़र से देखा जाए तो योना का इस काम से जी चुराना वाजिब था। अश्‍शूरी बहुत ही बेरहम थे। गौर कीजिए कि अश्‍शूर का एक राजा अपने दुश्‍मनों का क्या हश्र करता था: “मैंने उनके अफसरों के हाथ-पैर कटवा डाले . . . बहुत-से बंधुओं को मैंने आग में ज़िंदा जला दिया और बहुतों को मैंने गुलाम बना लिया। कुछ बंधुओं के मैंने हाथ और उँगलियाँ कटवा डालीं और कुछ और की नाक कटवा डाली।” लेकिन जब आखिरकार योना ने नीनवे जाकर लोगों को यहोवा का संदेश सुनाया तो उन्होंने अपने पापों से पश्‍चाताप किया और इसी पश्‍चाताप की वजह से यहोवा ने उस वक्‍त नगर का नाश नहीं किया।—योना 3:3-10; मत्ती 12:41.

यहोवा “लठ” उठाता है

3. यहोवा के भविष्यवक्‍ताओं द्वारा दी जा रही चेतावनियाँ सुनने पर इस्राएल के लोगों और नीनवे के लोगों ने जो किया उसमें क्या फर्क था?

3 योना ने इस्राएलियों को भी प्रचार किया था, मगर क्या उन्होंने नीनवे के लोगों की तरह पश्‍चाताप दिखाया? (2 राजा 14:25) बिलकुल नहीं। उन्होंने सच्ची उपासना से मुँह फेर लिया। वे तो यहाँ तक गिर गए कि वे ‘आकाश के सारे गणों को दण्डवत्‌ करने, और बाल की उपासना’ करने लगे। बस इतना ही नहीं, उन्होंने “अपने बेटे-बेटियों को आग में होम करके चढ़ाया; और भावी कहनेवालों से पूछने, और टोना करने लगे; और जो यहोवा की दृष्टि में बुरा था जिस से वह क्रोधित भी होता है, उसके करने को अपनी इच्छा से बिक गए।” (2 राजा 17:16,17) जब यहोवा इस्राएलियों को चेतावनी देने के लिए अपने भविष्यवक्‍ताओं को उनके पास भेजता है, तब वे नीनवे के लोगों की तरह पश्‍चाताप नहीं करते। इसलिए अब यहोवा उनसे कड़ाई से पेश आने का फैसला करता है।

4, 5. (क) यहोवा कैसे “अश्‍शूर” को एक “लठ” की तरह इस्तेमाल करता है? (ख) सामरिया का नाश कब हुआ?

4 योना के नीनवे जाने के बाद थोड़े समय तक, अश्‍शूर के खूँखार रवैए में कुछ कमी ज़रूर आती है। * मगर सा.यु.पू. आठवीं सदी की शुरूआत में अश्‍शूर फिर से एक ज़बरदस्त फौजी ताकत बनकर उभरता है और यहोवा उसे बहुत ही हैरतअंगेज़ ढंग से इस्तेमाल करता है। यशायाह भविष्यवक्‍ता उत्तर के इस्राएल राज्य को यहोवा की तरफ से यह चेतावनी देता है: [“अहा, अश्‍शूर,” NW] जो मेरे क्रोध का लठ और मेरे हाथ में का सोंटा है! वह मेरा क्रोध है। मैं उसको एक भक्‍तिहीन जाति के विरुद्ध भेजूंगा, और जिन लोगों पर मेरा रोष भड़का है उनके विरुद्ध उसको आज्ञा दूंगा कि छीन छान करे और लूट ले, और उनको सड़कों की कीच के समान लताड़े।”—यशायाह 10:5,6.

5 इस्राएली कितने गिर चुके हैं! उन्हें सज़ा देने के लिए परमेश्‍वर को एक विधर्मी जाति, “अश्‍शूर” को एक “लठ” की तरह इस्तेमाल करना पड़ता है। सा.यु.पू. 742 में अश्‍शूर के राजा, शल्मनेसेर V ने धर्मत्यागी इस्राएल जाति की राजधानी सामरिया को घेर लिया। सामरिया नगर 300 फुट ऊँची पहाड़ी पर बसा हुआ है, इसी वजह से करीब तीन साल तक सामरिया दुश्‍मन के हमले को नाकाम करता रहा। मगर इंसान का कोई भी पैंतरा परमेश्‍वर के मकसद को रोक नहीं सकता। सा.यु.पू. 740 में, सामरिया का नाश हो गया और अश्‍शूर ने उसे अपने पैरों तले रौंद दिया।—2 राजा 18:10.

6. यहोवा ने अश्‍शूर के लिए जो चाहा था, उससे वह कैसे आगे जाना चाहता है?

6 यहोवा ने अपने लोगों को सबक सिखाने के लिए अश्‍शूर को इस्तेमाल किया था, मगर अश्‍शूरियों को इस बात का एहसास नहीं था और उन्होंने यहोवा की कदर नहीं की। इसलिए यहोवा आगे कहता है: “परन्तु [अश्‍शूर] की ऐसी मनसा न होगी, न उसके मन में ऐसा विचार है; क्योंकि उसके मन में यही है कि मैं बहुत सी जातियों का नाश और अन्त कर डालूं।” (यशायाह 10:7) यहोवा अश्‍शूर को अपने हाथों में एक औज़ार की तरह इस्तेमाल करना चाहता है। मगर अश्‍शूर ने तो कुछ और ही करने की ठान रखी है। उसका मन उसे और भी बड़े-बड़े काम करने के लिए उकसाता है, दरअसल वह तो पूरी दुनिया पर फतह पाना चाहता है!

7. (क) “क्या मेरे सब हाकिम राजा के तुल्य नहीं?” इन शब्दों का मतलब समझाइए। (ख) आज जो लोग यहोवा को छोड़ देते हैं, उन्हें किस बात पर ध्यान देना चाहिए?

7 अश्‍शूर ने ऐसे बहुत-से गैर-इस्राएली नगरों पर कब्ज़ा कर लिया है जिन पर राजा राज करते थे। अब वे राजा अपनी गद्दी खो चुके हैं और उन्हें अश्‍शूर के अधीन हाकिम बनकर उसे कर देना है, इसलिए अश्‍शूर गर्व से कह सकता है: “क्या मेरे सब हाकिम राजा के तुल्य नहीं?” (यशायाह 10:8) हारी हुई जातियों के बड़े-बड़े नगरों के झूठे देवी-देवता अपने सेवकों को विनाश से नहीं बचा सके। इसी तरह सामरिया के निवासी जिन देवताओं को पूजते हैं, जैसे कि बाल, मोलेक और सोने के बछड़े, वे भी उस नगर को नहीं बचा पाएँगे। और वे यह उम्मीद भी हरगिज़ नहीं कर सकते कि यहोवा उनकी मदद के लिए कुछ करेगा क्योंकि उन्होंने यहोवा को छोड़ दिया है। आज जो लोग यहोवा को छोड़ देते हैं, वे सामरिया के अंजाम पर ध्यान देकर सबक सीखें! अश्‍शूर का सामरिया और दूसरे नगरों पर अपनी जीत की शेखी मारना लाज़मी है: “क्या कलनो कर्कमीश के समान नहीं है? क्या हमात अर्पद के और शोमरोन [“सामरिया,” NW] दमिश्‍क के समान नहीं?” (यशायाह 10:9) ये सारे नगर अश्‍शूर के लिए एक जैसे ही हैं, मानो सारे उसके लिए लूट का माल हों।

8, 9. अश्‍शूर का यरूशलेम पर नज़र डालना, अपनी हद से बाहर जाना क्यों है?

8 मगर, अश्‍शूर अपनी कामयाबी के गुरूर में कुछ हद-से-ज़्यादा ही डींगें मारता है। वह कहता है: “जिस प्रकार मेरा हाथ मूरतों से भरे हुए उन राज्यों पर पहुंचा जिनकी मूरतें यरूशलेम और शोमरोन की मूरतों से बढ़कर थीं, और जिस प्रकार मैं ने शोमरोन और उसकी मूरतों से किया, क्या उसी प्रकार मैं यरूशलेम से और उसकी मूरतों से भी न करूं?” (यशायाह 10:10,11) अश्‍शूर ने अब तक जिन राज्यों को हराया है, उनमें यरूशलेम या सामरिया से भी कहीं ज़्यादा मूरतें थीं। इसलिए वह सोचता है, ‘मैंने सामरिया का जो हाल किया वैसा ही यरूशलेम का हाल करने से मुझे कौन रोक सकता है?’

9 इतनी बड़ी शेखी! मगर यहोवा उसे यरूशलेम जीतने नहीं देगा। यह सच है कि यहूदा देश ऐसा नहीं था जिसने यहोवा की सच्ची उपासना करने का बेदाग रिकॉर्ड कायम किया हो। (2 राजा 16:7-9; 2 इतिहास 28:24) यहोवा ने यह चेतावनी भी दी थी कि विश्‍वासघात की वजह से, अश्‍शूर के हमले के दौरान यहूदा को बहुत भारी मुसीबतें झेलनी पड़ेंगी। मगर यरूशलेम बच जाएगा। (यशायाह 1:7,8) क्योंकि जब अश्‍शूर, यहूदा पर चढ़ाई करता है उस वक्‍त यरूशलेम में राजा हिजकिय्याह का राज है। हिजकिय्याह अपने पिता आहाज की तरह नहीं है। और, अपने राज के पहले महीने में ही हिजकिय्याह ने यहोवा के मंदिर के द्वार खुलवाए और सच्ची उपासना की फिर से शुरूआत की!—2 इतिहास 29:3-5.

10. यहोवा, अश्‍शूर के बारे में क्या वादा करता है?

10 इसलिए जब अश्‍शूर यरूशलेम पर हमला करने के मंसूबे बाँधता है तो यहोवा को यह पसंद नहीं आता। यहोवा वादा करता है कि उस गुस्ताख विश्‍वशक्‍ति से वह जल्द ही लेखा लेगा: “जब प्रभु सिय्योन पर्वत पर और यरूशलेम में अपना सब काम कर चुकेगा, तब मैं अश्‍शूर के राजा के गर्व की बातों का, और उसकी घमण्ड भरी आंखों का पलटा दूंगा।”—यशायाह 10:12.

यहूदा और यरूशलेम की ओर!

11. अश्‍शूर ऐसा क्यों सोचता है कि यरूशलेम पर चुटकी बजाते ही कब्ज़ा किया जा सकता है?

11 सामान्य युग पूर्व 740 में उत्तर के इस्राएल राज्य के गिरने के आठ साल बाद, अश्‍शूर का एक नया राजा, सन्हेरीब यरूशलेम पर चढ़ाई करने निकलता है। यशायाह एक कविता के शब्दों से बताता है कि घमंड में आकर सन्हेरीब ने क्या-क्या करने की ठानी है: “मैं ने देश देश के सिवानों को हटा दिया, और उनके रखे हुए धन को लूट लिया; मैं ने वीर की नाईं गद्दी पर विराजनेहारों को उतार दिया है। देश देश के लोगों की धनसम्पत्ति, चिड़ियों के घोंसलों की नाईं, मेरे हाथ आई है, और जैसे कोई छोड़े हुए अण्डों को बटोर ले वैसे ही मैं ने सारी पृथ्वी को बटोर लिया है; और कोई पंख फड़फड़ाने वा चोंच खोलने वा चीं चीं करनेवाला न था।” (यशायाह 10:13,14) सन्हेरीब सोचता है कि दूसरे नगर तो मेरे कब्ज़े में आ ही चुके हैं, सामरिया भी अब नहीं रहा, तो यरूशलेम मेरे सामने क्या चीज़ है! नगर के लोगों ने सामना करने की जुर्रत की भी तो ‘चीं चीं’ की धीमी आवाज़ से ज़्यादा कुछ नहीं कर सकेंगे। उसने सोचा कि यरूशलेम पर चुटकी बजाते ही कब्ज़ा किया जा सकता है, उनकी धन-दौलत को ऐसे लूटा जा सकता है, जैसे कोई खुले छोड़े हुए घोंसले में से अंडे निकाल लेता है।

12. अश्‍शूर की डींगों को यहोवा किस नज़र से देखता है?

12 मगर, सन्हेरीब कुछ भूल रहा है। सामरिया को जो सज़ा मिली थी वह इसलिए थी कि वह सच्चा धर्म छोड़कर झूठी उपासना करने लगा था। मगर, जहाँ तक यरूशलेम की बात है तो राजा हिजकिय्याह के राज में यह एक बार फिर सच्ची उपासना का गढ़ बन गया है। जो कोई यरूशलेम पर हाथ डालने का इरादा करेगा उसे पहले यहोवा से निपटना पड़ेगा! रोष में आकर यशायाह पूछता है: “क्या कुल्हाड़ा उसके विरुद्ध जो उस से काटता हो डींग मारे, वा आरी उसके विरुद्ध जो उसे खींचता हो बड़ाई करे? क्या सोंटा अपने चलानेवाले को चलाए वा छड़ी उसे उठाए जो काठ नहीं है!” (यशायाह 10:15) अश्‍शूर साम्राज्य यहोवा के हाथ में बस एक औज़ार के समान है, जैसे कि कोई लकड़हारा कुल्हाड़ी, लकड़ी चीरनेवाला आरी या कोई चरवाहा एक छड़ी या लठ इस्तेमाल करता है। अब इस लठ की इतनी जुर्रत कि अपने इस्तेमाल करनेवाले के खिलाफ सिर उठाए!

13. बताइए कि भविष्यवाणी में बताए गए, (क) “हृष्टपुष्ट” जन; (ख) “झाड़ झंखार”; (ग) ‘उसके वन की शोभा’ कौन हैं और इनका क्या हुआ?

13 अश्‍शूर का क्या हाल होगा? “प्रभु अर्थात्‌ सेनाओं का [यहोवा] उस राजा के हृष्टपुष्ट योद्धाओं को दुबला कर देगा, और उसके ऐश्‍वर्य के नीचे आग की सी जलन होगी। इस्राएल की ज्योति तो आग ठहरेगी, और इस्राएल का पवित्र ज्वाला ठहरेगा; और वह उसके झाड़ झंखार को एक ही दिन में भस्म करेगा। और जैसे रोगी के क्षीण हो जाने पर उसकी दशा होती है वैसी ही वह उसके वन और फलदाई बारी की शोभा पूरी रीति से नाश करेगा। उस वन के वृक्ष इतने थोड़े रह जाएंगे कि लड़का भी उनको गिन कर लिख लेगा।” (यशायाह 10:16-19) जी हाँ, यहोवा उस अश्‍शूरी “लठ” को छील-छीलकर तिनके जैसा पतला कर देगा! अश्‍शूर की सेना के “हृष्टपुष्ट,” बलशाली सैनिक बीमार होकर ‘दुबले’ हो जाएँगे। वे पहले जैसे ताकतवर दिखाई नहीं देंगे! जैसे जंगली घास और झाड़-झंखाड़ आग से राख हो जाते हैं, उसी तरह अश्‍शूर के पैदल सैनिकों को इस्राएल की ज्योति, यहोवा परमेश्‍वर जलाकर राख कर देगा। ‘उसके वन की शोभा’ यानी उसके सेनापति नाश हो जाएँगे। जब यहोवा अश्‍शूर का हिसाब चुकता कर लेगा, तब इतने थोड़े सेनापति बचेंगे कि एक छोटा-सा लड़का भी उन्हें अपनी उँगलियों पर गिन सकेगा!यशायाह 10:33,34 भी देखिए।

14. बताइए कि सा.यु.पू. 732 में, अश्‍शूर यहूदा देश में चढ़ाई करता हुआ कहाँ तक आ पहुँचा था।

14 फिर भी, सा.यु.पू. 732 में यरूशलेम में रहनेवाले यहूदियों को इस बात पर विश्‍वास नहीं हो रहा है कि अश्‍शूर हार जाएगा। अश्‍शूर की विशाल सेना बढ़ती चली आ रही है और उसे कोई नहीं रोक पा रहा। उसने यहूदा के जिन नगरों पर जीत हासिल की है, ज़रा उनकी गिनती तो सुनिए: “वह अय्यात्‌ में आया है, और मिग्रोन में . . . मिकमाश में . . . गेबा में . . . रामा . . . शाऊल का गिबा . . . गल्लीम . . . लैशा . . . अनातोत . . . मदमेना . . . गेबीम . . . नोब।” (यशायाह 10:28-32क) * आखिरकार हमलावर फौजें लाकीश पहुँच जाती हैं, जो यरूशलेम से सिर्फ 50 किलोमीटर की दूरी पर है। अश्‍शूरियों की यह बड़ी फौज यरूशलेम के लिए बहुत बड़ा खतरा बन गयी है। ‘वह सिय्योन पहाड़ पर, और यरूशलेम की पहाड़ी पर हाथ उठाकर धमकाता है।’ (यशायाह 10:32ख) अब अश्‍शूरियों को कौन रोक सकता है?

15, 16. (क) राजा हिजकिय्याह को मज़बूत विश्‍वास की ज़रूरत क्यों है? (ख) हिजकिय्याह किस बुनियाद पर यह विश्‍वास कर सकता है कि यहोवा उसकी मदद के लिए ज़रूर आएगा?

15 यरूशलेम के अपने महल में राजा हिजकिय्याह घबरा जाता है। वह अपने वस्त्र फाड़कर टाट ओढ़ता है। (यशायाह 37:1) और यहूदा के बारे में यहोवा से पूछने के लिए, यशायाह भविष्यवक्‍ता के पास अपने दूत को भेजता है। जल्द ही, दूत यहोवा का यह जवाब लेकर लौटते हैं: “मत डर क्योंकि मैं . . . इस नगर की रक्षा करके उसे बचाऊंगा।” (यशायाह 37:6,35) मगर, अश्‍शूरी फौजें देखने में बहुत भयानक नज़र आ रही हैं और उन्हें रत्ती भर भी शक नहीं कि जीत उन्हीं की होगी।

16 राजा हिजकिय्याह को इस मुसीबत से सिर्फ एक ही चीज़ पार लगा सकती है और वह है यहोवा पर उसका विश्‍वास। विश्‍वास “अनदेखी वस्तुओं का प्रमाण है।” (इब्रानियों 11:1) विश्‍वास करनेवाला वह देख सकता है जो आँखें नहीं देख पातीं। मगर ऐसे विश्‍वास की बुनियाद ज्ञान पर बनी होती है। हिजकिय्याह को शायद याद है कि यहोवा ने पहले ही ये शब्द कहकर यरूशलेम के लोगों को यकीन दिलाया था: “हे सिय्योन में रहनेवाली मेरी प्रजा, अश्‍शूर से मत डर; . . . क्योंकि अब थोड़ी ही देर है कि मेरी जलन और क्रोध उनका सत्यानाश करके शान्त होगा। और सेनाओं का यहोवा उसके विरुद्ध कोड़ा उठाकर उसको ऐसा मारेगा जैसा उस ने ओरेब नाम चट्टान पर मिद्यानियों को मारा था; और जैसा उस ने मिस्रियों के विरुद्ध समुद्र पर लाठी बढ़ाई, वैसा ही उसकी ओर भी बढ़ाएगा।” (यशायाह 10:24-26) * जी हाँ, परमेश्‍वर के लोगों पर पहले भी ऐसी कई मुसीबतें आयी थीं। हिजकिय्याह के पुरखों को लाल सागर के पास ऐसा लगा था कि मिस्र की सेना उन्हें मसलकर रख देगी और वे बच नहीं पाएँगे। और सदियों पहले जब मिद्यानियों और अमालेकियों ने इस्राएल पर चढ़ाई कर दी थी तब, गिदोन के लिए यह चकरा देनेवाली मुसीबत थी। मगर, इन सारी मुश्‍किलों के बावजूद यहोवा ने उन दोनों मौकों पर अपने लोगों को छुटकारा दिलाया था।—निर्गमन 14:7-9,13,28; न्यायियों 6:33; 7:21,22.

17. अश्‍शूर का जूआ कैसे ‘तोड़ा’ जाता है, और क्यों?

17 क्या यहोवा फिर से वैसा ही करेगा जैसे इन पिछले मौकों पर किया था? बेशक। यहोवा वादा करता है: “उस समय ऐसा होगा कि उसका बोझ तेरे कंधे पर से और उसका जूआ तेरी गर्दन पर से उठा लिया जाएगा, और अभिषेक के कारण वह जूआ तोड़ डाला जाएगा।” (यशायाह 10:27) परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों की गर्दन और कंधों से अश्‍शूर का जूआ उठा लिया जाएगा। जी हाँ, यह जूआ “तोड़ डाला जाएगा” और वाकई यह तोड़ा भी गया! यहोवा के स्वर्गदूत ने एक ही रात में, अश्‍शूरियों के 1,85,000 सैनिकों को मार डाला। अश्‍शूरियों का खतरा टल जाता है और वे हमेशा-हमेशा के लिए यहूदा देश छोड़कर चले जाते हैं। (2 राजा 19:35,36) क्यों? “अभिषेक के कारण।” यह अभिषेक, एक राजा की हैसियत से हिजकिय्याह का अभिषेक हो सकता है क्योंकि वह दाऊद का वंशज है। इस तरह यहोवा ने अपना वादा पूरा किया: “मैं अपने निमित्त और अपने दास दाऊद के निमित्त इस नगर की रक्षा करके इसे बचाऊंगा।”—2 राजा 19:34.

18. (क) यशायाह की यह भविष्यवाणी क्या एक से ज़्यादा बार पूरी होनी है? समझाइए। (ख) आज कौन-सा संगठन, प्राचीन सामरिया जैसा है?

18 इस अध्याय में यशायाह की किताब के जिस भाग पर चर्चा की गयी है, उसमें बतायी गयी घटनाएँ आज से 2,700 साल से भी पहले यहूदा देश में घटी थीं। मगर इनका आज हमारे ज़माने से बहुत गहरा संबंध है। (रोमियों 15:4) तो क्या इसका मतलब यह है कि इस रोमांचक किस्से के खास किरदार, यानी सामरिया और यरूशलेम के लोग, साथ ही अश्‍शूरियों जैसे किरदार, आज हमारे ज़माने में भी मौजूद हैं? जी हाँ, बिलकुल मौजूद हैं। मूर्तिपूजक सामरिया की तरह, आज ईसाईजगत यहोवा की उपासना करने का दावा तो करता है, मगर उसका रोम-रोम धर्मत्याग और झूठी उपासना से ग्रस्त है। ईसाई शिक्षा के विकास पर एक निबंध (अँग्रेज़ी) में, रोमन कैथोलिक जॉन हेन्री कार्डिनल न्यूमन कबूल करते हैं कि ईसाईजगत सदियों से उपासना में जिन चीज़ों का इस्तेमाल करता आ रहा है जैसे सुगंधित धूप, मोमबत्तियाँ, पवित्र जल, पादरियों के चोगे और मूर्तियाँ “ये सारी चीज़ें उसने गैर-ईसाई और झूठे धर्मों से अपनायी हैं।” यहोवा जिस तरह सामरिया में होनेवाली मूर्तिपूजा को घृणित समझता था, उतनी ही घृणा वह ईसाईजगत में होनेवाले पाखण्ड से करता है।

19. ईसाईजगत को किस बात की चेतावनी दी जा चुकी है, और यह चेतावनी किसने दी है?

19 सालों से यहोवा के साक्षी ईसाईजगत को यह चेतावनी देते आ रहे हैं कि यहोवा उनकी उपासना से नफरत करता है। मिसाल के लिए, सन्‌ 1955 में सारी दुनिया में आम जनता के लिए एक भाषण दिया गया, जिसका शीर्षक था “‘जगत की ज्योति’ कौन है—ईसाईजगत या मसीहियत?” इस भाषण में साफ-साफ समझाया गया कि कैसे ईसाईजगत, सच्ची मसीही शिक्षाओं और कामों से भटककर दूर चला गया है। इसके बाद, इस ज़बरदस्त भाषण की कॉपियाँ बहुत-से देशों के पादरियों को भेजी गयीं। मगर कुल मिलाकर, ईसाईजगत ने इस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया है। उसने यहोवा के लिए इसके सिवाय और कोई रास्ता नहीं छोड़ा कि वह उसे अपने “लठ” से सज़ा दे।

20. (क) आज के ज़माने का अश्‍शूर कौन होगा, और उसे एक लठ की तरह कैसे इस्तेमाल किया जाएगा? (ख) ईसाईजगत को किस हद तक सज़ा दी जाएगी?

20 अब सवाल यह है कि विद्रोही ईसाईजगत को सज़ा देने के लिए यहोवा किसे इस्तेमाल करेगा? इसका जवाब हमें प्रकाशितवाक्य के 17वें अध्याय में मिलता है। वहाँ हमें एक वेश्‍या यानी ‘बड़े बाबुल’ के बारे में बताया गया है, जिसका मतलब है सारी दुनिया के झूठे धर्म जिनमें ईसाईजगत भी शामिल है। यह वेश्‍या एक किरमिजी रंग के जंगली पशु पर सवार है जिसके सात सिर और दस सींग हैं। (प्रकाशितवाक्य 17:3,5,7-12) यह जंगली पशु संयुक्‍त राष्ट्र संघ है। * ठीक जैसे प्राचीनकाल के अश्‍शूर ने सामरिया का विनाश कर दिया था, उसी तरह यह किरमिजी रंग का जंगली पशु ‘उस वेश्‍या से बैर रखेगा, और उसे लाचार और नङ्‌गी कर देगा; और उसका मांस खा जाएगा, और उसे आग में जला देगा।’ (प्रकाशितवाक्य 17:16) इस तरह आज के ज़माने का अश्‍शूर (संयुक्‍त राष्ट्र संघ से जुड़े देश) ईसाईजगत पर ज़बरदस्त प्रहार करेगा और हमेशा-हमेशा के लिए उसका नामो-निशान मिटा देगा।

21, 22. परमेश्‍वर के लोगों पर हमला करने के लिए जंगली पशु को कौन उकसाएगा?

21 जब बड़े बाबुल का नाश होगा तो क्या यहोवा के वफादार साक्षी भी उसके साथ मिट जाएँगे? जी नहीं। परमेश्‍वर उनसे नाराज़ नहीं है। शुद्ध उपासना हमेशा कायम रहेगी। मगर, जो जंगली पशु बड़े बाबुल का अंत करता है, वह यहोवा के लोगों को भी ललचायी नज़रों से देखता है। लेकिन ऐसा करके, यह पशु परमेश्‍वर की मनसा नहीं बल्कि किसी और की मनसा पूरी करता है। किसकी? शैतान यानी इब्‌लीस की।

22 यहोवा, शैतान की इस घमंड भरी साज़िश का पर्दाफाश करता है: “उस दिन तेरे [शैतान के] मन में ऐसी ऐसी बातें आएंगी कि तू एक बुरी युक्‍ति भी निकालेगा; और तू कहेगा कि मैं . . . उन लोगों के पास जाऊंगा जो चैन से निडर रहते हैं; जो सब के सब बिना [किसी मज़बूत] शहरपनाह . . . के बसे हुए हैं; ताकि छीनकर तू उन्हें लूटे।” (यहेजकेल 38:10-12) शैतान दिल में सोचेगा, ‘क्यों न मैं सब देशों को भड़काऊँ कि वे यहोवा के साक्षियों पर हमला कर दें? वे एकदम बेबस हैं, कोई उनकी हिफाज़त करनेवाला नहीं, ना ही कोई सरकार उनकी कोई बात मानती है। वे चूँ तक नहीं करने पाएँगे। इन्हें हटा देना इतना आसान है जितना कि एक खुले छोड़े घोंसले में से अंडे निकाल लेना!’

23. आज का अश्‍शूर ईसाईजगत के साथ जैसा करेगा, वैसा परमेश्‍वर के लोगों के साथ क्यों नहीं कर पाएगा?

23 लेकिन दुनिया के देशो, खबरदार! ध्यान रहे कि अगर तुम यहोवा के लोगों को छुओगे तो तुम्हें सबसे पहले खुद यहोवा परमेश्‍वर से निपटना पड़ेगा! यहोवा अपने लोगों से बेहद प्यार करता है और वह उनके लिए वैसे ही लड़ेगा जैसे वह हिजकिय्याह के दिनों में यरूशलेम के लिए लड़ा था। आज का अश्‍शूर जब यहोवा के सेवकों का नामो-निशान मिटाने की कोशिश कर रहा होगा तब वह दरअसल खुद यहोवा परमेश्‍वर और उसके मेम्ने, यीशु मसीह के खिलाफ लड़ रहा होगा। और यह एक ऐसी लड़ाई है जिसे अश्‍शूर कभी नहीं जीत सकेगा। बाइबल कहती है, “मेम्ना उन पर जय पाएगा; क्योंकि वह प्रभुओं का प्रभु, और राजाओं का राजा है।” (प्रकाशितवाक्य 17:14. मत्ती 25:40 से तुलना कीजिए।) प्राचीनकाल में जैसे अश्‍शूर के साथ हुआ था, वैसे ही किरमिजी रंग का यह जंगली पशु “विनाश में पड़ेगा।” इसके बाद किसी को भी उससे डरने की ज़रूरत नहीं होगी।—प्रकाशितवाक्य 17:11.

24. (क) आनेवाले कल का सामना कर पाने के लिए सच्चे मसीही क्या करने की ठानते हैं? (ख) किस तरह यशायाह आनेवाले कल की ओर देखता है? (पेज 155 पर बक्स देखिए।)

24 अगर सच्चे मसीही यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को मज़बूत बनाए रखें और उसकी इच्छा पूरी करना अपनी ज़िंदगी का पहला और सबसे खास मकसद बना लें, तो वे बिना किसी डर के आनेवाले कल का सामना कर सकेंगे। (मत्ती 6:33) तब उन्हें किसी भी किस्म की ‘हानि से डरने’ की ज़रूरत नहीं होगी। (भजन 23:4) अपने विश्‍वास की आँखों से वे यहोवा के बढ़े हुए ताकतवर हाथ को देख पाएँगे, जो उन्हें सज़ा देने के लिए नहीं बल्कि दुश्‍मनों से उनकी ढाल बनने के लिए उठेगा। और दिलासा दिलानेवाले ये शब्द उनके कानों में पड़ेंगे: “मत डर।”—यशायाह 10:24.

[फुटनोट]

^ पैरा. 14 समझने में आसानी के लिए, यशायाह 10:20-27 से पहले यशायाह 10:28-32 पर चर्चा की गयी है।

^ पैरा. 16 यशायाह 10:20-23 की चर्चा के लिए, पेज 155 पर “यशायाह आनेवाले कल की ओर देखता है” देखिए।

^ पैरा. 20 इस वेश्‍या और किरमिजी रंग के जंगली पशु की पहचान के बारे में और ज़्यादा जानकारी आपको, वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित रॆवलेशन—इट्‌स ग्रैंड क्लाइमैक्स एट हैंड! किताब के अध्याय 34 और 35 में मिलेगी।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 155, 156 पर बक्स/तसवीरें]

यशायाह आनेवाले कल की ओर देखता है

यशायाह 10:20-23

यशायाह का 10वाँ अध्याय खासकर इस बारे में बताता है कि कैसे इस्राएल को दंड देने के लिए यहोवा अश्‍शूरियों से हमला करवाएगा और यरूशलेम को बचाने का अपना वादा पूरा करेगा। जबकि आयत 20 से 23 इस भविष्यवाणी के बीच में दी गयी हैं, तो यह माना जा सकता है कि मोटे तौर पर इन आयतों की भी पूर्ति इसी दौरान होती है। (यशायाह 1:7-9 से तुलना कीजिए।) और इन आयतों के शब्द दिखाते हैं कि ये कुछ वक्‍त बाद यरूशलेम पर खास तरीके से पूरी होंगी, जब उसे भी अपने लोगों के पापों का लेखा देना पड़ेगा।

राजा आहाज ने अपनी सुरक्षा के लिए अश्‍शूर से मदद माँगी थी। मगर यशायाह ने भविष्यवाणी की कि भविष्य में, इस्राएल के घराने के बचे हुए लोग फिर कभी ऐसी मूर्खता नहीं करेंगे। यशायाह 10:20 कहता है कि “यहोवा जो इस्राएल का पवित्र है, उसी पर वे सच्चाई से भरोसा रखेंगे।” लेकिन, आयत 21 बताती है कि कुछ गिने-चुने लोग ही ऐसा करेंगे: सिर्फ “बचे हुए लोग . . . फिरेंगे।” यह हमें यशायाह के बेटे शार्याशूब की याद दिलाता है, जो इस्राएल के लिए एक चिन्ह था और जिसके नाम का मतलब है, “बचा हुआ भाग लौट आएगा।” (यशायाह 7:3) अध्याय 10 की आयत 22 में, आनेवाले “सत्यानाश” की चेतावनी दी गयी है जिसका फैसला यहोवा कर चुका है। यह सत्यानाश या विनाश न्यायपूर्ण होगा क्योंकि विद्रोही लोग इसी सज़ा के लायक हैं। इसलिए, घनी आबादीवाले देश में से, जिसके लोग “समुद्र की बालू के किनकों के समान” हैं, सिर्फ बचे हुए कुछ शेष जन ही लौटेंगे। आयत 23 हमें चेतावनी देती है कि इस सत्यानाश का असर सारे देश पर होगा। और इस बार यरूशलेम को भी नहीं बख्शा जाएगा।

ये आयतें उस घटना का एकदम सही बयान करती हैं जो सा.यु.पू. 607 में घटी थी और जब यहोवा ने बाबुल साम्राज्य को अपने “लठ” की तरह इस्तेमाल किया। सारा देश, यहाँ तक कि यरूशलेम भी इस हमलावर के आगे टिक न सका। यहूदियों को बंधुआ बनाकर बाबुल ले जाया गया जहाँ वे 70 साल तक गुलाम बनकर रहे। हालाँकि उसके बाद सिर्फ कुछ ही लोग, यानी “बचे हुए लोग” ही लौटे, फिर भी उन्होंने यरूशलेम लौटकर सच्ची उपासना की दोबारा शुरूआत की।

इसके अलावा, जैसा रोमियों 9:27,28 में दिखाया गया है, यशायाह 10:20-23 की भविष्यवाणी की पूर्ति पहली सदी में भी हुई थी। (यशायाह 1:9; रोमियों 9:29 से तुलना कीजिए।) पौलुस समझाता है कि आध्यात्मिक अर्थ में पहली सदी के यहूदियों में से “बचे हुए लोग” यहोवा की ओर ‘लौटे,’ क्योंकि विश्‍वास करनेवाले थोड़े-से यहूदी, यीशु मसीह के चेले बने और उन्होंने “आत्मा और सच्चाई से” यहोवा की उपासना करना शुरू किया। (यूहन्‍ना 4:24) बाद में, इनके साथ विश्‍वास करनेवाले अन्यजातियों के लोग भी आ मिले और ये सभी मिलकर एक आत्मिक जाति बने जिसे ‘परमेश्‍वर का इस्राएल’ कहा गया है। (गलतियों 6:16) इसी अवसर पर यशायाह 10:20 के ये शब्द पूरे हुए: “फिर कभी” यहोवा को समर्पित यह जाति उससे मुँह मोड़कर इंसानों पर भरोसा नहीं रखेगी।

[पेज 147 पर तसवीर]

सन्हेरीब ने सोचा कि सब देशों को कब्ज़े में ले लेना उतना ही आसान है जितना किसी घोंसले से अंडे निकाल लेना