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इस दुनिया से कोई मदद नहीं मिलनी

इस दुनिया से कोई मदद नहीं मिलनी

चौबीसवाँ अध्याय

इस दुनिया से कोई मदद नहीं मिलनी

यशायाह 31:1-9

1, 2. (क) यरूशलेम के निवासियों में आतंक क्यों छाया हुआ है? (ख) यरूशलेम की दुर्दशा को देखते हुए कौन-से सवाल पूछना वाजिब है?

यरूशलेम के निवासियों पर आतंक छाया हुआ है। क्यों न हो, आखिर दुनिया के सबसे ताकतवर साम्राज्य, अश्‍शूर ने “यहूदा के सब गढ़वाले नगरों पर चढ़ाई करके उनको ले लिया” है। अब अश्‍शूर की सेना, यहूदा की राजधानी, यरूशलेम पर खतरा बनकर मँडरा रही है। (2 राजा 18:13,17) ऐसे में राजा हिजकिय्याह और यरूशलेम के निवासी क्या करेंगे?

2 हिजकिय्याह जानता है कि जब उसके देश के दूसरे नगरों में से कोई भी अश्‍शूर की ताकतवर फौज के सामने नहीं टिक सका, तो यरूशलेम उसका सामना कैसे कर पाएगा। और फिर, अश्‍शूर की तरह क्रूर और खून बहानेवाला ज़ालिम और कोई नहीं है। उस देश की फौज को देखकर ही दुश्‍मनों के मन में ऐसा खौफ समा जाता है कि कभी-कभी तो वे उससे बिना लड़े ही भाग खड़े होते हैं! यरूशलेम के लोग ऐसे नाज़ुक हालात में मदद के लिए किसके पास जाएँगे? क्या अश्‍शूर की सेना से बचने का कोई उपाय है? आखिर, परमेश्‍वर के लोगों पर ऐसी मुसीबत क्यों टूट पड़ी? इन सवालों के जवाब के लिए, हमें उस दौर में जाना होगा जब यहोवा ने अपने लिए एक जाति को चुना था और यह देखना होगा कि पहले उसने उनके साथ कैसा व्यवहार किया।

इस्राएल में धर्मत्याग

3, 4. (क) कब और कैसे इस्राएल देश बँटकर दो राज्य हो गया? (ख) यारोबाम ने उत्तर में इस्राएल के दस गोत्रोंवाले राज्य को शुरूआत में ही किस तरह गलत राह दिखायी?

3 जब से इस्राएल ने मिस्र को छोड़ा तब से लेकर राजा दाऊद के बेटे सुलैमान की मौत के समय (यानी 500 साल से थोड़े ज़्यादा अरसे) तक इस्राएल के 12 गोत्रों में एकता थी और उनका एक ही देश था। मगर सुलैमान की मौत के बाद, यारोबाम ने उत्तर में इस्राएल के दस गोत्रों का अगुवा बनकर, दाऊद के घराने के खिलाफ बगावत की और उसके बाद से यह देश दो अलग-अलग राज्यों में बँट गया। ऐसा सा.यु.पू. 997 के साल में हुआ।

4 उत्तर में इस्राएल राज्य का पहला राजा यारोबाम था। वह अपनी प्रजा के लोगों को धर्मत्याग की राह पर ले गया। उसने ऐसे लोगों को याजक ठहराया जो हारून के वंश से नहीं थे। और यहोवा की व्यवस्था के मुताबिक उसकी उपासना करवाने के बदले, उसने बछड़े की उपासना शुरू करवायी। (1 राजा 12:25-33) ऐसे कामों से यहोवा को घृणा थी। (यिर्मयाह 32:30,35) इस वजह से और दूसरी कई वजहों से यहोवा ने इस्राएल को अश्‍शूर के वश में जाने दिया। (2 राजा 15:29) इस्राएल के राजा होशे ने मिस्र से साँठ-गाँठ करके अश्‍शूर का जूआ तोड़ने की कोशिश तो की, मगर उसकी योजना नाकाम रही।—2 राजा 17:4.

इस्राएल झूठे शरणस्थान में पनाह लेता है

5. इस्राएल मदद के लिए किसके पास जाता है?

5 यहोवा इस्राएलियों को उनकी गलती का एहसास दिलाना चाहता है। * इसलिए वह यशायाह भविष्यवक्‍ता को यह चेतावनी सुनाने भेजता है: “हाय उन पर जो सहायता पाने के लिये मिस्र को जाते हैं और घोड़ों का आसरा करते हैं; जो रथों पर भरोसा रखते क्योंकि वे बहुत हैं, और सवारों पर, क्योंकि वे अति बलवान हैं, पर इस्राएल के पवित्र की ओर दृष्टि नहीं करते और न यहोवा की खोज करते हैं!” (यशायाह 31:1) कितने दुःख की बात है! इस्राएल को जीवते परमेश्‍वर यहोवा से भी ज़्यादा घोड़ों और रथों पर भरोसा है। इस्राएल, इंसान के नज़रिए से देखता है इसलिए उसे मिस्र के घोड़े भारी तादाद में और बहुत बलवान नज़र आते हैं। बेशक, अश्‍शूर की फौज से लड़ने के लिए मिस्र की दोस्ती बहुत काम आएगी! लेकिन, बहुत जल्द इस्राएलियों के होश ठिकाने आ जाएँगे कि मिस्र से दोस्ती यानी इंसानों से संधि करना व्यर्थ है।

6. मिस्र से मदद माँगकर इस्राएल ने कैसे साफ तौर पर दिखाया कि उसे यहोवा पर भरोसा नहीं है?

6 मूसा की व्यवस्था वाचा के ज़रिए, इस्राएल और यहूदा के निवासी यहोवा को समर्पित हैं। (निर्गमन 24:3-8; 1 इतिहास 16:15-17) तो अब मिस्र से मदद माँगकर, इस्राएल यही दिखाता है कि उसे यहोवा पर भरोसा नहीं है, न ही उसे उन नियमों की कोई परवाह है जो उस पवित्र वाचा में बताए गए थे। हम ऐसा क्यों कह सकते हैं? क्योंकि वाचा की शर्तों में यहोवा का यह वादा भी था कि अगर उसके लोग सिर्फ उसी की उपासना करें तो वह उनकी हिफाज़त करता रहेगा। (लैव्यव्यवस्था 26:3-8) यहोवा ने यह वादा पूरा किया है और बार-बार “संकट के समय वह उनका दृढ़ गढ़” साबित हुआ है। (भजन 37:39; 2 इतिहास 14:2,9-12; 17:3-5,10) यही नहीं, यहोवा ने व्यवस्था वाचा के मध्यस्थ मूसा के ज़रिए इस्राएल के आनेवाले राजाओं को यह हिदायत दी थी कि वे अपने लिए बहुत-से घोड़े न रखें। (व्यवस्थाविवरण 17:16) इस आज्ञा को मानने से ये राजा दिखाते कि वे अपनी हिफाज़त के लिए सिर्फ “इस्राएल के पवित्र” पर भरोसा रखते हैं। लेकिन अफसोस, इस्राएल के राजाओं में ऐसा विश्‍वास नहीं था।

7. इस्राएल ने विश्‍वास की जो कमी दिखायी, उससे आज मसीही क्या सबक सीख सकते हैं?

7 इसमें आज के मसीहियों के लिए भी सबक है। इस्राएल, मिस्र और उससे मिलनेवाली मदद पर आस लगाए बैठा था, जिन्हें वह अपनी आँखों से देख सकता था। लेकिन उसने यहोवा पर भरोसा नहीं किया, जो मिस्र के मुकाबले कहीं ज़्यादा ताकतवर है। उसी तरह आज मसीही भी यहोवा पर भरोसा रखने के बजाय दुनिया की चीज़ों पर भरोसा रखने के लिए लुभाए जा सकते हैं, जैसे धन-दौलत, समाज में ओहदा या दुनिया की बड़ी-बड़ी हस्तियों से अपनी जान-पहचान। यह सच है कि मसीही परिवारों के मुखिया अपने परिवार की देखभाल और रोटी-कपड़े का इंतज़ाम करने की ज़िम्मेदारी पूरी गंभीरता से निभाते हैं। (1 तीमुथियुस 5:8) लेकिन वे दुनिया की इन चीज़ों पर ही अपना भरोसा नहीं रखते। साथ ही वे “हर प्रकार के लोभ से” दूर रहने के लिए चौकस रहते हैं। (लूका 12:13-21) ‘संकट के समय के लिये ऊंचा गढ़’ सिर्फ यहोवा परमेश्‍वर है।—भजन 9:9; 54:7.

8, 9. (क) हालाँकि इस्राएल की योजनाएँ देखने में बढ़िया लगें मगर अंजाम क्या होगा, और क्यों? (ख) इंसान के वादों और यहोवा के वादों के बीच क्या फर्क है?

8 इस वजह से यशायाह, इस्राएल के उन अगुवों की हँसी उड़ाता है जिन्होंने बड़ी चालाकी से मिस्र के साथ संधि कर ली है। वह कहता है: “फिर भी वह बुद्धिमान है और घोर संकट ले आएगा, वह अपने वचन से मुकरेगा नहीं, परन्तु कुकर्मियों के घराने तथा अधर्मियों के सहयोगियों के विरुद्ध उठेगा।” (यशायाह 31:2, NHT) इस्राएल के अगुवे शायद खुद को बहुत बुद्धिमान समझते हैं। लेकिन क्या यह सच नहीं कि सारे विश्‍वमंडल का सिरजनहार ही सबसे बुद्धिमान है? देखने में शायद लगे कि मिस्र से मदद माँगने की इस्राएल की योजना वाकई बढ़िया है। मगर, दूसरे देशों के साथ राजनीतिक संधियाँ बनाना यहोवा की नज़र में आध्यात्मिक व्यभिचार है। (यहेजकेल 23:1-10) इसलिए, यशायाह कहता है कि यहोवा “घोर संकट ले आएगा।”

9 इंसान के वादों पर भरोसा नहीं किया जा सकता और इंसान से मिलनेवाली हिफाज़त का भी कोई भरोसा नहीं। लेकिन जहाँ तक यहोवा का सवाल है, उसे ‘अपना वचन’ देकर ‘मुकरने’ की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि वह अपने वादों को हर हाल में पूरा करेगा। उसका वचन कभी-भी व्यर्थ ठहरकर उसके पास नहीं लौटता, पर हमेशा सफल होकर रहता है।—यशायाह 55:10,11; 14:24.

10. मिस्र और इस्राएल, दोनों का क्या होगा?

10 क्या मिस्र के लोग इस्राएल की हिफाज़त कर पाएँगे? नहीं। यशायाह, इस्राएल से कहता है: “मिस्री लोग ईश्‍वर नहीं, मनुष्य ही हैं; और उनके घोड़े आत्मा नहीं, मांस ही हैं। जब यहोवा हाथ बढ़ाएगा, तब सहायता करनेवाले और सहायता चाहनेवाले दोनों ठोकर खाकर गिरेंगे, और वे सब के सब एक संग नष्ट हो जाएंगे।” (यशायाह 31:3) जब अश्‍शूर के ज़रिए दंड देने के लिए यहोवा अपना हाथ बढ़ाएगा, तब सहायता देनेवाला (मिस्र) और सहायता पानेवाला (इस्राएल), दोनों ही ठोकर खाकर गिरेंगे और नष्ट हो जाएँगे।

सामरिया का गिरना

11. इस्राएल ने कैसे-कैसे पाप किए हैं, और अंजाम क्या होगा?

11 यहोवा इस्राएल पर दया दिखाते हुए उसके पास बार-बार भविष्यवक्‍ताओं को भेजकर उसे उकसाता रहा है कि वह पश्‍चाताप करे और फिर से शुद्ध उपासना करने लगे। (2 राजा 17:13) इसके बावजूद, इस्राएल अपने पापों को और बढ़ाता जाता है। वह न सिर्फ बछड़े की उपासना करता है बल्कि जादू-टोना, व्यभिचार से भरी बाल-उपासना, पवित्र खंभों की और ऊँचे स्थानों पर उपासना करना भी जारी रखता है। और-तो-और इस्राएली अपने ही शरीर के फल, “अपने बेटे-बेटियों को आग में होम करके” दुष्टात्माओं को चढ़ाते हैं। (2 राजा 17:14-17; भजन 106:36-39; आमोस 2:8) इस्राएल की बुराई का अंत करने के लिए, यहोवा आदेश देता है: “सामरिया अपने राजा समेत जल के बुलबुले की नाईं मिट जाएगा।” (होशे 10:1,7) सामान्य युग पूर्व 742 में, अश्‍शूर की फौज इस्राएल की राजधानी, सामरिया पर धावा बोल देती है। तीन साल की घेराबंदी के बाद, सामरिया गिर जाता है और सा.यु.पू. 740 में दस गोत्रवाले इस्राएल राज्य का नामो-निशान मिट जाता है।

12. आज यहोवा ने कौन-सा काम किए जाने की आज्ञा दी है, और जो लोग चेतावनी को नहीं मानते, उनका क्या होगा?

12 हमारे दिनों में यहोवा ने सारी दुनिया में प्रचार का काम किए जाने की आज्ञा दी है, ताकि “हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने” की चेतावनी दी जाए। (प्रेरितों 17:30; मत्ती 24:14) जो लोग परमेश्‍वर द्वारा किए गए उद्धार के इंतज़ाम को ठुकरा देते हैं वे “जल के बुलबुले” की तरह मिट जाएँगे, उन्हें धर्मत्यागी इस्राएल जाति की तरह नाश किया जाएगा। दूसरी तरफ, जो लोग यहोवा पर भरोसा रखते हैं वे “पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।” (भजन 37:29) तो फिर यह कितनी अक्लमंदी होगी कि हम पुराने ज़माने के इस्राएल राज्य की गलतियाँ न दोहराएँ! आइए, हम उद्धार के लिए यहोवा पर ही पूरा भरोसा रखें।

उद्धार करने की यहोवा की ताकत

13, 14. यहोवा सिय्योन को चैन देने के लिए क्या संदेश देता है?

13 इस्राएल की दक्षिणी सरहद से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर, यहूदा की राजधानी, यरूशलेम है। यरूशलेम के निवासी अच्छी तरह जानते हैं कि सामरिया का क्या अंजाम हुआ है। और अब उन पर भी उसी खूँखार दुश्‍मन का साया मँडरा रहा है जिसने उत्तरी दिशा में उनके पड़ोसी का नामो-निशान मिटा दिया है। मगर सामरिया के साथ जो हुआ, क्या उससे ये लोग सबक सीखेंगे?

14 यशायाह के अगले शब्दों से यरूशलेम के लोगों को बहुत चैन मिलता है। वह उन्हें यकीन दिलाता है कि यहोवा अब भी अपने चुने हुए लोगों से प्रेम करता है। वह कहता है: “यहोवा ने मुझ से यों कहा, ‘जिस प्रकार सिंह या जवान सिंह अपने शिकार पर गुर्राते समय अपने विरुद्ध चरवाहों के दल के बुलाए जाने पर भी उनकी ललकार से न तो आतंकित और न ही उनके शोरगुल से प्रभावित होता है, उसी प्रकार सेनाओं का यहोवा सिय्योन पर्वत और उसके शिखर पर युद्ध करने को उतरेगा।’” (यशायाह 31:4, NHT) जैसे एक जवान सिंह अपने शिकार की रखवाली करता है, उसी तरह यहोवा जलन से अपने पवित्र नगर, सिय्योन की रखवाली करेगा। अश्‍शूर की फौज चाहे कितनी भी डींगें मारे, कितनी भी धमकियाँ दे या कितना ही कोलाहल क्यों न मचाए, मगर वह यहोवा को अपना मकसद पूरा करने से नहीं रोक सकता।

15. यहोवा, यरूशलेम के निवासियों के साथ कैसी कोमलता और करुणा से पेश आता है?

15 ध्यान दीजिए कि यहोवा, यरूशलेम के निवासियों के साथ कैसी कोमलता और करुणा से पेश आएगा। “मंडराते हुए पक्षियों के समान सेनाओं का यहोवा यरूशलेम की रक्षा करेगा। वह उसकी रक्षा करके उसे छुड़ाएगा। वह लांघकर उसका उद्धार करेगा।” (यशायाह 31:5, NHT) मादा पक्षी अपने बच्चों की रखवाली करने के लिए हमेशा चौकस रहती है। पंख फैलाकर वह अपने बच्चों के ऊपर मँडराती रहती है और बराबर नज़र रखती है कि बच्चों को कहीं कोई खतरा तो नहीं। अगर कोई शिकारी पास आता है तो वह झपट्टे के साथ नीचे जाकर अपने बच्चों को बचाती है। जब अश्‍शूरी हमला करने आएगा, तब इसी तरह यहोवा यरूशलेम के लोगों की दिलो-जान से हिफाज़त करेगा।

‘हे इस्राएलियो, लौट आओ’

16. (क) अपने लोगों से प्यार होने की वजह से यहोवा उनसे क्या गुज़ारिश करता है? (ख) यहूदा के लोगों का विद्रोह, खासकर कब साफ ज़ाहिर हो जाता है? समझाइए।

16 यहोवा अब अपने लोगों को याद दिलाता है कि उन्होंने पाप किया है। वह उन्हें अपने गलत मार्ग को छोड़ने के लिए भी उकसाता है: “हे इस्राएलियो, जिसके विरुद्ध तुम ने भारी विद्रोह किया उसी की ओर लौट आओ।” (यशायाह 31:6, NHT) सिर्फ इस्राएल के दस गोत्रों के राज्य ने ही विद्रोह नहीं किया है। यहूदा के लोग भी ‘इस्राएली’ हैं और उन्होंने भी “भारी विद्रोह किया।” यह खासकर तब ज़ाहिर होगा जब यशायाह अपनी भविष्यवाणी का संदेश खत्म करेगा और उसके कुछ ही समय बाद, हिजकिय्याह की जगह उसका बेटा मनश्‍शे राजा बनेगा। बाइबल में दर्ज़ है कि “मनश्‍शे ने यहूदा और यरूशलेम के निवासियों को यहां तक भटका दिया कि उन्हों ने उन जातियों से भी बढ़कर बुराई की, जिन्हें यहोवा ने . . . विनाश किया था।” (2 इतिहास 33:9) यहोवा ने विधर्मी जातियों का नामो-निशान इसलिए मिटा दिया था क्योंकि वे अपने नीच कामों की वजह से यहोवा की नज़रों में घृणित ठहरे थे। मगर यहूदा के निवासी, जिनके साथ यहोवा ने वाचा बाँधी है, वे तो उन जातियों के लोगों से भी गए-गुज़रे निकले!

17. किस तरह आज के हालात वैसे ही हैं जैसे मनश्‍शे के राज में यहूदा में थे?

17 आज 21वीं सदी की शुरूआत में, हालात काफी कुछ वैसे ही हैं जैसे मनश्‍शे के राज के दौरान यहूदा में थे। धर्म, जाति और राष्ट्र को लेकर नफरत फैलने की वजह से दुनिया में फूट बढ़ती जा रही है। हत्या, ज़ुल्म, बलात्कार और किसी जाति के खिलाफ दुश्‍मनी के कारण उसका सफाया कर देने की भयानक वारदातों का लाखों लोग शिकार हुए हैं। इसमें कोई शक नहीं कि सब जातियों और देशों ने, खासकर ईसाईजगत के देशों ने “भारी विद्रोह” किया है। लेकिन हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि यहोवा बुराई को सदा के लिए नहीं रहने देगा। हम यह कैसे कह सकते हैं? यशायाह के दिनों में जो हुआ उसी से हमें इसका जवाब मिलेगा।

यरूशलेम बचाया गया

18. रबशाके, हिजकिय्याह को क्या चेतावनी देता है?

18 अश्‍शूर के राजा, युद्ध में जीत हासिल करने का श्रेय अपने देवताओं को दिया करते थे। एन्शियंट नियर ईस्टर्न टॆक्स्ट्‌स  किताब में, अश्‍शूर के सम्राट अश्‍शूरबनीपाल के लेख हैं जिनमें उसने दावा किया है कि “अशूर, बेल, नबो जैसे महान देवता, [उसके] स्वामी (हमेशा) [उसके] साथ रहते हैं” और उन्हीं की मदद से “[उसने] एक घमासान लड़ाई में . . . (नामी) शूरवीरों को हरा दिया।” यशायाह के दिनों में, अश्‍शूर के राजा सन्हेरीब का दूत, रबशाके जब राजा हिजकिय्याह को संदेश देता है तब उसकी बातों से भी यह विश्‍वास ज़ाहिर होता है कि इंसानों की लड़ाई में उनके देवता भाग लेते हैं। रबशाके, राजा हिजकिय्याह को चेतावनी देता है कि वह उद्धार के लिए यहोवा पर आस न लगाए और वह इसकी यह वजह बताता है कि दूसरे देशों के देवता भी, अश्‍शूर की शक्‍तिशाली फौज से अपने लोगों को नहीं बचा सके।—2 राजा 18:33-35.

19. रबशाके के ताने सुनकर हिजकिय्याह क्या करता है?

19 अब राजा हिजकिय्याह क्या करता है? बाइबल का वृत्तांत कहता है: “जब हिजकिय्याह राजा ने यह सुना, तब वह अपने वस्त्र फाड़, टाट ओढ़कर यहोवा के भवन में गया।” (2 राजा 19:1) हिजकिय्याह जानता है कि इस खौफनाक घड़ी में सिर्फ यहोवा ही उसकी मदद कर सकता है। वह अपने आप को दीन करता और यहोवा से मार्गदर्शन माँगता है कि उसे क्या करना चाहिए।

20. यहूदा के निवासियों की तरफ से यहोवा कैसी कार्यवाही करेगा और इससे उन्हें क्या सबक सीखना चाहिए?

20 यहोवा अपने भविष्यवक्‍ता यशायाह के ज़रिए ज़रूरी मार्गदर्शन देते हुए बताता है: “उस समय तुम लोग सोने चान्दी की अपनी अपनी मूर्त्तियों से जिन्हें तुम बनाकर पापी हो गए हो घृणा करोगे।” (यशायाह 31:7) जब यहोवा अपने लोगों की तरफ से लड़ेगा, तब सन्हेरीब के देवताओं की असलियत सामने आ जाएगी कि वे सिर्फ निकम्मी और बेजान मूर्तियाँ हैं। यहूदा के लोगों को इससे सबक सीखना चाहिए। वफादार राजा हिजकिय्याह की अच्छी मिसाल के बावजूद, इस्राएल देश की तरह यहूदा के लोगों ने भी अपने देश को मूर्तियों से भर दिया है। (यशायाह 2:5-8) यहूदा के निवासी अगर यहोवा के साथ दोबारा रिश्‍ता कायम करना चाहते हैं तो उन्हें अपने पापों का प्रायश्‍चित्त करना होगा और “अपनी अपनी मूर्त्तियों” को फेंक देना होगा।—निर्गमन 34:14 देखिए।

21. अश्‍शूर को यहोवा से मिलनेवाले दंड के बारे में यशायाह भविष्यवाणी में क्या बताता है?

21 यशायाह अब भविष्यवाणी के ज़रिए बताता है कि यहोवा, यहूदा के इस खौफनाक दुश्‍मन को कैसे दंड देगा: “तब अश्‍शूर उस तलवार से गिराया जाएगा जो मनुष्य की नहीं; वह उस तलवार का कौर हो जाएगा जो आदमी की नहीं; और वह तलवार के साम्हने से भागेगा और उसके जवान बेगार में पकड़े जाएंगे।” (यशायाह 31:8) जब फैसले की घड़ी आती है, तब यरूशलेम के लोगों को अपनी मयानों में से तलवार निकालने तक की ज़रूरत नहीं पड़ती। अश्‍शूर के चुने हुए शूरवीरों से बनी फौज किसी इंसान की तलवार का नहीं, बल्कि यहोवा की तलवार का कौर हो जाती है। जहाँ तक अश्‍शूर के राजा सन्हेरीब की बात है “वह तलवार के साम्हने से भागेगा।” यहोवा का स्वर्गदूत जब उसके 1,85,000 शूरवीरों का वध कर देता है तो वह वापस घर लौट जाता है। बाद में, जब वह अपने देवता निस्रोक को दण्डवत्‌ कर रहा होता है, तब उसी के बेटे उसका कत्ल कर देते हैं।—2 राजा 19:35-37.

22. हिजकिय्याह और अश्‍शूर की फौज से जुड़ी घटनाओं से आज मसीही क्या सीख सकते हैं?

22 न तो हिजकिय्याह, न ही कोई और यह अनुमान लगा सकता था कि यहोवा, यरूशलेम को अश्‍शूर की फौज से कैसे बचाएगा। फिर भी, ऐसे संकट के वक्‍त हिजकिय्याह ने जो किया वह उन सभी के लिए एक बढ़िया मिसाल है जिन्हें आज परीक्षाओं से गुज़रना पड़ता है। (2 कुरिन्थियों 4:16-18) यरूशलेम पर धावा बोलने के लिए तैयार बैठे अश्‍शूरी खूँखार होने के लिए जाने जाते थे, इसलिए लाज़मी है कि हिजकिय्याह डरा हुआ था। (2 राजा 19:3) फिर भी, उसे यहोवा पर विश्‍वास था और उसने उसी से सलाह ली, किसी इंसान से नहीं। उसने जो किया वह यरूशलेम नगर के लिए कितनी बड़ी आशीष साबित हुई! आज परमेश्‍वर का भय माननेवाले मसीहियों को भी कभी-कभी ऐसे हालात से गुज़रना पड़ सकता है, जो उन्हें भारी तनाव में डाल सकते हैं। कई बार लाज़मी है कि उन्हें डर भी लगे। फिर भी, अगर हम ‘अपनी सारी चिन्ता यहोवा पर डाल दें’ तो वह हमारा ध्यान रखेगा। (1 पतरस 5:7) वह अपने डर पर काबू पाने में हमारी मदद करेगा और हमें उस समस्या से निपटने की ताकत देगा जिसकी वजह से हम तनाव में हैं।

23. किस तरह हिजकिय्याह के बजाय सन्हेरीब को खौफ सताने लगता है?

23 अंत में, हिजकिय्याह को नहीं बल्कि सन्हेरीब को खौफ सताने लगता है। वह किसका सहारा लेगा? यशायाह भविष्यवाणी करता है: “‘आतंक से उसका गढ़ जाता रहेगा, और युद्ध-पताका देखकर उसके प्रधान भयभीत हो उठेंगे।’ यह उसी यहोवा की वाणी है जिसकी अग्नि सिय्योन में और जिसका भट्ठा यरूशलेम में है।” (यशायाह 31:9, NHT) सन्हेरीब को अपने “गढ़,” अपने शरणस्थान यानी अपने देवताओं पर भरोसा है, मगर वे उसकी मदद नहीं कर पाते। वे मानो, ‘आतंक से जाते रहे।’ इतना ही नहीं, सन्हेरीब के प्रधान भी उसके किसी काम नहीं आते। उनमें भी दहशत फैली हुई है।

24. अश्‍शूरियों के साथ जो हुआ उससे कौन-सी चेतावनियाँ मिलती हैं?

24 यशायाह की भविष्यवाणी का यह हिस्सा, ऐसे हर व्यक्‍ति के लिए एक साफ चेतावनी है जो परमेश्‍वर का विरोध करने की सोचता है। ऐसा कोई हथियार, कोई शक्‍ति, कोई यंत्र नहीं बना जो यहोवा के उद्देश्‍यों को पूरा होने से रोक सके। (यशायाह 41:11,12) एक और सबक यह है कि जो लोग परमेश्‍वर की सेवा करने का दावा करते हैं मगर सुरक्षा के लिए दुनियावी चीज़ों पर भरोसा रखते हैं, उनके हाथों निराशा के सिवा और कुछ नहीं लगेगा। जो लोग ‘इस्राएल के पवित्र की ओर दृष्टि नहीं करते,’ वे यहोवा को तब देखेंगे जब वह “घोर संकट ले आएगा।” (यशायाह 31:1,2, NHT) वाकई, यहोवा परमेश्‍वर ही एकमात्र सच्चा शरणस्थान है जो सदा तक बना रहेगा।—भजन 37:5.

[फुटनोट]

^ पैरा. 5 ऐसा लगता है कि यशायाह के 31वें अध्याय की पहली तीन आयतें खास तौर पर इस्राएल के लिए हैं। और शायद आखिर की छः आयतें यहूदा पर लागू होती हैं।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 319 पर तसवीर]

जो लोग दुनियावी चीज़ों पर भरोसा रखते हैं वे निराश ही होंगे

[पेज 322 पर तसवीर]

जैसे एक सिंह अपने शिकार की रखवाली करता है, वैसे ही यहोवा अपने पवित्र नगर की रखवाली करेगा

[पेज 324 पर तसवीर]

धर्म, जाति और राष्ट्र को लेकर नफरत की वजह से दुनिया में फूट बढ़ती जा रही है

[पेज 326 पर तसवीर]

हिजकिय्याह मदद के लिए यहोवा के भवन में गया