एक पिता और उसके विद्रोही बच्चे
दूसरा अध्याय
एक पिता और उसके विद्रोही बच्चे
1, 2. समझाइए कि यहोवा के बच्चे कौन हैं और वे विद्रोही कैसे हैं?
वह अपने बच्चों से बेहद प्यार करता था और उसने उनकी बढ़िया देखभाल की थी। बरसों तक उसने इस बात का ख्याल रखा कि उन्हें खाने-पीने की, कपड़ों की और रहने के लिए घरों की कोई तंगी ना उठानी पड़े। जब ज़रूरी हुआ तब उसने उन्हें ताड़ना भी दी, मगर हद-से-ज़्यादा कभी नहीं। उसने जो भी सज़ा दी हमेशा “उचित मात्रा” में ही दी। (यिर्मयाह 30:11, नयी हिन्दी बाइबिल) हम समझ सकते हैं कि इतना प्यार करनेवाले पिता के दिल में कितना गहरा दुःख होगा जब उसे अपने बच्चों के बारे में यह कहना पड़ा: “मैं ने बालबच्चों का पालन पोषण किया, और उनको बढ़ाया भी, परन्तु उन्हों ने मुझ से बलवा किया।”—यशायाह 1:2ख.
2 यहाँ जिन विद्रोही बच्चों का ज़िक्र किया गया है, वे यहूदा देश के लोग हैं, और जिस पिता के दिल को उन्होंने दुखाया था, वह परमेश्वर यहोवा है। कितने अफसोस की बात है! यहोवा ने यहूदा देश के लोगों को पाला-पोसा और उन्हें सब जातियों से ऊँचा दर्जा देकर उनका सम्मान बढ़ाया। बाद में, भविष्यवक्ता यहेजकेल के ज़रिए उसने उन्हें याद दिलाया: “मैं ने तुझे बूटेदार वस्त्र और सूइसों के चमड़े की जूतियां पहिनाईं; और तेरी कमर में सूक्ष्म सन बान्धा, और तुझे रेशमी कपड़ा ओढ़ाया।” (यहेजकेल 16:10) फिर भी, यहूदा के ज़्यादातर लोग यहोवा की इस परवाह के लिए उसका ज़रा भी एहसान नहीं मानते। इसके बजाय, वे यहोवा के खिलाफ विद्रोह या बलवा करते हैं।
3. यहोवा स्वर्ग और पृथ्वी को, विद्रोही यहूदा के खिलाफ गवाही देने के लिए क्यों कहता है?
3 तो फिर, अपने विद्रोही बच्चों के बारे में बताने से पहले यहोवा ऐलान करता है: “हे स्वर्ग सुन, और हे पृथ्वी कान लगा; क्योंकि यहोवा कहता है।” (यशायाह 1:2क) सदियों पहले जब मूसा ने इस्राएलियों को, परमेश्वर की आज्ञाएँ न मानने के नतीजों के बारे में चेतावनी दी थी उस वक्त मानो स्वर्ग और पृथ्वी सुन रहे थे। इसलिए कि मूसा ने कहा था: “मैं आज आकाश और पृथ्वी को तुम्हारे विरुद्ध साक्षी करके कहता हूं, कि जिस देश के अधिकारी होने के लिये तुम यरदन पार जाने पर हो उस में तुम जल्दी बिल्कुल नाश हो जाओगे।” (व्यवस्थाविवरण 4:26) तो अब, यशायाह के दिनों में यहोवा उसी अदृश्य स्वर्ग और इस पृथ्वी को, विद्रोही यहूदा के खिलाफ गवाही देने के लिए कहता है।
4. यहोवा, यहूदा के लोगों से किस तरह पेश आया?
4 मामला इतना संगीन हो चुका है कि अब सीधे-सीधे फैसला हो ही जाना चाहिए। मगर ऐसे गंभीर हालात के बावजूद, गौर कीजिए कि यहोवा, यहूदा के लोगों के साथ एक प्यार करनेवाले पिता की तरह पेश आता है, न कि ऐसे मालिक की तरह जिसने उन्हें खरीद लिया था। क्या यहोवा का ऐसा प्यार भरा व्यवहार हमारे दिल को नहीं छू जाता? दरअसल, यहोवा अपने लोगों से मिन्नत कर रहा है कि इस मामले को एक ऐसे पिता की नज़र से देखें जो अपने बच्चों को गुमराह होते देख तड़प उठता है। शायद यहूदा देश में ऐसे माता-पिता हों जिन पर वही गुज़री हो जो यहोवा पर गुज़री थी और वे शायद यहोवा के दर्द को महसूस कर सकते हों। बात चाहे जो भी थी, अब यहोवा, यहूदा देश के खिलाफ अपना मुकद्दमा पेश करनेवाला है।
नासमझ जानवर भी कहीं ज़्यादा वफादार होते हैं
5. किस तरह बैल और गधा अपने मालिक का वफादार होता है, जबकि इस्राएल ऐसा नहीं था?
5 यशायाह के ज़रिए, यहोवा कहता है: “बैल तो अपने मालिक को और गदहा अपने स्वामी की चरनी को पहिचानता है, परन्तु इस्राएल मुझे नहीं जानता, मेरी प्रजा विचार नहीं करती।” (यशायाह 1:3) * बैल और गधा बोझ ढोनेवाले जानवर हैं और मध्यपूर्व देशों के लोग इन्हें हर दिन देखते हैं। यहूदा के लोग इस बात से इनकार नहीं कर सकते थे कि इन नासमझ जानवरों में भी वफादारी का जज़्बा होता है। उन्हें अच्छी तरह मालूम होता है कि उनका कोई मालिक है। गौर कीजिए कि इसी बारे में बाइबल पर खोजबीन करनेवाले एक विद्वान ने शाम ढलने के वक्त मध्यपूर्व के एक नगर के फाटक के पास क्या नज़ारा देखा: “जैसे ही मवेशियों के झुण्ड नगर के अंदर दाखिल हुए वैसे ही हर मवेशी ने अपना-अपना रास्ता ले लिया। हर बैल अच्छी तरह जानता था कि उसका मालिक कौन है और कौन-सा रास्ता सीधे उसके घर को जाता है। वह एक पल के लिए भी आड़ी-तिरछी और छोटी-छोटी गलियों के भूल-भुलैया से नहीं चकराया। और गधा तो अपने मालिक के घर के दरवाज़े से होता हुआ, सीधे ‘उसकी चरनी’ पर जाकर खड़ा हो गया।”
6. यहूदा के लोगों ने कैसे नासमझी की?
6 ऐसे नज़ारे यशायाह के दिनों में बहुत आम थे, इसलिए यहोवा जो कहना चाह रहा है वह बिलकुल साफ है: अगर एक नासमझ जानवर भी इतना जानता है कि उसका मालिक कौन है और उसकी चरनी कहाँ है तो यहूदा के लोग तो समझ रखनेवाले इंसान हैं। क्या उनके पास यहोवा को छोड़ देने का कोई भी बहाना हो सकता है? सचमुच, उन्होंने ज़रा भी ‘विचार नहीं किया’ है। मानो वे भूल गए हों कि उनकी खुशहाली, यहाँ तक कि उनकी ज़िंदगी भी यहोवा की ही बदौलत है। यह तो वाकई, यहोवा की दया ही है कि वह अब भी यहूदा के लोगों को “मेरी प्रजा” कहकर पुकारता है!
7. यहोवा ने हमारे लिए जो कुछ किया है उसके लिये हम किन तरीकों से उसका एहसान मान सकते हैं?
7 हम कभी ऐसे नासमझ न बनें, न ही उन तमाम एहसानों को भूलें जो यहोवा ने हम पर किए हैं! इसके बजाय हमें भजनहार दाऊद की तरह होना चाहिए, जिसने कहा: “हे यहोवा परमेश्वर मैं अपने पूर्ण मन से तेरा धन्यवाद करूंगा; मैं तेरे सब आश्चर्य कर्मों का वर्णन करूंगा।” (भजन 9:1) ऐसा करने के लिए हमें लगातार यहोवा का ज्ञान लेते रहना चाहिए, क्योंकि बाइबल कहती है कि “परमपवित्र ईश्वर को जानना ही समझ है।” (नीतिवचन 9:10) अगर हम हर रोज़ यहोवा से मिलनेवाली आशीषों पर मनन करें तो हम उसका धन्यवाद करेंगे और अपने स्वर्गीय पिता के साथ एहसानफरामोशों जैसा बर्ताव नहीं करेंगे। (कुलुस्सियों 3:15) यहोवा कहता है, “धन्यवाद के बलिदान का चढ़ानेवाला मेरी महिमा करता है; और जो अपना चरित्र उत्तम रखता है उसको मैं परमेश्वर का किया हुआ उद्धार दिखाऊंगा!”—भजन 50:23.
“इस्राएल के पवित्र” का घोर अपमान
8. यहूदा के लोगों को ‘पाप से भरी जाति’ क्यों कहा गया है?
8 यशायाह बड़े ही ज़बरदस्त शब्दों में यहूदा देश के खिलाफ यहोवा का संदेश सुनाना जारी रखता है: “हाय, यह जाति पाप से कैसी भरी है! यह समाज अधर्म से कैसा लदा हुआ है! इस वंश के लोग कैसे कुकर्मी हैं, ये लड़केबाले कैसे बिगड़े हुए हैं! उन्हों ने यहोवा को छोड़ दिया, उन्हों ने इस्राएल के पवित्र को तुच्छ जाना है! वे पराए बनकर दूर हो गए हैं।” (यशायाह 1:4) दुष्टता के काम बढ़ते-बढ़ते इतना भारी बोझ बन जाते हैं जो किसी को भी पीसकर चकनाचूर कर सकता है। इब्राहीम के दिनों में यहोवा ने सदोम और अमोरा के पापों को भी “बहुत भारी” कहा था। (उत्पत्ति 18:20) अब यहूदा के लोगों के काम भी कुछ ऐसे ही हो गए हैं, क्योंकि यशायाह कहता है कि वे लोग ‘अधर्म से लदे हुए हैं।’ इसके अलावा, वह उन्हें ‘कुकर्मी वंश’ और ‘बिगड़े हुए लड़केबाले’ कहता है। जी हाँ, यहूदा के लोग वे बच्चे हैं जो अपराधी बन गए हैं। वे ‘पराए हो गए’ हैं या जैसे नयी हिन्दी बाइबिल कहती है, वे अपने पिता से “मुंह मोड़ कर दूर हो गए” हैं।
9. शब्द ‘इस्राएल के पवित्र,’ क्या अहमियत रखते हैं?
9 अपने कुकर्मों से, यहूदा के लोग “इस्राएल के पवित्र” का घोर अपमान कर रहे हैं। यशायाह की किताब में 25 बार इस्तेमाल किए गए शब्दों, ‘इस्राएल के पवित्र’ की क्या अहमियत है? पवित्र होने का मतलब है साफ और शुद्ध होना। यहोवा की पवित्रता सर्वोत्तम है, और कोई उसकी बराबरी नहीं कर सकता। (प्रकाशितवाक्य 4:8) जब इस्राएली, महायाजक की पगड़ी पर लगी सोने की पट्टी पर खुदे हुए ये शब्द पढ़ते होंगे: “पवित्रता यहोवा की है,” तब उन्हें यह बात बार-बार याद आती होगी। (निर्गमन 39:30, NW) इसलिए, जब यशायाह ने यहोवा को “इस्राएल का पवित्र” कहा तो वह ध्यान दिला रहा था कि यहूदा के पाप कितने गंभीर हैं। साफ ज़ाहिर है कि ये विद्रोही, सीधे-सीधे यहोवा की इस आज्ञा को तोड़ रहे हैं जो उनके पूर्वजों को दी गयी थी: “इस कारण अपने को शुद्ध करके पवित्र बने रहो, क्योंकि मैं पवित्र हूं।”—लैव्यव्यवस्था 11:44.
10. हम “इस्राएल के पवित्र” का अपमान करने से कैसे बचे रह सकते हैं?
1 पतरस 1:15,16) और उन्हें हर “बुराई से घृणा” करनी है। (भजन 97:10) लैंगिक अनैतिकता, मूर्तिपूजा, चोरी और पियक्कड़पन जैसे गंदे काम मसीही कलीसिया को भ्रष्ट कर सकते हैं। इसलिए जो लोग इन कामों को नहीं छोड़ते, मसीही कलीसिया से उनका बहिष्कार किया जाता है। और आखिरकार, ऐसे लोग जो बिना किसी पछतावे के गंदे काम करते रहते हैं वे परमेश्वर के राज्य से आशीषें हासिल नहीं कर पाएँगे। जी हाँ, ऐसे सारे दुष्ट कामों से “इस्राएल के पवित्र” का घोर अपमान होता है।—रोमियों 1:26,27; 1 कुरिन्थियों 5:6-11; 6:9,10.
10 आज मसीहियों को हर हाल में यह कोशिश करनी चाहिए कि वे यहूदा देश के लोगों के नक्शे-कदम पर न चलें और न ही “इस्राएल के पवित्र” का अपमान करें, चाहे इसके लिए उन्हें कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। उन्हें यहोवा के जैसा पवित्र बनना ही है। (सिर से पाँव तक रोग ही रोग
11, 12. (क) यहूदा की बुरी हालत का बयान कीजिए। (ख) क्यों हमें यहूदा की हालत पर दुःखी नहीं होना चाहिए?
11 यशायाह अब यहूदा देश के लोगों को समझाने की कोशिश करता है और उनकी रोगी हालत पर ध्यान दिलाते हुए कहता है: “तुम बलवा कर करके क्यों अधिक मार खाना चाहते हो?” एक तरह से यशायाह उनसे पूछ रहा है: ‘तुम जितनी तकलीफें भुगत चुके हो क्या वे काफी नहीं हैं? विद्रोह करके तुम क्यों और ज़्यादा मुसीबत मोल लेना चाहते हो?’ यशायाह आगे कहता है: “तुम्हारा सिर घावों से भर गया, और तुम्हारा हृदय दु:ख से भरा है। नख से सिर तक कहीं भी कुछ आरोग्यता नहीं।” (यशायाह 1:5,6क) यहूदा को बेहद घिनौनी बीमारी लग चुकी है, सिर से पाँव तक वह आध्यात्मिक तरीके से बीमार है। क्या ही भयानक हालत!
12 क्या यहूदा की ऐसी हालत पर हमें तरस खाना चाहिए? बिलकुल नहीं! क्योंकि सदियों पहले सारी इस्राएल जाति को बता दिया गया था कि अगर वे परमेश्वर की आज्ञाएँ तोड़ेंगे तो उन्हें इसकी क्या सज़ा मिलेगी। कई दूसरी बातों के अलावा उनसे यह भी कहा गया था: “यहोवा तेरे घुटनों और टांगों में, वरन नख से शिख तक भी असाध्य फोड़े निकालकर तुझ को पीड़ित करेगा।” व्यवस्थाविवरण 28:35) आध्यात्मिक तरीके से, यहूदा देश अब यही सज़ा भुगत रहा है। बताए जाने के बावजूद भी उसने बुराई का मार्ग नहीं छोड़ा। अगर यहूदा देश के लोग यहोवा की आज्ञाओं पर चलते रहते, तो उन्हें यह सब भुगतना न पड़ता।
(13, 14. (क) यहूदा को कैसी-कैसी चोटें लगी हैं? (ख) क्या यहूदा अपनी बुरी हालत की वजह से विद्रोह का मार्ग छोड़ देता है?
13 यशायाह, यहूदा की इस दयनीय हालत के बारे में आगे कहता है: “केवल घाव, चोट और सड़े हुए जख्म! उनका न मवाद पोंछा गया, न उनपर पट्टी बांधी गई, और न तेल लगाकर उन्हें ठण्डा ही किया गया।” (यशायाह 1:6ख, नयी हिन्दी बाइबिल) यहाँ यशायाह ने तीन किस्म के ज़ख्मों का ज़िक्र किया है: घाव (तलवार या चाकू के वार से लगनेवाले ज़ख्म), चोट (जो सख्त मार पड़ने से लगती है), और सड़े हुए ज़ख्म (ऐसे खुले घाव जो नासूर बन जाते हैं)। यशायाह एक ऐसे आदमी का बयान कर रहा है जिसे हर किस्म की कड़ी-से-कड़ी सज़ा दी गयी हो और जिसके शरीर का कोई भी हिस्सा बेदाग ना बचा हो। ठीक वैसे ही यहूदा की हालत वाकई बहुत खराब हो चुकी है।
14 क्या अपनी ऐसी बुरी हालत को देखकर यहूदा पछतावा करता है और फिर से यहोवा की उपासना करने लगता है? बिलकुल नहीं! यहूदा ऐसे ढीठ की तरह है जिसके बारे में नीतिवचन 29:1 कहता है: “जो बार बार डांटे जाने पर भी हठ करता है, वह अचानक नाश हो जाएगा और उसका कोई भी उपाय काम न आएगा।” यह जाति अब लाइलाज हो चुकी है। जैसे यशायाह ने कहा, उसके घावों का “न मवाद पोंछा गया, न उनपर पट्टी बांधी गई, और न तेल लगाकर उन्हें ठण्डा ही किया गया।” * एक तरह से, यहूदा सड़े हुए घाव की तरह हो गया है जिसे खुला छोड़ दिया गया हो।
15. किन तरीकों से हम आध्यात्मिक बीमारी से बच सकते हैं?
रोमियों 12:9) इसके अलावा, हमें अपनी रोज़मर्रा ज़िंदगी में परमेश्वर की आत्मा के फल पैदा करने की ज़रूरत है। (गलतियों 5:22,23) ऐसा करने से हमारी हालत यहूदा की तरह नहीं होगी, जो सिर से पाँव तक आध्यात्मिक रोग से भर गया था।
15 यहूदा की मिसाल से सबक लेकर हमें सावधान रहना चाहिए कि कहीं हमें भी आध्यात्मिक बीमारी न लग जाए। शारीरिक बीमारी की तरह, किसी को भी आध्यात्मिक बीमारी लग सकती है। आखिर हम में से ऐसा कौन है जो कभी-भी शरीर की अभिलाषाओं का शिकार नहीं हो सकता? हद-से-ज़्यादा सुख-विलास की चाहत और लालच हमारे दिल में आसानी से घर कर सकता है। इसलिए हमें अपने आपको यह सिखाना होगा कि ‘बुराई से घृणा करें’ और ‘भलाई में लगे रहें।’ (उजड़ा हुआ देश
16. (क) यशायाह, यहूदा के इलाकों का कैसे ज़िक्र करता है? (ख) कुछ लोग क्यों कहते हैं कि ये शब्द शायद आहाज के राज में कहे गए थे, मगर हमें इन्हें किन मायनों में समझना चाहिए?
16 रोग और घायल हालत का ज़िक्र यहीं खत्म करके अब यशायाह, यहूदा देश के इलाके पर ध्यान दिलाता है। वह मानो किसी ऊँची जगह से एक ऐसे मैदान का नज़ारा देख रहा है जहाँ अभी-अभी घमासान युद्ध खत्म हुआ है। वह कहता है: “तुम्हारा देश उजड़ा पड़ा है, तुम्हारे नगर भस्म हो गए हैं; तुम्हारे खेतों को परदेशी लोग तुम्हारे देखते ही निगल रहे हैं; वह परदेशियों से नाश किए हुए देश के समान उजाड़ है।” (यशायाह 1:7) कुछ विद्वान कहते हैं कि यशायाह के ये शब्द हालाँकि उसकी किताब की शुरूआत में लिखे हैं, मगर असल में, उसने अपने सेवा-काल में काफी समय बाद यानी उस वक्त ये शब्द कहे होंगे जब दुष्ट राजा आहाज का राज था। इन विद्वानों की दलील यह है कि ये शब्द उज्जिय्याह के राज पर लागू हो ही नहीं सकते क्योंकि उसके राज में यहूदा में चारों तरफ ऐसी बदहाली नहीं बल्कि बहुत खुशहाली थी। माना कि दावे से यह नहीं कहा जा सकता कि यशायाह की किताब की सारी घटनाएँ सिलसिलेवार ढंग से लिखी गयी हैं। फिर भी, यहूदा के उजड़ जाने के बारे में यशायाह के ये शब्द भविष्यवाणी ज़रूर हो सकते हैं। वह इस मायने में कि यशायाह ने यहाँ अपनी बात कहने के लिए वैसा ही तरीका इस्तेमाल किया है जैसा बाइबल में कई दूसरी जगहों पर किया गया है। इन जगहों पर भविष्य में होनेवाली घटनाओं को इस तरह लिखा गया है मानो वे पूरी हो चुकी हैं। इस तरह उनके अटल होने का और हर हाल में पूरा होने का यकीन दिलाया गया है।—प्रकाशितवाक्य 11:15 से तुलना कीजिए।
17. यहूदा के उजड़ जाने की भविष्यवाणी उसके लोगों के लिए हैरानी की बात क्यों नहीं होनी चाहिए थी?
17 जो भी हो, यहूदा के उजड़ जाने की यह भविष्यवाणी ऐसे हठीले और आज्ञा न माननेवाले लोगों के लिए कोई हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए। इसलिए कि सदियों पहले ही यहोवा ने उन्हें चेतावनी दी थी कि अगर वे विद्रोह करेंगे तो उनका क्या हश्र होगा। उसने कहा था: “मैं तुम्हारे देश को सूना कर दूंगा, और तुम्हारे शत्रु जो उस में रहते हैं वे इन बातों के कारण चकित होंगे। और मैं तुम को जाति जाति के बीच तितर-बितर करूंगा, और तुम्हारे पीछे पीछे तलवार खींचे रहूंगा; और तुम्हारा देश सुना हो जाएगा, और तुम्हारे नगर उजाड़ हो जाएंगे।”—लैव्यव्यवस्था 26:32,33; 1 राजा 9:6-8.
18-20. यशायाह 1:7,8 की भविष्यवाणी कब पूरी हुई और इस बार यहोवा ने कैसे ‘थोड़े से लोगों को बचाए रखा’?
18 आखिरकार, यशायाह 1:7,8 में लिखी यह भविष्यवाणी तब पूरी होती दिखाई दी जब अश्शूर ने चढ़ाई करके इस्राएल का विनाश कर दिया और यहूदा में बड़े पैमाने पर तबाही और बरबादी मचायी। (2 राजा 17:5,18; 18:11,13; 2 इतिहास 29:8,9) मगर यहूदा पूरी तरह नहीं मिटा। यशायाह कहता है: “सिय्योन की बेटी दाख की बारी में की झोपड़ी की नाईं छोड़ दी गई है, वा ककड़ी के खेत में की छपरिया या घिरे हुए नगर के समान अकेली खड़ी है।”—यशायाह 1:8.
19 इतना सब कुछ बरबाद होने पर भी “सिय्योन की बेटी,” यानी यरूशलेम नगरी को छोड़ दिया जाता। लेकिन वह इतनी कमज़ोर दिखायी देती जैसे दाख की बारी में बनी झोपड़ी या ककड़ी के खेत में पहरेदार का छप्पर दिखायी देता है। उन्नीसवीं सदी के एक विद्वान ने जब नील नदी से सफर करते वक्त ऐसी ही झोपड़ियाँ देखीं, तो उन्हें यशायाह के यही शब्द याद आए। इन झोंपड़ियों के बारे में उन्होंने कहा, ये “उत्तर से आनेवाली हवा से बचने के लिए सिर्फ एक आड़ का काम करती हैं।” यहूदा में फसल की कटाई के बाद इन छप्परों को यूँ ही छोड़ दिया जाता था और ये बाद में गिर जाते थे। तो चाहे यरूशलेम, देश-देश पर जीत
पानेवाली अश्शूरी सेना के सामने, बहुत कमज़ोर ही क्यों ना नज़र आए, मगर फिर भी वह बचा रहेगा।20 यशायाह, भविष्यवाणी के इस संदेश को यह कहते हुए खत्म करता है: “यदि सेनाओं का यहोवा हमारे थोड़े से लोगों को न बचा रखता, तो हम सदोम के समान हो जाते, और अमोरा के समान ठहरते।” (यशायाह 1:9) * अश्शूर की ज़बरदस्त ताकत से यहूदा को बचाने के लिए आखिरकार यहोवा ही उसकी मदद करने आएगा। सदोम और अमोरा के नगरों की तरह यहूदा देश भस्म नहीं होगा। वह कायम रहेगा।
21. जब बाबुल ने यरूशलेम का नाश किया, तब यहोवा ने ‘थोड़े से लोगों’ को क्यों ‘बचाए रखा’?
21 यशायाह के यह संदेश देने के 100 से भी ज़्यादा साल बाद, एक बार फिर 2 इतिहास 36:16) बाबुल के सम्राट नबूकदनेस्सर ने यहूदा को जीत लिया और इस बार “दाख की बारी में की झोपड़ी” जैसा कुछ भी बाकी नहीं बचा। यहाँ तक कि यरूशलेम को भी पूरी तरह नाश कर दिया गया। (2 इतिहास 36:17-21) फिर भी यहोवा ने ‘थोड़े से लोगों को बचाए रखा।’ हालाँकि यहूदा के लोग 70 साल तक बाबुल की गुलामी में रहे, यहोवा ने इस बात का ध्यान रखा कि यह जाति पूरी तरह खत्म न हो जाए। खासकर यहोवा ने दाऊद के घराने को बचाए रखा, क्योंकि इसी घराने से वादा किए हुए मसीहा को आना था।
यहूदा पर खतरा मंडराने लगा। इस देश के लोगों ने अश्शूर से मिलनेवाली सज़ा से सबक नहीं सीखा था। “वे परमेश्वर के दूतों को ठट्ठों में उड़ाते, उसके वचनों को तुच्छ जानते, और उसके नबियों की हंसी करते थे।” नतीजा यह हुआ कि “यहोवा अपनी प्रजा पर ऐसा झुंझला उठा, कि बचने का कोई उपाय न रहा।” (22, 23. पहली सदी में यहोवा ने ‘थोड़े से लोगों’ को क्यों ‘बचाए रखा’?
22 परमेश्वर की चुनी हुई जाति के नाते, इस्राएल पर पहली सदी में आखिरी बार मत्ती 21:43; 23:37-39; यूहन्ना 1:11) तो क्या इसके बाद धरती पर ऐसी कोई जाति नहीं रही जो यहोवा की चुनी हुई हो? नहीं, एक जाति थी। प्रेरित पौलुस ने दिखाया कि यशायाह 1:9 की भविष्यवाणी एक बार और पूरी होनेवाली थी। यशायाह की किताब के यूनानी अनुवाद (सॆप्टुआजेंट वर्शन) से हवाला देते हुए उसने लिखा: “जैसे यशायाह ने भविष्यद्वाणी की थी, ‘सेनाओं का यहोवा यदि हमारे लिए कुछ वंश न छोड़ता तो हम सदोम के सदृश हो गए होते, और अमोरा के समान ठहरे होते।’”—रोमियों 9:29, NHT.
संकट आया। जब यीशु ने वादा किए हुए मसीहा के तौर पर खुद को उनके सामने पेश किया तो इस्राएल जाति ने उसे ठुकरा दिया और इस वजह से खुद यहोवा ने भी उन्हें ठुकरा दिया। (23 इस बार बचाए जानेवाले लोग अभिषिक्त मसीही थे। वे लोग, जिन्होंने यीशु मसीह पर विश्वास किया था। इनमें सबसे पहले इस्राएल जाति के विश्वास करनेवाले कुछ यहूदी थे। बाद में, अन्यजातियों में से विश्वास करनेवाले लोग इसमें शामिल हो गए। ये सब मिलकर एक नया इस्राएल या ‘परमेश्वर का इस्राएल’ बने। (गलतियों 6:16; रोमियों 2:29) जब सा.यु. 70 में यहूदी जाति का विनाश हुआ तब यही “वंश” बच सका। और ‘परमेश्वर का इस्राएल’ आज भी हमारे बीच मौजूद है। और अलग-अलग देशों से विश्वास करनेवाले लाखों लोग इसके साथ हो लिए हैं। ये लोग “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से [निकली] बड़ी भीड़ [हैं], जिसे कोई गिन नहीं सकता।”—प्रकाशितवाक्य 7:9.
24. मानवजाति पर आनेवाले सबसे बड़े संकट से बचने के लिए सभी को किस पर ध्यान देना चाहिए?
24 जल्द ही यह संसार हरमगिदोन के युद्ध का सामना करेगा। (प्रकाशितवाक्य 16:14,16) दुनिया पर आनेवाला यह संकट, यहूदा देश पर अश्शूर या बाबुल की चढ़ाई से, यहाँ तक कि सा.यु. 70 में यहूदियों पर रोमी सेना के प्रकोप से कहीं ज़्यादा खतरनाक होगा। मगर इस बार भी बचनेवाले ज़रूर होंगे। (प्रकाशितवाक्य 7:14) तो फिर, यहूदा देश से कहे गए यशायाह के वचनों पर ध्यान देना हम सभी के लिए कितना ज़रूरी है! इन्हीं वचनों को मानने की वजह से उस वक्त वफादार जन बच सके थे। और आज भी यही शब्द विश्वास करनेवालों की जान बचा सकते हैं।
[फुटनोट]
^ पैरा. 5 यहाँ “इस्राएल,” दो गोत्रों से बने यहूदा के राज्य को कहा गया है।
^ पैरा. 14 यशायाह के इन शब्दों से ज़ाहिर होता है कि उसके दिनों में इलाज कैसे किया जाता था। बाइबल शोधकर्ता ई. एच. प्लमट्रा कहते हैं: “सड़े हुए घाव से मवाद निकालने के लिए पहले उसे ‘बांधा’ या ‘दबाया’ जाता था; फिर जैसे हिजकिय्याह के साथ किया गया, (अध्या. 28.21) घाव पर पुलटिस या मलहम लगाकर उसे ‘बाँध’ दिया जाता था और फिर फोड़े को साफ रखने के लिए घाव भरनेवाली कोई दवा या फिर जैसे लूका 10.34 में बताया है, तेल और दाखमधु लगा दिया जाता था।”
^ पैरा. 20 सी. एफ. काइल और एफ. डीलिश की किताब पुराने नियम पर व्याख्या (अँग्रेज़ी) कहती है: “यहाँ भविष्यवक्ता के संदेश का एक भाग पूरा होता है। इस आयत के बाद इस संदेश को दो भागों में बाँटा गया है, यह हमें आयत 9 और 10 के बीच छोड़ी गयी जगह से पता चलता है। जगह छोड़कर या लाइन को आधे में ही छोड़कर छोटे-बड़े भागों को अलग करने का यह तरीका, स्वर-चिन्हों या उच्चारण-चिन्हों की ईजाद से भी पहले से चला आ रहा है और प्राचीनकाल की परंपरा पर आधारित है।”
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 20 पर तसवीर]
सदोम और अमोरा के जैसे यहूदा सदा तक उजाड़ नहीं रहेगा