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एक प्राचीन भविष्यवक्‍ता का आज हमारे लिए संदेश

एक प्राचीन भविष्यवक्‍ता का आज हमारे लिए संदेश

पहला अध्याय

एक प्राचीन भविष्यवक्‍ता का आज हमारे लिए संदेश

यशायाह 1:1

1, 2. (क) आज दुनिया की हालत कैसी है? (ख) अमरीका के एक सीनेट सदस्य ने समाज के पतन पर अपनी चिंता कैसे ज़ाहिर की?

आज ऐसा कौन है जो दुनिया की मुसीबतों के दलदल से निकलना नहीं चाहता? मगर हमारे चाहने से ही हमारी हर इच्छा पूरी नहीं हो जाती! हम अमन-चैन से जीने के ख्वाब तो देखते हैं, मगर जहाँ देखो वहाँ जंग-ही-जंग हो रही है। हमारी ख्वाहिश है कि कोई कायदा-कानून हो मगर लूटमार, बलात्कार, कत्लेआम की दिन-ब-दिन बढ़ती वारदातें रोके नहीं रुकतीं। हम चाहते तो हैं कि लोगों पर भरोसा करें, मगर अपने जान-माल के लिए हमें घरों में ताले लगाकर रहना पड़ता है। हम अपने कलेजे के टुकड़े, अपने बच्चों को एक अच्छा इंसान बनाने के लिए बड़े जतन से उनकी परवरिश तो करते हैं, मगर हमारी लाख कोशिशों के बावजूद वे गलत सोहबत में पड़कर हमारे हाथों से निकल जाते हैं, और हम पथरायी आँखों से तमाशा देखते रह जाते हैं।

2 आप भी अय्यूब की इस बात से सहमत होंगे, जिसने कहा था कि इंसान की छोटी-सी ज़िंदगी ‘दुखों से भरी रहती है।’ (अय्यूब 14:1) खासकर आज के मुश्‍किल हालात में यह बात कितनी सच लगती है, क्योंकि आज जिस कदर समाज बुराइयों के दलदल में धँसता जा रहा है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ। अमरीका के एक सीनेट सदस्य ने कहा: “शीत युद्ध तो खत्म हो चुका है, मगर दुःख की बात है कि आज दुनिया, जाति और धर्म के नाम पर होनेवाले वहशियाना कत्लेआम का अखाड़ा बनती जा रही है। . . . हमारे आदर्श इस कदर गिर चुके हैं कि बहुत-से नौजवानों के लिए सही-गलत के कोई मायने ही नहीं रह गए। उन्हें उम्मीद की कोई किरण नज़र नहीं आती, वे मायूस हो चुके हैं और मुसीबतों के भँवर में फँसते जा रहे हैं। और इसका अंजाम हम ही भुगत रहे हैं। माँ-बाप बच्चों की परवाह नहीं करते, तलाक की गिनती आसमान छू रही है, मासूम बच्चों को हवस का शिकार बनाया जा रहा है, कच्ची उम्र की लड़कियाँ माँ बन रही हैं, पढ़ाई छोड़कर बैठ जानेवाले बच्चों की गिनती बढ़ रही है, ड्रग्स की हर जगह भरमार है, जहाँ देखो गलियों, सड़कों पर गुंडागर्दी और खून-खराबा हो रहा है। यह तो ऐसा हुआ मानो हमारा घर, शीत युद्ध नाम के बड़े भूकंप से तो बच गया, मगर अब इसकी दीवारों में दीमक लग गई है जो इसे खोखला बनाती जा रही है।”

3. बाइबल की खासकर कौन-सी किताब हमें अच्छे भविष्य की उम्मीद दिलाती है?

3 मगर, इन सब बातों से हमें निराश होने की कोई ज़रूरत नहीं है। ऐसे बुरे हालात के बावजूद हम अच्छे भविष्य की उम्मीद कर सकते हैं। आज से करीब 2,700 साल पहले मध्यपूर्व में रहनेवाले एक भविष्यवक्‍ता को परमेश्‍वर ने ऐसी कई भविष्यवाणियाँ सुनाने के लिए प्रेरित किया जो खासकर आज हमारे दिनों के लिए मायने रखती हैं। ये भविष्यवाणियाँ बाइबल में उसी भविष्यवक्‍ता के नाम से लिखी किताब में पायी जाती हैं और उस किताब का नाम है—यशायाह। यशायाह कौन था, और हम यह क्यों कह सकते हैं कि उसने करीब तीन हज़ार साल पहले जो भविष्यवाणियाँ लिखी थीं, वे आज हमारे ज़माने में सारे जगत को उजियाला दे सकती हैं?

खलबली के माहौल में जीनेवाला एक धर्मी पुरुष

4. यशायाह कौन था और वह किस दौरान यहोवा के भविष्यवक्‍ता की हैसियत से सेवा कर रहा था?

4 अपनी किताब की पहली आयत में, यशायाह अपने बारे में बताता है कि वह ‘आमोस का पुत्र’ * था और उसने “उज्जिय्याह, योताम, आहाज, और हिजकिय्याह नाम यहूदा के राजाओं के दिनों में” परमेश्‍वर के भविष्यवक्‍ता के तौर पर सेवा की थी। (यशायाह 1:1) इसका मतलब है कि कम-से-कम 46 साल तक यशायाह ने यहूदा देश में भविष्यवक्‍ता के तौर पर काम किया था। उसका सेवा-काल सा.यु.पू. 778 के आसपास, उज्जिय्याह के राज के अंत में शुरू हुआ।

5, 6. यशायाह और उसके परिवार के बारे में क्या बात साफ ज़ाहिर है, और ऐसा हम क्यों कहते हैं?

5 बाइबल के दूसरे कई भविष्यवक्‍ताओं की निजी ज़िंदगी के बारे में हम जितना जानते हैं, उसके मुकाबले यशायाह के बारे में हमें बहुत कम जानकारी मिलती है। उसके बारे में हम बस इतना जानते हैं कि वह शादी-शुदा था और जैसा कि उसने खुद लिखा, उसकी पत्नी एक “नबिया” थी। (यशायाह 8:3, NHT) मैक्लिंटॉक और स्ट्राँग के विश्‍वकोश (साइक्लोपीडिया ऑफ बिब्लिकल, थियॉलाजिकल, एण्ड एक्लीसियास्टिकल लिट्रेचर) के मुताबिक, यशायाह का अपनी पत्नी को “नबिया” कहना दिखाता है कि उसकी शादी-शुदा ज़िंदगी “न सिर्फ भविष्यवाणी करने की उसकी ज़िम्मेदारी से जुड़ी हुई थी बल्कि उसकी शादी-शुदा ज़िंदगी और उसकी ज़िम्मेदारी में इतना गहरा संबंध था कि उन्हें अलग नहीं किया जा सकता था।” इसलिए हो सकता है कि प्राचीन इस्राएल में परमेश्‍वर की सेवा करनेवाली कुछ और स्त्रियों की तरह, यशायाह की पत्नी को भी भविष्यवाणी करने का काम सौंपा गया था।—न्यायियों 4:4; 2 राजा 22:14.

6 यशायाह और उसकी पत्नी के कम-से-कम दो बेटे थे, और दोनों को ऐसे नाम दिए गए जिनमें भविष्यवाणी छिपी हुई थी। पहिलौठे का नाम शार्याशूब था। जब यशायाह, दुष्ट राजा आहाज को परमेश्‍वर का पैगाम सुनाने गया तो उसका बेटा शार्याशूब भी उसके साथ था। (यशायाह 7:3) इससे साफ ज़ाहिर होता है कि यशायाह और उसकी पत्नी ने यहोवा की उपासना में अपने पूरे परिवार को शामिल किया। आज, शादी-शुदा जोड़ों के लिए यह क्या ही उत्तम मिसाल है!

7. यशायाह के दिनों में यहूदा देश के हालात कैसे थे, बताइए।

7 यशायाह और उसका परिवार, ऐसे वक्‍त में जी रहा था जब यहूदा देश में चारों तरफ खलबली मची हुई थी। देश की राजनैतिक हालत खराब थी, अदालतों में रिश्‍वत दिए बिना काम नहीं होता था और पाखंडियों ने धर्म को सिर्फ एक रस्म बनाकर रख दिया था। पहाड़ियों की चोटियाँ झूठे देवी-देवताओं की वेदियों से भरी पड़ी थीं। और-तो-और, कुछ राजाओं ने भी झूठे देवताओं की उपासना को बढ़ावा दिया था। मिसाल के तौर पर, राजा आहाज न सिर्फ अपनी प्रजा को मूर्तिपूजा करने की इजाज़त दे रहा था बल्कि खुद भी एक मूर्तिपूजक बन गया था। इतना ही नहीं, उसने कनानियों के देवता मोलेक को खुश करने के लिए बलि के तौर पर अपने ही बेटे को “आग में चलवाया।” * (2 राजा 16:3,4, किताब-ए-मुकद्दस;  2 इतिहास 28:3,4) जी हाँ, ये सारे काम उन्हीं लोगों के बीच हो रहे थे, जो यहोवा के चुने हुए लोग थे, वे लोग जिनके साथ उसने वाचा बाँधी थी!—निर्गमन 19:5-8.

8. (क) राजा उज्जिय्याह और योताम ने कैसी मिसाल रखी और क्या लोग उनकी मिसाल पर चले? (ख) ढीठ लोगों के बीच यशायाह ने कैसे हिम्मत दिखायी?

8 मगर तारीफ की बात यह है कि यशायाह के दिनों में गिने-चुने आम लोगों के अलावा ऐसे कुछ राजा भी थे, जिन्होंने यहोवा की सच्ची उपासना को बढ़ाने की जी-जान से कोशिश की। इनमें से एक था राजा उज्जिय्याह, जिसने वही किया “जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था।” मगर उसके राज के दौरान भी, प्रजा के लोग “[ऊंचे स्थानों] पर बलि चढ़ाते, और धूप जलाते रहे।” (2 राजा 15:3,4) उसके बाद, राजा योताम ने भी “वह किया, जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है।” मगर, “प्रजा के लोग तब भी बिगड़ी चाल चलते थे।” (2 इतिहास 27:2) जी हाँ, भविष्यवक्‍ता यशायाह के सेवा-काल के ज़्यादातर समय, यहूदा राज्य आध्यात्मिक और नैतिक रूप से बहुत गिरी हुई हालत में था। और जिन गिने-चुने राजाओं ने अच्छी मिसाल रखी भी तो ज़्यादातर लोगों पर उनका कोई असर नहीं पड़ा। आप समझ सकते हैं कि ऐसे ढीठ लोगों को परमेश्‍वर का संदेश सुनाना कोई आसान काम नहीं था। मगर जब यहोवा ने पूछा, “मैं किस को भेजूं, और हमारी ओर से कौन जाएगा?” तब यशायाह बगलें नहीं झाँकने लगा। बल्कि उसने बेझिझक होकर जवाब दिया: “मैं यहां हूं! मुझे भेज।”—यशायाह 6:8.

उद्धार का संदेश

9. यशायाह के नाम का मतलब क्या है, और उसके नाम का मतलब उसकी किताब के मुख्य विषय से कैसे जुड़ा है?

9 यशायाह के नाम का मतलब है, “यहोवा की ओर से उद्धार” और उसके संदेश का मुख्य विषय भी यही था। माना कि यशायाह की कुछ भविष्यवाणियाँ परमेश्‍वर की ओर से आनेवाले न्यायदंड के बारे में हैं। मगर उनमें भी यहोवा के उद्धार के ऐलान की गूँज साफ सुनाई देती है। बार-बार यशायाह कहता है कि कैसे, अपने ठहराए हुए वक्‍त पर यहोवा, इस्राएलियों को बाबुल की बँधुआई से छुड़ाएगा, बचे हुओं के लिए सिय्योन लौटने का रास्ता तैयार करेगा और उस देश की शोभा बिलकुल वैसी ही हो जाएगी जैसी पहले थी। बेशक, अपने प्यारे यरूशलेम के बारे में भविष्यवाणी करने और लिखने के इस अनमोल अवसर ने यशायाह को ज़िंदगी की सबसे बड़ी खुशी दी!

10, 11. (क) आज यशायाह की किताब पढ़ने में हमें क्यों दिलचस्पी लेनी चाहिए? (ख) यशायाह की किताब मसीहा की तरफ हमारा ध्यान कैसे खींचती है?

10 मगर उद्धार और न्यायदंड के इन संदेशों से हमारा क्या लेना-देना? हम इस बात से खुश हो सकते हैं कि यशायाह की भविष्यवाणियाँ सिर्फ दो गोत्रों से बने यहूदा राज्य के लिए ही नहीं थीं बल्कि उसके संदेश हमारे ज़माने के लिए भी खास अर्थ रखते हैं। यशायाह बहुत ही खूबसूरत और जीती-जागती तसवीर पेश करता है कि कैसे बहुत जल्द परमेश्‍वर का राज्य इस धरती पर शानदार आशीषें लाएगा। और इस बारे में यशायाह ने अपनी कई भविष्यवाणियों में परमेश्‍वर के राज्य के राजा और आनेवाले मसीहा यानी यीशु की तरफ इशारा किया। (दानिय्येल 9:25; यूहन्‍ना 12:41) वाकई, यह कोई संयोग नहीं कि यीशु और यशायाह के नाम का मतलब लगभग एक ही है। यीशु के नाम का मतलब है, “यहोवा ही उद्धार है।”

11 यह सच है कि यीशु का जन्म यशायाह के दिनों से लगभग 700 साल बाद हुआ। फिर भी, यशायाह की किताब में मसीहा के बारे में की गयी भविष्यवाणियों का एक-एक शब्द इतना सही है और इनमें ऐसी बारीकियाँ दी गयी हैं कि पढ़ते वक्‍त ऐसा लगता है मानो किसी चश्‍मदीद गवाह ने यीशु के जीवन की सारी घटनाओं का हाल इनमें लिखा हो। यही देखकर एक विद्वान खुद को यह कहने से ना रोक सके कि यशायाह की किताब “सुसमाचार की पाँचवीं पुस्तक” है। इसलिए, ताज्जुब नहीं कि मसीहा की पहचान कराने के लिए, यीशु और उसके प्रेरितों ने सबसे ज़्यादा यशायाह की किताब से ही हवाले दिए।

12. हम क्यों पूरे उत्साह से यशायाह की किताब का अध्ययन शुरू कर रहे हैं?

12 यशायाह अपनी कलम से ऐसे “नए आकाश और नई पृथ्वी” की शानदार तसवीर पेश करता है, जिनमें “एक राजा धर्म से राज्य करेगा,” और शासक न्याय से हुकूमत करेंगे। (यशायाह 32:1,2; 65:17,18; 2 पतरस 3:13) इस तरह यशायाह की किताब हमें परमेश्‍वर के उस राज्य की शानदार आशा देती है, जिसका राजा यीशु मसीह होगा। इस किताब से हमें हौसला मिलता है कि हम ज़िंदगी का हर दिन, खुश रहकर और ‘[यहोवा] से उद्धार पाने’ की आस लगाए हुए जीएँ! (यशायाह 25:9; 40:28-31) इसलिए, आइए हम यशायाह की किताब के इस अनमोल संदेश का दिल लगाकर अध्ययन करें। ऐसा करने से परमेश्‍वर के वादों पर हमारा भरोसा और भी मज़बूत होगा। इसके अलावा, हमारा यह विश्‍वास और भी पक्का हो जाएगा कि सिर्फ यहोवा ही हमारा उद्धारकर्ता है।

[फुटनोट]

^ पैरा. 4 ध्यान दीजिए कि यशायाह का पिता आमोस, वह आमोस भविष्यवक्‍ता नहीं था जिसने उज्जिय्याह के राज की शुरूआत में भविष्यवाणी की थी और जिसने बाइबल में पाई जानेवाली आमोस की किताब लिखी थी।

^ पैरा. 7 कुछ लोगों का कहना है कि ‘आग में चलवाने’ का मतलब सिर्फ शुद्धिकरण की रस्म हो सकती है। मगर, आसपास की आयतों से पता चलता है कि ये शब्द सचमुच आग में बलि करने के बारे में ही बात कर रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि कनानियों के अलावा धर्मत्यागी इस्राएली भी अपने बच्चों की बलि चढ़ाने लगे थे।—व्यवस्थाविवरण 12:31; भजन 106:37,38.

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 7 पर बक्स/तसवीर]

उसके नाम का मतलब: “यहोवा की ओर से उद्धार”

परिवार: शादी-शुदा, और कम-से-कम दो बेटों का पिता

रहनेवाला: यरूशलेम का

सेवा-काल: कम-से-कम 46 साल, करीब सा.यु.पू. 778 से सा.यु.पू. 732 के कुछ समय बाद तक

उस वक्‍त यहूदा देश के राजा: उज्जिय्याह, योताम, आहाज, हिजकिय्याह

उस वक्‍त के दूसरे भविष्यवक्‍ता: मीका, होशे, ओदेद

[पेज 6 पर तसवीरें]

यशायाह और उसकी पत्नी ने यहोवा की उपासना में अपने पूरे परिवार को शामिल किया