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जातियों के खिलाफ यहोवा की युक्‍ति

जातियों के खिलाफ यहोवा की युक्‍ति

पंद्रहवाँ अध्याय

जातियों के खिलाफ यहोवा की युक्‍ति

यशायाह 14:24–19:25

1. अश्‍शूर के खिलाफ सुनाए गए किस न्यायदंड के बारे में यशायाह ने लिखा?

यहोवा चाहे तो अपने लोगों को उनकी दुष्टता की सज़ा देने के लिए दूसरी जातियों का इस्तेमाल कर सकता है। फिर भी, वह इन जातियों की हद-से-ज़्यादा क्रूरता, उनके घमंड और शुद्ध उपासना के खिलाफ उनकी नफरत को अनदेखा नहीं करता। इसीलिए, बहुत पहले उसने यशायाह को प्रेरित किया कि वह ‘बाबुल के विषय एक भारी भविष्यवाणी’ लिखे। (यशायाह 13:1) यहोवा के चुने हुए लोगों को बहुत समय के बाद जाकर कहीं बाबुल से खतरा होगा, अभी तो यशायाह के दिनों में अश्‍शूर उन पर ज़ुल्म ढा रहा है। अश्‍शूर, उत्तर के इस्राएल राज्य को तबाह कर चुका है और वह यहूदा को भी काफी हद तक तहस-नहस कर चुका है। मगर अश्‍शूर की यह जीत बस कुछ ही दिनों की है। यशायाह लिखता है: “सेनाओं के यहोवा ने यह शपथ खाई है, नि:सन्देह जैसा मैं ने ठाना है, वैसा ही हो जाएगा, . . . कि मैं अश्‍शूर को अपने ही देश में तोड़ दूंगा, और अपने पहाड़ों पर उसे कुचल डालूंगा; तब उसका जूआ उनकी गर्दनों पर से और उसका बोझ उनके कंधों पर से उतर जाएगा।” (यशायाह 14:24,25) यशायाह के यह भविष्यवाणी करने के कुछ ही समय बाद, यहूदा के दिल से अश्‍शूरियों का डर हमेशा-हमेशा के लिए दूर कर दिया गया।

2, 3. (क) प्राचीनकाल में, यहोवा ने किसके खिलाफ अपना हाथ बढ़ाया था? (ख) यहोवा “सब जातियों” के खिलाफ अपना हाथ बढ़ाता है, इसका क्या मतलब है?

2 लेकिन, ऐसे और भी देश हैं जो परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों से दुश्‍मनी रखते हैं, उनका क्या होगा? उनका भी न्याय किया जाएगा। यशायाह ऐलान करता है: “यही युक्‍ति सारी पृथ्वी के लिये ठहराई गई है; और यह वही हाथ है जो सब जातियों पर बढ़ा हुआ है। क्योंकि सेनाओं के यहोवा ने युक्‍ति की है और कौन उसको टाल सकता है? उसका हाथ बढ़ाया गया है, उसे कौन रोक सकता है?” (यशायाह 14:26,27) यहोवा की “युक्‍ति” सिर्फ उसकी एक सलाह या विचार नहीं है। यह उसका अटल फैसला, उसका हुक्म है। (यिर्मयाह 49:20,30) परमेश्‍वर का “हाथ” उसकी वह शक्‍ति है जिसे वह काम में लाता है। यशायाह के 14वें अध्याय की आखरी आयतों और 15 से 19 अध्याय में बताया गया है कि यहोवा पलिश्‍तीन, मोआब, दमिश्‍क, कूश और मिस्र के खिलाफ युक्‍ति करेगा।

3 मगर, यशायाह कहता है कि यहोवा का हाथ “सब जातियों” या देशों के खिलाफ बढ़ा हुआ है। इसलिए, जबकि यशायाह की इन भविष्यवाणियों की सबसे पहली पूर्ति प्राचीनकाल में हुई थी, फिर भी सिद्धांत के मुताबिक ये भविष्यवाणियाँ “अन्तसमय” पर भी लागू होती हैं जब यहोवा इस धरती के सारे राज्यों के खिलाफ अपना हाथ बढ़ाएगा। (दानिय्येल 2:44; 12:9; रोमियों 15:4; प्रकाशितवाक्य 19:11,19-21) बहुत पहले से ही, सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर यहोवा पूरे यकीन के साथ अपनी युक्‍ति ज़ाहिर करता है। और उसके बढ़े हुए हाथ को कोई भी नहीं रोक सकता।—भजन 33:11; यशायाह 46:10.

पलिश्‍तीन के खिलाफ ‘एक उड़नेवाला अग्निसर्प’

4. पलिश्‍तीन के खिलाफ यहोवा ने अपनी भारी भविष्यवाणी में क्या-क्या कहा?

4 सबसे पहले पलिश्‍तियों की बारी आती है। “जिस वर्ष में आहाज़ राजा मर गया उसी वर्ष यह भारी भविष्यद्वाणी हुई: हे सारे पलिश्‍तीन तू इसलिये आनन्द न कर, कि तेरे मारनेवाले की लाठी टूट गई, क्योंकि सर्प की जड़ से एक काला नाग उत्पन्‍न होगा, और उसका फल एक उड़नेवाला और तेज विषवाला अग्निसर्प होगा।”—यशायाह 14:28,29.

5, 6. (क) पलिश्‍तियों के लिए उज्जिय्याह एक सर्प की तरह कैसे था? (ख) पलिश्‍तीन के लिए हिजकिय्याह क्या साबित होता है?

5 यहूदा देश के राजा उज्जिय्याह में पलिश्‍तीन देश के खतरे को रोकने की ताकत थी। (2 इतिहास 26:6-8) पलिश्‍तियों के लिए उज्जिय्याह एक सर्प की तरह था और वह अपनी लाठी से इस विरोधी पड़ोसी को मारता रहा। जब उज्जिय्याह की मौत हुई तो ‘उसकी लाठी टूट गई।’ उसके बाद योताम ने राज किया जो खुद तो यहोवा का वफादार था, मगर “प्रजा के लोग तब भी बिगड़ी चाल चलते थे।” उसके बाद आहाज राजा बना। तब हालात बदल गए, और पलिश्‍ती यहूदा पर चढ़ाई करने में कामयाब हो गए। (2 इतिहास 27:2; 28:17,18) मगर अब, सा.यु.पू. 746 में, राजा आहाज की मौत के बाद हालात फिर से बदल रहे हैं। नौजवान हिजकिय्याह राज करने लगता है। अगर पलिश्‍ती ऐसा सोचते हैं कि वे अब भी अपनी मनमानी करते रहेंगे तो यह उनकी बहुत बड़ी गलतफहमी है। हिजकिय्याह उनका जानी दुश्‍मन साबित होता है। उज्जिय्याह का वंशज (उसकी “जड़” से उत्पन्‍न होनेवाला “फल”), हिजकिय्याह ‘उड़नेवाले अग्निसर्प’ जैसा निकला, जो बिजली की सी फुर्ती के साथ हमला करता है और उसके डंक से ऐसी जलन पैदा होती है जैसी साँप के ज़हर से शिकार के शरीर में होती है।

6 नये राजा को अग्निसर्प कहना बिलकुल ठीक है। “[हिजकिय्याह ही] ने पलिश्‍तियों को गाज्ज़ा और उसके सिवानों तक . . . मारा” था। (2 राजा 18:8) अश्‍शूर के राजा सन्हेरीब के ऐतिहासिक लेखों के मुताबिक, पलिश्‍ती हिजकिय्याह के अधीन हो गए थे। ‘कंगाल,’ यानी यहूदा का कमज़ोर राज्य अब निडर हो जाता है और उसके पास खाने-पीने की बहुतायत हो जाती है, मगर उसके सतानेवाले पलिश्‍ती अकाल से तड़पते हैं।यशायाह 14:30,31 पढ़िए।

7. अपने पक्के विश्‍वास का सबूत देते हुए, हिजकिय्याह को यरूशलेम में मौजूद राजदूतों से क्या कहना चाहिए?

7 लगता है कि यहूदा में दूसरे देशों के कुछ राजदूत मौजूद हैं। वे शायद अश्‍शूर से लोहा लेने के लिए यहूदा की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहते हैं। उन्हें क्या जवाब दिया जाना चाहिए? “अन्यजातियों के दूतों को क्या उत्तर दिया जाएगा?” क्या अपनी हिफाज़त के लिए हिजकिय्याह को दूसरे देशों से हाथ मिला लेना चाहिए? बिलकुल नहीं! उसे इन दूतों से कहना चाहिए: “यहोवा ने सिय्योन की नेव डाली है, और उसकी प्रजा के दीन लोग उस में शरण लेंगे।” (यशायाह 14:32) राजा को यहोवा पर पूरा-पूरा भरोसा रखना चाहिए। सिय्योन की नींव पक्की है। अश्‍शूर से आनेवाला तूफान भी, परमेश्‍वर के लोगों के इस मज़बूत आशियाने को हिला नहीं पाएगा।—भजन 46:1-7.

8. (क) किस तरह आज कुछ देश पलिश्‍तीन जैसे हैं? (ख) जैसे यहोवा ने प्राचीनकाल में किया था, वैसे ही आज उसने अपने लोगों को सहारा देने के लिए क्या किया है?

8 पलिश्‍तीन की तरह, आज कुछ देश परमेश्‍वर के उपासकों को रोकने के लिए उनको बड़ी बेदर्दी से सताते हैं। यहोवा के मसीही साक्षियों को कैद करके जेलों में और यातना शिविरों में डाला गया है। उन पर पाबंदी लगायी गयी है। बहुतों को मौत के घाट उतार दिया गया है। विरोधी, ‘धर्मी का प्राण लेने को दल बान्धने’ में अब भी लगे हुए हैं। (भजन 94:21) इन दुश्‍मनों को, मसीहियों का छोटा-सा दल “कंगालों” और ‘दरिद्रों’ के दल जैसा दिखाई देता है। मगर यहोवा का सहारा पाने की वजह से, उसके लोगों के पास ढेर सारा आध्यात्मिक भोजन है जबकि उनके दुश्‍मन भूखे-प्यासे मर रहे हैं। (यशायाह 65:13,14; आमोस 8:11) जब यहोवा आज के ज़माने के पलिश्‍तियों के खिलाफ अपना हाथ बढ़ाता है तब ये “दीन” लोग उसकी हिफाज़त में सही सलामत रहते हैं। कहाँ? “परमेश्‍वर के घराने” में, जिसकी पक्की नींव के कोने का पत्थर यीशु है। (इफिसियों 2:19,20) और “स्वर्गीय यरूशलेम” उनकी हिफाज़त करेगा। यह स्वर्गीय यरूशलेम यहोवा का स्वर्गीय राज्य है जिसका राजा यीशु मसीह है।—इब्रानियों 12:22; प्रकाशितवाक्य 14:1.

मोआब खामोश किया जाता है

9. अगली भारी भविष्यवाणी किसके खिलाफ की जाती है, और कैसे इन लोगों ने परमेश्‍वर के लोगों से दुश्‍मनी निभायी है?

9 मृत सागर के पूर्व में इस्राएल का एक और पड़ोसी है, मोआब। इस्राएल का पलिश्‍तियों से तो कोई रिश्‍ता नहीं है, मगर मोआबियों से है। वे उनके भाई-बंधु हैं, क्योंकि वे इब्राहीम के भतीजे लूत के वंशज हैं। (उत्पत्ति 19:37) इस रिश्‍ते के बावजूद, मोआब बरसों से इस्राएल का दुश्‍मन रहा है। मिसाल के तौर पर, मूसा के दिनों में मोआब के राजा ने बिलाम भविष्यवक्‍ता को इस उम्मीद के साथ भाड़े पर बुलाया था कि वह इस्राएलियों को शाप दे। जब ऐसा न हो सका, तो मोआब ने इस्राएल को फँसाने के लिए अनैतिकता और बाल उपासना को फंदे की तरह इस्तेमाल किया। (गिनती 22:4-6; 25:1-5) तो फिर, इसमें ताज्जुब नहीं कि यहोवा अब यशायाह को “मोआब के विषय भारी भविष्यद्वाणी” करने के लिए प्रेरित करता है!यशायाह 15:1क.

10, 11. मोआब का क्या होगा?

10 यशायाह की भविष्यवाणी मोआब के बहुत-से नगरों और इलाकों के खिलाफ दंड है, जैसे कि आर, कीर (या कीरहरासत) और दीबोन। (यशायाह 15:1ख,2क) मोआब के लोग कीरहरासत की दाख की टिकियों के लिए विलाप करेंगे, क्योंकि वह नगर इनके उत्पादन के लिए मशहूर था। (यशायाह 16:6,7) सिबमा और याजेर जो अपनी दाख की बारियों के लिए मशहूर हैं, वे भी अचानक तबाह कर दिए जाएँगे। (यशायाह 16:8-10) एग्लतशलीशिय्या, शायद जिसके नाम का मतलब है “तीन साल की बछिया,” वह नगर ऐसी गाय की तरह हो जाएगा जो जवान और हट्टी-कट्टी होने के बावजूद दर्द और तकलीफ के मारे रँभाती है। (यशायाह 15:5) उस देश की घास सूख जाएगी जबकि “दीमोन का सोता” मोआबियों के खून से लाल हो जाएगा। “निम्रीम का जल” या तो लाक्षणिक तौर पर या सचमुच में “सूख” जाएगा, शायद इसलिए कि दुश्‍मनों की फौजें उनकी नदियों के पानी को रोक देंगी।यशायाह 15:6-9.

11 मोआबी टाट ओढ़ेंगे, जो कि शोक व्यक्‍त करने के लिए पहना जाता है। वे अपनी शर्मिंदगी और मातम ज़ाहिर करने के लिए अपना सिर मुंडाकर गंजे हो जाएँगे। उनकी दाढ़ी “मुंढ़ी” हुई होगी, जो दिखाएगा कि उन्हें हद-से-ज़्यादा दुःख और अपमान झेलना पड़ रहा है। (यशायाह 15:2ख-4) अब खुद यशायाह के मन में भी हलचल पैदा होने लगती है क्योंकि उसे यकीन है कि ये न्यायदंड हर हाल में पूरे होंगे। मोआब पर आनेवाले शापों के बारे में सोचकर, तरस की भावनाएँ उसके मन की वीणा के तारों को झँझोड़कर रख देती हैं।यशायाह 16:11,12.

12. मोआब के बारे में यशायाह के शब्द कैसे पूरे हुए?

12 यह भविष्यवाणी कब पूरी होगी? बहुत जल्द। “यही वह बात है जो यहोवा ने इस से पहिले मोआब के विषय में कही थी। परन्तु अब यहोवा ने यों कहा है कि मज़दूरों के वर्षों के समान तीन वर्ष के भीतर मोआब का विभव और उसकी भीड़-भाड़ सब तुच्छ ठहरेगी; और थोड़े जो बचेंगे उनका कोई बल न होगा।” (यशायाह 16:13,14) यह भविष्यवाणी पूरी हुई। पुरातत्व से इस बात के सबूत मिले हैं कि सा.यु.पू. आठवीं सदी के दौरान, मोआब पर इतनी तबाही आयी कि उसके कई इलाकों की आबादी ना के बराबर रह गयी थी। राजा तिग्लत्पिलेसेर III लिखता है कि मोआब का राजा सालामानू उसके अधीन था और दूसरे राजाओं की तरह उसे नज़राने की रकम भेजा करता था। सन्हेरीब को मोआब के काम्मूसुनादबी राजा से नज़राना मिलता था। अश्‍शूर के सम्राटों एसर्हद्दोन और अश्‍शूरबनीपाल ने बताया कि मोआब के मुसुरी और कामाशालतू राजा उनके आधीन थे। आज मोआबी लोगों का नामो-निशान मिटे हुए सदियाँ बीत चुकी हैं। खुदाई में कुछ खंडहर मिले हैं जिन्हें मोआबी नगरों के खंडहर समझा गया था। मगर ताज्जुब की बात है कि मोआब, जो एक वक्‍त इस्राएल का इतना ज़बरदस्त दुश्‍मन था, उसके वजूद में होने का शायद ही कोई सबूत अब तक मिला है।

आज का “मोआब” मिट जाता है

13. आज कौन-सा संगठन मोआब जैसे काम कर रहा है?

13 जैसे प्राचीन मोआब था वैसा ही एक संगठन आज हमारे दिनों में मौजूद है और सारी दुनिया में फैला हुआ है। यह संगठन है ईसाईजगत, और यह ‘बड़े बाबुल’ का सबसे बड़ा भाग है। (प्रकाशितवाक्य 17:5) मोआब और इस्राएल दोनों इब्राहीम के पिता, तेरह के वंश से निकले थे। उसी तरह ईसाईजगत, आज अभिषिक्‍त मसीहियों की कलीसिया की तरह यह दावा करता है कि वह पहली सदी की मसीही कलीसिया से निकला है। (गलतियों 6:16) लेकिन जैसे मोआब भ्रष्ट था, ईसाईजगत भी भ्रष्ट है और इसने आध्यात्मिक व्यभिचार को और एक सच्चे परमेश्‍वर, यहोवा की उपासना को छोड़कर दूसरे ईश्‍वरों की उपासना करने को बढ़ावा दिया है। (याकूब 4:4; 1 यूहन्‍ना 5:21) ईसाईजगत के नेताओं ने मिलकर, उन लोगों का विरोध किया है जो परमेश्‍वर के राज्य की खुशखबरी सुनाते हैं।—मत्ती 24:9,14.

14. आज के “मोआब” के खिलाफ यहोवा की युक्‍ति के बावजूद, उस संगठन के लोगों के लिए क्या उम्मीद बाकी है?

14 मोआब को आखिर में खामोश कर दिया गया था। और यही अंजाम ईसाईजगत का भी होगा। यहोवा, आज हमारे ज़माने में अश्‍शूर जैसी एक ताकत के हाथों उसे उजाड़ डालेगा। (प्रकाशितवाक्य 17:16,17) लेकिन आज के इस “मोआब” में जो लोग हैं, उनके लिए अभी-भी उम्मीद बाकी है। मोआब के खिलाफ भविष्यवाणी के बीच में, यशायाह कहता है: “तब दया के साथ एक सिंहासन स्थिर किया जाएगा और उस पर दाऊद के तम्बू में सच्चाई के साथ एक विराजमान होगा जो सोच विचार कर सच्चा न्याय करेगा और धर्म के काम पर तत्पर रहेगा।” (यशायाह 16:5) सन्‌ 1914 में, यहोवा ने राजा दाऊद के वंश से निकले राजा, यानी यीशु की राजगद्दी को पूरी तरह स्थिर कर दिया। यीशु का राजपद यहोवा की दया ज़ाहिर करता है और इसके ज़रिए परमेश्‍वर ने राजा दाऊद के साथ अपनी वाचा पूरी की। यीशु का राजपद हमेशा तक कायम रहेगा। (भजन 72:2; 85:10,11; 89:3,4; लूका 1:32) बहुत-से नम्र लोग आज के इस “मोआब” को छोड़ चुके हैं और उन्होंने जीवन पाने के लिए खुद को यीशु के अधीन कर दिया है। (प्रकाशितवाक्य 18:4) इन लोगों को यह जानकर कितनी तसल्ली मिलती होगी कि यीशु सब देशों को सिखाएगा कि “उचित न्याय” क्या है!—मत्ती 12:18, NHT; यिर्मयाह 33:15.

दमिश्‍क खंडहर ही खंडहर हो जाता है

15, 16. (क) यहूदा से दुश्‍मनी की वजह से, दमिश्‍क और इस्राएल ने क्या-क्या किया और दमिश्‍क के लिए इसका क्या नतीजा हुआ? (ख) दमिश्‍क के खिलाफ भविष्यवाणी करते वक्‍त और किसे दंड सुनाया गया है? (ग) इस्राएल की मिसाल से आज मसीही क्या सबक सीख सकते हैं?

15 इसके बाद, यशायाह “दमिश्‍क के विषय भारी भविष्यवाणी” लिखता है। (यशायाह 17:1-6 पढ़िए।) “आराम का सिर” दमिश्‍क, इस्राएल की उत्तरी दिशा में है। (यशायाह 7:8) यहूदा के राजा आहाज के राज में, दमिश्‍क के राजा रसीन ने इस्राएल के राजा पेकह के साथ मिलकर यहूदा पर चढ़ाई की। मगर, आहाज ने अश्‍शूर के राजा तिग्लत्पिलेसेर III, से बिनती की और उसने दमिश्‍क पर चढ़ाई कर उसे जीत लिया और उसके बहुत-से निवासियों को बंधुआ बनाकर ले गया। इसके बाद, दमिश्‍क से यहूदा को कोई खतरा नहीं रहा।—2 राजा 16:5-9; 2 इतिहास 28:5,16.

16 दमिश्‍क के खिलाफ भविष्यवाणी करते वक्‍त यहोवा ने उत्तर के विश्‍वासघाती राज्य इस्राएल को भी दंड सुनाया क्योंकि उसने दमिश्‍क के साथ मिलकर यहूदा पर चढ़ाई करनी चाही थी। (यशायाह 17:3-6) इस्राएल ऐसे नज़र आएगा जैसे एक खेत में कटनी के बाद ज़रा-सा अनाज रह जाता है या ऐसा जैतून पेड़ जिसे हिलाकर उसके ज़्यादातर फल तोड़ लिए गए हों। (यशायाह 17:4-6) यहोवा के समर्पित लोगों के लिए यह मिसाल कितनी गंभीर है! यहोवा चाहता है कि उसके सेवक उसे छोड़ किसी और को भक्‍ति ना दिखाएँ, और वह सिर्फ ऐसी पवित्र सेवा स्वीकार करता है जो सच्चे दिल से की गयी हो। यही नहीं, वह उन लोगों से घृणा करता है जो अपने ही भाइयों के खिलाफ हो जाते हैं।—निर्गमन 20:5; यशायाह 17:10,11; मत्ती 24:48-50.

यहोवा पर पूरा भरोसा रखना

17, 18. (क) इस्राएल में कुछ लोग यहोवा की भारी भविष्यवाणियों को सुनकर क्या कदम उठाते हैं, मगर ज़्यादातर लोग क्या करते हैं? (ख) आज जो हो रहा है, वह हिजकिय्याह के दिनों में हुई घटनाओं से कैसे मेल खाता है?

17 यशायाह अब कहता है: “उस समय मनुष्य अपने कर्त्ता की ओर दृष्टि करेगा, और उसकी आंखें इस्राएल के पवित्र की ओर लगी रहेंगी; वह अपनी बनाई हुई वेदियों की ओर दृष्टि न करेगा, और न अपनी बनाई हुई अशेरा नाम मूरतों वा सूर्य की प्रतिमाओं की ओर देखेगा।” (यशायाह 17:7,8) जी हाँ, इस्राएल में कुछ लोगों ने यहोवा की चेतावनी पर ध्यान दिया था। मिसाल के लिए, जब यहूदा के राजा हिजकिय्याह ने, इस्राएल के लोगों को यरूशलेम आकर फसह का पर्व मनाने का न्यौता भेजा तो कुछ इस्राएलियों ने इसे स्वीकार किया और अपने यहूदी भाइयों के साथ मिलकर सच्चे परमेश्‍वर की उपासना करने के लिए दक्षिण दिशा में यहूदा देश की ओर निकल पड़े। (2 इतिहास 30:1-12) फिर भी, इस्राएल के ज़्यादातर लोगों ने यह न्यौता लानेवाले दूतों को ठट्ठों में उड़ाया। उस देश में धर्मत्याग इतना बढ़ गया है कि उसकी हालत ठीक नहीं की जा सकती। इसलिए यहोवा ने उसके खिलाफ जो युक्‍ति की वह पूरी होती है। अश्‍शूर, इस्राएल के नगरों को नाश करता है, देश उजाड़ हो जाता है और खेत-खलिहान बंजर हो जाते हैं।यशायाह 17:9-11 पढ़िए।

18 हमारे दिनों के बारे में क्या? इस्राएल देश यहोवा को छोड़कर धर्मत्यागी बन चुका था। इसलिए, जिस तरीके से हिजकिय्याह ने फिर से सच्ची उपासना शुरू करने में उस देश के कुछ लोगों की मदद करने की कोशिश की थी, उससे हमें याद आता है कि कैसे आज सच्चे मसीही, धर्मत्यागी ईसाईजगत के कुछ लोगों की मदद करने की कोशिश करते हैं। सन्‌ 1919 से, “परमेश्‍वर के इस्राएल” के दूत सारे ईसाईजगत में घूम-घूमकर लोगों को शुद्ध उपासना करने का न्यौता दे रहे हैं। (गलतियों 6:16) ज़्यादातर लोगों ने उनके इस न्यौते को ठुकरा दिया है। बहुतों ने तो इन दूतों का मज़ाक भी उड़ाया है। मगर, कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने यह न्यौता स्वीकार किया है। उनकी गिनती अब लाखों में पहुँच गयी है और वे बेहद खुश हैं कि यहोवा उन्हें सिखा रहा है, इसलिए उनकी ‘आंखें इस्राएल के पवित्र की ओर लगी रहती हैं।’ (यशायाह 54:13) उन्होंने इंसान के हाथों से बनाए देवताओं को भक्‍ति देना और उन पर भरोसा रखना छोड़ दिया है। इस तरह उन्होंने अपवित्र वेदियों पर उपासना करना छोड़ दिया है, इसके बजाय वे पूरे मन से यहोवा की ओर ताकते हैं। (भजन 146:3,4) इनमें से हरेक वही कहता है जो यशायाह के ज़माने में रहनेवाले मीका ने कहा था: “मैं यहोवा की ओर ताकता रहूंगा, मैं अपने उद्धारकर्त्ता परमेश्‍वर की बाट जोहता रहूंगा; मेरा परमेश्‍वर मेरी सुनेगा।”—मीका 7:7.

19. यहोवा किसे घुड़केगा और उन पर इसका क्या असर होगा?

19 ये लोग उनसे कितने अलग हैं जो मरनहार इंसान पर भरोसा रखते हैं! इन अंतिम दिनों में इंसान को हिंसा और अशांति के थपेड़ों ने पस्त कर दिया है। अशांत और बागी मानवजाति का “समुद्र” आज असंतोष पैदा करके उथल-पुथल मचा रहा है। (यशायाह 57:20; प्रकाशितवाक्य 8:8,9; 13:1) यहोवा खलबली मचानेवाली इस भीड़ को “घुड़केगा।” उसका स्वर्गीय राज्य, हर ऐसे संगठन और आदमी को नाश करेगा जो गड़बड़ी पैदा करता है और वे “दूर भाग जाएंगे, और ऐसे उड़ाए जाएंगे जैसे . . . धूलि बवण्डर से घुमाकर उड़ाई जाती है।”—यशायाह 17:12,13; प्रकाशितवाक्य 16:14,16.

20. सच्चे मसीहियों को देश-देश के लोग ‘लूटते’ हैं, फिर भी उन्हें किस बात का यकीन है?

20 इसका नतीजा क्या होगा? यशायाह कहता है: “सांझ को, देखो, घबराहट है! और भोर से पहिले, वे लोप हो गये हैं! हमारे नाश करनेवालों का भाग और हमारे लूटनेवाले की यही दशा होगी।” (यशायाह 17:14) यहोवा के लोगों को बहुत-से लोग लूटते हैं, उनके साथ कठोरता से पेश आते हैं और उनकी बेइज़्ज़ती करते हैं। सच्चे मसीही इस संसार के मुख्य धर्मों का हिस्सा नहीं हैं, न ही वे बनना चाहते हैं, इसलिए पक्षपाती आलोचकों और कट्टर विरोधियों को लगता है कि वे इन्हें बड़ी आसानी से अपना शिकार बना सकते हैं। मगर परमेश्‍वर के लोगों को पूरा यकीन है कि वह “भोर” बहुत जल्द आनेवाली है जब उनकी तकलीफों का हमेशा के लिए अंत हो जाएगा।—2 थिस्सलुनीकियों 1:6-9; 1 पतरस 5:6-11.

कूश यहोवा के लिए भेंट लाता है

21, 22. अगला न्यायदंड किस देश को सुनाया जाता है, और ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखे यशायाह के शब्द कैसे पूरे होते हैं?

21 कूश देश [इथियोपिया] मिस्र की दक्षिण दिशा में है और उसने कम-से-कम दो बार यहूदा के खिलाफ चढ़ाई की है। (2 इतिहास 12:2,3; 14:1,9-15; 16:8) अब यशायाह उस देश को दंड दिए जाने की भविष्यवाणी करता है: “हाय, पंखों की फड़फड़ाहट से भरे हुए देश, तू जो कूश की नदियों के परे है।” (यशायाह 18:1-6 पढ़िए।) * यहोवा ऐलान करता है कि वह कूश को ‘काट डालेगा, और तोड़-तोड़कर अलग फेंक देगा।’

22 इतिहास देखने पर हमें पता चलता है कि सा.यु.पू. आठवीं सदी के आखिरी भाग में, कूश ने मिस्र पर कब्ज़ा करके उस पर करीब 60 साल तक राज किया था। और फिर, अश्‍शूर के सम्राटों एसर्हद्दोन और उसके बाद अश्‍शूरबनीपाल ने मिस्र पर चढ़ाई की। अश्‍शूरबनीपाल ने प्राचीन मिस्र की राजधानी थीब्ज़ को तबाह कर दिया, और इससे मिस्र अश्‍शूर के कब्ज़े में आ गया। इस घटना से नील नदी के इलाके पर कूश का अधिकार खत्म हो गया। (यशायाह 20:3-6 भी देखिए।) आज के ज़माने में कूश के बारे में क्या कहा जा सकता है?

23. आज के ज़माने का “कूश” क्या करता है, और इसका अंत क्यों हो जाता है?

23 “अन्त के समय” के बारे में दानिय्येल की भविष्यवाणी आक्रमणकारी ‘उत्तर देश के राजा’ के बारे में बताती है। इसमें यह भी बताया गया है कि कूश और लूबी यानी लिबिया के लोग उत्तर के राजा के ‘पीछे हो लेते’ हैं, और वह जो कहता है वही करते हैं। (दानिय्येल 11:40-43) इतना ही नहीं, यह भी बताया गया है कि कूश देश, “मागोग देश के गोग” की फौज में शामिल है। (यहेजकेल 38:2-5,8) जब गोग की फौज के साथ उत्तर का राजा यहोवा की पवित्र जाति पर धावा बोलता है तब उनका अंत हो जाता है। इसलिए, आज के ज़माने के “कूश” के खिलाफ भी यहोवा का हाथ बढ़ेगा, क्योंकि इसने यहोवा की हुकूमत का विरोध किया है।—यहेजकेल 38:21-23; दानिय्येल 11:45.

24. किन तरीकों से यहोवा ने जातियों से “भेंट” पायी है?

24 लेकिन, इस भविष्यवाणी में यह भी कहा है: “उस समय जिस जाति के लोग बलिष्ट और सुन्दर हैं, और जो आदि ही से डरावने होते आए हैं, . . . उस जाति से सेनाओं के यहोवा के नाम के स्थान सिय्योन पर्वत पर सेनाओं के यहोवा के पास भेंट पहुंचाई जाएगी।” (यशायाह 18:7) हालाँकि जातियाँ यहोवा की हुकूमत का विरोध करती हैं और उसे स्वीकार नहीं करतीं, फिर भी वे कई बार ऐसे काम करती हैं जिससे यहोवा के लोगों को फायदा होता है। कुछ देशों में अधिकारियों ने ऐसे कानून बनाए हैं और अदालतों ने ऐसे फैसले सुनाए हैं जिनसे यहोवा के वफादार उपासकों को कई कानूनी अधिकार मिले हैं। (प्रेरितों 5:29; प्रकाशितवाक्य 12:15,16) इसके अलावा, इन जातियों ने और भी कई तरीकों से यहोवा को भेंट चढ़ायी है। “राजा तेरे लिये भेंट ले आएंगे। . . . मिस्र से रईस आएंगें; कूशी [“भेंट लिए हुए,” NW] अपने हाथों को परमेश्‍वर की ओर फुर्ती से फैलाएंगे।” (भजन 68:29-31) आज के ज़माने के लाखों “कूशी” जो यहोवा का भय मानते हैं, वे यहोवा की उपासना करके “भेंट” चढ़ा रहे हैं। (मलाकी 1:11) वे सारी ज़मीन पर परमेश्‍वर के राज्य की खुशखबरी प्रचार करने के बड़े काम में हाथ बँटा रहे हैं। (मत्ती 24:14; प्रकाशितवाक्य 14:6,7) यह यहोवा को दी जा रही क्या ही बढ़िया भेंट है!—इब्रानियों 13:15.

मिस्रियों का हृदय पानी-पानी हो जाता है

25. यशायाह 19:1-11 की भविष्यवाणियों की पूर्ति में, प्राचीन मिस्र के साथ क्या-क्या हुआ?

25 यहूदा के दक्षिण में उसका पड़ोसी देश है मिस्र, जो परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों का बहुत पुराना दुश्‍मन है। यशायाह के 19वें अध्याय में बताया गया है कि यशायाह के जीवनकाल में मिस्र में बहुत उथल-पुथल मची हुई थी। मिस्र में गृह-युद्ध चल रहा था और “एक नगर दूसरे नगर से, एक राज्य दूसरे राज्य से युद्ध” कर रहा था। (यशायाह 19:2,13,14, नयी हिन्दी बाइबिल) इतिहासकार इस बात का सबूत देते हैं कि उस देश के अलग-अलग हिस्सों पर, एक ही वक्‍त में दो विरोधी राजवंश हुकूमत कर रहे थे। मिस्र को अपने जिस ज्ञान पर बड़ा फख्र था, न तो वह ज्ञान, न ही उसकी ‘मूरतें और ओझा’ उसे “एक कठोर स्वामी के हाथ” से बचा पाए। (यशायाह 19:3,4) मिस्र पर एक-के-बाद-एक अश्‍शूर, बाबुल, फारस, यूनान और रोम ने धावा बोलकर उसे अपने अधीन कर लिया। ये सारी घटनाएँ यशायाह 19:1-11 की भविष्यवाणियों को पूरा करती हैं।

26. यशायाह की भविष्यवाणी जब आज के “मिस्र” पर बड़े पैमाने पर पूरी होगी, तो यहोवा के न्यायदंड का मिस्र के लोगों पर क्या असर होगा?

26 मगर, बाइबल की भाषा में अकसर शैतान की दुनिया को मिस्र बताया गया है। (यहेजकेल 29:3; योएल 3:19; प्रकाशितवाक्य 11:8) इसलिए, “मिस्र के विषय में” यशायाह की “भारी भविष्यवाणी” क्या बड़े पैमाने पर भी पूरी होती है? जी हाँ, बेशक पूरी होती है! इस भविष्यवाणी की शुरूआत के शब्दों पर हर किसी का ध्यान खिंच जाता है: “देखो, यहोवा शीघ्र उड़नेवाले बादल पर सवार होकर मिस्र में आ रहा है; और मिस्र की मूरतें उसके आने से थरथरा उठेंगी, और मिस्रियों का हृदय पानी-पानी हो जाएगा।” (यशायाह 19:1,2क) यहोवा जल्द ही शैतान के संगठन के खिलाफ कदम उठाएगा। उस वक्‍त, इस दुनिया के देवता किसी काम नहीं आएँगे। (भजन 96:5; 97:7) डर के मारे “मिस्रियों का हृदय पानी-पानी हो जाएगा।” यीशु ने भविष्यवाणी में बताया था कि उस समय क्या होगा: “देश देश के लोगों को संकट होगा; क्योंकि वे समुद्र के गरजने और लहरों के कोलाहल से घबरा जाएंगे। और भय के कारण और संसार पर आनेवाली घटनाओं की बाट देखते देखते लोगों के जी में जी न रहेगा।”—लूका 21:25,26.

27. “मिस्र” में कैसी अंदरूनी फूट पड़ने की भविष्यवाणी की गयी थी, और यह भविष्यवाणी आज कैसे पूरी हो रही है?

27 जब यहोवा न्याय करनेवाला होगा, तब उससे पहले क्या होगा इसकी भविष्यवाणी करते हुए वह कहता है: “मैं मिस्र निवासियों को एक-दूसरे के विरुद्ध उकसाऊंगा; वे आपस में लड़ेंगे: भाई, भाई के विरुद्ध पड़ोसी, पड़ोसी के विरुद्ध। एक नगर दूसरे नगर से, एक राज्य दूसरे राज्य से युद्ध करेगा।” (यशायाह 19:2, नयी हिन्दी बाइबिल) सन्‌ 1914 में परमेश्‍वर के राज्य के शुरू होने के बाद से, यीशु की “उपस्थिति का चिन्ह” (NW) नज़र आया है, क्योंकि एक देश दूसरे देश के खिलाफ और एक राज्य दूसरे राज्य के खिलाफ चढ़ाई कर रहा है। जातियों और कबीलों के बीच कत्लेआम, खून-खराबा और जातीय सफाई कहलानेवाले जन-संहार के नाम पर इन अंतिम दिनों में लाखों लोगों को मौत के घाट उतारा गया है। जैसे-जैसे दुनिया का अंत करीब आता जाएगा, वैसे-वैसे ये ‘पीड़ाएँ’ बद-से-बदतर होती जाएँगी।—मत्ती 24:3,7,8.

28. न्याय के दिन में, क्या झूठा धर्म इस दुनिया को बचा पाएगा?

28“मिस्रियों की बुद्धि मारी जाएगी और मैं उनकी युक्‍तियों को व्यर्थ कर दूंगा; और वे अपनी मूरतों के पास और ओझों और फुसफुसानेवाले टोनहों के पास जा जाकर उन से पूछेंगे।” (यशायाह 19:3) जब मूसा, फिरौन के सामने हाज़िर हुआ, तो मिस्र के पंडितों को मुँह की खानी पड़ी क्योंकि वे यहोवा की ताकत की बराबरी करने के काबिल नहीं थे। (निर्गमन 8:18,19; प्रेरितों 13:8; 2 तीमुथियुस 3:8) उसी तरह, जब न्याय का दिन आएगा तब झूठा धर्म इस भ्रष्ट दुनिया को बचाने के काबिल नहीं होगा। (यशायाह 47:1,11-13 से तुलना कीजिए।) आगे चलकर मिस्र “एक कठोर स्वामी” यानी अश्‍शूर के अधीन आ गया। (यशायाह 19:4) यह इस बात की भविष्यवाणी है कि इस दुनिया का बुरा वक्‍त आनेवाला है।

29. जब यहोवा का दिन आएगा, तब राजनैतिक नेता कितनी मदद कर पाएँगे?

29 राजनैतिक नेताओं के बारे में क्या? क्या वे इस दुनिया को बचा पाएँगे? “सोअन के उच्चाधिकारी तो निरे मूर्ख हैं; फ़िरौन के बुद्धिमान सलाहकारों की सलाह मूर्खतापूर्ण ठहरी है।” (NHT) (यशायाह 19:5-11 पढ़िए।) यह उम्मीद करना कितनी बड़ी मूर्खता है कि न्याय के दिन इंसानी सलाहकार हमारे किसी काम आ सकेंगे! चाहे वे सारी दुनिया का ज्ञान अपने हाथ में लेकर क्यों ना घूमते हों, फिर भी उनके पास वह बुद्धि नहीं जो परमेश्‍वर देता है। (1 कुरिन्थियों 3:19) उन्होंने यहोवा को ठुकराकर, विज्ञान, तत्त्वज्ञान, पैसे, सुख-विलास और इन्हीं जैसी दूसरी चीज़ों को भगवान बना रखा है। इस वजह से उनके पास परमेश्‍वर के मकसदों का रत्ती भर भी ज्ञान नहीं है। वे धोखे में हैं और घबराए हुए हैं। उनके सारे काम व्यर्थ हैं। (यशायाह 19:12-15 पढ़िए।) “बुद्धिमान लज्जित हो गए, वे विस्मित हुए और पकड़े गए; देखो, उन्हों ने यहोवा के वचन को निकम्मा जाना है, उन में बुद्धि कहां रही?”—यिर्मयाह 8:9.

यहोवा के लिये चिन्ह और साक्षी

30. ‘यहूदा देश के कारण मिस्र’ किस तरह “थरथरा उठेगा”?

30 हालाँकि, जहाँ एक तरफ “मिस्र” के नेता हैं जो “स्त्रियों के समान” डरे हुए और लाचार हैं, दूसरी तरफ कुछ ऐसे लोग भी हैं जो ईश्‍वरीय बुद्धि की खोज करते हैं। यहोवा के अभिषिक्‍त जन और उनके साथी हर तरफ परमेश्‍वर के ‘गुण प्रगट करते हैं।’ (यशायाह 19:16; 1 पतरस 2:9) वे लोगों को यह चेतावनी देने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ते कि शैतान के संगठन का जल्द ही अंत होनेवाला है। तब क्या हालत होगी इसकी भविष्यवाणी करते हुए, यशायाह कहता है: “यहूदा का देश मिस्र के लिये यहां तक भय का कारण होगा कि जो कोई उसकी चर्चा सुनेगा वह थरथरा उठेगा; सेनाओं के यहोवा की उस युक्‍ति का यही फल होगा जो वह मिस्र के विरुद्ध करता है।” (यशायाह 19:17) यहोवा के वफादार दूत लोगों के सामने सच्चाई का ऐलान कर रहे हैं, और यहोवा ने जिन पीड़ाओं के आने की भविष्यवाणी की थी, वे उनका भी ऐलान कर रहे हैं। (प्रकाशितवाक्य 8:7-12; 16:2-12) दुनिया के धर्म के ठेकेदार इस ऐलान को सुनकर बेचैन हो उठते हैं।

31. यह कैसे होता है कि (क) प्राचीनकाल में और (ख) आज के ज़माने में भी मिस्र के नगरों में “कनान की भाषा” बोली जाती है?

31 इस ऐलान का बड़ा ही अद्‌भुत अंजाम निकलता है। वह क्या? “उस समय मिस्र देश में पांच नगर होंगे जिनके लोग कनान की भाषा बोलेंगे और यहोवा की शपथ खायेंगे। उन में से एक का नाम नाशनगर [ढह जानेवाला नगर, फुटनोट] रखा जाएगा।” (यशायाह 19:18) प्राचीनकाल में यह भविष्यवाणी तब पूरी हुई होगी जब यहूदियों ने भागकर मिस्र में शरण ली थी और इसी वजह से मिस्र के उन नगरों में इब्रानी भाषा बोली जाने लगी थी। (यिर्मयाह 24:1,8-10; 41:1-3; 42:9–43:7; 44:1) आज, हमारे ज़माने के “मिस्र” के इलाके में ऐसे लोग हैं जिन्होंने बाइबल की सच्चाई की “शुद्ध भाषा” बोलनी सीखी है। (सपन्याह 3:9) भविष्यवाणी में बताए गए पाँच नगरों में से एक नगर का नाम है “नाशनगर” या “ढह जानेवाला नगर,” जो बताता है कि “शुद्ध भाषा” बोलने में शैतान के संगठन का परदाफाश करके उसे ढा देना भी शामिल है।

32. (क) मिस्र देश के बीच में जो “वेदी” है, वह क्या है? (ख) अभिषिक्‍त जन मिस्र की सरहद पर ‘एक खंभे’ की तरह कैसे खड़े हैं?

32 यहोवा के लोगों ने उसके महान नाम का ऐलान किया है, और उनके इस काम की बदौलत यह सारी दुनिया उसका नाम ज़रूर जान जाएगी। “उस समय मिस्र देश के बीच में यहोवा के लिये एक वेदी होगी, और उसके सिवाने के पास यहोवा के लिये एक खंभा खड़ा होगा।” (यशायाह 19:19) ये शब्द अभिषिक्‍त मसीहियों के स्थान के बारे में बताते हैं, जिनके साथ परमेश्‍वर ने वाचा बाँधी है। (भजन 50:5) “एक वेदी” की तरह वे अपने बलिदान चढ़ा रहे हैं; और ‘सत्य के खंभे, और नेव’ की तरह वे यहोवा की साक्षी दे रहे हैं। (1 तीमुथियुस 3:15; रोमियों 12:1; इब्रानियों 13:15,16) वे “देश के बीच में” हैं, यानी ‘अन्य भेड़ों’ के अपने साथियों के साथ वे 230 से ज़्यादा देशों और द्वीपों में पाए जाते हैं। मगर वे इस “संसार के नहीं” हैं। (यूहन्‍ना 10:16, NW; 17:15,16) वे मानो इस दुनिया और परमेश्‍वर के राज्य के बीच के सिवाने या सरहद पर खड़े हैं और इस सरहद को पार करके अपना स्वर्गीय इनाम पाने के लिए तैयार हैं।

33. अभिषिक्‍त जन किस तरह से “मिस्र” में एक “चिन्ह और साक्षी” हैं?

33 यशायाह आगे कहता है: “वह मिस्र देश में सेनाओं के यहोवा के लिये चिन्ह और साक्षी ठहरेगा; और जब वे अंधेर करनेवाले के कारण यहोवा की दोहाई देंगे, तब वह उनके पास एक उद्धारकर्त्ता और रक्षक भेजेगा, और उन्हें मुक्‍त करेगा।” (यशायाह 19:20) एक “चिन्ह और साक्षी” की तरह, अभिषिक्‍त जन प्रचार के काम की अगुवाई करते हैं और इस दुनिया में यहोवा के नाम को महिमा देते हैं। (यशायाह 8:18; इब्रानियों 2:13) सारी दुनिया में अत्याचार के मारे लोग मदद के लिए चीख रहे हैं। मगर ज़्यादातर राष्ट्रों की सरकारें उनकी मदद करने के काबिल नहीं हैं। फिर भी यहोवा, एक महान उद्धारकर्त्ता यानी राजा यीशु मसीह को भेजेगा जो सभी नम्र जनों को छुटकारा दिलाएगा। जब हरमगिदोन का युद्ध इन अंतिम दिनों को खत्म करेगा, तब वह परमेश्‍वर का भय माननेवाले इंसानों को सुख-चैन और हमेशा की आशीषें देगा।—भजन 72:2,4,7,12-14.

34. (क) “मिस्री” यहोवा को कैसे पहचानेंगे, और वे यहोवा को क्या बलिदान और भेंट चढ़ाएँगे? (ख) यहोवा “मिस्रियों” को कब मारेगा और उसके बाद किस किस्म की चंगाई शुरू होगी?

34 तब तक, यहोवा की यह इच्छा है कि हर तरह के लोग सच्चा ज्ञान हासिल करें और उद्धार पाएँ। (1 तीमुथियुस 2:4) इसलिए, यशायाह लिखता है: “यहोवा अपने आप को मिस्रियों पर प्रगट करेगा; और मिस्री उस समय यहोवा को पहिचानेंगे और मेलबलि और अन्‍नबलि चढ़ाकर उसकी उपासना करेंगे, और यहोवा के लिये मन्‍नत मानकर पूरी भी करेंगे। और यहोवा मिस्रियों को मारेगा, वह मारेगा और चंगा भी करेगा, और वे यहोवा की ओर फिरेंगे, और वह उनकी बिनती सुनकर उनको चंगा करेगा।” (यशायाह 19:21,22) शैतान की दुनिया के सभी देशों के लोग, यानी अलग-अलग “मिस्री” यहोवा को पहचानेंगे और उसके लिए बलिदान चढ़ाएँगे। ये बलिदान “उन होठों का फल [है] जो उसके नाम का अंगीकार करते हैं।” (इब्रानियों 13:15) वे यहोवा को अपना समर्पण करके मन्‍नत मानते हैं और सारी ज़िंदगी वफादारी से उसकी सेवा करके इस मन्‍नत को पूरा भी करते हैं। हरमगिदोन में जब यहोवा इस दुनिया को “मारेगा,” तब उसके बाद वह अपने राज के द्वारा इंसानों को चंगा भी करेगा। यीशु के हज़ार साल के राज के दौरान, इंसानों को आध्यात्मिक, मानसिक, नैतिक और शारीरिक तौर पर सिद्ध किया जाएगा। जी हाँ, यह वाकई चंगाई होगी!—प्रकाशितवाक्य 22:1,2.

“धन्य हो मेरी प्रजा”

35, 36. प्राचीनकाल में यशायाह 19:23-25 की भविष्यवाणी के पूरा होने की वजह से, मिस्र, अश्‍शूर और इस्राएल के बीच कैसे संबंध हो सके थे?

35 इसके बाद यशायाह भविष्य में घटनेवाली एक अनोखी घटना देखता है: “उस समय मिस्र से अश्‍शूर जाने का एक राजमार्ग होगा, और अश्‍शूरी मिस्र में आएंगे, और मिस्री लोग अश्‍शूर को जाएंगे, और मिस्री अश्‍शूरियों के संग मिलकर आराधना करेंगे। उस समय इस्राएल, मिस्र और अश्‍शूर तीनों मिलकर पृथ्वी के लिये आशीष का कारण होंगे। क्योंकि सेनाओं का यहोवा उन तीनों को यह कहकर आशीष देगा, धन्य हो मेरी प्रजा मिस्र, और मेरा रचा हुआ अश्‍शूर, और मेरा निज भाग इस्राएल।” (यशायाह 19:23-25) जी हाँ, एक दिन ऐसा आएगा जब मिस्र और अश्‍शूर आपस में दोस्त होंगे। कैसे?

36 गुज़रे ज़मानों में जब यहोवा ने अपने लोगों को दूसरे देशों से बचाया तो उसने मानो उनके लिए आज़ादी की ओर ले जानेवाले राजमार्ग तैयार किए। (यशायाह 11:15; 35:8-10; 49:11-13; यिर्मयाह 31:21) यह भविष्यवाणी छोटे पैमाने पर तब पूरी हुई जब बाबुल के हार जाने पर अश्‍शूर और मिस्र से और बाबुल से भी बंधुओं को वादा किए हुए देश में वापस लाया गया। (यशायाह 11:11) हमारे ज़माने के बारे में क्या?

37. आज लाखों लोग कैसे इस तरीके से जी रहे हैं जैसे मानो “अश्‍शूर” और “मिस्र” के बीच एक राजमार्ग बना हुआ हो?

37 आज, अभिषिक्‍त आत्मिक इस्राएलियों में से बचे हुए लोग, “पृथ्वी के लिये आशीष का कारण” हैं। वे सच्ची उपासना को बढ़ावा देते हैं और सब देशों के लोगों में परमेश्‍वर के राज्य का ऐलान करते हैं। इनमें से कुछ देश अश्‍शूर जैसे हैं, जिनमें फौज के बल पर तानाशाही चलती है। दूसरे कुछ देश ऐसे हैं जो थोड़े उदार विचारोंवाले हैं, शायद मिस्र के जैसे जो दानिय्येल की भविष्यवाणी के मुताबिक एक वक्‍त पर “दक्खिन देश का राजा” था। (दानिय्येल 11:5,8) तो इस किस्म के सैन्यवादी और उदारवादी दोनों ही तरह के देशों में से लाखों लोगों ने सच्ची उपासना की राह को अपनाया है। इस तरह, सब देशों में से निकले लोग मिलकर ‘आराधना कर रहे हैं।’ इन अलग-अलग देशों के लोगों के बीच राष्ट्र की दीवारें नहीं उठ खड़ी होतीं। वे एक-दूसरे से सच्चा प्यार करते हैं और इसलिए सही मायनों में कहा जा सकता है कि ‘अश्‍शूरी मिस्र में आते हैं, और मिस्री लोग अश्‍शूर को जाते हैं।’ मानो इन दो देशों के बीच आने-जाने के लिए एक राजमार्ग बना हुआ है।—1 पतरस 2:17.

38. (क) इस्राएल “मिस्र और अश्‍शूर” के साथ कैसे ‘मिल’ जाता है? (ख) यहोवा क्यों कहता है, “धन्य हो मेरी प्रजा”?

38 लेकिन, इस्राएल कैसे “मिस्र और अश्‍शूर” के साथ ‘मिल’ जाता है? “अन्तसमय” की जब शुरूआत हुई तो पृथ्वी पर यहोवा की सेवा करनेवालों में ज़्यादातर लोग, “परमेश्‍वर के इस्राएल” यानी अभिषिक्‍तों में से थे। (दानिय्येल 12:9; गलतियों 6:16) सन्‌ 1935 के करीब, ‘अन्य भेड़ों’ की एक बड़ी भीड़ प्रकट हुई है जिसकी आशा इसी पृथ्वी पर जीने की है। (यूहन्‍ना 10:16कNW; प्रकाशितवाक्य 7:9) जिन देशों को भविष्यवाणी में मिस्र और अश्‍शूर कहा गया है, उन देशों में से निकलनेवाले ये लोग धारा की तरह यहोवा की उपासना करने के लिए उसके भवन की ओर बढ़े चले आ रहे हैं और वे दूसरों को भी आने का न्यौता दे रहे हैं। (यशायाह 2:2-4) वे भी अपने अभिषिक्‍त भाइयों की तरह प्रचार करते हैं, उन्हीं की तरह परीक्षाओं से गुज़रते हैं, उन्हीं की तरह वफादारी और खराई बनाए रखते हैं और उसी आध्यात्मिक मेज़ से भोजन खाते हैं, जिससे वे खाते हैं। वाकई, अभिषिक्‍त जन और ‘अन्य भेड़ें,’ “एक ही झुण्ड” हैं और उनका “एक ही चरवाहा” है। (यूहन्‍ना 10:16ख) क्या किसी को इस बात पर शक हो सकता है कि यहोवा उनके जोश और धीरज को देखकर, उनके कामों से खुश होता होगा? तो बेशक वह उन्हें आशीष देकर कहता है: “धन्य हो मेरी प्रजा”!

[फुटनोट]

^ पैरा. 21 कुछ विद्वानों का कहना है कि शब्द “पंखों की फड़फड़ाहट से भरे हुए देश,” शायद उन टिड्डियों की ओर इशारा कर रहे हैं जिनके बड़े-बड़े झुंड कूश देश में कभी-कभार उड़ते दिखाई देते हैं। कुछ और विद्वान कहते हैं कि “फड़फड़ाहट” के लिए इब्रानी शब्द, त्सेलात्साल की आवाज़ त्सीत्सी मक्खी को दिए गए नाम, त्सालत्सालया से मिलती-जुलती है। इस मक्खी को यह नाम आज के कूश (इथियोपिया) देश में रहनेवाले हामवंश के गाला लोगों ने दिया है।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 191 पर तसवीर]

पलिश्‍ती योद्धा अपने दुश्‍मनों पर धावा बोलते हुए (सा.यु.पू. 12वीं सदी की मिस्र की नक्काशी)

[पेज 192 पर तसवीर]

मोआबी योद्धा या देवता की मूर्ति (सा.यु.पू. 11वीं और 8वीं सदी के बीच)

[पेज 196 पर तसवीर]

ऊँट पर सवार अरामी योद्धा (सा.यु.पू. नौवीं सदी)

[पेज 198 पर तसवीर]

बागी मानवजाति का “समुद्र” आज असंतोष पैदा करके उथल-पुथल मचा रहा है

[पेज 203 पर तसवीर]

मिस्र के पंडित, यहोवा की ताकत की बराबरी करने के काबिल नहीं थे