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मसीहा के राज में उद्धार और आनंद

मसीहा के राज में उद्धार और आनंद

तेरहवाँ अध्याय

मसीहा के राज में उद्धार और आनंद

यशायाह 11:1–12:6

1. यशायाह के दिनों में, परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों की आध्यात्मिक हालत कैसी थी, बताइए।

यशायाह के दिनों में, परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों की आध्यात्मिक हालत बहुत खराब थी। उज्जिय्याह और योताम जैसे परमेश्‍वर के वफादार राजाओं के राज में भी बहुत-से लोग ऊँचे स्थानों पर पूजा किया करते थे। (2 राजा 15:1-4,34,35; 2 इतिहास 26:1,4) जब हिजकिय्याह राजा बना, तब उसे देश में से बाल-उपासना और उससे जुड़ी हर चीज़ को मिटाना पड़ा। (2 इतिहास 31:1) कोई ताज्जुब नहीं कि अपने लोगों का ऐसा हाल देखकर, यहोवा न सिर्फ उनसे अपने पास लौट आने की गुज़ारिश करता है बल्कि उन्हें आनेवाली सज़ा के बारे में खबरदार भी करता है।

2, 3. चारों तरफ फैली बुराई के बावजूद, जो लोग वफादारी से परमेश्‍वर की सेवा करना चाहते हैं, यहोवा उनकी हिम्मत कैसे बँधाता है?

2 मगर ऐसा नहीं था कि सभी इस्राएली कट्टर विद्रोही थे। उनके बीच ऐसे भविष्यवक्‍ता थे जो यहोवा के वफादार थे और कुछ ऐसे आम लोग भी थे जो इन भविष्यवक्‍ताओं के संदेश पर ध्यान देते थे। ऐसे लोगों की हिम्मत बँधाने के लिए यहोवा ने उन तक अपना संदेश पहुँचाया। अश्‍शूर के हमले के दौरान यहूदा पर आनेवाली तबाही के बारे में बताने के बाद, यशायाह को प्रेरित किया गया कि वह अपनी कलम से मसीहा * के राज में मिलनेवाली आशीषों का बयान करे। यह बयान बाइबल के चंद सबसे बेहतरीन भागों में से एक है। इस भविष्यवाणी के कुछ भागों की पूर्ति छोटे पैमाने पर उस वक्‍त हुई जब यहूदी बाबुल की बंधुआई से वापस लौटे। मगर इस पूरी भविष्यवाणी की बड़े पैमाने पर पूर्ति आज हमारे ज़माने में होनी है। बेशक, यशायाह और उसके ज़माने के दूसरे वफादार यहूदी उस समय तक ज़िंदा नहीं रहे जब ये आशीषें मिलनी शुरू हुईं। मगर वे विश्‍वास की नज़रों से उन आशीषों की ओर ताकते रहे और जब उनका पुनरुत्थान होगा तो वे यशायाह के शब्दों को खुद अपनी आँखों से पूरा होते देख सकेंगे।—इब्रानियों 11:35.

3 यशायाह के ज़माने की तरह, आज भी यहोवा के लोगों की हिम्मत बँधायी जाने की ज़रूरत है। संसार में दिनों-दिन बदचलनी बढ़ती जा रही है, परमेश्‍वर के राज्य के संदेश का कड़ा विरोध किया जा रहा है और हमारी अपनी कमज़ोरियाँ भी हमारे लिए कड़ी परीक्षाएँ खड़ी कर देती हैं। ऐसे में मसीहा और उसके राज के बारे में यशायाह के बढ़िया शब्द वाकई परमेश्‍वर के लोगों की हिम्मत बढ़ा सकते हैं और इन तमाम परीक्षाओं से पार होने में उनकी मदद कर सकते हैं।

मसीहा—एक योग्य प्रधान

4, 5. मसीहा के आने के बारे में यशायाह ने क्या भविष्यवाणी की थी और मत्ती ने यशायाह के शब्दों को कैसे लागू किया?

4 यशायाह के ज़माने से कई सदियों पहले, इब्रानी भाषा में बाइबल लिखनेवाले दूसरे लेखकों ने भी मसीहा के आने का इशारा किया था। यही वह सच्चा प्रधान था जिसे यहोवा इस्राएलियों के पास भेजनेवाला था। (उत्पत्ति 49:10; व्यवस्थाविवरण 18:18; भजन 118:22,26) अब यशायाह के ज़रिए यहोवा इस प्रधान के बारे में और ज़्यादा जानकारी देता है। यशायाह लिखता है: “यिशै के ठूंठ में से एक अंकुर फूट निकलेगा, हां, उसकी जड़ में से एक शाखा निकलकर फलवन्त होगी।” (यशायाह 11:1, NHT. भजन 132:11 से तुलना कीजिए।) “अंकुर” और “शाखा” दोनों ही शब्दों से इस बात का संकेत मिलता है कि मसीहा, यिशै के पुत्र दाऊद के वंश से होगा जिसे इस्राएल का राजा नियुक्‍त करने के लिए तेल से अभिषिक्‍त किया गया था। (1 शमूएल 16:13; यिर्मयाह 23:5; प्रकाशितवाक्य 22:16) सच्चा मसीहा जब आएगा तो दाऊद के घराने की “शाखा” होने के नाते वह अच्छा फल लाएगा।

5 जिस मसीहा के आने का वादा किया गया था, वह यीशु है। सुसमाचार की किताब लिखनेवाले मत्ती ने यशायाह 11:1 के शब्दों का हवाला देते हुए कहा कि यीशु के “नासरी” कहलाए जाने से भविष्यवक्‍ताओं का वचन पूरा हुआ। यीशु को इसलिए नासरी कहा गया क्योंकि उसकी परवरिश नासरत नगर में हुई। ऐसा लगता है कि इस नगर का नाम, यशायाह 11:1 में “अंकुर” शब्द के लिए इस्तेमाल हुए इब्रानी शब्द से संबंध रखता है। *मत्ती 2:23, NHT, फुटनोट; लूका 2:39,40.

6. भविष्यवाणी के मुताबिक मसीहा को कैसा राजा होना था?

6 मसीहा को कैसा राजा होना था? क्या वह क्रूर अश्‍शूरी की तरह होगा जो अपनी मरज़ी पूरी करता था और जिसने उत्तर के इस्राएल राज्य के दस गोत्रों को मिटा डाला था? हरगिज़ नहीं। मसीहा के बारे में, यशायाह कहता है: “यहोवा की आत्मा, बुद्धि और समझ की आत्मा, युक्‍ति और पराक्रम की आत्मा, और ज्ञान और यहोवा के भय की आत्मा उस पर ठहरी रहेगी। और उसको यहोवा का भय सुगन्ध सा भाएगा।” (यशायाह 11:2,3क) मसीहा का अभिषेक तेल से नहीं, बल्कि परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा से किया गया। यह तब हुआ जब यीशु ने बपतिस्मा लिया, और यूहन्‍ना बपतिस्मा देनेवाले ने देखा कि परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा एक कबूतर के रूप में यीशु पर उतर रही है। (लूका 3:22) यहोवा की आत्मा, यीशु पर ‘ठहरी रहती’ है और जब यीशु बुद्धि, समझ, युक्‍ति, पराक्रम और ज्ञान से काम लेता है, तो वह इसका सबूत देता है। एक राजा में ये सारे गुण होने कितने ज़रूरी हैं!

7. यीशु ने अपने वफादार चेलों से कौन-सा वादा किया?

7 यीशु के चेलों को भी पवित्र आत्मा मिल सकती है। यीशु ने एक बार उपदेश देते वक्‍त यह साफ कहा था: “जब तुम बुरे होकर अपने लड़केबालों को अच्छी वस्तुएं देना जानते हो, तो स्वर्गीय पिता अपने मांगनेवालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा”! (लूका 11:13) इसलिए हमें, परमेश्‍वर से पवित्र आत्मा माँगने में कभी-भी संकोच महसूस नहीं करना चाहिए। ना ही हमें आत्मा के अच्छे फल जैसे कि “प्रेम, आनन्द, मेल, धीरज, कृपा, भलाई, विश्‍वास, नम्रता, और संयम” पैदा करने में ढिलाई बरतनी चाहिए। (गलतियों 5:22,23) यहोवा ने वादा किया है कि जब यीशु के चेले उस “ज्ञान” को पाने की बिनती करेंगे जो “ऊपर से आता है,” तो वह ज़रूर उनकी मदद करेगा ताकि वे ज़िंदगी की मुश्‍किलों का सामना करने में कामयाब हो सकें।—याकूब 1:5; 3:17.

8. यहोवा का भय मानना यीशु को क्यों भाता है?

8 मसीहा किस तरह यहोवा के लिए भय दिखाता है? बेशक यीशु, परमेश्‍वर के सामने सज़ा पाने के डर से थर-थर काँपता नहीं रहता। इसके बजाय, मसीहा के मन में परमेश्‍वर के लिए गहरा आदर और श्रद्धा है। वह परमेश्‍वर को दिल से प्यार करता है, इसलिए उसका भय मानता है। परमेश्‍वर का भय माननेवाला हर इंसान यीशु की तरह हमेशा ऐसे काम करना चाहता है “जिस से [परमेश्‍वर] प्रसन्‍न” हो। (यूहन्‍ना 8:29) यीशु अपनी कथनी और करनी से यह सिखाता है कि हर दिन दिल से यहोवा का भय मानकर चलने से ज़्यादा खुशी किसी और बात से नहीं मिल सकती।

धर्मी और दयालु न्यायी

9. मसीही कलीसिया में जिन्हें न्याय करने की ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है, उनके लिए यीशु ने कैसा आदर्श रखा है?

9 यशायाह, मसीहा के कुछ और गुणों के बारे में भविष्यवाणी करता है: “वह मुंह देखा न्याय न करेगा और न अपने कानों के सुनने के अनुसार निर्णय करेगा।” (यशायाह 11:3ख) अगर आपको किसी अदालत में पेश होना पड़े, तो क्या आप नहीं चाहेंगे कि आपका जज भी ऐसा ही हो? पूरी दुनिया का न्याय करने के लिए ठहराए गए जज की हैसियत से, मसीहा झूठी दलीलों, अदालती हथकंडों या अफवाहों के झाँसे में नहीं आता, और किसी का बाहरी रुतबा जैसे धन-दौलत उसकी नज़रों में कोई मायने नहीं रखता। उसकी नज़रों से कपट छिप नहीं सकता, साथ ही उसकी पारखी नज़र पहचान सकती है कि एक खस्ताहाल इंसान का असल में दिल कैसा है। वह ‘छिपे हुए और गुप्त मनुष्यत्व’ को या अंदर छिपे इंसान को देखने की काबिलीयत रखता है। (1 पतरस 3:4) यीशु की सर्वश्रेष्ठ मिसाल उन सभी के लिए बहुत ही बढ़िया आदर्श है जिन्हें मसीही कलीसिया में कई मामलों का न्याय करने की ज़िम्मेदारी सौंपी जाती है।—1 कुरिन्थियों 6:1-4.

10, 11. (क) यीशु अपने चेलों को किस तरीके से सुधारता है? (ख) यीशु दुष्टों को क्या न्यायदंड सुनाता है?

10 मसीहा अपने इन सर्वश्रेष्ठ गुणों की वजह से कैसा न्याय करता है? यशायाह बताता है: “वह कंगालों का न्याय धर्म से, और पृथ्वी के नम्र लोगों का निर्णय [“की ताड़ना,” NW] खराई से करेगा; और वह पृथ्वी को अपने वचन के सोंटे से मारेगा, और अपने फूंक के झोंके से दुष्ट को मिटा डालेगा। उसकी कटि का फेंटा धर्म और उसकी कमर का फेंटा सच्चाई होगी।”—यशायाह 11:4,5.

11 जब यीशु के चेलों को ताड़ना की ज़रूरत होती है तब वह उन्हें इस तरीके से सुधारता है जिससे उन्हें ज़्यादा-से-ज़्यादा फायदा हो। मसीही प्राचीनों के लिए यीशु क्या ही बढ़िया मिसाल है! लेकिन जो दुष्टता के कामों में लगे रहते हैं, यीशु उनका न्याय कड़ाई से करता है। जब परमेश्‍वर इस दुनिया से लेखा लेगा, तब मसीहा अपनी ज़ोरदार आवाज़ से ‘पृथ्वी को मारेगा,’ और सब दुष्टों के मिटाए जाने का हुक्म देगा। (भजन 2:9. प्रकाशितवाक्य 19:15 से तुलना कीजिए।) इसके बाद, ऐसा वक्‍त आएगा जब इंसानों की शांति को भंग करनेवाला एक भी दुष्ट बाकी नहीं बचेगा। (भजन 37:10,11) यीशु की कटि और कमर, धार्मिकता और सच्चाई के फेंटे से कसी हुई है, और वह यह सब करने की ताकत रखता है।—भजन 45:3-7.

ज़मीन पर बदले हुए हालात

12. बाबुल से वापस अपने वतन लौटने की सोच रहे एक यहूदी को किन चिंताओं ने आ घेरा होगा?

12 कल्पना कीजिए। कुस्रू के वक्‍त में एक इस्राएली है, जिसे अभी-अभी पता चला है कि कुस्रू ने यहूदियों को यरूशलेम लौटने और मंदिर को दोबारा बनाने का हुक्म दिया है। क्या वह बाबुल नगर में बेफिक्री और आराम की ज़िंदगी को छोड़कर, मीलों दूर अपने वतन वापस लौटने के लिए तैयार होगा? सत्तर साल तक इस्राएल जाति के न होने से, वहाँ के सुनसान खेतों में झाड़-झंखाड़ उग आए हैं। उन खेतों में अब भेड़िए, चीते, शेर और रीछ घूमते फिरते हैं। काले नागों का भी वहाँ बसेरा है। और फिर, लौटनेवाले यहूदियों को दूध, ऊन और मांस के लिए मवेशियों पर निर्भर रहना पड़ेगा। बैलों से हल जोतना पड़ेगा। लेकिन अगर इन्हें भी जंगली जानवरों ने मारना शुरू कर दिया तो क्या होगा? अगर किसी छोटे बच्चे को साँप ने डस लिया तो? अगर सफर में उन्हें लुटेरों ने लूट लिया तो?

13. (क) यशायाह के कौन-से शब्दों को पढ़कर हमारा दिल खुशी से झूम उठता है? (ख) हम कैसे जानते हैं कि जिस शांति के बारे में यशायाह बताता है, वह सिर्फ जंगली जानवरों से सुरक्षित रहने की बात नहीं है?

13 लेकिन यशायाह अपनी कलम से, परमेश्‍वर के वादा किए हुए उस देश की ऐसी सुंदर तसवीर खींचता है, जिसे पढ़कर हमारा दिल खुशी से झूम उठता है। वह कहता है: “तब भेड़िया भेड़ के बच्चे के संग रहा करेगा, और चीता बकरी के बच्चे के साथ बैठा करेगा, और बछड़ा और जवान सिंह और पाला पोसा हुआ बैल तीनों इकट्ठे रहेंगे, और एक छोटा लड़का उनकी अगुवाई करेगा। गाय और रीछनी मिलकर चरेंगी, और उनके बच्चे इकट्ठे बैठेंगे; और सिंह बैल की नाईं भूसा खाया करेगा। दूधपिउवा बच्चा करैत के बिल पर खेलेगा, और दूध छुड़ाया हुआ लड़का नाग के बिल में हाथ डालेगा। मेरे सारे पवित्र पर्वत पर न तो कोई दु:ख देगा और न हानि करेगा; क्योंकि पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है।” (यशायाह 11:6-9) क्या ये आयतें आपके दिल को नहीं छू जातीं? ध्यान दीजिए कि यहाँ जिस शांति के बारे में बताया गया है, वह यहोवा का ज्ञान हासिल करने से मिलती है। इन आयतों में सिर्फ यह नहीं बताया गया कि हमें सचमुच के जंगली जानवरों से सुरक्षा मिलेगी। क्योंकि यहोवा का ज्ञान जानवरों को नहीं बदलेगा, मगर इनके जैसे लोगों को ज़रूर बदलेगा। इस्राएलियों को अपने वतन वापस लौटते वक्‍त या वहाँ रहते वक्‍त जंगली जानवरों से या उन जैसे वहशी इंसानों से डरने की कोई ज़रूरत नहीं होगी।—एज्रा 8:21,22; यशायाह 35:8-10; 65:25.

14. यशायाह 11:6-9 की भविष्यवाणी बड़े पैमाने पर कैसे पूरी हुई है?

14 लेकिन, इस भविष्यवाणी की और भी बड़े पैमाने पर पूर्ति होनी थी। सन्‌ 1914 में, यीशु मसीहा को स्वर्गीय सिय्योन पर्वत पर राजा बनाकर राजगद्दी पर बिठाया गया। उसके बाद सन्‌ 1919 में, “परमेश्‍वर के इस्राएल” के बाकी बचे हुए लोगों को बाबुल की बंधुआई से छुटकारा मिला और उन्होंने फिर से सच्ची उपासना को कायम करने में हिस्सा लिया। (गलतियों 6:16) ऐसा होते ही, फिरदौस के बारे में यशायाह की भविष्यवाणी हमारे दिनों में आध्यात्मिक तरीके से पूरी होने लगी। यहोवा के सच्चे “ज्ञान” ने लोगों की पूरी-की-पूरी शख्सियत को ही बदल दिया। (कुलुस्सियों 3:9,10) जो लोग पहले खूँखार थे, वे अब शांत स्वभाव के हो गए हैं। (रोमियों 12:2; इफिसियों 4:17-24) इन बदलावों का असर आज लाखों लोगों में देखा जा सकता है क्योंकि यशायाह की भविष्यवाणी उन पर भी पूरी होने लगी है। पृथ्वी पर जीने की उम्मीद रखनेवाले इन मसीहियों की गिनती दिन-ब-दिन तेज़ी से बढ़ती जा रही है। (भजन 37:29; यशायाह 60:22) इन लोगों ने उस घड़ी का इंतज़ार करना सीखा है जब सारी धरती शांति और सुख-चैन से भरा एक खूबसूरत फिरदौस बन जाएगी, बिलकुल वैसी जैसी शुरू में परमेश्‍वर ने चाही थी।—मत्ती 6:9,10; 2 पतरस 3:13.

15. क्या यह उम्मीद करना सही होगा कि नयी दुनिया में यशायाह की भविष्यवाणी के हर शब्द की हकीकत में पूर्ति होगी? समझाइए।

15 जब यह ज़मीन फिर से एक फिरदौस बन जाएगी तब क्या हम यशायाह की इस भविष्यवाणी के हर शब्द को हकीकत में पूरा होते हुए देख पाएँगे? ऐसी उम्मीद करना गलत नहीं होगा। यह भविष्यवाणी, मसीहाई राज में जीने की उम्मीद करनेवाले हर इंसान को वैसा ही यकीन दिलाती है जैसा इसने लौटनेवाले इस्राएलियों को दिलाया था। यह वादा करती है कि लोगों को या उनके बाल-बच्चों को किसी इंसान या जानवर से फिर कभी कोई खतरा नहीं रहेगा। मसीहा के राज में, ज़मीन पर रहनेवाले वैसी ही शांति और खुशी पाएँगे जैसी अदन में आदम और हव्वा ने पायी थी। माना कि बाइबल में इस बारे में हर छोटी-छोटी जानकारी नहीं दी गई है कि अदन में ज़िंदगी कैसी थी या आनेवाली खूबसूरत नयी दुनिया में ज़िंदगी कैसी होगी। फिर भी हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि जब हमारा राजा यीशु मसीह, बुद्धि और प्रेम से राज करेगा तो सबकुछ वैसा ही होगा जैसा असल में होना चाहिए।

मसीहा के ज़रिए शुद्ध उपासना फिर से कायम की गयी

16. सामान्य युग पूर्व 537 में परमेश्‍वर के लोगों के लिए किसने एक झंडे का काम किया?

16 शुद्ध उपासना पर पहली बार हमला तब हुआ, जब अदन में शैतान ने आदम और हव्वा को बहकाकर उनसे यहोवा की आज्ञा तुड़वायी थी। तब से शैतान ने हार नहीं मानी है, वह आज भी ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों को परमेश्‍वर से दूर ले जाने की फिराक में लगा हुआ है। मगर यहोवा, शुद्ध उपासना को धरती से कभी मिटने नहीं देगा। यह उसकी इज़्ज़त का, उसके नाम का सवाल है और वह उन लोगों की बहुत परवाह करता है जो उसकी सेवा करते हैं। इसलिए परमेश्‍वर, यशायाह के ज़रिए यह अनोखा वादा करता है: “उस समय यिशै की जड़ देश देश के लोगों के लिये एक झण्डा होगी; सब राज्यों के लोग उसे ढूंढ़ेंगे, और उसका विश्रामस्थान तेजोमय होगा।” (यशायाह 11:10) यरूशलेम नगर ने, जिसे दाऊद ने अपनी राजधानी बनाया था, सा.यु.पू. 537 में मानो एक झंडे का काम किया। यह नगर यहाँ-वहाँ बिखरे यहूदियों में से बचे-खुचे वफादार लोगों को बुलावा दे रहा था कि वे लौटकर आएँ और परमेश्‍वर के मंदिर को दोबारा बनाएँ।

17. पहली सदी में और हमारे दिनों में, यीशु “अन्यजातियों का हाकिम होने के लिये” कैसे उठा?

17 लेकिन, इस भविष्यवाणी में इससे भी ज़्यादा कुछ बताया गया है। जैसे कि हम पहले ही देख चुके हैं, यह भविष्यवाणी उस मसीहा के राज की तरफ इशारा करती है जो सब देशों के लोगों का एकमात्र सच्चा प्रधान है। प्रेरित पौलुस ने यह समझाने के लिए यशायाह 11:10 का हवाला दिया कि उसके दिनों में गैर-यहूदी या अन्यजातियों के लोग भी मसीही कलीसिया में शामिल किए जाएँगे। सेप्टुआजेंट अनुवाद से हवाला देते हुए उसने लिखा: “यशायाह कहता है, कि यिशै की एक जड़ प्रगट होगी, और अन्यजातियों का हाकिम होने के लिये एक उठेगा, उस पर अन्यजातियां आशा रखेंगी।” (रोमियों 15:12) इतना ही नहीं, यह भविष्यवाणी आज हमारे समय में भी पूरी हो रही है, क्योंकि आज सब जातियों के लोग मसीहा के अभिषिक्‍त भाइयों का साथ देकर, यहोवा के लिए अपने प्रेम का सबूत दे रहे हैं।—यशायाह 61:5-9; मत्ती 25:31-40.

18. हमारे दिनों में, यीशु कैसे एक झंडे की तरह है?

18 आज के ज़माने में, यशायाह 11:10 में बताए गए “उस समय” की शुरूआत तब हुई जब सन्‌ 1914 में मसीहा को परमेश्‍वर के स्वर्गीय राज्य का राजा ठहराया गया। (लूका 21:10; 2 तीमुथियुस 3:1-5; प्रकाशितवाक्य 12:10) तब से यीशु मसीह एक झंडे या एक निशानी की तरह साफ नज़र आ रहा है। इस झंडे के तले आत्मिक इस्राएली और अन्यजातियों के वे सभी लोग इकट्ठे हो रहे हैं जो एक धर्मी सरकार के लिए तरसते हैं। जैसे यीशु ने खुद भविष्यवाणी की थी उसकी निगरानी में, आज परमेश्‍वर के राज्य की खुशखबरी सब जातियों में सुनायी जा रही है। (मत्ती 24:14; मरकुस 13:10) इस खुशखबरी का बहुत ज़बरदस्त असर हुआ है। “हर एक जाति . . . में से एक ऐसी बड़ी भीड़, जिसे कोई गिन नहीं सकता” निकलकर मसीहा के अधीन हो रही है, और बचे हुए अभिषिक्‍त जनों के साथ शुद्ध उपासना करने के लिए इकट्ठी हो रही है। (प्रकाशितवाक्य 7:9) जैसे-जैसे बड़ी तादाद में नए लोग यहोवा के आत्मिक “प्रार्थना के भवन” में अभिषिक्‍त जनों के साथ जमा हो रहे हैं, वैसे-वैसे मसीहा के “विश्रामस्थान” यानी परमेश्‍वर के महान आत्मिक मंदिर की महिमा में चार चाँद लगते जा रहे हैं।—यशायाह 56:7; हाग्गै 2:7.

एकजुट होकर यहोवा की सेवा करनेवाले लोग

19. किन दो अवसरों पर यहोवा ने, सारी पृथ्वी पर बिखरे अपने बचे हुए लोगों को इकट्ठा किया?

19 अब यशायाह इस्राएलियों को याद दिलाता है कि इससे पहले भी एक बार जब ताकतवर दुश्‍मनों ने उन पर ज़ुल्म ढाए तो यहोवा ने उन्हें छुटकारा दिलाया था। उसने इस्राएल जाति को मिस्र की गुलामी से आज़ादी दिलायी थी। अपने इतिहास के उस दौर की यादें सभी वफादार यहूदियों के दिलों को अज़ीज़ हैं। यशायाह लिखता है: “उस समय प्रभु अपना हाथ दूसरी बार बढ़ाकर बचे हुओं को, जो उसकी प्रजा के रह गए हैं, अश्‍शूर से, मिस्र से, पत्रोस से, कूश से, एलाम से, शिनार से, हमात से, और समुद्र के द्वीपों से मोल लेकर छुड़ाएगा। वह अन्यजातियों के लिये झण्डा खड़ा करके इस्राएल के सब निकाले हुओं को, और यहूदा के सब बिखरे हुओं को पृथ्वी की चारों दिशाओं से इकट्ठा करेगा।” (यशायाह 11:11,12) यहोवा, दूर-दूर देशों में बिखरे हुए इस्राएल और यहूदा देश के बचे हुए वफादार लोगों को मानो हाथ पकड़कर बाहर निकाल लाएगा और उन्हें अपने वतन में सही सलामत पहुँचा देगा। इस भविष्यवाणी की पूर्ति छोटे पैमाने पर सा.यु.पू. 537 में हुई थी। मगर जब बड़े पैमाने पर इसकी पूर्ति होती तो वह क्या ही शानदार नज़ारा होता! सन्‌ 1914 में, यहोवा ने राजा बने यीशु मसीह को “अन्यजातियों के लिये झण्डा” बनाकर खड़ा किया। परमेश्‍वर के राज्य के अधीन रहकर और शुद्ध उपासना करने के लिए तत्पर, “परमेश्‍वर के इस्राएल” के बचे हुए लोग सन्‌ 1919 से इस झंडे के तले इकट्ठा होने लगे। इस अनोखी आत्मिक जाति के लोग “हर एक कुल, और भाषा, और लोग, और जाति में से” निकलकर आए हैं।—प्रकाशितवाक्य 5:9.

20. बाबुल से लौटने के बाद परमेश्‍वर के लोगों में कैसी एकता होगी?

20 यशायाह अब अपने वतन में बहाल हुई इस इस्राएल जाति की एकता के बारे में बताता है। वह उत्तर के इस्राएल राज्य को एप्रैम और दक्षिणी राज्य को यहूदा कहता है। “एप्रैम फिर डाह न करेगा और यहूदा के तंग करनेवाले काट डाले जाएंगे; न तो एप्रैम यहूदा से डाह करेगा और न यहूदा एप्रैम को तंग करेगा। परन्तु वे पश्‍चिम की ओर पलिश्‍तियों के कंधे पर झपट्टा मारेंगे, और मिलकर पूर्वियों को लूटेंगे। वे एदोम और मोआब पर हाथ बढ़ाएंगे, और अम्मोनी उनके अधीन हो जाएंगे।” (यशायाह 11:13,14) जब यहूदी बाबुल से लौटते हैं, तो वे दो अलग देश नहीं रहते। इस्राएल के सभी गोत्रों के लोग मिलकर अपने वतन लौटेंगे। (एज्रा 6:17) अब वे एक-दूसरे के खिलाफ जलन या दुश्‍मनी नहीं रखेंगे। एकजुट होकर, वे आसपास की जातियों के अपने दुश्‍मनों का सामना करेंगे और उन पर जीत भी हासिल करेंगे।

21. आज परमेश्‍वर के लोगों की एकता क्यों अपने आप में एक मिसाल है?

21 मगर “परमेश्‍वर के इस्राएल” की एकता तो इससे भी ज़्यादा तारीफ के काबिल है। आत्मिक इस्राएल के 12 लाक्षणिक गोत्रों में, करीब 2000 साल से एकता रही है क्योंकि वे सभी, परमेश्‍वर यहोवा से और अपने आध्यात्मिक भाई-बहनों से सच्चा प्यार करते हैं। (कुलुस्सियों 3:14; प्रकाशितवाक्य 7:4-8) आज मसीहा के राज के अधीन आत्मिक इस्राएलियों और ज़मीन पर जीने की आशा रखनेवाली अन्य भेड़ों के बीच शांति और ऐसी अंतर्राष्ट्रीय एकता है जो ईसाईजगत के चर्चों में दूर-दूर तक कहीं भी नज़र नहीं आती। यहोवा के साक्षी, यहोवा की उपासना में रुकावट डालनेवाले शैतान की हर चाल का मिलकर सामना करते हैं। एकजुट होकर वे सब जातियों में मसीहा के राज्य के सुसमाचार का ऐलान करने और सिखाने की उस ज़िम्मेदारी को निभाते हैं, जो यीशु ने उन्हें सौंपी है।—मत्ती 28:19,20.

बाधाएँ पार कर ली जाएँगी

22. यहोवा कैसे “मिस्र के समुद्र की खाड़ी को सुखा डालेगा” और ‘महानद पर अपना हाथ बढ़ाएगा’?

22 बाबुल की बंधुआई से लौट रहे इस्राएलियों को रोकने के लिए कई बाधाएँ हैं, कुछ तो साफ नज़र आती हैं और कुछ नज़र नहीं आतीं। तो इन बाधाओं को कैसे पार किया जाएगा? यशायाह कहता है: “यहोवा मिस्र के समुद्र की खाड़ी को सुखा डालेगा, और महानद पर अपना हाथ बढ़ाकर प्रचण्ड लू से ऐसा सुखाएगा कि वह सात धार हो जाएगा, और लोग जूता पहिने हुए भी पार हो जाएंगे।” (यशायाह 11:15क) यहोवा खुद, अपने लोगों के रास्ते में आनेवाली हर रुकावट को मिटा देगा। वह चाहे लाल सागर की विशाल खाड़ी (जैसे कि स्वेज़ खाड़ी) या फरात जैसी प्रचंड नदी ही क्यों न हो, वे ऐसी सूख जाएँगी कि इन्हें पार करने के लिए किसी को अपने जूते तक उतारने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी!

23. ‘अश्‍शूर से एक राज-मार्ग’ कैसे निकलेगा?

23 मूसा के दिनों में, यहोवा ने इस्राएल जाति को मिस्र की गुलामी से छुड़ाने और वादा किए हुए देश में ले जाने के लिए रास्ता तैयार किया था। वह अब भी कुछ ऐसा ही करेगा: “उसकी प्रजा के बचे हुओं के लिये अश्‍शूर से एक ऐसा राज-मार्ग होगा जैसा मिस्र देश से चले आने के समय इस्राएल के लिये हुआ था।” (यशायाह 11:15ख) यहोवा, बंधुआई से लौटनेवाले यहूदियों को ऐसे ले जाएगा, मानो वे एक राजमार्ग पर चलते हुए गुलामी के देश से अपने वतन वापस जा रहे हों। दुश्‍मन उन्हें रोकने की कोशिश करेंगे, मगर उनका परमेश्‍वर यहोवा उनके साथ होगा। आज, अभिषिक्‍त मसीहियों और उनके साथियों के दुश्‍मन उन पर बहुत ही भयानक हमले कर रहे हैं, मगर वे बिना डरे हिम्मत से आगे बढ़ते चले जाते हैं! वे आज के अश्‍शूर, यानी शैतान की दुनिया से बाहर निकल आए हैं और ऐसा करने में वे दूसरों की भी मदद करते हैं। वे जानते हैं कि शुद्ध उपासना की जीत होगी और वह बढ़ती जाएगी। यह किसी इंसान का नहीं बल्कि परमेश्‍वर का काम होगा।

मसीहा की प्रजा के लिए अपार आनंद!

24, 25. यहोवा की स्तुति और धन्यवाद के गीत गाने के लिए उसके लोग कैसे-कैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं?

24 अब यशायाह खुशी-खुशी यह बताता है कि जब यहोवा अपना वादा पूरा करेगा तब उसके लोग किस तरह खुशी से जय-जयकार करेंगे: “उस दिन तू कहेगा, हे यहोवा, मैं तेरा धन्यवाद करता हूं, क्योंकि यद्यपि तू मुझ पर क्रोधित हुआ था, परन्तु अब तेरा क्रोध शान्त हुआ, और तू ने मुझे शान्ति दी है।” (यशायाह 12:1) यहोवा ने अपने भटके हुए लोगों को सख्त ताड़ना दी है। मगर इससे न सिर्फ एक जाति के तौर पर परमेश्‍वर के साथ उनका रिश्‍ता फिर से मज़बूत हुआ बल्कि शुद्ध उपासना भी फिर से कायम हुई। यहोवा अपने वफादार सेवकों को यकीन दिलाता है कि वह उनका उद्धार ज़रूर करेगा। तभी तो वे यहोवा को धन्यवाद देते हैं!

25 अपने देश में फिर से आ बसे इस्राएलियों का यहोवा पर भरोसा और भी मज़बूत हो चुका है, इसलिए वे पुकार उठते हैं: “परमेश्‍वर मेरा उद्धार है, मैं भरोसा रखूंगा और न थरथराऊंगा; क्योंकि प्रभु [“याह,” NW] यहोवा मेरा बल और मेरे भजन का विषय है, और वह मेरा उद्धारकर्त्ता हो गया है। तुम आनन्दपूर्वक उद्धार के सोतों से जल भरोगे।” (यशायाह 12:2,3) आयत 2 में जिस इब्रानी शब्द का अनुवाद “भजन का विषय” किया गया है, सेप्टुआजेंट वर्शन में उसे “स्तुति” कहा गया है। ‘याह यहोवा’ के उपासक उसकी तरफ से उद्धार पाकर, गीतों के ज़रिए उसकी स्तुति और जय-जयकार करते हैं। बाइबल में कुछ जगहों पर यहोवा की स्तुति और धन्यवाद करने की गहरी भावनाएँ ज़ाहिर करने के लिए यहोवा के नाम का छोटा रूप ‘याह’ इस्तेमाल किया गया है। लेकिन, ‘याह यहोवा’ कहकर परमेश्‍वर के नाम को दोहराना यहोवा की स्तुति को और भी ज़्यादा बुलंदियों पर ले जाता है।

26. आज कौन सब जातियों में परमेश्‍वर के बड़े कामों का प्रचार करते हैं?

26 यहोवा के सच्चे उपासकों को इतनी खुशी मिली है कि वह उनके मन में नहीं समा सकती। इसलिए यशायाह भविष्यवाणी करता है: “उस दिन तुम कहोगे, यहोवा की स्तुति करो, उस से प्रार्थना करो; सब जातियों में उसके बड़े कामों का प्रचार करो, और कहो कि उसका नाम महान है। यहोवा का भजन गाओ, क्योंकि उस ने प्रतापमय काम किए हैं; इसे सारी पृथ्वी पर प्रगट करो।” (यशायाह 12:4,5) सन्‌ 1919 से अभिषिक्‍त मसीहियों ने और बाद में इस काम में उनका हाथ बँटानेवाली ‘अन्य भेड़ों’ ने ‘उसके महान्‌ गुणों को प्रकट किया है जिसने उन्हें अंधकार से अपनी अद्‌भुत ज्योति में बुलाया है।’ ये अभिषिक्‍त जन “एक चुना हुआ वंश . . . एक पवित्र प्रजा” हैं, जिन्हें इस काम के लिए चुनकर अलग किया गया है। (यूहन्‍ना 10:16, NW; 1 पतरस 2:9, NHT) ये अभिषिक्‍त जन पूरी धरती पर ऐलान करते हैं कि यहोवा का पवित्र नाम सबसे महान है। वे यहोवा के सभी उपासकों को उकसाते हैं कि वे यहोवा के उद्धार के इंतज़ाम के कारण आनंद मनाएँ। वे यशायाह की तरह पुकार लगाते हैं: “हे सिय्योन में बसनेवाली तू जयजयकार कर और ऊंचे स्वर से गा, क्योंकि इस्राएल का पवित्र तुझ में महान है”! (यशायाह 12:6) इस्राएल का पवित्र खुद यहोवा परमेश्‍वर ही है।

विश्‍वास के साथ भविष्य की बाट जोहते रहिए!

27. अपनी आशा के पूरा होने का इंतज़ार करते वक्‍त, मसीही किस बात का यकीन रखते हैं?

27 आज परमेश्‍वर के राज्य का राजा यीशु मसीह, ‘देश देश के लोगों के लिये एक झण्डे’ की तरह खड़ा है और लोग उसकी छाया में इकट्ठे हो रहे हैं। वे उसके राज्य की प्रजा बनने से बेहद खुश हैं और वे यहोवा परमेश्‍वर और उसके बेटे का ज्ञान पाकर खुशी से फूले नहीं समाते। (यूहन्‍ना 17:3) उन्हें अपने मसीही भाईचारे की एकता से बड़ी खुशी मिलती है और वे पूरी कोशिश करते हैं कि उस शांति को बनाए रखें जो यहोवा के सच्चे सेवकों की पहचान है। (यशायाह 54:13) उन्हें इस बात का यकीन है कि याह यहोवा ऐसा परमेश्‍वर है जो अपने वादों को हमेशा पूरा करता है, उन्हें पूरा भरोसा है कि उनकी आशा सच्ची है। इसलिए वे बड़ी खुशी से दूसरों को भी यह आशा देते हैं। हमारी यही दुआ है कि यहोवा का हर उपासक अपनी पूरी ताकत लगाकर, उसकी सेवा करता रहे और ऐसा करने में दूसरों की भी मदद करे। आइए हम सभी यशायाह के शब्दों को अपने दिल में संजो लें और यहोवा के मसीहा से मिलनेवाले उद्धार की वजह से आनंद मनाएँ!

[फुटनोट]

^ पैरा. 2 “मसीहा” शब्द इब्रानी के माशीआक शब्द से लिया गया है, जिसका मतलब है “अभिषिक्‍त।” इसी के लिए यूनानी में शब्द है, ख्रिस्तौस या “मसीह।”—मत्ती 2:4, NHT, फुटनोट।

^ पैरा. 5 “अंकुर” के लिए इब्रानी शब्द है नीत्सेर और “नासरी” के लिए है नोत्स्री।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 158 पर तसवीर]

मसीहा, राजा दाऊद के ज़रिए यिशै से निकला “अंकुर” है

[पेज 162 पर बड़ी तसवीर दी गयी है]

[पेज 170 पर तसवीर]

मृत सागर चर्मपत्रों में यशायाह 12:4,5 (जिन जगहों पर परमेश्‍वर का नाम आता है, वे दिखायी गयी हैं)