यशायाह, यहोवा के ‘अनोखे काम’ की भविष्यवाणी करता है
बाइसवाँ अध्याय
यशायाह, यहोवा के ‘अनोखे काम’ की भविष्यवाणी करता है
1, 2. इस्राएल और यहूदा क्यों सुरक्षित महसूस करते हैं?
कुछ वक्त के लिए इस्राएल और यहूदा के लोग खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं। क्योंकि उनके अगुवों ने अपने आस-पास के बड़े-बड़े ताकतवर देशों के साथ राजनीतिक संधियाँ कर ली हैं ताकि उस वक्त के खतरनाक माहौल में वे महफूज़ रह सकें। इस्राएल की राजधानी, सामरिया ने अपने पड़ोसी देश अराम से मदद पाने के लिए उससे हाथ मिला लिया है, तो दूसरी तरफ यहूदा की राजधानी, यरूशलेम ने खूँखार अश्शूर से मदद की उम्मीदें बाँध रखी हैं।
2 अपने इन नए मित्र देशों पर भरोसा करने के अलावा उत्तर के इस्राएल राज्य के कुछ लोग यहोवा से हिफाज़त पाने की भी उम्मीद लगाए बैठे हैं, जबकि वे आज भी सोने के बछड़े को पूज रहे हैं। इसी तरह यहूदा को भी पूरा यकीन है कि यहोवा उसे ज़रूर बचाएगा। क्यों न हो, आखिर यहोवा का मंदिर उनकी राजधानी यरूशलेम में ही तो है! मगर इन दोनों राज्यों को आनेवाले दिनों में ऐसा झटका लगेगा जिसके बारे में उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा। यहोवा अपने भविष्यवक्ता यशायाह को ऐसी घटनाओं की भविष्यवाणी करने के लिए प्रेरित करता है जो उसके इन पथभ्रष्ट लोगों को सचमुच अनोखी लगेंगी। और इस भविष्यवाणी में आज हममें से हरेक के लिए भी बहुत ज़रूरी सबक हैं।
‘एप्रैम के मतवाले’
3, 4. उत्तर के इस्राएल राज्य को किस बात पर घमंड है?
3 यशायाह अपनी भविष्यवाणी की शुरूआत इन चौंका देनेवाले शब्दों से करता है: “घमण्ड के मुकुट पर हाय! जो एप्रैम के मतवालों का है, और उनकी यशायाह 28:1-3.
भड़कीली सुन्दरता पर जो मुर्झानेवाला फूल है, जो अति उपजाऊ तराई के सिरे पर दाखमधु से मतवालों की है। देखो, प्रभु के पास एक बलवन्त और सामर्थी है जो ओले की वर्षा . . . की नाईं है वह उसको कठोरता से भूमि पर गिरा देगा। एप्रैमी मतवालों के घमण्ड का मुकुट पांव से लताड़ा जाएगा।”—4 उत्तर के इस्राएल राज्य के दस गोत्रों में सबसे प्रमुख गोत्र है एप्रैम, इसलिए सारे इस्राएल राज्य को ही एप्रैम पुकारा गया है। इस्राएल की राजधानी सामरिया, “अति उपजाऊ तराई के सिरे पर” होने की वजह से बहुत ही बढ़िया और ऊँची जगह पर बसी हुई है। एप्रैम के अगुवों को अपने “मुकुट” पर, यानी यरूशलेम में दाऊद के घराने के राज्य से अपनी आज़ादी पर बड़ा घमंड है। मगर, वे “मतवाले” हैं और यहूदा के खिलाफ होकर, अराम देश से दोस्ती करने के कारण आध्यात्मिक तौर पर नशे में धुत्त हैं। मगर जल्द ही हमलावर आएँगे और ऐसी हर चीज़ को पैरों तले रौंद डालेंगे जो एप्रैम के लोगों को प्यारी है।—यशायाह 29:9 से तुलना कीजिए।
5. इस्राएल किस खतरनाक मुकाम तक आ पहुँचा है, मगर यशायाह ने किस तरह उम्मीद बँधायी?
5 एप्रैम को एहसास नहीं है कि वह किस खतरनाक मुकाम तक आ पहुँचा है। यशायाह आगे कहता है: “उनकी भड़कीली सुन्दरता का मुर्झानेवाला फूल जो अति उपजाऊ तराई के सिरे पर है, वह ग्रीष्मकाल से पहिले पके अंजीर के समान होगा, जिसे देखनेवाला देखते ही हाथ में ले और निगल जाए।” (यशायाह 28:4) एप्रैम अश्शूर के हाथ में आ गिरेगा, और वह उसे एक स्वादिष्ट चीज़ की तरह एक ही बार में निगल जाएगा। तो क्या बचने की कोई उम्मीद नहीं है? पिछली कई भविष्यवाणियों की तरह, इस बार भी यशायाह न्यायदंड की भविष्यवाणी करने के साथ-साथ एक उम्मीद भी देता है। चाहे सारा देश गिर जाए, तो भी यहोवा की मदद से कुछ वफादार लोग बच जाएँगे। “सेनाओं का यहोवा स्वयं अपनी प्रजा के बचे हुओं के लिये सुन्दर और प्रतापी मुकुट ठहरेगा; और जो न्याय करने को बैठते हैं उनके लिये न्याय करनेवाली आत्मा और जो चढ़ाई करते हुए शत्रुओं को नगर के फाटक से हटा देते हैं, उनके लिये वह बल ठहरेगा।”—यशायाह 28:5,6.
‘वे भटक गए हैं’
6. इस्राएल का विनाश कब होता है, मगर इस बात पर यहूदा को क्यों खुश नहीं होना चाहिए?
6 सामरिया से लेखा लेने का दिन सा.यु.पू. 740 में आया, जब अश्शूरी आकर उत्तर के इस्राएल राज्य को तहस-नहस कर डालते हैं और एक आज़ाद देश के रूप में उसका वजूद खत्म हो जाता है। अब यहूदा के बारे में क्या? उस देश पर भी अश्शूर चढ़ाई करेगा और बाद में बाबुल के हाथों उसकी राजधानी का सर्वनाश होगा। मगर यशायाह के जीवनकाल में, यहूदा का मंदिर कायम रहेगा, याजकवर्ग काम करता रहेगा और भविष्यवक्ता भविष्यवाणी करते रहेंगे। यह जानकर कि उत्तर में उसके पड़ोसी इस्राएल राज्य का जल्द
ही विनाश होनेवाला है, क्या यहूदा को खुशियाँ मनानी चाहिए? हरगिज़ नहीं! यहोवा, यहूदा और उसके अगुवों से भी लेखा लेगा क्योंकि उन्होंने यहोवा पर भरोसा नहीं रखा और उसकी आज्ञाओं को तोड़ा है।7. यहूदा के अगुवे किस तरह के नशे में हैं, और इसलिए वे क्या करते हैं?
7 अब यशायाह, यहूदा के बारे में संदेश देते हुए कहता है: “ये भी दाखमधु के कारण डगमगाते और मदिरा से लड़खड़ाते हैं; याजक और नबी भी मदिरा के कारण डगमगाते हैं, दाखमधु ने उनको भुला दिया है, वे मदिरा के कारण लड़खड़ाते और दर्शन पाते हुए भटक जाते, और न्याय में भूल करते हैं। क्योंकि सब भोजन-आसन वमन और मल से भरे हैं, कोई शुद्ध स्थान नहीं बचा।” (यशायाह 28:7,8) उफ, कैसे घिनौने काम! परमेश्वर के मंदिर में नशे में धुत्त रहना ही एक बड़ा पाप होगा। मगर ये याजक और भविष्यवक्ता तो और भी घोर पाप कर रहे हैं। वे आध्यात्मिक तरीके से नशे में चूर हैं, यानी इंसानों के साथ की गयी संधियों पर इतना भरोसा रखते हैं कि उन्हें कोई खतरा नज़र आता ही नहीं। वे यह मानकर खुद को धोखा दे रहे हैं कि उन्होंने जो रास्ता अपनाया है वह बड़ी अक्लमंदी का है। वे शायद मानते हैं कि अगर यहोवा उनकी रक्षा नहीं कर पाया तो ऐसी सूरत में उनके पास अपनी हिफाज़त करने का दूसरा रास्ता मौजूद है। आध्यात्मिक नशे की इस हालत में, ये धर्मगुरु अपने मुँह से परमेश्वर के खिलाफ ऐसी घृणित और गंदी बातें उगलते हैं जिनसे साफ नज़र आता है कि उन्हें परमेश्वर के वादों पर ज़रा भी भरोसा नहीं।
8. यशायाह का संदेश सुनकर अगुवे क्या करते हैं?
8 जब यहूदा के अगुवों को यहोवा की चेतावनी सुनायी जाती है, तो वे क्या करते हैं? वे यशायाह का ठट्ठा उड़ाते हुए उस पर इलज़ाम लगाते हैं कि वह उनसे ऐसे बात करता है मानो वे कोई दूध पीते बच्चे हों: “वह किसको ज्ञान सिखाएगा, और किसको अपने समाचार का अर्थ समझाएगा? क्या उनको जो दूध छुड़ाए हुए और स्तन से अलगाए हुए हैं? क्योंकि आज्ञा पर आज्ञा, आज्ञा पर आज्ञा, नियम पर नियम, नियम पर नियम, थोड़ा यहां, थोड़ा वहां।” (यशायाह 28:9,10) यशायाह की बातें उन्हें बड़ी अजीब और रटी-रटायी सी लगती हैं! वह बार-बार एक ही बात कहता है: ‘यहोवा ने यह आज्ञा दी है! यहोवा ने यह आज्ञा दी है! यहोवा का नियम यह है! यहोवा का नियम यह है!’ * लेकिन जल्द ही यहोवा, यहूदा के लोगों पर कार्यवाही करके उनसे “बोलेगा।” (NHT) वह उनके खिलाफ विदेशी बाबुल की सेना भेजेगा, जो वाकई बिलकुल अलग भाषा बोलते हैं। यह सेना निश्चय ही यहोवा की “आज्ञा पर आज्ञा” पूरी करेगी और यहूदा का विनाश होकर ही रहेगा।—यशायाह 28:11-13 पढ़िए।
आज के आध्यात्मिक मतवाले
9, 10. यशायाह के शब्द, बाद की पीढ़ियों पर कब और कैसे पूरे होते हैं?
9 क्या यशायाह की भविष्यवाणियाँ सिर्फ प्राचीन इस्राएल और यहूदा के लिए ही थीं? हरगिज़ नहीं! यीशु और पौलुस दोनों ने ही उसके शब्दों का हवाला देकर उन्हें अपने ज़माने की इस्राएल जाति पर लागू किया। (यशायाह 29:10,13; मत्ती 15:8,9; रोमियों 11:8) इतना ही नहीं, आज भी ऐसे हालात पैदा हो गए हैं जैसे यशायाह के दिनों में थे।
10 इस बार, ईसाईजगत के धर्मगुरु राजनीति पर भरोसा रखनेवालों में हैं। इस्राएल और यहूदा के शराबियों की तरह, वे भी लड़खड़ा रहे हैं। वे राजनीतिक मामलों में दखलअंदाज़ी करते हैं और इस बात पर इतराते हैं कि उनके पास ऐसे लोग सलाह-मशविरा करने आते हैं जो दुनिया की नज़रों में बड़ी-बड़ी हस्तियाँ हैं। बाइबल की शुद्ध सच्चाई बताने के बजाय, वे अशुद्ध बातें ही बोलते हैं। उनकी आध्यात्मिक नज़र धुँधली हो गयी है, इसलिए उनकी बतायी राह पर चलने से इंसान को खतरा है।—मत्ती 15:14.
11. परमेश्वर के राज्य की खुशखबरी सुनने पर ईसाईजगत के धर्मगुरु क्या करते हैं?
11 जब यहोवा के साक्षी, ईसाईजगत के धर्मगुरुओं को परमेश्वर के राज्य के बारे में बताते हैं कि इंसान के लिए यही एक पक्की आशा है, तो वे क्या करते हैं? उनको यह बात समझ ही नहीं आती। उनकी नज़र में साक्षी छोटे बच्चों की तरह बे-सिर-पैर की बातें करते और हमेशा एक ही बात की रट लगाए मत्ती 23:13) इसलिए, उन्हें यह चेतावनी दी जा रही है कि यहोवा हमेशा अपने निहत्थे साक्षियों के ज़रिए उनसे बातें नहीं करता रहेगा। ऐसा वक्त आएगा जब परमेश्वर के राज्य को ठुकरानेवाले लोग ‘घायल होंगे, और फंदे में फंसकर पकड़े जाएंगे’, जी हाँ पूरी तरह नाश किए जाएँगे।
रहते हैं। इन धर्मगुरुओं की नज़र में साक्षियों की कोई इज़्ज़त नहीं है और वे उनका मज़ाक उड़ाते हैं। यीशु के ज़माने के यहूदियों की तरह, वे खुद परमेश्वर का राज्य नहीं चाहते और ना ही वे चाहते हैं कि उनका झुंड इसके बारे में सुने। (“मृत्यु से वाचा”
12. इसका मतलब क्या है कि यहूदा ने “मृत्यु से वाचा” बाँध ली है?
12 यशायाह अपना संदेश जारी रखता है: “तुम ने कहा है कि हम ने मृत्यु से वाचा बान्धी और अधोलोक से प्रतिज्ञा कराई है; इस कारण विपत्ति जब बाढ़ की नाईं बढ़ आए तब हमारे पास न आएगी; क्योंकि हम ने झूठ की शरण ली और मिथ्या की आड़ में छिपे हुए हैं।” (यशायाह 28:14,15) यहूदा के अगुवे डींग मारते हैं कि उनकी राजनीतिक संधियाँ उनको हारने न देंगी। उन्हें ऐसा लगता है जैसे उन्होंने “मृत्यु से वाचा” बाँध ली है कि वह उनके करीब न आए। लेकिन उनकी ये खोखली संधियाँ एक धोखे और फरेब के सिवा और कुछ नहीं, वे उन्हें नहीं बचा पाएँगी। उसी तरह आज ईसाईजगत की इस दुनिया के नेताओं के साथ गहरी साँठ-गाँठ है मगर जब यहोवा उससे लेखा लेगा, तो ये दोस्त उसके किसी काम नहीं आएँगे। वह सचमुच तबाह होकर ही रहेगा।—प्रकाशितवाक्य 17:16,17.
13. “परखा हुआ पत्थर” कौन है, और ईसाईजगत ने कैसे उसे ठुकरा दिया है?
13 दरअसल, इन धर्मगुरुओं को किससे आस लगानी चाहिए? यशायाह अब यहोवा का वादा लिखता है: “देखो, मैं ने सिय्योन में नेव का एक पत्थर रखा है, एक परखा हुआ पत्थर, कोने का अनमोल और अति दृढ़ नेव के योग्य पत्थर: और जो कोई विश्वास रखे वह उतावली न करेगा। और मैं न्याय को डोरी और धर्म को साहुल ठहराऊंगा; और तुम्हारा झूठ का शरणस्थान ओलों से बह जाएगा, और तुम्हारे छिपने का स्थान जल से डूब जाएगा।” (यशायाह 28:16,17) यशायाह द्वारा ये शब्द कहने के कुछ ही समय बाद, वफादार राजा हिजकिय्याह को सिय्योन में राजा बनाया जाता है और उसके राज की रक्षा, पड़ोसी देशों की मदद से नहीं बल्कि यहोवा की ओर से होती है। लेकिन यहोवा का यह वादा हिजकिय्याह के बारे में नहीं है। यशायाह के इन्हीं शब्दों का हवाला देते हुए, प्रेरित पतरस ने बताया कि हिजकिय्याह के बरसों बाद पैदा हुआ उसी का एक वंशज, यीशु मसीह वह “परखा हुआ पत्थर” है और जो कोई उस पर विश्वास रखेगा उसे डरने की कोई ज़रूरत नहीं होगी। (1 पतरस 2:6) कितने दुःख की बात है कि खुद को ईसाई कहनेवाले पादरियों ने वही काम किया है जिसे करने से यीशु ने साफ इनकार किया था! उन्हें उस समय का इंतज़ार करना था जब यहोवा अपने बेटे यीशु मसीह के ज़रिए अपना राज्य लाता। मगर ऐसा करने के बजाय वे इस दुनिया में शोहरत और ताकत हासिल करने में लग गए।—मत्ती 4:8-10.
14. “मृत्यु से” की गयी यहूदा की “वाचा” कब टूट जाएगी?
14 जब बाबुल की सेना देश में घुसकर “बाढ़ की नाईं बढ़” जाएगी, तब यहोवा यह दिखा देगा कि यहूदा का राजनीतिक शरणस्थान झूठा है। यहोवा कहता है: “तब जो वाचा तुम ने मृत्यु से बान्धी है वह टूट जाएगी, . . . जब विपत्ति बाढ़ की नाईं बढ़ आए, तब तुम उस में डूब ही जाओगे। जब जब वह बढ़ आए, तब तब . . . इस समाचार का सुनना ही व्याकुल होने का कारण होगा।” (यशायाह 28:18,19) जी हाँ, यहोवा की सेवा करने का दावा करते हुए दूसरे देशों से की गयी संधियों पर भरोसा रखनेवालों का जो अंजाम हुआ, उससे एक ज़बरदस्त सबक सीखा जा सकता है।
15. यशायाह ने कौन-सा दृष्टांत देकर बताया कि यहूदा को अपने शरणस्थान से पूरी सुरक्षा नहीं मिलेगी?
15 गौर कीजिए कि यहूदा के अगुवों की अब क्या हालत हो चुकी है। “बिछौना टांग फैलाने के लिये छोटा, और ओढ़ना ओढ़ने के लिये सकरा है।” (यशायाह 28:20) मानो वे आराम करने के लिए लेटना चाहते हैं, मगर उन्हें आराम नहीं मिलता। या तो बिछौना इतना छोटा है कि उनके पैर ठंड में खुले रह जाते हैं या फिर अगर वे अपनी टाँगें सिकोड़ भी लें तो ओढ़ना इतना छोटा पड़ जाता है कि पूरे शरीर को ढक नहीं पाता ताकि उनको ठंड से बचा सके। यशायाह के दिनों में लोग ऐसी ही बेचैनी की हालत में थे। और आज यही हाल उन लोगों का भी है जो ईसाईजगत के झूठे शरणस्थान पर भरोसा रखते हैं। कितनी घिनौनी बात है कि ईसाईजगत के कुछ पादरियों ने राजनीति से इस कदर मेल-जोल बढ़ा लिया है कि उन्हें नफरत की वजह से किसी जाति को पूरी तरह मिटा देने या जनसंहार जैसे जघन्य अपराधों के लिए ज़िम्मेदार पाया गया है!
यहोवा का “अनोखा काम”
16. यहोवा का “अनोखा काम” कौन-सा है, और यह क्यों अद्भुत है?
16 यहूदा के धर्मगुरुओं का जो आखिरी अंजाम होगा, वह उनकी उम्मीद से बिलकुल परे है। यहूदा के आध्यात्मिक मतवालों के साथ यहोवा कुछ अनोखी कार्यवाही करनेवाला है। “यहोवा ऐसे उठ खड़ा होगा जैसे कि पराजीम पर्वत पर खड़ा हुआ था, और जैसे उसने गिबोन की घाटी में अपना क्रोध दिखाया था वैसे ही अब वह फिर दिखाएगा, जिससे कि वह अपना काम, अपना अनोखा काम, और अपना कार्य, हां, अद्भुत कार्य करे।” (यशायाह 28:21, NHT) राजा दाऊद के दिनों में, यहोवा ने पराजीम पर्वत पर और गिबोन की घाटी में अपने लोगों को पलिश्तियों के खिलाफ शानदार जीत दिलायी थी। (1 इतिहास 14:10-16) यहोशू के दिनों में तो उसने गिबोन की घाटी पर सूर्य को थमा दिया था ताकि इस्राएली एमोरियों पर पूरी जीत हासिल कर सकें। (यहोशू 10:8-14) वे काम सचमुच अद्भुत थे! अब यहोवा फिर से लड़ेगा, मगर इस बार वह उन लोगों के खिलाफ लड़ेगा जो उसके अपने लोग होने का दावा करते हैं। क्या कोई और बात इससे ज़्यादा अनोखी या अद्भुत हो सकती है? हरगिज़ नहीं, खासकर इस बात को ध्यान में रखते हुए कि यरूशलेम यहोवा की उपासना का गढ़ है और वही यहोवा के अभिषिक्त राजा की राजधानी है। अब तक, यरूशलेम में दाऊद के राजघराने का कभी-भी तख्ता-पलट नहीं हुआ है। मगर अब, यहोवा हर हाल में अपना “अनोखा काम” करेगा।—हबक्कूक 1:5-7 से तुलना कीजिए।
17. यशायाह की भविष्यवाणी को ठट्ठों में उड़ाकर, क्या उसे पूरा होने से रोका जा सकेगा?
17 इसलिए यशायाह चेतावनी देता है: “अब तुम ठट्ठा मत करो, नहीं तो तुम्हारे बन्धन कसे जाएंगे; क्योंकि मैं ने सेनाओं के प्रभु यहोवा से यह सुना है कि सारे देश का सत्यानाश ठाना गया है।” (यशायाह 28:22) हालाँकि देश के अगुवे ठट्ठा करते हैं, मगर यशायाह का संदेश सच है। उसने यह संदेश यहोवा से सुना है, जिसके साथ ये अगुवे एक वाचा में बँधे हुए हैं। उसी तरह आज, ईसाईजगत के धर्मगुरु जब यहोवा के ‘अनोखे काम’ के बारे में सुनते हैं तो वे ठट्ठा करते हैं। यहाँ तक कि वे आग-बबूला होकर, यहोवा के साक्षियों के खिलाफ चीखते-चिल्लाते हैं। लेकिन यहोवा के साक्षी जो संदेश सुनाते हैं, वह सच्चा है। यह संदेश बाइबल में दिया गया है, उसी किताब में जिसे सिखाने का ये धर्मगुरु दावा करते हैं।
18. यशायाह ने कौन-सा दृष्टांत देकर समझाया कि यहोवा हद-से-ज़्यादा ताड़ना कभी नहीं देता?
18 लेकिन, सच्चे दिल के जो लोग इन अगुवों के कहने में नहीं आते, उन्हें यहोवा सुधारेगा और फिर से उन पर अनुग्रह करेगा। (यशायाह 28:23-29 पढ़िए।) जिस तरह एक किसान, जीरे जैसे छोटे-छोटे बीजों की कुटाई करने के लिए नाज़ुक तरीके इस्तेमाल करता है, उसी तरह यहोवा हर इंसान को उसके हालात के हिसाब से ताड़ना देता है। वह गलती करनेवालों के साथ कभी-भी क्रूरता से व्यवहार नहीं करता बल्कि उन्हें सुधारने की मनसा से कार्यवाही करता है। जी हाँ, यहोवा की गुज़ारिश सुननेवालों के लिए आगे उम्मीद है। उसी तरह आज, जबकि ईसाईजगत का अंजाम तय हो चुका है, मगर उसमें से जो भी व्यक्ति अपने आप को यहोवा के राज्य के अधीन करता है, वह आनेवाले कठोर न्यायदंड से बच सकता है।
यरूशलेम पर हाय!
19. किस अर्थ में यरूशलेम एक “वेदी” बन जाता, और यह कब और कैसे होता है?
19 लेकिन, अब यहोवा किसके बारे में बोल रहा है? “हाय, अरीएल, अरीएल, हाय उस नगर पर जिस में दाऊद छावनी किए हुए रहा! वर्ष पर वर्ष जोड़ते जाओ, उत्सव के पर्व अपने अपने समय पर मनाते जाओ। तौभी मैं तो अरीएल को सकेती में डालूंगा, वहां रोना पीटना रहेगा, और वह मेरी दृष्टि में सचमुच अरीएल [“वेदी,” NHT, फुटनोट] सा ठहरेगा।” (यशायाह 29:1,2) अरीएल का मतलब शायद ‘परमेश्वर की वेदी’ है और ज़ाहिर है कि यहाँ ये शब्द यरूशलेम के लिए इस्तेमाल हुए हैं। इसलिए कि यरूशलेम में ही परमेश्वर का मंदिर है, जहाँ बलिदान चढ़ाने के लिए वेदी है। यहूदी यहाँ आकर अपने रिवाज़ के मुताबिक पर्व मनाते और बलिदान चढ़ाते हैं, मगर यहोवा उनकी उपासना से खुश नहीं है। (होशे 6:6) वह तो इस बात की आज्ञा देता है कि सारा यरूशलेम नगर ही एक अलग अर्थ में “वेदी” बना दिया जाए। जैसे वेदी पर खून बहता है और आग जलती है, उसी तरह इस नगर में खून बहाया जाएगा और आग की लपटें उठेंगी। यह सब कैसे होगा, इसके बारे में भी यहोवा वर्णन करता है: “मैं चारों ओर तेरे विरुद्ध छावनी करके तुझे कोटों से घेर लूंगा, और तेरे विरुद्ध गढ़ भी बनाऊंगा। तब तू गिराकर भूमि में डाला जाएगा, और धूल पर से बोलेगा, और तेरी बात भूमि से धीमी धीमी सुनाई देगी।” (यशायाह 29:3,4) यह भविष्यवाणी यहूदा और यरूशलेम पर सा.यु.पू. 607 में पूरी होती है, जब बाबुल की सेना नगर को घेरकर उसका सर्वनाश कर देती और मंदिर को जलाकर राख कर देती है। यरूशलेम को नाश करके उसी मिट्टी में मिला दिया जाता है, जिस पर वह अब तक खड़ा था।
20. परमेश्वर के दुश्मनों का आखिर में क्या हश्र होगा?
20 मगर इससे पहले कि वह भयानक अंत आए, यहूदा में कुछ राजा ऐसे होते हैं जो यहोवा की व्यवस्था का पालन करते हैं। इसका नतीजा क्या होता है? यहोवा अपने लोगों की तरफ से उनके दुश्मनों से लड़ता है। चाहे वे बड़ी तादाद में आकर देश-भर में क्यों न छा जाएँ, वे “धूलि-कणों” और “भूसे” की तरह हो जाएँगे। अपने ठहराए हुए वक्त पर, यहोवा अपने दुश्मनों को “गर्जन, भूकम्प तथा महाशब्द, हां बवण्डर, तूफान और भस्म करनेवाली अग्नि से” तितर-बितर कर देगा।—यशायाह 29:5,6, NHT.
21. यशायाह 29:7,8 में दिया गया दृष्टांत समझाइए।
21 दुश्मनों की सेनाएँ यरूशलेम को लूटने की ताक में बैठी हैं और लूट के माल पर टूट पड़ने के बड़े-बड़े ख्वाब देख रही हैं। लेकिन जल्द ही उनके होश ठिकाने आ जाएँगे! जैसे एक भूखा आदमी, सपने में जी भर के खाता है और सपना टूट जाने पर पहले की तरह भूखा ही रहता है, वैसे ही यहूदा के दुश्मन उस दावत का मज़ा नहीं ले पाएँगे जिसका वे इतनी बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। (यशायाह 29:7,8 पढ़िए।) गौर कीजिए कि वफादार राजा हिजकिय्याह के दिनों में, सन्हेरीब के अधीन आयी अश्शूर की सेना का क्या हुआ जो यरूशलेम पर हमला करने ही वाली थी। (यशायाह, अध्याय 36 और 37) एक ही रात में, बिना किसी इंसान के हाथ चलाए, अश्शूर की उस खूँखार सेना को परास्त कर दिया गया। उसके 1,85,000 शूरवीर मारे गए! जल्द ही, भविष्य में जब मागोग देश का गोग और उसकी सेनाएँ, यहोवा के लोगों पर हमला करने की तैयारी करेंगे तब वे भी उन पर जीत पाने का सपना देख रहे होंगे, मगर उनका भी सपना चूर-चूर किया जाएगा।—यहेजकेल 38:10-12; 39:6,7.
22. आध्यात्मिक तौर पर नशे में चूर होने की वजह से यहूदा पर कैसा असर होता है?
22 जिस वक्त यशायाह भविष्यवाणी का यह भाग सुनाता है, उस वक्त यहूदा के अगुवों में हिजकिय्याह जैसा विश्वास नहीं है। उन्होंने अधर्मी देशों के साथ संधियाँ बनाकर खुद को आध्यात्मिक नशे में चूर कर रखा है। “ठहर जाओ और चकित होओ, भोगविलास करो और अन्धे हो जाओ! वे मतवाले तो हैं, परन्तु दाखमधु से नहीं, वे डगमगाते तो हैं, परन्तु मदिरा पीने से नहीं!” (यशायाह 29:9) आध्यात्मिक तौर पर नशे में चूर होने की वजह से, ये अगुवे यहोवा के सच्चे भविष्यवक्ता को दिए गए दर्शन का मतलब नहीं समझ पाते। यशायाह कहता है: “यहोवा ने तुम को भारी नींद में डाल दिया है और उस ने तुम्हारी नबीरूपी आंखों को बन्द कर दिया है और तुम्हारे दर्शीरूपी सिरों पर पर्दा डाला है। इसलिये सारे दर्शन तुम्हारे लिये एक लपेटी और मुहर की हुई पुस्तक की बातों के समान हैं, जिसे कोई पढ़े-लिखे मनुष्य को यह कहकर दे, इसे पढ़, और वह कहे, मैं नहीं पढ़ सकता क्योंकि इस पर मुहर की हुई है। तब वही पुस्तक अनपढ़े को यह कहकर दी जाए, इसे पढ़, और वह कहे, मैं तो अनपढ़ हूं।”—यशायाह 29:10-12.
23. यहोवा, यहूदा से लेखा क्यों और कैसे लेगा?
23 यहूदा के धार्मिक अगुवे दावा करते हैं कि वे आध्यात्मिक तरीके से बुद्धिमान हैं। मगर उन्होंने यहोवा को छोड़ दिया है। वे दूसरों को सही और गलत के बारे में यहोवा के नियम सिखाने के बजाय, अपने ही गलत विचार सिखा रहे हैं। इस तरह वे अपने अविश्वास और अनैतिक कामों को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं और लोगों को ऐसे मार्ग पर ले जा रहे हैं जिससे परमेश्वर उनसे नाराज़ हो। इसलिए यहोवा एक “अचम्भे का काम” या “अनोखा काम” करेगा और उनसे उनके कपट का लेखा लेगा। वह कहता है: “ये लोग जो मुंह से मेरा आदर करते हुए समीप आते परन्तु अपना मन मुझ से दूर रखते हैं, और जो केवल मनुष्यों की आज्ञा सुन सुनकर मेरा भय मानते हैं; इस कारण सुन, मैं इनके साथ अद्भुत काम वरन अति अद्भुत और अचम्भे का काम करूंगा; तब इनके बुद्धिमानों की बुद्धि नष्ट होगी, और इनके प्रवीणों की प्रवीणता जाती रहेगी।” (यशायाह 29:13,14) यहूदा अपनी ही नज़रों में बुद्धिमान और प्रवीण है, मगर उसकी बुद्धि नष्ट होगी क्योंकि यहोवा हालात को ऐसे बदल देगा कि यहूदा का सारा धर्मत्यागी समाज बाबुल विश्वशक्ति के हाथों मिट जाएगा। पहली सदी में भी ऐसा ही हुआ, क्योंकि खुद को बहुत बुद्धिमान समझनेवाले अगुवों ने यहूदी जाति को गुमराह कर दिया था। हमारे दिनों में ईसाईजगत के साथ भी कुछ ऐसा ही होनेवाला है।—मत्ती 15:8,9; रोमियों 11:8.
24. यहूदा के लोग किस तरह दिखाते हैं कि उन्हें परमेश्वर का भय नहीं है?
24 लेकिन, फिलहाल तो डींगें मारनेवाले यहूदा के अगुवे समझते हैं कि वे बहुत होशियार हैं और परमेश्वर की उपासना जैसे-तैसे करके बच निकलेंगे। लेकिन क्या वाकई वे इतने होशियार हैं? यशायाह उनका नकाब उतार फेंकता है और उनकी असलियत को सामने ले आता है कि वे दिल से परमेश्वर का भय नहीं मानते और इसीलिए उनमें सच्ची बुद्धि नहीं है। “हाय उन पर जो अपनी युक्ति को यहोवा से छिपाने का बड़ा यत्न करते, और अपने काम अन्धेरे यशायाह 29:15,16. भजन 111:10 से तुलना कीजिए।) वे चाहे जितना भी सोचें कि हम पूरी तरह छिपे हुए हैं, मगर परमेश्वर की नज़रों में वे ‘खुले और बेपरद’ हैं।—इब्रानियों 4:13.
में करके कहते हैं, हम को कौन देखता है? हम को कौन जानता है? तुम्हारी कैसी उलटी समझ है! क्या कुम्हार मिट्टी के तुल्य गिना जाएगा? क्या बनाई हुई वस्तु अपने कर्त्ता के विषय कहे कि उस ने मुझे नहीं बनाया, वा रची हुई वस्तु अपने रचनेवाले के विषय कहे, कि वह कुछ समझ नहीं रखता?” (‘बहिरे सुनने लगेंगे’
25. “बहिरे” किस अर्थ में सुनने लगेंगे?
25 लेकिन, जो-जो व्यक्ति विश्वास रखते हैं, उनका उद्धार होगा। (यशायाह 29:17-24. लूका 7:22 से तुलना कीजिए।) “बहिरे पुस्तक की बातें” यानी परमेश्वर के वचन का संदेश “सुनने लगेंगे।” जी हाँ, यहाँ सचमुच का बहरापन नहीं बल्कि आध्यात्मिक बहरापन दूर किए जाने की बात हो रही है। यशायाह फिर एक बार मसीहाई राज्य की स्थापना और उस राज्य के ज़रिए पृथ्वी पर सच्ची उपासना के फिर से शुरू होने की भविष्यवाणी कर रहा है। यह भविष्यवाणी हमारे ज़माने में पूरी हुई है, क्योंकि सच्चे दिलवाले लाखों लोग खुद को यहोवा के हाथों में दे रहे हैं ताकि वह उन्हें सुधारे, साथ ही वे उसकी स्तुति करना सीख रहे हैं। यह भविष्यवाणी की क्या ही शानदार पूर्ति है! और आखिरकार वह दिन भी आएगा जब सभी प्राणी, सब के सब यहोवा की स्तुति करेंगे और उसके पवित्र नाम की महिमा करेंगे।—भजन 150:6.
26. आज “बहिरे” किन आध्यात्मिक चितौनियों को बार-बार सुन रहे हैं?
26 आज परमेश्वर का वचन सुननेवाले ये “बहिरे” क्या सीख रहे हैं? यही कि सभी मसीहियों को, खासकर जिन्हें कलीसिया में अच्छी मिसाल माना जाता है, उन्हें इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए कि वे ‘मदिरा के कारण न डगमगाएं।’ (यशायाह 28:7) इसके अलावा, हमें परमेश्वर से बार-बार मिलनेवाली चितौनियों को सुनने पर ऊब नहीं जाना चाहिए, क्योंकि ये चितौनियाँ हमें सभी मामलों को आध्यात्मिक नज़रिए से देखने में मदद करती हैं। जबकि हम मसीहियों को चाहिए कि सरकारी अधिकारियों को उचित अधीनता दिखाएँ और कुछ सेवाओं के लिए उन पर निर्भर रहें, मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि उद्धार इस दुनिया से नहीं बल्कि यहोवा परमेश्वर की ओर से ही मिलता है। हमें यह भी कभी नहीं भूलना चाहिए कि धर्मत्यागी यरूशलेम की तरह आज की यह पीढ़ी भी परमेश्वर के न्यायदंड से नहीं बच सकती। यशायाह की तरह, हम भी यहोवा की मदद से, विरोध के बावजूद उसकी चेतावनी का संदेश सुनाना जारी रख सकते हैं।—यशायाह 28:14,22; मत्ती 24:34; रोमियों 13:1-4.
27. मसीही, यशायाह की भविष्यवाणी से कौन-से सबक सीख सकते हैं?
27 कलीसिया में प्राचीन और माता-पिता यहोवा के ताड़ना देने के तरीके से बहुत कुछ सीख सकते हैं। उनकी हमेशा यही कोशिश होनी चाहिए कि वे गलती करनेवाले को सिर्फ सज़ा न दें बल्कि परमेश्वर के साथ दोबारा एक अच्छा रिश्ता कायम करने में उसकी मदद करें। (यशायाह 28:26-29. यिर्मयाह 30:11 से तुलना कीजिए।) हम सभी को और नौजवानों को भी याद दिलाया गया है कि यहोवा की सेवा दिल से करना कितना ज़रूरी है, न कि सिर्फ इंसानों को खुश करने के लिए मसीही होने का दिखावा करना। (यशायाह 29:13) हमें यह साबित करना चाहिए कि हम यहूदा के अविश्वासी लोगों की तरह नहीं हैं बल्कि हमें यहोवा का भय मानना भाता है और दिल की गहराइयों से हम उसका आदर करते हैं। (यशायाह 29:16) इसके अलावा, हमें यह भी दिखाना है कि हम यहोवा से सुधारे जाने और सीखने के लिए तैयार हैं।—यशायाह 29:24.
28. यहोवा के सेवक उसके द्वारा किए जानेवाले उद्धार के बारे में कैसा महसूस करते हैं?
28 यहोवा पर और उसके कार्यवाही करने के तरीके पर भरोसा रखना वाकई कितना ज़रूरी है! (भजन 146:3 से तुलना कीजिए।) आज हम जो चेतावनी का संदेश सुना रहे हैं, वह शायद ज़्यादातर लोगों को बचकाना-सा लगे। उन्हें यह बात अनोखी और अजीब-सी लगती है कि परमेश्वर ईसाईजगत जैसे संगठन का विनाश करेगा जो उसकी सेवा करने का दावा करता है। लेकिन यहोवा यह “अनोखा काम” करके ही रहेगा। इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं है। इसलिए इस दुनिया के अंतिम दिनों के दौरान, परमेश्वर के सेवक उसके राज्य पर और उसके ठहराए गए राजा, यीशु मसीह पर पूरा भरोसा रखते हैं। वे जानते हैं कि यहोवा अपने “अद्भुत काम” के साथ-साथ, उद्धार भी करेगा और इससे सब आज्ञाकारी इंसानों को सदा तक आशीषें मिलती रहेंगी।
[फुटनोट]
^ पैरा. 8 मूल इब्रानी भाषा में, यशायाह 28:10 एक कविता है जिसके बोल बार-बार दोहराए गए हैं। यह सुनने में नर्सरी के बच्चों की कविता जैसी लगती है। इसलिए, धर्मगुरुओं को यशायाह का संदेश रटा-रटाया और बचकाना सा लगता था।
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 289 पर तसवीरें]
ईसाईजगत ने परमेश्वर के बजाय इंसानी शासकों के साथ की गयी संधियों पर भरोसा रखा है
[पेज 290 पर तसवीर]
यहोवा बाबुल के हाथों यरूशलेम का विनाश करवाकर अपना “अनोखा काम” करता है
[पेज 298 पर तसवीर]
जो लोग पहले आध्यात्मिक रूप से बहरे थे वे अब परमेश्वर का वचन ‘सुन’ सकते हैं