यहोवा का भवन ऊँचा किया गया
चौथा अध्याय
यहोवा का भवन ऊँचा किया गया
1, 2. संयुक्त राष्ट्र के चौक की दीवार पर कौन-से शब्द खुदे हुए हैं, और इन्हें कहाँ से लिया गया है?
“वे अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हंसिया बनाएंगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध फिर तलवार न चलाएगी, न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगे।” ये शब्द न्यू यॉर्क शहर के संयुक्त राष्ट्र चौक पर बनी एक दीवार पर खुदे हुए हैं। बरसों तक लोग इस बात से अनजान थे कि ये शब्द कहाँ से लिए गए हैं। इसलिए कि संयुक्त राष्ट्र का मकसद सारी दुनिया में शांति लाना था, तो मान लिया गया कि सन् 1945 में इसकी स्थापना करनेवालों ने ही शायद ये शब्द लिखवाए होंगे।
2 लेकिन सन् 1975 में, दीवार पर लिखे इन शब्दों के नीचे, छैनी से यशायाह नाम खोद दिया गया। तब कहीं जाकर यह पता चला कि ये शब्द इस ज़माने के नहीं बल्कि सदियों पुराने हैं। दरअसल, ये शब्द एक भविष्यवाणी हैं जो आज से 2,700 से भी ज़्यादा साल पहले यशायाह की किताब में लिखी गयी थी और अब इसके दूसरे अध्याय में पायी जाती है। हज़ारों सालों से शांति से प्यार करनेवालों के मन में यही सवाल उठता रहा कि यशायाह की यह भविष्यवाणी कब और कैसे पूरी होगी। मगर अब और ज़्यादा सोचने की ज़रूरत नहीं क्योंकि आज हम खुद अपनी आँखों से इस प्राचीन भविष्यवाणी की शानदार पूर्ति होते हुए देख रहे हैं।
3. कौन-सी जातियाँ अपनी तलवारों को पीटकर हल के फाल बना रही हैं?
3 ये कौन-सी जातियाँ हैं जो अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल बना रही हैं? बेशक, ये आजकल के राष्ट्र और सरकारें तो नहीं हो सकतीं। क्योंकि अभी तक तो इन राष्ट्रों ने युद्ध करने के लिए तलवारें या नए-नए हथियार बनाए ही हैं, ताकि लड़ाइयाँ भी लड़ें और अपनी ताकत का खौफ बिठाकर “शांति” भी फिलिप्पियों 4:9.
कायम रखें। चाहे इन राष्ट्रों ने कुछ और भले ही ना किया हो, मगर हमेशा से इनकी फितरत तलवारों से हल के फाल नहीं बल्कि हल के फालों से तलवारें बनाने की रही है! दरअसल, यशायाह की भविष्यवाणी की पूर्ति सभी जातियों में से निकलकर आनेवाले उन लोगों पर पूरी होती है, जो ‘शान्ति के परमेश्वर’ यहोवा की उपासना करते हैं।—शुद्ध उपासना की ओर धारा की तरह आ रही जातियाँ
4, 5. यशायाह के दूसरे अध्याय की शुरूआत की आयतें क्या भविष्यवाणी करती हैं, और इसके हर हाल में पूरा होने पर किस तरह ज़ोर दिया गया है?
4 यशायाह का दूसरा अध्याय इन शब्दों के साथ शुरू होता है: “आमोस के पुत्र यशायाह का वचन, जो उस ने यहूदा और यरूशलेम के विषय दर्शन में पाया। अन्त के दिनों में ऐसा होगा कि यहोवा के भवन का पर्वत सब पहाड़ों पर दृढ़ किया जाएगा, और सब पहाड़ियों से अधिक ऊंचा किया जाएगा; और हर जाति के लोग धारा की नाईं उसकी ओर चलेंगे।”—यशायाह 2:1,2.
5 ध्यान दीजिए कि यशायाह की यह भविष्यवाणी कोई अटकल नहीं थी। उसे ऐसी घटनाओं के बारे में लिखने का आदेश मिला था जिन्हें हर हाल में पूरा होना था, इसीलिए उसने लिखा “ऐसा होगा।” यहोवा जो कुछ करने की ठान लेता है वह “सुफल” होकर ही रहता है। (यशायाह 55:11) इस बात पर और ज़्यादा ज़ोर देने के लिए कि उसका यह वादा हर हाल में पूरा होगा, यहोवा ने यशायाह के ज़माने के ही एक और भविष्यवक्ता, मीका को भी वही भविष्यवाणी लिखने के लिए प्रेरित किया जो यशायाह 2:2-4 में दी गयी है।—मीका 4:1-3.
6. यशायाह की भविष्यवाणी कब पूरी होनी है?
6 यशायाह की यह भविष्यवाणी कब पूरी होनी थी? “अन्त के दिनों में।” न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन कहता है: “दिनों के आखिरी भाग में।” मसीही यूनानी शास्त्र में, ऐसे चिन्हों की भविष्यवाणी की गई थी जिनसे इन अन्त के दिनों की पहचान होनी थी। इनमें से कुछ चिन्ह हैं, युद्ध, भूकंप, महामारियाँ, अकाल और “कठिन समय।” * (2 तीमुथियुस 3:1-5; लूका 21:10,11) आज हमारे ज़माने में ऐसी भविष्यवाणियों के पूरा होने से हमें ढेरों सबूत मिलते हैं कि हम इस दुष्ट दुनिया के “दिनों के आखिरी भाग में” यानी अंतिम दिनों में जी रहे हैं। तो फिर, यह उम्मीद करना सही होगा कि जिन बातों की यशायाह ने भविष्यवाणी की थी, उनकी पूर्ति हमारे ही ज़माने में होनी है।
पर्वत जिस पर उपासना की जाती है
7. यशायाह कैसे इस भविष्यवाणी की तसवीर पेश करता है?
7 चंद शब्दों में यशायाह इस भविष्यवाणी की एक जीती-जागती तसवीर पेश करता है। हमें एक ऊँचा पर्वत नज़र आता है, जिसकी चोटी पर एक शानदार भवन, यानी यहोवा का मंदिर है। यह पर्वत आसपास की पहाड़ियों और टीलों के मुकाबले आसमान की बुलंदियाँ छू रहा है। फिर भी इसे देखकर ना तो हम खौफ खाते हैं ना ही हमें कोई डर महसूस होता है। इसके बजाय यह देखने में इतना मनोहर है, मानो हमें अपनी तरफ बुला रहा हो। सारी जातियों के लोग इस पर्वत पर चढ़कर यहोवा के भवन में जाने के लिए बेताब हैं; वे धारा की तरह इस पर्वत पर चलते चले जा रहे हैं। इन सारी बातों की कल्पना करना तो आसान है, मगर इनका मतलब क्या है?
8. (क) यशायाह के दिनों में पहाड़ियों और टीलों पर अकसर क्या किया जाता था? (ख) ‘यहोवा के भवन के पर्वत’ की ओर जातियों के धारा की नाईं आने का क्या मतलब है?
8 यशायाह के दिनों में पहाड़-पहाड़ियों और टीलों का उपासना से गहरा संबंध था। मिसाल के तौर पर, ऐसी ही जगहों पर मूर्तिपूजक लोग अपने झूठे देवी-देवताओं के लिए मंदिर बनाते थे और उनकी उपासना करते थे। (व्यवस्थाविवरण 12:2; यिर्मयाह 3:6) मगर, यरूशलेम में मोरिय्याह पहाड़ की चोटी की शोभा, यहोवा परमेश्वर का शानदार भवन या मंदिर था। इस्राएल में यहोवा के वफादार उपासक, साल में तीन बार यरूशलेम की यात्रा करते थे और सच्चे परमेश्वर की उपासना के लिए मोरिय्याह पहाड़ पर चढ़ते थे। (व्यवस्थाविवरण 16:16) इसलिए जातियों का ‘यहोवा के भवन के पर्वत’ की ओर धारा की नाईं आने का मतलब है कि बहुत-से लोग यहोवा की सच्ची उपासना के लिए इकट्ठा हो रहे हैं।
9. “यहोवा के भवन का पर्वत” क्या दर्शाता है?
9 बेशक, आज परमेश्वर के लोग सचमुच के पर्वत पर पत्थरों से बने किसी मंदिर में इकट्ठा नहीं होते। यरूशलेम में जो यहोवा का मंदिर था उसे रोम इब्रानियों 8:2) यह आत्मिक तंबू, यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान के आधार पर यहोवा के करीब आने और उसकी उपासना करने का इंतज़ाम है। (इब्रानियों 9:2-10,23) तो इसके मुताबिक, यशायाह 2:2 में बताया गया “यहोवा के भवन का पर्वत,” हमारे ज़माने में यहोवा की सर्वश्रेष्ठ शुद्ध उपासना को दर्शाता है। आज जो शुद्ध उपासना करनेवालों में शामिल हो रहे हैं, वे पृथ्वी की किसी खास जगह पर इकट्ठे नहीं हो रहे; बल्कि वे एक ही परमेश्वर की उपासना करते हैं, इसलिए हम कह सकते हैं कि वे इकट्ठे हैं।
की सेना ने सा.यु. 70 में तहस-नहस कर डाला था। इसके अलावा, प्रेरित पौलुस ने एकदम साफ बता दिया था कि यरूशलेम का मंदिर और उससे पहले का निवासस्थान आनेवाली वस्तुओं की बस एक छाया ही थे। वे उनसे भी कहीं महान और बड़ी, एक आत्मिक असलियत का नमूना थे, यानी ‘उस सच्चे तम्बू का, जिसे किसी मनुष्य ने नहीं, बरन यहोवा ने खड़ा किया था।’ (शुद्ध उपासना का ऊँचा किया जाना
10, 11. हमारे दिनों में यहोवा की उपासना को किस अर्थ में ऊँचा किया गया है?
10 यशायाह कहता है कि “यहोवा के भवन का पर्वत,” यानी शुद्ध उपासना को “सब पहाड़ों पर दृढ़ किया जाएगा, और सब पहाड़ियों से अधिक ऊंचा किया जाएगा।” यशायाह के दिनों से भी बहुत समय पहले राजा दाऊद, वाचा के संदूक को चढ़ाकर यरूशलेम नगर में सिय्योन पर्वत पर ले आया था, और यह नगर समुद्र-तल से 2,500 फुट की ऊँचाई पर बसा हुआ था। सिय्योन पर्वत पर वाचा का संदूक तब तक रहा जब तक मोरिय्याह पर्वत पर मंदिर बनकर तैयार न हो गया। मंदिर बनने के बाद वाचा के संदूक को वहाँ ले जाया गया। (2 शमूएल 5:7; 6:14-19; 2 इतिहास 3:1; 5:1-10) इस तरह, यशायाह के दिनों से भी पहले पवित्र संदूक को सचमुच उठाकर ऊँचे पहाड़ पर बने मंदिर में ले जाया गया था, जो आसपास की पहाड़ियों पर हो रही झूठी उपासना से कहीं ऊँचाई पर था।
11 इसमें भी कोई दो राय नहीं कि आध्यात्मिक अर्थ में यहोवा की उपासना, झूठे देवताओं की उपासना करनेवालों के रीति-रिवाज़ों से हमेशा ही श्रेष्ठ रही है। लेकिन, हमारे दिनों में यहोवा ने अपनी उपासना को स्वर्ग तक ऊँचा किया है, जी हाँ, हर तरह की अशुद्ध उपासना के किसी भी ‘पहाड़’ और ‘पहाड़ी’ से कहीं ज़्यादा ऊँचा। वह कैसे? खास तौर पर उन लोगों को इसमें इकट्ठा करने के ज़रिए जो “आत्मा और सच्चाई से” यहोवा की उपासना करना चाहते हैं।—यूहन्ना 4:23.
12. “राज्य के सन्तान” कौन हैं, और किसे इकट्ठा किया गया है?
12 यीशु मसीह ने ‘जगत के अन्त’ को कटनी का वह वक्त कहा, जब स्वर्गदूत ‘राज्य की [उन] सन्तानों’ को इकट्ठा करते, जिन्हें स्वर्गीय महिमा में यीशु के साथ राज करने की आशा मिली है। (मत्ती 13:36-43) सन् 1919 से, यहोवा ने इनमें से “शेष” बची सन्तानों को सामर्थ दी ताकि वे भी स्वर्गदूतों के साथ, कटनी के इस काम में हिस्सा ले सकें। (प्रकाशितवाक्य 12:17) इस तरह, पहले यीशु के अभिषिक्त भाई यानी “राज्य के सन्तान” इकट्ठे किए गए। और इसके बाद वे खुद इकट्ठा करने के काम में लग गए।
13. यहोवा ने अभिषिक्त जनों के शेषवर्ग को कैसे आशीष दी है?
13 कटनी के इस समय में, यहोवा ने अभिषिक्त जनों के इस शेषवर्ग की मदद की ताकि वे उसके वचन बाइबल की और अच्छी समझ हासिल करते जाएँ और उसके मुताबिक काम करते जाएँ। इस तरीके से भी शुद्ध उपासना को ऊँचा किया गया है। जबकि एक तरफ “पृथ्वी पर तो अन्धियारा और राज्य राज्य के लोगों पर घोर अन्धकार छाया हुआ है,” वहीं दूसरी तरफ यहोवा द्वारा शुद्ध और पवित्र किए जाने के बाद ये अभिषिक्त जन सारी दुनिया में ‘ज्योतियाँ बनकर चमक’ रहे हैं। (यशायाह 60:2; फिलिप्पियों 2:15, NHT) आत्मा से अभिषिक्त ये जन, ‘पूर्ण आध्यात्मिक बुद्धि एवं अन्तर्दृष्टि प्राप्त करके और परमेश्वर की इच्छा के ज्ञान से परिपूर्ण होकर,’ ‘अपने पिता के राज्य में सूर्य की नाईं चमक’ रहे हैं।—कुलुस्सियों 1:9, नयी हिन्दी बाइबिल; मत्ती 13:43.
14, 15. ‘राज्य के सन्तान’ के अलावा और किसे इकट्ठा किया जा रहा है और इसकी भविष्यवाणी हाग्गै ने कैसे की?
यूहन्ना 10:16, NW; प्रकाशितवाक्य 21:3,4) सन् 1930-35 के बीच इनकी गिनती हज़ारों में थी, और बढ़ते-बढ़ते अब इनकी गिनती लाखों तक पहुँच गयी है! प्रेरित यूहन्ना को दिए गए दर्शन में इन लोगों को, “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से एक ऐसी बड़ी भीड़” कहा गया है, “जिसे कोई गिन नहीं सकता था।”—प्रकाशितवाक्य 7:9.
14 इनके अलावा, और भी लोग हैं जो धारा की नाईं ‘यहोवा के भवन के पर्वत’ की ओर आ रहे हैं। इन लोगों को यीशु ने ‘अन्य भेड़’ कहा और इन्हें धरती पर फिरदौस में सदा तक जीने की आशा है। (15 भविष्यवक्ता हाग्गै ने इस बड़ी भीड़ के प्रकट होने की भविष्यवाणी की थी। उसने लिखा: “सेनाओं का यहोवा यों कहता है, अब थोड़ी ही देर बाकी है कि मैं आकाश और पृथ्वी और समुद्र और स्थल सब को कम्पित करूंगा। और मैं सारी जातियों को कम्पकपाऊंगा, और सारी जातियों की मनभावनी वस्तुएं आएंगी [जो लोग अभिषिक्त मसीहियों के साथ मिलकर शुद्ध उपासना करते हैं]; और मैं इस भवन को अपनी महिमा के तेज से भर दूंगा, सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।” (हाग्गै 2:6,7) यह “बड़ी भीड़” आज भी बढ़ती जा रही है। इनकी और इनके साथ अभिषिक्त जनों की मौजूदगी से भी यहोवा के भवन में शुद्ध उपासना को ऊँचा किया जा रहा है, जी हाँ, उसे महिमा से भरा जा रहा है। ऐसा आज तक नहीं हुआ कि सच्चे परमेश्वर की उपासना करने के लिए इतने सारे लोग एक-साथ इकट्ठे हुए हों। इससे यहोवा की, और उसके ठहराए हुए राजा यीशु मसीह की महिमा होती है। जैसा कि राजा सुलैमान ने लिखा था: “राजा की महिमा प्रजा की बहुतायत से होती है।”—नीतिवचन 14:28.
लोगों की ज़िंदगी में उपासना का ऊँचा किया जाना
16-18. कुछ लोगों ने क्या-क्या बदलाव किए हैं ताकि यहोवा उनकी उपासना को स्वीकार करे?
16 हमारे दिनों में शुद्ध उपासना को ऊँचा करने का सारा श्रेय अकेले यहोवा को ही जाता है। मगर जो लोग यहोवा के पास आते हैं उन्हें भी शुद्ध उपासना को ऊँचा करने का मौका मिलता है। जिस तरह एक पर्वत पर चढ़ने के लिए 1 कुरिन्थियों 6:9-11.
मेहनत करनी पड़ती है, उसी तरह परमेश्वर के धर्मी स्तरों के बारे में सीखने और उनके मुताबिक जीने के लिए भी कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। पहली सदी के मसीहियों की तरह, आज परमेश्वर के सेवक भी ऐसे जीवन और ऐसे कामों को पीछे छोड़ आए हैं, जो शुद्ध उपासना के मुताबिक ठीक नहीं हैं। व्यभिचारी, मूर्तिपूजक, परस्त्रीगामी, चोर, लोभी, पियक्कड़ और ऐसे कई लोगों ने अपनी ज़िंदगी में बदलाव किए हैं और वे परमेश्वर की नज़र में “धोए गए” और पवित्र ठहरे हैं।—17 ऐसी ही मिसाल एक युवती की है जिसने लिखा: “एक वक्त ऐसा था जब मैं निराशा के अंधेरे में खो गयी थी। नाजायज़ संबंध रखना और शराब पीकर धुत्त रहना ही मेरी ज़िंदगी थी। मुझे कई लैंगिक बीमारियाँ लग चुकी थीं। मैं ड्रग्स का धंधा करती थी और मुझे किसी भी बात की परवाह नहीं थी।” बाइबल की सच्चाई सीखने के बाद इस युवती ने बड़े-बड़े बदलाव किए ताकि अपनी ज़िंदगी को परमेश्वर के स्तरों के मुताबिक ढाल सके। अब वह कहती है: “मुझे मन की शांति, आत्म-सम्मान और भविष्य के लिए एक आशा मिली है, सच्चा परिवार मिला है और इन सबसे बढ़कर, अब मैं अपने पिता यहोवा के बहुत करीब हूँ।”
18 यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्ता कायम कर लेने के बाद भी, हममें से हरेक के लिए यह ज़रूरी है कि हम शुद्ध उपासना को अपनी ज़िंदगी में सबसे पहली जगह देकर इसे लगातार ऊँचा करते रहें। हज़ारों साल पहले, यशायाह के ज़रिए यहोवा ने अपना यकीन ज़ाहिर किया कि आज हमारे दिनों में ऐसे लाखों लोग होंगे जो उसकी उपासना को अपनी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा अहमियत देंगे। क्या आप भी इन लोगों में से एक हैं?
यहोवा का मार्ग सीखे हुए लोग
19, 20. परमेश्वर के लोगों को क्या सिखाया जा रहा है, और कहाँ?
19 आज शुद्ध उपासना को अपनानेवाले लोगों के बारे में यशायाह हमें और भी कुछ बताता है। वह कहता है: “बहुत देशों के लोग आएंगे, और आपस में कहेंगे: आओ, हम यहोवा के पर्वत पर चढ़कर, याकूब के परमेश्वर के भवन में जाएं; तब वह हमको अपने मार्ग सिखाएगा, और हम उसके पथों पर यशायाह 2:3.
चलेंगे। क्योंकि यहोवा की व्यवस्था सिय्योन से, और उसका वचन यरूशलेम से निकलेगा।”—20 यहोवा अपनी भेड़ों को भटकने के लिए यूँ ही बेसहारा नहीं छोड़ देता। वह बाइबल और उस पर आधारित किताबों के ज़रिए, उन्हें अपनी “व्यवस्था” और अपना “वचन” देता है ताकि वे उसके मार्ग सीख सकें। यह ज्ञान पाकर वे ‘उसके पथों पर चलते’ हैं। परमेश्वर के लिए उनके दिल में जो गहरी श्रद्धा है, उसकी वजह से और उसके आदेश के मुताबिक, वे आपस में यहोवा के मार्गों के बारे में चर्चा करते हैं। वे बड़े-बड़े अधिवेशनों में इकट्ठे होते हैं, और उनके छोटे-छोटे समूह राज्यगृहों और एक-दूसरे के घरों में मिलते हैं ताकि वे सभी परमेश्वर के मार्गों के बारे में सुनकर सीख सकें। (व्यवस्थाविवरण 31:12,13) इस तरह वे भी पहली सदी के मसीहियों की मिसाल पर चलते हैं, जो “प्रेम, और भले कामों में” एक-दूसरे को उसकाने के लिए और एक-दूसरे की हिम्मत बढ़ाने के लिए सभाओं में इकट्ठा हुआ करते थे।—इब्रानियों 10:24,25.
21. आज यहोवा के सेवक किस काम में लगे हुए हैं?
21 वे दूसरों को भी बुलावा देते हैं कि वे उनके साथ यहोवा परमेश्वर की ऊँची और शुद्ध उपासना में शामिल होने के लिए ऊपर ‘चढ़ें।’ यह बात यीशु की उस आज्ञा से कितनी अच्छी तरह मेल खाती है जो उसने स्वर्ग जाने से कुछ ही देर पहले अपने चेलों को दी थी! उसने कहा था: “इसलिये तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ और उन्हें पिता और पुत्र और पवित्रात्मा के नाम से बपतिस्मा दो। और उन्हें सब बातें जो मैं ने तुम्हें आज्ञा दी है, मानना सिखाओ।” (मत्ती 28:19,20) आज परमेश्वर की मदद से, यहोवा के साक्षी इस आज्ञा का पालन करते हुए सारी दुनिया के लोगों के पास जाकर उन्हें सच्चाई सिखाते हैं और चेले बनाकर उन्हें बपतिस्मा देते हैं।
तलवारों से हल के फाल
22, 23. यशायाह 2:4 में क्या भविष्यवाणी की गयी है, और संयुक्त राष्ट्र के एक अधिकारी ने इस बारे में क्या कहा?
22 आइए अब हम उस अगली आयत पर गौर करें, जिसके कुछ शब्द संयुक्त राष्ट्र चौक की दीवार पर खुदे हुए हैं। यशायाह लिखता है: “वह जाति जाति का न्याय करेगा, और देश देश के लोगों के झगड़ों को मिटाएगा; और वे अपनी यशायाह 2:4.
तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हंसिया बनाएंगे; तब एक जाति दूसरी जाति के विरुद्ध फिर तलवार न चलाएगी, न लोग भविष्य में युद्ध की विद्या सीखेंगे।”—23 ऐसा कर पाना आसान तो हरगिज़ नहीं होगा। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन के महा-निदेशक, फेडरिको मेयर ने एक बार कहा: “रेडियो-टीवी और दूसरे माध्यमों के ज़रिए युद्धों का घिनौना रूप दिखाने से इंसान, दिनों-दिन विकराल रूप लेती युद्ध-व्यवस्था पर रोक नहीं लगा पाया है बल्कि सदियों से यह लगातार बढ़ती ही जा रही है। आज की पीढ़ियों के सामने एक ऐसा काम है जो लगभग नामुमकिन है, जिसे बाइबल में ‘अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल’ बनाना कहा गया है। यानी आदिकाल से इंसान के स्वभाव में जो हिंसा की भावना चली आ रही है उसको निकालकर दिलों में शांति के बीज बोने हैं। अगर दुनिया में शांति कायम हो गयी तो लोगों के लिए इससे बड़ी उपलब्धि कोई और नहीं हो सकती और आनेवाली पीढ़ियों के लिए हम सबसे उम्दा विरासत छोड़ जाएँगे।”
24, 25. यशायाह के शब्द किन लोगों पर पूरे हो रहे हैं, और किस तरह?
24 दुनिया के सभी देश मिलकर भी इतना बड़ा काम कभी नहीं कर पाएँगे। क्योंकि यह उनके बस की बात है ही नहीं। यशायाह के ये शब्द, उन लोगों पर पूरे होते हैं, जो अलग-अलग देशों में रहने के बावजूद भी एकता से शुद्ध उपासना कर रहे हैं। यहोवा ने उनके बीच के ‘झगड़ों को मिटा’ दिया है। उसने अपने लोगों को एक-दूसरे के साथ शांति से
रहना सिखाया है। सचमुच, टुकड़ों में बँटी और हिंसा से भरी इस दुनिया में इन लोगों ने लाक्षणिक अर्थ में ‘अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल और अपने भालों को हंसिया बनाया’ है। वह कैसे?25 एक बात तो यह है कि वे युद्धों में किसी भी देश का पक्ष नहीं लेते। यीशु की मौत से कुछ ही समय पहले, हथियारबंद सैनिक उसे गिरफ्तार करने आए। जब पतरस ने अपने स्वामी की रक्षा करने के लिए तलवार से वार किया, तब यीशु ने उससे कहा: “अपनी तलवार काठी में रख ले क्योंकि जो तलवार चलाते हैं, वे सब तलवार से नाश किए जाएंगे।” (मत्ती 26:52) तब से यीशु के चेले अपनी तलवारें पीटकर हल के फाल बनाते आए हैं, यानी वे किसी भी इंसान को मारने के लिए न तो हथियार उठाते हैं, न ही किसी और तरीके से युद्ध का समर्थन करते हैं। वे ‘सब से मेल मिलाप रखते’ हैं।—इब्रानियों 12:14.
मेल-मिलाप की राह पर चलना
26, 27. परमेश्वर के लोग कैसे ‘शांति को ढूंढ़ते और उसका पीछा’ करते हैं? एक मिसाल दीजिए।
26 परमेश्वर के लोगों के बीच शांति सिर्फ इस वजह से नहीं है कि वे युद्धों में हिस्सा नहीं लेते। गौर कीजिए, वे सारी दुनिया में 230 से भी ज़्यादा देशों में पाए जाते हैं और बेहिसाब भाषाओं और संस्कृतियों से हैं, फिर भी उनके बीच शांति है। पहली सदी में यीशु ने अपने चेलों से जो कहा था, वही शब्द आज इन लोगों पर भी पूरे होते हैं: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्ना 13:35) आज मसीही “मेल [या शांति] करवानेवाले” हैं। (मत्ती 5:9) वे ‘शान्ति को ढूंढ़ते और उसका पीछा करते’ हैं। (1 पतरस 3:11, NHT) और “शान्ति [देनेवाला] परमेश्वर” यहोवा खुद उनकी रखवाली करता है।—रोमियों 15:33.
27 जिन्होंने शांति बनाए रखना सीखा है उनमें से कई लोगों की मिसालें हमें हैरत में डाल देती हैं। एक जवान ने अपनी बीती ज़िंदगी के बारे में लिखा: “ठोकरें खाकर मैं ने सीखा कि मुझे अपना बचाव खुद करना होगा। मुझे ज़िंदगी से नफरत थी और मैं बहुत खूँखार बन गया। मैं हमेशा दूसरों से झगड़े मोल लेता था। हर दिन मैं आस-पड़ोस के किसी-न-किसी लड़के से भिड़ जाता और
कभी घूँसों से, कभी पत्थरों या बोतलों से मारता। झगड़ा-फसाद करते-करते मैं बड़ा हुआ।” बाद में, जब इस जवान को ‘यहोवा के भवन के पर्वत’ पर जाने का न्यौता मिला, तो उसने स्वीकार किया। वह परमेश्वर के मार्ग सीखकर उसका शांतिप्रिय सेवक बन गया।28. शांति बनाए रखने के लिए मसीही क्या कर सकते हैं?
28 यहोवा के ज़्यादातर सेवक अपनी बीती ज़िंदगी में इस कदर दंगा-फसाद करनेवाले नहीं थे। इसके बावजूद, वे छोटी-छोटी बातों में दूसरों के साथ शांति बनाए रखने की कोशिश करते हैं, जैसे कि दूसरों से भलाई करना, उनको माफ करना, दूसरों के दुःख-दर्द बाँटना। हालाँकि वे असिद्ध हैं, फिर भी वे कोशिश करते हैं कि चाहे “किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण” ही क्यों न हो, वे ‘एक दूसरे की सह लें और एक दूसरे के अपराध क्षमा करने’ की बाइबल की सलाह मानें।—कुलुस्सियों 3:13.
एक शांतिपूर्ण भविष्य
29, 30. पृथ्वी का भविष्य क्या है?
29 यहोवा ने इन “अन्त के दिनों में” एक अद्भुत काम किया है। उसने सब देशों से ऐसे लोगों को इकट्ठा किया है जो उसकी सेवा करना चाहते हैं। उसने उन्हें अपने मार्गों यानी शांति के मार्गों पर चलना सिखाया है। यही वे लोग हैं जो आनेवाले “बड़े क्लेश” से बचकर एक शांतिपूर्ण नयी दुनिया में जाएँगे, जहाँ युद्ध का नामो-निशान मिटा दिया जाएगा।—प्रकाशितवाक्य 7:14.
30 तलवारें और किसी भी तरह के हथियार नहीं रहेंगे। उस वक्त के बारे में भजनहार ने लिखा: “आओ, यहोवा के महाकर्म देखो, कि उस ने पृथ्वी पर कैसा कैसा उजाड़ किया है। वह पृथ्वी की छोर तक लड़ाइयों को मिटाता है; वह धनुष को तोड़ता, और भाले को दो टुकड़े कर डालता है, और रथों को आग में झोंक देता है!” (भजन 46:8,9) ऐसे भविष्य को ध्यान में रखते हुए, यशायाह के हिम्मत बढ़ानेवाले अगले शब्द आज के लिए भी उतने ही सही हैं जितने उस ज़माने में थे। “हे याकूब के घराने, आ, हम यहोवा के प्रकाश में चलें।” (यशायाह 2:5) जी हाँ, आइए हम यहोवा की ओर से आनेवाले प्रकाश से अपनी राह को रोशन करें और सदा तक उसके मार्ग पर चलते रहें।—मीका 4:5.
[फुटनोट]
^ पैरा. 6 वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित, ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है किताब का 11वाँ अध्याय “ये अन्तिम दिन हैं!” देखिए।
[अध्ययन के लिए सवाल]