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यहोवा का हाथ बढ़ा हुआ है

यहोवा का हाथ बढ़ा हुआ है

इक्कीसवाँ अध्याय

यहोवा का हाथ बढ़ा हुआ है

यशायाह 25:1–27:13

1. यशायाह के मन में यहोवा के लिए कदरदानी कैसे पैदा हुई?

यशायाह के दिल में यहोवा के लिए गहरा प्रेम है और यहोवा की स्तुति करने से उसे सच्ची खुशी मिलती है। वह यहोवा को पुकारता है: “हे यहोवा, तू मेरा परमेश्‍वर है; मैं तुझे सराहूंगा, मैं तेरे नाम का धन्यवाद करूंगा।” यशायाह के मन में अपने सिरजनहार के लिए इतनी कदरदानी कैसे पैदा हुई? इसकी एक बड़ी वजह यह है कि यशायाह को यहोवा और उसके कामों के बारे में अच्छा ज्ञान है। उसके अगले शब्द दिखाते हैं कि वह यहोवा के कामों को जानता था: “क्योंकि तू ने आश्‍चर्य कर्म किए हैं, तू ने प्राचीनकाल से पूरी सच्चाई के साथ युक्‍तियां की हैं।” (यशायाह 25:1) प्राचीनकाल के यहोशू की तरह, यशायाह भी जानता है कि यहोवा विश्‍वासयोग्य और भरोसे के लायक परमेश्‍वर है और वह अपनी सारी ‘युक्‍तियों’ को यानी उसका जो भी उद्देश्‍य है, उसे ज़रूर पूरा करता है।—यहोशू 23:14.

2. यशायाह अब यहोवा की कौन-सी युक्‍ति का ऐलान करता है और यह युक्‍ति शायद किसके खिलाफ है?

2 यहोवा की युक्‍तियों में, इस्राएल के दुश्‍मनों के खिलाफ उसके न्यायदंड की घोषणाएँ भी शामिल हैं। इनमें से एक न्यायदंड का ऐलान करते हुए यशायाह अब कहता है: “तू ने नगर को डीह, और उस गढ़वाले नगर को खण्डहर कर डाला है; तू ने परदेशियों की राजपुरी को ऐसा उजाड़ा कि वह नगर नहीं रहा; वह फिर कभी बसाया न जाएगा।” (यशायाह 25:2) यह बेनाम नगर कौन-सा है? यशायाह शायद मोआब देश के आर नगर का ज़िक्र कर रहा है, क्योंकि मोआब एक लंबे अरसे से परमेश्‍वर के लोगों का दुश्‍मन रहा है। * या हो सकता है वह बाबुल जैसे किसी दूसरे ताकतवर नगर का ज़िक्र कर रहा है।—यशायाह 15:1; सपन्याह 2:8, 9.

3. यहोवा के दुश्‍मन किस मायने में उसकी महिमा करेंगे?

3 जब दुश्‍मनों के ताकतवर नगर के खिलाफ यहोवा की युक्‍ति पूरी होगी, तब वे क्या करेंगे? “सामर्थी लोग तेरी महिमा करेंगे। क्रूर जातियों के नगर तुझसे डरेंगे।” (यशायाह 25:3, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) यह तो हम समझ सकते हैं कि दुश्‍मन यहोवा से डरेंगे क्योंकि वह सर्वशक्‍तिमान है। मगर, इसका क्या मतलब है कि वे उसकी महिमा करेंगे? क्या वे अपने झूठे देवताओं को छोड़कर शुद्ध उपासना करने लग जाएँगे? ऐसा तो हो नहीं सकता! इसके बजाय, फिरौन और नबूकदनेस्सर की तरह उन्हें भी मजबूर होकर यह मानना पड़ेगा कि यहोवा इतना महान और महाशक्‍तिशाली है कि उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता। इस मायने में वे यहोवा की महिमा करेंगे।—निर्गमन 10:16, 17; 12:30-33; दानिय्येल 4:37.

4. आज, “क्रूर जातियों” का कौन-सा “नगर” मौजूद है और किस तरह उसे भी मजबूरन यहोवा की महिमा करनी पड़ती है?

4 आज ‘क्रूर जातियों का नगर,’ “वह बड़ा नगर है, जो पृथ्वी के राजाओं पर राज्य करता है,” यानी दुनिया भर में फैले झूठे धर्मों का साम्राज्य, जिसका नाम है “बड़ा बाबुल।” (प्रकाशितवाक्य 17:5, 18) इस साम्राज्य का सबसे बड़ा हिस्सा है, ईसाईजगत। ईसाईजगत के धर्मगुरु किस तरह यहोवा की महिमा करते हैं? यहोवा ने अपने साक्षियों की खातिर जो आश्‍चर्य कर्म किए हैं, उन्हें देखकर उनका मन कड़वाहट से भर जाता है और उन्हें मजबूर होकर उसकी ताकत का लोहा मानना पड़ता है। खासकर जब 1919 में यहोवा ने अपने सेवकों को बड़े बाबुल की आध्यात्मिक बंधुआई से छुड़ाया और वे पूरे ज़ोर-शोर से अपने काम में लग गए तो यह देखकर धर्मगुरु “डर गए, और स्वर्ग के परमेश्‍वर की महिमा की।”—प्रकाशितवाक्य 11:13. *

5. जो लोग यहोवा पर पूरा भरोसा रखते हैं, यहोवा उनकी हिफाज़त कैसे करता है?

5 हालाँकि यहोवा के दुश्‍मन उसे देखकर खौफ खाते हैं, मगर उसकी सेवा करने की इच्छा रखनेवाले नम्र और दीन लोगों के लिए यहोवा एक शरणस्थान है। धर्म और राजनीति के क्रूर तानाशाह, सच्चे उपासकों के विश्‍वास को तोड़ने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देते हैं, मगर वे कामयाब नहीं होते। क्योंकि यहोवा के सेवक उस पर पूरा भरोसा रखते हैं। आखिरकार, ऐसा वक्‍त भी आता है जब यहोवा बड़ी आसानी से अपने विरोधियों को चुप करा देता है, मानो वह धूप में तपते रेगिस्तान को बादल से ढक देता है या एक दीवार बनकर तूफान के ज़ोर को रोक देता है।यशायाह 25:4, 5 पढ़िए।

‘सब देशों के लोगों के लिये जेवनार’

6, 7. (क) यहोवा आज किस किस्म की दावत दे रहा है और यह किन लोगों के लिए है? (ख) यशायाह ने जिस दावत के बारे में बताया, वह किस बात की एक झलक है?

6 प्यार करनेवाले एक पिता की तरह, यहोवा न सिर्फ अपने बच्चों की हिफाज़त करता है बल्कि उनके लिए भोजन का भी इंतज़ाम करता है, खासकर आध्यात्मिक मायने में। सन्‌ 1919 में अपने लोगों को छुटकारा दिलाने के बाद, यहोवा ने जीत की खुशी में उन्हें एक दावत दी, उन्हें बहुतायत में आध्यात्मिक भोजन दिया: “सेनाओं का यहोवा इसी पर्वत पर सब देशों के लोगों के लिये ऐसी जेवनार करेगा जिस में भांति भांति का चिकना भोजन और निथरा हुआ दाखमधु होगा; उत्तम से उत्तम चिकना भोजन और बहुत ही निथरा हुआ दाखमधु होगा।”यशायाह 25:6.

7 यह दावत यहोवा के “पर्वत” पर दी जा रही है। यह पर्वत क्या है? यह “यहोवा के भवन का पर्वत” है, जहाँ “अन्त के दिनों में” सब जातियों के लोग इकट्ठे हो रहे हैं। यह यहोवा का “पवित्र पर्वत” है, जहाँ उसके सच्चे उपासक न तो किसी को दुःख देते हैं न ही कोई हानि पहुँचाते हैं। (यशायाह 2:2; 11:9) उपासना के इस ऊँचे किए गए स्थान पर, यहोवा अपने वफादार सेवकों को दावत देता है जिसमें ढेर सारा भोजन परोसा जाता है। आज हमें जो बढ़िया आध्यात्मिक चीज़ें बहुतायत में मिल रही हैं, ये इस बात की झलक हैं कि जब सारी दुनिया पर सिर्फ परमेश्‍वर के राज्य की हुकूमत होगी तब शारीरिक भोजन का भी भरपूर मात्रा में इंतज़ाम किया जाएगा। तब कोई भूखा नहीं रहेगा। “देश में पहाड़ों की चोटियों पर बहुत सा अन्‍न होगा।”—भजन 72:8, 16.

8, 9. (क) इंसान के किन दो बड़े दुश्‍मनों को हटा दिया जाएगा? समझाइए। (ख) परमेश्‍वर अपने लोगों की निंदा को कैसे दूर करेगा?

8 आज जो लोग परमेश्‍वर की आध्यात्मिक दावत में शरीक होते हैं, उनका भविष्य बहुत उज्ज्वल होगा। यशायाह के अगले शब्दों पर ध्यान दीजिए। वह पाप और मृत्यु को एक ऐसा “घूंघट” या “पर्दा” बताता है जिसके अंदर इंसान का दम घुट रहा है। वह कहता है: “जो पर्दा सब देशों के लोगों पर पड़ा है, जो घूंघट सब अन्यजातियों पर लटका हुआ है, उसे [यहोवा] इसी पर्वत पर नाश करेगा। वह मृत्यु को सदा के लिये नाश करेगा, और प्रभु यहोवा सभों के मुख पर से आंसू पोंछ डालेगा।”यशायाह 25:7, 8क.

9 जी हाँ, पाप और मृत्यु को मिटा दिया जाएगा! (प्रकाशितवाक्य 21:3, 4) इसके अलावा, हज़ारों सालों से यहोवा के सेवक जो झूठी नामधराई या निंदा सहते आए हैं, उसे भी मिटा दिया जाएगा। “अपनी प्रजा की नामधराई सारी पृथ्वी पर से दूर करेगा; क्योंकि यहोवा ने ऐसा कहा है।” (यशायाह 25:8ख) यहोवा यह सब कैसे करेगा? इसके लिए वह निंदा करनेवाले शैतान और उसके वंश को हटा देगा। (प्रकाशितवाक्य 20:1-3) इसलिए कोई ताज्जुब नहीं कि परमेश्‍वर के लोग खुशी के मारे कह उठेंगे: “देखो, हमारा परमेश्‍वर यही है; हम इसी की बाट जोहते आए हैं, कि वह हमारा उद्धार करे। यहोवा यही है; हम उसकी बाट जोहते आए हैं। हम उस से उद्धार पाकर मगन और आनन्दित होंगे।”—यशायाह 25:9.

घमंडियों को ज़लील किया जाता है

10, 11. यहोवा ने मोआब के साथ कैसा कठोर व्यवहार किए जाने का फैसला किया है?

10 यहोवा अपने उन लोगों को बचाता है जो नम्र हैं। लेकिन, इस्राएल का पड़ोसी मोआब घमंडी है और यहोवा को घमंड से नफरत है। (नीतिवचन 16:18) इसलिए अब मोआब का ज़लील होना तय है। “इस पर्वत पर यहोवा का हाथ सर्वदा बना रहेगा और मोआब अपने ही स्थान में ऐसा लताड़ा जाएगा जैसा घूरे में पुआल लताड़ा जाता है। और वह उस में अपने हाथ इस प्रकार फैलाएगा, जैसे कोई तैरते हुए फैलाए; परन्तु वह उसके गर्व को तोड़ेगा; और उसकी चतुराई को निष्फल कर देगा। और उसकी ऊंची ऊंची और दृढ़ शहरपनाहों को वह झुकाएगा और नीचा करेगा, वरन भूमि पर गिराकर मिट्टी में मिला देगा।”—यशायाह 25:10-12.

11 यहोवा का “हाथ” मोआब के पर्वत पर “बना रहेगा।” और इसका अंजाम? घमंडी मोआब को इस तरह मारा और लताड़ा जाएगा जैसे “घूरे में पुआल लताड़ा जाता है।” यशायाह के दिनों में, खाद बनाने के लिए पुआल को गोबर के ढेर के साथ पैरों से रौंदा जाता था। इस तरह यशायाह, मोआब के ज़लील किए जाने की भविष्यवाणी करता है, चाहे उसकी शहरपनाहें कितनी ही ऊँची और मज़बूत क्यों न दिखती हों।

12. यहोवा का कठोर न्यायदंड सिर्फ मोआब पर क्यों सुनाया जाता है?

12 लेकिन यहोवा ऐसा कठोर दंड देने के लिए मोआब को ही क्यों चुनता है? मोआबी लोग, लूत के वंशज हैं जो इब्राहीम का भतीजा और यहोवा का एक उपासक था। इस तरह, वे परमेश्‍वर की चुनी हुई जाति के सिर्फ पड़ोसी नहीं बल्कि रिश्‍तेदार भी हैं। मगर फिर भी, वे झूठे देवताओं को पूजते हैं और इस्राएल के जानी दुश्‍मन बन चुके हैं। इसलिए वे उसी सज़ा के लायक हैं जो यहोवा ने उनको सुनाई है। इस मामले में, आज यहोवा के सेवकों के दुश्‍मन मोआब की तरह हैं। और खासकर ईसाईजगत मोआब की तरह है, जिसका यह दावा है कि उसकी शुरूआत पहली सदी की मसीही कलीसिया से हुई थी। मगर, जैसे कि हम पहले भी देख चुके हैं, वह असल में बड़े बाबुल का सबसे खास हिस्सा है।

उद्धार का गीत

13, 14. आज परमेश्‍वर के लोगों को कौन-सा “दृढ़ नगर” दिया गया है, और इसमें प्रवेश करने की इजाज़त किसे मिलती है?

13 परमेश्‍वर के लोगों के बारे में क्या? यहोवा की ओर से अनुग्रह और सुरक्षा पाने की वजह से उनका रोम-रोम हर्षित हो उठता है और वे ऊँची आवाज़ में गीत गाते हैं। “उस समय यहूदा देश में यह गीत गाया जाएगा, हमारा एक दृढ़ नगर है; उद्धार का काम देने के लिये वह उसकी शहरपनाह और गढ़ को नियुक्‍त करता है। फाटकों को खोलो कि सच्चाई का पालन करनेवाली एक धर्मी जाति प्रवेश करे।” (यशायाह 26:1, 2) बेशक ये शब्द प्राचीनकाल में एक बार पूरे हो चुके थे, मगर आज भी ये शब्द पूरे होते हुए साफ नज़र आ रहे हैं। यहोवा की “धर्मी जाति,” यानी आत्मिक इस्राएल को आशीष के तौर पर एक दृढ़ नगर जैसा संगठन दिया गया है। खुशियाँ मनाने का, गीत गाने का यह क्या ही बढ़िया कारण है!

14 इस “नगर” में किस किस्म के लोग प्रवेश करते हैं? इसका जवाब गीत में ही बताया गया है: “जिसका मन तुझ में धीरज धरे हुए हैं, उसकी तू [परमेश्‍वर] पूर्ण शान्ति के साथ रक्षा करता है, क्योंकि वह तुझ पर भरोसा रखता है। यहोवा पर सदा भरोसा रख, क्योंकि प्रभु [“याह,” NW] यहोवा सनातन चट्टान है।” (यशायाह 26:3, 4) यहोवा ऐसे “मन” के लोगों को धीरज धरने में मदद देता है जो दिल से यहोवा के धर्मी उसूलों को मानना और उस पर भरोसा रखना चाहते हैं, न कि इस दुनिया की डगमगाती व्यापारिक, राजनीतिक और धार्मिक व्यवस्था पर। ‘याह यहोवा’ ही सिर्फ एक ऐसी मज़बूत चट्टान है जिससे हमें सुरक्षा मिल सकती है। जो लोग यहोवा पर पूरा भरोसा रखते हैं, यहोवा उनकी हिफाज़त करता है और उन्हें “पूर्ण शान्ति” की आशीष देता है।—नीतिवचन 3:5, 6; फिलिप्पियों 4:6, 7.

15. ‘ऊंचे पर बसे नगर’ को आज कैसे नीचा किया गया है, और किस तरीके से ‘दरिद्रों के पैर’ इसे रौंदते हैं?

15 दूसरी तरफ, परमेश्‍वर के लोगों के दुश्‍मनों का अंजाम कितना बुरा होता है! “वह ऊंचे पदवाले को झुका देता, जो नगर ऊंचे पर बसा है उसको वह नीचे कर देता। वह उसको भूमि पर गिराकर मिट्टी में मिला देता है। वह उसको पांव से रौंदेगा, दीन के पांव कंगालों के कदम।” (यशायाह 26:5, 6, फुटनोट) फिर एक बार, यशायाह यहाँ शायद मोआब के ही किसी नगर का ज़िक्र कर रहा है ‘जो ऊंचे पर बसा है।’ या फिर वह बाबुल जैसे किसी नगर की बात कर रहा होगा, जो घमंड में आकर खुद को बहुत ऊँचा समझ बैठा है। ‘ऊंचे पर बसा यह नगर’ चाहे जो भी हो, मगर यहोवा ने उसका पासा पलट दिया है और अब उसके ‘कंगाल और दीन’ सेवक उसे पैरों से रौंदते हैं। आज यह भविष्यवाणी बड़े बाबुल पर, खासकर ईसाईजगत पर बिलकुल सही बैठती है। ‘ऊंचे पर बसे इस नगर’ को, न चाहते हुए भी 1919 में यहोवा के लोगों को आज़ाद करना पड़ा और इस तरह उसे बुरी तरह नीचा किया गया। और इसके बाद परमेश्‍वर के सेवकों ने इस पुराने बैरी को रौंदना शुरू कर दिया। (प्रकाशितवाक्य 14:8) वह कैसे? सारी दुनिया के सामने यह ऐलान करने के ज़रिए कि जल्द ही यहोवा का कोप उस पर भड़कनेवाला है।—प्रकाशितवाक्य 8:7-12; 9:14-19.

यहोवा की धार्मिकता और उसके “स्मरण” की लालसा करना

16. यशायाह भक्‍ति की कौन-सी अच्छी मिसाल रखता है?

16 इस विजयी गीत के बाद, यशायाह ज़ाहिर करता है कि उसके दिल में यहोवा के लिए कितनी गहरी भक्‍ति है और बताता है कि धर्मी परमेश्‍वर की सेवा करने से कैसा प्रतिफल मिलता है। (यशायाह 26:7-9 पढ़िए।) ‘यहोवा की बाट जोहने’ और यहोवा के “नाम” और उसके “स्मरण” की लालसा करने में यशायाह अच्छी मिसाल है। यहोवा का स्मरण क्या है? निर्गमन 3:15 कहता है: “यहोवा, . . . सदा तक मेरा नाम यही रहेगा, और पीढ़ी पीढ़ी में मेरा स्मरण इसी से हुआ करेगा।” यशायाह को यहोवा का नाम और उस नाम से जुड़ी हर बात, जी हाँ, उसके धर्मी स्तर और मार्ग भी अज़ीज़ हैं। जो लोग अपने दिल में यहोवा के लिए ऐसा ही प्यार बढ़ाते हैं, उन्हें वह ज़रूर आशीष देगा।—भजन 5:8; 25:4, 5; 135:13; होशे 12:5.

17. दुष्ट जनों को कौन-सी आशीषें नहीं दी जाएँगी?

17 लेकिन, यहोवा और उसके ऊँचे आदर्श, हर किसी को नहीं भाते। (यशायाह 26:10 पढ़िए।) दुष्ट लोगों को अगर धार्मिकता सीखने के लिए बुलाया भी जाए, तो वे अपने हठ की वजह से इंकार करते हैं। इस तरह वे “खराई के देश” (NHT) में प्रवेश नहीं करते जहाँ नैतिक और आध्यात्मिक मामलों में खराई से चलनेवाले यहोवा के सेवक रहते हैं। इसीलिए, इन दुष्ट जनों को “यहोवा का प्रताप . . . सुझाई न देगा।” (NHT) यहोवा के नाम से कलंक मिटा दिए जाने के बाद इंसानों को जो आशीषें मिलेंगी, उनका आनंद लेने के लिए ये दुष्ट ज़िंदा नहीं बचेंगे। यहाँ तक कि नयी दुनिया में भी जब सारी धरती ‘खराई का देश’ होगी, तब कुछ लोग यहोवा के प्यार और दया की कदर नहीं करेंगे। ऐसे लोगों के नाम जीवन की पुस्तक में नहीं लिखे जाएँगे।—यशायाह 65:20; प्रकाशितवाक्य 20:12, 15.

18. किस तरह यशायाह के दिनों में कुछ लोगों ने अंधा रहने का चुनाव किया है, और कब उन्हें मजबूर होकर यहोवा को ‘जानना’ पड़ेगा?

18“हे यहोवा, तेरा हाथ बढ़ा हुआ है, पर वे नहीं देखते। परन्तु वे जानेंगे कि तुझे प्रजा के लिये कैसी जलन है, और लजाएंगे। तेरे बैरी आग से भस्म होंगे।” (यशायाह 26:11, 12क) यशायाह के दिनों में, जब यहोवा ने अपने चुने हुए लोगों की हिफाज़त करने के लिए उनके दुश्‍मनों को दंड दिया तो यह नज़र आया कि उसका हाथ बढ़ा हुआ है। मगर, बहुत-से लोग इस बात को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। ऐसे लोगों ने आध्यात्मिक रूप से अंधे ही रहने का चुनाव किया है। लेकिन वह समय भी आएगा, जब यहोवा की जलन की आग उन्हें भस्म कर देगी और तब उन्हें मजबूर होकर यहोवा को ‘जानना’ होगा। (सपन्याह 1:18) परमेश्‍वर ने बाद में यहेजकेल से कहा: “उन्हें जानना ही होगा कि मैं यहोवा हूं।”—यहेजकेल 38:23, NW.

‘यहोवा जिससे प्रेम करता है, उसकी ताड़ना भी करता है’

19, 20. यहोवा ने क्यों और कैसे अपने लोगों को ताड़ना दी है और इस ताड़ना का फायदा किसको हुआ है?

19 यशायाह जानता है कि उसके देश के लोगों के बीच जो थोड़ी-बहुत शांति और खुशहाली है, वह यहोवा की आशीष से ही है। “हे यहोवा, तू हमारे लिये शान्ति ठहराएगा, हम ने जो कुछ किया है उसे तू ही ने हमारे लिये किया है।” (यशायाह 26:12ख) इतना ही नहीं, यहोवा ने अपने लोगों को भविष्य में “याजकों का राज्य और पवित्र जाति” बनाने का भी वादा किया है। मगर इन सभी आशीषों के बावजूद, यहूदा का इतिहास दिखाता है कि वे हमेशा यहोवा के वफादार नहीं रहे। (निर्गमन 19:6) बार-बार, यहूदा के लोग झूठे देवताओं की पूजा करने लगे। और इसलिए उन्हें हर बार ताड़ना भी दी गयी है। लेकिन, ऐसी ताड़ना यहोवा के प्रेम का सबूत है, क्योंकि “प्रभु [यहोवा], जिस से प्रेम करता है, उस की ताड़ना भी करता है।”—इब्रानियों 12:6.

20 अकसर, यहोवा अपने लोगों को ताड़ना देने के लिए ‘और स्वामियों’ यानी दूसरे देशों को इजाज़त देता है कि वे आकर उसके लोगों को अपने अधीन कर लें। (यशायाह 26:13 पढ़िए।) सामान्य युग पूर्व 607 में, वह इन्हें बाबुलियों के हाथों बंधुआई में जाने देता है। क्या इससे यहूदियों को कोई फायदा हुआ? सच तो यह है कि तकलीफें झेलने पर अपने आप ही एक इंसान को फायदा नहीं होता। लेकिन, अगर वह तकलीफों से सबक सीखे, पछताए और सिर्फ यहोवा की भक्‍ति करे, तब जाकर ही उसे फायदा होता है। (व्यवस्थाविवरण 4:25-31) क्या सच्चे दिल से पछतावा करनेवाले कोई यहूदी हैं? जी हाँ, यशायाह भविष्यवाणी करता है: “तेरी कृपा से हम केवल तेरे ही नाम का गुणानुवाद करेंगे।” सामान्य युग पूर्व 537 में बंधुआई से लौटने के बाद, यहूदियों ने भले ही दूसरी गलतियाँ की थीं जिनके लिए उन्हें ताड़ना की ज़रूरत पड़ी, मगर उन्होंने झूठे देवी-देवताओं और उनकी मूरतों को पूजने की गलती फिर कभी नहीं दोहरायी।

21. परमेश्‍वर के लोगों को सतानेवालों का क्या होगा?

21 यहूदियों को बंधुआ बनाकर ले जानेवालों के बारे में क्या? “वे मर गए हैं, फिर कभी जीवित नहीं होंगे; उनको मरे बहुत दिन हुए, वे फिर नहीं उठने के; तू ने उनका विचार करके उनको ऐसा नाश किया कि वे फिर स्मरण में न आएंगे।” (यशायाह 26:14) बाबुल को, यहोवा की चुनी हुई जाति पर ज़ुल्म ढाने की कीमत चुकानी पड़ेगी। मादियों और फारसियों के ज़रिए, यहोवा अहंकारी बाबुल का तख्ता पलट देगा और अपने लोगों को कैद से छुड़ा लेगा। वह महान नगर, बाबुल बेजान हो जाएगा, मानो उसकी मौत हो गयी हो। और समय के गुज़रते उसका अस्तित्त्व तक मिट जाएगा।

22. आज के ज़माने में, परमेश्‍वर के लोगों को कैसे आशीष दी गयी है?

22 यह भविष्यवाणी आज के ज़माने में 1919 में पूरी हुई, जब ताड़ना पाकर शुद्ध हुए आत्मिक इस्राएल के शेष जनों को बड़े बाबुल से छुड़ाया गया और वे दोबारा यहोवा की सेवा करने लगे। नए जोश के साथ, अभिषिक्‍त मसीही जी-जान लगाकर प्रचार के काम में जुट गए। (मत्ती 24:14) यहोवा ने उनकी मेहनत पर आशीष देकर उनकी गिनती बढ़ायी और बाद में ‘अन्य भेड़ों’ की एक बड़ी भीड़ को भी उनके साथ सेवा करने के लिए इकट्ठा किया। (यूहन्‍ना 10:16NW) “तू ने जाति को बढ़ाया; हे यहोवा, तू ने जाति को बढ़ाया है; तू ने अपनी महिमा दिखाई है और उस देश के सब सिवानों को तू ने बढ़ाया है। हे यहोवा, दु:ख में वे तुझे स्मरण करते थे, जब तू उन्हें ताड़ना देता था तब वे दबे स्वर से अपने मन की बात तुझ पर प्रगट करते थे।”—यशायाह 26:15, 16.

“मुर्दे उठ खड़े होंगे”

23. (क) सामान्य युग पूर्व 537 में यहोवा अपनी ताकत का कैसा ज़बरदस्त सबूत देता है? (ख) उसी तरह 1919 में यहोवा ने अपनी ताकत कैसे ज़ाहिर की?

23 यशायाह अब दोबारा उन हालात का ज़िक्र करता है जब यहूदा देश के लोग बाबुल की गुलामी में ही हैं। वह यहूदा देश की तुलना एक ऐसी स्त्री से करता है जिसे प्रसव-पीड़ा हो रही है मगर मदद करनेवाला कोई न होने की वजह से वह बच्चा नहीं जन पा रही। (यशायाह 26:17, 18 पढ़िए।) यहोवा के लोगों को सा.यु.पू. 537 में मदद मिलती है और वे इस उमंग के साथ अपने वतन वापस लौटते हैं कि वे फिर से मंदिर बनाएँगे और सच्ची उपासना दोबारा शुरू होगी। इस तरह, इस जाति को मानो मुर्दों में से उठाया जाता है। “तेरे मरे हुए लोग जीवित होंगे, मुर्दे उठ खड़े होंगे। हे मिट्टी में बसनेवालो, जागकर जयजयकार करो! क्योंकि तेरी ओस ज्योति से उत्पन्‍न होती है, और पृथ्वी मुर्दों को लौटा देगी।” (यशायाह 26:19) यहोवा की ताकत का यह क्या ही ज़बरदस्त सबूत है! इसके अलावा, उसकी ताकत उस वक्‍त भी कितने शानदार ढंग से ज़ाहिर हुई जब 1919 में ये शब्द आध्यात्मिक अर्थ में पूरे हुए! (प्रकाशितवाक्य 11:7-11) और नयी दुनिया में यह भविष्यवाणी लाक्षणिक तौर पर नहीं बल्कि हकीकत में पूरी होगी, क्योंकि मरे हुए लोग ‘यीशु का शब्द सुनकर’ अपनी-अपनी कब्र से निकल आएँगे। हम उस दिन को देखने की कितनी आस लगाए हुए हैं!—यूहन्‍ना 5:28, 29.

24, 25. (क) सामान्य युग पूर्व 539 में खुद को छिपाए रखने के बारे में यहोवा की आज्ञा का यहूदियों ने कैसे पालन किया होगा? (ख) आज के ज़माने में ये ‘कोठरियाँ’ किनकी तरफ इशारा करती हैं, और इनके बारे में हमारे मन में कैसी भावना होनी चाहिए?

24 लेकिन, यशायाह के ज़रिए वादा की गयी आध्यात्मिक आशीषें वफादार जनों को तभी मिलेंगी जब वे यहोवा की आज्ञाओं को मानेंगे। “हे मेरे लोगो, आओ, अपनी अपनी कोठरी में प्रवेश करके किवाड़ों को बन्द करो; थोड़ी देर तक जब तक क्रोध शान्त न हो तब तक अपने को छिपा रखो। क्योंकि देखो, यहोवा पृथ्वी के निवासियों को अधर्म का दण्ड देने के लिये अपने स्थान से चला आता है, और पृथ्वी अपना खून प्रगट करेगी और घात किए हुओं को और अधिक न छिपा रखेगी।” (यशायाह 26:20, 21. सपन्याह 1:14 से तुलना कीजिए।) ये आयतें शायद पहली बार सा.यु.पू. 539 में पूरी हुईं थीं, जब राजा कुस्रू की अगुवाई में मादियों और फारसियों ने बाबुल को हराया। यूनानी इतिहासकार ज़ेनफन के मुताबिक, जब कुस्रू बाबुल में घुस आया तो उसने सभी को अपने-अपने घर के अंदर ही रहने का हुक्म दिया क्योंकि उसकी फौज को “यह आदेश था कि उन्हें घर से बाहर जो भी नज़र आए उसे मार डालें।” कहा जा सकता है कि आज सारी दुनिया में यहोवा के लोगों की हज़ारों कलीसियाएँ, काफी हद तक इस भविष्यवाणी में बतायी गयी ‘कोठरियों’ से संबंधित हैं। आज हमारी ज़िंदगी में इन कलीसियाओं की जो खास अहमियत है, वह आगे “बड़े क्लेश” के दौरान भी रहेगी। (प्रकाशितवाक्य 7:14) तो यह कितना ज़रूरी है कि हम अपने मन में कलीसिया के लिए अच्छी भावना पैदा करें और लगातार इसमें अपने भाई-बहनों के साथ इकट्ठा होते रहें!—इब्रानियों 10:24, 25.

25 जल्द ही, शैतान की दुनिया का अंत होनेवाला है। उस भयानक समय पर यहोवा अपने लोगों की रक्षा कैसे करेगा, इसकी हमें अभी तक जानकारी नहीं है। (सपन्याह 2:3) लेकिन, हम इतना ज़रूर जानते हैं कि यहोवा पर हमारे विश्‍वास, हमारी वफादारी और उसकी आज्ञा मानने पर यह निर्भर होगा कि हम बचेंगे या नहीं।

26. यशायाह के दिनों में और हमारे दिनों में “लिब्यातान” क्या है, और इस “समुद्री अजगर” का क्या होता है?

26 आनेवाले उस दिन के बारे में यशायाह भविष्यवाणी करता है: “उस दिन यहोवा अपनी भयानक, विशाल और सामर्थी तलवार से फुर्तीले सर्प लिब्यातान को, हां बल खाते सर्प लिब्यातान को दण्ड देगा और उस समुद्री अजगर का वध करेगा।” (यशायाह 27:1, NHT) इस भविष्यवाणी की पहली पूर्ति में, “लिब्यातान” उन देशों को कहा गया है जहाँ-जहाँ इस्राएल के लोग तितर-बितर हो गए हैं, जैसे कि बाबुल, मिस्र और अश्‍शूर। ये देश, यहोवा के लोगों को ठहराए गए समय पर अपने वतन वापस लौटने से नहीं रोक सकेंगे। लेकिन आज के ज़माने में लिब्यातान कौन है? ऐसा लगता है कि आज का लिब्यातान, “पुराना सांप” यानी शैतान और इस पृथ्वी पर उसका दुष्ट संसार है, जिसे वह अपना हथियार बनाकर आत्मिक इस्राएल के खिलाफ लड़ रहा है। (प्रकाशितवाक्य 12:9, 10; 13:14, 16, 17; 18:24) सन्‌ 1919 में, परमेश्‍वर के लोग इस “लिब्यातान” की पकड़ से छूट गए और जल्द ही उसकी हस्ती मिट जाएगी क्योंकि यहोवा हर हाल में इस “समुद्री अजगर का वध” करके रहेगा। वह समय आने तक “लिब्यातान” यहोवा के लोगों के खिलाफ चाहे जो भी कार्यवाही करने की कोशिश करे, उसे सचमुच की कामयाबी नहीं मिलेगी।—यशायाह 54:17.

“सुन्दर दाख की बारी”

27, 28. (क) यहोवा की दाख की बारी ने सारी पृथ्वी को किससे भर दिया है? (ख) यहोवा अपनी दाख की बारी की रखवाली कैसे करता है?

27 यशायाह अब एक और गीत में, एक बढ़िया दृष्टांत देकर बताता है कि यहोवा के आज़ाद किए हुए लोग कैसा फल लाएँगे: “उस समय एक सुन्दर दाख की बारी होगी, तुम उसका यश गाना! मैं यहोवा उसकी रक्षा करता हूं; मैं क्षण क्षण उसको सींचता रहूंगा। मैं रात-दिन उसकी रक्षा करता रहूंगा, ऐसा न हो कि कोई उसकी हानि करे।” (यशायाह 27:2, 3) आत्मिक इस्राएल के बचे हुए लोगों और उनके मेहनती साथियों ने वाकई सारी धरती को आध्यात्मिक फलों से भर दिया है। यह वाकई जश्‍न मनाने और गीत गाने की बात है! और इसके लिए यहोवा की ही महिमा की जानी चाहिए क्योंकि वही रात-दिन इस दाख की बारी की रखवाली करता रहा है।—यूहन्‍ना 15:1-8 से तुलना कीजिए।

28 बेशक, यहोवा के मन में पहले जो क्रोध था, वह अब ठंडा हो गया है और वह खुश है! “मेरे मन में जलजलाहट नहीं है। यदि कोई भांति भांति के कटीले पेड़ मुझ से लड़ने को खड़े करता, तो मैं उन पर पांव बढ़ाकर उनको पूरी रीति से भस्म कर देता। वा मेरे साथ मेल करने को वे मेरी शरण लें, वे मेरे साथ मेल कर लें।” (यशायाह 27:4, 5) उसकी दाखलताएँ भरपूर दाखरस देती रहें, इसके लिए यहोवा उन सभी कंटीली झाड़ियों को कुचलकर आग से भस्म कर देता है जो उसकी दाख की बारी को खराब कर सकती हैं। इसलिए, किसी को भी मसीही कलीसिया को हानि पहुँचाने की जुर्रत नहीं करनी चाहिए! इसके बजाय, सभी को यहोवा की “शरण” लेनी चाहिए, यानी उसका अनुग्रह पाने और उसकी हिफाज़त में रहने की कोशिश करनी चाहिए। ऐसा करके वे परमेश्‍वर से मेल कर पाएँगे, जो इतना ज़रूरी है कि यशायाह ने उसका ज़िक्र दो बार किया। इसका नतीजा क्या होगा? “भविष्य में याकूब जड़ पकड़ेगा, और इस्राएल फूले-फलेगा, और उसके फलों से जगत भर जाएगा।” (यशायाह 27:6) * इस आयत के पूरा होने से यहोवा की ताकत का क्या ही शानदार सबूत हमें मिलता है! सन्‌ 1919 से, अभिषिक्‍त मसीहियों ने सारी पृथ्वी को “फलों” से यानी पौष्टिक आध्यात्मिक आहार से भर दिया है। इसका नतीजा यह हुआ है कि अब लाखों वफादार अन्य भेड़ें उनके साथ हो ली हैं और वे मिलकर “दिन रात [परमेश्‍वर] की सेवा करते हैं।” (प्रकाशितवाक्य 7:15) इस भ्रष्ट दुनिया में रहते हुए भी, वे बड़ी खुशी से परमेश्‍वर के ऊँचे आदर्शों का पालन करते हैं। और यहोवा उनको आशीष देकर उनकी संख्या लगातार बढ़ा रहा है। इसलिए, इन “फलों” को खाने का और परमेश्‍वर की जय-जयकार करते हुए ये फल दूसरों को भी देने का जो बढ़िया मौका हममें से हरेक को मिला है, उसे हम कभी हाथ से न जाने दें!

[फुटनोट]

^ पैरा. 2 आर नाम का मतलब शायद “नगर” है।

^ पैरा. 28 यशायाह 27:7-13 की चर्चा  पेज 285 पर दिए बक्स में की गयी है।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 285 पर बक्स]

 ‘बड़े नरसिंगे’ से आज़ादी का ऐलान

सामान्य युग पूर्व 607 में, जब यहोवा अपने गुमराह लोगों को बंधुआई की मार से ताड़ना देता है, तब यहूदा का दर्द बढ़ जाता है। (यशायाह 27:7-11 पढ़िए।) इस देश के लोगों ने इतने घोर पाप किए हैं कि जानवरों की बलियों से इनका प्रायश्‍चित्त नहीं हो सकता। इसलिए जैसे कोई भेड़ या बकरियों को “खदेड़” (NHT) देता है या “प्रचण्ड वायु” से पत्तियों को उड़ा देता है उसी तरह यहोवा इस्राएल को उसके वतन से खदेड़ देता है। उसके बाद, देश में बची-खुची चीज़ों को कमज़ोर लोग भी, जिन्हें भविष्यवाणी में स्त्रियाँ कहा गया है, लूटकर ले जाते हैं।

लेकिन, ऐसा वक्‍त भी आता है जब यहोवा अपने लोगों को बंधुआई से छुड़ा लेता है। वह उन्हें ऐसे आज़ाद करता है, जैसे एक किसान मानो पेड़ों पर कैद जैतून के फलों को आज़ाद करता है। “उस समय यहोवा महानद [फरात] से लेकर मिस्र के नाले तक अपने अन्‍न [“फल,” NW] को फटकेगा, और हे इस्राएलियो तुम एक एक करके इकट्ठे किए जाओगे। उस समय बड़ा नरसिंगा फूंका जाएगा, और जो अश्‍शूर देश में नाश हो रहे थे और जो मिस्र देश में बरबस बसाए हुए थे वे यरूशलेम में आकर पवित्र पर्वत पर यहोवा को दण्डवत्‌ करेंगे।” (यशायाह 27:12, 13) सामान्य युग पूर्व 539 में बाबुल पर जीत हासिल करने के बाद, कुस्रू ने आदेश जारी किया कि उसके साम्राज्य में बिखरे सभी यहूदी आज़ाद हैं। इनमें अश्‍शूर और मिस्र के यहूदी भी शामिल थे। (एज्रा 1:1-4) यह ऐसा था मानो एक “बड़ा नरसिंगा” फूंका गया, जिससे परमेश्‍वर के लोगों के आज़ाद किए जाने का जयगान गूँज उठा।

[पेज 275 पर तसवीरें]

‘भांति भांति के चिकने भोजन की जेवनार’

[पेज 277 पर तसवीर]

बाबुल को उसके कैदियों के पैरों तले रौंदा जाएगा

[पेज 278 पर तसवीर]

‘अपनी अपनी कोठरी में प्रवेश करो’