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यहोवा परमेश्‍वर अपने पवित्र मंदिर में है

यहोवा परमेश्‍वर अपने पवित्र मंदिर में है

आठवाँ अध्याय

यहोवा परमेश्‍वर अपने पवित्र मंदिर में है

यशायाह 6:1-13

1, 2. (क) यशायाह भविष्यवक्‍ता को मंदिर का दर्शन कब मिला? (ख) राजा उज्जिय्याह से यहोवा की आशीष क्यों हट गयी?

“जिस वर्ष उज्जिय्याह राजा मरा, मैं ने प्रभु [यहोवा] को बहुत ही ऊंचे सिंहासन पर विराजमान देखा; और उसके वस्त्र के घेर से मन्दिर भर गया।” (यशायाह 6:1) इन शब्दों से यशायाह किताब का छठा अध्याय शुरू होता है। यह साल है सा.यु.पू. 778.

2 राजा उज्जिय्याह ने 52 साल तक यहूदा पर राज किया था और इनमें से ज़्यादातर साल उसने शानदार कामयाबी हासिल की थी। उसने वही किया “जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था।” इसलिए चाहे वह लड़ाई के मैदान में था, या कोई निर्माण करा रहा था या फिर फसलें लगवा रहा था, यहोवा ने उसके सभी कामों पर आशीष दी थी। मगर बाद में उसकी कामयाबी ही उसकी तबाही का कारण बन गयी। क्योंकि एक वक्‍त ऐसा आया जब अपनी कामयाबी पर उसका मन फूल उठा, और उसने “अपने परमेश्‍वर यहोवा का विश्‍वासघात किया, अर्थात्‌ वह . . . धूप जलाने को यहोवा के मन्दिर में घुस गया।” जो अधिकार उसे नहीं दिया गया था उसे हासिल करने की उसकी गुस्ताखी के लिए और जिन याजकों ने उसको फटकारा था उन पर क्रोध करने की वजह से वह एक कोढ़ी की मौत मरा। (2 इतिहास 26:3-22) करीब इसी वक्‍त के आसपास यशायाह ने एक भविष्यवक्‍ता की हैसियत से अपनी सेवा का काम शुरू किया था।

3. (क) क्या यशायाह सचमुच यहोवा को देखता है? समझाइए। (ख) यशायाह क्या नज़ारा देखता है, और क्यों?

3 हमें यह नहीं बताया गया है कि यह दर्शन देखते वक्‍त यशायाह किस जगह था। लेकिन वह अपनी आँखों से जो देखता है, वह सिर्फ एक दर्शन ही था। उसने सचमुच सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर को नहीं देखा था, क्योंकि “परमेश्‍वर को किसी ने कभी नहीं देखा।” (यूहन्‍ना 1:18; निर्गमन 33:20) मगर चाहे दर्शन में ही सही, सिरजनहार यहोवा को देखना क्या ही हैरतअंगेज़ नज़ारा था। पूरे विश्‍व का महाराजाधिराज और हर तरह के अधिकार और हुकूमत का मालिक, एक बहुत ही ऊँचे सिंहासन पर विराजमान है। यह ऊँचा सिंहासन दिखाता है कि यहोवा ही सनातनकाल का राजा और पूरे जहान का न्यायी है! उसके लंबे वस्त्र के घेर से पूरा मंदिर भर जाता है। एक भविष्यवक्‍ता का काम करने के लिए यशायाह को चुना जाता है, ताकि वह पूरे विश्‍व पर यहोवा के अधिकार और उसके न्याय का बखान करे। यशायाह को तैयार करने के लिए उसे परमेश्‍वर की पवित्रता का दर्शन दिखाया जाता है।

4. (क) दर्शन में दिखाए गए यहोवा के रूप का जो वर्णन बाइबल में दिया गया है, वह क्यों सचमुच का नहीं बल्कि लाक्षणिक ही होगा? (ख) यशायाह के दर्शन से यहोवा के बारे में क्या बात मालूम होती है?

4 यशायाह यह नहीं बताता कि दर्शन में यहोवा का रूप कैसा है, जबकि यहेजकेल, दानिय्येल और यूहन्‍ना को मिले दर्शनों में यहोवा के रूप का वर्णन किया गया है। मगर उन्होंने स्वर्ग में जो कुछ देखा वह एक-दूसरे से फर्क था। (यहेजकेल 1:26-28; दानिय्येल 7:9,10; प्रकाशितवाक्य 4:2,3) लेकिन इन सभी दर्शनों के बारे में इस बात पर ध्यान देना ज़रूरी है कि ये दर्शन कैसे थे और क्यों दिखाए गए थे। इनमें यह नहीं बताया जा रहा कि यहोवा सचमुच में कैसा दिखता है। हमारी आँखें आत्मिक वस्तुओं को नहीं देख सकतीं, ना ही हमारा सीमित इंसानी दिमाग आत्मिक लोक को समझ सकता है। इसलिए, इन दर्शनों में इंसानों की समझ में आनेवाले शब्दों के ज़रिए ज़रूरी जानकारी दी जा रही है। (प्रकाशितवाक्य 1:1 से तुलना कीजिए।) यशायाह के दर्शन में परमेश्‍वर के रूप का वर्णन करना ज़रूरी नहीं था। इस दर्शन के ज़रिए यशायाह को बताया जा रहा है कि यहोवा अपने पवित्र मंदिर में है, वह पवित्र है और उसका न्याय खरा है।

साराप

5. (क) साराप कौन हैं, और इस शब्द का क्या मतलब है? (ख) साराप अपने मुँह और पैरों को क्यों छिपाते हैं?

5 सुनिए! यशायाह आगे कहता है: “उस से ऊंचे पर साराप दिखाई दिए; उनके छ: छ: पंख थे; दो पंखों से वे अपने मुंह को ढांपे थे और दो से अपने पांवों को, और दो से उड़ रहे थे।” (यशायाह 6:2) पूरी बाइबल में सिर्फ यशायाह के छठे अध्याय में ही सारापों का ज़िक्र पाया जाता है। ज़ाहिर है कि ये यहोवा की सेवा करनेवाले स्वर्गदूत हैं जिनका स्थान बहुत ऊँचा है और सम्मान में अति श्रेष्ठ हैं, क्योंकि वे यहोवा के सिंहासन के बराबर ही खड़े हैं। मगर फिर भी वे राजा उज्जिय्याह की तरह घमंडी नहीं हैं, बल्कि वे इतने श्रेष्ठ होने पर भी एकदम नम्र हैं और अपनी मर्यादा नहीं भूलते। उन्हें एहसास है कि वे स्वर्ग के स्वामी के सामने खड़े हैं, इसलिए वे अपने दो पंखों से अपने मुँह को ढाँपे हुए हैं; और उस पवित्र स्थान के लिए अपनी श्रद्धा दिखाने के लिए उन्होंने अपने दो और पंखों से अपने पैर छिपाए हुए हैं। सारी सृष्टि के महाराजा और मालिक के सामने होने की वजह से, साराप अपने आप को छिपाना चाहते हैं, ताकि किसी का भी ध्यान यहोवा की महिमा से हटकर उनकी तरफ न जाए। शब्द “साराप” का मतलब है “ज्वालामयी” या “धधकनेवाले,” जो दिखाता है कि उनमें से काफी तेज निकल रहा होगा। मगर यहोवा की दमक और महिमा उनसे कहीं ज़्यादा तेजोमयी है। इसलिए यहोवा के सामने उन्हें अपना मुँह ढकना पड़ता है।

6. यहोवा के सामने सारापों का क्या स्थान है?

6 साराप अपने दो और पंखों से उड़ते हैं और बेशक, अपनी-अपनी जगहों पर ठहरे या “खड़े” (नयी हिन्दी बाइबिल) रहते हैं। (व्यवस्थाविवरण 31:15 से तुलना कीजिए।) उनके स्थान के बारे में प्रोफेसर फ्राँत्ज़ डीलिश कहते हैं: “इसमें कोई शक नहीं कि साराप सिंहासन पर बैठनेवाले के सिर से ऊपर नहीं खड़े, मगर वे उसके वस्त्र के ऊपर मंडरा रहे थे जिससे सारा मंदिर भरा हुआ था।” (कमेंट्री ऑन दी ओल्ड टेस्टामेंट) यह बात सही लगती है। उनका “ऊंचे पर” खड़े होने का मतलब यह नहीं कि वे यहोवा से भी बड़े हैं बल्कि यह कि वे उसकी सेवा में तैयार खड़े हैं कि वह हुक्म दे और वे फौरन उसका पालन करें।

7. (क) साराप कौन-सा काम करते हैं? (ख) साराप परमेश्‍वर की पवित्रता का ऐलान तीन बार क्यों करते हैं?

7 अब सुनिए, इतना बड़ा पद रखनेवाले ये साराप क्या कह रहे हैं! “वे एक दूसरे से पुकार पुकारकर कह रहे थे: सेनाओं का यहोवा पवित्र, पवित्र, पवित्र है; सारी पृथ्वी उसके तेज से भरपूर है।” (यशायाह 6:3) इन सारापों का काम यह देखना है कि यहोवा की पवित्रता का ऐलान किया जाए और पूरे विश्‍व में, जिसमें हमारी पृथ्वी भी शामिल है, उसकी महिमा का बखान किया जाए। परमेश्‍वर की महिमा उसकी सारी सृष्टि में नज़र आती है और जल्द ही सारी पृथ्वी के लोग भी इस महिमा को समझ पाएँगे। (गिनती 14:21; भजन 19:1-3; हबक्कूक 2:14) तीन बार यह ऐलान करना, “पवित्र, पवित्र, पवित्र” किसी त्रिएक परमेश्‍वर का सबूत नहीं देता। इसके बजाय, तीन बार परमेश्‍वर की पवित्रता पर ज़ोर दिया जाता है। (प्रकाशितवाक्य 4:8 से तुलना कीजिए।) जिसका मतलब है कि सिर्फ यहोवा ही सर्वोत्तम रूप से पवित्र है।

8. सारापों के ऐलान करने से क्या हुआ?

8 हालाँकि सारापों की गिनती तो नहीं बतायी गयी है, मगर शायद सिंहासन के आसपास उनके कई दल मौजूद हैं। परमेश्‍वर की पवित्रता और महिमा का गुणगान करते हुए, एक मधुर गान के रूप में, एक के बाद दूसरा दल इस गीत के बोल दोहराता है। इसका नतीजा क्या होता है? सुनिए यशायाह आगे क्या कहता है: “पुकारनेवाले के शब्द से डेवढ़ियों की नेवें डोल उठीं, और भवन धूएं से भर गया।” (यशायाह 6:4) बाइबल में, धुँआ या बादल अकसर परमेश्‍वर की मौजूदगी की निशानी हैं। (निर्गमन 19:18; 40:34,35; 1 राजा 8:10,11; प्रकाशितवाक्य 15:5-8) यह उस महिमा को दर्शाते हैं जिसके सामने इंसान ठहर नहीं सकते।

अयोग्य, फिर भी शुद्ध किया गया

9. (क) यशायाह पर इस दर्शन का क्या असर होता है? (ख) यशायाह और राजा उज्जिय्याह के रवैए में कौन-सा फर्क साफ नज़र आता है?

9 इस दर्शन का यशायाह पर बहुत गहरा असर होता है। वह लिखता है: “तब मैं ने कहा, हाय! हाय! मैं नाश हुआ; क्योंकि मैं अशुद्ध होंठवाला मनुष्य हूं, और अशुद्ध होंठवाले मनुष्यों के बीच में रहता हूं; क्योंकि मैं ने सेनाओं के यहोवा महाराजाधिराज को अपनी आंखों से देखा है!” (यशायाह 6:5) यशायाह और उज्जिय्याह के रवैए में कैसा ज़मीन-आसमान का फर्क है! उज्जिय्याह ने ज़बरदस्ती याजकपद अपने हाथ में लेना चाहा और मंदिर की पवित्रता के लिए कोई लिहाज़ ना दिखाते हुए उसके पवित्र भाग में घुस गया। हालाँकि उज्जिय्याह ने सोने की दीवट, सोने की धूप की वेदी, और “भेंट की रोटी” की मेज़ें देखीं, लेकिन उसने यहोवा का मुख नहीं देखा। उसे न तो यहोवा से कोई आशीष मिली और ना ही उसे किसी खास काम के लिए नियुक्‍त होने का सम्मान मिला। (1 राजा 7:48-50) दूसरी तरफ, यशायाह भविष्यवक्‍ता ने याजकपद का अपमान नहीं किया, न ही वह बिना अधिकार के मंदिर में घुसा। फिर भी, उसने दर्शन में यहोवा को उसके पवित्र मंदिर में देखा और उसे सीधे-सीधे यहोवा से ज़िम्मेदारी का काम मिला। इससे बड़ा सम्मान और क्या हो सकता है! जबकि साराप, मंदिर में सिंहासन पर विराजमान अपने प्रभु की ओर देखने की जुर्रत नहीं करते, यशायाह को दर्शन में “सेनाओं के यहोवा महाराजाधिराज को अपनी आंखों से” देखने का मौका दिया जाता है!

10. दर्शन देखकर यशायाह के अंदर डर क्यों समा गया?

10 यशायाह, परमेश्‍वर की पवित्रता और अपनी पापी अवस्था के बीच का फर्क देखता है, और खुद को बेहद अशुद्ध महसूस करता है। उसके अंदर यह डर समा जाता है कि वह अब जीवित नहीं रहेगा। (निर्गमन 33:20) उसने सारापों को शुद्ध होंठों से परमेश्‍वर की स्तुति करते सुना, मगर उसके अपने होंठ अशुद्ध हैं और उस पर वह अशुद्ध होंठवाले लोगों के बीच रहता है जो अशुद्ध बातें करते हैं। यहोवा पवित्र है, और उसके सेवकों में भी पवित्रता का यह गुण ज़रूर होना चाहिए। (1 पतरस 1:15,16) हालाँकि यशायाह को परमेश्‍वर की ओर से बोलनेवाले के रूप में चुन लिया गया है, फिर भी उसे यह एहसास खाए जा रहा है कि वह पापी है और उसके होंठ शुद्ध नहीं जिससे कि वह प्रतापी और पवित्र महाराजाधिराज के बारे में बोल सके। अब स्वर्ग से क्या जवाब आता है?

11. (क) एक साराप क्या करता है और इसका क्या अर्थ है? (ख) अगर हम खुद को परमेश्‍वर की सेवा के योग्य नहीं समझते तो, यशायाह से कहे गए उस साराप के शब्द कैसे हमारी मदद कर सकते हैं?

11 एक अदना और मामूली-से इंसान, यशायाह को यहोवा की नज़रों से दूर कर देने के बजाय साराप उसकी मदद के लिए आगे आते हैं। बाइबल कहती है: “तब एक साराप हाथ में अंगारा लिए हुए, जिसे उस ने चिमटे से वेदी पर से उठा लिया था, मेरे पास उड़ कर आया। और उस ने उस से मेरे मुंह को छूकर कहा, देख, इस ने तेरे होंठों को छू लिया है, इसलिये तेरा अधर्म दूर हो गया और तेरे पाप क्षमा हो गए।” (यशायाह 6:6,7) आग लाक्षणिक अर्थ में शुद्धिकरण करती है। इसलिए वेदी की पवित्र आग से अंगारा लेकर यशायाह के होंठों को छूते वक्‍त, साराप उसे यकीन दिलाता है कि उसके पाप क्षमा किए गए हैं और वह अब इस काबिल है कि यहोवा उसे आशीष देकर अपने काम की ज़िम्मेदारी सौंपे। इससे हमारा भी विश्‍वास कितना मज़बूत होता है! हम भी पापी हैं और परमेश्‍वर के पास आने के योग्य नहीं हैं। मगर यीशु के छुड़ौती बलिदान के आधार पर हमें छुड़ाया गया है और हम परमेश्‍वर की आशीष पा सकते हैं और प्रार्थना में उसके पास जा सकते हैं।—2 कुरिन्थियों 5:18,21; 1 यूहन्‍ना 4:10.

12. यशायाह किस वेदी को देखता है, और उसकी आग का क्या असर होता है?

12 यहाँ “वेदी” का ज़िक्र एक बार फिर हमें याद दिलाता है कि यह एक दर्शन ही है। (प्रकाशितवाक्य 8:3; 9:13 से तुलना कीजिए।) यरूशलेम के मंदिर में दो वेदियाँ थीं। परमपवित्र के पर्दे के ठीक सामने धूप चढ़ाने के लिए एक छोटी-सी वेदी थी और मंदिर के प्रवेशद्वार के सामने बलियाँ चढ़ाने की वह बड़ी वेदी थी, जिस पर लगातार आग जलती रहती थी। (लैव्यव्यवस्था 6:12,13; 16:12,13) मगर पृथ्वी पर ये वेदियाँ सिर्फ एक प्रतिरूप या छाया थीं, इनसे भी महान वस्तुओं की छाया। (इब्रानियों 8:5; 9:23; 10:5-10) क्योंकि जब राजा सुलैमान ने मंदिर का उद्‌घाटन किया तब स्वर्ग से गिरनेवाली वह आग ही थी जिसने वेदी पर रखी होमबलियों को भस्म किया था। (2 इतिहास 7:1-3) और अब सच्ची, स्वर्गीय वेदी की आग से यशायाह के होंठों की अशुद्धता दूर की जाती है।

13. यहोवा कौन-सा सवाल पूछता है और वह “हमारी” कहते वक्‍त अपने साथ किसे शामिल करता है?

13 आइए यशायाह के साथ हम भी सुनें। “तब मैं ने प्रभु का यह वचन सुना, मैं किस को भेजूं, और हमारी ओर से कौन जाएगा? तब मैं ने कहा, मैं यहां हूं! मुझे भेज।” (यशायाह 6:8) ज़ाहिर है कि यहोवा ने यशायाह से जवाब पाने के लिए ही ऐसा सवाल पूछा था, क्योंकि दर्शन में उसके अलावा कोई और भविष्यवक्‍ता मौजूद नहीं है। यह बिलकुल साफ है कि यहोवा का दूत बनकर लोगों के पास जाने के लिए यशायाह को बुलावा दिया जा रहा है। मगर यहोवा यह क्यों पूछता है, “हमारी ओर से कौन जाएगा?” (तिरछे टाइप हमारे।) वह एकवचन “मैं” का इस्तेमाल करने के बाद, बहुवचन “हमारी” इस्तेमाल करता है। यहोवा अपने साथ अब कम-से-कम एक और व्यक्‍ति को शामिल कर रहा है। किसे? क्या यह उसका एकलौता पुत्र नहीं होगा, जो बाद में इंसान के रूप में यीशु मसीह बना? जी हाँ, यह वही पुत्र था जिससे परमेश्‍वर ने कहा था, “हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार . . . बनाएं।” (उत्पत्ति 1:26; नीतिवचन 8:30,31) जी हाँ, स्वर्गीय दरबार में परमेश्‍वर के साथ उसका एकलौता पुत्र भी मौजूद है।—यूहन्‍ना 1:14.

14. यहोवा के बुलावे का यशायाह क्या जवाब देता है और उसने हमारे लिए कैसी मिसाल रखी है?

14 यशायाह जवाब देने में हिचकिचाता नहीं! चाहे उसे परमेश्‍वर का कोई भी हुक्म क्यों न मिले, वह तुरंत जवाब देता है: “मैं यहां हूं! मुझे भेज।” वह यह भी नहीं पूछता कि इस काम से उसका क्या फायदा होगा। परमेश्‍वर का काम करने में उसकी तत्परता, आज परमेश्‍वर के सभी सेवकों के लिए एक बढ़िया मिसाल है, जिन्हें ‘राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में’ प्रचार करने का काम सौंपा गया है। (मत्ती 24:14) यशायाह की तरह वे अपनी ज़िम्मेदारी को पूरी वफादारी से निभाते हैं और ज़्यादातर लोगों के न सुनने के बावजूद वे ‘सब जातियों को गवाही’ देने में लगे हुए हैं। और वे यशायाह की तरह पूरे भरोसे के साथ आगे बढ़ते जाते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि उन्हें यह काम इस पूरे जहान के सबसे बड़े अधिकारी से मिला है।

यशायाह को सौंपी गई ज़िम्मेदारी

15, 16. (क) यशायाह को “इन लोगों” से क्या कहना है और इसके बदले लोगों का क्या जवाब होगा? (ख) क्या यशायाह की ही किसी गलती की वजह से लोग ऐसा जवाब देते हैं? समझाइए।

15 यहोवा अब बताता है कि यशायाह को क्या कहना है और जवाब में उसे क्या सुनने को मिलेगा: “जा, और इन लोगों से कह, सुनते ही रहो, परन्तु न समझो; देखते ही रहो, परन्तु न बूझो। तू इन लोगों के मन को मोटे और उनके कानों को भारी कर, और उनकी आंखों को बन्द कर; ऐसा न हो कि वे आंखों से देखें, और कानों से सुनें, और मन से बूझें, और मन फिरावें और चंगे हो जाएं।” (यशायाह 6:9,10) क्या इसका मतलब यह था कि यशायाह को यहूदियों का ज़रा भी लिहाज़ नहीं करना था और उन्हें खरी-खरी सुनानी थी ताकि उन्हें नफरत होने लगे और वे यहोवा से दूर ही रहें? बिलकुल नहीं! ये तो यशायाह के अपने लोग हैं जिनके लिए उसके दिल में अपनापन है। मगर यहोवा के वचन दिखाते हैं कि यशायाह चाहे कितनी ही लगन से अपना काम क्यों न करे, फिर भी लोग उसका संदेश सुनकर नहीं बदलेंगे।

16 इसमें दोष लोगों का ही है। यशायाह उन्हें ‘सुनाता ही रहेगा’ मगर वे न तो उसके संदेश को सुनेंगे न ही उसे समझेंगे। ज़्यादातर लोग ढीठ बने रहेंगे और उनके कानों पर जूँ तक नहीं रेंगेगी मानो वे पूरी तरह अंधे और बहरे हो चुके हों। “इन लोगों” के पास बार-बार जाकर यशायाह उन्हें यह दिखाने का मौका देगा कि असल में वे समझना चाहते हैं या नहीं। वे खुद यह साबित करेंगे कि उन्होंने अपने दिलो-दिमाग को बंद कर लिया है और यशायाह के संदेश को यानी परमेश्‍वर के संदेश को नहीं सुनना चाहते। यह आज के लोगों के बारे में भी कितना सच है! जब यहोवा के साक्षी उन्हें आनेवाले परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार सुनाते हैं तो कितने उनकी बात सुनने से इनकार कर देते हैं।

17. जब यशायाह पूछता है, “कब तक?” तो असल में वह क्या पूछ रहा है?

17 यशायाह को चिंता होती है: “तब मैं ने पूछा, हे प्रभु कब तक? उस ने कहा, जब तक नगर न उजड़ें और उन में कोई रह न जाए, और घरों में कोई मनुष्य न रह जाए, और देश उजाड़ और सुनसान हो जाए, और यहोवा मनुष्यों को उस में से दूर कर दे, और देश के बहुत से स्थान निर्जन हो जाएं।” (यशायाह 6:11,12) “कब तक?” यशायाह यह सवाल इसलिए नहीं पूछ रहा कि उसे कब तक इन अक्खड़ लोगों को प्रचार करते रहना होगा। इसके बजाय, उसे लोगों की चिंता है और वह पूछ रहा है कि उनकी इतनी बुरी आध्यात्मिक दशा कब तक रहेगी और कब तक पृथ्वी पर यहोवा के नाम की निंदा होती रहेगी। (भजन 74:9-11 देखिए।) तो फिर, कब तक ऐसी बदहाली चलती रहेगी?

18. आध्यात्मिक मामलों में लोगों की यह बदहाली कब तक चलती रहेगी और क्या यशायाह इस भविष्यवाणी को पूरा होते देख पाएगा?

18 अफसोस, यहोवा के जवाब से पता लगता है कि आध्यात्मिक मामलों में लोगों की यह बदहाली तब तक चलती रहेगी जब तक परमेश्‍वर की आज्ञाएँ तोड़ने का वे पूरी तरह अंजाम नहीं भुगत लेते। यहोवा ने इन लोगों से वाचा बाँधते वक्‍त इस अंजाम के बारे में बताया था। (लैव्यव्यवस्था 26:21-33; व्यवस्थाविवरण 28:49-68) यह जाति तबाह हो जाएगी, लोगों को बंधुआ बनाकर ले जाया जाएगा और देश उजाड़ दिया जाएगा। हालाँकि यशायाह 40 से ज़्यादा साल तक भविष्यवाणी करता रहेगा और राजा उज्जिय्याह के परपोते हिजकिय्याह के राज तक रहेगा, मगर वह उस दिन को नहीं देख पाएगा जब सा.यु.पू. 607 में बाबुल की सेना के हाथों यरूशलेम और उसके मंदिर का सर्वनाश होगा। फिर भी, यशायाह मरते दम तक, यानी उस जाति पर नाश आने के 100 से भी ज़्यादा साल पहले तक अपना काम वफादारी से करता रहेगा।

19. हालाँकि इस्राएल जाति को एक पेड़ की तरह काट दिया जाएगा, फिर भी परमेश्‍वर यशायाह को क्या यकीन दिलाता है?

19 जिस सर्वनाश से यहूदा “उजाड़ और सुनसान” हो जाएगा उसे ज़रूर आना है, मगर एक उम्मीद की किरण भी है। (2 राजा 25:1-26) यहोवा, यशायाह को यकीन दिलाता है: “चाहे उसके निवासियों का दसवां अंश भी रह जाए, तौभी वह नाश किया जाएगा, परन्तु जैसे छोटे वा बड़े बांजवृक्ष को काट डालने पर भी उसका ठूंठ बना रहता है, वैसे ही पवित्र वंश उसका ठूंठ ठहरेगा।” (यशायाह 6:13) जी हाँ, “दसवां अंश . . . पवित्र वंश” रह जाएगा, वैसे ही जैसे किसी विशाल पेड़ को काटने के बाद उसका ठूँठ बाकी रह जाता है। यशायाह को यह सुनकर ज़रूर तसल्ली मिलती है कि उसके जाति के लोगों में एक पवित्र शेषवर्ग बच जाएगा। एक ऐसे बड़े पेड़ की तरह जिसे ईंधन जलाने के लिए काटा जाता है, इस्राएल जाति बार-बार विनाश की आग से गुज़री है, मगर फिर भी जैसे पेड़ का ठूँठ बच जाता है, इस जाति का एक खास हिस्सा बच जाएगा। यह ऐसा वंश या संतान होगी जो यहोवा के लिए पवित्र है। कुछ समय बाद, इसमें फिर से अंकुर फूटेंगे और यह पेड़ फिर से बढ़ने लगेगा।—अय्यूब 14:7-9; दानिय्येल 4:26 से तुलना कीजिए।

20. यशायाह की भविष्यवाणी के आखिरी हिस्से की पहली बार पूर्ति कैसे हुई?

20 क्या भविष्यवाणी के ये शब्द सच होते हैं? जी हाँ। यहूदा देश के उजाड़े जाने के सत्तर साल बाद, परमेश्‍वर का भय माननेवाले बचे हुए कुछ लोग बाबुल की बंधुआई से छूटकर अपने वतन वापस लौटे। उन्होंने अपने देश में आकर, मंदिर और यरूशलेम नगर को दोबारा बनाया और सच्ची उपासना की एक बार फिर शुरूआत की। परमेश्‍वर से मिले अपने देश में यहूदियों के वापस लौटने से यशायाह की इसी भविष्यवाणी की दूसरी पूर्ति मुमकिन हुई। वह कैसे?—एज्रा 1:1-4.

दूसरी पूर्तियाँ

21-23. (क) यशायाह की भविष्यवाणी पहली सदी में किन लोगों पर पूरी हुई और कैसे? (ख) पहली सदी में “पवित्र वंश” कौन था और यह कैसे बचाया गया?

21 यशायाह के भविष्यवाणी करने के काम ने यह दिखाया कि आगे चलकर, लगभग 800 साल बाद मसीहा यानी यीशु मसीह क्या काम करेगा। (यशायाह 8:18; 61:1,2; लूका 4:16-21; इब्रानियों 2:13,14) यशायाह से कहीं ज़्यादा महान होने पर भी, यीशु अपने स्वर्गीय पिता का काम पूरा करने के लिए उतना ही तत्पर था जितना कि यशायाह। उसने कहा: “देख, मैं आ गया हूं, ताकि . . . तेरी इच्छा पूरी करूं।”—इब्रानियों 10:5-9; भजन 40:6-8.

22 यशायाह की तरह, यीशु ने भी उस काम को वफादारी से पूरा किया जो उसे सौंपा गया था और उसके साथ भी लोगों ने वैसा ही सलूक किया जैसे यशायाह के साथ किया था। यीशु के दिनों के यहूदी भी, भविष्यवक्‍ता यशायाह के ज़माने के अपने पुरखों की तरह परमेश्‍वर के संदेश को सुनने के लिए तैयार नहीं थे। (यशायाह 1:4) दृष्टांतों के ज़रिए अपनी बात कहना यीशु की सेवकाई की खासियत थी। इसलिए उसके चेलों ने उससे पूछा: “तू उन से दृष्टान्तों में क्यों बातें करता है?” यीशु ने उन्हें जवाब दिया: “तुम को स्वर्ग के राज्य के भेदों की समझ दी गई है, पर उन को नहीं। मैं उन से दृष्टान्तों में इसलिये बातें करता हूं, कि वे देखते हुए नहीं देखते; और सुनते हुए नहीं सुनते; और नहीं समझते। और उन के विषय में यशायाह की यह भविष्यद्वाणी पूरी होती है, कि तुम कानों से तो सुनोगे, पर समझोगे नहीं; और आंखों से तो देखोगे, पर तुम्हें न सूझेगा। क्योंकि इन लोगों का मन मोटा हो गया है, और वे कानों से ऊंचा सुनते हैं और उन्हों ने अपनी आंखें मूंद ली हैं; कहीं ऐसा न हो कि वे आंखों से देखें, और कानों से सुनें और मन से समझें, और फिर जाएं, और मैं उन्हें चंगा करूं।”—मत्ती 13:10,11,13-15; मरकुस 4:10-12; लूका 8:9,10.

23 यशायाह का हवाला देते हुए, यीशु दिखा रहा था कि उसके दिनों में यह भविष्यवाणी पूरी हो रही थी। इक्का-दुक्का लोगों को छोड़ पूरी जाति का रवैया यशायाह के दिनों के यहूदियों जैसा था। जब यीशु ने उन्हें संदेश सुनाया तो उन्होंने खुद को अंधा और बहरा बना लिया और इसीलिए उन पर भी विनाश आया। (मत्ती 23:35-38; 24:1,2) यह तब हुआ जब सा.यु. 70 में, जनरल टाइटस अपनी रोमी फौजों को लेकर आया और यरूशलेम नगर और उसके मंदिर को तहस-नहस कर दिया। फिर भी, कुछ लोगों ने यीशु की बात सुनी थी और उसके चेले भी बने। यीशु ने उन्हें “धन्य” कहा था। (मत्ती 13:16-23,51) उसने उन्हें आगाह किया था कि जब वे “यरूशलेम को सेनाओं से घिरा हुआ” देखें, तब उन्हें “पहाड़ों पर भाग” जाना चाहिए। (लूका 21:20-22) इस तरह विश्‍वास रखनेवाला, इन लोगों का यह “पवित्र वंश” बचा रहा जो एक आत्मिक जाति, यानी ‘परमेश्‍वर का इस्राएल’ बन चुका था। *गलतियों 6:16.

24. पौलुस ने यशायाह की भविष्यवाणी की किस पूर्ति के बारे में कहा, और इससे क्या पता लगता है?

24 सामान्य युग 60 के करीब, प्रेरित पौलुस को रोम में एक मकान में नज़रबंद करके रखा गया था। वहाँ वह “यहूदियों के बड़े लोगों” के साथ और कई दूसरे लोगों के साथ मिला और उन्हें “परमेश्‍वर के राज्य की गवाही” दी। जब बहुतों ने उसके संदेश को स्वीकार नहीं किया तब पौलुस ने खुलकर उनसे कह दिया कि उनका यह रवैया यशायाह की भविष्यवाणी की पूर्ति कर रहा है। (प्रेरितों 28:17-27; यशायाह 6:9,10) इससे पता चलता है कि यीशु के बाद उसके चेले भी वैसे ही अपनी ज़िम्मेदारी निभाते रहे जैसे यशायाह ने निभाई थी।

25. आज यहोवा के साक्षियों ने क्या जान लिया है, और वे इस बारे में क्या कर रहे हैं?

25 उसी तरह, आज यहोवा के साक्षियों ने भी यह जान लिया है कि यहोवा परमेश्‍वर अपने पवित्र मंदिर में मौजूद है। (मलाकी 3:1) और यशायाह की तरह वे भी कहते हैं, “मैं यहां हूं! मुझे भेज।” वे पूरे जोश के साथ इस दुष्ट दुनिया पर आनेवाले विनाश का संदेश लोगों को सुना रहे हैं और उन्हें चेतावनी दे रहे हैं। मगर जैसे यीशु ने कहा था, बहुत कम लोग हैं जो अपनी आँखें खोलकर देखते और कान खोलकर सुनते हैं ताकि उनका उद्धार हो सके। (मत्ती 7:13,14) जो लोग दिल से सच्चाई का संदेश सुनते और ‘चंगे हो जाते’ हैं, वे वाकई धन्य हैं, खुश हैं!—यशायाह 6:8,10.

[फुटनोट]

^ पैरा. 23 यहूदियों के विद्रोह की वजह से, सा.यु. 66 में सेस्टियस गैलस की रोमी सेना ने यरूशलेम को घेर लिया और नगर के अंदर घुसकर मंदिर की दीवारों तक पहुँच गयी। मगर उसके बाद अचानक ही ये सेनाएँ वापस चली गयीं। इसी वजह से यीशु के चेले सा.यु. 70 में रोमियों की वापसी से पहले ही भागकर पेरिया के पहाड़ों पर जा सके।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 94 पर तसवीर]

“मैं यहां हूं! मुझे भेज।”

[पेज 97 पर तसवीर]

“जब तक नगर न उजड़ें और उन में कोई रह न जाए”