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यहोवा पर आशा लगाए रखो

यहोवा पर आशा लगाए रखो

तेइसवाँ अध्याय

यहोवा पर आशा लगाए रखो

यशायाह 30:1-33

1, 2. (क) यशायाह के 30वें अध्याय में क्या दिया गया है? (ख) अब हम किन सवालों पर गौर करेंगे?

यशायाह के 30वें अध्याय में, दुष्टों के खिलाफ परमेश्‍वर के और भी न्यायदंड दिए गए हैं। लेकिन यशायाह की भविष्यवाणी के इस भाग में यहोवा के कुछ ऐसे गुणों पर भी रोशनी डाली गयी है, जो मन को भा जाते हैं। यहोवा के गुणों का इतने साफ शब्दों में वर्णन किया गया है कि पढ़ने पर लगता है मानो हम उसे खुद अपनी आँखों से देख रहे हैं जिससे हमें तसल्ली मिलती है, उसकी आवाज़ सुन रहे हैं जो हमें सही राह बताती है और उसका स्पर्श महसूस कर रहे हैं जिससे हमारी जान में जान आ जाती है।—यशायाह 30:20,21,26.

2 फिर भी, यशायाह के हमवतन यानी यहूदा के धर्मत्यागी लोग, यहोवा के पास लौटकर नहीं आना चाहते। इसके बजाय, वे मनुष्यों पर भरोसा करते हैं। यह देखकर यहोवा को कैसा लगता है? और यशायाह की भविष्यवाणी का यह भाग, आज मसीहियों को यहोवा पर आशा लगाए रहने में कैसे मदद करता है? (यशायाह 30:18) आइए देखें।

मूर्ख अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारता है

3. यहोवा किस साज़िश का पर्दाफाश करता है?

3 कुछ समय से यहूदा के अगुवे, अश्‍शूर की गुलामी से बचने का उपाय ढूँढ़ते हुए चोरी-छिपे साज़िश रच रहे हैं। लेकिन, यहोवा की नज़र उन पर बराबर लगी हुई है। अब वह उनकी साज़िश का पर्दाफाश करता है: “यहोवा की यह वाणी है, हाय उन बलवा करनेवाले लड़कों पर जो युक्‍ति तो करते परन्तु मेरी ओर से नहीं; वाचा तो बान्धते परन्तु मेरे आत्मा के सिखाये नहीं; और इस प्रकार पाप पर पाप बढ़ाते हैं। वे . . . मिस्र को जाते हैं।”—यशायाह 30:1,2क.

4. परमेश्‍वर के बागी लोगों ने कैसे उसका दर्जा मिस्र को दिया है?

4 इन अगुवों को कैसा भारी झटका लगता है जब उनकी साज़िश का भंडाफोड़ होता है! मिस्र जाकर उस देश से दोस्ती करना न सिर्फ अश्‍शूर से दुश्‍मनी मोल लेना है बल्कि यह यहोवा परमेश्‍वर के खिलाफ बगावत भी है। राजा दाऊद के ज़माने में, यह देश यहोवा को अपना दृढ़-गढ़ मानता था और ‘उसके पंखों के तले शरण’ लेता था। (भजन 27:1; 36:7) लेकिन अब वे “फिरौन की रक्षा में” और “मिस्र की छाया में शरण” ले रहे हैं। (यशायाह 30:2ख) वे परमेश्‍वर का दर्जा मिस्र को दे रहे हैं! कितना बड़ा विश्‍वासघात!यशायाह 30:3-5 पढ़िए।

5, 6. (क) मिस्र के साथ दोस्ती करना क्यों अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारना है? (ख) इससे पहले परमेश्‍वर के लोगों द्वारा की गयी किस यात्रा से ज़ाहिर होता है कि मिस्र जानेवाले राजदूत बड़ी बेवकूफी कर रहे हैं?

5 अगर यहूदा के अगुवे यह बहाना बनाएँगे कि वे बस यूँ ही मिस्र का दौरा करने जा रहे हैं, तो यशायाह के पास इसका भी ब्यौरेदार जवाब तैयार है: “दक्खिन देश के पशुओं के विषय भारी वचन। वे अपनी धन सम्पत्ति को जवान गदहों की पीठ पर, और अपने खज़ानों को ऊंटों के कूबड़ों पर लादे हुए, संकट और सकेती के देश में होकर, जहां सिंह और सिंहनी, नाग और उड़नेवाले तेज़ विषधर सर्प रहते हैं, उन लोगों के पास जा रहे हैं।” (यशायाह 30:6क) इन बातों से साफ पता चलता है कि उन्होंने इस यात्रा के लिए पहले से बहुत तैयारी की है। राजदूतों ने ऊँटों और गदहों का ऐसा कारवाँ तैयार करवाया है, जिन पर वे कीमती सामान लादकर मिस्र ले जाते हैं। वे ऐसे वीराने से गुज़रते हैं जहाँ जगह-जगह गरजते सिंहों और ज़हरीले साँपों का खतरा है। आखिरकार, ये राजदूत अपनी मंज़िल पर पहुँच ही जाते हैं और मिस्रियों को वह खज़ाना सौंप देते हैं, जो वे अपने साथ लाए हैं। उन्हें लगता है कि उन्होंने अब अपनी हिफाज़त की कीमत चुका दी है। मगर यहोवा कहता है: “उन लोगों . . . से उनको लाभ न होगा। क्योंकि मिस्र की सहायता व्यर्थ और निकम्मी है, इस कारण मैं ने उसको बैठी रहनेवाली रहब कहा है।” (यशायाह 30:6ख,7) बाइबल में, मिस्र को “रहब” यानी एक “मगरमच्छ” कहा गया है। (यशायाह 51:9,10) मिस्र बहुत सारे वादे तो करता है, मगर उनमें से एक को भी पूरा नहीं करता। इसलिए यहूदा का उससे दोस्ती करना अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारना है।

6 जब यशायाह अपने सुननेवालों को यहूदा के राजदूतों की इस यात्रा के बारे में बताता है, तो उन्हें शायद मूसा के दिनों में की गयी ऐसी ही एक यात्रा की याद आयी होगी। उनके पूर्वज उसी “भयानक जंगल” से गुज़रे थे। (व्यवस्थाविवरण 8:14-16) मूसा के दिनों में तो इस्राएली, मिस्र की गुलामी से छुटकारा पाकर उस देश से दूर जा रहे थे। मगर इस बार ये राजदूत मिस्र देश में ही जा रहे हैं, दूसरे शब्दों में कहें तो उसके गुलाम बनने जा रहे हैं। कितनी बड़ी बेवकूफी! हम कभी ऐसा गलत फैसला न करें कि अपनी आध्यात्मिक आज़ादी बेचकर गुलामी मोल लें!—गलतियों 5:1 से तुलना कीजिए।

भविष्यवक्‍ता के संदेश का विरोध

7. यहोवा ने यशायाह से यह क्यों कहा कि वह यहूदा के खिलाफ इस चेतावनी को लिख ले?

7 यहोवा, यशायाह से कहता है कि जो संदेश उसने अभी-अभी लोगों को दिया है उसे वह लिख ले ताकि, “वह भविष्य के लिये वरन सदा के लिये साक्षी बनी रहे।” (यशायाह 30:8) यहोवा को यह मंज़ूर नहीं कि उसके लोग उस पर भरोसा रखने के बजाय इंसानों के साथ की गयी संधियों पर भरोसा रखें—यह बात यहोवा ने इसलिए दर्ज़ करवायी ताकि आनेवाली पीढ़ियों को, जिसमें हमारी पीढ़ी भी शामिल है, फायदा हो। (2 पतरस 3:1-4) लेकिन, फिलहाल इसे लिखवाने के पीछे एक और बड़ी वजह है। “क्योंकि वे बलवा करनेवाले लोग और झूठ बोलनेवाले लड़के हैं जो यहोवा की शिक्षा को सुनना नहीं चाहते।” (यशायाह 30:9) लोगों ने यहोवा की सलाह को ठुकरा दिया है। तो चेतावनी को लिखा जाना इसलिए ज़रूरी है ताकि बाद में वे यह न कह सकें कि उन्हें पहले से कोई चेतावनी नहीं दी गयी थी।—नीतिवचन 28:9; यशायाह 8:1,2.

8, 9. (क) यहूदा के अगुवे कैसे यहोवा के भविष्यवक्‍ताओं को भ्रष्ट करना चाहते हैं? (ख) यशायाह किस तरह दिखाता है कि वह लोगों से डरनेवाला नहीं?

8 इन बगावत करनेवालों का रवैया कैसा है, अब यशायाह उसकी एक मिसाल देता है। “वे दर्शियों से कहते हैं, दर्शी मत बनो; और नबियों से कहते हैं, हमारे लिये ठीक नबूवत मत करो; हम से चिकनी चुपड़ी बातें बोलो, धोखा देनेवाली नबूवत करो।” (यशायाह 30:10) यहूदा के अगुवे वफादार भविष्यवक्‍ताओं को हुक्म देते हैं कि वे “ठीक” या सच्ची बात बताने के बजाय “चिकनी चुपड़ी” या “धोखा देनेवाली” झूठी बातें बताएँ। इससे साफ ज़ाहिर होता है कि वे सिर्फ ऐसी बातें सुनना पसंद करते हैं जो उनके कानों को भाती हैं। वे अपनी तारीफ सुनना चाहते हैं, निंदा नहीं। उनके हिसाब से, जो भविष्यवक्‍ता उनकी पसंद के मुताबिक भविष्यवाणी नहीं करना चाहता उसे ‘मार्ग से मुड़’ जाना चाहिए और ‘पथ से हट’ जाना चाहिए। (यशायाह 30:11क) या तो उसे ऐसी बातें बोलनी चाहिए जो उनके कानों में मिस्री घोले, या फिर उसे अपना प्रचार बंद ही कर देना चाहिए!

9 यशायाह के विरोधी ज़िद करते हैं: “इस्राएल के पवित्र को हमारे साम्हने से दूर करो।” (यशायाह 30:11ख) “इस्राएल के पवित्र,” यहोवा के नाम से बोलनेवाले यशायाह की ज़बान बंद करो! यहोवा की इस उपाधि, “इस्राएल के पवित्र” से ही उन्हें चिढ़ आने लगी है क्योंकि यह उन्हें एहसास दिलाती थी कि यहोवा के स्तर कितने ऊँचे हैं और वे कितने नीच हैं। उनकी बातें सुनकर यशायाह क्या करता है? वह ऐलान करता है: “इस्राएल का पवित्र यों कहता है।” (यशायाह 30:12क) बेझिझक होकर यशायाह वही शब्द कहता है जिनसे उसके विरोधियों को घिन आती है। वह उनके डर से चुप नहीं बैठेगा। हमारे लिए उसने कितनी अच्छी मिसाल रखी! जब परमेश्‍वर का संदेश सुनाने की बात आती है, तब मसीहियों को कभी-भी समझौता नहीं करना चाहिए। (प्रेरितों 5:27-29) यशायाह की तरह वे यह ऐलान करने से पीछे नहीं हटते: ‘यहोवा यों कहता है’!

बगावत के अंजाम

10, 11. यहूदा की बगावत के क्या अंजाम होंगे?

10 यहूदा ने परमेश्‍वर के वचन को ठुकराकर झूठ पर विश्‍वास किया है और “कुटिलता” पर भरोसा रखा है। (यशायाह 30:12ख) इसके अंजाम क्या होंगे? इस देश के अगुवे चाहते हैं कि यहोवा को उनसे दूर किया जाए, मगर यहोवा इस पूरे देश को ही दूर कर देगा और उनका अस्तित्त्व ही मिटा देगा! यह सब अचानक ही होगा और वे पूरी तरह नाश किए जाएँगे, जैसा कि यशायाह एक दृष्टांत देकर इस बात पर ज़ोर देता है। इस देश की बगावत ऐसी है जैसे “ऊंची भीत का टूटा हुआ भाग . . . जो फटकर गिरने पर हो, और वह अचानक पल भर में टूटकर गिर पड़ेगा।” (यशायाह 30:13) जैसे एक ऊँची दीवार का कोई हिस्सा फोड़े की तरह फूलकर उभर आता है और बढ़ते-बढ़ते फूट जाता है और पूरी दीवार ढह जाती है, उसी तरह यशायाह के दिनों में जीनेवाले लोगों की बगावत दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है और इसी वजह से एक दिन उनका पूरा देश मिट्टी में मिल जाएगा।

11 वे कैसे पूरी तरह नाश किए जाएँगे, यह दिखाने के लिए यशायाह एक और दृष्टांत बताता है: “कुम्हार के बर्तन की नाईं फूटकर ऐसा चकनाचूर होगा कि उसके टुकड़ों का एक ठीकरा भी न मिलेगा जिस में अंगेठी में से आग ली जाए वा हौद में से जल निकाला जाए।” (यशायाह 30:14) यहूदा का इस कदर विनाश किया जाएगा कि उसमें ऐसा कुछ न बचेगा जो किसी भी काम आ सके। एक ऐसा ठीकरा भी नहीं बचेगा जो अंगीठी में से आग निकालने या हौद में से पानी निकालने के लिए इस्तेमाल किया जा सके। कैसा शर्मनाक अंत! आज जो लोग सच्ची उपासना का विरोध करते हैं, भविष्य में उनका भी इसी तरह अचानक और पूरी तरह से अंत हो जाएगा।—इब्रानियों 6:4-8; 2 पतरस 2:1.

यहोवा की पेशकश ठुकरायी गयी

12. अगर यहूदा के लोग चाहें तो विनाश से कैसे बच सकते हैं?

12 लेकिन जिन लोगों को यशायाह चेतावनी सुनाता है, उनके सामने बचाव का रास्ता भी खुला है। भविष्यवक्‍ता उनको समझाता है: “प्रभु यहोवा, इस्राएल का पवित्र यों कहता है, ‘लौट आने और भरोसा रखने में तुम्हारा उद्धार है, शान्त और निर्भर रहने में ही तुम्हारी वीरता है।’” (यशायाह 30:15क, NHT) यहोवा अपने लोगों को बचाने के लिए तैयार है। मगर उन्हें चाहिए कि वे यहोवा पर ‘भरोसा रखें’ और उद्धार पाने के लिए इंसानों के साथ संधियाँ करने की कोशिश न करें। साथ ही उन्हें ‘शान्त रहने’ की ज़रूरत है यानी डरने के बजाय उन्हें यह भरोसा रखना है कि परमेश्‍वर उनकी हिफाज़त करने की ताकत रखता है। “परन्तु,” यशायाह लोगों से कहता है, “तुमने ऐसा न चाहा।”—यशायाह 30:15ख, NHT.

13. यहूदा के अगुवे किस पर भरोसा रखते हैं, और क्या ऐसा करना सही है?

13 यशायाह अब और खुलकर बताता है: “तुम ने कहा, नहीं, हम तो घोड़ों पर चढ़कर भागेंगे, इसलिये तुम भागोगे; और यह भी कहा कि हम तेज़ सवारी पर चलेंगे, सो तुम्हारा पीछा करनेवाले उस से भी तेज़ होंगे।” (यशायाह 30:16) यहूदियों को लगता है कि यहोवा के बजाय तेज़ दौड़नेवाले घोड़ों के ज़रिए उनका उद्धार होगा। (व्यवस्थाविवरण 17:16; नीतिवचन 21:31) लेकिन, भविष्यवक्‍ता जवाब देता है कि उनका भरोसा एक भुलावा होगा क्योंकि उनके दुश्‍मन उन्हें आ घेरेंगे। यहूदियों के पास बहुत बड़ी सेना होने के बावजूद उन्हें कोई फायदा नहीं होगा। “एक ही की धमकी से एक हजार भागेंगे, और पांच की धमकी से तुम . . . भागोगे।” (यशायाह 30:17क) यहूदा की सेनाएँ, दुश्‍मन के मुट्ठी-भर सैनिकों की चिल्लाहट सुनकर डर के मारे भाग खड़ी होंगी। * अंत में, थोड़े लोग ही बचेंगे, वे “पहाड़ की चोटी के डण्डे वा टीले के ऊपर की ध्वजा के समान रह [जाएँगे] जो चिन्ह के लिये गाड़े जाते हैं।” (यशायाह 30:17ख) ठीक इस भविष्यवाणी के मुताबिक, जब सा.यु.पू. 607 में यरूशलेम का विनाश हुआ तब सिर्फ कुछ लोग ही ज़िंदा बचे।—यिर्मयाह 25:8-11.

निंदा के साथ दिलासा

14, 15. यशायाह 30:18 के शब्दों से प्राचीनकाल में यहूदा के लोगों को और आज सच्चे मसीहियों को क्या दिलासा मिलता है?

14 लोगों के कानों में यशायाह की चेतावनी के कड़े शब्द अभी गूँज ही रहे हैं कि उसके संदेश में बदलाव आता है। वह आनेवाले संकट की चेतावनी देने के बाद आशीषों का वादा सुनाता है। “तौभी यहोवा इसलिये विलम्ब करता है कि तुम पर अनुग्रह करे, और इसलिये ऊंचे उठेगा कि तुम पर दया करे। क्योंकि यहोवा न्यायी परमेश्‍वर है; क्या ही धन्य हैं वे जो उस पर आशा लगाए रहते हैं।” (यशायाह 30:18) इन शब्दों से कितना हौसला मिलता है! यहोवा एक ऐसा दयालु पिता है जो अपने बच्चों की मदद करने को तरसता है। दया दिखाने से उसे खुशी मिलती है।—भजन 103:13; यशायाह 55:7.

15 हौसला बढ़ानेवाले ये शब्द उन यहूदियों पर लागू होते हैं जिन पर दया की गयी और वे सा.यु.पू. 607 में यरूशलेम के विनाश से बचाए गए, साथ ही यह भविष्यवाणी सा.यु.पू. 537 में उन चंद लोगों पर भी पूरी हुई जो वादा किए हुए देश वापस लौटे थे। लेकिन, भविष्यवक्‍ता के इन शब्दों से आज मसीहियों को भी दिलासा मिलता है। हमें याद दिलाया जाता है कि यहोवा हमारी ओर से “उठेगा” और इस दुष्ट दुनिया का अंत कर देगा। यहोवा के वफादार उपासक इस बात का यकीन रख सकते हैं कि जिस दिन इंसाफ यह माँग करेगा कि शैतान की दुनिया का अंत हो उसी दिन इसका अंत कर दिया जाएगा। हमारा “न्यायी परमेश्‍वर” यहोवा इसे एक भी दिन ज़्यादा टिके रहने की मौहलत नहीं देगा। इसलिए “जो उस पर आशा लगाए रहते हैं,” उनके लिए यह बड़े आनंद की बात है।

प्रार्थनाओं का जवाब देकर यहोवा दिलासा देता है

16. यहोवा निराश लोगों को कैसे तसल्ली देता है?

16 लेकिन, कुछ लोग यह देखकर निराश हो सकते हैं कि उनकी उम्मीद के मुताबिक अब तक उन्हें छुटकारा नहीं मिला है। (नीतिवचन 13:12; 2 पतरस 3:9) ऐसे लोग यशायाह के अगले शब्दों से दिलासा पा सकते हैं, जिनमें यहोवा के व्यक्‍तित्व के एक खास पहलू पर ज़ोर दिया गया है। “ए सिय्योनी कौम, जो यरूशलेम में बसेगी: तू फिर न रोएगी; वो तेरी फरियाद की आवाज़ सुनकर यकीनन तुझ पर रहम फरमाएगा; वह सुनते ही तुझे जवाब देगा।” (यशायाह 30:19, किताब-ए-मुकद्दस) यशायाह इन शब्दों के ज़रिए यहोवा का प्यार और अपनापन ज़ाहिर करता है क्योंकि वह आयत 18 में “तुम” का इस्तेमाल बहुवचन में करता है जबकि आयत 19 में एकवचन “तू” का इस्तेमाल करता है। इससे ज़ाहिर होता है कि जो लोग हताश हैं, उनमें से एक-एक व्यक्‍ति के साथ यहोवा उसकी ज़रूरत के मुताबिक व्यवहार करता है। अगर उसके किसी बेटे की हिम्मत टूट चुकी है तो एक पिता की हैसियत से वह यह नहीं पूछता, ‘तुम अपने भाई की तरह हिम्मत क्यों नहीं रख सकते?’ (गलतियों 6:4) इसके बजाय, वह हर व्यक्‍ति की बात बड़े ध्यान से सुनता है। दरअसल, ‘वह सुनते ही जवाब देगा।’ इन शब्दों से दिल को कितनी तसल्ली मिलती है! जो निराश हो चुके हैं, वे अगर यहोवा से प्रार्थना करें तो उनकी हिम्मत फिर से बँध जाएगी।—भजन 65:2.

परमेश्‍वर का वचन पढ़ने के ज़रिए उसकी हिदायतें सुनिए

17, 18. कष्ट के समय में भी, यहोवा कैसे राह दिखाता है?

17 अपना संदेश जारी रखते हुए, यशायाह अपने सुननेवालों को याद दिलाता है कि उन्हें कष्ट ज़रूर झेलना होगा। लोगों को “कष्ट की रोटी और दुख का जल” मिलेगा। (यशायाह 30:20क, NHT) जब उनके नगर को दुश्‍मन घेर लेगा तो कष्ट और दुःख झेलना उनके लिए रोज़ की बात हो जाएगी, जैसे यह रोटी और पानी हो। फिर भी, यहोवा सीधे मनवालों को बचाने के लिए तैयार है। “तुम्हारा शिक्षक [“महान उपदेशक,” NW] अधिक समय तक छिपा न रहेगा। परन्तु तुम अपनी आंखों से अपने शिक्षक को देखोगे। जब कभी दाहिने या बाएं मुड़ने लगो तो तुम्हारे कान पीछे से यह वचन सुनेंगे, ‘मार्ग यही है, इसी पर चलो।’”—यशायाह 30:20ख,21, NHT. *

18 यहोवा “महान उपदेशक” है। सिखाने में कोई उसकी बराबरी नहीं कर सकता। लेकिन, इसका मतलब क्या है कि लोग उसे ‘देख’ सकते और ‘सुन’ सकते हैं? यहोवा अपने भविष्यवक्‍ताओं के ज़रिए अपने आप को प्रकट करता है और इन भविष्यवक्‍ताओं के वचन बाइबल में लिखे हैं। (आमोस 3:6,7) आज, जब परमेश्‍वर के वफादार उपासक बाइबल पढ़ते हैं, तो वे मानो परमेश्‍वर की आवाज़ सुन रहे हैं जो उन्हें एक पिता की तरह राह दिखाता है और उनसे गुज़ारिश करता है कि वे उसकी राह पर चलने के लिए अपने तौर-तरीके बदलें। जब यहोवा बाइबल के ज़रिए और “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” की ओर से मिलनेवाले बाइबल साहित्य के ज़रिए बोलता है तो हर मसीही को ध्यान लगाकर उसकी बात सुननी चाहिए। (मत्ती 24:45-47) हरेक मसीही को चाहिए कि वह मन लगाकर बाइबल पढ़े, क्योंकि इसी पर उसका “जीवन” निर्भर है।—व्यवस्थाविवरण 32:46,47; यशायाह 48:17.

भविष्य में मिलनेवाली आशीषों पर मनन कीजिए

19, 20. अपने महान उपदेशक की आवाज़ सुनकर उसके मुताबिक करनेवालों को कौन-सी आशीषें मिलनेवाली हैं?

19 जो लोग महान उपदेशक की आवाज़ सुनकर उसके मुताबिक काम करेंगे, वे अपनी मूर्तियों को फेंक देंगे क्योंकि ये उनको घिनौनी लगेंगी। (यशायाह 30:22 पढ़िए।) इसके बाद, इन आज्ञाकारी लोगों को बढ़िया आशीषें मिलेंगी। इन आशीषों के बारे में यशायाह ने अपनी किताब में अध्याय 30 की आयत 23-26 में वर्णन किया है। यह बहाली की एक बहुत ही सुंदर भविष्यवाणी है जो पहली बार सा.यु.पू. 537 में पूरी हुई थी जब यहूदियों में से शेष बचे हुए जन बंधुआई से लौटे थे। इस भविष्यवाणी के ज़रिए हम यह भी समझ पाते हैं कि आज मसीहा हमें आध्यात्मिक फिरदौस में कैसी अनोखी आशीषें दे रहा है और आनेवाली नयी दुनिया में कैसी आशीषें देगा।

20“वह तुम्हारे लिये जल बरसाएगा कि तुम खेत में बीज बो सको, और भूमि की उपज भी उत्तम और बहुतायत से होगी। उस समय तुम्हारे जानवरों को लम्बी-चौड़ी चराई मिलेगी। और बैल और गदहे जो तुम्हारी खेती के काम में आएंगे, वे सूप और डलिया से फटका हुआ स्वादिष्ट चारा खाएंगे।” (यशायाह 30:23,24) “उत्तम और बहुतायत” से होनेवाली उपज यानी पौष्टिक भोजन, इंसान का हर रोज़ का खाना होगा। ज़मीन की उपज इतनी भरपूर होगी कि जानवरों को भी इससे फायदा होगा। पशुओं को हर दिन “स्वादिष्ट चारा” खिलाया जाएगा, जो दरअसल खास मौकों पर ही खिलाया जाता है। यह चारा “फटका” हुआ भी है जबकि आम तौर पर सिर्फ उस अनाज को फटका जाता है जिसे इंसान खाते हैं। ऐसी छोटी-छोटी बातों की जानकारी देकर यशायाह हमें समझा रहा है कि वफादार इंसानों पर यहोवा कैसी बेशुमार आशीषें बरसाएगा!

21. बताइए कि किस तरह भरपूर आशीषें मिलेंगी।

21“सब ऊंचे ऊंचे पहाड़ों और पहाड़ियों पर नालियां और सोते पाए जाएंगे।” (यशायाह 30:25ख) * यशायाह यहाँ बड़े सुंदर शब्दों में इस बात पर ज़ोर देता है कि इंसान को यहोवा से कैसी भरपूर आशीषें मिलेंगी। पानी की कोई कमी न होगी क्योंकि यह कीमती द्रव्य न सिर्फ मैदानों में बल्कि हर पहाड़ पर बहेगा, यहाँ तक कि “ऊंचे पहाड़ों और पहाड़ियों पर” भी। और हाँ, कोई भूखा भी नहीं रहेगा। (भजन 72:16) अब, यशायाह का ध्यान ऐसी चीज़ों पर जाता है जो पहाड़ों से भी ऊँची हैं। “उस समय यहोवा अपनी प्रजा के लोगों का घाव बान्धेगा और उनकी चोट चङ्‌गा करेगा; तब चन्द्रमा का प्रकाश सूर्य का सा, और सूर्य का प्रकाश सातगुना होगा, अर्थात्‌ अठवारे भर का प्रकाश एक दिन में होगा।” (यशायाह 30:26) इस शानदार भविष्यवाणी की क्या ही बढ़िया समाप्ति! परमेश्‍वर की महिमा अपने पूरे वैभव पर होगी। परमेश्‍वर के वफादार सेवकों के लिए आशीषें सातगुना होंगी, इतनी जितनी उनको पहले कभी नहीं मिलीं।

न्याय और खुशी

22. भविष्य में यहोवा जहाँ एक तरफ वफादार लोगों को आशीषें देगा, वहीं दूसरी तरफ वह दुष्टों के साथ क्या करेगा?

22 यशायाह के संदेश में एक बार फिर बदलाव आता है। वह कहता है, “देखो,” मानो अपने सुननेवालों का ध्यान खींच रहा हो। “यहोवा दूर से चला आता है, उसका प्रकोप भड़क उठा है, और धूएं का बादल उठ रहा है; उसके होंठ क्रोध से भरे हुए और उसकी जीभ भस्म करनेवाली आग के समान है।” (यशायाह 30:27) अब तक, यहोवा ने अपने लोगों के दुश्‍मनों को मनमानी करने दी है, उनके मामलों में दखल नहीं दिया है। लेकिन अब वह न्यायदंड देने के लिए पास आ रहा है, जैसे कोई भयानक आँधी चली आ रही हो। “उसकी सांस ऐसी उमण्डनेवाली नदी के समान है जो गले तक पहुंचती है; वह सब जातियों को नाश के सूप से फटकेगा, और देश देश के लोगों को भटकाने के लिये उनके जभड़ों में लगाम लगाएगा।” (यशायाह 30:28) परमेश्‍वर के लोगों के दुश्‍मनों को एक “उमण्डनेवाली नदी” घेर लेगी, उन्हें बड़े ही ज़बरदस्त तरीके से ‘सूप से फटका’ जाएगा और “लगाम” लगाकर उन्हें काबू में किया जाएगा। उनका सर्वनाश होगा।

23. आज मसीही ‘मन में आनन्द’ क्यों मनाते हैं?

23 फिर एक बार यशायाह का लहज़ा बदलता है और वह परमेश्‍वर के वफादार उपासकों की खुशहाली का वर्णन करता है जो एक दिन ज़रूर अपने वतन लौट आएँगे। “तब तुम पवित्र पर्व की रात का सा गीत गाओगे, और जैसा लोग यहोवा के पर्वत की ओर उस से मिलने को, जो इस्राएल की चट्टान है, बांसुली बजाते हुए जाते हैं, वैसे ही तुम्हारे मन में भी आनन्द होगा।” (यशायाह 30:29) आज सच्चे मसीही भी इसी तरह ‘मन में आनन्द’ मनाते हैं जब वे इस बात पर मनन करते हैं कि किस तरह शैतान की दुनिया का न्याय किया जाएगा; और उनके “उद्धार की चट्टान” यहोवा उनकी हिफाज़त करेगा और परमेश्‍वर के राज्य में उन्हें ढेरों आशीषें मिलेंगी।—भजन 95:1.

24, 25. यशायाह की भविष्यवाणी में कैसे ज़ोर दिया गया है कि अश्‍शूर पर न्यायदंड हर हाल में आएगा?

24 खुशी का बयान करने के बाद, यशायाह अब दोबारा परमेश्‍वर के न्याय के बारे में बात करता है और बताता है कि परमेश्‍वर के प्रकोप का निशाना कौन बनेगा। “यहोवा अपनी प्रतापी वाणी सुनाएगा और अपने भुजबल को अपने प्रकोप, भस्म करनेवाली अग्नि, मूसलाधार वृष्टि, प्रचण्ड आन्धी और ओलों में प्रकट करेगा। क्योंकि जब यहोवा उन्हें सोंटे लगाएगा तब उसकी वाणी से अश्‍शूर आतंकित होगा।” (यशायाह 30:30,31, NHT) ऐसा सजीव वर्णन करने के ज़रिए यशायाह इस बात पर ज़ोर देता है कि अश्‍शूर पर परमेश्‍वर का न्यायदंड हर हाल में आएगा। इसी वजह से, अश्‍शूर परमेश्‍वर के सामने खड़ा है और उसके न्याय के ‘भुजबल को प्रकट’ होते देख थर-थर काँप रहा है।

25 भविष्यवक्‍ता आगे कहता है: “जब जब यहोवा उसको दण्ड देगा, तब तब साथ ही डफ और वीणा बजेंगी; और वह हाथ बढ़ाकर उसको लगातार मारता रहेगा। बहुत काल से तोपेत तैयार किया गया है, वह राजा ही के लिये ठहराया गया है, वह लम्बा-चौड़ा और गहिरा भी बनाया गया है, वहां की चिता में आग और बहुत सी लकड़ी हैं; यहोवा की सांस जलती हुई गन्धक की धारा की नाईं उसको सुलगाएगी।” (यशायाह 30:32,33) इस भविष्यवाणी में हिन्‍नोम की तराई के तोपेत को एक लाक्षणिक जगह बताया गया है जहाँ हमेशा आग जलती रहती है। यह कहकर कि अश्‍शूर का अंत तोपेत में होगा, यशायाह ज़ोर देता है कि वह देश अचानक ही और पूरी तरह नाश हो जाएगा।—2 राजा 23:10 से तुलना कीजिए।

26. (क) अश्‍शूर के खिलाफ सुनाए गए यहोवा के न्यायदंड, आज हमारे लिए क्या अहमियत रखते हैं? (ख) आज मसीही यहोवा पर कैसे आशा लगाए रहते हैं?

26 हालाँकि यह न्याय का संदेश अश्‍शूर को सुनाया गया है, फिर भी यशायाह की यह भविष्यवाणी आज हमारे दिनों के लिए भी अहमियत रखती है। (रोमियों 15:4) यहोवा एक बार फिर मानो दूर से चला आएगा और उसके लोगों पर ज़ुल्म ढानेवालों को उमड़नेवाली नदी से घेर लेगा, उन्हें झँझोड़कर रख देगा और उनके मुँह में लगाम लगा देगा। (यहेजकेल 38:18-23; 2 पतरस 3:7; प्रकाशितवाक्य 19:11-21) हम मसीही दुआ करते हैं कि छुटकारे का वह दिन जल्द-से-जल्द आए! और उस दिन के आने का हम बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। यशायाह के 30वें अध्याय में जो साफ शब्दों में वर्णन पेश किया गया है, उस पर मनन करके हम मसीही हिम्मत पाते हैं। ये शब्द परमेश्‍वर के सेवकों को उकसाते हैं कि वे प्रार्थना की अनमोल देन की कदर करें, मन लगाकर बाइबल का अध्ययन करें और परमेश्‍वर के राज्य में मिलनेवाली आशीषों पर मनन करें। (भजन 42:1,2; नीतिवचन 2:1-6; रोमियों 12:12) इस तरह, यहोवा पर आशा लगाए रखने में यशायाह के शब्द हम सभी की मदद करते हैं।

[फुटनोट]

^ पैरा. 13 गौर कीजिए कि अगर यहूदा वफादार रहता तो यह अंजाम उसका नहीं बल्कि उसके दुश्‍मनों का होता।—लैव्यव्यवस्था 26:7,8.

^ पैरा. 17 बाइबल में यही एक आयत है जिसमें यहोवा को “महान उपदेशक” कहा गया है।

^ पैरा. 21 यशायाह 30:25क में लिखा है: “उस महासंहार के समय जब गुम्मट गिर पड़ेंगे।” इस भविष्यवाणी की पहली पूर्ति शायद तब हुई, जब बाबुल का पतन हुआ था और उससे इस्राएलियों के लिए यशायाह 30:18-26 में बताई गयी आशीषें मिलने का रास्ता खुल गया। (पैराग्राफ 19 देखिए।) ये शब्द शायद अरमगिदोन में होनेवाले विनाश के बारे में भी बता रहे हैं, जिससे नयी दुनिया में बहुत बड़े पैमाने पर इंसानों के लिए ये आशीषें मिलना मुमकिन हो सकेगा।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 305 पर तसवीरें]

मूसा के दिनों में, इस्राएली मिस्र से छुटकारा पाकर वहाँ से निकल आए थे। यशायाह के दिनों में, यहूदा मदद के लिए फिर से मिस्र जाता है

[पेज 311 पर तसवीर]

‘सब पहाड़ियों पर नालियां और सोते पाए जाएंगे’

[पेज 312 पर तसवीर]

यहोवा जब आएगा तब उसका ‘प्रकोप भड़क उठेगा, और धूएं का बादल उठेगा’