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राजा और उसके शासक

राजा और उसके शासक

पच्चीसवाँ अध्याय

राजा और उसके शासक

यशायाह 32:1-20

1, 2. यशायाह के मृत सागर चर्मपत्र के पाठ के बारे में क्या कहा जा सकता है?

उन्‍नीस सौ चालीस के दशक के आखिरी सालों में, पैलिस्टाइन में मृत सागर के पास कुछ गुफाओं में चर्मपत्रों का एक बेहतरीन संग्रह पाया गया। ये चर्मपत्र मृत सागर चर्मपत्र (डॆड सी स्क्रोल्स्‌) के नाम से मशहूर हैं। माना जाता है कि इन्हें सा.यु.पू. 200 और सा.यु. 70 के बीच किसी वक्‍त लिखा गया था। इनमें सबसे जाना-माना है, यशायाह किताब का चर्मपत्र जो टिकाऊ और मज़बूत चमड़े पर, इब्रानी भाषा में लिखा हुआ है। इस चर्मपत्र पर यशायाह की लगभग पूरी किताब लिखी है और इसके पाठ और मसोरा-हस्तलिपियों के पाठ में बहुत मामूली-सा फर्क है, जबकि मसोरा-हस्तलिपियाँ इन चर्मपत्रों के लिखे जाने के 1,000 साल बाद लिखी गयी थीं। इस तरह यह चर्मपत्र इस बात का सबूत देता है कि बाइबल का पाठ हम तक बिना किसी फेर-बदल के बिलकुल सही-सही पहुँचाया गया है।

2 यशायाह के मृत सागर चर्मपत्र के बारे में गौर करने लायक एक बात यह है कि इसके एक भाग के हाशिये पर “X” निशान लगा हुआ है जो स्पष्ट तरीके से लिखा नहीं गया। इस भाग को हम आज की बाइबल में यशायाह के 32वें अध्याय में पाते हैं। हम नहीं जानते कि नकलनवीस ने यह निशान क्यों लगाया, लेकिन हम इतना ज़रूर जानते हैं कि पवित्र बाइबल के इस भाग में कुछ खास बात है।

धार्मिकता और न्याय से राज

3. यशायाह और प्रकाशितवाक्य की किताबों में किस प्रशासन के बारे में भविष्यवाणी की गयी थी?

3यशायाह के 32वें अध्याय की शुरूआत में एक बहुत ही रोमांचकारी भविष्यवाणी दी गयी है जो हमारे दिनों में खास तौर पर पूरी हो रही है: “देखो, एक राजा धार्मिकता से राज्य करेगा, तथा शासक न्यायपूर्वक राज्य करेंगे।” (यशायाह 32:1, NHT) “देखो,” इस पुकार से हमें बाइबल की भविष्यवाणी की आखिरी किताब में दी गयी एक ऐसी ही पुकार याद आती है: “जो सिंहासन पर बैठा था, उस ने कहा, कि देख, मैं सब कुछ नया कर देता हूं।” (तिरछे टाइप हमारे।) (प्रकाशितवाक्य 21:5) बाइबल की यशायाह और प्रकाशितवाक्य की किताबों के लिखे जाने के बीच करीब 900 साल का फासला था। फिर भी इन दोनों किताबों में बड़े ही खूबसूरत शब्दों में एक नए प्रशासन का वर्णन किया गया है। इस नयी सरकार को ‘नया आकाश’ कहा गया है, और 1914 में स्वर्ग में मसीह यीशु को इसका राजा बनाया गया। उसके साथ राज करनेवालों की गिनती 1,44,000 है, जिन्हें “मनुष्यों में से मोल” लिया गया है। इसके साथ-साथ “नई पृथ्वी” का भी ज़िक्र किया गया है जिसका मतलब है सारी धरती पर एकता में रहनेवाला मानव समाज। * (प्रकाशितवाक्य 14:1-4; 21:1-4; यशायाह 65:17-25) यह सारा इंतज़ाम मसीह के छुड़ौती बलिदान की वजह से मुमकिन हो पाया है।

4. नयी पृथ्वी की कौन-सी बुनियाद आज मौजूद है?

4 प्रेरित यूहन्‍ना दर्शन में पहले देखता है कि यीशु के साथ राज करनेवाले इन 1,44,000 जनों पर अंतिम मुहर लगायी जाती है। इसके बाद, वह कहता है: “मैं ने दृष्टि की, और देखो, हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा में से एक ऐसी बड़ी भीड़, जिसे कोई गिन नहीं सकता था . . . सिंहासन के साम्हने और मेम्ने के साम्हने खड़ी है।” (तिरछे टाइप हमारे।) यह बड़ी भीड़ ही नयी पृथ्वी की बुनियाद होगी। इस बड़ी भीड़ की गिनती आज लाखों में है और वे 1,44,000 के शेष जनों के साथ हो लिए हैं, जिनमें से ज़्यादातर की उम्र काफी ढल चुकी है। बड़ी भीड़, बहुत जल्द आनेवाले बड़े क्लेश से बच जाएगी और उसे इस धरती पर फिरदौस में ज़िंदगी मिलेगी। उनके साथ पुनरुत्थान पाए हुए वफादार लोगों के साथ ऐसे अरबों लोग भी होंगे जिन्हें अपना विश्‍वास ज़ाहिर करने का मौका दिया जाएगा। और जो लोग अपना विश्‍वास ज़ाहिर करेंगे, उन सभी को अनंत जीवन की आशीष दी जाएगी।—प्रकाशितवाक्य 7:4,9-17.

5-7. भविष्यवाणी में बताए “शासक” परमेश्‍वर के झुंड में कौन-सी भूमिका निभाते हैं?

5 लेकिन, जब तक घृणा और बैर से भरी यह दुनिया रहेगी, तब तक बड़ी भीड़ के सदस्यों को सुरक्षा की ज़रूरत है। काफी हद तक उन्हें यह सुरक्षा “न्यायपूर्वक राज्य” करनेवाले “शासक” दे रहे हैं। यह क्या ही शानदार इंतज़ाम है! इन ‘शासकों’ के बारे में यशायाह की भविष्यवाणी में बड़े ही सुंदर शब्दों में वर्णन किया गया है: “हर एक मानो आंधी से छिपने का स्थान, और बौछार से आड़ होगा; या निर्जल देश में जल के झरने, व तप्त भूमि में बड़ी चट्टान की छाया।”—यशायाह 32:2.

6 आज जब दुनिया में हर तरफ दुःख और परेशानियाँ हैं, ऐसे में ‘शासकों,’ जी हाँ, ऐसे प्राचीनों की सख्त ज़रूरत है जो “पूरे झुंड की चौकसी” करें, उनकी देखभाल करें और यहोवा के धर्मी उसूलों के मुताबिक उनका न्याय करें। (प्रेरितों 20:28) इन ‘शासकों’ में, 1 तीमुथियुस 3:2-7 और तीतुस 1:6-9 में बतायी गयी माँगों को पूरा करनेवाली योग्यताएँ होना ज़रूरी है।

7 यीशु ने जब अपनी एक खास भविष्यवाणी में “जगत के अन्त” के भयानक दौर के बारे में बताया तो उसने कहा: “देखो घबरा न जाना।” (मत्ती 24:3-8) आज, यीशु के चेले दुनिया की खतरनाक परिस्थितियों से क्यों नहीं घबराते? इसकी एक वजह यह है कि अभिषिक्‍त जनों और ‘अन्य भेड़ों’ में से “शासक,” यानी प्राचीन वफादारी से झुंड की रखवाली कर रहे हैं। (यूहन्‍ना 10:16, NW) जाति के नाम पर होनेवाले फसादों और जन-संहार जैसे निर्मम हादसों के दौरान भी, वे बड़ी हिम्मत से अपने भाई-बहनों की देखभाल करते हैं। आध्यात्मिक मायने में एक रेगिस्तान जैसी इस दुनिया में वे इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि थके-हारे और निराश भाई-बहनों को परमेश्‍वर के वचन बाइबल की सच्चाइयों से ताज़गी मिले और उनका हौसला बढ़ता रहे।

8. यहोवा, अन्य भेड़ों में से नियुक्‍त किए गए ‘शासकों’ को किस तरह तालीम देकर इस्तेमाल कर रहा है?

8 पिछले 50 सालों के दौरान, इन ‘शासकों’ की पहचान एकदम स्पष्ट हो गयी है। जो “शासक” अन्य भेड़ों में से हैं, उन्हें आज बढ़ते “प्रधान” वर्ग के रूप में काम करने की तालीम दी जा रही है ताकि बड़े क्लेश के बाद, उनमें से योग्य जनों को “नई पृथ्वी” में प्रशासन की ज़िम्मेदारियों के लिए नियुक्‍त किया जा सके। (यहेजकेल 44:2,3; 2 पतरस 3:13) आज वे राज्य के काम में अगुवाई करते वक्‍त आध्यात्मिक मार्गदर्शन और ताज़गी दे रहे हैं। इस तरह वे साबित करते हैं कि वे आध्यात्मिक देश में झुंड के लिए “बड़ी चट्टान की छाया” हैं। *

9. कौन-से हालात दिखाते हैं कि आज ‘शासकों’ की सख्त ज़रूरत है?

9 समर्पित मसीहियों को ऐसी हिफाज़त की सख्त ज़रूरत है क्योंकि शैतान के दुष्ट संसार के ये अंतिम दिन मुसीबतों से भरे हैं। (2 तीमुथियुस 3:1-5,13) आज झूठी शिक्षाओं और गलत प्रोपगैंडा की तेज़ हवाएँ चल रही हैं। गृहयुद्ध और अलग-अलग देशों के बीच युद्ध, तूफान की तरह तबाही मचा रहे हैं। इतना ही नहीं, यहोवा परमेश्‍वर के वफादार सेवकों को खास निशाना बनाकर सताया जा रहा है। आध्यात्मिक अकाल और सूखे से पीड़ित इस संसार में मसीहियों की आध्यात्मिक प्यास बुझाने के लिए सच्चाई के शुद्ध जल की बहुत ज़्यादा ज़रूरत है। हम यहोवा के इस वादे से खुश हो सकते हैं कि उसका ठहराया हुआ राजा, अपने अभिषिक्‍त भाइयों और उन्हें सहयोग देनेवाले अन्य भेड़ों में से ‘शासकों’ के ज़रिए ज़रूरत के इस वक्‍त में, निराश और हताश लोगों की हिम्मत बढ़ाएगा और उन्हें मार्गदर्शन देगा। इस तरह यहोवा ध्यान रखेगा कि हर काम धार्मिकता और न्याय से किया जाए।

आँख, कान और मन लगाकर ध्यान देना

10. यहोवा ने कौन-से इंतज़ाम किए हैं ताकि उसके लोग आध्यात्मिक बातें ‘देख’ और ‘सुन’ सकें?

10 यहोवा के इस ईशतंत्रीय इंतज़ाम का बड़ी भीड़ पर कैसा असर हुआ है? जवाब देते हुए भविष्यवाणी आगे कहती है: “उस समय देखनेवालों की आंखें धुंधली न होंगी, और सुननेवालों के कान लगे रहेंगे।” (यशायाह 32:3) सालों से, यहोवा अपने प्यारे सेवकों को सिखाने का इंतज़ाम करता आया है ताकि वे आध्यात्मिक रूप से अनुभवी होते जाएँ। दुनिया भर में, यहोवा के साक्षियों की कलीसियाओं में थियोक्रेटिक मिनिस्ट्री स्कूल और दूसरी सभाएँ चलाई जाती हैं; ज़िला, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशन होते हैं; साथ ही ‘शासकों’ को झुंड की प्यार से देखभाल करने के लिए खास तालीम दी जाती है। इन सारे इंतज़ामों की मदद से संसार भर के लाखों भाई-बहनों के बीच प्यार और एकता बढ़ी है। ये चरवाहे दुनिया में चाहे कहीं भी हों, वे सच्चाई की बढ़ती समझ में होनेवाले सुधार को सुनने के लिए अपने कान खुले रखते हैं। उनके विवेक बाइबल के मुताबिक ढाले गए हैं, वे हर वक्‍त सुनने और उस पर अमल करने के लिए तैयार रहते हैं।—भजन 25:10.

11. अब परमेश्‍वर के लोग क्यों पूरे यकीन के साथ बोल रहे हैं और किसी संदेह के कारण हकला नहीं रहे?

11 अब, भविष्यवाणी एक चेतावनी देती है: “उतावलों के मन सत्य को समझेंगे, तथा हकलानेवालों की जीभ फुर्ती से स्पष्ट बोलेंगी।” (यशायाह 32:4, NHT) सही क्या है और गलत क्या, इसका फैसला करने में हममें से कोई भी उतावली न करे। बाइबल कहती है: “क्या तू बातें करने में उतावली करनेवाले मनुष्य को देखता है? उस से अधिक तो मूर्ख ही से आशा है।” (नीतिवचन 29:20; सभोपदेशक 5:2) सन्‌ 1919 से पहले, यहोवा के लोगों पर भी बाबुल यानी झूठे धर्म की धारणाओं के दाग लगे थे। लेकिन उस साल से, यहोवा उन्हें अपने उद्देश्‍यों के बारे में स्पष्ट समझ देता रहा है। उन्होंने पाया है कि जो सच्चाई यहोवा ने उन पर प्रकट की है, वह उतावली में नहीं बल्कि बहुत सोच-समझकर दी गयी है। इस वजह से वे आज, बिना हकलाए यानी बिना किसी संदेह के अपने विश्‍वास के बारे में पूरे यकीन के साथ दूसरों को बता रहे हैं।

“मूर्ख” जन

12. आज “मूर्ख” जन कौन हैं, और किस तरह उनमें उदारता का गुण नहीं है?

12 यशायाह की भविष्यवाणी अब बिलकुल उलट किस्म के लोगों के बारे में बताती है: “आगे को न तो मूर्ख कुलीन कहलाएगा और न दुर्जन उदार। क्योंकि मूर्ख तो मूर्खता की बातें करता है।” (यशायाह 32:5,6क, NHT) यह “मूर्ख” जन कौन है? मानो ज़ोर देने के लिए राजा दाऊद ने दो बार इस सवाल का जवाब दिया: “मूर्ख ने अपने मन में कहा है, कोई परमेश्‍वर है ही नहीं। वे बिगड़ गए, उन्हों ने घिनौने काम किए हैं, कोई सुकर्मी नहीं।” (भजन 14:1; 53:1) बेशक जो पक्के नास्तिक होते हैं, वे कहते हैं कि यहोवा है ही नहीं। उनकी तरह “अक्लमंद” कहलानेवाले और कई और लोग भी अपने व्यवहार से यही ज़ाहिर करते हैं मानो परमेश्‍वर है ही नहीं और यह मानते हैं कि उन्हें अपने कामों का किसी को लेखा नहीं देना पड़ेगा। ऐसे लोगों के मन में सच्चाई नहीं होती। उनके दिलों में उदारता नाम की कोई चीज़ नहीं होती। न ही उनके पास सुनाने के लिए प्यार का कोई संदेश होता है। वे सच्चे मसीहियों से बिलकुल अलग हैं। वे तकलीफ के वक्‍त ज़रूरतमंदों की मदद करने में आलसी हैं या फिर उनके लिए कुछ करते ही नहीं।

13, 14. (क) आज के ज़माने के धर्मत्यागी किस तरह दुष्टता के काम कर रहे हैं? (ख) धर्मत्यागी, भूखे-प्यासे लोगों को किन चीज़ों से वंचित करने की कोशिश करते हैं, मगर आखिर में उनका अंजाम क्या होगा?

13 ऐसे बहुत-से मूर्ख जन परमेश्‍वर की सच्चाई की हिमायत करनेवालों से घृणा करने लगते हैं। “उसका हृदय दुष्टता की ओर ही झुकता है कि अधर्म किया करे तथा यहोवा के विरुद्ध झूठी बातें कहा करे।” (यशायाह 32:6ख, NHT) यह बात आज के ज़माने के धर्मत्यागियों पर कितनी ठीक बैठती है! यूरोप और एशिया के कई देशों में, धर्मत्यागियों ने सच्चाई के बाकी विरोधियों के साथ हाथ मिलाकर सरकारी अधिकारियों के सामने यहोवा के साक्षियों के खिलाफ सरासर झूठ बोला है ताकि उनका काम बंद कर दिया जाए या उन पर पाबंदियाँ लगा दी जाएँ। वे उस “दुष्ट दास” जैसा रवैया दिखाते हैं, जिसके बारे में यीशु ने भविष्यवाणी की थी: “परन्तु यदि वह दुष्ट दास सोचने लगे, कि मेरे स्वामी के आने में देर है। और अपने साथी दासों को पीटने लगे, और पियक्कड़ों के साथ खाए पीए। तो उस दास का स्वामी ऐसे दिन आएगा, जब वह उस की बाट न जोहता हो। और ऐसी घड़ी कि वह न जानता हो, और उसे भारी ताड़ना देकर, उसका भाग कपटियों के साथ ठहराएगा: वहां रोना और दांत पीसना होगा।”—मत्ती 24:48-51.

14 लेकिन इस दौरान ये धर्मत्यागी कोशिश करते हैं कि “भूखे को भूखा ही रहने दे और प्यासे का जल रोक रखे।” (यशायाह 32:6ग) सच्चाई के दुश्‍मन पूरी कोशिश करते हैं कि सच्चाई के भूखे लोगों तक आध्यात्मिक भोजन न पहुँचे और प्यासे लोगों को राज्य संदेश का ताज़गी देनेवाला जल न मिले। लेकिन, आखिर में उनका अंजाम क्या होगा, यह बताने के लिए यहोवा ने एक और भविष्यवक्‍ता के ज़रिए अपने लोगों से कहा: “वे तुझ से लड़ेंगे तो सही, परन्तु तुझ पर प्रबल न होंगे, क्योंकि बचाने के लिये मैं तेरे साथ हूं, यहोवा की यही वाणी है।”—यिर्मयाह 1:19; यशायाह 54:17.

15. आज खास तौर पर “दुर्जन” लोग कौन हैं, उन्होंने कौन-सी “झूठी” बातें फैलायी हैं, और इसका नतीजा क्या निकला है?

15 बीसवीं सदी के बीच के सालों से, ईसाईजगत के देशों में अनैतिकता और बदचलनी मानो जंगल की आग की तरह फैलने लगी। क्यों? इसकी एक वजह भविष्यवाणी में बतायी गयी है: “दुर्जन के शस्त्र तो बुराई ही के हैं; वह बुरी [“लुचपन की,” NW] युक्‍तियां निकालता है कि पीड़ित की झूठी निन्दा करके उसे नाश करे, चाहे वह दरिद्र खराई की ही बातें क्यों न बोलता हो।” (यशायाह 32:7, NHT) ठीक इस भविष्यवाणी के मुताबिक, खासकर बहुत-से पादरियों ने लोगों को शादी से पहले लैंगिक संबंध रखने, बगैर शादी के एक-साथ रहने और समलैंगिक संबंध रखने की खुली छूट दी है, जो वाकई ‘व्यभिचार, और हर प्रकार के अशुद्ध काम’ हैं। (इफिसियों 5:3) इस तरह, वे झूठी बातें कहकर अपने झुंड का “नाश” करते हैं।

16. सच्चे मसीहियों को किस बात से खुशी मिलती है?

16 इसके विपरीत, भविष्यवक्‍ता के अगले शब्दों की पूर्ति से कितनी ताज़गी मिलती है! “परन्तु उदार मनुष्य उदारता ही की युक्‍तियां निकालता है, वह उदारता में स्थिर भी रहेगा।” (यशायाह 32:8) यीशु ने खुद उदारता दिखाने का बढ़ावा देते हुए कहा: “दिया करो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा: लोग पूरा नाप दबा दबाकर और हिला हिलाकर और उभरता हुआ तुम्हारी गोद में डालेंगे, क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा।” (लूका 6:38) प्रेरित पौलुस ने भी उदार लोगों को मिलनेवाली आशीषों के बारे में कहा था: “प्रभु यीशु की बातें स्मरण रखना अवश्‍य है, कि उस ने आप ही कहा है; कि लेने से देना धन्य है।” (प्रेरितों 20:35) सच्चे मसीहियों को धन-दौलत या शोहरत पाने से नहीं बल्कि अपने परमेश्‍वर यहोवा की तरह उदार होने से खुशी मिलती है। (मत्ती 5:44,45) उन्हें सबसे ज़्यादा खुशी इस बात से मिलती है कि वे परमेश्‍वर की इच्छा पूरी कर रहे हैं और जी-जान लगाकर ‘आनंदित परमेश्‍वर की महिमा का सुसमाचार’ सुना रहे हैं।—1 तीमुथियुस 1:11, NW.

17. यशायाह ने जिन ‘निश्‍चिन्त पुत्रियों’ का ज़िक्र किया उनकी तरह आज कौन हैं?

17 यशायाह की भविष्यवाणी आगे कहती है: “हे स्त्रियो, तुम जो चैन से हो, उठकर मेरी वाणी सुनो! हे निश्‍चिन्त पुत्रियो, मेरे वचन पर कान लगाओ! हे निश्‍चिन्त पुत्रियो, एक वर्ष और कुछ ही दिनों में तुम विकल हो जाओगी, क्योंकि अंगूर की फसल जाती रहेगी और बटोरना होगा ही नहीं। हे स्त्रियो, तुम जो चैन से हो, थरथराओ, और हे निश्‍चिन्त पुत्रियो, विकल हो।” (यशायाह 32:9-11क, NHT) इन स्त्रियों का रवैया हमें शायद उन लोगों की याद दिलाए जो आज परमेश्‍वर की सेवा करने का दावा तो करते हैं मगर जोश और पूरे मन से उसकी सेवा नहीं करते। ऐसे लोग ‘पृथ्वी की वेश्‍याओं की माता,’ यानी ‘बड़े बाबुल’ के धर्मों में पाए जाते हैं। (प्रकाशितवाक्य 17:5) मिसाल के तौर पर, ईसाईजगत के धर्मों के सदस्य काफी हद तक इन ‘स्त्रियों’ जैसे हैं जिनके बारे में यशायाह ने बताया। वे “चैन से” रहते हैं, उन्हें उस न्यायदंड और संकट की कोई फिक्र नहीं जो जल्द ही उन पर टूट पड़ेगा।

18. ‘कमर में टाट लपेटने’ की आज्ञा किसे दी गयी है, और क्यों?

18 अब झूठे धर्म को पुकार लगायी जाती है: “कपड़े उतार और निर्वस्त्र होकर अपनी अपनी कमर में टाट लपेटो। हरे-भरे खेतों और फलदाई दाखों के लिए, मेरे लोगों की भूमि में कांटों और झाड़ियों के लिए वरन्‌ सभी हर्ष भरे घरों तथा उल्लसित नगरों के लिए छाती पीटो।” (यशायाह 32:11ख-13, NHT) ‘कपड़े उतार और निर्वस्त्र हो’ का मतलब सारे कपड़े उतार देना नहीं है। पुराने ज़माने के लोग अंदर के वस्त्र के ऊपर एक लबादा पहना करते थे। इसी लबादे से अकसर एक व्यक्‍ति की पहचान होती थी। (2 राजा 10:22,23; प्रकाशितवाक्य 7:13,14) तो यह भविष्यवाणी झूठे धर्म के लोगों को आज्ञा दे रही है कि वे अपने लबादे उतार फेंके यानी परमेश्‍वर के सेवक होने का दिखावा करना छोड़ दें। इसके बजाय वे टाट ओढ़ लें, जो इस बात की निशानी होगी कि वे खुद पर जल्द आनेवाले न्यायदंड का शोक मना रहे हैं। (प्रकाशितवाक्य 17:16) परमेश्‍वर की ‘उल्लसित नगरी’ होने का दावा करनेवाले, ईसाईजगत के धर्म-संगठनों और बाकी के झूठे धर्मों ने ऐसा कोई भी फल पैदा नहीं किया है जो परमेश्‍वर को भाए। उन्होंने जहाँ कहीं काम किया है, वहाँ सिर्फ ‘कांटें और झाड़ियाँ’ ही पैदा होती हैं, जो उनकी लापरवाही और गैरज़िम्मेदाराना रवैए का नतीजा हैं।

19. यशायाह ने धर्मत्यागी “यरूशलेम” की कैसी हालत का पर्दाफाश किया?

19 धर्मत्यागी “यरूशलेम” के कोने-कोने में ऐसी निराशाजनक हालत देखी जा सकती है: “राजभवन त्यागा जाएगा, कोलाहल से भरा नगर सुनसान हो जाएगा; और पहाड़ी [“ओपेल,” NW] और उन पर के पहरुओं के घर सदा के लिये मांदे और जंगली गदहों का विहारस्थान और घरैलू पशुओं की चराई . . . बने रहेंगे।” (यशायाह 32:14) जी हाँ, ओपेल भी नहीं बचेगा। ओपेल, यरूशलेम नगर के एक ऊँचे टीले का नाम है जिस पर पहरेदारों की सख्त मोर्चाबंदी रहती है। इसलिए यह कहना कि ओपेल सुनसान हो जाएगा, दिखाता है कि यरूशलेम पूरी तरह उजड़ जाएगा। यशायाह के शब्द दिखाते हैं कि धर्मत्यागी “यरूशलेम,” यानी ईसाईजगत परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करने पर ध्यान नहीं लगा रहा है। यह आध्यात्मिक रूप से उजाड़ है, सच्चाई और न्याय से इतनी दूर जा चुका है कि उसका व्यवहार जंगली जानवरों जैसा हो गया है।

कैसा अनोखा फर्क!

20. परमेश्‍वर के लोगों पर उसकी आत्मा उंडेले जाने का क्या असर होता है?

20 यशायाह अब यहोवा की इच्छा पर चलनेवालों के लिए एक ऐसी आशा देता है जिससे उन्हें बेहद सुकून मिलता है। परमेश्‍वर के लोगों का उजाड़ा जाना सिर्फ तब तक होगा “जब तक आत्मा ऊपर से हम पर उण्डेला न जाए, और जंगल फलदायक बारी न बने, और फलदायक बारी फिर वन न गिनी जाए।” (यशायाह 32:15) खुशी की बात है कि सन्‌ 1919 से, यहोवा के लोगों पर उसकी आत्मा बहुतायत में उंडेली गयी, और इससे ऐसा हुआ मानो, अभिषिक्‍त जनों की फलदायक बारी दोबारा फलों से लद गयी और उसके बाद अन्य भेड़ों से बना वन भी तेज़ी से बढ़ता गया। पृथ्वी पर परमेश्‍वर के संगठन की खासियत यह है कि वह हमेशा फलता-फूलता और तरक्की करता जाता है। फिर से बसाए गए इस आध्यात्मिक फिरदौस में, “यहोवा की शोभा और हमारे परमेश्‍वर का तेज” उसके लोगों में झलकता है, जब वे उसके आनेवाले राज्य का ऐलान सारी दुनिया में करते हैं।—यशायाह 35:1,2.

21. आज धार्मिकता, चैन और सुरक्षा कहाँ पायी जाती है?

21 अब, यहोवा के इस शानदार वादे पर कान लगाइए: “तब उस जंगल में न्याय बसेगा, और उस फलदायक बारी में धर्म रहेगा। और धर्म का फल शान्ति और उसका परिणाम सदा का चैन और निश्‍चिन्त रहना होगा।” (यशायाह 32:16,17) आज यहोवा के लोगों की आध्यात्मिक स्थिति की यह कितनी सही तसवीर है! दुनिया के ज़्यादातर लोगों के बीच, घृणा, हिंसा और भारी आध्यात्मिक अकाल की वजह से फूट पड़ी हुई है। लेकिन दूसरी तरफ, हालाँकि सच्चे मसीही दुनिया के अलग-अलग देशों की “हर एक जाति, और कुल, और लोग और भाषा” में से निकलकर आए हैं, फिर भी उनमें एकता है। वे परमेश्‍वर की धार्मिकता के अनुसार जीते, काम करते और उसकी सेवा करते हैं। साथ ही उन्हें यह विश्‍वास है कि उन्हें आखिरकार ऐसी शांति और सुरक्षा मिलेगी जो सदा तक बनी रहेगी।—प्रकाशितवाक्य 7:9,17.

22. परमेश्‍वर के लोगों की स्थिति और झूठे धर्म के लोगों की हालत के बीच क्या फर्क है?

22 आध्यात्मिक फिरदौस में यशायाह 32:18 अभी से पूरा हो रहा है। वहाँ लिखा है: “मेरे लोग शान्ति के स्थानों में निश्‍चिन्त रहेंगे, और विश्राम के स्थानों में सुख से रहेंगे।” लेकिन, नकली मसीहियों के लिए “वन के विनाश के समय ओले गिरेंगे, और नगर पूरी रीति से चौपट हो जाएगा।” (यशायाह 32:19) जी हाँ, यहोवा का न्याय, ओले बरसानेवाले तेज़ तूफान की तरह, झूठे धर्म के नकली नगर पर बरसने ही वाला है। तब इसके सदस्यों का “वन” चौपट हो जाएगा, सदा के लिए उसका नामो-निशान मिट जाएगा!

23. संसार भर में चलनेवाला कौन-सा काम अब पूरा होने पर है, और जो यह काम कर रहे हैं, उनके बारे में क्या कहा जा सकता है?

23 भविष्यवाणी के इस भाग का अंत यूँ होता है: “क्या ही धन्य हो तुम जो सब जलाशयों के पास बीज बोते, और बैलों और गदहों को स्वतन्त्रता से चराते हो।” (यशायाह 32:20) प्राचीन काल में परमेश्‍वर के लोग बोझ ढोने के लिए बैलों और गदहों का इस्तेमाल करते थे और इन्हीं की मदद से खेत जोतते और बीज बोते थे। आज, यहोवा के लोग करोड़ों की तादाद में बाइबल साहित्य छापने और बाँटने के लिए छपाई की मशीनों, इलॆक्ट्रॉनिक साधनों, नयी-नयी इमारतों, यातायात के साधनों और सबसे बढ़कर एक संयुक्‍त, ईशतंत्रीय संगठन का इस्तेमाल कर रहे हैं। इन औज़ारों के ज़रिए स्वयं-सेवक सारी पृथ्वी पर, सचमुच के “सब जलाशयों के पास” जाकर राज्य की सच्चाई के बीज बो रहे हैं। परमेश्‍वर का भय माननेवाले लाखों स्त्री-पुरुषों को पहले ही इकट्ठा किया जा चुका है और लाखों और लोग भी आकर उनके साथ मिल रहे हैं। (प्रकाशितवाक्य 14:15,16) ये सभी खुश हैं, जी हाँ इन्हें सचमुच “धन्य” कहा जा सकता है!

[फुटनोट]

^ पैरा. 3 यशायाह 32:1 की भविष्यवाणी की पहली पूर्ति में “राजा” शायद राजा हिजकिय्याह को सूचित करता है। लेकिन, यशायाह के 32वें अध्याय की भविष्यवाणी खास तौर पर राजा, मसीह यीशु पर पूरी होती है।

^ पैरा. 8 वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित, प्रहरीदुर्ग के मार्च 1,1999 के पेज 13-18 देखिए।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 331 पर तसवीरें]

मृत सागर चर्मपत्रों में, यशायाह के 32वें अध्याय पर “X” निशान लगाया गया है

[पेज 333 पर तसवीरें]

हर “शासक” आंधी से छिपने के स्थान, बौछार से आड़, निर्जल देश में जल, और तपती धूप में छाया की तरह है

[पेज 338 पर तसवीर]

मसीही, दूसरों को सुसमाचार सुनाने में बड़ी खुशी पाते हैं