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विद्रोहियों पर हाय!

विद्रोहियों पर हाय!

ग्यारहवाँ अध्याय

विद्रोहियों पर हाय!

यशायाह 9:8–10:4

1. यारोबाम ने क्या बड़ा पाप किया था?

जब यहोवा के चुने हुए लोगों का देश दो टुकड़ों में बँट गया, तब उत्तर में दस गोत्रों से बने राज्य, इस्राएल पर यारोबाम राज करने लगा। यह नया राजा बहुत काबिल और जोशीला था। मगर उसे यहोवा पर पूरी तरह भरोसा नहीं था। इसी वजह से उसने इतना बड़ा पाप किया जिसने उत्तर के इस्राएल राज्य के माथे पर हमेशा के लिए कालिख पोत दी। मूसा की कानून-व्यवस्था के मुताबिक, इस्राएलियों को आज्ञा दी गई थी कि वे साल में तीन बार यरूशलेम के मंदिर में हाज़िर हों। मगर देश के बँटवारे के साथ यह मंदिर अब दक्षिण के यहूदा राज्य में चला गया था। (व्यवस्थाविवरण 16:16) इसलिए यारोबाम को डर था कि अगर उसकी प्रजा के लोग बार-बार दक्षिण राज्य में अपने भाइयों से मिलने जाते रहे, तो उनके मन में दोनों राज्यों को फिर से मिलाने की बात घर कर सकती है। इसलिए उसने “सोने के दो बछड़े बनाए और लोगों से कहा, यरूशलेम को जाना तुम्हारी शक्‍ति से बाहर है इसलिये हे इस्राएल अपने देवताओं को देखो, जो तुम्हें मिस्र देश से निकाल लाए हैं। तो उस ने एक बछड़े को बेतेल, और दूसरे को दान में स्थापित किया।”—1 राजा 12:28,29.

2, 3. यारोबाम की गलती का इस्राएल पर क्या असर हुआ?

2 कुछ वक्‍त के लिए यारोबाम की तरकीब काम करती नज़र आयी। धीरे-धीरे लोगों ने यरूशलेम जाना छोड़ दिया और उन दो बछड़ों को पूजने लगे। (1 राजा 12:30) मगर, अपना धर्म त्यागकर झूठी उपासना के रीति-रिवाज़ों को अपनाने से दस-गोत्रों से बना उत्तर का इस्राएल राज्य एकदम भ्रष्ट हो गया। यहाँ तक कि इस्राएल के राजा येहू ने, जिसने इस्राएल से बाल-उपासना का खात्मा करने में जोश दिखाया था, सोने के बछड़ों की पूजा करना नहीं छोड़ा। (2 राजा 10:28,29) यारोबाम के इतने बड़े गलत फैसले का और क्या-क्या अंजाम हुआ? उत्तर का इस्राएल राज्य हमेशा कमज़ोर और अस्थिर रहा, और उसके लोगों ने अनगिनत तकलीफें सहीं।

3 यारोबाम के धर्मत्यागी बन जाने की वजह से यहोवा ने यह कहा कि उत्तर के इस्राएल राज्य पर यारोबाम का वंश राज नहीं कर सकेगा और आखिर में उस देश पर बहुत भयंकर विपत्ति आएगी। (1 राजा 14:14,15) जैसा यहोवा ने कहा था, ठीक वैसा ही हुआ। इस्राएल के राजाओं में से सात राजा, दो साल या उससे भी कम समय तक ही राज कर सके, कुछ तो चंद दिनों के राजा थे। एक राजा ने आत्महत्या कर ली और छः राजाओं को ऐसे लोगों ने कत्ल कर दिया जो राजगद्दी हथियाना चाहते थे। खासकर सा.यु.पू. 804 में यारोबाम II का राज खत्म होने के बाद, जिस दौरान दक्षिण के यहूदा देश में राजा उज्जिय्याह का राज था, उस वक्‍त इस्राएल में अशांति थी, चारों तरफ हिंसा और हत्याएँ हो रही थीं। इन हालात के बीच, यहोवा उत्तर के इस्राएल राज्य को एक सीधी चेतावनी देने या “संदेश” सुनाने के लिए यशायाह को भेजता है। “प्रभु ने याकूब के पास एक संदेश भेजा है, और वह इस्राएल पर प्रगट हुआ है।”—यशायाह 9:8. *

घमंड और कठोरता देखकर परमेश्‍वर का क्रोध भड़कता है

4. यहोवा ने इस्राएल के खिलाफ कौन-सा “संदेश” भेजा और क्यों?

4 यहोवा के “संदेश” को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकेगा। “सारी प्रजा को, एप्रैमियों और शोमरोनवासियों को मालूम हो जाएगा जो गर्व और कठोरता से बोलते हैं।” (यशायाह 9:9क) “याकूब,” “इस्राएल,” “एप्रैम” और “शोमरोन” (यानी सामरिया) ये सभी नाम उत्तर के इस्राएल राज्य के लिए इस्तेमाल किए गए हैं। एप्रैम, इस राज्य का सबसे प्रमुख गोत्र है और सामरिया इसकी राजधानी है। यहोवा इस राज्य के खिलाफ अपने संदेश में एक सख्त फैसला सुना रहा है, क्योंकि एप्रैम झूठी उपासना करते-करते ढीठ बन गया है और निर्लज्जों की तरह खुल्लम-खुल्ला यहोवा के खिलाफ गुस्ताखी करता है। परमेश्‍वर ऐसे दुष्ट लोगों को उनके बुरे कामों के अंजाम से नहीं बचाएगा। उन्हें परमेश्‍वर के संदेश को सुनने और उस पर ध्यान देने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।—गलतियों 6:7.

5. इस्राएलियों ने कैसे दिखाया कि उन्हें यहोवा के फैसले से कोई फर्क नहीं पड़ा है?

5 देश में हालात दिन-ब-दिन बिगड़ते जा रहे हैं और लोगों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है, यहाँ तक कि ईंटों और सस्ती लकड़ी से बने उनके घर ढहकर नाश हो रहे हैं। लेकिन क्या इस वजह से उनके मन की कठोरता कुछ कम होती है? क्या वे यहोवा के भविष्यवक्‍ताओं की बात मानकर सच्चे परमेश्‍वर के पास लौट आते हैं? * यशायाह बताता है कि ये लोग किस तरह घमंड से जवाब देते हैं: “ईंटें तो गिर गई हैं, परन्तु हम गढ़े हुए पत्थरों से घर बनाएंगे; गूलर के वृक्ष तो कट गए हैं, परन्तु हम उनकी सन्ती देवदारों से काम लेंगे।” (यशायाह 9:9ख,10) इस्राएली, यहोवा का तिरस्कार करते हैं और उसके भविष्यवक्‍ताओं की नहीं सुनते जो उन्हें बता रहे हैं कि उन पर ये सारी मुसीबतें क्यों आ रही हैं। दरअसल, वे कह रहे हैं: ‘मिट्टी की ईंटों और सस्ती लकड़ी से बने हमारे घर टूट गए तो क्या हुआ, हमारा कोई नुकसान नहीं हुआ है, क्योंकि हम इससे भी अच्छी और मज़बूत चीज़ों से यानी गढ़े हुए पत्थरों और देवदार की लकड़ी से दोबारा अपने घर बनाएँगे!’ (अय्यूब 4:19 से तुलना कीजिए।) ऐसे लोगों को और ज़्यादा ताड़ना देने के सिवाय अब यहोवा के पास और कोई चारा नहीं बचा है।—यशायाह 48:22 से तुलना कीजिए।

6. यहोवा, यहूदा के खिलाफ साज़िश करनेवाले अराम-इस्राएली गठबंधन को कैसे तोड़ता है?

6 यशायाह आगे कहता है: “इस कारण यहोवा उन पर रसीन के बैरियों को प्रबल करेगा।” (यशायाह 9:11) इस्राएल का राजा पेकह और अराम (सीरिया) का राजा रसीन अभी एक-दूसरे के साथी हैं। और वे दो गोत्रों के यहूदा देश को कब्ज़े में लेने की साज़िश बना रहे हैं और यरूशलेम में यहोवा के सिंहासन पर किसी “ताबेल के पुत्र” को राजा बनाकर बिठाना चाहते हैं जो उनके हाथों की कठपुतली होगा। (यशायाह 7:6) मगर उनकी यह साज़िश नाकाम होकर रहेगी। क्योंकि रसीन से बैर रखनेवाले उसके दुश्‍मन बहुत ताकतवर हैं और यहोवा इन्हीं को “उन पर” यानी इस्राएलियों पर “प्रबल करेगा।” यहाँ ‘प्रबल करने’ का मतलब है कि परमेश्‍वर, इस्राएल और अराम के बैरियों को उनके खिलाफ युद्ध में ऐसी कामयाबी देगा जिससे उनकी जोड़ी मिट जाएगी और वे अपने मनसूबों को पूरा नहीं कर पाएँगे।

7, 8. अश्‍शूर ने जब अराम पर कब्ज़ा कर लिया, तो इससे इस्राएल का क्या अंजाम हुआ?

7 जब अश्‍शूर, अराम पर हमला करता है तो इस्राएल-अराम की जोड़ी लड़खड़ाने लगी। “अश्‍शूर के राजा ने दमिश्‍क [अराम की राजधानी] पर चढ़ाई की, और उसे लेकर उसके लोगों को बन्धुआ करके, कीर को ले गया, और रसीन को मार डाला।” (2 राजा 16:9) पेकह के देखते-देखते उसका ताकतवर दोस्त खत्म हो गया और यहूदा पर कब्ज़ा करने की उसने जो योजनाएँ बनायी थीं, वे धरी-की-धरी रह गयीं। दरअसल, रसीन की मौत के थोड़े समय बाद ही, होशे नाम के आदमी ने पेकह का कत्ल कर दिया और राजगद्दी पर कब्ज़ा करके सामरिया का राजा बन बैठा।—2 राजा 15:23-25,30.

8 अब इस्राएल का पुराना दोस्त अराम, उस इलाके पर हुकूमत करनेवाली सबसे ज़बरदस्त ताकत अश्‍शूर की गुलामी में आ गया है। यशायाह भविष्यवाणी करता है कि कैसे यहोवा अश्‍शूर और अराम के इस नये राजनैतिक मिलाप को इस्तेमाल करेगा: “वह [यहोवा] उसके [इस्राएल के] शत्रुओं को, यानी पूर्व से अरामियों को और पीछे से पलिश्‍तियों को उभारेगा, और वे मुंह खोलकर इस्राएलियों को निगल जाएँगे। इतने पर भी उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।” (यशायाह 9:12, NW) जी हाँ, अराम अब इस्राएल का दुश्‍मन बन जाएगा और इस्राएल को अश्‍शूर और अराम दोनों के हमले का सामना करने के लिए तैयारी करनी होगी। हमला किया जाता है और इस्राएल हार जाता है। राजगद्दी हथियानेवाले होशे को अश्‍शूर अपना सेवक बनाकर, नज़राने के तौर पर उससे बहुत भारी रकम वसूल करता है। (कुछ दशक पहले भी, अश्‍शूर ने इस्राएल के राजा मनहेम से बहुत भारी रकम हासिल की थी।) भविष्यवक्‍ता होशे के शब्द कितने सच निकले: “परदेशियों ने [एप्रैम] का बल खा लिया”!—होशे 7:9, फुटनोट; 2 राजा 15:19,20; 17:1-3.

9. हम क्यों कह सकते हैं कि पलिश्‍ती “पीछे से” हमला करते हैं?

9 क्या यशायाह ने यह भी नहीं कहा था कि पलिश्‍ती, इस्राएल पर “पीछे से” हमला करेंगे? हाँ, कहा था। चुंबकीय कम्पास की ईजाद से भी पहले, यहूदी लोग दिशा जानने के लिए सूरज की मदद लेते थे। सूर्योदय की दिशा या “पूर्व” उनके सामने की तरफ थी जबकि सागर के किनारे पलिश्‍तियों का देश उनके “पीछे” यानी इस्राएल की पश्‍चिम दिशा में था। यशायाह 9:12 में जिस “इस्राएल” का ज़िक्र किया गया है, उसमें यहूदा देश के लोगों को भी शामिल किया जा सकता है। क्योंकि यहूदा देश में राजा आहाज के राज में पलिश्‍तियों ने हमला किया था और उस देश के बहुत-से नगरों और गढ़ों पर कब्ज़ा कर लिया था। इस दौरान, उत्तर के इस्राएल राज्य में पेकह का राज था। उत्तर के इस्राएल राज्य की तरह, यहूदा देश को भी यहोवा से ताड़ना मिलनी थी, क्योंकि उसमें भी हर तरफ धर्मत्याग फैला हुआ था।—2 इतिहास 28:1-4,18,19.

‘सिर से पूंछ’ तक—विद्रोहियों की जाति

10, 11. इस्राएल के लगातार विद्रोह करते रहने की वजह से यहोवा उन्हें क्या सज़ा देगा?

10 इतनी मुसीबतों से गुज़रने के बाद और यहोवा के भविष्यवक्‍ताओं से इतने कड़े न्यायदंड सुनने के बावजूद भी, उत्तर का इस्राएल राज्य यहोवा के खिलाफ विद्रोह करता ही रहता है। “ये लोग अपने मारनेवाले की ओर नहीं फिरे और न सेनाओं के यहोवा की खोज करते हैं।” (यशायाह 9:13) इसलिए, यशायाह कहता है: “यहोवा इस्राएल में से सिर और पूंछ को, खजूर की डालियों और सरकंडे को, एक ही दिन में काट डालेगा। पुरनिया और प्रतिष्ठित पुरुष तो सिर हैं, और झूठी बातें सिखानेवाला नबी पूंछ है; क्योंकि जो इन लोगों की अगुवाई करते हैं वे इनको भटका देते हैं, और जिनकी अगुवाई होती है वे नाश हो जाते हैं।”—यशायाह 9:14-16.

11 “सिर” और “डालियों” का मतलब है देश के ‘पुरनिए और प्रतिष्ठित पुरुष’ जो लोगों की अगुवाई करते हैं। “पूंछ” और “सरकंडे” ऐसे झूठे भविष्यवक्‍ता हैं जो सिर्फ वही वचन सुनाते हैं जो उनके अगुवे सुनना चाहते हैं। एक बाइबल विद्वान लिखते हैं: “झूठे भविष्यवक्‍ताओं को पूंछ कहा गया है, क्योंकि चालचलन के मामले में वे सब लोगों से नीच या गिरे हुए थे और दुष्ट अगुवों की जी-हुज़ूरी करके उनके तलवे चाटते थे।” इन झूठे भविष्यवक्‍ताओं के बारे में प्रोफेसर एडवर्ड जे. यंग कहते हैं: “सही मायनों में वे अगुवे नहीं थे, बल्कि अपने हुक्मरानों की चापलूसी और खुशामद करनेवाले लोग थे, और उनके पीछे-पीछे कुत्ते की दुम की तरह चिपके रहते थे।”—2 तीमुथियुस 4:3 से तुलना कीजिए।

‘विधवा और अनाथ बालक’ भी विद्रोही हैं

12. इस्राएल का समाज किस हद तक भ्रष्ट हो चुका है?

12 यहोवा, विधवाओं और अनाथ बालकों का सबसे बड़ा हिमायती है। (निर्गमन 22:22,23) लेकिन, सुनिए यशायाह अब क्या कहता है: “प्रभु न तो इनके जवानों से प्रसन्‍न होगा, और न इनके अनाथ बालकों और विधवाओं पर दया करेगा; क्योंकि हर एक भक्‍तिहीन और कुकर्मी है, और हर एक के मुख से मूर्खता की बातें निकलती हैं। इतने पर भी उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।” (यशायाह 9:17) धर्मत्याग ने समाज के हर वर्ग को, यहाँ तक कि विधवाओं और अनाथ बालकों को भी भ्रष्ट कर दिया है! यहोवा ने बड़ा धीरज दिखाते हुए अपने भविष्यवक्‍ताओं को इस उम्मीद के साथ भेजा कि लोग अपना मार्ग बदल लेंगे। मिसाल के तौर पर, होशे बिनती करता है, “हे इस्राएल, अपने परमेश्‍वर, यहोवा के पास लौट आ, क्योंकि तू ने अपने अधर्म के कारण ठोकर खाई है।” (होशे 14:1) तो विधवाओं और अनाथों के हिमायती, यहोवा परमेश्‍वर को कितना दर्द पहुँचा होगा, जब उसे इनके खिलाफ भी दंड सुनाना पड़ा!

13. यशायाह के ज़माने के हालात से हम क्या सीख सकते हैं?

13 यशायाह की तरह हम भी आज कठिन समय में जी रहे हैं और बहुत जल्द दुष्ट लोगों पर यहोवा के न्याय का दिन आनेवाला है। (2 तीमुथियुस 3:1-5) तो फिर, सच्चे मसीहियों के लिए यह कितना ज़रूरी है कि ज़िंदगी में उनके हालात कैसे भी क्यों न हों, वे हर हाल में खुद को आध्यात्मिक, नैतिक और मानसिक रूप से शुद्ध बनाए रखें, ताकि उन पर परमेश्‍वर का अनुग्रह बना रहे। इसलिए हरेक मसीही को चाहिए कि वह यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते की तन-मन लगाकर रक्षा करे। ‘बड़े बाबुल’ से निकलकर आए लोगों में से कोई भी फिर से “उसके पापों में भागी न” बने।—प्रकाशितवाक्य 18:2,4.

झूठी उपासना, हिंसा को जन्म देती है

14, 15. (क) दुष्टात्माओं की उपासना करने का क्या असर होता है? (ख) यशायाह की भविष्यवाणी के मुताबिक इस्राएल पर कैसी-कैसी मुसीबतें आती रहेंगी?

14 झूठी उपासना दरअसल, दुष्टात्माओं की उपासना करना है। (1 कुरिन्थियों 10:20) जलप्रलय से पहले का वक्‍त इस बात का सबूत है कि दुष्टात्माओं के असर की वजह से उपद्रव और हिंसा चारों तरफ फैल गयी थी। (उत्पत्ति 6:11,12) तो फिर, इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि जब इस्राएल सच्चा धर्म त्यागकर दुष्टात्माओं को पूजने लगा तो सारा देश हिंसा और दुष्टता से भर गया।—व्यवस्थाविवरण 32:17; भजन 106:35-38.

15 साफ शब्दों में, यशायाह बयान करता है कि इस्राएल में दुष्टता और हिंसा किस कदर फैल गयी है: “दुष्टता आग की नाईं धधकती है, वह ऊंटकटारों और कांटों को भस्म करती है, वरन वह घने वन की झाड़ियों में आग लगाती है और वह धुआं में चकरा चकराकर ऊपर की ओर उठती है। सेनाओं के यहोवा के रोष के मारे यह देश जलाया गया है, और ये लोग आग की ईंधन के समान हैं; वे आपस में एक दूसरे से दया का व्यवहार नहीं करते। वे दहिनी ओर से भोजनवस्तु छीनकर भी भूखे रहते, और बायें ओर से खाकर भी तृप्त नहीं होते; उन में से प्रत्येक मनुष्य अपनी अपनी बांहों का मांस खाता है, मनश्‍शे एप्रैम को और एप्रैम मनश्‍शे को खाता है, और वे दोनों मिलकर यहूदा के विरुद्ध हैं। इतने पर भी उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ, और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।”—यशायाह 9:18-21.

16. यशायाह 9:18-21 के शब्द कैसे पूरे हुए?

16 जैसे आग की एक लपट, ऊंटकटारों की एक झाड़ी से दूसरी झाड़ी में तेज़ी से फैलती है, उसी तरह हिंसा तेज़ी से बढ़कर “घने वन की झाड़ियों” तक पहुँच जाती है और जंगल की आग बनकर हर तरफ फैल जाती है। बाइबल टीकाकार काइल और डीलिश बताते हैं कि यह हिंसा किस हद तक बढ़ गयी थी। वे कहते हैं, “वह गड़बड़ी का ऐसा माहौल था जिसमें देश के अंदर ही मार-काट मची हुई थी, लोग हैवानों की तरह एक-दूसरे की जान ले रहे थे। बिना रहम दिखाए, वे भूखे भेड़ियों की तरह एक-दूसरे को कच्चा चबा रहे थे, मगर फिर भी उनके कलेजे को ठंडक नहीं मिलती थी।” यहाँ, एप्रैम और मनश्‍शे के गोत्रों का नाम शायद इसलिए दिया गया है, क्योंकि वे ही उत्तर के इस्राएल राज्य के सबसे बड़े प्रतिनिधि थे और यूसुफ के दो बेटों के वंशज होने के नाते वे दो सगे भाइयों की संतान थे और दस गोत्रों में बाकियों के मुकाबले उनका आपस में ज़्यादा करीबी रिश्‍ता था। मगर फिर भी वे अपने भाइयों के खिलाफ लड़ना सिर्फ तभी बंद करते हैं जब उन्हें दक्षिण में यहूदा देश के खिलाफ युद्ध करना हो।—2 इतिहास 28:1-8.

सच्चा न्यायी भ्रष्ट न्यायियों से लेखा लेता है

17, 18. इस्राएल के न्यायियों और हाकिमों में कैसा भ्रष्टाचार है?

17 यहोवा अब न्याय करने के लिए अपनी नज़र इस्राएल के भ्रष्ट न्यायियों और दूसरे अधिकारियों पर डालता है। उनके पास न्याय की भीख माँगने के लिए दीन और दुखियारे लोग आते हैं। मगर इंसाफ करने के बजाय वे अपनी ताकत का नाजायज़ फायदा उठाकर उनको लूटते हैं। यशायाह कहता है: “हाय उन पर जो अनुचित नियम बनाते हैं, और उन पर भी जो निरन्तर अन्यायपूर्ण निर्णय लिख देते हैं, कि कंगालों को न्याय से वंचित करें, और जो मेरी प्रजा में दरिद्र हैं उनका अधिकार छीन लें जिस से कि विधवाएं उनकी लूट बन जाएं और अनाथों का माल हड़प लें!”—यशायाह 10:1,2, NHT.

18 यहोवा की व्यवस्था में किसी भी किस्म का अन्याय करने पर सख्त मनाही है: “न्याय में कुटिलता न करना; और न तो कंगाल का पक्ष करना और न बड़े मनुष्यों का मुंह देखा विचार करना; एक दूसरे का न्याय धर्म से करना।” (लैव्यव्यवस्था 19:15) इस नियम को नज़रअंदाज़ करके, ये अधिकारी अपने ही “अनुचित नियम” बनाते हैं ताकि सबसे घृणित और क्रूर किस्म की चोरी को भी कानूनन सही करार दे सकें। वे विधवाओं और अनाथों की रही-सही चीज़ों को भी हड़प कर जाते हैं। इस्राएल जिन झूठे देवताओं की पूजा करता है, बेशक उनके पास इस अन्याय को देखने के लिए आँखें नहीं हैं, मगर यहोवा सब देख रहा है। यशायाह के ज़रिए, यहोवा अब इन दुष्ट न्यायियों से जवाब माँगता है।

19, 20. इस्राएल के भ्रष्ट न्यायियों के दिन कैसे बदल जाएँगे, और उनकी “महिमा” का क्या होगा?

19“अब तुम दण्ड के दिन और दूर से आने वाले सर्वनाश के समय क्या करोगे? तुम सहायता के लिए किसके पास भागोगे? और तुम अपनी महिमा कहां छोड़ोगे? कुछ शेष न रह जाएगा केवल इसके कि तुम बन्दियों के मध्य दुबक जाओ या मृतकों के मध्य गिर पड़ो।” (यशायाह 10:3,4क, NHT, फुटनोट) ऐसा कोई ईमानदार न्यायी नहीं जिसके पास विधवाएँ और अनाथ बच्चे अपनी दुहाई लेकर जा सकें। इसलिए, कितना सही है कि यहोवा अब इन भ्रष्ट इस्राएली न्यायियों से पूछता है कि जब वह खुद उनसे लेखा लेगा तो वे किससे मदद माँगने जाएँगे। जी हाँ, बहुत जल्द वे यह सबक सीखनेवाले हैं कि “जीवते परमेश्‍वर के हाथों में पड़ना भयानक बात है।”—इब्रानियों 10:31.

20 इन दुष्ट न्यायियों की “महिमा,” यानी उनके ओहदे और दौलत की वजह से मिलनेवाली उनकी इज़्ज़त, शोहरत और ताकत, अब बस चार दिन की मेहमान है। इनमें से कई युद्धबंदी बना लिए जाएँगे और दूसरे कैदियों के बीच “दुबक” जाएँगे या घुटनों के बीच सिर गड़ाए होंगे। बचे हुओं को मौत के घाट उतार दिया जाएगा, उनकी लाशें युद्ध में मरनेवालों के नीचे दबी सड़ जाएँगी। उनकी “महिमा,” जिसमें उनकी नाजायज़ तरीकों से कमायी हुई दौलत भी शामिल है, दुश्‍मनों के हाथों लुट जाएगी।

21. इस्राएल को जो इतनी भारी सज़ाएँ मिली हैं, उनके बाद भी क्या उसके खिलाफ यहोवा का क्रोध शांत हुआ है?

21 यशायाह इस आखिरी छंद को खत्म करते वक्‍त एक भयानक चेतावनी देता है: “इतने पर भी [इस देश पर इतनी विपत्तियाँ आने पर भी] उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।” (यशायाह 10:4ख) जी हाँ, यहोवा, इस्राएल को और भी कुछ बताना चाहता है। जब तक वह उत्तर के इस विद्रोही राज्य का पूरी तरह से खात्मा नहीं कर देता, तब तक वह अपना बढ़ा हुआ हाथ पीछे नहीं लेगा।

कभी-भी झूठ और स्वार्थ के शिकार मत बनिए

22. इस्राएल के साथ जो हुआ उससे हम क्या सबक सीख सकते हैं?

22 यशायाह ने यहोवा का जो संदेश इस्राएल को सुनाया वह वाकई उस पर भारी पड़ा और ‘वह व्यर्थ ठहरकर यहोवा के पास नहीं लौटा।’ (यशायाह 55:10,11) इतिहास गवाह है कि उत्तर के इस्राएल राज्य का कैसा दुःखद अंत हुआ और हम कल्पना कर सकते हैं कि उसके लोगों को कैसी-कैसी तकलीफें सहनी पड़ी होंगी। जिस तरह यहोवा का वचन उन पर पूरा हुआ उसी तरह आज की दुनिया पर, खासकर सच्चे परमेश्‍वर को त्यागनेवाले ईसाईजगत पर भी पूरा होगा। इसलिए कितना ज़रूरी है कि मसीही, झूठी बातों पर और परमेश्‍वर के खिलाफ हो रहे झूठे प्रचार पर ज़रा भी ध्यान न दें! शुक्र है कि परमेश्‍वर ने हमें अपना वचन दिया है, जिसमें शैतान की चालों का बहुत पहले से ही पर्दाफाश किया जा चुका है। इसलिए, जैसे प्राचीनकाल में इस्राएली शैतान के फंदों में फँस गए थे, वैसे हमें फँसने की ज़रूरत नहीं। (2 कुरिन्थियों 2:11) हमारी दुआ है कि हम “आत्मा और सच्चाई से” यहोवा की उपासना करना कभी न छोड़ें। (यूहन्‍ना 4:24) अगर ऐसा होगा तो उसका बढ़ा हुआ हाथ अपने उपासकों को मारने के लिए नहीं उठेगा, जैसे एप्रैम के विद्रोही लोगों पर उठा था। इसके बजाय, वह अपने उपासकों को प्यार से अपनी बाँहों में भर लेगा और उस रास्ते पर चलाता रहेगा जिस पर चलकर उन्हें आखिर में इस धरती पर एक खूबसूरत फिरदौस में हमेशा की ज़िंदगी मिलेगी।—याकूब 4:8.

[फुटनोट]

^ पैरा. 3 यशायाह 9:8–10:4 चार छंदों (लयबद्ध पंक्‍तियों) से मिलकर बना है और हर छंद के आखिर में अनिष्टकारी संदेश देनेवाली यह टेक पायी जाती है: “इतने पर भी उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ और उसका हाथ अब तक बढ़ा हुआ है।” (यशायाह 9:12,17,21; 10:4) लिखने की इस शैली ने यशायाह 9:8–10:4 की सारी आयतों को मिलाकर एक “संदेश” बना दिया है। (यशायाह 9:8) इस बात पर भी गौर कीजिए कि यहोवा का “हाथ अब तक बढ़ा हुआ है,” मेल-मिलाप करने के लिए नहीं बल्कि न्यायदंड देने के लिए।—यशायाह 9:13.

^ पैरा. 5 यहोवा ने उत्तर के इस्राएल राज्य में इन भविष्यवक्‍ताओं को भेजा: येहू (राजा येहू नहीं), एलिय्याह, मीकायाह, एलीशा, योना, ओदेद, होशे, आमोस और मीका।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 139 पर तसवीर]

दुष्टता और हिंसा सारे इस्राएल में इस तरह फैल गयी थी जैसे जंगल में आग फैलती है

[पेज 141 पर तसवीर]

जो दूसरों को अपना शिकार बनाते हैं, उनसे यहोवा हिसाब लेगा