इस जानकारी को छोड़ दें

विषय-सूची को छोड़ दें

विश्‍वासघात करनेवालों के लिए सबक

विश्‍वासघात करनेवालों के लिए सबक

अठारहवाँ अध्याय

विश्‍वासघात करनेवालों के लिए सबक

यशायाह 22:1-25

1. प्राचीनकाल के किसी ऐसे नगर में होना कैसा होगा जिसे दुश्‍मन ने चारों तरफ से घेर रखा हो?

आपको कैसा महसूस होता अगर आप प्राचीनकाल के एक ऐसे नगर में होते जिसे दुश्‍मनों ने चारों तरफ से घेर लिया हो? आपका दुश्‍मन बहुत ही शक्‍तिशाली और निर्दयी है। आप जानते हैं कि दूसरे नगर पहले ही उसके आगे घुटने टेक चुके हैं। अब वह ठान चुका है कि आपके नगर पर कब्ज़ा करके उसके लोगों की इज़्ज़त और उनका सब कुछ लूट लेगा और उन्हें मौत के घाट उतार देगा। दुश्‍मन की फौज इतनी बलशाली है कि उसका सामना नहीं किया जा सकता; आप यही दुआ करते रहते हैं कि बस आपके नगर की शहरपनाह किसी तरह सही सलामत रहे और दुश्‍मन उसे तोड़कर नगर में ना घुस पाए। जब आप शहरपनाह के दूसरी तरफ का नज़ारा देखते हैं, तो आपकी धड़कन थम जाती है! दुश्‍मन नगर पर दमदमा बाँधकर चढ़ाई करने के लिए बड़े-बड़े गुम्मट ले आए हैं। उनके पास चढ़ाई करने के लिए बख्तरबंद गाड़ियाँ भी हैं जो बड़े-बड़े पत्थर फेंककर आपके नगर की मोर्चाबन्दी को चकनाचूर कर सकती हैं। आप गाड़ियों में लगे दीवार तोड़नेवाले बड़े-बड़े दुरमुट और शहरपनाह पर चढ़ने के लिए लंबी-लंबी सीढ़ियाँ भी देखते हैं। आपकी नज़र बेशुमार धनुर्धारियों और रथों पर भी पड़ती है और उनके सैनिकों के दलों की तो गिनती ही नहीं है। कितना खौफनाक नज़ारा है!

2. यशायाह के 22वें अध्याय में जिस घेराबंदी का वर्णन किया गया है, वह कब की बात है?

2यशायाह के 22वें अध्याय में हम ऐसी ही एक घेराबंदी के बारे में पढ़ते हैं। यह घेराबंदी यरूशलेम नगर की है। मगर यह कब की बात है? साफ तौर पर यह बताना तो मुमकिन नहीं कि यहाँ जिन-जिन बातों का ज़िक्र किया गया है, वे सारी किस घेराबंदी के दौरान पूरी हुई थीं। तो ज़ाहिर है कि यह भविष्यवाणी, उन सभी घेराबंदियों का कुल मिलाकर ज़िक्र कर रही है जिनका यरूशलेम को सामना करना होगा और यह भी चेतावनी देती है कि आगे क्या होगा।

3. यरूशलेम के निवासी, यशायाह द्वारा बतायी गयी घेराबंदी के बारे में जानकर क्या करते हैं?

3 यशायाह ने जिस घेराबंदी की चेतावनी दी, उसके बारे में सुनकर यरूशलेम के निवासी क्या कर रहे हैं? परमेश्‍वर के खास, चुने हुए लोग होने के नाते, क्या वे यहोवा को पुकार रहे हैं, उससे मदद माँग रहे हैं? बिलकुल नहीं, उनका रवैया मूढ़ता से भरा हुआ है। आज भी बहुत-से लोगों में, जो परमेश्‍वर को मानने का दावा करते हैं, ऐसा ही रवैया देखा जा सकता है।

एक नगर का घेराव

4. (क) “दर्शन की तराई” क्या है, और इसे यह नाम क्यों दिया गया है? (ख) यरूशलेम के निवासियों की आध्यात्मिक हालत कैसी है?

4यशायाह के 21वें अध्याय में, परमेश्‍वर के न्यायदंड के तीन संदेश दिए गए हैं और हर संदेश की शुरूआत में “भारी वचन” कहा गया है। (यशायाह 21:1,11,13) अध्याय 22 की शुरूआत भी इसी तरह होती है: “दर्शन की तराई के विषय भारी वचन। तुम्हें क्या हुआ कि तुम सब के सब छतों पर चढ़ गए हो”? (यशायाह 22:1) “दर्शन की तराई” यरूशलेम है। इसे तराई इसलिए कहा गया है क्योंकि ऊँचाई पर होने के बावजूद भी यह नगर चारों तरफ से और भी ऊँचे-ऊँचे पर्वतों से घिरा हुआ था। इसे “दर्शन” की तराई इसलिए कहा गया है, क्योंकि इसी नगर में परमेश्‍वर के बहुत-से दर्शन देखे गए और बहुत-से भेद प्रकट किए गए। इसलिए नगर के निवासियों को चाहिए कि वे यहोवा के वचनों पर ध्यान दें। मगर, उन्होंने उसके वचनों को नज़रअंदाज़ किया और गुमराह होकर झूठे देवी-देवताओं की उपासना करने लगे हैं। इसलिए जो दुश्‍मन उनके नगर को घेरा डालकर बैठा है, दरअसल वह परमेश्‍वर के हाथों का औज़ार है जिसके ज़रिए वह अपने हठी लोगों को दंड देनेवाला है।—व्यवस्थाविवरण 28:45,49,50,52.

5. किस वजह से लोग शायद अपनी छतों पर चढ़े थे?

5 ध्यान दीजिए कि यरूशलेम के निवासी “सब के सब” अपने घरों की “छतों पर चढ़ गए” थे। प्राचीनकाल में, इस्राएलियों के घरों की छतें सपाट हुआ करती थीं और सारा परिवार वहाँ इकट्ठा होता था। यशायाह यह नहीं बताता कि इस बार वे सब के सब अपनी छतों पर क्यों चढ़ गए हैं, मगर उसके शब्दों से ऐसा लगता है कि उनका यह काम ठीक नहीं था। तो, इसका मतलब है कि वे अपने झूठे देवताओं को पुकारने के लिए अपनी छतों पर चढ़े हैं। सा.यु.पू. 607 में यरूशलेम के विनाश से पहले के सालों में, वे ऐसा ही करते रहे।—यिर्मयाह 19:13; सपन्याह 1:5.

6. (क) यरूशलेम के अंदर हालात कैसे हैं? (ख) कुछ लोग प्रसन्‍न क्यों हैं, मगर आगे क्या होनेवाला है?

6 यशायाह आगे कहता है: “हे कोलाहल और ऊधम से भरी प्रसन्‍न नगरी? तुझ में जो मारे गए हैं वे न तो तलवार से ओर न लड़ाई में मारे गए हैं।” (यशायाह 22:2) बड़ी तादाद में लोग नगर में जमा हैं और जहाँ देखो हर तरफ कोलाहल मचा हुआ है। सड़कों पर लोग चीख-चिल्ला रहे हैं, उनके दिलों में भय छाया हुआ है। लेकिन, कुछ लोग प्रसन्‍न हैं क्योंकि शायद उन्हें लगता है कि खतरा टल रहा है और डरने की कोई बात नहीं। * लेकिन ऐसे वक्‍त में खुशियाँ मनाना सरासर मूर्खता है। क्योंकि नगर के बहुत-से लोग ऐसी मौत मरेंगे जो तलवार से मरने से कहीं बदतर होगी। जिस नगर को घेरा जाता है, उसके बाहर से खाने-पीने का सामान लेने के सारे रास्ते बंद कर दिए जाते हैं। नगर के भंडार जल्द ही खाली हो जाते हैं। भूख से मर रहे लोगों और बहुत ज़्यादा घिचपिच होने की वजह से महामारियाँ फैलने लगती हैं। इसी तरह यरूशलेम में बहुत-से लोग अकाल और मरियों की वजह से मारे जाएँगे। सा.यु.पू. 607 में और सा.यु. 70 में ऐसा ही हुआ।—2 राजा 25:3; विलापगीत 4:9,10. *

7. घेराव के दौरान यरूशलेम के शासक क्या करते हैं, और उनका क्या अंजाम होता है?

7 ऐसे संकट के समय में, यरूशलेम के शासकों ने किस तरह लोगों की मदद की? यशायाह जवाब देता है: “तेरे सब शासक एक साथ भाग गए, और बिना धनुष के ही बन्दी बना लिए गए। और जितने शेष बचे, यद्यपि वे बहुत दूर भाग गए थे, उन्हें खोज लिया गया, और एक साथ बन्दी बना लिया गया।” (यशायाह 22:3, NHT) यरूशलेम के शासक और दूसरे बलवान पुरुष भागने लगते हैं, मगर उन्हें रास्ते में ही पकड़ लिया जाता है! वे पकड़े जाते हैं और उनके लिए धनुष पर तीर चढ़ाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती। उन्हें बंदी बनाकर ले जाया जाता है। सा.यु.पू. 607 में यही हुआ। जब यरूशलेम की दीवार तोड़ दी गयी तो सिदकिय्याह अपने बलवान पुरुषों को लेकर रातोंरात भाग निकला। मगर दुश्‍मनों को इसकी खबर मिल जाती है, वे उसका पीछा करते हैं और यरीहो के मैदान में जाकर उन्हें पकड़ लेते हैं। सिदकिय्याह के बलवान पुरुष उसे छोड़कर भाग जाते हैं। सिदकिय्याह को बंधक बना लिया जाता है, उसकी आँखें फोड़ दी जाती हैं और पीतल की बेड़ियाँ पहनाकर उसे घसीटते हुए बाबुल ले जाया जाता है। (2 राजा 25:2-7) उसके विश्‍वासघात का कितना भयानक अंजाम!

विपत्ति की खबर से निराश

8. (क) यरूशलेम पर आनेवाली विपत्ति की भविष्यवाणी करने का यशायाह पर कैसा असर होता है? (ख) यरूशलेम में क्या नज़ारा देखने को मिलेगा?

8 इस भविष्यवाणी का यशायाह के दिल पर बहुत भारी असर होता है। वह कहता है: “मेरी ओर से मुंह फेर लो कि मैं बिलक बिलककर रोऊं; मेरे नगर के सत्यानाश होने के शोक में मुझे शान्ति देने का यत्न मत करो।” (यशायाह 22:4) जब यशायाह को मोआब और बाबुल के अंजाम के बारे में भविष्यवाणी करनी पड़ी थी तब उसे बहुत दुःख हो रहा था। (यशायाह 16:11; 21:3) अब जब वह अपनी जाति के लोगों पर आनेवाले संकटों पर ध्यान देता है तो उसकी निराशा और पीड़ा कहीं ज़्यादा बढ़ जाती है और वह विलाप करने लगता है। वह शान्त नहीं होना चाहता। क्यों? “क्योंकि [यह] सेनाओं के प्रभु यहोवा का ठहराया हुआ दिन होगा, जब दर्शन की तराई में कोलाहल और रौंदा जाना और बेचैनी होगी; शहरपनाह में सुरंग लगाई जाएगी और दोहाई का शब्द पहाड़ों तक पहुंचेगा।” (यशायाह 22:5) यरूशलेम में हर तरफ खलबली मच जाएगी। दहशत के मारे लोग यहाँ-वहाँ दौड़ेंगे। जब दुश्‍मन नगर की शहरपनाह को तोड़ने लगेंगे तो “दोहाई का शब्द पहाड़ों तक पहुंचेगा।” क्या इसका मतलब यह है कि नगर के निवासी, मोरिय्याह पहाड़ पर परमेश्‍वर के पवित्र मंदिर में उसे दोहाई देंगे? हो सकता है। मगर, उनके विश्‍वासघात को देखकर तो लगता है कि वे डर के मारे चीख-पुकार करेंगे और उनके चिल्लाने की आवाज़ आसपास के पहाड़ों में गूँजेगी।

9. यरूशलेम के लिए खतरा बनी हुई सेना के बारे में बताइए।

9 यरूशलेम पर खतरा बनकर छानेवाला यह दुश्‍मन कौन है? यशायाह हमें बताता है: “एलाम पैदलों के दल और सवारों समेत तर्कश बान्धे हुए हैं, और कीर ढाल खोले हुए हैं।” (यशायाह 22:6) यह दुश्‍मन पूरी तरह हथियारों से लैस है। उसके तीरंदाज़ों के तर्कश, तीरों से भरे हुए हैं। उसके योद्धा लड़ाई के लिए अपनी ढालों को तैयार कर रहे हैं। रथ हैं और युद्ध के लिए तैयार घोड़े भी। उसकी सेना में एलाम और कीर के सैनिक हैं। एलाम, आज की फारस की खाड़ी के उत्तर में है। कीर भी शायद एलाम के पास ही है। इन देशों के नामों के ज़िक्र से पता चलता है कि ये हमलावर कितनी दूर-दूर से आए हैं। इससे यह भी पता लगता है कि हिजकिय्याह के दिनों में यरूशलेम नगर के लिए जो सेना खतरा बनी हुई थी उसमें शायद एलाम के तीरंदाज़ भी होंगे।

बचाव की कोशिशें

10. क्या होने पर यरूशलेम पर भारी संकट आ पड़ेगा?

10 आगे क्या होता है, यशायाह इसके बारे में बताता है: “तेरी उत्तम उत्तम तराइयां रथों से भरी हुई होंगी और सवार फाटक के साम्हने पांति बान्धेंगे। उस ने यहूदा का घूंघट खोल दिया है।” (यशायाह 22:7) यरूशलेम नगर के बाहर का मैदान रथों और घुड़सवारों से भरा हुआ है। वे नगर के फाटकों पर हमला करने के लिए मोर्चा बाँध रहे हैं। “यहूदा का घूंघट” क्या है जिसे खोल दिया जाएगा? शायद यह नगर का फाटक है, और अगर दुश्‍मन ने इस पर काबू पा लिया तो नगर का बचाव करनेवालों पर भारी संकट आ पड़ेगा। * जब यरूशलेम का बचाव करनेवाला यह घूंघट हटा दिया जाएगा तब हमलावर बड़ी आसानी से नगर में घुस जाएँगे।

11, 12. यरूशलेम के निवासी बचाव के लिए क्या-क्या कदम उठाते हैं?

11 यशायाह अब बताता है कि लोग अपना बचाव करने के लिए क्या-क्या कोशिश कर रहे हैं। सबसे पहले उनके मन में क्या आता है? हाँ, हथियार! “उस दिन तू ने वन नाम भवन के अस्त्र-शस्त्र का स्मरण किया, और तू ने दाऊदपुर की शहरपनाह की दरारों को देखा कि वे बहुत हैं, और तू ने निचले पोखरे के जल को इकट्ठा किया।” (यशायाह 22:8,9) वन नाम भवन के शस्त्रों के भण्डार में हथियार जमा किए जाते हैं। हथियार जमा करने की इस जगह को सुलैमान ने बनवाया था। यह भवन लबानोन के जंगलों की देवदार की लकड़ी से बनाया गया था, इसलिए यह “लबानोनी वन नाम महल” कहलाने लगा। (1 राजा 7:2-5) नगर के लोग शहरपनाहों में दरारों की जाँच करते हैं। पानी इकट्ठा करने का काम किया जाता है, जो किसी भी लड़ाई में बहुत ज़रूरी कदम है, क्योंकि लोगों को ज़िंदा रहने के लिए पानी तो चाहिए ही। इसके अलावा, पानी के बिना एक नगर ज़्यादा दिन तक दुश्‍मनों के आगे नहीं टिक सकता। मगर, ज़रा ध्यान दीजिए कि यहाँ एक बार भी यह ज़िक्र नहीं मिलता कि उन्होंने मदद के लिए यहोवा को पुकारा हो। इसके बजाय, वे अपने ही साधनों पर भरोसा करते हैं। काश कि हम ऐसी गलती कभी न करें!—भजन 127:1.

12 नगर की शहरपनाह में पड़ी दरारों का क्या किया जा सकता है? “यरूशलेम के घरों को गिनकर शहरपनाह के दृढ़ करने के लिये घरों को ढा दिया।” (यशायाह 22:10) यह देखने के लिए घरों की जाँच की जाती है कि किस-किस घर को ढाकर उसके सामान से दरारों को भरा जा सकता है। यह कार्यवाही इसलिए की जा रही है कि कहीं दुश्‍मन शहरपनाह पर पूरी तरह कब्ज़ा न कर ले।

अविश्‍वासी लोग

13. नगर के लोग पानी इकट्ठा करने की कोशिश कैसे करते हैं, लेकिन वे किसे भूल जाते हैं?

13“तू ने दोनों भीतों के बीच पुराने पोखरे के जल के लिये एक कुंड खोदा। परन्तु तू ने उसके कर्त्ता को स्मरण नहीं किया, जिस ने प्राचीनकाल से उसको ठहरा रखा था, और न उसकी ओर तू ने दृष्टि की।” (यशायाह 22:11) इस आयत और आयत 9 में, पानी इकट्ठा करने की कोशिशें हमें राजा हिजकिय्याह के उस काम की याद दिलाती हैं जो उसने हमला करनेवाले अश्‍शूरियों से नगर को बचाने के लिए की थीं। (2 इतिहास 32:2-5) लेकिन, यशायाह की इस भविष्यवाणी में बताए गए यरूशलेम नगर के लोग एकदम अविश्‍वासी हैं। हिजकिय्याह ने तो अपने सिरजनहार को याद कर और उस पर भरोसा रखकर बचाव के लिए ज़रूरी कदम उठाए थे, मगर ये लोग तो उसे भूलकर अपने ही बलबूते पर यह सब कर रहे हैं।

14. यहोवा की चेतावनी का संदेश सुनने के बावजूद, आज लोग कैसा मूर्खतापूर्ण रवैया अपनाते हैं?

14 यशायाह आगे कहता है: “उस समय सेनाओं के प्रभु यहोवा ने रोने-पीटने, सिर मुड़ाने और टाट पहिनने के लिये कहा था; परन्तु क्या देखा कि हर्ष और आनन्द मनाया जा रहा है, गाय-बैल का घात और भेड़-बकरी का बध किया जा रहा है, मांस खाया और दाखमधु पीया जा रहा है। और कहते हैं, आओ खाएं-पीएं, क्योंकि कल तो हमें मरना है।” (यशायाह 22:12,13) यरूशलेम के निवासियों ने यहोवा के खिलाफ जो विद्रोह किया है, उसका उन्हें ज़रा भी पछतावा नहीं है। वे विलाप नहीं करते, ना ही पछतावे की निशानी के तौर पर अपना सिर मुंड़ाते और टाट पहनते हैं। अगर वे ऐसा करते, तो शायद यहोवा उन्हें उनके भयानक अंजाम से बचा लेता। इसके बजाय, वे भोग-विलास में डूबे हुए हैं। आज भी बहुत-से लोगों का रवैया ऐसा ही है, क्योंकि वे परमेश्‍वर पर विश्‍वास नहीं करते। भविष्य के लिए उन्हें कोई उम्मीद नहीं है। उन्हें ना तो मरे हुओं में से पुनरुत्थान पाने की आशा है, ना ही वे आनेवाले खूबसूरत फिरदौस में जीने की उम्मीद रखते हैं। वे सिर्फ अपनी अभिलाषाएँ पूरी करने के लिए जीते हैं और कहते हैं: “आओ, खाए-पीए, क्योंकि कल तो मर ही जाएंगे।” (1 कुरिन्थियों 15:32) वे कल की नहीं सोच रहे बल्कि सिर्फ आज के लिए जी रहे हैं! काश कि वे अपना भरोसा यहोवा पर रखते तो उन्हें भविष्य के लिए सच्ची आशा मिलती!—भजन 4:6-8; नीतिवचन 1:33.

15. (क) यरूशलेम के खिलाफ यहोवा ने क्या न्यायदंड सुनाया है और यह न्यायदंड किसके हाथों दिया जाता है? (ख) ईसाईजगत का हश्र भी यरूशलेम जैसा क्यों होगा?

15 दुश्‍मनों से घिरे यरूशलेम नगर को नहीं बचाया जा सकता। यशायाह कहता है, “सेनाओं के यहोवा ने मेरे कान में कहा और अपने मन की बात प्रगट की, निश्‍चय तुम लोगों के इस अधर्म का कुछ भी प्रायश्‍चित्त तुम्हारी मृत्यु तक न हो सकेगा, सेनाओं के प्रभु यहोवा का यही कहना है।” (यशायाह 22:14) लोगों के मन इतने कठोर हो चुके हैं कि वे माफ किए जाने के लायक नहीं रहे। बेशक, उन्हें मरना ही होगा। इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं, क्योंकि सेनाओं के प्रभु यहोवा ने ऐसा कहा है। यशायाह की भविष्यवाणी पूरी हुई और विश्‍वासघाती यरूशलेम पर दो बार विपत्ति आयी। पहले इसे बाबुल की सेना ने नाश किया और बाद में रोम की सेना ने। ठीक उसी तरह, विश्‍वासघाती ईसाईजगत पर भी विपत्ति आ पड़ेगी जिसके सदस्य परमेश्‍वर की उपासना करने का दावा तो करते हैं, मगर अपने कामों से उसका इनकार करते हैं। (तीतुस 1:16) ईसाईजगत ने और दुनिया के दूसरे धर्मों ने परमेश्‍वर के धर्मी मार्गों के खिलाफ जो पाप किए हैं, वे “स्वर्ग तक पहुंच गए हैं।” जैसे धर्मत्यागी यरूशलेम के पाप माफ करने के लायक नहीं थे, उसी तरह इनके पापों की भी माफी नहीं होगी।—प्रकाशितवाक्य 18:5,8,21.

अपने स्वार्थ में डूबा भण्डारी

16, 17. (क) यहोवा अब किसे चेतावनी देता है और क्यों? (ख) शेबना के ऊँचे-ऊँचे इरादों की वजह से उसका क्या होगा?

16 अब यशायाह विश्‍वासघाती जाति से अपना ध्यान हटाकर एक विश्‍वासघाती आदमी के बारे में बताता है। यशायाह लिखता है: “सेनाओं का प्रभु यहोवा यों कहता है, शेबना नाम उस भण्डारी के पास जो राजघराने के काम पर नियुक्‍त है जाकर कह, यहां तू क्या करता है? और यहां तेरा कौन है कि तू ने अपनी कबर यहां खुदवाई है? तू अपनी कबर ऊंचे स्थान में खुदवाता और अपने रहने का स्थान चट्टान में खुदवाता है?”—यशायाह 22:15,16.

17 शेबना ‘राजघराने के काम पर नियुक्‍त भण्डारी’ है, जी हाँ वह शायद राजा हिजकिय्याह के घराने का भण्डारी है। उसका ओहदा बहुत ऊँचा है, राजा के बाद दूसरा नंबर उसी का आता है। इतने ऊँचे ओहदे की वजह से उससे बड़ी-बड़ी उम्मीदें रखी जाती हैं। (1 कुरिन्थियों 4:2) मगर, जिस वक्‍त उसे देश के हालात पर सबसे ज़्यादा ध्यान देना चाहिए, उस वक्‍त वह अपनी शान और वैभव बढ़ाने में लगा हुआ है। वह एक ऊँची चट्टान पर अपने लिए एक आलीशान मकबरा बनवा रहा है, वैसा ही जैसा एक राजा का होता है। यहोवा यह सब देख रहा है और वह इस विश्‍वासघाती भण्डारी को चेतावनी देने के लिए यशायाह को प्रेरित करता है: “देख, यहोवा तुझ को बड़ी शक्‍ति से पकड़कर बहुत दूर फेंक देगा। वह तुझे मरोड़कर गेन्द की नाईं लम्बे चौड़े देश में फेंक देगा; हे अपने स्वामी के घराने को लज्जित करनेवाले वहां तू मरेगा और तेरे विभव के रथ वहीं रह जाएंगे। मैं तुझ को तेरे स्थान पर से ढकेल दूंगा, और तू अपने पद से उतार दिया जायेगा।” (यशायाह 22:17-19) अपने ही स्वार्थ की सोचनेवाले शेबना को यरूशलेम में एक मामूली कब्र तक हासिल नहीं होगी। इसके बजाय, उसे एक गेंद की तरह दूसरे देश में मरने के लिए फेंक दिया जाएगा। इन आयतों में उन सभी लोगों के लिए एक चेतावनी है, जिन्हें परमेश्‍वर के लोगों के बीच अधिकार का पद सौंपा गया है। अगर वे अपने पद या अधिकार का गलत इस्तेमाल करेंगे तो यह अधिकार उनसे छीन लिया जाएगा और मुमकिन है कि उन्हें परमेश्‍वर के लोगों के बीच से भी निकाल दिया जाए।

18. शेबना की जगह किसे दी जाएगी, और इसका क्या मतलब है कि उसे शेबना का सरकारी अंगरखा और दाऊद के घराने की कुंजी दी जाएगी?

18 लेकिन, शेबना को उसके ओहदे से कैसे हटाया जाएगा? यशायाह के ज़रिए यहोवा बताता है: “उस समय मैं हिल्कियाह के पुत्र अपने दास एल्याकीम को बुलाकर, उसे तेरा अंगरखा पहनाऊंगा, और उसकी कमर में तेरी पेटी कसकर बान्धूंगा, और तेरी प्रभुता उसके हाथ में दूंगा। और वह यरूशलेम के रहनेवालों और यहूदा के घराने का पिता ठहरेगा। और मैं दाऊद के घराने की कुंजी उसके कंधे पर रखूंगा, और वह खोलेगा और कोई बन्द न कर सकेगा; वह बन्द करेगा और कोई खोल न सकेगा।” (यशायाह 22:20-22) शेबना को हटाकर एल्याकीम को सरकारी भण्डारी का अंगरखा पहनाया जाएगा और उसे दाऊद के घराने की कुंजी भी दी जाएगी। बाइबल में “कुंजी” शब्द का इस्तेमाल, अधिकार, सत्ता या ताकत के बारे में बताने के लिए किया गया है। (मत्ती 16:19 से तुलना कीजिए।) पुराने ज़माने में, राजा के सलाहकार को महल के कमरों की कुंजियाँ सौंपी जाती थीं और वह उन पर निगरानी रखता था। वह यह भी फैसला करता था कि राजा की नौकरी के लिए किसे रखा जाए और किसे नहीं। (प्रकाशितवाक्य 3:7,8 से तुलना कीजिए।) इसलिए, एक भण्डारी का ओहदा बहुत ज़िम्मेदारी का है और जो कोई इस ओहदे पर है उससे बहुत कुछ करने की उम्मीद की जाती है। (लूका 12:48) शेबना भले ही बहुत काबिलीयत रखता हो, मगर वह विश्‍वासघाती है, इसलिए यहोवा उसे इस ओहदे से हटा देगा।

भविष्यवाणी में बतायी गयी दो खूंटियाँ

19, 20. (क) एल्याकीम अपने लोगों के लिए आशीष कैसे बनेगा? (ख) जो लोग शेबना का सहारा लेना चाहेंगे उनका क्या होगा?

19 आखिर में यह बताने के लिए कि शेबना से उसका अधिकार लेकर एल्याकीम को सौंप दिया जाएगा, यहोवा एक मिसाल देकर कहता है: “मैं [एल्याकीम] को दृढ़ स्थान में खूंटी की नाईं गाड़ूंगा, और वह अपने पिता के घराने के लिये विभव का कारण होगा। और उसके पिता से घराने का सारा विभव, वंश और सन्तान, सब छोटे-छोटे पात्र, क्या कटोरे क्या सुराहियां, सब उस पर टांगी जाएंगी। सेनाओं के यहोवा की यह वाणी है कि उस समय वह खूंटी [शेबना] जो दृढ़ स्थान में गाड़ी गई थी, वह ढीली हो जाएगी, और काटकर गिराई जाएगी; और उस पर का बोझ गिर जाएगा, क्योंकि यहोवा ने यह कहा है।”यशायाह 22:23-25.

20 इन आयतों में बतायी गयी पहली खूंटी एल्याकीम है। वह अपने पिता हिल्कियाह के घराने के लिए “विभव का कारण” बनेगा। वह शेबना की तरह अपने पिता के घराने या उसके नाम पर कलंक नहीं होगा। एल्याकीम, राजा के घराने के पात्रों को यानी राजा के दूसरे सेवकों को सदा तक सहारा देता रहेगा। (2 तीमुथियुस 2:20,21) आयत में बतायी गयी दूसरी खूंटी, शेबना है। हालाँकि ऐसा लगता है कि उसको अपनी जगह से कोई नहीं हटा सकता, मगर उसे हटा दिया जाएगा। जो कोई उसका सहारा लेना चाहेगा वह भी गिर जाएगा।

21. आज के ज़माने में शेबना की तरह किसे हटाया गया, क्यों, और उसकी जगह किसे दी गयी है?

21 शेबना के साथ जो हुआ, उससे हमें यह याद दिलाया गया है कि परमेश्‍वर की उपासना करने का दावा करनेवालों में, जिन लोगों को खास ज़िम्मेदारियाँ सँभालने का मौका मिलता है, उन्हें इस ओहदे का ऐसा इस्तेमाल करना चाहिए जिससे वे दूसरों की सेवा कर सकें और जिससे यहोवा के नाम की महिमा हो। उन्हें अपने फायदे के लिए या खुद को ऊँचा उठाने के लिए इस ज़िम्मेदारी के पद का गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। मिसाल के तौर पर, ईसाईजगत बहुत समय से दावा करता आ रहा है कि वही परमेश्‍वर का ठहराया हुआ भण्डारी है, इस धरती पर यीशु मसीह का प्रतिनिधि है। मगर, जैसे शेबना ने वैभव चाहकर अपने पिता के नाम पर कलंक लगाया गया था, उसी तरह ईसाईजगत के धर्मगुरुओं ने धन-दौलत इकट्ठी करके और अपना दबदबा कायम करके हमारे सिरजनहार के नाम को बदनाम किया है। इसलिए, जब सन्‌ 1918 में “पहिले परमेश्‍वर के लोगों का न्याय” करने का वक्‍त आया तब यहोवा ने ईसाईजगत को अपनी नज़रों से दूर कर दिया। तब एक और भण्डारी की पहचान की गयी जिसे इस पृथ्वी पर यीशु के घराने पर नियुक्‍त किया गया। वह “विश्‍वास-योग्य और बुद्धिमान भण्डारी” है। (1 पतरस 4:17; लूका 12:42-44) एक वर्ग के तौर पर इन्होंने दिखाया है कि वे दाऊद के घराने की शाही “कुंजी” सँभालने के लायक हैं। मज़बूत “खूंटी” की तरह, इस वर्ग ने सभी किस्म के ‘पात्रों’ को, यानी अभिषिक्‍त मसीहियों को सहारा दिया है जो अलग-अलग ज़िम्मेदारियाँ निभा रहे हैं। अभिषिक्‍त मसीही, आध्यात्मिक आहार के लिए इसी पर निर्भर रहते हैं। उसी तरह ‘अन्य भेड़ें’ भी, प्राचीन यरूशलेम के उन ‘परदेशियों’ की तरह हैं, जो यरूशलेम के ‘फाटकों के भीतर थे।’ वे भी इस “खूंटी” या आज के ज़माने के एल्याकीम पर निर्भर हैं।—यूहन्‍ना 10:16, NW; व्यवस्थाविवरण 5:14.

22. (क) एक भण्डारी के ओहदे पर शेबना की जगह किसी और को नियुक्‍त करना कैसे बिलकुल सही वक्‍त पर हुआ? (ख) हमारे ज़माने में, “विश्‍वास-योग्य और बुद्धिमान भण्डारी” का नियुक्‍त किया जाना भी कैसे बिलकुल सही वक्‍त पर हुआ?

22 एल्याकीम ने ऐसे वक्‍त पर शेबना की जगह ली जब यरूशलेम को सन्हेरीब की फौजों के हमले का खतरा था। उसी तरह, “विश्‍वास-योग्य और बुद्धिमान भण्डारी” को अंत के समय में सेवा करने के लिए नियुक्‍त किया गया है। यह अंत का समय तब खत्म होगा जब शैतान और उसकी फौज, “परमेश्‍वर के इस्राएल” पर और उनके साथियों यानी अन्य भेड़ों पर आखिरी हमला करने आएँगे। (गलतियों 6:16) जैसा हिजकिय्याह के दिनों में हुआ था, इस हमले का अंत भी धार्मिकता के दुश्‍मनों के विनाश के साथ होगा। जो “दृढ़ स्थान में [गड़ी] खूंटी” यानी विश्‍वास-योग्य भण्डारी का सहारा लेते हैं वे बच जाएँगे, वैसे ही जैसे यहूदा पर अश्‍शूर के हमले से यरूशलेम के विश्‍वासयोग्य निवासी बचे थे। तो फिर, बदनाम ईसाईजगत की “खूंटी” से दूर रहना वाकई समझदारी से काम लेना है!

23. शेबना का क्या हुआ और इससे हम क्या सबक सीख सकते हैं?

23 मगर शेबना का क्या हुआ? इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि यशायाह 22:18 में उसके बारे में जो भविष्यवाणी की गयी थी वह कैसे पूरी हुई। जब वह वैभव पाने के लिए खुद को ऊँचा उठाता है तो उसे अपमान सहना पड़ता है, इस बात में वह ईसाईजगत को दर्शाता है। पर ऐसा लगता है कि उसने इस ताड़ना से सबक सीख लिया था। मगर ईसाईजगत ने यह सबक नहीं सीखा है। जब अश्‍शूरी रबशाके ने यरूशलेम को हार मान लेने के लिए धमकाया, तो हिजकिय्याह के नए भण्डारी एल्याकीम की निगरानी में एक प्रतिनिधि-दल रबशाके से मिलने जाता है। उस वक्‍त, एल्याकीम के साथ शेबना भी राजा के मंत्री के रूप में मौजूद था। इससे पता लगता है कि शेबना अभी-भी राजा की नौकरी कर रहा था। (यशायाह 36:2,22) यह उन लोगों के लिए क्या ही बेहतरीन सबक है जिन्हें परमेश्‍वर के संगठन में सेवा की अपनी ज़िम्मेदारी से हटा दिया जाता है! अपने मन में कड़वाहट और बैर पालने के बजाय, उनके लिए वाकई यह समझदारी का काम होगा कि यहोवा उन्हें जैसा भी स्थान क्यों ना दे, वे उसी में उसकी सेवा करना जारी रखें। (इब्रानियों 12:6) ऐसा करने से वे उस संकट से बच जाएँगे जो ईसाईजगत पर आनेवाला है। वे सदा तक यहोवा की आशीष और अनुग्रह पाते रहेंगे।

[फुटनोट]

^ पैरा. 6 सा.यु. 66 में, जब यरूशलेम की घेराबंदी करनेवाली रोम की सेना वापस जा रही थी तब बहुत-से यहूदियों ने खुशियाँ मनायी थीं।

^ पैरा. 6 पहली सदी के इतिहासकार, जोसीफस के मुताबिक सा.यु. 70 में यरूशलेम में ऐसा अकाल पड़ा कि लोग चमड़ा, घास और भूसा तक खा गए। कहा जाता है कि एक माँ अपने ही बेटे को भूनकर खा गई।

^ पैरा. 10 या फिर, “यहूदा का घूंघट” कुछ और हो सकता है, जिससे नगर की हिफाज़त होती है। जैसे वे किले जहाँ हथियार रखे जाते थे और जहाँ सैनिक रहा करते थे।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 231 पर तसवीर]

जब सिदकिय्याह भागा, तो वह पकड़ा गया और उसकी आँखें फोड़ दी गयीं

[पेज 232 पर तसवीर]

यरूशलेम नगर में फँसे यहूदियों का भविष्य अच्छा नहीं है

[पेज 239 पर तसवीर]

एल्याकीम को हिजकिय्याह “दृढ़ स्थान में खूंटी” जैसा नियुक्‍त करता है

[पेज 241 पर तसवीर]

शेबना की तरह, ईसाईजगत के धर्मगुरुओं ने धन-दौलत इकट्ठी करके सिरजनहार को बदनाम किया है

[पेज 242 पर तसवीरें]

हमारे ज़माने में एक विश्‍वासयोग्य भण्डारी वर्ग को यीशु के घराने पर नियुक्‍त किया गया है