कपट का परदाफाश!
उन्नीसवाँ अध्याय
कपट का परदाफाश!
1. यीशु और यहोवा, कपट को किस नज़र से देखते हैं, और यशायाह के दिनों में कपट किस हद तक फैल गया है?
यीशु ने अपने समय के धर्मगुरुओं से कहा: ‘तुम ऊपर से मनुष्यों को धर्मी दिखाई देते हो, परन्तु भीतर कपट और अधर्म से भरे हुए हो।’ (मत्ती 23:28) यीशु ने उनके कपट को धिक्कारा जिससे पता चलता है कि उसका स्वर्गीय पिता उन्हें किस नज़र से देखता था। यशायाह की भविष्यवाणी का 58वाँ अध्याय खासकर, यहूदा देश में फैले कपट पर हमारा ध्यान दिलाता है। लड़ाई-झगड़ा, ज़ुल्म और खून-खराबा रोज़ की बात बन चुकी है और सब्त के नियम का मानना बस एक खोखली रस्म बनकर रह गया है। लोग सिर्फ नाम के वास्ते यहोवा की सेवा कर रहे हैं और पाखण्डियों की तरह उपवास करके पवित्रता का ढोंग रच रहे हैं। इसलिए, ताज्जुब नहीं कि यहोवा उन्हें उनका असली रूप दिखाता है!
‘लोगों को उनका पाप जता दे’
2. यहोवा का संदेश सुनाते वक्त यशायाह कैसी भावना दिखाता है, और आज कौन उसकी मिसाल पर चल रहे हैं?
2 यहूदा के लोगों का चालचलन देखकर यहोवा को घृणा आती है, फिर भी वह उनसे पश्चाताप करने की दिल से अपील करता है। मगर वह यह भी चाहता है कि लोग साफ-साफ समझ जाएँ कि उन्हें क्यों ताड़ना दी जा रही है। इसलिए वह यशायाह को आज्ञा देता है: “गला खोलकर पुकार, कुछ न रख छोड़, नरसिंगे का सा ऊंचा शब्द कर; मेरी प्रजा को उसका अपराध अर्थात् याकूब के घराने को उसका पाप जता दे।” (यशायाह 58:1) यशायाह जानता है कि अगर वह बेधड़क होकर लोगों को यहोवा के वचन सुनाएगा, तो वे उसके दुश्मन बन जाएँगे, फिर भी वह पीछे नहीं हटता। उसके दिल में अब भी समर्पण और भक्ति की वही भावना है जो उस वक्त थी जब उसने कहा था: “मैं यहां हूं! मुझे भेज।” (यशायाह 6:8) विरोध सहन करते हुए भी डटे रहने में, यशायाह ने आज के यहोवा के साक्षियों के लिए क्या ही बढ़िया मिसाल छोड़ी है। साक्षियों को भी परमेश्वर के वचन का प्रचार करने और धर्म के कपट का परदाफाश करने का काम सौंपा गया है।—भजन 118:6; 2 तीमुथियुस 4:1-5.
3, 4. (क) यशायाह के दिनों के लोग क्या दिखावा कर रहे हैं? (ख) यहूदा की असली हालत क्या है?
3 यशायाह के दिनों के लोग यहोवा की खोज करने का स्वाँग भरते हैं और दिखाते हैं कि वे उसके धर्मी नियमों से प्रसन्न हैं। उनके बारे में हम यहोवा के ये शब्द पढ़ते हैं: “वे प्रतिदिन मुझे ढूंढ़ते हैं; वे मेरे मार्ग जानने की इच्छा प्रकट करते हैं; मानो वे धर्म-कर्म करनेवाली जातियां हैं। मानो उन्होंने मेरे न्याय सिद्धान्तों का परित्याग नहीं किया है। वे मुझ से धर्म के नियम पूछते हैं। वे मेरे समीप आते, और प्रसन्न होते हैं।” (यशायाह 58:2, नयी हिन्दी बाइबिल) यहोवा के मार्गों से यह लगाव क्या सच्चा है? नहीं। ‘मानो वे धर्म-कर्म करनेवाली जाति हैं,’ मगर यह सिर्फ एक ढकोसला है। सच तो यह है कि इस जाति ने ‘अपने परमेश्वर के न्याय सिद्धान्तों को त्याग दिया है।’
4 यहाँ की हालत काफी कुछ ऐसी है जैसा बाद में भविष्यवक्ता यहेजकेल को बताया गया था। यहोवा ने यहेजकेल को बताया कि यहूदी एक-दूसरे से कहते हैं: “आओ, सुनो, कि यहोवा की ओर से कौन सा वचन निकलता है।” मगर फिर परमेश्वर ने, यहेजकेल को उनकी मक्कारी के बारे में आगाह करते हुए कहा कि वे साफ मन से ऐसा नहीं कह रहे: “वे . . . तेरे पास आते और . . . तेरे साम्हने बैठकर तेरे वचन सुनते हैं, परन्तु वे उन पर चलते नहीं; मुंह से तो वे बहुत प्रेम दिखाते हैं, परन्तु उनका मन लालच ही में लगा रहता है। और तू उनकी दृष्टि में प्रेम के मधुर गीत गानेवाले और अच्छे बजानेवाले का सा ठहरा है, क्योंकि वे तेरे वचन सुनते तो हैं, परन्तु उन पर चलते नहीं।” (यहेजकेल 33:30-32) यशायाह के ज़माने के लोग भी लगातार यहोवा की खोज करने का दावा तो करते हैं, मगर उसकी आज्ञाओं का पालन बिलकुल नहीं करते।
कपटी उपवास
5. यहूदी, परमेश्वर की आशीष पाने के लिए क्या कोशिश करते हैं, और यहोवा उन्हें क्या जवाब देता है?
5 परमेश्वर की आशीष पाने के लिए यहूदी उपवास करने की मात्र खाना-पूर्ति करते हैं, लेकिन पवित्र होने का ऐसा ढकोसला असल में उन्हें यहोवा से दूर ले गया है। इस पर वे अचंभा करते हुए पूछते हैं: “क्या कारण है कि हम ने तो उपवास रखा, परन्तु तू ने इसकी सुधि नहीं ली? हम ने दु:ख उठाया, परन्तु तू ने कुछ ध्यान नहीं दिया?” यहोवा उन्हें मुँह पर जवाब देता है: “सुनो, उपवास के दिन तुम अपनी ही इच्छा पूरी करते हो और अपने सेवकों से कठिन कामों को कराते हो। सुनो, तुम्हारे उपवास का फल यह होता है कि तुम आपस में लड़ते और झगड़ते और दुष्टता से घूंसे मारते हो। जैसा उपवास तुम आजकल रखते हो, उस से तुम्हारी प्रार्थना ऊपर नहीं सुनाई देगी। जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं अर्थात् जिस में मनुष्य स्वयं को दीन करे, क्या तुम इस प्रकार करते हो? क्या सिर को झाऊ की नाईं झुकाना, अपने नीचे टाट बिछाना, और राख फैलाने ही को तुम उपवास और यहोवा को प्रसन्न करने का दिन कहते हो?”—यशायाह 58:3-5.
6. यहूदियों के किन कामों से ज़ाहिर होता है कि वे उपवास करने का सिर्फ ढोंग करते हैं?
6 लोग उपवास करते, धार्मिकता का ढोंग करते और यहोवा से कहते हैं कि वह उनकी खातिर धर्म से न्याय करे। मगर वे शरीर की अभिलाषाओं को पूरा करना और व्यापार-धंधे में डूबे रहना नहीं छोड़ते। वे झगड़ों में, अत्याचार और खून-खराबा करने में उलझे रहते हैं। और अपने इस बुरे व्यवहार को छिपाने के लिए शोक करने का नाटक करते हैं। वे झाऊ की तरह अपना सिर झुकाते और टाट बिछाकर और राख फैलाकर बैठते हैं, मानो वे अपने पापों के लिए पश्चाताप कर रहे हों। लेकिन जब तक वे विद्रोह करना नहीं छोड़ेंगे, तब तक इन सारी रस्मों को मानने का भला क्या फायदा? सच्चा उपवास रखनेवाले जिस तरह परमेश्वर के सामने शोक मनाते और पश्चाताप करते हैं, ये लोग
ऐसा नहीं करते। इसलिए भले ही वे चिल्ला-चिल्लाकर रोते-पीटते हों, स्वर्ग में उनकी सुनवाई नहीं होती।7. यीशु के समय के यहूदियों ने कैसा कपट दिखाया, और आज भी बहुत-से लोग कैसे उन्हीं के नक्शे-कदम पर चलते हैं?
7 यीशु के दिनों के यहूदी भी इसी तरह उपवास की रस्म मानने का दिखावा करते थे। कुछ लोग तो हफ्ते में दो-दो बार उपवास रखते थे! (मत्ती 6:16-18; लूका 18:11,12) इसके अलावा कई धर्मगुरु यशायाह के समय के यहूदियों के नक्शे-कदम पर चलते हुए लोगों से कठोरता से पेश आ रहे थे और उन पर धौंस जमाते थे। इसलिए यीशु ने बेधड़क होकर इन कपटियों की पोल खोल दी और उन्हें जता दिया कि उनकी उपासना बेकार है। (मत्ती 15:7-9) उसी तरह आज लाखों लोग “कहते हैं, कि हम परमेश्वर को जानते हैं: पर अपने कामों से उसका इन्कार करते हैं, क्योंकि वे घृणित और आज्ञा न माननेवाले हैं; और किसी अच्छे काम के योग्य नहीं।” (तीतुस 1:16) ऐसे लोग शायद परमेश्वर से दया की उम्मीद करें, लेकिन उनके चालचलन से उनका कपट साफ नज़र आता है। दूसरी तरफ, यहोवा के साक्षी उनसे कितने अलग हैं क्योंकि वे परमेश्वर की सच्ची भक्ति करते हैं और भाई-बहनों के लिए सच्चा प्रेम दिखाते हैं।—यूहन्ना 13:35.
सच्चा पश्चाताप क्या होता है
8, 9. सच्चा पछतावा दिखाने के साथ-साथ कौन-से अच्छे काम करना ज़रूरी है?
8 यहोवा चाहता है कि उसके लोग अपने पापों के लिए सिर्फ उपवास ही न करें बल्कि सच्चा पश्चाताप भी करें। तभी वे उसका अनुग्रह पा सकेंगे। (यहेजकेल 18:23,32) वह उनको समझाता है कि एक इंसान का उपवास तभी कोई मायने रखता है जब वह पिछले पापों को छोड़कर अपने अंदर सुधार लाए। गौर कीजिए कि यहोवा उनके मन को परखते हुए कैसे सवाल पूछता है: “जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं क्या वह यह नहीं कि दुष्टता की बेड़ियां तोड़ी जाएं, जूए के बन्धन काटे जाएं, सताए हुए स्वतंत्र किए जाएं, और प्रत्येक जूआ तोड़ डाला जाए?”—यशायाह 58:6, NHT.
9 बेड़ियाँ और जूए के बंधन गुलामों के साथ अत्याचार करने की निशानियाँ हैं। तो, उपवास करने के साथ अपने जाति भाइयों पर ज़ुल्म ढाने के लैव्यव्यवस्था 19:18, NHT) उन्हें उन सभी लोगों को रिहा कर देना चाहिए जिन पर वे ज़ुल्म ढाते आए हैं और जिनको उन्होंने अन्याय से अपना दास बना लिया है। * धर्म का ढोंग करना, जैसे उपवास रखना, परमेश्वर की सच्ची भक्ति और अपने भाइयों से प्यार करने और उनकी मदद करने की जगह नहीं ले सकता। यशायाह के ज़माने के एक और भविष्यवक्ता, मीका ने लिखा था: “यहोवा तुझ से इसे छोड़ और क्या चाहता है, कि तू न्याय से काम करे, और कृपा से प्रीति रखे, और अपने परमेश्वर के साथ नम्रता से चले?”—मीका 6:8.
बजाय, लोगों का फर्ज़ बनता है कि वे इस आज्ञा का पालन करें: “अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना।” (10, 11. (क) यहूदियों के लिए उपवास करने के बजाय क्या करना बेहतर होगा? (ख) यहोवा ने यहूदियों को जो सलाह दी उस पर आज मसीही कैसे चल सकते हैं?
10 न्याय, कृपा और नम्रता के गुण हमें दूसरों की भलाई करने के लिए उकसाते हैं और यही यहोवा की व्यवस्था का सार है। (मत्ती 7:12) उपवास करने से लाख गुना बेहतर होगा कि अपने पास बहुतायत में जो चीज़ें हैं, उन्हें ज़रूरतमंद लोगों में बाँटना। यहोवा पूछता है: “क्या वह [जिस उपवास से मैं प्रसन्न होता हूं] यह नहीं है कि अपनी रोटी भूखों को बांट देना, अनाथ और मारे-मारे फिरते हुओं को अपने घर ले आना, किसी को नंगा देखकर वस्त्र पहिनाना, और अपने जातिभाइयों से अपने को न छिपाना?” (यशायाह 58:7) जी हाँ, जो लोग धनी हैं, उन्हें दिखावे का उपवास करने के बजाय अपने ज़रूरतमंद जातिभाइयों को, जो उनका अपना ही खून हैं, रोटी, कपड़ा या मकान देकर उनकी मदद करनी चाहिए।
11 यहोवा ने आपसी प्यार और दया के बारे में जो बढ़िया उसूल बताए थे, वे सिर्फ यशायाह के समय के यहूदियों के लिए ही नहीं थे। आज मसीहियों को भी उन पर अमल करना चाहिए। इसीलिए प्रेरित पौलुस ने लिखा: “जहां तक गलतियों 6:10) खासकर यह देखते हुए कि हमारे समय में दिन और भी कठिन होते जा रहे हैं, मसीही कलीसिया को प्यार और सच्चे भाईचारे का आशियाना होना चाहिए।—2 तीमुथियुस 3:1; याकूब 1:27.
अवसर मिले हम सब के साथ भलाई करें; विशेष करके विश्वासी भाइयों के साथ।” (आज्ञा मानने से ढेरों आशीषें मिलती हैं
12. अगर यहोवा के लोग उसकी आज्ञा मानें तो वह बदले में क्या करेगा?
12 यहोवा प्यार से जो ताड़ना दे रहा है काश, उसके लोग उसे समझ पाते! अगर वे ऐसा करेंगे तो यहोवा कहता है: “तब तेरा प्रकाश पौ फटने की नाईं चमकेगा, और तू शीघ्र चंगा हो जाएगा; तेरा धर्म तेरे आगे आगे चलेगा, यहोवा का तेज तेरे पीछे रक्षा करते चलेगा। तब तू पुकारेगा और यहोवा उत्तर देगा; तू दोहाई देगा और वह कहेगा, मैं यहां हूं।” (यशायाह 58:8,9क) दिल को छू लेनेवाले कितने सुंदर शब्द हैं ये! यहोवा ऐसे लोगों को आशीष देता और उनकी हिफाज़त करता है जो प्यार, दया और धार्मिकता के काम करते हैं। अगर यहोवा के लोग कठोरता और कपट छोड़कर पश्चाताप करें और उसकी आज्ञा मानें तो उनकी हालत सुधर सकती है। तब यहोवा इस जाति को आध्यात्मिक और शारीरिक मायनों में “चंगा” करेगा। वह उनकी हिफाज़त भी करेगा, ठीक जैसे उसने उनके पुरखों की मिस्र से निकलते वक्त हिफाज़त की थी। और जब वे उसे मदद के लिए पुकारेंगे, तो वह फौरन जवाब देगा।—निर्गमन 14:19,20,31.
13. अगर यहूदी, यहोवा की बात मान लें तो उन्हें क्या आशीषें मिलेंगी?
13 यहोवा अब उनसे और गुज़ारिश करते हुए आगे कहता है: “यदि तू [अन्याय से दूसरों को दास बनाकर, उन पर ज़ुल्म ढाते हुए] अन्धेर करना और [शायद ठट्ठा उड़ाते हुए या झूठे इलज़ाम लगाते हुए] उंगली मटकाना, और, दुष्ट बातें बोलना छोड़ दे, उदारता से भूखे की सहायता करे और दीन दु:खियों को सन्तुष्ट करे, तब अन्धियारे में तेरा प्रकाश चमकेगा, और तेरा घोर अन्धकार दोपहर का सा उजियाला हो जाएगा।” (यशायाह 58:9ख,10) स्वार्थ और कठोरता से पेश आना, अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारना है क्योंकि इससे हम यहोवा का क्रोध भड़काते हैं। लेकिन दूसरों पर, खासकर भूखे और दुःखी लोगों पर दया करने और दिल खोलकर उनकी मदद करने से यहोवा ढेरों आशीषें देता है। काश, यहूदियों ने इन सच्चाइयों को समझा होता! तब वे आध्यात्मिक रूप से इतने धनी हो जाते और ऐसे चमकते जैसे दोपहर का सूरज अपनी चमक से हर तरह के अँधेरे को दूर भगाता है। सबसे बढ़कर उनके कामों से यहोवा की महिमा और स्तुति होती क्योंकि उनको महान करनेवाला और आशीषें देनेवाला वही है।—1 राजा 8:41-43.
बहाल की गयी एक जाति
14. (क) यशायाह के समय के लोग उसकी बातें सुनकर क्या करते हैं? (ख) यहोवा अब भी क्या करना नहीं छोड़ता?
14 मगर बड़े दुःख की बात है कि यहोवा के इतनी मिन्नतें करने के बाद भी उन्होंने उसकी एक न सुनी, इसके बजाय यह जाति और भी ज़्यादा दुष्ट काम करने लगी। और जैसा यहोवा ने उन्हें पहले ही खबरदार किया था, आखिरकार उन्हें बंधुआई में भेजने के सिवाय उसके पास और कोई चारा नहीं बचा। (व्यवस्थाविवरण 28:15,36,37,64,65) फिर भी, यहोवा अपने अगले शब्दों से उनकी उम्मीद बँधाना नहीं छोड़ता। परमेश्वर भविष्यवाणी करता है कि चाहे यहूदा देश उजाड़ क्यों ना पड़ा हो फिर भी उसकी ताड़ना माननेवाले और सच्चा पछतावा दिखानेवाले कुछ यहूदी खुशी-खुशी अपने देश ज़रूर लौटेंगे।
15. यहोवा अपनी भविष्यवाणी में बहाली की क्या खुशखबरी सुनाता है?
15 यहोवा, यशायाह के ज़रिए भविष्यवाणी करता है कि सा.यु.पू. 537 में उसके लोगों की बहाली कैसे होगी: “यहोवा तुझे लगातार लिए चलेगा, और काल के समय तुझे तृप्त और तेरी हड्डियों को हरी भरी करेगा; और तू सींची हुई बारी और ऐसे सोते के समान होगा जिसका जल कभी नहीं सूखता।” (यशायाह 58:11) यहोवा, इस्राएल की झुलसी हुई ज़मीन को दोबारा हरा-भरा कर देगा। इससे भी हैरत की बात यह है कि वह पश्चाताप करनेवाले अपने लोगों पर आशीष देगा। वह उनकी आध्यात्मिक रूप से बेजान “हड्डियों” में दोबारा जान डालकर उन्हें मज़बूत करेगा। (यहेजकेल 37:1-14) लोग खुद भी “सींची हुई बारी” की तरह आध्यात्मिक फलों से लद जाएँगे।
16. यहूदा देश को दोबारा कैसे बसाया जाएगा?
यशायाह 58:12, NHT) ‘पूर्वकाल में विध्वंस हुए खण्डहर’ और “पुरानी पीढ़ियों की नींव” (या सदियों से उजाड़ पड़ी नींव), ये दोनों वाक्य एक ही बात कह रहे हैं और दिखाते हैं कि यहूदा लौटनेवाले लोग वहाँ उजाड़ पड़े शहरों को, खासकर यरूशलेम को दोबारा बनाएँगे। (नहेमायाह 2:5; 12:27; यशायाह 44:28) वे यरूशलेम और दूसरे शहरों की दीवारों में आयी “दरारों” की मरम्मत करेंगे।—यिर्मयाह 31:38-40; आमोस 9:14.
16 जब यहूदा देश बहाल किया जाएगा, तब उन शहरों को भी दोबारा बनाया जाएगा, जिन्हें सा.यु.पू. 607 में बाबुलियों ने तबाह कर दिया था। “तेरे वंश में के लोग पूर्वकाल में विध्वंस हुए खण्डहरों का पुनः निर्माण करेंगे; तू पुरानी पीढ़ियों की नींव को पुनःस्थापित करेगा, और तुझे दरारों को भरने वाला, तथा निवास के लिए मार्गों का सुधारनेवाला कहा जाएगा।” (सब्त के नियम का वफादारी से पालन करने से मिलनेवाली आशीषें
17. यहोवा अपने लोगों से सब्त के नियम मानने की किस तरह गुज़ारिश करता है?
17 सब्त का दिन इस बात का सबूत था कि परमेश्वर को अपने लोगों के शारीरिक और आध्यात्मिक कल्याण की गहरी चिंता है। यीशु ने कहा था: “सब्त का दिन मनुष्य के लिये बनाया गया है।” (मरकुस 2:27) यहोवा ने उस दिन को पवित्र ठहराया था और यह इस्राएलियों के लिए एक खास मौका था जब वे परमेश्वर के लिए अपना प्यार दिखा सकते थे। मगर अफसोस, यशायाह के समय तक यह दिन सिर्फ खोखली रस्में मानने और अपना स्वार्थ पूरा करने का दिन बन गया था। इसलिए एक बार फिर अपने लोगों को ताड़ना देने का सवाल यहोवा के सामने आ गया। फिर से वह उनके दिल तक अपनी बात पहुँचाने की कोशिश करता है। वह उनसे कहता है: “यदि तू विश्रामदिन को अशुद्ध न करे अर्थात् मेरे उस पवित्र दिन में अपनी इच्छा पूरी करने का यत्न न करे, और विश्रामदिन को आनन्द का दिन और यहोवा का पवित्र किया हुआ दिन समझकर माने; यदि तू उसका सन्मान करके उस दिन अपने मार्ग पर न चले, अपनी इच्छा पूरी न करे, और अपनी ही बातें न बोले, तो तू यहोवा के कारण सुखी होगा, और मैं तुझे देश के ऊंचे स्थानों पर चलने दूंगा; मैं तेरे मूलपुरुष याकूब के भाग [“विरासत,” NW] की उपज में से तुझे खिलाऊंगा, क्योंकि यहोवा ही के मुख से यह वचन निकला है।”—यशायाह 58:13,14.
18. सब्त के नियमों का पालन न करके यहूदा के लोग क्या जोखिम मोल ले रहे हैं?
18 सब्त का दिन आध्यात्मिक बातों पर मनन करने, प्रार्थना करने और पूरे परिवार के साथ मिलकर उपासना करने का दिन है। यह दिन गहराई से सोचने में यहूदियों की मदद करता कि यहोवा ने उनकी खातिर कैसे-कैसे आश्चर्यकर्म किए थे और अपनी व्यवस्था के ज़रिए उसने न्याय और प्रेम का क्या ही सबूत दिया था। वे व्यवस्था पर मनन करने से यहोवा के इन गुणों को भी समझ सकते हैं। इसलिए इस पवित्र दिन को वफादारी से मानने का नतीजा यह होना चाहिए था कि वे परमेश्वर के और भी करीब आते। मगर ऐसा करने के बजाय यहूदी इस दिन को भ्रष्ट कर रहे हैं, और इस तरह वे यहोवा की आशीषें खो देने का जोखिम मोल ले रहे हैं।—लैव्यव्यवस्था 26:34; 2 इतिहास 36:21.
19. अगर परमेश्वर के लोग सब्त के नियम मानने लगें तो उनको कैसी बढ़िया आशीषें मिलेंगी?
व्यवस्थाविवरण 28:1-13; भजन 19:7-11) एक आशीष यह होगी कि यहोवा उनको ‘देश के ऊंचे स्थानों पर चलाएगा।’ इन शब्दों का मतलब है कि यहोवा उन्हें सुरक्षित रखेगा और उन्हें अपने दुश्मनों पर जीत दिलाएगा। ऊँचे स्थानों यानी पहाड़ियों और पहाड़ों पर जिसका अधिकार होता है, पूरे देश पर उसी का कब्ज़ा होता है। (व्यवस्थाविवरण 32:13; 33:29) एक वक्त था, जब इस्राएल जाति यहोवा की आज्ञा मानती थी और यहोवा उसकी रक्षा करता था जिस वजह से दूसरी जातियाँ न सिर्फ उसका आदर करती थीं बल्कि उससे खौफ भी खाती थीं। (यहोशू 2:9-11; 1 राजा 4:20,21) अब अगर वह दोबारा यहोवा की आज्ञा मानने लगे, तो उसे खोयी हुई महिमा अभी-भी मिल सकती है। यहोवा अपने लोगों को ‘याकूब की विरासत’ का पूरा हिस्सा दे देगा। इस विरासत का मतलब ऐसी आशीषें हैं जिनके बारे में उनके पुरखों से वाचा बाँधी गयी थी और जिसमें खासकर वादा किए हुए देश को हमेशा अपने अधिकार में रखने की आशीष शामिल थी।—भजन 105:8-11.
19 लेकिन, यहूदियों के पास अभी मौका है कि वे अपनी गलती से सबक सीखें और सब्त के नियम मानना फिर से शुरू करें। ऐसा करने पर वे यहोवा से ढेरों आशीषें पा सकते हैं। सच्ची उपासना करने और सब्त का आदर करने से उनकी ज़िंदगी आशीषों और खुशियों से भर जाएगी। (20. मसीहियों को कैसा “सब्त का विश्राम” दिन मानना है?
20 क्या इससे मसीही कुछ सबक सीख सकते हैं? यीशु मसीह की मृत्यु से मूसा की व्यवस्था रद्द हो गयी थी, जिसके साथ सब्त के नियम भी हटा दिए गए। (कुलुस्सियों 2:16,17) लेकिन सब्त के नियम से यहूदा के लोगों के मन में आध्यात्मिक बातों को पहला स्थान देने और यहोवा के करीब आने की जो भावना पैदा करने का बढ़ावा दिया गया था, वैसी ही भावना आज यहोवा के उपासकों के मन में पैदा होना बेहद ज़रूरी है। (मत्ती 6:33; याकूब 4:8) इसके अलावा, इब्रानियों को लिखी अपनी पत्री में पौलुस कहता है: “परमेश्वर के लोगों के लिये सब्त का विश्राम बाकी है।” मसीही, यहोवा की आज्ञा मानने, यीशु मसीह के बहाए लहू पर विश्वास करने और धार्मिकता का पीछा करने के ज़रिए इस ‘सब्त के विश्राम’ में प्रवेश करते हैं। (इब्रानियों 3:12,18,19; 4:6,9-11,14-16) मसीहियों को यह सब्त सिर्फ हफ्ते में एक दिन नहीं बल्कि हर दिन मानना है।—कुलुस्सियों 3:23,24.
आत्मिक इस्राएल ‘देश के ऊंचे स्थानों पर चलता है’
21, 22. किस अर्थ में यहोवा ने आत्मिक इस्राएल को “देश के ऊंचे स्थानों पर” चलने की आशीष दी है?
21 सब्त के दिन का जो सिद्धांत मसीहियों पर लागू होता है, उसे अभिषिक्त जन सन् 1919 में बड़े बाबुल की बंधुआई से छुड़ाए जाने के बाद से वफादारी से मानते आ रहे हैं। इसलिए यहोवा ने उन्हें ‘पृथ्वी के ऊंचे स्थानों पर’ चलने दिया है। किस मायने में? सा.यु.पू. 1513 में यहोवा ने इब्राहीम के वंशजों से एक वाचा बाँधी थी कि अगर वे उसके आज्ञाकारी बने रहें, तो वे याजकों का राज्य और एक पवित्र जाति ठहरेंगे। (निर्गमन 19:5,6) चालीस साल, वीराने से गुज़रते वक्त, यहोवा इस्राएलियों को ऐसे हिफाज़त से ले गया जैसे एक उकाब अपने बच्चों को ले जाता है। यहोवा ने उनकी ज़रूरतें पूरी करने के लिए ढेरों इंतज़ाम किए। (व्यवस्थाविवरण 32:10-12) लेकिन इस जाति ने विश्वास की कमी दिखायी और आखिरकार वह उन सारी आशीषों से हाथ धो बैठी जो उसे मिल सकती थीं। इसके बावजूद, यहोवा के पास आज भी याजकों से बना एक राज्य है। यह परमेश्वर का आत्मिक इस्राएल है।—गलतियों 6:16; 1 पतरस 2:9.
22 ‘अन्त के समय में’ इस आत्मिक जाति ने वह काम किया है जिसे करने में प्राचीन इस्राएल नाकाम रहा। आत्मिक इस्राएल के सदस्यों ने यहोवा पर पूरा विश्वास रखा है। (दानिय्येल 8:17) और जब वे यहोवा के ऊँचे स्तरों और मार्गों को सख्ती से मानते हैं तो आध्यात्मिक अर्थ में यहोवा उनको ऊँचा उठाता है। (नीतिवचन 4:4,5,8; प्रकाशितवाक्य 11:12) वे अपने चारों तरफ की अशुद्धता से बचे रहकर एक ऊँचे दर्जे की ज़िंदगी का आनंद लेते हैं। वे अपनी मरज़ी पर चलने के बजाय “यहोवा [और उसके वचन] में मग्न” रहते हैं। (भजन 37:4, NHT) संसार ने उनका कड़ा-से-कड़ा विरोध किया, इसके बावजूद यहोवा ने उन्हें आध्यात्मिक तौर पर सुरक्षित रखा। सन् 1919 से कोई भी उनके आत्मिक “देश” पर चढ़ाई करने में कामयाब नहीं हुआ है। (यशायाह 66:8) वे आज भी यहोवा का महान नाम धारण करनेवाले लोग हैं जिसका वे दुनिया भर में खुशी-खुशी ऐलान करते हैं। (व्यवस्थाविवरण 32:3; प्रेरितों 15:14) इसके अलावा, सभी जातियों से बड़ी तादाद में नम्र लोग उनके साथ मिलकर यहोवा के मार्गों के बारे में सीखने और उसके पथों पर चलने का शानदार मौका पा रहे हैं।
23. यहोवा ने अपने अभिषिक्त सेवकों को ‘याकूब की विरासत में से खाने’ का मौका कैसे दिया है?
23 यहोवा ने अपने अभिषिक्त सेवकों को ‘याकूब की विरासत में से खाने’ का मौका दिया है। जब कुलपिता इसहाक ने एसाव के बजाय याकूब को आशीष दी, तो उसने उन सभी लोगों के लिए आशीषें मिलने की भविष्यवाणी की जो इब्राहीम के वादा किए गए वंश पर विश्वास करते। (उत्पत्ति 27:27-29; गलतियों 3:16,17) अभिषिक्त मसीही और उनके साथी, एसाव की तरह नहीं बल्कि याकूब की तरह हैं। वे ‘पवित्र चीज़ों की कदर करते हैं,’ खासकर उस आध्यात्मिक भोजन की जो यहोवा बहुतायत में देता है। (इब्रानियों 12:16,17, NW; मत्ती 4:4) इस आध्यात्मिक भोजन में इस बात का ज्ञान भी शामिल है कि यहोवा वादा किए गए अपने वंश और वंश के साथियों के ज़रिए आज कौन-सा काम पूरा करवा रहा है। यह आध्यात्मिक भोजन अभिषिक्तों को मज़बूत करता है और उन्हें ऐसी नयी शक्ति देता है जो उनकी आध्यात्मिक ज़िंदगी के लिए बेहद ज़रूरी है। इसलिए उनको परमेश्वर का वचन पढ़ने और उस पर मनन करने के ज़रिए लगातार आध्यात्मिक भोजन लेते रहना चाहिए। (भजन 1:1-3) उनके लिए मसीही सभाओं में जाकर अपने भाई-बहनों से मिलना-जुलना निहायत ज़रूरी है। और उन्हें शुद्ध उपासना के ऊँचे स्तरों को मानने के साथ-साथ खुशी-खुशी दूसरों को भी आध्यात्मिक भोजन देना चाहिए।
24. आज सच्चे मसीही कैसा आचरण बनाए रखते हैं?
24 ऐसा हो कि सच्चे मसीही यहोवा के वादों के पूरा होने का बेसब्री से इंतज़ार करने के साथ-साथ हर तरह के कपट से दूर रहने की लगातार कोशिश करते रहें। और ‘याकूब की विरासत में से’ खाने के ज़रिए वे “देश के ऊंचे स्थानों पर” हमेशा आध्यात्मिक सुरक्षा का आनंद लेते रहें।
[फुटनोट]
^ पैरा. 9 यहोवा ने लोगों के लिए यह इंतज़ाम किया था कि उनमें अगर कोई भारी कर्ज़ में पड़ जाए तो वह गुलामी करने के लिए खुद को बेच सकता था ताकि वह मज़दूर बनकर अपना कर्ज़ चुका सके। (लैव्यव्यवस्था 25:39-43) लेकिन व्यवस्था में यह नियम भी दिया गया था कि दासों के साथ अच्छा सलूक किया जाना चाहिए। जिन दासों के साथ कठोरता से व्यवहार किया जाता था, उन्हें गुलामी से रिहा कर देने की आज्ञा थी।—निर्गमन 21:2,3,26,27; व्यवस्थाविवरण 15:12-15.
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 278 पर तसवीर]
यहूदी उपवास करते और सिर झुकाकर पश्चाताप करने का ढोंग करते—मगर अपने तौर-तरीके नहीं बदलते थे
[पेज 283 पर तसवीर]
जो धनी थे, उन्हें ज़रूरतमंद लोगों को रोटी, कपड़ा और दूसरी चीज़ें देकर उनकी मदद करनी थी
[पेज 286 पर तसवीर]
अगर यहूदा पश्चाताप करेगा, तो वह अपने उजाड़ पड़े शहरों को दोबारा बसा पाएगा