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निराश कैदियों के लिए आशा का संदेश

निराश कैदियों के लिए आशा का संदेश

सोलहवाँ अध्याय

निराश कैदियों के लिए आशा का संदेश

यशायाह 55:1-13

1. बताइए कि बाबुल की कैद में पड़े यहूदियों की हालत कैसी थी।

यहूदा देश के इतिहास में यह सबसे बुरा वक्‍त था। परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों को अपने वतन से खदेड़कर बाबुल ले जाया गया था जहाँ वे अब कैदियों की ज़िंदगी जी रहे थे। यह सच है कि उन्हें कुछ हद तक एक आम ज़िंदगी जीने की आज़ादी थी। (यिर्मयाह 29:4-7) कुछ इस्राएलियों ने तरह-तरह के पेशों में हुनर हासिल किया या फिर व्यापार करने लगे थे। * (नहेमायाह 3:8,31,32) फिर भी, इन यहूदी कैदियों की ज़िंदगी इतनी आसान नहीं थी। वे शारीरिक और आध्यात्मिक, दोनों मायनों में कैद में थे। कैसे? आइए देखें।

2, 3. जब यहूदियों को बंदी बनाया गया तो यहोवा की उपासना पर क्या असर पड़ा?

2 सामान्य युग पूर्व 607 में बाबुल की सेना ने यरूशलेम का विनाश करके ना सिर्फ एक राज्य का अंत कर दिया, बल्कि सच्ची उपासना पर भी ज़बरदस्त प्रहार किया। उन्होंने यहोवा के मंदिर को लूटकर उसे तबाह कर दिया। और लेवी गोत्र के कुछ लोगों को बंदी बनाकर ले गए और बाकियों को मौत के घाट उतार दिया, इस तरह उन्होंने याजकों की व्यवस्था को नकारा कर दिया। यहूदियों के पास कुछ नहीं बचा, ना तो उपासना के लिए भवन, ना वेदी और ना ही याजकों का इंतज़ाम। इसलिए व्यवस्था के मुताबिक, उनके लिए सच्चे परमेश्‍वर को बलिदान चढ़ाना नामुमकिन हो गया।

3 मगर इन मुश्‍किलों के बावजूद वफादार यहूदी, यहोवा के उपासक होने की अपनी पहचान बरकरार रख सकते थे। वे खतने का नियम मान सकते थे और जहाँ तक हो सकता था, व्यवस्था का पालन कर सकते थे। मिसाल के लिए, वे उस खाने से परहेज़ कर सकते थे जिस पर व्यवस्था में मनाही थी और वे सब्त मना सकते थे। लेकिन ऐसा करते वक्‍त, उन्हें बाबुलियों के ताने भी सहने पड़े होंगे जिनकी नज़रों में यहूदियों की धार्मिक रस्में बड़ी मूर्खता थीं। यहूदी बंधुए कितने निराश थे, यह भजनहार के इन शब्दों से देखा जा सकता है: “बाबुल की नहरों के किनारे हम लोग बैठ गए, और सिय्योन को स्मरण करके रो पड़े। उसके बीच के मजनू वृक्षों पर हम ने अपनी वीणाओं को टांग दिया; क्योंकि जो हम को बन्धुए करके ले गए थे, उन्होंने वहां हम से गीत गवाना चाहा, और हमारे रुलानेवालों ने हम से आनन्द चाहकर कहा, सिय्योन के गीतों में से हमारे लिये कोई गीत गाओ!”—भजन 137:1-3.

4. यहूदियों का दूसरी जातियों से उद्धार की उम्मीद करना क्यों व्यर्थ था, लेकिन वे मदद के लिए किसके पास जा सकते थे?

4 तो फिर, यहूदी बंधुए सांत्वना के लिए किसके पास जाते? कौन उनका उद्धार करता? आस-पड़ोस की किसी जाति से मदद पाने की तो उम्मीद भी नहीं की जा सकती थी! वे सभी बाबुल की सेना के सामने लाचार थीं और उनमें से कई तो यहूदियों की दुश्‍मन थीं। लेकिन यहूदियों के लिए एक उम्मीद बाकी है। यहोवा दया दिखाते हुए उनकी मदद करने का वादा करता है। हालाँकि जब वे अपने देश में थे और आज़ाद थे उन्होंने उसके खिलाफ बगावत की थी लेकिन बंधुआई में पड़ने के बाद भी यहोवा उन पर रहम खाते हुए उन्हें एक प्यार भरा न्यौता देता है।

“पानी के पास आओ”

5. “पानी के पास आओ,” इन शब्दों में क्या गहरा अर्थ छिपा है?

5 यहोवा, भविष्यवाणी में यशायाह के ज़रिए यहूदी बंधुओं से कहता है: “अहो सब प्यासे लोगो, पानी के पास आओ; और जिनके पास रुपया न हो, तुम भी आकर मोल लो और खाओ! दाखमधु और दूध बिन रुपए और बिना दाम ही आकर ले लो।” (यशायाह 55:1) इन शब्दों में गहरा आध्यात्मिक अर्थ छिपा हुआ है। मिसाल के लिए, “पानी के पास आओ,” इस न्यौते पर ज़रा गौर करें। पानी के बगैर जीवन नहीं चल सकता। पानी जैसी नायाब चीज़ के बिना इंसान ज़्यादा-से-ज़्यादा एक हफ्ते जी सकता है। इसलिए यहोवा का यह उपमा देना बिलकुल सही है, क्योंकि उसके संदेश का यहूदी बंधुओं पर ऐसा ही असर होगा जैसा गर्मी के मौसम में ठंडे पानी का होता है। वे तरो-ताज़ा महसूस करेंगे। उसका संदेश सच्चाई और धार्मिकता के लिए उनकी प्यास बुझाकर उनके उदास मन को आनंद से भर देगा। यह उनके मन को बंधुआई से आज़ाद होने की उम्मीद से भर देगा। लेकिन, परमेश्‍वर के संदेश से लाभ पाने के लिए, उन्हें इससे अपनी प्यास बुझानी होगी, उस पर ध्यान देना होगा और उसके मुताबिक काम करना होगा।

6. “दाखमधु और दूध” खरीदने से यहूदियों को क्या फायदा होगा?

6 यहोवा यह भी कहता है कि वह उन्हें “दाखमधु और दूध” देगा। दूध से बच्चों के शरीर को ताकत मिलती है और यह उन्हें बढ़ने में मदद देता है। उसी तरह, यहोवा के शब्दों से उसके लोगों को आध्यात्मिक ताकत मिलेगी ताकि वे यहोवा के साथ अपने रिश्‍ते को मज़बूत कर पाएँ। और दाखमधु का क्या? दाखमधु का इस्तेमाल ज़्यादातर पर्वों जैसे खुशी के मौकों पर किया जाता है। बाइबल में अकसर दाखमधु का नाता खुशहाली और आनंद मनाने के साथ जोड़ा गया है। (भजन 104:15) अपने लोगों को ‘दाखमधु मोल लेने’ के लिए कहकर यहोवा, उन्हें आश्‍वासन दे रहा है कि अगर वे दोबारा पूरे तन-मन से सच्ची उपासना करने लगेंगे तो वे ‘पूर्ण रूप से आनन्दित होंगे।’ (NHT)—व्यवस्थाविवरण 16:15; भजन 19:8; नीतिवचन 10:22.

7. क्यों कहा जा सकता है कि बंधुओं पर यहोवा की अपार दया है, और यह हमें उसके बारे में क्या सिखाता है?

7 यहोवा की कितनी बड़ी दया है कि उसने यहूदी बंधुओं के सामने ऐसी आध्यात्मिक ताज़गी की पेशकश रखी! और जब हम याद करते हैं कि कैसे यहूदी बार-बार यहोवा से विद्रोह करके उसके मार्गों से दूर चले गए, तो हमें वाकई यहूदियों पर यहोवा की अपार दया का एहसास होता है। देखा जाए तो वे यहोवा का अनुग्रह पाने के लायक हैं ही नहीं। मगर जैसा सदियों पहले भजनहार दाऊद ने लिखा, “यहोवा दयालु और अनुग्रहकारी, विलम्ब से कोप करनेवाला और अति करुणामय है। वह सर्वदा वादविवाद करता न रहेगा, न उसका क्रोध सदा के लिये भड़का रहेगा।” (भजन 103:8,9) इसलिए अपने लोगों से नाता तोड़ लेने के बजाय यहोवा, खुद उनसे मेल-मिलाप करने के लिए पहला कदम उठाता है। सचमुच, वह “करुणा से प्रीति” रखनेवाला परमेश्‍वर है।—मीका 7:18.

भरोसा जो गलत साबित हुआ

8. यहूदियों को क्या चेतावनी दी गयी थी, फिर भी बहुतों ने किस पर भरोसा रखा?

8 बहुत-से यहूदियों ने उद्धार के लिए अब तक यहोवा पर पूरा भरोसा नहीं रखा है। उदाहरण के लिए, यरूशलेम के विनाश से पहले उसके राजाओं ने मिस्र और बाबुल जैसे ताकतवर देशों से मदद माँगी और इस तरह उनके साथ आध्यात्मिक अर्थ में व्यभिचार किया। (यहेजकेल 16:26-29; 23:14) इसलिए यिर्मयाह का उन्हें यह चेतावनी देना वाजिब था: “स्रापित है वह पुरुष जो मनुष्य पर भरोसा रखता है, और उसका सहारा लेता है, जिसका मन यहोवा से भटक जाता है।” (यिर्मयाह 17:5) इस चेतावनी के बावजूद, परमेश्‍वर के लोगों ने ठीक वही किया जो उन्हें नहीं करना था!

9. किस तरह शायद बहुत-से यहूदी, ‘जो रोटी नहीं है उसके लिए रुपया गंवा रहे थे’?

9 यहूदियों ने जिन देशों पर भरोसा रखा था, उन्हीं में से एक देश के अब वे बंदी बन गए हैं। मगर क्या उन्होंने अपनी गलती से सबक सीखा है? शायद कई लोगों ने नहीं सीखा, तभी तो यहोवा उनसे पूछता है: “जो रोटी नहीं है उसके लिए रुपया और जिस से पेट नहीं भरता उसके लिए अपनी शक्‍ति क्यों गंवाते हो?” (यशायाह 55:2क, NHT) अगर यहूदी बंधुए, यहोवा को छोड़ किसी और पर भरोसा रखते हैं तो दरअसल ‘जो रोटी नहीं है उसके लिए वे रुपया गंवा रहे हैं।’ वे बाबुल से छुटकारा पाने की उम्मीद नहीं कर सकते, क्योंकि बाबुल की एक नीति यह है कि वह अपने बंधुओं को कभी उनके वतन लौटने नहीं देता। कहने को तो बाबुल एक विश्‍वशक्‍ति है, उसमें दौलत और झूठी उपासना की चमक-दमक भी है, मगर इनसे उन यहूदियों को कोई फायदा नहीं होनेवाला।

10. (क) अगर यहूदी बंधुए, यहोवा की सुनेंगे तो वह उन्हें क्या प्रतिफल देगा? (ख) यहोवा ने दाऊद के साथ क्या वाचा बाँधी थी?

10 यहोवा अपने लोगों से मिन्‍नत करता है: “ध्यान से मेरी सुनो, और जो उत्तम है उसे खाओ, तथा बहुतायत से पाकर आनन्दित हो जाओ। कान लगाओ और मेरे पास आओ। सुनो, जिस से कि तुम जीवित रह सको; और मैं दाऊद पर की गई अटल करुणा के अनुसार तुम्हारे साथ सदा की वाचा बांधूंगा।” (यशायाह 55:2ख,3, NHT) आध्यात्मिक रूप से भूखे-प्यासे इन लोगों का आखिरी सहारा सिर्फ यहोवा है जो यशायाह की इस भविष्यवाणी के ज़रिए उनसे बात कर रहा है। दरअसल उनकी ज़िंदगी इसी बात पर निर्भर करती है कि वे परमेश्‍वर का संदेश सुनें, क्योंकि यहोवा कहता है कि ऐसा करने से वे ‘जीवित रहेंगे।’ लेकिन यह “सदा की वाचा” क्या है जो यहोवा अपने सुननेवालों के साथ बाँधेगा? यह वाचा, “दाऊद पर की गई अटल करुणा के अनुसार” है। सदियों पहले, यहोवा ने दाऊद से प्रतिज्ञा की थी कि उसकी राजगद्दी “सदैव बनी रहेगी।” (2 शमूएल 7:16) इसलिए यहाँ बतायी गयी “सदा की वाचा” का ताल्लुक शासन से है।

अनंतकाल के राज्य का सनातन वारिस

11. बाबुल में रहनेवाले यहूदियों को दाऊद से किया गया परमेश्‍वर का वादा, शायद दूर की बात क्यों लगे?

11 यहूदी बंधुओं को शायद यह दूर की बात लगे कि दाऊद के वंशजों को शासन करने का अधिकार मिलेगा। आखिर उनका देश, उनकी आज़ादी सबकुछ लुट गया था! मगर उनकी यह हालत हमेशा ऐसी नहीं रहेगी। यहोवा, दाऊद के साथ अपनी वाचा को नहीं भूला है। इंसान के लिए यह बात चाहे कितनी ही अनहोनी क्यों न लगे, मगर दाऊद के वंश को अनंतकाल का राज्य देने का परमेश्‍वर का उद्देश्‍य ज़रूर पूरा होगा। लेकिन यह कब और कैसे होगा? सा.यु.पू. 537 में, यहोवा अपने लोगों को बाबुल की कैद से छुड़ाकर उन्हें अपने देश वापस ले आता है। क्या उस वक्‍त अनंतकाल का राज्य स्थापित हो गया? जी नहीं, क्योंकि उसके बाद भी उन पर एक गैर-यहूदी साम्राज्य, मादी-फारस की हुकूमत चलती रही। उस वक्‍त अन्यजातियों का “ठहराया हुआ समय” अभी खत्म नहीं हुआ था। (लूका 21:24, NW) इस्राएल का अपना कोई राजा नहीं था, इसलिए दाऊद से किया गया यहोवा का वादा आनेवाली कई सदियों तक पूरा नहीं होता।

12. दाऊद के साथ बाँधी राज्य वाचा पूरी करने के लिए यहोवा ने क्या कदम उठाया?

12 बाबुल से इस्राएलियों को छूटे 500 साल से ऊपर हो चुके थे, तब यहोवा ने राज्य वाचा को पूरा करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया। उसने अपनी सबसे पहली सृष्टि यानी स्वर्गीय महिमा में रहनेवाले अपने पहिलौठे पुत्र का जीवन, पृथ्वी पर यहूदी कुँवारी मरियम के गर्भ में डाला। (कुलुस्सियों 1:15-17) इस घटना की खबर पहुँचाते वक्‍त, यहोवा के स्वर्गदूत ने मरियम से कहा: “वह महान होगा; और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा; और प्रभु परमेश्‍वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उस को देगा। और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा।” (लूका 1:32,33) तो यीशु का जन्म, दाऊद के राजवंश में हुआ और उसे विरासत में राज्याधिकार मिला। यीशु, सिंहासन पर विराजमान होने के बाद से “सर्वदा के लिये” राज्य करता है। (यशायाह 9:7; दानिय्येल 7:14) इस तरह, सदियों पहले यहोवा ने राजा दाऊद से एक सनातन वारिस देने का जो वादा किया था, उसका अब पूरा होना मुमकिन हुआ।

‘राज्य राज्य के लोगों को आज्ञा देनेवाला’

13. पृथ्वी पर अपनी सेवकाई के दौरान और स्वर्ग जाने के बाद भी यीशु कैसे “राज्य राज्य के लोगों के लिये साक्षी” बना रहा?

13 भविष्य में आनेवाला यह राजा क्या करेगा? यहोवा इसका जवाब देता है: “सुनो, मैं ने उसको राज्य राज्य के लोगों के लिये साक्षी और प्रधान और आज्ञा देनेवाला ठहराया है।” (यशायाह 55:4) जब यीशु बड़ा हुआ तो वह पृथ्वी पर यहोवा का प्रतिनिधि और जातियों के लिए उसका साक्षी ठहरा। धरती पर अपने जीवनकाल में उसने खासकर “इस्राएल के घराने . . . की खोई हुई भेड़ों” को प्रचार किया। लेकिन, स्वर्ग जाने से कुछ ही समय पहले उसने अपने अनुयायियों से कहा: “इसलिये तुम जाकर सब जातियों के लोगों को चेला बनाओ . . . देखो, मैं जगत के अन्त तक सदैव तुम्हारे संग हूं।” (मत्ती 10:5,6; 15:24; 28:19,20) इसलिए वक्‍त आने पर राज्य का संदेश गैर-यहूदियों तक भी पहुँचाया गया और उनमें से कुछ लोग दाऊद के साथ बाँधी गयी वाचा की पूर्ति में भागीदार हुए। (प्रेरितों 13:46) इस तरह, यीशु अपनी मृत्यु, पुनरुत्थान और स्वर्ग जाने के बाद भी “राज्य राज्य के लोगों के लिये [यहोवा का] साक्षी” बना रहा।

14, 15. (क) यीशु ने खुद को एक “प्रधान और आज्ञा देनेवाला” कैसे साबित किया? (ख) पहली सदी के मसीहियों को क्या आशा मिली?

14 यीशु को एक “प्रधान और आज्ञा देनेवाला” भी होना था। इस भविष्यवाणी में बतायी गयी यह भूमिका निभाने के लिए, यीशु ने पृथ्वी पर मुखियापन की ज़िम्मेदारियाँ खुशी-खुशी स्वीकार कीं और हर मामले में अगुवाई की। इस वजह से भीड़-की-भीड़ उसके पीछे हो ली और उसने उन्हें सच्चाई सिखायी और यह ज़ाहिर किया कि जो उसकी अगुवाई में चलेंगे उन्हें क्या लाभ होगा। (मत्ती 4:24; 7:28,29; 11:5) उसने अपने चेलों को बेहतरीन ट्रेनिंग दी ताकि वे भविष्य में प्रचार काम की ज़िम्मेदारी सँभालने के काबिल बन सकें। (लूका 10:1-12; प्रेरितों 1:8; कुलुस्सियों 1:23) साढ़े तीन साल के अंदर ही, यीशु ने एकता में बंधी एक अंतर्राष्ट्रीय कलीसिया की बुनियाद डाली जिसमें अलग-अलग जातियों से हज़ारों लोग होते! इतना भारी काम सिर्फ एक सच्चा “प्रधान और आज्ञा देनेवाला” ही पूरा कर सकता था। *

15 पहली सदी में जो मसीही कलीसिया में इकट्ठे किए गए, उनका परमेश्‍वर की पवित्र आत्मा से अभिषेक किया गया जिससे उन्हें स्वर्गीय राज्य में यीशु के साथी राजा बनने की आशा मिली। (प्रकाशितवाक्य 14:1) लेकिन यशायाह की भविष्यवाणी सिर्फ पहली सदी के मसीहियों के बारे में ही नहीं बल्कि उससे आगे के दिनों की बात कर रही थी। सबूत दिखाते हैं कि यीशु मसीह ने 1914 में ही परमेश्‍वर के राज्य का राजा बनकर शासन शुरू किया। उसके कुछ ही समय बाद, पृथ्वी पर अभिषिक्‍त मसीहियों के बीच ऐसी स्थिति पैदा हुई जैसी सा.यु.पू. छठी सदी में यहूदी बंधुओं की थी। दरअसल, उन मसीहियों के साथ जो हुआ वह यशायाह की भविष्यवाणी की बड़े पैमाने पर पूर्ति थी।

आज के ज़माने में बंधुआई और रिहाई

16. सन्‌ 1914 में यीशु के राजा बनने के बाद कौन-सा संकट टूट पड़ा?

16 सन्‌ 1914 में जब यीशु राजा बना, तब उसने शैतान और बाकी दुष्ट आत्मिक प्राणियों को स्वर्ग से खदेड़ दिया। इसलिए तब से पूरी दुनिया पर ऐसा संकट टूट पड़ा जैसा पहले कभी नहीं हुआ था। अब शैतान का ज़ोर सिर्फ पृथ्वी पर चल सकता था, इसलिए उसने शेष पवित्र जनों यानी बचे हुए अभिषिक्‍त मसीहियों के खिलाफ जंग छेड़ दी। (प्रकाशितवाक्य 12:7-12,17) और आखिरकार 1918 में उसने इतना ज़बरदस्त हमला किया कि प्रचार का काम लगभग ठप्प पड़ गया और वॉच टावर संस्था के ज़िम्मेदार अफसरों को देशद्रोह के झूठे इलज़ाम पर जेल की सज़ा हो गयी। इस तरह, जैसे प्राचीन समय में यहूदी, बाबुल की बंधुआई में चले गए थे वैसे ही हमारे समय में यहोवा के सेवक, आध्यात्मिक बंधुआई में चले गए। इससे उनकी कितनी बदनामी हुई।

17. सन्‌ 1919 में अभिषिक्‍तों के हालात में कैसे बदलाव आया, और तब उन्हें कैसे मज़बूत किया गया?

17 लेकिन, परमेश्‍वर के अभिषिक्‍त सेवकों को ज़्यादा समय तक बंधुआई में नहीं रहना पड़ा। मार्च 26,1919 को संस्था के उन ज़िम्मेदार भाइयों को रिहा किया गया और बाद में उन्हें सभी इलज़ामों से बाइज़्ज़त बरी कर दिया गया। यहोवा ने अपने छुड़ाए हुए इन लोगों पर पवित्र आत्मा उंडेली और उस काम के लिए उनमें जोश भर दिया जो उन्हें अब करना था। उन्होंने ‘जीवन का जल सेंतमेंत लेने’ का न्यौता खुशी-खुशी स्वीकार किया। (प्रकाशितवाक्य 22:17) साथ ही, उन्होंने “दाखमधु और दूध बिन रुपए और बिना दाम” मोल लिया। इस तरह उन्हें बहुत जल्द होनेवाली बेमिसाल बढ़ोतरी के लिए आध्यात्मिक रूप से मज़बूत किया गया। यह ऐसी बढ़ोतरी थी जिसका शेष अभिषिक्‍त जनों ने कभी अंदाज़ा नहीं लगाया था।

एक बड़ी भीड़, परमेश्‍वर के अभिषिक्‍तों के पास दौड़ी चली आती है

18. यीशु मसीह के चेलों में कौन-से दो समूह हैं, और वे मिलकर आज क्या बनते हैं?

18 यीशु के चेलों में दो समूह हैं और भविष्य के लिए उनकी आशा अलग-अलग है। पहला समूह, 1,44,000 अभिषिक्‍त मसीहियों से बना ‘छोटा झुण्ड’ है जिसे इकट्ठा किया जा चुका है। ये अभिषिक्‍त मसीही, यहूदी और गैर-यहूदी जातियों से निकला ‘परमेश्‍वर का इस्राएल’ हैं और उन्हें स्वर्गीय राज्य में यीशु के साथ राज करने की आशा है। (लूका 12:32; गलतियों 6:16; प्रकाशितवाक्य 14:1) दूसरा समूह, ‘अन्य भेड़ों’ की “बड़ी भीड़” है जो इन अंतिम दिनों में प्रकट हुई है। उन्हें धरती पर फिरदौस में हमेशा जीने की आशा है। इस भीड़ की संख्या कितनी होगी यह बताया नहीं गया। बड़े क्लेश के शुरू होने से पहले, ये लोग छोटे झुंड के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर सेवा कर रहे हैं जिससे दोनों समूह मिलकर, ‘एक ही चरवाहे’ के अधीन ‘एक झुंड’ बनते हैं।—यूहन्‍ना 10:16, NW; प्रकाशितवाक्य 7:9,10.

19. परमेश्‍वर के इस्राएल के बुलावे को एक ऐसी “जाति” ने कैसे स्वीकार किया जिसको वह पहले नहीं जानता था?

19 इस बड़ी भीड़ के इकट्ठा किए जाने की समझ हमें यशायाह की भविष्यवाणी के इन शब्दों से मिलती है: “सुन, तू ऐसी जाति को जिसे तू नहीं जानता बुलाएगा, और ऐसी जातियां जो तुझे नहीं जानतीं तेरे पास दौड़ी आएंगी, वे तेरे परमेश्‍वर यहोवा और इस्राएल के पवित्र के निमित्त यह करेंगी, क्योंकि उस ने तुझे शोभायमान किया है।” (यशायाह 55:5) आध्यात्मिक बंधुआई से रिहा होने के बाद के सालों में, शेष अभिषिक्‍त जन पहले इस बात से अनजान थे कि हरमगिदोन से पहले वे एक बड़ी “जाति” को यहोवा की उपासना की ओर बुलाने में खास भूमिका अदा करेंगे। लेकिन, जैसे-जैसे वक्‍त गुज़रता गया अभिषिक्‍तों के साथ ऐसे कई नेकदिल इंसान संगति करने लगे जिन्हें स्वर्ग जाने की आशा नहीं थी। इन नए लोगों में भी यहोवा की सेवा के लिए वैसा ही जोश था जैसा अभिषिक्‍तों में था। उन्होंने परमेश्‍वर के लोगों की आध्यात्मिक शोभा देखी और यह जान लिया कि यहोवा वाकई उनके साथ है। (जकर्याह 8:23) फिर 1930 के दशक में, अभिषिक्‍त इस समूह की सही-सही पहचान कर पाए जिसकी संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी। तब उन्होंने समझ लिया कि बड़े पैमाने पर लोगों को इकट्ठा किए जाने का बड़ा काम अभी बाकी है। परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों के साथ संगति करने के लिए बड़ी भीड़ दौड़ी चली आ रही थी और ऐसा करने का एक वाजिब कारण भी था।

20. (क) हमारे दिनों में जल्द-से-जल्द ‘यहोवा की खोज करना’ क्यों बेहद ज़रूरी है, और यह कैसे किया जा सकता है? (ख) जो लोग यहोवा की खोज करेंगे, उनके साथ वह कैसा व्यवहार करेगा?

20 यशायाह के दिनों में यह पुकार लगायी गयी: “जब तक यहोवा मिल सकता है तब तक उसकी खोज में रहो, जब तक वह निकट है तब तक उसे पुकारो।” (यशायाह 55:6) हमारे दिनों में ये शब्द, परमेश्‍वर के इस्राएल और बड़ी भीड़, दोनों समूहों के लिए हैं। यहोवा की आशीष बिना शर्तें पूरी किए नहीं मिलती, ना ही यहोवा हमेशा तक लोगों को मौका देता रहेगा। परमेश्‍वर का अनुग्रह पाने का यही वक्‍त है। जब यहोवा की न्याय करने की घड़ी आएगी, तब बहुत देर हो चुकी होगी। इसीलिए यशायाह कहता है: “दुष्ट अपनी चालचलन और अनर्थकारी अपने सोच विचार छोड़कर यहोवा ही की ओर फिरे, वह उस पर दया करेगा, वह हमारे परमेश्‍वर की ओर फिरे और वह पूरी रीति से उसको क्षमा करेगा।”—यशायाह 55:7.

21. इस्राएलियों के पुरखों ने जो संकल्प किया था, उसमें यह जाति कैसे विश्‍वासघाती निकली?

21 शब्द, “यहोवा ही की ओर फिरे” दिखाते हैं कि जिन लोगों को पश्‍चाताप करने की ज़रूरत है, उनका परमेश्‍वर के साथ पहले एक रिश्‍ता था। ये शब्द हमें इस बात की भी याद दिलाते हैं कि यशायाह की इस भविष्यवाणी की कई बातें पहले बाबुल में कैद यहूदियों पर पूरी हुईं। सदियों पहले इन कैदियों के पुरखों ने संकल्प किया था कि वे सिर्फ यहोवा की आज्ञा मानेंगे। उन्होंने कहा: “जहाँ तक हमारी बात है, दूसरे देवताओं की सेवा करने के लिए यहोवा को छोड़ देने की बात हम कभी सोच भी नहीं सकते।” (यहोशू 24:16, NW) लेकिन, इतिहास गवाह है कि जिस बारे में यह जाति ‘कभी सोच भी नहीं सकती’ थी, वही काम उसने बार-बार किया! परमेश्‍वर के लोगों ने उस पर पूरा भरोसा नहीं रखा इसी वजह से अब वे बाबुल की बंधुआई में हैं।

22. यहोवा क्यों कहता है कि उसके विचार इंसानों के विचार से और उसकी गति इंसानों की गति से कहीं ऊँची है?

22 अगर वे पश्‍चाताप दिखाएँगे तो इसका नतीजा क्या होगा? यशायाह के ज़रिए यहोवा वादा करता है कि वह ‘पूरी रीति से उनको क्षमा करेगा।’ वह आगे कहता है: “मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं हैं, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है। क्योंकि [जैसे] आकाश पृथ्वी से ऊंचा है वैसे ही मेरी गति तुम्हारी गति से और मेरे सोच विचार तुम्हारे सोच विचारों से ऊंचे हैं।” (यशायाह 55:8,9, फुटनोट) यहोवा सिद्ध है और उसके विचार और उसकी गति इतने ऊँचे हैं कि इंसान उन तक पहुँच नहीं सकता। यहोवा की दया भी इतनी अपार है कि इंसान उसकी बराबरी नहीं कर सकता। ऐसा हम क्यों कहते हैं? इसकी एक मिसाल पर गौर कीजिए कि जब हम किसी को माफ करते हैं, तो यह एक पापी के दूसरे पापी को माफ करने की बात होती है। हम जानते हैं कि आज नहीं तो कल हमें भी किसी की माफी की ज़रूरत पड़ेगी। (मत्ती 6:12) मगर यहोवा को किसी की माफी की ज़रूरत नहीं है, इसके बावजूद वह दूसरों को ‘पूरी रीति से क्षमा’ करता है! सचमुच, प्यार और दया दिखाने में उसका कोई सानी नहीं! और उसकी इस दया की वजह से, जो लोग सच्चे दिल से उसके पास लौट आते हैं, उन पर यहोवा आकाश के झरोखे खोलकर अपरम्पार आशीषें बरसाता है।—मलाकी 3:10.

यहोवा के पास लौटनेवालों के लिए आशीषें

23. यहोवा कौन-सा उदाहरण देकर समझाता है कि उसका वादा हर हाल में पूरा होगा?

23 यहोवा अपने लोगों से वादा करता है: “जिस प्रकार से वर्षा और हिम आकाश से गिरते हैं और वहां यों ही लौट नहीं जाते, वरन भूमि पर पड़कर उपज उपजाते हैं जिस से बोनेवाले को बीज और खानेवाले को रोटी मिलती है, उसी प्रकार से मेरा वचन भी होगा जो मेरे मुख से निकलता है; वह व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु, जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा, और जिस काम के लिये मैं ने उसको भेजा है उसे वह सुफल करेगा।” (यशायाह 55:10,11) यहोवा के मुँह से निकली हर बात पूरी होकर रहती है। जिस तरह आकाश से गिरनेवाली बारिश और बर्फ, ज़मीन को सींचकर फल पैदा करने का अपना मकसद पूरा करती है, ठीक उसी तरह यहोवा के मुख से निकलनेवाला हर वचन पूरी तरह भरोसेमंद है। यहोवा का वादा पत्थर की लकीर है, वह हर हाल में पूरा होगा।—गिनती 23:19.

24, 25. यशायाह के ज़रिए यहोवा के संदेश को माननेवाले यहूदी बंधुओं को कौन-सी आशीषें मिलेंगी?

24 इसलिए अगर यहूदी, यशायाह की भविष्यवाणी में उनको कहे गए शब्दों पर अमल करें, तो यहोवा के वादे के मुताबिक उनका उद्धार ज़रूर होगा। तब उनके जीवन में खुशियाँ-ही-खुशियाँ होंगी। यहोवा कहता है: “तुम आनन्द के साथ निकलोगे और शान्ति के साथ तुम्हारी अगुवाई की जाएगी। तुम्हारे आगे आगे पर्वत और पहाड़ियां गला खोलकर जयजयकार करेंगी, और मैदान के सब वृक्ष आनन्द के मारे ताली बजाएंगे। तब कंटीली झाड़ियों के स्थान पर सनौवर उगेंगे; बिच्छू-पौधों के स्थान पर मेंहदी उगेगी; और इस कार्य से यहोवा का नाम होगा। क्योंकि यह अनन्तकाल का एक चिह्न होगा जो कभी न मिटेगा।”—यशायाह 55:12,13, NHT.

25 इस भविष्यवाणी के मुताबिक, सा.यु.पू. 537 में यहूदी बंधुए वाकई आनंद मनाते हुए बाबुल से बाहर निकले। (भजन 126:1,2) यरूशलेम पहुँचने पर वे पाते हैं कि वहाँ की ज़मीन में हर तरफ कंटीली झाड़ियाँ और बिच्छू-पौधे उग आए हैं। और क्यों न हो, इस देश की ज़मीन बरसों से बंजर जो पड़ी थी। लेकिन अपने देश लौट आए परमेश्‍वर के लोग अब इसकी कायापलट कर देंगे जिससे इस देश की खोयी हुई खूबसूरती लौट आएगी। कंटीली झाड़ियों और पौधों की जगह अब वहाँ सनौवर और मेंहदी जैसे ऊँचे-ऊँचे पेड़ लगे हैं। यहोवा के लोग “गला खोलकर जयजयकार” करते हुए उसकी सेवा करते हैं, जिससे साफ नज़र आता है कि उन पर यहोवा की आशीष है। तब ऐसा लगता है मानो पूरा देश खुशी से झूम उठा है!

26. आज परमेश्‍वर के लोग कैसी खुशहाली का आनंद उठा रहे हैं?

26 सन्‌ 1919 में अभिषिक्‍त मसीहियों के शेष जनों को आध्यात्मिक कैद से छुड़ाया गया। (यशायाह 66:8) और आज वे अन्य भेड़ों की बड़ी भीड़ के साथ मिलकर, आध्यात्मिक फिरदौस में आनंद से परमेश्‍वर की सेवा कर रहे हैं। उन पर बड़े बाबुल का कोई भी दाग नहीं, यहोवा की उन पर आशीष है और इससे यहोवा ‘का नाम हुआ है।’ उनकी आध्यात्मिक खुशहाली से यहोवा के नाम की महिमा होती है और यह साबित होता है कि वह सच्ची भविष्यवाणी करनेवाला परमेश्‍वर है। यहोवा ने अपने लोगों की खातिर जो बड़े-बड़े काम किए हैं, उनसे साबित होता है कि वही सच्चा परमेश्‍वर है। वह अपने वचन का पक्का है और पश्‍चाताप दिखानेवालों पर दया करता है। हमारी यही दुआ है कि जो लोग लगातार ‘दाखमधु और दूध बिन रुपए और बिना दाम के लेते’ हैं, वे सदा तक खुशी-खुशी परमेश्‍वर की सेवा करते रहें!

[फुटनोट]

^ पैरा. 1 प्राचीन बाबुल के व्यापार दस्तावेज़ों में कई यहूदियों के नाम पाए गए हैं।

^ पैरा. 14 यीशु आज भी चेला बनाने के काम की निगरानी करता है। (प्रकाशितवाक्य 14:14-16) आज मसीही स्त्री और पुरुष, यीशु को कलीसिया का सिर मानते हैं। (1 कुरिन्थियों 11:3) और भविष्य में परमेश्‍वर के ठहराए हुए समय पर, यीशु एक और मायने में “प्रधान और आज्ञा देनेवाला” साबित होगा। वह परमेश्‍वर के दुश्‍मनों के खिलाफ, हरमगिदोन के आखिरी युद्ध में अगुवाई करेगा।—प्रकाशितवाक्य 19:19-21.

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 234 पर तसवीर]

आध्यात्मिक रूप से प्यासे यहूदियों को ‘पानी के पास आने’ और ‘दाखमधु और दूध मोल लेने’ का न्यौता दिया जाता है

[पेज 239 पर तसवीर]

यीशु ने साबित किया कि वह राज्य राज्य के लोगों के लिए “प्रधान और आज्ञा देनेवाला” है

[पेज 245 पर तसवीरें]

‘दुष्ट अपनी चालचलन छोड़ दे’