परमेश्वर का एक भविष्यवक्ता सारे जगत को उजियाला देता है
पहला अध्याय
परमेश्वर का एक भविष्यवक्ता सारे जगत को उजियाला देता है
1, 2. आज के किन हालात को देखकर बहुत-से लोग गहरी चिंता में डूबे हुए हैं?
आज हम ऐसे ज़माने में जी रहे हैं, जहाँ लगता है कि इंसान चाहे तो कुछ भी हासिल कर सकता है। अंतरिक्ष की यात्रा, कंप्यूटर टॆक्नॉलजी, जॆनॆटिक इंजीनियरिंग और दूसरी वैज्ञानिक उपलब्धियों ने इंसान के सामने प्रगति के नए-नए रास्ते खोल दिए हैं। ये सब देखकर लगने लगा है कि अब एक बेहतर ज़िंदगी, यहाँ तक कि एक लंबी ज़िंदगी पाना हमारी मुट्ठी में है।
2 लेकिन क्या इन उपलब्धियों से ऐसा हुआ है कि आपको अपने घरों में ताला लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ती? क्या इनकी वजह से अब युद्ध का खतरा टल गया है? क्या इनसे हर तरह की बीमारियाँ दूर हो चुकी हैं? या क्या अब हमें अपने अज़ीज़ों की मौत का डर नहीं रहा? ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है! इंसान तरक्की के आसमान छूता क्यों ना नज़र आए, लेकिन उसकी एक सीमा है। वर्ल्डवॉच इंस्टिट्यूट की एक रिपोर्ट कहती है: “हम चाँद तक पहुँच गए हैं, एक-से-बढ़कर-एक शक्तिशाली सिलिकॉन चिप्स भी बना लेते हैं और इंसान के जीन्स् भी बदल सकते हैं। मगर आज तक हम एक अरब लोगों को पीने के लिए साफ पानी नहीं दे सके, हज़ारों जीव-जंतुओं का धीरे-धीरे खत्म होना नहीं रोक सके, ना ही ऊर्जा पैदा करने के ऐसे साधन जुटा सके जिनसे वातावरण को कोई खतरा न हो।” इसलिए ताज्जुब नहीं कि आज भविष्य को लेकर लोग चिंता में डूबे हुए हैं। उन्हें कोई उम्मीद नज़र नहीं आती, उन्हें समझ नहीं आता कि राहत पाने के लिए किधर जाएँ।
3. सामान्य युग पूर्व आठवीं सदी के दौरान यहूदा देश की क्या हालत थी?
3 आज हम जिस हालत में जी रहे हैं, वैसी ही हालत सा.यु.पू. आठवीं सदी के 2 राजा 16:7; 18:21.
दौरान परमेश्वर के लोगों की थी। उस वक्त परमेश्वर ने अपने सेवक यशायाह को ज़िम्मेदारी सौंपी कि वह यहूदा के निवासियों को शांति का संदेश सुनाए जिसकी उन्हें सख्त ज़रूरत थी। भयंकर घटनाओं से सारा देश काँप रहा था। बहुत जल्द क्रूर अश्शूरी साम्राज्य यहूदा देश के लिए बड़ा खतरा बननेवाला था, जिससे लोगों के दिलों में दहशत समानेवाली थी। ऐसे में परमेश्वर के लोग छुटकारे के लिए किसके पास जा सकते थे? कहने को तो यहोवा का नाम उनके होठों पर रहता था, मगर उन्होंने इंसानों पर भरोसा रखना ज़्यादा बेहतर समझा।—अंधकार में उजियाला चमकता है
4. यशायाह को एक-साथ कौन-सी दो खबरें सुनाने का काम सौंपा गया था?
4 यहूदा देश ने ढीठ होकर बुरे रास्ते पर चलना नहीं छोड़ा, इसलिए यरूशलेम का विनाश होना और यहूदा के निवासियों का बंदी बनाकर बाबुल ले जाया जाना तय था। जी हाँ, यहूदा पर बुरा वक्त आनेवाला था। यहोवा ने इस डरावने वक्त की चेतावनी देने के लिए अपने भविष्यवक्ता यशायाह को भेजा। लेकिन साथ ही उसने यशायाह को एक खुशखबरी का ऐलान करने के लिए भी कहा। यह खुशखबरी थी कि 70 साल बाद यहूदियों को बाबुल की बंधुआई से आज़ाद करवाया जाएगा। उनमें से कुछ लोग खुशी-खुशी सिय्योन लौटेंगे और वहाँ दोबारा सच्ची उपासना शुरू करने का सुअवसर पाएँगे। यहोवा ने अपने भविष्यवक्ता, यशायाह के ज़रिए यह खुशखबरी देकर अंधकार में उजियाला चमकाया।
5. यहोवा ने इतने साल पहले ही अपना मकसद क्यों ज़ाहिर किया था?
5 यशायाह ने जब ये भविष्यवाणियाँ लिखीं, उसके सौ से भी ज़्यादा साल बाद यहूदा देश का विनाश हुआ था। तो फिर, इतने साल पहले यहोवा को अपना मकसद ज़ाहिर करने की क्या ज़रूरत थी? जिन लोगों ने यशायाह की ये भविष्यवाणियाँ सुनी होंगी क्या वे इनकी पूर्ति होने से बहुत पहले मर-खप नहीं गए होंगे? हाँ, यह सच है। मगर, यहोवा ने यशायाह पर जो बातें प्रकट कीं उन्हीं की बदौलत सा.यु.पू. 607 में यरूशलेम के विनाश के समय जी रहे लोगों के पास इन भविष्यवाणियों का लिखित रिकॉर्ड होता। यह इस बात का ठोस सबूत होता कि सिर्फ यहोवा “अन्त की बात आदि से और प्राचीनकाल से उस बात को बताता आया [है] जो अब तक नहीं हुई।”—यशायाह 46:10; 55:10,11.
6. भविष्य बतानेवाले किसी भी इंसान से, यहोवा किन तरीकों से श्रेष्ठ है?
आमोस 3:7, NHT.
6 सिर्फ यहोवा ही अधिकार के साथ “अन्त की बात आदि से” बताने का दावा कर सकता है। एक इंसान अपने वक्त के राजनीतिक या सामाजिक माहौल को देखकर शायद कुछ हद तक निकट भविष्य में होनेवाली घटनाओं का अंदाज़ा लगा सके। लेकिन सिर्फ यहोवा पूरे यकीन के साथ बता सकता है कि किस वक्त क्या होगा, यहाँ तक कि वह हज़ारों साल बाद होनेवाली घटनाओं की एक-एक बात बता सकता है। इतना ही नहीं, वह अपने सेवकों को भी भविष्य में होनेवाली घटनाओं के बारे में बहुत पहले से भविष्यवाणी करने की शक्ति दे सकता है। बाइबल कहती है: “प्रभु यहोवा जब तक अपने दास नबियों पर अपना भेद प्रकट नहीं करता तब तक वह कुछ भी नहीं करता।”—कितने सारे “यशायाह”?
7. यशायाह की किताब के लेखक के बारे में कई विद्वानों ने कैसे सवाल खड़े किए हैं, और क्यों?
7 यशायाह की किताब में दर्ज़ भविष्यवाणियों की वजह से कई विद्वानों ने यशायाह किताब के लिखनेवाले पर सवाल खड़े किए हैं। ये आलोचक इस बात पर अड़े हैं कि यशायाह किताब का दूसरा हिस्सा, किसी ऐसे इंसान ने लिखा होगा जो सा.यु.पू. छठी सदी के दौरान बाबुल की बंधुआई में या फिर उसके बाद जीया था। उनका कहना है कि यहूदा के उजाड़े जाने की भविष्यवाणियाँ, इनके पूरा होने के बाद लिखी गयी थीं, दूसरे शब्दों में कहें तो उनके मुताबिक ये असल में भविष्यवाणियाँ थीं ही नहीं। आलोचक यह भी कहते हैं कि यशायाह की किताब में 40वें अध्याय से आगे के अध्यायों को पढ़ने से यह एहसास होता है मानो बाबुल उस वक्त विश्वशक्ति बन चुका था और इस्राएली उसकी कैद में थे। इसलिए उनका मानना है कि यशायाह किताब का दूसरा हिस्सा चाहे जिसने भी लिखा हो, उसने यह सा.यु.पू. छठी सदी के दौरान ही लिखा होगा। लेकिन ऐसा दावा करने के लिए क्या उनके पास कोई ठोस सबूत है? बिलकुल नहीं!
8. यशायाह किताब के लेखक पर सबसे पहले कब संदेह किया गया, और यह गलत धारणा कैसे फैल गयी?
8 यशायाह किताब के लेखक पर पहली बार सा.यु. 12वीं सदी में यहूदी टीकाकार, इब्राहीम इब्न एज्रा ने सवाल उठाया था। इनसाइक्लोपीडिया जुडाइका कहती है: “यशायाह की किताब पर व्याख्या देनेवाली अपनी किताब में [इब्राहीम इब्न अध्याय 40 से लेकर बाद के अध्यायों को एक ऐसे भविष्यवक्ता ने लिखा है जो बाबुल की गुलामी के दौरान और सिय्योन वापस आने के बाद के कुछ सालों तक जीया था।” अठारहवीं और उन्नीसवीं सदी के दौरान, और भी कई विद्वानों ने इब्न एज्रा के विचार अपना लिए। इनमें जर्मनी के धर्म-विज्ञानी, योहान क्रिस्टोफ डोडर्लिन भी थे जिन्होंने 1775 में यशायाह पर अपनी ब्यौरेदार किताब प्रकाशित की और फिर 1789 में इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित किया। न्यू सॆन्चुरी बाइबल कमेंट्री कहती है: “प्राचीन परंपरा को माननेवाले विद्वानों को छोड़, अब सारे विद्वान डोडर्लिन की इस धारणा को स्वीकार कर रहे हैं . . . कि यशायाह की किताब के 40 से 66 अध्यायों में दी गयी भविष्यवाणियों को आठवीं सदी के भविष्यवक्ता यशायाह ने नहीं बल्कि बाद के किसी दूसरे आदमी ने लिखा था।”
एज्रा] कहते हैं कि इस किताब का दूसरा भाग यानी,9. (क) यशायाह की किताब के किस तरह टुकड़े-टुकड़े किए गए हैं? (ख) यशायाह की किताब के लिखनेवाले के बारे में उठे विवाद का सार बताते हुए एक बाइबल टीकाकार ने क्या कहा?
9 लेकिन यशायाह किताब के लेखक पर उठाए गए सवाल यहीं खत्म नहीं हुए। दूसरे या द्वितीय यशायाह की इस धारणा ने एक और धारणा को जन्म दिया कि इस किताब को लिखनेवाला शायद कोई तीसरा लेखक भी था। * इसके बाद, यशायाह की किताब को और भी कई छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँट दिया गया। एक विद्वान का तो यह कहना है कि अध्याय 15 और 16 को किसी बेनाम भविष्यवक्ता ने लिखा था, जबकि एक और विद्वान ने अध्याय 23 से 27 के लिखनेवाले के बारे में सवाल खड़े किए। एक और विद्वान के मुताबिक इस किताब के 34 और 35 अध्यायों का लिखनेवाला यशायाह नहीं हो सकता। क्यों? क्योंकि इन अध्यायों में दी गयी जानकारी अध्याय 40 से 66 में लिखी बातों से काफी मिलती-जुलती है, जिनके बारे में पहले ही कहा जा चुका है कि उन्हें आठवीं सदी के भविष्यवक्ता यशायाह ने नहीं बल्कि किसी और ने लिखा था! विद्वानों की इन दलीलों का चंद शब्दों में सार बताते हुए बाइबल टीकाकार, चार्ल्स सी. टॉरी कहते हैं: “‘बंधुआई का भविष्यवक्ता’ जिसे किसी ज़माने में महान भविष्यवक्ताओं में गिना जाता था, अब बहुत तुच्छ समझा जाने लगा है। उसकी किताब के इतने टुकड़े कर दिए गए हैं कि वह अपनी ही किताब के टुकड़ों के ढेर में कहीं गुम हो गया है।” लेकिन, सभी विद्वान यशायाह की किताब को इस तरह छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँटने से सहमत नहीं हैं।
एक ही लेखक होने के सबूत
10. उदाहरण देकर बताइए कि किस तरह यशायाह की पूरी किताब में एक ही तरह का कथन पाए जाने से यह साबित होता है कि इसे एक ही लेखक ने लिखा था।
10 यह कहने के ठोस सबूत मौजूद हैं कि यशायाह की किताब को सिर्फ एक ही इंसान ने लिखा था। एक सबूत है, इसके कई भागों में एक ही तरह के कथन का पाया जाना। मिसाल के लिए, कथन “इस्राएल का/के पवित्र,” अध्याय 1 से 39 में 13 बार और अध्याय 40 से 66 में 13 बार पाया जाता है, जबकि यहोवा के लिए यह उपाधि यशायाह को छोड़ इब्रानी शास्त्र की बाकी किताबों में सिर्फ 6 बार आती है। इन शब्दों का दूसरी किताबों में बहुत कम इस्तेमाल किया जाना और यशायाह की पूरी किताब में बार-बार इस्तेमाल होना साबित करता है कि इस किताब को सिर्फ एक ही लेखक ने लिखा था।
11. यशायाह के अध्याय 1 से 39 और 40 से 66 के बीच कौन-सी समानताएँ हैं?
11 यशायाह के अध्याय 1 से 39 और अध्याय 40 से 66 के बीच और भी कई समानताएँ हैं। दोनों भागों में एक ही तरह की लाक्षणिक भाषा का बार-बार इस्तेमाल किया गया है, जैसे प्रसव-पीड़ा सहती हुई एक स्त्री, एक “मार्ग” या एक “राजमार्ग” वगैरह। * इन अध्यायों में “सिय्योन” का भी बार-बार ज़िक्र किया गया है। शब्द सिय्योन, हिंदी बाइबल में अध्याय 1 से 39 में 28 बार और अध्याय 40 से 66 में 18 बार इस्तेमाल किया गया है। दरअसल, सिय्योन का ज़िक्र यशायाह में जितनी बार किया गया है, उतना बाइबल की किसी और किताब में नहीं किया गया! दि इंटरनैश्नल स्टैंडर्ड बाइबल इनसाइक्लोपीडिया कहती है, ऐसे सबूत “साफ ज़ाहिर करते हैं कि इस किताब को एक ही आदमी ने लिखा था,” जबकि अगर इसे दो, तीन या उससे ज़्यादा लेखकों ने लिखा होता तो उनके लेखन में “ऐसी समानता कैसे आयी यह समझाना मुश्किल है।”
12, 13. किस तरह मसीही यूनानी शास्त्र दिखाता है कि यशायाह किताब एक ही लेखक की रचना है?
12 यशायाह की किताब को सिर्फ एक ही लेखक ने लिखा था, इसका सबसे बड़ा और ठोस सबूत हमें परमेश्वर की प्रेरणा से लिखे मसीही यूनानी शास्त्र में मिलता है। ये किताबें साफ दिखाती हैं कि पहली सदी के मसीही, यशायाह की किताब को एक ही लेखक की रचना मानते थे। मिसाल के तौर पर, लूका एक कूशी खोजे के बारे में बताता है कि वह यशायाह की किताब का एक भाग पढ़ रहा था जो आज यशायाह का 53वाँ अध्याय है। यह वही भाग है जिसके बारे में आज के आलोचक दावा करते हैं कि उसे द्वितीय यशायाह ने लिखा था। लेकिन, लूका बताता है कि वह कूशी ‘यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक पढ़ रहा था।’—प्रेरितों 8:26-28.
13 अब सुसमाचार-पुस्तक लिखनेवाले मत्ती पर गौर कीजिए। वह समझाता है कि किस तरह यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले की सेवकाई से, वह भविष्यवाणी पूरी हुई यशायाह 40:3 में पाते हैं। मत्ती के मुताबिक इस भविष्यवाणी को लिखनेवाला कौन था? क्या उसने कहा कि इसे किसी बेनाम द्वितीय यशायाह ने लिखा था? नहीं, बल्कि उसने साफ बताया कि इसे “यशायाह भविष्यद्वक्ता” ने लिखा था। * (मत्ती 3:1-3) एक और मौके पर, यीशु ने एक चर्मपत्र से उन शब्दों को पढ़ा जिन्हें आज हम यशायाह 61:1,2 में पाते हैं। उस घटना का ब्यौरा देते हुए, लूका कहता है: “यशायाह भविष्यद्वक्ता की पुस्तक उसे दी गई।” (लूका 4:17) और रोमियों को लिखी अपनी पत्री में पौलुस, यशायाह किताब के पहले और दूसरे, दोनों हिस्सों का हवाला देता है। मगर उसने एक बार भी इस बात का संकेत तक नहीं दिया कि इस किताब को यशायाह के अलावा किसी और ने लिखा था। (रोमियों 10:16,20; 15:12) इन सारे सबूतों से साफ ज़ाहिर है कि पहली सदी के मसीही यह नहीं मानते थे कि यशायाह की किताब को दो, तीन या उससे ज़्यादा लेखकों ने लिखा था।
जिसे आज हम14. किस तरह मृत सागर के पास मिले चर्मपत्रों से यशायाह की किताब के लेखक के बारे में और ज़्यादा जानकारी मिलती है?
14 अब, मृत सागर के पास मिले चर्मपत्रों के सबूत पर गौर कीजिए। ये चर्मपत्र प्राचीन लेख हैं, जो यीशु के ज़माने से भी पहले लिखे गए थे। उन चर्मपत्रों में से एक यशायाह की हस्तलिपि है, जिसे यशायाह का चर्मपत्र कहा जाता है। इसे सा.यु.पू. दूसरी सदी में लिखा गया था। इस हस्तलिपि से आलोचकों का यह अध्याय 40 से आगे के भाग को किसी द्वितीय यशायाह ने लिखा था। वह कैसे? आज यशायाह के 40वें अध्याय की जो पहली लाइन है, वह इस प्राचीन हस्तलिपि में, एक कॉलम के अंत में शुरू होती है और अगले कॉलम में खत्म होती है। ज़ाहिर है कि इस हस्तलिपि के नकलनवीस को ऐसी कोई जानकारी नहीं थी कि उस अध्याय से आगे के भाग को किसी और ने लिखा था या इससे आगे की यशायाह की किताब पिछले भाग से अलग है।
दावा झूठा साबित होता है कि15. कुस्रू से ताल्लुक रखनेवाली यशायाह की भविष्यवाणियों के बारे में यहूदी इतिहासकार, फ्लेवियस जोसिफस क्या कहते हैं?
15 अब आखिर में, पहली सदी के यहूदी इतिहासकार, फ्लेवियस जोसिफस की
गवाही पर गौर कीजिए। वे न सिर्फ यह बताते हैं कि कुस्रू के बारे में यशायाह की भविष्यवाणियाँ सा.यु.पू. आठवीं सदी में लिखी गयी थीं बल्कि यह भी कहते हैं कि कुस्रू ने इन भविष्यवाणियों को पढ़ा था। जोसिफस लिखते हैं: “इन भविष्यवाणियों के बारे में कुस्रू जानता था, क्योंकि उसने इन्हें यशायाह की भविष्यवाणी की किताब से पढ़ा था जो दो सौ दस साल पहले लिखी गयी थी।” जोसिफस के मुताबिक, शायद इन भविष्यवाणियों को पढ़कर यहूदियों को वापस अपने देश भेजने की कुस्रू की इच्छा और भी बढ़ गयी थी। जोसिफस लिखते हैं कि “जो लिखा जा चुका था, उसी के मुताबिक काम करने का इरादा,” कुस्रू के मन में “घर कर गया था और इसे पूरा करने का उस पर जुनून सवार हो गया था।”—ज्यूइश ऎन्टिक्विटीज़, पुस्तक XI, अध्याय 1, पैराग्राफ 2.16. आलोचकों के इस दावे के बारे में क्या कहा जा सकता है कि यशायाह की किताब के दूसरे हिस्से में बाबुल का वर्णन ऐसे किया गया है, मानो वह उस समय की विश्वशक्ति था?
16 जैसा पहले भी बताया गया है, कई आलोचक कहते हैं कि यशायाह के अध्याय 40 से लेकर बाद के अध्यायों में, बाबुल का इस तरह ज़िक्र किया गया है मानो वह उस वक्त विश्वशक्ति था और इस्राएलियों के बारे में ऐसे बताया गया है जैसे वे उसी दौरान बाबुल की बंधुआई में थे। तो क्या इससे साबित नहीं होता कि ये सारी बातें लिखनेवाला इंसान सा.यु.पू. छठी सदी के दौरान जीया था? ऐसा ज़रूरी नहीं। दरअसल यशायाह के 40वें अध्याय से पहले के अध्यायों में भी कई बार बाबुल का इस तरह ज़िक्र किया गया है मानो वह उस समय एक विश्वशक्ति था। उदाहरण के लिए, यशायाह 13:19 में बाबुल को “सब राज्यों का शिरोमणि” कहा गया है या टुडेज़ इंग्लिश वर्शन के मुताबिक उसे “सबसे सुंदर राज्य” कहा गया है। साफ ज़ाहिर है कि यह बाबुल के बारे में एक भविष्यवाणी है, क्योंकि इस भविष्यवाणी के लिखे जाने के सौ से ज़्यादा साल बाद कहीं जाकर बाबुल एक विश्वशक्ति बना था। आलोचक इस तर्क को झुठला नहीं सके हैं, उन्होंने इसे एक समस्या करार दिया है। लेकिन एक आलोचक ने इस समस्या को बस यह कहकर “हल” कर दिया कि यशायाह 13 अध्याय को किसी दूसरे लेखक ने लिखा है। लेकिन सच तो यह है कि अकसर बाइबल की भविष्यवाणियों में, आगे होनेवाली घटनाओं का इस तरह ज़िक्र किया गया है, मानो वे घट चुकी हैं। ऐसी लेखन-शैली बड़े ज़बरदस्त तरीके से इस बात पर ज़ोर देती है कि भविष्यवाणी हर हाल में पूरी होगी। (प्रकाशितवाक्य 21:5,6) बेशक, सच्ची भविष्यवाणियाँ करनेवाला परमेश्वर ही सिर्फ यह कह सकता है: “अब मैं नई बातें बताता हूं; उनके होने से पहिले मैं तुम को सुनाता हूं।”—यशायाह 42:9.
सच्ची भविष्यवाणियों की एक किताब
17. यशायाह के अध्याय 40 से लेखन-शैली में जो बदलाव दिखाई देता है, उसका क्या कारण हो सकता है?
17 इन सारे सबूतों से हम किस नतीजे पर पहुँचते हैं? यही कि यशायाह की किताब को परमेश्वर की प्रेरणा से सिर्फ एक ही लेखक ने लिखा था। सदियों से, यह पूरी किताब दो या उससे ज़्यादा भागों में नहीं, बल्कि एक ही किताब के रूप में पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोगों तक पहुँची है। जैसे कुछ लोग कहते हैं, यह सच है कि यशायाह की किताब के 40वें अध्याय से आगे इसकी लेखन-शैली में कुछ बदलाव नज़र आता है। लेकिन हमें यह याद रखना चाहिए कि यशायाह ने कम-से-कम 46 साल तक परमेश्वर के भविष्यवक्ता के तौर पर सेवा की थी। तो यह उम्मीद करना गलत न होगा कि उन सालों के दौरान, उसके संदेश में और संदेश देने के तरीके में बदलाव ज़रूर आया होगा। दरअसल, परमेश्वर ने यशायाह को सिर्फ न्यायदंड की कड़ी चेतावनियाँ सुनाने का काम नहीं सौंपा था। उसे यहोवा के ये शब्द भी लोगों को सुनाने थे: “मेरी प्रजा को शान्ति दो, शान्ति!” (यशायाह 40:1) परमेश्वर के चुने हुए लोगों को उसके इस वादे से सचमुच शांति मिलती कि 70 साल की बंधुआई के बाद यहूदी वापस अपने वतन में बसाए जाएँगे।
18. यशायाह की किताब के किस विषय पर इस किताब में चर्चा की जाएगी?
18 इस किताब में यशायाह के जिन अध्यायों पर चर्चा की गयी है उनमें से ज़्यादातर का विषय है, बाबुल की कैद से यहूदियों की रिहाई। * लेकिन जैसा कि हम देखेंगे, इनमें से कई भविष्यवाणियाँ हमारे समय में भी पूरी हुई हैं। इनके अलावा, हम यशायाह की किताब में कुछ ऐसी सनसनीखेज़ भविष्यवाणियाँ भी पाते हैं, जो परमेश्वर के एकलौते पुत्र के जीवन में और उसकी मृत्यु से पूरी हुई थीं। बेशक, यशायाह की किताब में दी गयी महत्त्वपूर्ण भविष्यवाणियों का अध्ययन करने से संसार भर में रहनेवाले परमेश्वर के सेवकों को और दूसरों को ज़रूर फायदा होगा। ये भविष्यवाणियाँ, वाकई सारे जगत के लिए उजियाला हैं।
[फुटनोट]
^ पैरा. 9 विद्वानों की धारणा है कि अध्याय 56 से 66 को तीसरे लेखक ने लिखा था, और उसे वे तृतीय यशायाह कहते हैं।
^ पैरा. 11 प्रसव-पीड़ा सहती हुई एक स्त्री: यशायाह 13:8; 21:3; 26:17,18; 42:14; 45:10, फुटनोट; 54:1; 66:7. एक “मार्ग” या “राजमार्ग”: यशायाह 11:15; 19:23; 35:8; 40:3; 43:19; 49:11; 57:14; 62:10.
^ पैरा. 13 सुसमाचार की दूसरी किताबों, मरकुस, लूका और यूहन्ना में भी जहाँ इस घटना का हवाला है, लेखक के बारे में यही बात कही गयी है।—मरकुस 1:2; लूका 3:4; यूहन्ना 1:23.
^ पैरा. 18 यशायाह के पहले 40 अध्यायों की चर्चा यशायाह की भविष्यवाणी—सारे जगत के लिए उजियाला I में की गयी है, जिसे वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी ने प्रकाशित किया है।
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 9 पर बक्स]
भाषा का अध्ययन करने से मिले सबूत
भाषा का अध्ययन करने से, कई सालों के गुज़रने पर भाषा में होनेवाले छोटे-छोटे बदलावों का पता लगाया जा सकता है। यशायाह की किताब की भाषा का बारीकी से अध्ययन एक और सबूत है कि इसे एक ही आदमी ने लिखा है। अगर यशायाह का एक हिस्सा सा.यु.पू. आठवीं सदी में और दूसरा हिस्सा 200 साल बाद लिखा गया होता, तो इन दोनों भागों में इस्तेमाल की गयी इब्रानी भाषा में फर्क होता। लेकिन, वैस्टमिन्सटर थियॉलॉजिकल जर्नल में प्रकाशित एक लेख के मुताबिक, “इस किताब की भाषा का अध्ययन करने पर ढेरों सबूत मिले हैं कि यशायाह के 40 से 66 अध्याय बाबुल की बंधुआई से पहले ही लिखे गए थे।” उस लेख का लेखक आखिर में कहता है: “अगर आलोचक इस बात पर अड़े रहते हैं कि यशायाह की किताब को बंधुआई के सालों के दौरान या उसके बाद लिखा गया था, तो यह साबित करने के लिए उन्हें इसकी भाषा के अध्ययन से मिले सबूतों को झुठलाना होगा।”
[पेज 11 पर तसवीर]
मृत सागर के पास मिले यशायाह के चर्मपत्रों का एक हिस्सा। अध्याय 39 की समाप्ति को एक तीर की नोक से दिखाया गया है
[पेज 12, 13 पर तसवीर]
करीब 200 साल पहले, यशायाह ने यहूदियों की रिहाई की भविष्यवाणी की