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परमेश्‍वर के प्रार्थना के भवन में परदेशी इकट्ठे किए गए

परमेश्‍वर के प्रार्थना के भवन में परदेशी इकट्ठे किए गए

सत्रहवाँ अध्याय

परमेश्‍वर के प्रार्थना के भवन में परदेशी इकट्ठे किए गए

यशायाह 56:1-12

1, 2. सन्‌ 1935 में क्या सनसनीखेज़ ऐलान किया गया, और यह किसका हिस्सा था?

शुक्रवार, 31 मई, 1935 को भाई जोसेफ एफ. रदरफर्ड ने वॉशिंगटन डी.सी. के अधिवेशन में बड़ी तादाद में हाज़िर लोगों को भाषण दिया। भाषण में उन्होंने उस “बड़ी भीड़” की पहचान बतायी जिसे प्रेरित यूहन्‍ना ने दर्शन में देखा था। भाई रदरफर्ड ने अपने भाषण में बुलंदी पर आते हुए पूछा: “आप में से जो धरती पर हमेशा की ज़िंदगी जीने की आशा रखते हैं, क्या कृपया खड़े होंगे?” उस अधिवेशन में हाज़िर एक आदमी का कहना है कि “श्रोताओं में आधे से ज़्यादा लोग खड़े हो गए।” फिर भाई ने यह ऐलान किया: “देखो! बड़ी भीड़!” वहाँ हाज़िर एक बहन उस दिन को याद करते हुए कहती है: “पहले तो थोड़ी देर के लिए सन्‍नाटा रहा, फिर इसके बाद सभी श्रोता मारे खुशी के चिल्ला पड़े और तालियों की गड़गड़ाहट देर तक गूँजती रही।”—प्रकाशितवाक्य 7:9.

2 यह अधिवेशन उस भविष्यवाणी का सबसे यादगार हिस्सा था जिसकी पूर्ति आज हमारे ज़माने में भी हो रही है। यह भविष्यवाणी करीब 2,700 साल पहले यशायाह ने लिखी थी जो आज हमारी बाइबलों में यशायाह के अध्याय 56 में दर्ज़ है। यशायाह की दूसरी कई भविष्यवाणियों की तरह इसमें भी हिम्मत बँधानेवाले वादों के साथ-साथ कड़ी चेतावनियाँ भी दी गयी हैं। यह भविष्यवाणी पहले यशायाह के दिनों में यहोवा के चुने हुए लोगों पर लागू हुई थी, मगर इसके सदियों बाद यानी आज हमारे ज़माने में भी इसकी पूर्ति हो रही है।

उद्धार पाने के लिए क्या ज़रूरी है

3. अगर यहूदी चाहते हैं कि परमेश्‍वर उनका उद्धार करे, तो उन्हें क्या करना होगा?

3 यशायाह के 56वें अध्याय की शुरूआत यहूदियों को एक सलाह देने से होती है। लेकिन इस सलाह पर सभी सच्चे उपासकों को ध्यान देना चाहिए। लिखा है: “यहोवा यों कहता है, न्याय का पालन करो, और, धर्म के काम करो; क्योंकि मैं शीघ्र तुम्हारा उद्धार करूंगा, और मेरा धर्मी होना प्रगट होगा। क्या ही धन्य है वह मनुष्य जो ऐसा ही करता, और वह आदमी जो इस पर स्थिर रहता है, जो विश्रामदिन को पवित्र मानता और अपवित्र करने से बचा रहता है, और अपने हाथ को सब भांति की बुराई करने से रोकता है।” (यशायाह 56:1,2) अगर यहूदा के लोग चाहते हैं कि परमेश्‍वर उनका उद्धार करे, तो उन्हें मूसा की व्यवस्था के मुताबिक न्याय का पालन करना होगा और धर्मी जीवन जीना होगा। क्यों? क्योंकि यहोवा खुद धर्मी परमेश्‍वर है। और जो धार्मिकता के मार्ग पर चलते हैं, वे उस खुशी को पाते हैं जो यहोवा का अनुग्रह पाने से मिलती है।—भजन 144:15ख.

4. इस्राएल देश में सब्त मानने की अहमियत क्यों थी?

4 इस भविष्यवाणी में विश्रामदिन यानी सब्त मानने पर ज़ोर दिया गया है क्योंकि यह मूसा की व्यवस्था का एक खास नियम था। दरअसल, यहूदा के निवासियों के बंधुआई में जाने की एक वजह यह थी कि वे सब्त मानने में लापरवाह हो गए थे। (लैव्यव्यवस्था 26:34,35; 2 इतिहास 36:20,21) सब्त इस बात की निशानी था कि यहूदियों के साथ यहोवा का खास रिश्‍ता है। तो सब्त मानने के ज़रिए यहूदी यह दिखाते कि वे इस रिश्‍ते की कदर करते हैं। (निर्गमन 31:13) इसके अलावा, यशायाह के ज़माने के लोगों को सब्त का नियम याद दिलाता कि यहोवा उनका सिरजनहार है। इस दिन को मानने से उन्हें यह भी याद दिलाया जाता कि यहोवा ने उन पर किस-किस तरीके से दया दिखायी थी। (निर्गमन 20:8-11; व्यवस्थाविवरण 5:12-15) और आखिरी वजह यह है कि सब्त मानने से वे यहोवा की उपासना नियमित रूप से और एक व्यवस्थित तरीके से कर सकते थे। हफ्ते में एक बार अपने रोज़मर्रा के काम से विश्राम करने पर यहूदा के लोगों को प्रार्थना, अध्ययन और मनन करने का मौका मिलता।

5. सब्त मानने के पीछे जो सिद्धांत है, उसे मसीही कैसे लागू कर सकते हैं?

5 लेकिन मसीहियों के बारे में क्या? क्या उन्हें भी सब्त का नियम मानने के लिए उकसाया गया है? सीधे तौर पर तो नहीं, क्योंकि वे मूसा की व्यवस्था के अधीन नहीं हैं और इसलिए उनसे सब्त मानने की माँग नहीं की गयी। (कुलुस्सियों 2:16,17) लेकिन जैसा प्रेरित पौलुस ने समझाया, वफादार मसीहियों के लिए भी एक “सब्त का विश्राम” है। इस ‘सब्त के विश्राम’ के मुताबिक मसीहियों को उद्धार पाने के लिए यीशु के छुड़ौती बलिदान पर विश्‍वास करना चाहिए और सिर्फ कामों के बलबूते पर उद्धार पाने की कोशिश में नहीं लगना चाहिए। (इब्रानियों 4:6-10) इसलिए सब्त के बारे में यशायाह की भविष्यवाणी के शब्द, आज यहोवा के सेवकों को याद दिलाते हैं कि उद्धार के लिए उनका परमेश्‍वर के इंतज़ाम पर विश्‍वास करना बेहद ज़रूरी है। साथ ही उन्हें बढ़िया तरीके से याद दिलाया गया है कि वे यहोवा के साथ करीबी रिश्‍ता कायम करें और लगातार, नित्य उसकी उपासना करें।

परदेशी और खोजे के लिए दिलासा

6. अब किन दो समूहों पर ध्यान दिया जाता है?

6 यहोवा अब ऐसे दो समूहों से बात करता है जो उसकी सेवा करना तो चाहते हैं, मगर मूसा की व्यवस्था के मुताबिक वे यहूदियों की मंडली में शामिल होने के योग्य नहीं हैं। हम पढ़ते हैं: “जो परदेशी यहोवा से मिल गए हैं, वे न कहें कि यहोवा हमें अपनी प्रजा से निश्‍चय अलग करेगा; और खोजे भी न कहें कि हम तो सूखे वृक्ष हैं।” (यशायाह 56:3) परदेशियों को हमेशा यह डर रहता था कि उन्हें इस्राएलियों के बीच में से निकाल दिया जाएगा। और खोजे को यह दुःख खाए जाता था कि उसकी कभी कोई संतान नहीं होगी जो उसके वंश को आगे बढ़ाए। लेकिन भविष्यवाणी में उन्हें हिम्मत न हारने के लिए कहा जाता है। इसका कारण जानने से पहले आइए देखें कि मूसा की व्यवस्था के तहत इस्राएल जाति में इन दोनों समूह के लोगों की क्या जगह थी।

7. इस्राएल देश में रहनेवाले परदेशियों पर व्यवस्था ने कौन-सी पाबंदियाँ लगायी थीं?

7 खतनारहित परदेशियों को इस्राएलियों के साथ उपासना करने की इजाज़त नहीं थी। मिसाल के लिए, वे फसह के भोज में हिस्सा नहीं ले सकते थे। (निर्गमन 12:43) देश की कानून-व्यवस्था का आदर करनेवाले परदेशियों को इंसाफ मिलता था और उनका सत्कार किया जाता था। लेकिन इस्राएल जाति के साथ उनका कोई पक्का रिश्‍ता नहीं था। दूसरी तरफ, ऐसे परदेशी भी थे जो व्यवस्था के सभी नियमों को मानते थे और इसकी निशानी के तौर पर उनके पुरुष खतना करवाते थे। इस तरह वे यहूदी मतधारक बन जाते थे, जिन्हें यहोवा के भवन के आँगन में उपासना करने का अवसर मिलता था और उन्हें इस्राएल की मंडली का एक हिस्सा माना जाता था। (लैव्यव्यवस्था 17:10-14; 20:2; 24:22) लेकिन ये यहूदी मतधारक भी, इस्राएलियों के साथ यहोवा की वाचा के पूरी तरह भागीदार नहीं हो सकते थे, और वादा किए हुए देश में उन्हें ज़मीन का कोई हिस्सा नहीं मिलता। बाकी परदेशी, यहोवा के मंदिर की ओर मुँह करके प्रार्थना कर सकते थे और जैसा शायद बाद में होने लगा वे याजकवर्ग के ज़रिए बलिदान भी चढ़ा सकते थे, बशर्ते ये बलिदान व्यवस्था के नियमों के मुताबिक होते। (लैव्यव्यवस्था 22:25; 1 राजा 8:41-43) लेकिन इस्राएलियों को उनके साथ ज़्यादा मेल-जोल नहीं बढ़ाना था।

खोजों को न मिटनेवाला नाम दिया जाता है

8. (क) मूसा की व्यवस्था के मुताबिक खोजों की क्या जगह थी? (ख) गैर-यहूदी जातियों में खोजों को किस काम के लिए इस्तेमाल किया जाता था, और कभी-कभी शब्द “खोजा” का क्या मतलब हो सकता है?

8 किसी भी खोजे को पूरी तरह इस्राएल जाति का सदस्य नहीं माना जाता था, फिर चाहे उसका जन्म यहूदी माता-पिता से ही क्यों न हुआ हो। * (व्यवस्थाविवरण 23:1) उस ज़माने की कुछ गैर-यहूदी जातियों में खोजों को खास पदवियाँ दी जाती थीं और युद्ध में बंदी बनाए गए कुछ बच्चों के लिंग काटकर उन्हें खोजे बनाना एक आम रिवाज़ था। खोजों को राजा के दरबार में अधिकारियों का पद सौंपा जाता था। वे “स्त्रियों के रखवाले,” “रखेलियों के रखवाले” या रानी के सेवक हुआ करते थे। (एस्तेर 2:3,12-15; 4:4-6,9) लेकिन ऐसा कोई सबूत नहीं मिलता कि इस्राएलियों में ऐसा किया जाता था, ना ही वे अपने राजाओं की सेवा के लिए खास तौर पर खोजों को नियुक्‍त करते थे। *

9. यहोवा सचमुच के खोजों को क्या दिलासा देता है?

9 इस्राएल में शारीरिक रूप से खोजों पर, एक तो यहोवा की उपासना के मामले में कई पाबंदियाँ लगी हुई थीं। इसके अलावा, यह बड़े शर्म की बात मानी जाती थी कि वे अपना वंश चलाने के लिए संतान पैदा करने के काबिल नहीं थे। इसलिए भविष्यवाणी के अगले शब्दों से उनको कितना दिलासा मिला होगा! हम पढ़ते हैं: “यहोवा यों कहता है: ‘जो खोजे मेरे सब्तों को मानते और वही करते हैं जो मुझे भाता है तथा मेरी वाचा का दृढ़ता से पालन करते हैं, मैं उन्हें अपने भवन और अपनी शहरपनाह में एक स्मारक, और एक ऐसा नाम दूंगा जो पुत्र और पुत्रियों से उत्तम होगा, मैं उनको सदा का एक ऐसा नाम दूंगा जो मिटाया न जाएगा।’”—यशायाह 56:4,5, NHT.

10. खोजों के हालात कब बदले, और तब से उन्हें क्या मौका मिला है?

10 जी हाँ, वह समय ज़रूर आएगा जब खोजों की शारीरिक हालत भी, यहोवा के सेवक के रूप में स्वीकार किए जाने में रुकावट नहीं बनेगी। अगर खोजे यहोवा की आज्ञाएँ मानते हैं तो उन्हें एक “स्मारक” यानी यहोवा के भवन में एक जगह और ऐसा नाम दिया जाएगा जो बेटे-बेटियों के होने से कहीं बेहतर होगा। यह समय कब आया? यीशु मसीह की मृत्यु के बाद, पुरानी व्यवस्था वाचा की जगह नयी वाचा आ गयी और पैदाइशी इस्राएल की जगह “परमेश्‍वर के इस्राएल” ने ले ली। (गलतियों 6:16) तब से, विश्‍वास रखनेवाले सभी लोगों को परमेश्‍वर की उपासना करने का मौका मिला है और उनकी उपासना परमेश्‍वर ने स्वीकार की है। शारीरिक रूप से दूसरों से अलग होना या शारीरिक खामियाँ अब एक रुकावट नहीं रहीं। लोगों की शारीरिक हालत चाहे जो भी हो, अगर वे अंत तक धीरज धरेंगे तो उन्हें “सदा का एक ऐसा नाम दिया जाएगा जो मिटाया न जाएगा।” यहोवा उन्हें कभी नहीं भूलेगा। उनके नाम यहोवा के ‘स्मरण के निमित्त एक पुस्तक’ में लिखे जाएँगे और वह अपने ठहराए हुए वक्‍त पर उन्हें हमेशा की ज़िंदगी देगा।—मलाकी 3:16; नीतिवचन 22:1; 1 यूहन्‍ना 2:17.

परमेश्‍वर के लोगों के साथ परदेशी भी उपासना करेंगे

11. आशीषें पाने के लिए परदेशियों को क्या करने को उकसाया जाता है?

11 लेकिन परदेशियों के बारे में क्या? भविष्यवाणी में फिर एक बार उन पर ध्यान दिया जाता है और यहोवा अपने शब्दों से उन्हें बहुत सांत्वना देता है। यशायाह लिखता है: “परदेशी भी जो यहोवा के साथ इस इच्छा से मिले हुए हैं कि उसकी सेवा टहल करें और यहोवा के नाम से प्रीति रखें और उसके दास हो जाएं, जितने विश्रामदिन को अपवित्र करने से बचे रहते और मेरी वाचा को पालते हैं, उनको मैं अपने पवित्र पर्वत पर ले आकर अपने प्रार्थना के भवन में आनन्दित करूंगा; उनके होमबलि और मेलबलि मेरी वेदी पर ग्रहण किए जाएंगे; क्योंकि मेरा भवन सब देशों के लोगों के लिये प्रार्थना का घर कहलाएगा।”—यशायाह 56:6,7.

12. यीशु की भविष्यवाणी में बतायी गयी ‘अन्य भेड़ों’ के बारे में ज़्यादातर बाइबल विद्यार्थी क्या मानते थे?

12 हमारे समय में ‘परदेशियों’ की पहचान धीरे-धीरे साफ होने लगी। प्रथम विश्‍वयुद्ध से पहले, बाइबल विद्यार्थी यह मानते थे कि स्वर्ग में यीशु के साथ शासन करने की उम्मीद रखनेवाले यानी “परमेश्‍वर के इस्राएल” के अलावा और भी बहुत-से लोगों का उद्धार होगा। बाइबल विद्यार्थी, यूहन्‍ना 10:16 में लिखे यीशु के इन शब्दों से अच्छी तरह वाकिफ थे: “मेरी और भी [“अन्य,” NW] भेड़ें हैं, जो इस भेड़शाला की नहीं: मुझे उन का भी लाना अवश्‍य है, वे मेरा शब्द सुनेंगी; तब एक ही झुण्ड और एक ही चरवाहा होगा।” यह माना जाता था कि इन ‘अन्य भेड़ों’ को पृथ्वी पर ज़िंदगी मिलेगी। लेकिन ज़्यादातर बाइबल विद्यार्थी यही मानते थे कि ये अन्य भेड़ें, यीशु मसीह के हज़ार साल के राज्य के दौरान प्रकट होंगी।

13. ऐसा क्यों समझा गया कि मत्ती अध्याय 25 में बतायी गयी भेड़ें इस संसार के अंतिम दिनों के दौरान प्रकट होंगी?

13 कुछ समय बाद, बाइबल की एक और आयत की अच्छी समझ हासिल हुई जिसमें भेड़ों का ज़िक्र मिलता है। मत्ती के अध्याय 25 में भेड़ों और बकरियों के बारे में यीशु का दृष्टांत लिखा है। इस दृष्टांत के मुताबिक, भेड़ों को अनंत जीवन इसलिए मिलेगा क्योंकि वे यीशु के भाइयों की मदद करती हैं। इससे ज़ाहिर हुआ कि उनका समूह, मसीह के अभिषिक्‍त भाइयों के समूह से अलग है। सन्‌ 1923 में अमरीका के कैलिफॉर्निया राज्य के लॉस ऐन्जलस शहर में, एक अधिवेशन में यह समझाया गया कि ये भेड़ें, मसीह के हज़ार साल के राज्य के दौरान नहीं बल्कि इस संसार के अंतिम दिनों के दौरान प्रकट होंगी। क्यों? क्योंकि यीशु का यह दृष्टांत, इस सवाल के जवाब का एक हिस्सा था: “ये बातें कब होंगी? और तेरे आने का, और जगत के अन्त का क्या चिन्ह होगा?”—मत्ती 24:3.

14, 15. अंत के समय में अन्य भेड़ों के स्थान के बारे में समझ कैसे धीरे-धीरे बढ़ती गयी?

14 सन्‌ 1920 के दशक में, बाइबल विद्यार्थियों के साथ संगति करनेवाले कुछ लोगों को यह एहसास होने लगा कि यहोवा की आत्मा उन्हें स्वर्गीय बुलावे की गवाही नहीं दे रही थी। फिर भी वे परमप्रधान परमेश्‍वर की सेवा पूरे जोश के साथ करते थे। उनके स्थान के बारे में 1931 में और ज़्यादा समझ मिली, जब दोषनिवारण (अँग्रेज़ी) किताब प्रकाशित की गयी। इस किताब में यहेजकेल की एक-एक आयत की चर्चा की गयी है, साथ ही दवात लिए हुए “पुरुष” का दर्शन भी समझाया गया है। (यहेजकेल 9:1-11) दर्शन में देखा गया कि यह “पुरुष,” पूरे यरूशलेम नगर में जाकर उन सभी के माथे पर चिन्ह लगा रहा है, जो वहाँ पर किए जानेवाले घृणित कामों के कारण साँसें भरते और दुःख के मारे चिल्लाते हैं। यह “पुरुष,” यीशु के भाइयों यानी शेष अभिषिक्‍त मसीहियों को सूचित करता है जो पृथ्वी पर उस दौरान मौजूद होंगे जब आज के यरूशलेम यानी ईसाईजगत को न्यायदंड मिलेगा। और जिन लोगों पर चिन्ह लगाया जाता है, वे उसी दौरान जीनेवाली अन्य भेड़ें हैं। जैसे दर्शन में देखा गया, जब यहोवा की ओर से दंड देनेवाले, उस धर्म-त्यागी शहर से पलटा लेते हैं तब अन्य भेड़ों की जान बख्श दी जाती है।

15 इस्राएल के राजा येहू और गैर-इस्राएली, यहोनादाब के बीच जो घटा, वह एक भविष्यवाणी थी, जिसकी गहरी समझ सन्‌ 1932 में मिली। इन घटनाओं ने दिखाया कि ठीक जैसे यहोनादाब ने बाल-उपासना का खात्मा करने में येहू का साथ दिया था, वैसे ही अन्य भेड़ें मसीह के अभिषिक्‍त भाइयों का साथ देती हैं। आखिरकार, 1935 में यह समझ आया कि अंतिम दिनों के दौरान जी रही अन्य भेड़ें ही वह बड़ी भीड़ हैं जिसे प्रेरित यूहन्‍ना ने दर्शन में देखा था। जैसा हमने इस अध्याय की शुरूआत में देखा था, इस बारे में सबसे पहले वॉशिंगटन डी.सी. के अधिवेशन में समझाया गया। उस भाषण में जोसेफ एफ. रदरफर्ड ने बताया कि पृथ्वी पर जीने की आशा रखनेवाले ही “बड़ी भीड़” के लोग हैं।

16. ‘परदेशियों’ को सेवा के क्या खास अवसर और ज़िम्मेदारियाँ मिली हैं?

16 इस तरह धीरे-धीरे यह बात समझ में आयी कि “परदेशी” इन अंतिम दिनों में यहोवा के उद्देश्‍यों में एक अहम भूमिका निभाएँगे। वे यहोवा की उपासना करने के लिए परमेश्‍वर के इस्राएल के साथ हो लेते हैं। (जकर्याह 8:23) इस आत्मिक जाति के साथ मिलकर, ये परदेशी परमेश्‍वर को भानेवाला बलिदान अर्पित करते हैं और सब्त के विश्राम में प्रवेश करते हैं। (इब्रानियों 13:15,16) इसके अलावा, वे परमेश्‍वर के आत्मिक मंदिर में उपासना करते हैं, जो यरूशलेम के मंदिर की तरह “सब जातियों के लिये प्रार्थना का घर” है। (मरकुस 11:17) वे यीशु मसीह के छुड़ौती बलिदान पर विश्‍वास करते हैं और इस तरह ‘अपने वस्त्र मेम्ने के लोहू में धोकर श्‍वेत करते हैं।’ और वे “दिन रात” यहोवा की सेवा में लगे रहते हैं।—प्रकाशितवाक्य 7:14,15.

17. आज के परदेशी किस अर्थ में नयी वाचा का पालन करते हैं?

17 आज ये परदेशी इस अर्थ में नयी वाचा का पालन करते हैं कि परमेश्‍वर के इस्राएल की संगति में रहते हुए वे नयी वाचा से मिलनेवाले लाभ और आशीषों का आनंद उठाते हैं। वे उस वाचा के भागीदार ना होने पर भी, पूरे दिल से उसके नियम मानते हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि यहोवा के नियम उनके दिल में लिखे गए हैं और उन्होंने यहोवा को अपने स्वर्गीय पिता और पूरे जहान का महाराजाधिराज स्वीकार किया है।—यिर्मयाह 31:33,34; मत्ती 6:9; यूहन्‍ना 17:3.

18. अंत के समय में इकट्ठा किए जाने का कौन-सा काम हो रहा है?

18 यशायाह की भविष्यवाणी आगे कहती है: “प्रभु यहोवा, जो इस्राएल के बिखरे हुओं को इकट्ठा करता है, वह यों कहता है: ‘जो पहले से ही इकट्ठे किए हुए हैं उनके साथ मैं औरों को भी मिला दूंगा।’” (यशायाह 56:8, NHT) अंत के समय में यहोवा ने “इस्राएल के बिखरे हुओं” यानी शेष अभिषिक्‍त जनों को इकट्ठा किया है। उनके अलावा, वह बड़ी भीड़ के लोगों को भी इकट्ठा कर रहा है। ये दोनों समूह मिलकर, यहोवा और उसके ठहराए हुए राजा, यीशु मसीह की निगरानी में एकता और शांति से उपासना करते हैं। यहोवा की मसीहाई सरकार के लिए उनकी वफादारी देखकर, अच्छे चरवाहे यीशु ने उनको एक ही झुंड में इकट्ठा किया है जिसमें वे खुश हैं।

अंधे पहरुए, गूंगे कुत्ते

19. मैदान और वन के जंगली जानवरों को क्या न्यौता दिया जाता है?

19 भविष्यवाणी में अब तक मनभावने और तसल्ली देनेवाले शब्द कहने के बाद, अचानक एक बिलकुल अलग और रोंगटे खड़ी कर देनेवाली बात कही जाती है। एक तरफ यहोवा, परदेशियों और खोजों पर दया दिखाने के लिए तैयार है, लेकिन दूसरी तरफ वह उसकी कलीसिया के सदस्य होने का दावा करनेवाले बहुत-से लोगों की निंदा करता है और उन्हें सज़ा के लायक ठहराता है। वे इज़्ज़त के साथ दफनाए जाने के भी लायक नहीं हैं, बल्कि सिर्फ इस लायक हैं कि खूँखार जानवर उन्हें फाड़ खाएँ। इसलिए, यूँ लिखा है: “हे मैदान के सब जन्तुओ, हे वन के सब पशुओ, खाने के लिये आओ।” (यशायाह 56:9) इन जंगली जानवरों को दावत में क्या मिलेगा? भविष्यवाणी में आगे समझाया गया है। उसे पढ़कर हमें शायद हरमगिदोन की लड़ाई की याद आए जिसमें परमेश्‍वर का विरोध करनेवालों का बहुत बुरा अंजाम होगा और उनकी लाशें आकाश के पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दी जाएँगी।—प्रकाशितवाक्य 19:17,18.

20, 21. धर्मगुरुओं की कौन-सी कमियाँ उन्हें दूसरों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देने में निकम्मा साबित करती हैं?

20 भविष्यवाणी आगे कहती है: “उसके पहरुए अन्धे हैं, वे सब के सब अज्ञानी हैं, वे सब के सब गूंगे कुत्ते हैं जो भूंक नहीं सकते; वे स्वप्न देखनेवाले और लेटे रहकर सोते रहना चाहते हैं। वे मरभूखे कुत्ते हैं जो कभी तृप्त नहीं होते। वे चरवाहे हैं जिन में समझ ही नहीं; उन सभों ने अपने अपने लाभ के लिये अपना अपना मार्ग लिया है। वे कहते हैं कि आओ, हम दाखमधु ले आएं, आओ मदिरा पीकर छक जाएं; कल का दिन भी तो आज ही के समान अत्यन्त सुहावना होगा।”—यशायाह 56:10-12.

21 यहूदा के धर्मगुरु, यहोवा की उपासना करने का दम भरते हैं। उनका दावा है कि वे “उसके पहरुए” हैं, मगर सच तो यह है कि वे आध्यात्मिक तौर पर अंधे, गूंगे हैं और ऊँघ रहे हैं। अगर वे पहरा नहीं दे सकते, ना ही खतरे की चेतावनी दे सकते हैं तो उनका होना, न होना एक ही बात है। धर्म के ऐसे पहरुए समझ नहीं रखते और वे भेड़ समान लोगों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देने के लायक नहीं हैं। इतना ही नहीं, वे पूरी तरह भ्रष्ट भी हैं। उनमें अपना स्वार्थ पूरा करने की ऐसी भूख है जो कभी तृप्त नहीं होती। यहोवा के निर्देशन के मुताबिक चलने के बजाय वे अपने मन-मुताबिक चलते हैं। वे अपने लाभ के लिए धोखाधड़ी करते हैं, शराब के नशे में धुत्त रहते हैं और दूसरों को भी ये सब करने का बढ़ावा देते हैं। परमेश्‍वर का कहर उन पर टूटने ही वाला है, मगर वे बेखबर होकर लोगों को झूठे सपने दिखाते हैं और कहते हैं कि आनेवाला कल खुशियों भरा होगा।

22. यीशु के दिनों के धर्मगुरु कैसे प्राचीनकाल के यहूदा के धर्मगुरुओं की तरह थे?

22 इससे पहले भी यशायाह ने अपनी भविष्यवाणी में यहूदा के विश्‍वासघाती धर्मगुरुओं का वर्णन करने के लिए इससे मिलती-जुलती तसवीर पेश की। उसने कहा कि वे आध्यात्मिक तौर पर नशे में चूर और सुस्त हैं, साथ ही उनमें समझ की कमी है। उन्होंने दूसरों पर इंसान की बनायी परंपराओं का बोझ लाद दिया, धर्म के नाम पर झूठ सिखाया और संकट के समय परमेश्‍वर पर भरोसा रखने के बजाय अश्‍शूरियों के सामने हाथ फैलाया। (2 राजा 16:5-9; यशायाह 29:1,9-14) साफ ज़ाहिर है कि उन्होंने कोई सबक नहीं सीखा। अफसोस कि पहली सदी में भी ऐसे ही अगुवे थे। जब परमेश्‍वर के अपने ही बेटे यीशु ने उन्हें सुसमाचार सुनाया, तब उन्होंने ना सिर्फ उसके संदेश को बल्कि उसे भी ठुकरा दिया और उसे मार डालने की साज़िश रची। यीशु ने सरेआम उनकी निंदा करते हुए कहा कि वे “अन्धे मार्ग दिखानेवाले हैं।” और आगे कहा कि “अन्धा यदि अन्धे को मार्ग दिखाए, तो दोनों गड़हे में गिर पड़ेंगे।”—मत्ती 15:14.

आज के पहरुए

23. धर्मगुरुओं के बारे में पतरस की कौन-सी भविष्यवाणी पूरी हुई है?

23 प्रेरित पतरस ने खबरदार किया था कि मसीहियों को भी बहकाने के लिए झूठे शिक्षक निकल आएँगे। उसने लिखा: “जिस प्रकार [इस्राएल के] लोगों में झूठे भविष्यद्वक्‍ता थे उसी प्रकार तुम में भी झूठे उपदेशक होंगे, जो नाश करने वाले पाखण्ड [“पंथों,” NW] का उद्‌घाटन छिप छिपकर करेंगे और उस स्वामी का जिस ने उन्हें मोल लिया है इन्कार करेंगे और अपने आप को शीघ्र विनाश में डाल देंगे।” (2 पतरस 2:1) इन झूठे शिक्षकों के बनाए पंथों और उनकी झूठी शिक्षाओं का क्या नतीजा निकला है? ईसाईजगत। इसके धर्मगुरु आज परमेश्‍वर से दुआ माँगते हैं कि वह उनके राजनीतिक दोस्तों को आशीष दे और फिर लोगों को यकीन दिलाते हैं कि भविष्य उज्ज्वल होगा। ईसाईजगत के इन अगुवों के बारे में यह साबित हो चुका है कि वे आध्यात्मिक बातों में अंधे, गूंगे हैं और नींद में हैं।

24. आत्मिक इस्राएल और परदेशियों के बीच कैसी एकता है?

24 दूसरी तरफ यहोवा, लाखों परदेशियों को इकट्ठा कर रहा है ताकि वे परमेश्‍वर के इस्राएल के आखिरी सदस्यों के साथ मिलकर, प्रार्थना के उसके महान आत्मिक घर में उसकी उपासना करें। ये परदेशी अलग-अलग देश, जाति, और भाषा के होते हुए भी आपस में एक हैं, साथ ही वे परमेश्‍वर के इस्राएल के साथ एकता की डोरी में बँधे हुए हैं। उन्हें पूरा विश्‍वास है कि सिर्फ यहोवा ही उनको यीशु मसीह के ज़रिए उद्धार दिला सकता है। यहोवा के लिए उनके दिल में इतना प्यार है कि वे चुप नहीं रह सकते, इसलिए वे मसीह के अभिषिक्‍त भाइयों के साथ मिलकर अपने विश्‍वास का अंगीकार करते हैं। वे ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखे प्रेरित के इन शब्दों से बहुत हिम्मत पाते हैं: “यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन से विश्‍वास करे, कि परमेश्‍वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्‍चय उद्धार पाएगा।”—रोमियों 10:9.

[फुटनोट]

^ पैरा. 8 कुछ समय बाद, “खोजा” शब्द दरबारियों के लिए भी इस्तेमाल होने लगा, जिनके बारे में यह नहीं कहा गया है कि उन्हें खोजा बनाने के लिए उनके लिंग काटे जाते थे। जिस कूशी आदमी को फिलिप्पुस ने बपतिस्मा दिया था, उसे भी शायद इसी अर्थ में खोजा कहा गया है। ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि वह पहले से ही यहूदी मतधारक बन चुका था और उसका बपतिस्मा, खतनारहित गैर-यहूदियों को मसीही बनने का मौका मिलने से पहले हुआ था।—प्रेरितों 8:27-39.

^ पैरा. 8 यिर्मयाह की मदद करनेवाले एबेदमेलेक को भी एक खोजा कहा गया है, जिसे सीधे राजा से मिलने की इजाज़त थी। वह भी एक दरबारी था, न कि उसे लिंग काटकर खोजा बनाया गया था।—यिर्मयाह 38:7-13.

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 250 पर तसवीर]

सब्त के दिन प्रार्थना, अध्ययन और मनन करने का अच्छा मौका मिलता था

[पेज 256 पर तसवीरें]

सन्‌ 1935 में, वॉशिंगटन डी.सी. के एक अधिवेशन में अन्य भेड़ों के स्थान के बारे में साफ-साफ समझाया गया (नीचे बपतिस्मे की तसवीर, दाएँ कार्यक्रम की पर्ची)

[पेज 259 पर तसवीर]

जंगली जानवरों को दावत के लिए बुलाया जाता है

[पेज 261 पर तसवीरें]

परदेशी और परमेश्‍वर का इस्राएल, एकता की डोरी में बँधे हुए हैं