पश्चाताप की प्रार्थना
पच्चीसवाँ अध्याय
पश्चाताप की प्रार्थना
1, 2. (क) परमेश्वर ताड़ना क्यों देता है? (ख) यहोवा की ताड़ना मिलने पर यहूदियों को क्या फैसला करना पड़ेगा?
सामान्य युग पूर्व 607 में यरूशलेम और उसके मंदिर के विनाश से यहोवा ने अपने लोगों को ताड़ना दी, जो इस बात का सबूत था कि वह उनसे बेहद क्रोधित है। विद्रोही यहूदा देश इस कड़ी सज़ा के लायक था। मगर फिर भी यहोवा, यहूदियों को जड़ से मिटाना नहीं चाहता था। यहोवा क्यों ताड़ना देता है, इस बारे में प्रेरित पौलुस ने बताया: “वर्तमान में हर प्रकार की ताड़ना आनन्द की नहीं, पर शोक ही की बात दिखाई पड़ती है, तौभी जो उस को सहते सहते पक्के हो गए हैं, पीछे उन्हें चैन के साथ धर्म का प्रतिफल मिलता है।”—इब्रानियों 12:11.
2 यहूदी ऐसा कठोर सबक सीखने पर कैसा नज़रिया दिखाएँगे? क्या वे यहोवा की इस ताड़ना से नफरत करेंगे? (भजन 50:16,17) या क्या वे इसे यहोवा से मिलनेवाली नसीहत समझकर स्वीकार करेंगे? क्या वे पश्चाताप करेंगे ताकि चंगे हो सकें? (यशायाह 57:18; यहेजकेल 18:23) यशायाह की भविष्यवाणी यही दिखाती है कि बंधुआई में जानेवाले यहूदियों में से कम-से-कम कुछ लोग परमेश्वर की ताड़ना को ज़रूर स्वीकार करेंगे। अध्याय 63 की आखिरी आयतों से अध्याय 64 तक, यहूदियों को ऐसे लोग दिखाया गया है जो प्रायश्चित्त करके यहोवा से दया की भीख माँगते हैं। यशायाह भविष्यवक्ता, आनेवाले समय में बंधुआई में जानेवाले अपने जातिभाइयों की तरफ से पश्चाताप की प्रार्थना करता है। यह प्रार्थना करते वक्त वह आगे होनेवाली घटनाओं के बारे में ऐसे बताता है जैसे वे उसके सामने घट रही हों।
करुणामयी पिता
3. (क) भविष्यवाणी के रूप में यशायाह की प्रार्थना से यहोवा की महिमा कैसे की गयी? (ख) दानिय्येल की प्रार्थना से कैसे पता चलता है कि यशायाह की भविष्यवाणी में जो प्रार्थना लिखी है, वही विचार बाबुल में कैद पश्चातापी यहूदियों के मन में थे? (पेज 362 पर बक्स देखिए।)
3 यशायाह, यहोवा से यह प्रार्थना करता है: “स्वर्ग से दृष्टि कर, तथा अपने पवित्र और महिमायुक्त निवासस्थान से देख!” यशायाह उस आत्मिक स्वर्ग की बात कर रहा है, जहाँ यहोवा और उसके सृष्ट किए हुए अदृश्य, आत्मिक जीव रहते हैं। यशायाह आगे बताता है कि बंधुआई के दौरान यहूदियों के मन में कैसे-कैसे विचार आएँगे। वह कहता है: “तेरे उत्साह [जलन, फुटनोट] और पराक्रम के कार्य कहां रहे? मेरे प्रति तेरे हृदय की उत्तेजना और करुणा रोक दी गई है।” (यशायाह 63:15, NHT) यहोवा ने अपनी शक्ति को रोक रखा है और अपने लोगों के लिए अपनी गहरी भावनाएँ यानी अपनी “हृदय की उत्तेजना और करुणा” को दबा लिया है। मगर फिर भी, यहोवा ही यहूदियों का “पिता” है। हालाँकि इब्राहीम और इस्राएल (याकूब) उनके पुरखे और मूलपिता हैं, लेकिन अगर उन्हें ज़िंदा किया जाए तो वे अपनी इस धर्मत्यागी संतान को अपनाने से साफ इनकार कर देंगे। मगर यहोवा उनसे ज़्यादा करुणामयी है। (भजन 27:10) यशायाह उसका एहसान मानते हुए कहता है: “हे यहोवा, तू हमारा पिता और हमारा छुड़ानेवाला है; प्राचीनकाल से यही तेरा नाम है।”—यशायाह 63:16.
4, 5. (क) किस मायने में यहोवा, यहूदियों को अपने मार्गों से भटका देता है? (ख) यहोवा कैसी उपासना चाहता है?
4 यशायाह दिल की गहराइयों से प्रार्थना करना जारी रखता है: “हे यहोवा, तू क्यों हम को अपने मार्गों से भटका देता, और हमारे मन ऐसे कठोर करता है कि हम तेरा भय नहीं मानते? अपने दास, अपने निज भाग के गोत्रों के निमित्त लौट आ।” (यशायाह 63:17) जी हाँ, यशायाह प्रार्थना करता है कि यहोवा अपने दासों की ओर फिर से ध्यान दे। लेकिन इसका क्या मतलब है कि यहोवा, यहूदियों को अपने मार्गों से भटका देता है? क्या यहोवा ही ने उनके मन को इतना कठोर बना दिया है कि वे उसका भय नहीं मानते? जी नहीं, यहोवा ने ऐसा नहीं किया लेकिन उसने सिर्फ ऐसा होने की इजाज़त दी। इसलिए यहूदी निराश होकर यह विलाप करते हैं कि यहोवा ने उन्हें इतनी आज़ादी क्यों दी थी। (निर्गमन 4:21; नहेमायाह 9:16) वे कामना करते हैं कि काश यहोवा ने दखल दिया होता और उनका हाथ पकड़े रहता ताकि वे पाप करते ही ना।
5 बेशक, परमेश्वर किसी भी इंसान का हाथ नहीं रोकता। हमें अपने फैसले खुद करने की आज़ादी और काबिलीयत के साथ बनाया गया है। उसने यह हम पर छोड़ दिया है कि हम उसकी आज्ञा मानें या ठुकरा दें। (व्यवस्थाविवरण 30:15-19) यहोवा ऐसे लोगों की उपासना स्वीकार करता है जिनके मन और हृदय में उसके लिए सच्चा प्यार हो। यहोवा ने यहूदियों को भी अपने चुनाव खुद करने की आज़ादी दी और जब उन्होंने इस आज़ादी का गलत इस्तेमाल करके उसके खिलाफ बगावत की, तब यहोवा ने उन्हें नहीं रोका। इस मायने में यहोवा ने उनके मनों को कठोर कर दिया था।—2 इतिहास 36:14-21.
6, 7. (क) यहोवा के मार्गों को छोड़ देने का यहूदियों के लिए क्या अंजाम हुआ? (ख) यहूदी कौन-सी व्यर्थ कामना करते हैं, और उन्हें क्या उम्मीद करने का अधिकार नहीं?
6 इसका नतीजा क्या हुआ? यशायाह भविष्यवाणी करता है: “तेरी पवित्र प्रजा तो थोड़े ही काल तक तेरे पवित्रस्थान की अधिकारी रही; हमारे द्रोहियों ने उसे लताड़ दिया है। हम लोग तो ऐसे हो गए हैं, मानो तू ने हम पर कभी प्रभुता नहीं की, और उनके समान जो कभी तेरे न कहलाए।” (यशायाह 63:18,19) यहोवा के लोग सिर्फ थोड़े समय तक उसके पवित्रस्थान के अधिकारी रह सके। बाद में यहोवा ने उसे नाश होने और अपनी प्रजा को बंधुआई में जाने दिया। जब यह हुआ, तो ऐसा था मानो उसके और इब्राहीम की संतान के बीच कोई वाचा नहीं थी और मानो वे कभी उसके नाम के कहलाए ही नहीं। अब यहूदी बाबुल में कैद हैं और निराश और लाचार होकर पुकार उठते हैं: “भला हो कि तू आकाश को फाड़कर उतर आए और पहाड़ तेरे साम्हने कांप उठे। जैसे आग झाड़-झंखाड़ को जला देती वा जल को उबालती है, उसी रीति से तू अपने शत्रुओं पर अपना नाम ऐसा प्रगट कर कि जाति जाति के लोग तेरे प्रताप से कांप उठे!” (यशायाह 64:1,2) बेशक, यहोवा के पास उद्धार करने की ताकत है। वह चाहे तो धरती पर उतरकर, अपने लोगों के लिए लड़ते हुए, आकाश जैसी सरकारों को फाड़कर और पहाड़ जैसे साम्राज्यों के टुकड़े-टुकड़े कर सकता था। यहोवा अपने लोगों की खातिर आग की सी जलन के साथ अपने नाम का प्रताप प्रकट कर सकता था।
7 यहोवा ने बीते वक्तों में ऐसे ही काम किए थे। यशायाह याद करता है: “जब तू ने ऐसे भयानक काम किए जो हमारी आशा से भी बढ़कर थे, तब तू उतर आया, पहाड़ तेरे प्रताप से कांप उठे।” (यशायाह 64:3) ऐसे महान कामों ने साबित कर दिया कि यहोवा महाशक्तिशाली है और वही एकमात्र सच्चा परमेश्वर है। मगर, यशायाह के ज़माने के विश्वासघाती यहूदियों को यह उम्मीद करने का कोई अधिकार नहीं कि यहोवा उनकी खातिर ऐसा ही करेगा।
सिर्फ यहोवा उद्धार कर सकता है
8. (क) यहोवा और झूठे देवी-देवताओं के बीच एक फर्क क्या है? (ख) यहोवा बचाने की ताकत रखते हुए भी अपने लोगों को क्यों नहीं बचाता? (ग) पौलुस ने यशायाह 64:4 का हवाला देकर उसे कैसे लागू किया? (पेज 366 पर बक्स देखिए।)
8 झूठे देवी-देवता अपने भक्तों को बचाने के लिए कोई बड़ा काम नहीं कर सकते। यशायाह लिखता है: “प्राचीनकाल ही से तुझे छोड़ कोई और ऐसा परमेश्वर न तो कभी देखा गया और न कान से उसकी चर्चा सुनी गई जो अपनी बाट जोहनेवालों के लिये काम करे। तू तो उन्हीं से मिलता है जो धर्म के काम हर्ष के साथ करते, और तेरे मार्गों पर चलते हुए तुझे स्मरण करते हैं।” (यशायाह 64:4,5क) सिर्फ यहोवा ही “अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है।” (इब्रानियों 11:6) वह ऐसे लोगों की हिफाज़त करने के लिए कदम उठाता है जो धार्मिकता के काम करते और उसे याद रखते हैं। (यशायाह 30:18) क्या यहूदियों ने ऐसा किया है? बिलकुल नहीं। यशायाह, यहोवा से कहता है: “देख, तू क्रोधित हुआ था, क्योंकि हम ने पाप किया; हमारी यह दशा तो बहुत काल से है, क्या हमारा उद्धार हो सकता है?” (यशायाह 64:5ख) परमेश्वर के लोग एक लंबे अरसे से बार-बार पाप करते आए हैं, इसलिए यहोवा के पास अपने क्रोध को रोकने और उनका उद्धार करने की कोई वजह नहीं है।
9. पश्चाताप करनेवाले यहूदी क्या उम्मीद कर सकते हैं, और इससे हम क्या सीख सकते हैं?
9 यहूदी अतीत में जाकर अपने कामों को बदल तो नहीं सकते, लेकिन हाँ, अगर वे पश्चाताप करें और फिर से शुद्ध उपासना करने लगें तो वे माफ किए जाने और भविष्य में आशीषें पाने की उम्मीद कर सकते हैं। यहोवा, पश्चाताप दिखानेवालों को अपने ठहराए हुए वक्त में प्रतिफल देगा और उन्हें बाबुल की बंधुआई से आज़ाद करवाएगा। मगर तब तक उन्हें सब्र करना होगा। उनके प्रायश्चित्त के बावजूद, यहोवा उनके लिए अपना समय नहीं बदलेगा, वह अपने ठहराए हुए वक्त पर ही कार्यवाही करेगा। फिर भी, अगर वे हमेशा सचेत रहें और यहोवा की मरज़ी पूरी करने के लिए तैयार रहें तो वे यकीन रख सकते हैं कि उनका उद्धार ज़रूर होगा। उसी तरह, आज मसीही बड़े धीरज से यहोवा पर आस लगाए रहते हैं। (2 पतरस 3:11,12) हम प्रेरित पौलुस के इन शब्दों से हिम्मत पाते हैं: “हम भले काम करने में हियाव न छोड़ें, क्योंकि यदि हम ढीले न हों, तो ठीक समय पर कटनी काटेंगे।”—गलतियों 6:9.
10. यशायाह की प्रार्थना में क्या बात साफ-साफ स्वीकार की गयी है?
10 भविष्यवाणी के रूप में यशायाह की प्रार्थना, सिर्फ पापों को स्वीकार करने की एक रस्म नहीं है। इस प्रार्थना में नम्र होकर सच्चाई से यह स्वीकार किया गया है कि यहूदा देश अपने बलबूते पर खुद को बचा नहीं सकता। यशायाह कहता है: “हम तो सब के सब अशुद्ध मनुष्य के से हैं, और हमारे धर्म के काम सब के सब मैले चिथड़ों के समान हैं। हम सब के सब पत्ते की नाईं मुर्झा जाते हैं, और हमारे अधर्म के कामों ने हमें वायु की नाईं उड़ा दिया है।” (यशायाह 64:6) पश्चातापी यहूदियों ने बंधुआई से आज़ादी मिलने के वक्त तक धर्मत्याग छोड़ दिया होगा। वे शायद धार्मिकता के काम करते हुए यहोवा के पास लौट आए होंगे। मगर वे अब भी असिद्ध हैं। इसलिए, हालाँकि उनके अच्छे काम काबिले-तारीफ हैं, मगर जहाँ तक इनकी बिनाह पर पापों के प्रायश्चित्त पाने की बात है तो ये मैले-कुचैले चिथड़ों के बराबर ही हैं। यहोवा, लोगों पर दया करके उन्हें माफ करता है, और उसकी माफी ऐसा वरदान है जिसे पाने के दरअसल हम लायक नहीं हैं। हम कैसे भी काम करके इसे हासिल नहीं कर सकते।—रोमियों 3:23,24.
11. (क) बंधुआई में पड़े ज़्यादातर यहूदी, कैसी खराब आध्यात्मिक हालत में हैं, और ऐसा शायद क्यों है? (ख) बंधुआई के दौरान, कौन लोग विश्वास की बढ़िया मिसाल थे?
यशायाह 64:7) इस जाति की आध्यात्मिक हालत बद से बदतर हो गयी है। लोग यहोवा के नाम से प्रार्थना नहीं कर रहे। हालाँकि वे अब मूर्तिपूजा जैसे घोर पाप नहीं करते, लेकिन उपासना में उनकी लापरवाही साफ नज़र आती है और उनमें कोई ऐसा नहीं है जो यहोवा से ‘सहायता लेने के लिये चौकसी करता हो कि उससे लिपटा रहे।’ ज़ाहिर है कि अपने सिरजनहार के साथ उनका रिश्ता अच्छा नहीं। शायद कुछ लोग खुद को यहोवा से प्रार्थना करने के काबिल महसूस नहीं करते। और दूसरे ऐसे हैं जो अपने रोज़मर्रा के कामों में लगे हुए हैं और उन्हें यहोवा के बारे में सोचने की ज़रा भी फुरसत नहीं। बेशक बंधुओं में दानिय्येल, हनन्याह, मीशाएल, अजर्याह और यहेजकेल जैसे लोग भी हैं और इनके विश्वास की मिसाल वाकई बहुत बढ़िया है। (इब्रानियों 11:33,34) जब बंधुआई के 70 साल खत्म होने पर आए तो हाग्गै, जकर्याह, जरूब्बाबेल और महायाजक यहोशू जैसे पुरुष, यहोवा के नाम को पुकारने में बढ़िया तरीके से अगुवाई के लिए तैयार थे। फिर भी, प्रार्थना के रूप में यशायाह की भविष्यवाणी दिखाती है कि बाबुल में ज़्यादातर यहूदी बंधुओं की हालत क्या होगी।
11 जब यशायाह भविष्य की ओर देखता है, तो उसे क्या नज़र आता है? वह प्रार्थना करता है: “कोई भी तुझ से प्रार्थना नहीं करता, न कोई तुझ से सहायता लेने के लिये चौकसी करता है कि तुझ से लिपटा रहे; क्योंकि हमारे अधर्म के कामों के कारण तू ने हम से अपना मुंह छिपा लिया है, और हमें हमारी बुराइयों के वश में छोड़ दिया है।” (“आज्ञा पालन बलिदान से बढ़कर” है
12. यशायाह कैसे ज़ाहिर करता है कि पश्चाताप करनेवाले यहूदी अपने व्यवहार को बदलने के लिए तैयार हैं?
12 पश्चाताप करनेवाले यहूदी खुद को बदलने के लिए तैयार हैं। उनकी तरफ से यशायाह, यहोवा से प्रार्थना करता है: “तौभी, हे यहोवा, तू हमारा पिता है; देख, हम तो मिट्टी हैं, और तू हमारा कुम्हार है, हम सब के सब तेरे हाथ के काम हैं।” (यशायाह 64:8) इन शब्दों से एक बार फिर यह कबूल किया जाता है कि एक पिता या जीवन-दाता की हैसियत से यहोवा के पास अधिकार है। (अय्यूब 10:9) पश्चाताप करनेवाले यहूदियों की तुलना गीली मिट्टी से की गयी है जिसे कोई भी आकार दिया जा सकता है। जो लोग यहोवा की ताड़ना स्वीकार करते हैं, उन्हें मानो परमेश्वर के स्तरों के मुताबिक ढाला या आकार दिया जा सकता है। लेकिन यह तभी संभव होगा अगर यहोवा यानी उनका कुम्हार उन्हें क्षमा प्रदान करे। इसलिए, यशायाह दो बार यहोवा से यह याद रखने की बिनती करता है कि यहूदी उसी की प्रजा हैं: “हे यहोवा, अत्यन्त क्रोधित न हो, और अनन्तकाल तक हमारे अधर्म को स्मरण न रख। विचार करके देख, हम तेरी बिनती करते हैं, हम सब तेरी प्रजा हैं।”—यशायाह 64:9.
13. परमेश्वर के लोग जब बंधुआई में थे तब इस्राएल देश किस हाल में था?
13 बंधुआई के दौरान यहूदी, आम बंधुओं की तरह किसी विधर्मी देश में सिर्फ तकलीफें नहीं सहते। यरूशलेम और उसके मंदिर की उजड़ी हुई हालत की वजह से उनकी और उनके परमेश्वर की निंदा की जाती है। यशायाह की पश्चाताप की प्रार्थना बताती है कि इस निंदा के कुछ कारण क्या हैं: “देख, तेरे पवित्र नगर जंगल हो गए, सिय्योन सुनसान हो गया है, यरूशलेम उजड़ गया है। हमारा पवित्र और शोभायमान मन्दिर, जिस में हमारे पूर्वज तेरी स्तुति करते थे, आग से जलाया गया, और हमारी मनभावनी वस्तुएं सब नष्ट हो गई हैं।”—यशायाह 64:10,11.
14. (क) यहोवा ने मौजूदा हालात के बारे में पहले से क्या चेतावनी दी थी? (ख) हालाँकि यहोवा अपने मंदिर और वहाँ चढ़ाए जानेवाले बलिदानों से खुश था, फिर भी इनसे ज़्यादा ज़रूरी क्या है?
14 बेशक, यहोवा अच्छी तरह जानता है कि यहूदियों के पुरखों की भूमि किस हाल में है। यरूशलेम के विनाश से लगभग 420 साल पहले, उसने अपने लोगों को चेतावनी दी थी कि अगर उन्होंने उसकी आज्ञाओं को मानना छोड़ दिया और दूसरे देवताओं को पूजने लगे तो वह उनको ‘उस देश में से मिटा डालेगा’ और उनका आलीशान मंदिर “मलवे का ढेर हो जाएगा।” (1 राजा 9:6-9, NHT) माना कि यहोवा अपने लोगों को यह देश देकर, और उसके सम्मान में बनाए गए आलीशान मंदिर से और उसमें चढ़ायी जानेवाली बलियों से खुश हुआ था। मगर इन बाहरी चीज़ों से, यहाँ तक कि बलिदानों से भी ज़्यादा ज़रूरी है, वफादारी और आज्ञा मानना। भविष्यवक्ता शमूएल ने राजा शाऊल से बिलकुल सही कहा था: “क्या यहोवा होमबलि और बलिदानों से उतना प्रसन्न होता है जितना अपनी आज्ञाओं के माने जाने से? सुन, आज्ञा पालन बलिदान से बढ़कर और ध्यान देना मेढ़ों की चर्बी से उत्तम है।”—1 शमूएल 15:22, NHT.
15. (क) यशायाह ने अपनी भविष्यवाणी की प्रार्थना में यहोवा से क्या बिनती की, और इस बिनती का जवाब कैसे दिया गया? (ख) किस वजह से यहोवा ने आखिरकार इस्राएल जाति को हमेशा के लिए ठुकरा दिया?
यशायाह 64:12) आगे चलकर हालात बदले और यहोवा ने वाकई अपने लोगों को माफ किया। और सा.यु.पू. 537 में, वह उन्हें वापस अपने वतन ले आया ताकि वे फिर से वहाँ शुद्ध उपासना शुरू करें। (योएल 2:13) लेकिन, सदियों बाद यरूशलेम और उसका मंदिर फिर से तबाह हो गए और परमेश्वर ने अपनी चुनी हुई जाति को आखिरकार ठुकरा दिया। क्यों? क्योंकि यहोवा के लोगों ने धीरे-धीरे उसकी आज्ञाओं को मानना छोड़ दिया और उसके भेजे हुए मसीहा को ठुकरा दिया। (यूहन्ना 1:11; 3:19,20) जब यह हुआ तब यहोवा ने इस्राएल की जगह एक नयी आत्मिक जाति को चुन लिया और वह था, ‘परमेश्वर का इस्राएल।’—गलतियों 6:16; 1 पतरस 2:9.
15 लेकिन, क्या ऐसा हो सकता है कि इस्राएल का परमेश्वर अपने पश्चातापी लोगों की दुर्दशा को देखे और उसका दिल न पसीजे? ऐसे ही एक सवाल से यशायाह अपनी भविष्यवाणी के रूप में की गयी इस प्रार्थना को समाप्त करता है। बंधुआई में पड़े यहूदियों की तरफ से वह बिनती करता है: “हे यहोवा, क्या इन बातों के होते भी तू अपने को रोके रहेगा? क्या तू हम लोगों को इस अत्यन्त दुर्दशा में रहने देगा?” (‘प्रार्थना का सुननेवाला,’ यहोवा
16. यहोवा की क्षमा के बारे में बाइबल क्या सिखाती है?
16 इस्राएल के साथ जो हुआ उससे बहुत ज़रूरी सबक सीखे जा सकते हैं। हमने देखा कि यहोवा “भला और क्षमा करनेवाला है।” (भजन 86:5) असिद्ध इंसान होने के कारण, हम अपने उद्धार के लिए उसकी दया और क्षमा पर निर्भर हैं। हम चाहे कितने ही भले काम कर लें, फिर भी हम इन आशीषों के लायक नहीं बन सकते। यहोवा लोगों को अंधाधुंध क्षमा नहीं करता। जो लोग अपने पापों से पश्चाताप करते और उन्हें छोड़ देते हैं, सिर्फ उन्हीं को परमेश्वर की तरफ से माफी मिल सकती है।—प्रेरितों 3:19.
17, 18. (क) हम कैसे जानते हैं कि यहोवा हमारे विचारों और भावनाओं को सचमुच जानना चाहता है? (ख) यहोवा पापी इंसानों के साथ धीरज से क्यों पेश आता है?
17 हमने यह भी सीखा कि जब हम प्रार्थना में अपने विचार और भावनाएँ भजन 65:2,3) प्रेरित पतरस भी हमें यकीन दिलाता है कि यहोवा “की आंखें धर्मियों पर लगी रहती हैं, और उसके कान उन की बिनती की ओर लगे रहते हैं, परन्तु प्रभु बुराई करनेवालों के विमुख रहता है।” (1 पतरस 3:12) इसके अलावा हमने सीखा कि पश्चाताप की प्रार्थना में हमें नम्रता से अपने पाप स्वीकार करने चाहिए। (नीतिवचन 28:13) लेकिन, इसका मतलब यह नहीं कि हम परमेश्वर की दया का नाजायज़ फायदा उठाते हुए पाप करते रहें और उम्मीद करें कि वह हम पर दया करता रहेगा। बाइबल मसीहियों को चेतावनी देती है कि “परमेश्वर का अनुग्रह जो तुम पर हुआ, [उसे] व्यर्थ न रहने दो।”—2 कुरिन्थियों 6:1.
यहोवा को बताते हैं तो वह इन्हें बड़े ध्यान से सुनता है। वह ‘प्रार्थना का सुननेवाला’ है। (18 आखिर में, हमने यह भी सीखा कि परमेश्वर किस मकसद से अपने पापी लोगों के साथ धीरज से पेश आता है। प्रेरित पतरस ने बताया कि यहोवा इसलिए धीरज धरता है क्योंकि वह “नहीं चाहता, कि कोई नाश हो; बरन यह कि सब को मन फिराव का अवसर मिले।” (2 पतरस 3:9) लेकिन, जो लोग लगातार परमेश्वर के धीरज की परीक्षा लेते रहते हैं, उन्हें आखिरकार इसकी सज़ा ज़रूर मिलेगी। इस बारे में यह लिखा गया है: “[यहोवा] हर एक को उसके कामों के अनुसार बदला देगा। जो सुकर्म में स्थिर रहकर महिमा, और आदर, और अमरता की खोज में हैं, उन्हें वह अनन्त जीवन देगा। पर जो विवादी हैं, और सत्य को नहीं मानते, बरन अधर्म को मानते हैं, उन पर क्रोध और कोप पड़ेगा।”—रोमियों 2:6-8.
19. यहोवा के कौन-से गुण कभी नहीं बदलेंगे?
19 परमेश्वर, प्राचीन इस्राएल के साथ इसी नियम के अनुसार पेश आया। यहोवा बदलता नहीं, इसलिए आज उसके साथ हमारे रिश्ते में भी यही सिद्धांत लागू होते हैं। हालाँकि वह, जहाँ ज़रूरी हो वहाँ दंड देने से पीछे नहीं हटता, लेकिन वह हमेशा वैसा रहेगा जैसा यहाँ बताया है: “यहोवा, ईश्वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवन्त, और अति करुणामय और सत्य, हज़ारों पीढ़ियों तक निरन्तर करुणा करनेवाला, अधर्म और अपराध और पाप का क्षमा करनेवाला है।”—निर्गमन 34:6,7.
[अध्ययन के लिए सवाल]
[पेज 362 पर बक्स/तसवीरें]
दानिय्येल की पश्चाताप की प्रार्थना
भविष्यवक्ता दानिय्येल, यहूदियों की बंधुआई के पूरे 70 साल के दौरान बाबुल में ही था। बंधुआई के 68वें साल के आसपास, दानिय्येल ने यिर्मयाह की भविष्यवाणी से यह जान लिया कि बाबुल से इस्राएलियों के कूच करने का समय नज़दीक आ गया है। (यिर्मयाह 25:11; 29:10; दानिय्येल 9:1,2) दानिय्येल ने यहोवा से फरियाद की। उसने पूरी जाति की तरफ से पश्चाताप की प्रार्थना की। दानिय्येल बताता है: “तब मैं अपना मुख प्रभु परमेश्वर की ओर करके गिड़गिड़ाहट के साथ प्रार्थना करने लगा, और उपवास कर, टाट पहिन, राख में बैठकर वरदान मांगने लगा। मैं ने अपने परमेश्वर यहोवा से इस प्रकार प्रार्थना की और पाप का अंगीकार किया।”—दानिय्येल 9:3,4.
जब यशायाह ने अपनी किताब के 63 और 64वें अध्याय में भविष्यवाणी के रूप में कही अपनी प्रार्थना लिखी, उसके लगभग दो सौ साल बाद दानिय्येल ने यह प्रार्थना की थी। बेशक, बहुत-से नेकदिल यहूदी, बंधुआई के उन कठिन सालों में यहोवा से प्रार्थना करते होंगे। मगर, बाइबल में सिर्फ दानिय्येल की प्रार्थना दर्ज़ की गयी है। ज़ाहिर है कि इस प्रार्थना में बतायी गयी भावनाएँ बहुत-से वफादार यहूदियों की अपनी भावनाएँ थीं। इस तरह दानिय्येल की प्रार्थना से पता चलता है कि बाबुल में रहनेवाले वफादार यहूदियों के मन में वही जज़्बात थे जो यशायाह की भविष्यवाणी की प्रार्थना में ज़ाहिर किए गए थे।
दानिय्येल की प्रार्थना और यशायाह की प्रार्थना में कुछ समानताओं पर गौर कीजिए।
यशायाह 64:10,11 दानिय्येल 9:16-18
[पेज 366 पर बक्स]
“जो आंख ने नहीं देखी”
प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थियों को लिखी अपनी पत्री में, यशायाह की किताब का हवाला देते हुए लिखा: “जैसा लिखा है, कि जो आंख ने नहीं देखी, और कान ने नहीं सुना, और जो बातें मनुष्य के चित्त में नहीं चढ़ीं, वे ही हैं, जो परमेश्वर ने अपने प्रेम रखनेवालों के लिये तैयार की हैं।” (1 कुरिन्थियों 2:9) * न तो पौलुस और न ही यशायाह के शब्द उन चीज़ों की ओर इशारा कर रहे हैं जो यहोवा ने अपने लोगों की खातिर स्वर्गीय विरासत में या इस पृथ्वी पर आनेवाले फिरदौस के लिए तैयार की हैं। पौलुस, यशायाह के शब्दों को उन आशीषों पर लागू कर रहा था जो पहली सदी के मसीहियों को फिलहाल उस वक्त मिल रही थीं, यानी परमेश्वर की गहरी बातों की समझ और यहोवा से मिलनेवाली आध्यात्मिक रोशनी।
हम गहरी आध्यात्मिक बातें सिर्फ तभी समझ सकते हैं जब यहोवा अपने ठहराए हुए वक्त पर उन्हें प्रकट करता है। और प्रकट किए जाने पर भी हम तभी इनकी समझ हासिल कर पाएँगे जब हम एक आध्यात्मिक इंसान हों और यहोवा के साथ हमारा बहुत करीबी रिश्ता हो। पौलुस के शब्द उन लोगों पर लागू होते हैं जिनमें आध्यात्मिकता की कमी है या ना के बराबर है। वे अपनी समझ की आँखों से आध्यात्मिक सच्चाइयों को नहीं देख सकते हैं, ना ही अपने कानों से सुनकर उनको पहचान सकते हैं। जिन चीज़ों का ज्ञान, परमेश्वर ने अपने प्रेम करनेवालों के लिए तैयार किया है, वह ऐसे लोगों के दिलों तक पहुँच ही नहीं पाता। लेकिन जो पौलुस की तरह परमेश्वर को समर्पित हैं, उन पर परमेश्वर ने अपनी आत्मा के ज़रिए ये बातें प्रकट की हैं।—1 कुरिन्थियों 2:1-16.
[फुटनोट]
^ पैरा. 56 पौलुस के कहे ये शब्द, इब्रानी शास्त्र में कहीं पर भी हू-ब-हू वैसे ही नहीं दिए हैं। उसने शायद यशायाह 52:15; 64:4; और 65:17 के विचारों को मिलाकर यह बात कही थी।
[पेज 367 पर तसवीर]
यरूशलेम और उसके मंदिर पर, यहोवा के लोगों का थोड़े ही समय तक अधिकार रहा