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बांझ खुशियाँ मनाती है

बांझ खुशियाँ मनाती है

पंद्रहवाँ अध्याय

बांझ खुशियाँ मनाती है

यशायाह 54:1-17

1. सारा, औलाद के लिए क्यों तरस रही थी और इस वजह से उस पर क्या-क्या बीती?

सारा औलाद के लिए तरस रही थी। वह बांझ थी और यह दुःख उसे अंदर-ही-अंदर खाए जा रहा था। उन दिनों बांझ होना बहुत बड़ा कलंक समझा जाता था, मगर सारा सिर्फ इसी वजह से दुःखी नहीं थी। दरअसल परमेश्‍वर ने उसके पति, इब्राहीम से वादा किया था कि उसका वंश धरती पर रहनेवाले सभी परिवारों के लिए आशीष होगा। (उत्पत्ति 12:1-3) सारा के दिल में इस वादे को सच होते देखने की हसरत थी। परमेश्‍वर को यह वादा किए हुए कितने ही साल गुज़र गए, मगर उनकी कोई औलाद नहीं हुई। सारा की उम्र काफी ढल चुकी थी, लेकिन उसकी गोद अब भी सूनी थी। कभी-कभी शायद वह सोचती होगी कि कहीं उसके सारे अरमान दिल ही में न रह जाएँ। पर एक दिन ऐसा भी आया जब उसके आँसू, खुशियों में बदल गए!

2. यशायाह के 54वें अध्याय की भविष्यवाणी में हमें क्यों दिलचस्पी लेनी चाहिए?

2 सारा का यह दर्द, यशायाह के 54वें अध्याय की भविष्यवाणी समझने में हमारी मदद करता है। इस अध्याय में यरूशलेम की तुलना एक ऐसी स्त्री से की गयी है जो बांझ है, मगर उसे यह खुशखबरी दी जाती है कि आगे चलकर वह कई संतानों का सुख पाएगी। यहोवा, प्राचीनकाल के अपने लोगों को अपनी पत्नी कहकर दिखाता है कि वह उनसे कितना प्यार करता है। इसके अलावा, यह अध्याय बाइबल में बताए गए “पवित्र भेद” के एक अहम पहलू को समझने में हमारी मदद करता है। (रोमियों 16:25,26, NW) इस अध्याय में बतायी गयी बांझ ‘स्त्री’ कौन है और उस पर क्या-क्या गुज़रती है, यह जानने से शुद्ध उपासना के बारे में हमारी समझ और भी बढ़ती है।

‘स्त्री’ की पहचान

3. “बांझ” क्यों खुशियाँ मनाएगी?

3 अध्याय 54 में सबसे पहले एक खुशी का पैगाम दिया जाता है: “हे बांझ, तू जो पुत्रहीन है जयजयकार कर; तू जिसे जन्माने की पीड़ें नहीं हुईं, गला खोलकर जयजयकार कर और पुकार! क्योंकि त्यागी हुई के लड़के सुहागिन के लड़कों से अधिक होंगे, यहोवा का यही वचन है।” (यशायाह 54:1) यह खुशखबरी सुनाते वक्‍त यशायाह के रोम-रोम में कैसी सिहरन दौड़ उठी होगी! और जब यह भविष्यवाणी पूरी होगी तो बाबुल में बंदी पड़े यहूदी, कैसे राहत की साँस लेंगे! लेकिन उस वक्‍त भी यरूशलेम नगरी उजाड़ पड़ी होगी। और इंसान की नज़र से देखने पर उसके फिर से आबाद होने की मानो कोई गुंजाइश नज़र नहीं आएगी, वैसे ही जैसे एक बांझ अपने बुढ़ापे में कभी माँ बनने की उम्मीद नहीं कर सकती। मगर इस “बांझ” को आगे चलकर बहुत बड़ी आशीष मिलनेवाली है—वह भरी-पूरी हो जाएगी। यरूशलेम खुशी से फूली न समाएगी, क्योंकि वह दोबारा अपने “लड़कों” या निवासियों से भर जाएगी।

4. (क) प्रेरित पौलुस हमें कैसे समझाता है कि यशायाह अध्याय 54 की भविष्यवाणी न सिर्फ सा.यु.पू. 537 में बल्कि बाद में भी बड़े पैमाने पर पूरी होनेवाली थी? (ख) “ऊपर की यरूशलेम” का मतलब क्या है?

4 शायद यशायाह को यह बात मालूम नहीं थी, मगर यह भविष्यवाणी बड़े पैमाने पर भी पूरी होनेवाली थी। प्रेरित पौलुस, यशायाह के 54वें अध्याय का हवाला देकर समझाता है कि उसमें बतायी गयी ‘स्त्री’ न सिर्फ पृथ्वी पर यरूशलेम नगरी को बल्कि उसे दर्शाती है जो इससे भी कहीं ज़्यादा महत्त्व रखती है। उसने लिखा: “ऊपर की यरूशलेम स्वतंत्र है, और वह हमारी माता है।” (गलतियों 4:26) “ऊपर की यरूशलेम” का मतलब क्या है? एक बात तो साफ है कि यह वादा किए हुए देश की यरूशलेम नगरी नहीं हो सकती क्योंकि वह पृथ्वी पर है, ना कि “ऊपर” स्वर्ग में। इसलिए “ऊपर की यरूशलेम” परमेश्‍वर की स्वर्गीय ‘स्त्री,’ यानी शक्‍तिशाली आत्मिक प्राणियों से बना उसका संगठन है।

5. गलतियों 4:22-31 में बताए गए दृष्टांत के मुताबिक (क) इब्राहीम, (ख) सारा, (ग) इसहाक, (घ) हाजिरा और (ङ) इश्‍माएल किसकी तसवीर हैं?

5 लेकिन यहोवा की दो लाक्षणिक स्त्रियाँ कैसे हो सकती हैं—एक स्वर्ग में और एक पृथ्वी पर? क्या ऐसा कहना गलत नहीं है? बिलकुल नहीं। जैसे प्रेरित पौलुस ने समझाया, इसका जवाब हमें इब्राहीम के परिवार पर गौर करने से मिलता है, क्योंकि उसके परिवार के सदस्यों के ज़रिए भविष्य की एक तसवीर पेश की गयी थी। (गलतियों 4:22-31; पेज 218 पर “इब्राहीम का परिवार—भविष्य की एक तसवीर” देखिए।) इब्राहीम की पत्नी, सारा “स्वतंत्र स्त्री” थी और वह आत्मिक प्राणियों से बने यहोवा के उस संगठन की तसवीर है जो यहोवा की पत्नी के समान है। और हाजिरा, जो इब्राहीम की दासी और उसकी दूसरी पत्नी या रखैल थी, पृथ्वी की यरूशलेम की तसवीर है।

6. किस मायने में परमेश्‍वर का स्वर्गीय संगठन या उसकी स्त्री एक लंबे अरसे तक बेऔलाद रही?

6 इस जानकारी से हमें एक झलक मिलती है कि यशायाह 54:1 की भविष्यवाणी में कितना गहरा अर्थ छिपा है। सालों तक बेऔलाद रहने के बाद, सारा ने 90 साल की उम्र में इसहाक को जन्म दिया। उसी तरह एक लंबे अरसे तक यहोवा का स्वर्गीय संगठन भी बे-औलाद रहा। दरअसल, यहोवा ने बहुत पहले अदन के बाग में यह प्रतिज्ञा की थी कि उसकी “स्त्री” एक “वंश” को जन्म देगी। (उत्पत्ति 3:15) और इस वादे के दो हज़ार से भी ज़्यादा साल बाद, यहोवा ने उस वंश के बारे में इब्राहीम के साथ एक वाचा बाँधी। मगर इसके बाद भी, परमेश्‍वर की स्वर्गीय ‘स्त्री’ को वंश पैदा करने के लिए सदियों तक इंतज़ार करना था। आखिरकार वह समय भी आया जब इस ‘स्त्री’ ने जो कभी “बांझ” थी, इतने बच्चों को जन्म दिया कि उनकी गिनती पैदाइशी इस्राएलियों से कहीं ज़्यादा हो गयी। बांझ के इस दृष्टांत से हम जान पाते हैं कि भविष्यवाणी में बताए गए वंश के आने का स्वर्गदूत क्यों बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। (1 पतरस 1:12) आखिर में वह वंश कब आया?

7. यशायाह 54:1 की भविष्यवाणी के मुताबिक, “ऊपर की यरूशलेम” ने कब खुशियाँ मनायीं, और आप ऐसा क्यों कहते हैं?

7 इसमें कोई शक नहीं कि इंसान के रूप में यीशु का जन्म, स्वर्गदूतों के लिए एक खुशी का मौका था। (लूका 2:9-14) मगर यशायाह 54:1 में बतायी गयी घटना यीशु के जन्म के बारे में नहीं थी। सा.यु. 29 में जब यीशु ने पवित्र आत्मा से जन्म लिया तब वह “ऊपर की यरूशलेम” का आत्मिक पुत्र बना और परमेश्‍वर ने खुद सरेआम उसे अपना “प्रिय पुत्र” कबूल किया। (मरकुस 1:10,11; इब्रानियों 1:5; 5:4,5) तब कहीं जाकर परमेश्‍वर की स्वर्गीय ‘स्त्री’ ने खुशियाँ मनायीं और यशायाह 54:1 की भविष्यवाणी पूरी हुई। आखिरकार स्त्री ने वादा किए हुए वंश, मसीहा को जन्म दिया! सदियों से सूनी पड़ी उसकी गोद भर गयी। मगर यह उसकी खुशियों की बस शुरूआत ही थी।

बांझ के कई पुत्र

8. वादा किए हुए वंश को जन्म देने के बाद, परमेश्‍वर की स्वर्गीय ‘स्त्री’ ने क्यों खुशियाँ मनायीं?

8 यीशु, अपनी मौत के बाद पुनरुत्थान पाकर जब स्वर्ग लौटा तब परमेश्‍वर की स्वर्गीय ‘स्त्री’ अपने इस प्यारे बेटे को वापस पाकर खुशी से फूली न समायी, जो “मरे हुओं में से जी उठनेवालों में पहिलौठा” था। (कुलुस्सियों 1:18) इसके बाद से उस स्त्री के और भी आत्मिक पुत्र हुए। सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन, यीशु के करीब 120 चेलों का पवित्र आत्मा से अभिषेक किया गया और इस तरह उन्हें यीशु के संगी वारिस बनने के लिए गोद लिया गया। उसी दिन और 3,000 जन उनमें मिल गए। (यूहन्‍ना 1:12; प्रेरितों 1:13-15; 2:1-4,41; रोमियों 8:14-16) इस तरह आत्मिक पुत्रों की गिनती लगातार बढ़ती गयी। लेकिन जब धर्मत्यागी ईसाईजगत ने पनपना शुरू किया तो उन सदियों के दौरान आत्मिक पुत्रों की बढ़ोतरी बहुत कम हो गयी थी। मगर फिर 20वीं सदी में हालात बदलनेवाले थे।

9, 10. “अपने तम्बू का स्थान चौड़ा कर,” यह हिदायत प्राचीन समय में तंबुओं में रहनेवाली स्त्री के लिए क्या मतलब रखती थी, और यह उसके लिए खुशी का मौका क्यों होता था?

9 यशायाह अब एक ऐसे समय की भविष्यवाणी करता है जब शानदार बढ़ोतरी होगी: “अपने तम्बू का स्थान चौड़ा कर, और तेरे डेरे के पट लम्बे किए जाएं; हाथ मत रोक, रस्सियों को लम्बी और खूंटों को दृढ़ कर। क्योंकि तू दहिने-बाएं फैलेगी, और तेरा वंश [‘तेरी सन्तान,’ ईज़ी-टू-रीड वर्शन] जाति-जाति का अधिकारी होगा और उजड़े हुए नगरों को फिर से बसाएगा। मत डर, क्योंकि तेरी आशा फिर नहीं टूटेगी; मत घबरा, क्योंकि तू फिर लज्जित न होगी और तुझ पर सियाही न छाएगी; क्योंकि तू अपनी जवानी की लज्जा भूल जाएगी, और, अपने विधवापन की नामधराई को फिर स्मरण न करेगी।”—यशायाह 54:2-4.

10 इस भविष्यवाणी में यरूशलेम की तुलना एक पत्नी और माँ से की गयी है जो तम्बुओं में रहती है, ठीक जैसे सारा रहा करती थी। जब परिवार बढ़ता जाता है, तो माँ को नज़र आने लगता है कि उसके लिए अपने घर को और बड़ा बनाने का वक्‍त आ गया है। उसे अपने डेरे के पट और रस्सियों को लंबा करने की ज़रूरत है, साथ ही खूंटों को नयी जगह पर मज़बूती से गाड़ना है। ऐसी मेहनत करने में माँ को बड़ा आनंद मिलता है और वह इतनी व्यस्त हो जाती है कि उसे शायद ही वे साल याद रहें जब वह दिन-रात इसी चिंता में डूबी रहती थी कि क्या कभी उसकी संतान होगी जो उसके वंश को आगे बढ़ाएगी।

11. (क) सन्‌ 1914 में परमेश्‍वर की स्वर्गीय ‘स्त्री’ ने क्या आशीष पायी? (फुटनोट देखिए।) (ख) सन्‌ 1919 से, पृथ्वी पर अभिषिक्‍तों को कैसी आशीष मिली है?

11 पृथ्वी की यरूशलेम के लिए, बाबुल से यहूदियों के छुटकारे के बाद आशीषों से भरा ऐसा समय आया। मगर “ऊपर की यरूशलेम” को उससे भी कहीं ज़्यादा आशीषें मिली हैं। * उसकी अभिषिक्‍त ‘सन्तान’ 1919 में आध्यात्मिक रूप से बहाल हुई और खासकर तब से यह फल-फूल रही है। (यशायाह 61:4; 66:8) उन्होंने कई देशों में जाकर ऐसे लोगों की तलाश की जो उनके आध्यात्मिक परिवार के सदस्य बनना चाहते थे और इस मायने में ये अभिषिक्‍त संतान ‘जाति-जाति के अधिकारी’ हुए। नतीजा यह हुआ कि अभिषिक्‍त पुत्रों की गिनती, दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती गयी। और 1935 के आस-पास, ऐसा लग रहा था कि 1,44,000 अभिषिक्‍त जनों के आखिरी सदस्यों को इकट्ठा करने का काम लगभग पूरा हो गया। (प्रकाशितवाक्य 14:3) इसके बाद से प्रचार काम का खास मकसद अभिषिक्‍तों को इकट्ठा करना नहीं रहा। लेकिन, अभिषिक्‍तों की संख्या पूरी होने के बाद भी बढ़ोतरी जारी रही।

12. दशक 1930 से अभिषिक्‍तों के अलावा और किसे मसीही कलीसिया में इकट्ठा किया जा रहा है?

12 यीशु ने खुद भविष्यवाणी की थी कि सच्चे मसीहियों की भेड़शाला में, उसके अभिषिक्‍त भाइयों के “छोटे झुण्ड” के अलावा ‘अन्य भेड़ों’ को भी इकट्ठा किया जाना है। (लूका 12:32; यूहन्‍ना 10:16, NW) हालाँकि अभिषिक्‍तों के ये वफादार साथी, “ऊपर की यरूशलेम” के पुत्र नहीं हैं मगर वे भी बहुत पहले की गयी भविष्यवाणी के मुताबिक एक अहम भूमिका निभाते हैं। (जकर्याह 8:23) सन्‌ 1930 के दशक से लेकर आज तक अन्य भेड़ों की एक “बड़ी भीड़” इकट्ठी की जा रही है, जिससे मसीही कलीसियाओं में इतनी बढ़ोतरी हुई जितनी पहले कभी नहीं हुई थी। (प्रकाशितवाक्य 7:9,10) आज यह बड़ी भीड़ लाखों की तादाद में पहुँच गयी है। इस वजह से ज़्यादा-से-ज़्यादा राज्यगृहों, सम्मेलन-गृहों और शाखा दफ्तरों की सख्त ज़रूरत आ पड़ी है। इसलिए यशायाह के शब्द खासकर आज बहुत मायने रखते हैं। उस भविष्यवाणी में बतायी गयी बढ़ोतरी में भाग लेना हमारे लिए कितना बड़ा सम्मान है!

एक माँ जो अपनी संतान का दर्द समझती है

13, 14. (क) परमेश्‍वर की स्वर्गीय ‘स्त्री’ के बारे में बतायी गयी किन बातों को समझना मुश्‍किल लग सकता है? (ख) परमेश्‍वर ने पारिवारिक रिश्‍तों की जो मिसाल दी, उससे हम किन गूढ़ बातों को समझ पाते हैं?

13 अब तक हमने देखा कि यशायाह की भविष्यवाणी की बड़ी पूर्ति में, ‘स्त्री’ यहोवा के स्वर्गीय संगठन को दर्शाती है। मगर यशायाह 54:4 पढ़ने पर, हम शायद सोच में पड़ जाएँ कि आत्मिक प्राणियों से बने इस संगठन को कब और कैसे, शर्मिंदा या लज्जित होना पड़ा था। इसकी आगे की आयतें बताती हैं कि परमेश्‍वर की ‘स्त्री’ त्यागी हुई, दुखियारी होगी और उस पर आक्रमण किया जाएगा। यहाँ तक कि उसकी वजह से परमेश्‍वर का क्रोध भड़क उठेगा। लेकिन ये सब एक ऐसे संगठन के साथ कैसे हो सकता है जिसमें सिद्ध आत्मिक प्राणी हैं जिन्होंने कभी पाप नहीं किया? इसका जवाब पाने के लिए हमें पारिवारिक रिश्‍तों पर गौर करना होगा।

14 यहोवा, गूढ़ आध्यात्मिक सच्चाइयाँ समझाने के लिए, पति-पत्नी, माँ और बच्चे जैसे रिश्‍तों की मिसाल देता है, क्योंकि इन्हें इंसान आसानी से समझ सकते हैं। हमारे परिवार में ये रिश्‍ते चाहे कैसे भी क्यों न हों, मगर हमारे मन में इस बात की छवि ज़रूर होती है कि पति-पत्नी या माँ-बाप और बच्चों के बीच कैसा बेहतरीन रिश्‍ता होना चाहिए। तो फिर, परिवार की मिसाल देकर यहोवा हमारे सामने कैसी साफ तसवीर पेश करता है कि अपने सभी आत्मिक सेवकों के साथ उसका कैसा प्यार-भरा, नज़दीकी और भरोसे का रिश्‍ता है! और वह कैसे प्रभावशाली तरीके से हमें समझाता है कि उसका स्वर्गीय संगठन, पृथ्वी पर आत्मा से अभिषिक्‍त अपनी संतानों की कितनी गहरी परवाह करता है! जब पृथ्वी पर यहोवा के सेवक तकलीफ सहते हैं, तो “ऊपर की यरूशलेम” या स्वर्ग में यहोवा के वफादार सेवक भी वैसा ही दर्द महसूस करते हैं। यही बात यीशु ने भी कही थी: “तुम ने जो मेरे इन छोटे से छोटे [आत्मा से अभिषिक्‍त] भाइयों में से किसी एक के साथ किया, वह मेरे ही साथ किया।”—मत्ती 25:40.

15, 16. यशायाह 54:5,6 की भविष्यवाणी की पहली पूर्ति कैसे हुई और इसकी बड़े पैमाने पर पूर्ति कैसे हुई?

15 इसलिए ताज्जुब की बात नहीं कि यहोवा की स्वर्गीय ‘स्त्री’ से कही गयी ज़्यादातर बातें, दरअसल पृथ्वी पर उसके बच्चों के साथ होनेवाली घटनाओं को दिखाती हैं। इन शब्दों पर गौर कीजिए: “तेरा कर्त्ता तेरा पति है, उसका नाम सेनाओं का यहोवा है; और इस्राएल का पवित्र तेरा छुड़ानेवाला है, वह सारी पृथ्वी का भी परमेश्‍वर कहलाएगा। क्योंकि यहोवा ने तुझे ऐसा बुलाया है, मानो तू छोड़ी हुई और मन की दुखिया और जवानी की त्यागी हुई स्त्री हो, तेरे परमेश्‍वर का यही वचन है।”—यशायाह 54:5,6.

16 इस आयत में बतायी गयी स्त्री कौन है? इसकी पहली पूर्ति में, यह यरूशलेम है जो परमेश्‍वर के लोगों को दर्शाती है। जब वे 70 साल तक बाबुल की बंधुआई में रहेंगे, तब वे ऐसा महसूस करेंगे मानो यहोवा ने उन्हें त्याग दिया और पूरी तरह छोड़ दिया है। लेकिन अपनी बड़ी पूर्ति में ये शब्द “ऊपर की यरूशलेम” पर लागू होते हैं। इनमें बताया गया है कि वह किस अनुभव से गुज़री और आखिरकार उसने “वंश” को उत्पन्‍न करके कैसे उत्पत्ति 3:15 की भविष्यवाणी पूरी की।

पल-भर की ताड़ना, हमेशा की आशीषें

17. (क) पृथ्वी के यरूशलेम को परमेश्‍वर के क्रोध का ‘झकोरा’ कैसे खाना पड़ा? (ख) “ऊपर की यरूशलेम” के पुत्रों ने कैसा ‘झकोरा’ खाया?

17 भविष्यवाणी आगे कहती है: “क्षण भर ही के लिये मैं ने तुझे छोड़ दिया था, परन्तु अब बड़ी दया करके मैं फिर तुझे रख लूंगा। क्रोध के झकोरे में आकर मैं ने पल भर के लिये तुझ से मुंह छिपाया था, परन्तु अब अनन्त करुणा से मैं तुझ पर दया करूंगा, तेरे छुड़ानेवाले यहोवा का यही वचन है।” (यशायाह 54:7,8) सा.यु.पू. 607 में जब बाबुल की सेना ने पृथ्वी के यरूशलेम पर हमला किया तो उसे परमेश्‍वर के क्रोध का ‘झकोरा’ खाना पड़ा। यरूशलेम के लोगों को 70 साल की बंधुआई शायद बहुत लंबा अरसा लगा हो। लेकिन इस ताड़ना से सबक सीखनेवालों को अनंतकाल की आशीषें मिलीं, जिनकी तुलना में उनकी तकलीफें बस “पल भर” की थीं। उसी तरह, जब बड़े बाबुल के भड़काने पर राजनीतिक तत्वों ने “ऊपर की यरूशलेम” के अभिषिक्‍त पुत्रों पर हमला किया और यहोवा ने इसकी इजाज़त दी, तो उन्हें भी ऐसा लगा मानो उन्होंने परमेश्‍वर के क्रोध का ‘झकोरा’ खाया हो। लेकिन 1919 के बाद से जब उन पर आध्यात्मिक आशीषों का दौर शुरू हुआ, तो उन्हें यह ताड़ना बस पल-भर की लगी!

18. अपने लोगों पर यहोवा के क्रोध के बारे में कौन-सी बड़ी सच्चाई बतायी गयी है, और इसका हम में से हरेक पर कैसा असर होना चाहिए?

18 इन आयतों में एक और बड़ी सच्चाई बतायी है। वह यह है कि परमेश्‍वर का क्रोध पल-भर के लिए रहता है जबकि उसकी दया सदा तक कायम रहती है। पाप के कामों के खिलाफ उसका गुस्सा ज़रूर भड़कता है, मगर इसकी हमेशा एक सही वजह होती है और परमेश्‍वर कभी आपे से बाहर नहीं जाता। और अगर हम यहोवा की ताड़ना को कबूल करेंगे, तो उसका क्रोध हम पर “पल भर के लिये” ही रहेगा और फिर शांत हो जाएगा। और तब क्रोध के बदले उसकी “बड़ी दया” हम पर होगी, यानी वह हमें माफ करेगा और हमारे साथ प्यार और करुणा से पेश आएगा। उसके ये गुण “अनन्त” हैं और सदा तक रहेंगे। इसलिए, अगर हम कभी पाप कर बैठें तो हमें पश्‍चाताप दिखाने और परमेश्‍वर से सुलह करने में झिझक महसूस नहीं करनी चाहिए। अगर हम गंभीर पाप करते हैं, तो हमें तुरंत कलीसिया के प्राचीनों से मदद माँगनी चाहिए। (याकूब 5:14) यह सच है कि हमें ताड़ना दिए जाने की ज़रूरत पड़ सकती है और शायद उसे कबूल करना हमें मुश्‍किल लगे। (इब्रानियों 12:11) लेकिन यहोवा परमेश्‍वर से माफी मिलने पर हमें हमेशा की जो आशीषें मिलेंगी, उनकी तुलना में यह ताड़ना बस पल-भर की होगी!

19, 20. (क) मेघधनुष वाचा क्या है और बाबुल में रहनेवाले बंधुओं के लिए यह वाचा क्या मायने रखती है? (ख) “शान्तिदायक वाचा” से आज अभिषिक्‍त मसीहियों को क्या यकीन दिलाया गया है?

19 यहोवा अब अपने लोगों को दिलासा देते हुए यह वादा करता है: “यह मेरी दृष्टि में नूह के समय के जलप्रलय के समान है; क्योंकि जैसे मैं ने शपथ खाई थी कि नूह के समय के जलप्रलय से पृथ्वी फिर न डूबेगी, वैसे ही मैं ने यह भी शपथ खाई है कि फिर कभी तुझ पर क्रोध न करूंगा और न तुझ को धमकी दूंगा। चाहे पहाड़ हट जाएं और पहाड़ियां टल जाएं, तौभी मेरी करुणा तुझ पर से कभी न हटेगी, और मेरी शान्तिदायक वाचा न टलेगी, यहोवा, जो तुझ पर दया करता है, उसका यही वचन है।” (यशायाह 54:9,10) जलप्रलय के बाद, परमेश्‍वर ने नूह और हर जीवित प्राणी के साथ एक वाचा बाँधी थी, जिसे कभी-कभी मेघधनुष वाचा भी कहा जाता है। इस वाचा के तहत यहोवा ने वादा किया कि वह फिर कभी पूरे संसार पर जलप्रलय लाकर उसका विनाश नहीं करेगा। (उत्पत्ति 9:8-17) लेकिन यह वाचा, यशायाह और उसके लोगों के लिए क्या मायने रखती है?

20 यह जानकर उनके मन को बेहद सुकून मिलता है कि 70 साल तक बाबुल में बंदी बने रहने की सज़ा, उन्हें सिर्फ एक ही बार झेलनी पड़ेगी। यह विपत्ति उन पर दोबारा नहीं आएगी। फिर परमेश्‍वर की “शान्तिदायक वाचा” उन पर लागू होगी। ‘शान्ति’ के लिए इस्तेमाल होनेवाले इब्रानी शब्द का मतलब सिर्फ यह नहीं कि कोई युद्ध नहीं होगा, बल्कि इसका मतलब ऐसा माहौल है जिसमें चारों तरफ खुशहाली-ही-खुशहाली होगी। जहाँ तक परमेश्‍वर की बात है उसकी तरफ से यह वाचा सदा तक कायम रहेगी। चाहे पहाड़ और पहाड़ियाँ भी क्यों न टल जाएँ, मगर अपने वफादार लोगों के लिए यहोवा का प्यार और उसकी करुणा कभी नहीं मिटेगी। लेकिन अफसोस, पृथ्वी पर उसकी जाति ने इस वाचा के मुताबिक अपना वादा नहीं निभाया और मसीहा को ठुकराकर अपनी शांति को खुद तहस-नहस कर डाला। मगर “ऊपर की यरूशलेम” के पुत्रों ने अपनी वाचा नहीं तोड़ी। इसलिए जब उनकी परीक्षाएँ खत्म हुईं, तो इस वाचा ने उन्हें यकीन दिलाया कि परमेश्‍वर उनकी हिफाज़त करेगा।

परमेश्‍वर के लोगों की आध्यात्मिक सुरक्षा

21, 22. (क) “ऊपर की यरूशलेम” को दुःखियारी और आँधी की सतायी क्यों कहा गया है? (ख) परमेश्‍वर की स्वर्गीय ‘स्त्री’ को मिलनेवाला सम्मान, पृथ्वी पर उसकी ‘सन्तानों’ के बारे में क्या दिखाता है?

21 यहोवा अब आगे बताता है कि उसके वफादार लोगों को कैसी सुरक्षा मिलेगी: “हे दु:खियारी, तू जो आंधी की सताई है और जिस को शान्ति नहीं मिली, सुन, मैं तेरे पत्थरों की पच्चीकारी करके बैठाऊंगा, और तेरी नेव नीलमणि से डालूंगा। तेरे कलश मैं माणिकों से, तेरे फाटक लालड़ियों से और तेरे सब सिवानों को मनोहर रत्नों से बनाऊंगा। तेरे सब लड़के यहोवा के सिखलाए हुए होंगे, और उनको बड़ी शान्ति मिलेगी। तू धार्मिकता के द्वारा स्थिर होगी; तू अन्धेर से बचेगी, क्योंकि तुझे डरना न पड़ेगा; और तू भयभीत होने से बचेगी, क्योंकि भय का कारण तेरे पास न आएगा। सुन, लोग भीड़ लगाएंगे, परन्तु मेरी ओर से नहीं; जितने तेरे विरुद्ध भीड़ लगाएंगे [“आक्रमण करेंगे,” NHT] वे तेरे कारण गिरेंगे।”—यशायाह 54:11-15.

22 यह सच है कि आत्मिक लोक में रहनेवाली यहोवा की ‘स्त्री’ को सीधे-सीधे कभी दुःख नहीं सहना पड़ा, ना ही वह कभी आँधी की सतायी गयी थी। लेकिन हाँ, उसे तब ज़रूर दुःख हुआ, जब पृथ्वी पर उसकी अभिषिक्‍त ‘सन्तानों’ को तकलीफें सहनी पड़ीं, खासकर 1918-19 के दौरान जब वे आध्यात्मिक बंधुआई में थे। दूसरी ओर, जब इस स्वर्गीय ‘स्त्री’ का सम्मान किया जाता है तो उसका मतलब यही है कि पृथ्वी पर उसकी संतानों का सम्मान किया जाता है। गौर कीजिए कि “ऊपर की यरूशलेम” की आभा का क्या ही बढ़िया शब्दों में बखान किया गया है। उसके फाटकों में जड़े कीमती पत्थर, महँगी “पच्चीकारी,” नींव और उसके सिवाने ये सभी, जैसे एक किताब कहती है, “सुंदरता, वैभव, शुद्धता, शक्‍ति और स्थिरता” की निशानियाँ हैं। अभिषिक्‍त मसीहियों को भला ऐसी सुरक्षा और आशीषें क्यों मिलेंगी?

23. (क) इन अंतिम दिनों में ‘यहोवा से सिखलाए’ जाने का अभिषिक्‍त मसीहियों पर क्या असर हुआ है? (ख) किस अर्थ में परमेश्‍वर के लोगों ने ‘सिवानों के मनोहर रत्नों’ की आशीष पायी है?

23 इसका जवाब हमें यशायाह 54 अध्याय की आयत 13 में मिलता है, जहाँ लिखा है कि सभी “यहोवा के सिखलाए हुए होंगे।” यीशु ने भी इस आयत को अपने अभिषिक्‍त चेलों पर लागू किया था। (यूहन्‍ना 6:45) भविष्यवक्‍ता दानिय्येल ने बताया कि ‘अन्त के इस समय’ के दौरान अभिषिक्‍त जनों को सच्चे ज्ञान का भंडार और आध्यात्मिक बातों की अंदरूनी समझ मिलेगी। (दानिय्येल 12:3,4) ऐसी समझ की बदौलत उन्होंने परमेश्‍वर की शिक्षाएँ पूरी दुनिया में फैलाने के लिए, इतिहास का सबसे बड़ा शिक्षा का कार्यक्रम चलाया है। (मत्ती 24:14) और इसी आध्यात्मिक समझ ने सच्चे और झूठे धर्म के बीच फर्क समझने में उनकी मदद की है। यशायाह 54:12 में ‘सिवानों के मनोहर रत्नों’ का ज़िक्र किया गया है। इन सिवानों या सरहदों के बारे में यहोवा ने 1919 से अभिषिक्‍तों की समझ और भी बढ़ायी है। ये सरहदें ऐसी आध्यात्मिक सीमाएँ हैं जो अभिषिक्‍त जनों को इस दुनिया के झूठे धर्म और इसके अधर्मी तत्वों से अलग करती हैं। (यहेजकेल 44:23; यूहन्‍ना 17:14; याकूब 1:27) इस तरह परमेश्‍वर के लोगों के तौर पर वे अलग किए गए हैं।—1 पतरस 2:9.

24. यहोवा से सिखलाए जाने के लिए हमें क्या करना होगा?

24 इसलिए, हममें से हरेक को खुद से यह पूछना चाहिए, ‘क्या मैं यहोवा से सिखलाया जा रहा हूँ?’ परमेश्‍वर की शिक्षा हमें यूँ ही नहीं मिल जाती। इसके लिए हमें मेहनत करनी होगी। अगर हम नियमित रूप से परमेश्‍वर का वचन पढ़ें और उस पर मनन करें, “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” का प्रकाशित बाइबल साहित्य पढ़ें और मसीही सभाओं की तैयारी करके उनमें हाज़िर हों तो हम सचमुच यहोवा के सिखलाए हुए होंगे। (मत्ती 24:45-47) अगर हम सीखी हुई बातों पर अमल करने, साथ ही आध्यात्मिक रूप से सतर्क और जागते रहने की कोशिश करें तो ईश्‍वरीय शिक्षा हमें इस भक्‍तिहीन संसार के लोगों से अलग करेगी। (1 पतरस 5:8,9) इतना ही नहीं, यह शिक्षा हमें “परमेश्‍वर के निकट” आने में भी मदद देगी।—याकूब 1:22-25; 4:8.

25. शांति देने का परमेश्‍वर का वादा, आज उसके लोगों के लिए क्या मायने रखता है?

25 यशायाह की भविष्यवाणी यह भी दिखाती है कि अभिषिक्‍तों को बड़ी शांति मिलेगी। तो क्या इसका यह मतलब है कि उन पर कभी कोई हमला नहीं किया जाता? नहीं, ऐसी बात नहीं। इसके बजाय, परमेश्‍वर यह यकीन दिलाता है कि न तो वह किसी को उन पर हमला करने का हुक्म देगा, ना ही वह दुश्‍मनों के हमलों को कामयाब होने देगा। हम पढ़ते हैं: “सुन, एक लोहार कोएले की आग धोंककर इसके लिये हथियार बनाता है, वह मेरा ही सृजा हुआ है। उजाड़ने के लिये भी मेरी ओर से एक नाश करनेवाला सृजा गया है। जितने हथियार तेरी हानि के लिये बनाए जाएं, उन में से कोई सफल न होगा, और, जितने लोग मुद्दई होकर तुझ पर नालिश करें उन सभों से तू जीत जाएगा। यहोवा के दासों का यही भाग [“विरासत,” NW] होगा, और वे मेरे ही कारण धर्मी ठहरेंगे, यहोवा की यही वाणी है।”—यशायाह 54:16,17.

26. यह जानकर हमें क्यों हिम्मत मिलती है कि यहोवा, पूरी मानवजाति का सिरजनहार है?

26 यशायाह के इस अध्याय में, यहोवा दूसरी बार अपने सेवकों को याद दिलाता है कि वही सिरजनहार है। इससे पहले उसने अपनी लाक्षणिक पत्नी को बताया कि वह उसका महान “कर्त्ता” है। अब वह कहता है कि वह पूरी मानवजाति का सिरजनहार है। आयत 16 में एक लोहार का ज़िक्र है जो भट्ठी में जलते कोयले को हवा देकर, युद्ध के लिए विनाश के हथियार बनाता है, और एक योद्धा का भी ज़िक्र है जो ‘उजाड़ने के लिये नाश करनेवाला’ है। लोहार और योद्धा जैसे आदमियों से भले ही आम इंसान खौफ खाएँ, मगर क्या वे अपने सिरजनहार से जीतने की उम्मीद तक कर सकते हैं? उसी तरह, आज यहोवा के लोगों पर चाहे दुनिया की बड़ी-बड़ी ताकतें भी क्यों ना हमला करें, उनके लिए पूरी तरह कामयाब होने की कोई गुंजाइश नहीं है। यह हम कैसे कह सकते हैं?

27, 28. इस कठिन समय में हम किस बात का हौसला रख सकते हैं, और हमें क्यों यह यकीन है कि हमारे खिलाफ शैतान का हर हमला नाकाम रहेगा?

27 वह समय गुज़र चुका है जब परमेश्‍वर के लोगों को, साथ ही आत्मा और सच्चाई से की जानेवाली उनकी उपासना को मिटाने के लिए उन पर वार किया जाए। (यूहन्‍ना 4:23,24) यहोवा ने बड़े बाबुल को सिर्फ एक बार हमला करने की इजाज़त दी, जो कुछ समय तक कामयाब भी हुआ। उस वक्‍त, जब धरती पर प्रचार का काम लगभग ठप्प पड़ गया था तब पल-भर के लिए “ऊपर की यरूशलेम” को ऐसा लगा मानो उसकी संतानों का मुँह बंद कर दिया गया है। मगर उनके साथ ऐसा दोबारा कभी नहीं होगा! “ऊपर की यरूशलेम” अब अपने पुत्रों के कारण मग्न है, क्योंकि आध्यात्मिक मायनों में वे अजेय हैं। (यूहन्‍ना 16:33; 1 यूहन्‍ना 5:4) बेशक उन पर हमला करने के लिए तरह-तरह के हथियार बनाए गए हैं और आगे और भी बनाए जाएँगे। (प्रकाशितवाक्य 12:17) मगर ये हथियार ना तो कभी सफल हुए हैं और ना ही कभी होंगे। शैतान के पास ऐसा कोई हथियार नहीं है जिसका इस्तेमाल करके वह अभिषिक्‍तों और उनके साथियों का विश्‍वास खत्म कर सके और उनका धधकता जोश ठंडा कर सके। यह आध्यात्मिक शांति ‘यहोवा के दासों की विरासत’ है, इसलिए कोई उनसे उनकी शांति छीन नहीं सकता।—भजन 118:6; रोमियों 8:38,39.

28 जी हाँ, शैतान की दुनिया चाहे जितना भी ज़ोर लगा ले, मगर वह परमेश्‍वर के समर्पित सेवकों के कामों को और हमेशा कायम रहनेवाली शुद्ध उपासना को कभी खत्म नहीं कर सकेगा। इसी आश्‍वासन से “ऊपर की यरूशलेम” की अभिषिक्‍त संतानों को काफी हिम्मत मिली है। और बड़ी भीड़ के सदस्यों ने भी इससे हौसला पाया है। यहोवा के स्वर्गीय संगठन के बारे में और पृथ्वी पर परमेश्‍वर के उपासकों के साथ उसके व्यवहार के बारे में हम जितना ज़्यादा जानेंगे, उतना ही हमारा विश्‍वास मज़बूत होगा। और जब तक हमारा विश्‍वास मज़बूत रहेगा तब तक शैतान के हथियार हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएँगे!

[फुटनोट]

^ पैरा. 11 प्रकाशितवाक्य 12:1-17 के मुताबिक, परमेश्‍वर की “स्त्री” ने एक खास ‘सन्तान’ को जन्म देने की बढ़िया आशीष पायी। यह संतान कोई आत्मिक पुत्र नहीं बल्कि स्वर्ग में मसीहाई राज्य है। इसका जन्म 1914 में हुआ। (रॆवलेशन—इट्‌स ग्रैंड क्लाइमैक्स एट हैंड! के पेज 177-86 देखिए।) यशायाह की भविष्यवाणी इस बात पर ध्यान दिलाती है कि पृथ्वी पर अपने अभिषिक्‍त पुत्रों पर परमेश्‍वर की आशीष देखकर इस स्त्री को कितना आनंद मिलता है।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 218 पर बक्स]

इब्राहीम का परिवार—भविष्य की एक तसवीर

प्रेरित पौलुस ने समझाया कि इब्राहीम का परिवार एक दृष्टांत है जिसके ज़रिए भविष्य की तसवीर पेश की गयी और जिसमें दिखाया गया कि यहोवा का अपने स्वर्गीय संगठन और मूसा की व्यवस्था वाचा के अधीन इस्राएल जाति के साथ कैसा रिश्‍ता होता।—गलतियों 4:22-31.

इब्राहीम, परिवार का मुखिया था और वह यहोवा परमेश्‍वर को दर्शाता है। इब्राहीम, जब अपने जिगर के टुकड़े, इसहाक की बलि चढ़ाने के लिए तैयार हुआ, तो यह एक झलक थी कि भविष्य में यहोवा, इंसानों के पापों के लिए कैसे खुशी-खुशी अपने प्यारे बेटे की कुरबानी देगा।—उत्पत्ति 22:1-13; यूहन्‍ना 3:16.

सारा, परमेश्‍वर की स्वर्गीय ‘स्त्री’ या आत्मिक प्राणियों से बने उसके संगठन की तसवीर है। इस स्वर्गीय संगठन को यहोवा की पत्नी कहना बिलकुल सही है, क्योंकि यहोवा के साथ उसका गहरा रिश्‍ता है, वह उसके मुखियापन के अधीन है और उसके मकसद को अंजाम देने में पूरा-पूरा सहयोग देती है। वह “ऊपर की यरूशलेम” भी कहलाती है। (गलतियों 4:26) इसी ‘स्त्री’ का ज़िक्र उत्पत्ति 3:15 में भी किया गया है और प्रकाशितवाक्य 12:1-6,13-17 में बताए गए दर्शन में उसका वर्णन किया गया है।

इसहाक, परमेश्‍वर की स्त्री के आत्मिक वंश का प्रतीक है। यह वंश खास तौर पर यीशु मसीह है। लेकिन बाद में, इस वंश में मसीह के अभिषिक्‍त भाई भी शामिल हो गए, जिन्हें आत्मिक पुत्रों के तौर पर गोद लिया गया था। वे ही मसीह के संगी वारिस बने।—रोमियों 8:15-17; गलतियों 3:16,29.

हाजिरा, इब्राहीम की उपपत्नी या रखैल और एक दासी थी। वह पृथ्वी की यरूशलेम नगरी की सही तसवीर पेश करती है, जो मूसा की कानून-व्यवस्था के अधीन थी। इस व्यवस्था ने इस्राएलियों को यह एहसास दिलाया कि वे पापी हैं और मौत के दास हैं। पौलुस ने कहा कि “हाजिरा मानो अरब का सीना पहाड़ है,” क्योंकि उसी जगह पर व्यवस्था वाचा बाँधी गयी थी।—गलतियों 3:10,13; 4:25.

इश्‍माएल, हाजिरा का बेटा था। वह पहली सदी के यहूदियों यानी यरूशलेम के उन पुत्रों की तसवीर है जो अब भी मूसा की व्यवस्था के दास थे। जिस तरह इश्‍माएल ने इसहाक को सताया था, उसी तरह उन यहूदियों ने मसीहियों को सताया, जो लाक्षणिक सारा यानी “ऊपर की यरूशलेम” के अभिषिक्‍त बेटे थे। और जैसे इब्राहीम ने हाजिरा और इश्‍माएल को दूर कर दिया, वैसे ही यहोवा ने भी आखिरकार यरूशलेम और उसके विद्रोही बेटों को हमेशा के लिए त्याग दिया।—मत्ती 23:37,38.

[पेज 220 पर तसवीर]

यीशु के बपतिस्मे के बाद, पवित्र आत्मा से उसका अभिषेक किया गया और तब से यशायाह 54:1 की भविष्यवाणी की सबसे बड़ी पूर्ति शुरू हुई

[पेज 225 पर तसवीर]

यहोवा ने “पल भर के लिये” यरूशलेम से अपना मुँह छिपा लिया था

[पेज 231 पर तसवीर]

क्या योद्धा और लोहार अपने सिरजनहार से जीत सकते हैं?