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‘मेरा चुना हुआ, जिस से मेरा जी प्रसन्‍न है’!

‘मेरा चुना हुआ, जिस से मेरा जी प्रसन्‍न है’!

तीसरा अध्याय

‘मेरा चुना हुआ, जिस से मेरा जी प्रसन्‍न है’!

यशायाह 42:1-25

1, 2. यशायाह के अध्याय 42 में आज मसीहियों को गहरी दिलचस्पी क्यों है?

“यहोवा की वाणी है कि तुम मेरे साक्षी हो और मेरे दास हो।” (यशायाह 43:10) यहोवा के इस ऐलान को सा.यु.पू. आठवीं सदी में यशायाह भविष्यवक्‍ता ने लिखा था। इस ऐलान से ज़ाहिर होता है कि यहोवा ने प्राचीन समय में जिस जाति के साथ वाचा बाँधी थी, वह पूरा राष्ट्र उसके साक्षियों की एक जाति था। वे लोग यहोवा के चुने हुए दास थे। यशायाह के यह लिखने के करीब 2,600 साल बाद, 1931 में अभिषिक्‍त मसीहियों ने सरेआम यह ऐलान किया कि यहोवा के ये शब्द उन पर पूरे होते हैं। उस साल उन्होंने यहोवा के साक्षी नाम अपनाया और धरती पर परमेश्‍वर का दास होने की ज़िम्मेदारियों को खुशी-खुशी स्वीकार किया।

2 यहोवा के साक्षी सच्चे दिल से परमेश्‍वर को खुश करना चाहते हैं। इसीलिए, हर साक्षी को यशायाह के 42वें अध्याय में गहरी दिलचस्पी है, क्योंकि इस अध्याय में दो दासों की तसवीर पेश की गयी है, एक जिससे यहोवा प्रसन्‍न होता है और दूसरा जिसको वह ठुकरा देता है। इस भविष्यवाणी पर और उसकी पूर्ति पर गौर करने से हम अच्छी तरह समझ पाएँगे कि परमेश्‍वर किन बातों से प्रसन्‍न होता है और किन से नाराज़।

“मैं ने उस पर अपना आत्मा रखा है”

3. यशायाह के ज़रिए “मेरे दास” के बारे में यहोवा क्या भविष्यवाणी करता है?

3 यशायाह के ज़रिए यहोवा उस दास के आने की भविष्यवाणी करता है जिसे खुद उसने चुना है: “मेरे दास को देखो जिसे मैं संभाले हूं, मेरे चुने हुए को, जिस से मेरा जी प्रसन्‍न है; मैं ने उस पर अपना आत्मा रखा है, वह अन्यजातियों के लिये न्याय प्रगट करेगा। न वह चिल्लाएगा और न ऊंचे शब्द से बोलेगा, न सड़क में अपनी वाणी सुनायेगा। कुचले हुए नरकट को वह न तोड़ेगा और न टिमटिमाती बत्ती को बुझाएगा; वह सच्चाई से न्याय चुकाएगा। वह न थकेगा और न हियाव छोड़ेगा जब तक वह न्याय को पृथ्वी पर स्थिर न करे; और द्वीपों के लोग उसकी व्यवस्था की बाट जोहेंगे।”—यशायाह 42:1-4.

4. भविष्यवाणी के मुताबिक ‘चुना हुआ’ दास कौन है, और यह हम कैसे जानते हैं?

4 यहाँ बताया गया दास कौन है? इस बारे में हमें अनजान नहीं रखा गया है। यशायाह के इन्हीं शब्दों का हवाला मत्ती की सुसमाचार किताब में दिया गया है और इन्हें यीशु मसीह पर लागू किया गया है। (मत्ती 12:15-21) यीशु ही यहोवा का ‘चुना हुआ’ प्रिय दास है। यहोवा ने यीशु पर अपना आत्मा कब रखा? सा.यु. 29 में, जब यीशु का बपतिस्मा हुआ। ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखा रिकॉर्ड उसके बपतिस्मे का वर्णन करते हुए बताता है कि जब यीशु पानी से ऊपर आया, तो “आकाश खुल गया। और पवित्र आत्मा शारीरिक रूप में कबूतर की नाईं उस पर उतरा, और यह आकाशवाणी हुई, कि तू मेरा प्रिय पुत्र है, मैं तुझ से प्रसन्‍न हूं।” इस तरह खुद यहोवा ने यह पहचान करायी कि यीशु ही उसका प्रिय दास है। इसके बाद यीशु की सेवकाई और उसके चमत्कारों से यह साबित हो गया कि यहोवा का आत्मा वाकई उस पर था।—लूका 3:21,22; 4:14-21; मत्ती 3:16,17.

“वह अन्यजातियों के लिये न्याय प्रगट करेगा”

5. पहली सदी में न्याय के बारे में सही समझ की सख्त ज़रूरत क्यों थी?

5 यहोवा के चुने हुए को सच्चा न्याय “प्रगट” करना था या साफ-साफ दिखाना था कि सच्चा न्याय क्या होता है। उसके बारे में लिखा था: “वह ग़ैरयहूदियों पर उचित न्याय की घोषणा करेगा।” (मत्ती 12:18, NHT) पहली सदी में इसकी क्या ही सख्त ज़रूरत थी! उस समय के यहूदी धर्मगुरू, लोगों को न्याय और धार्मिकता का गलत नज़रिया सिखाते थे। उनका मानना था कि ढेर सारे कायदे-कानूनों का सख्ती से पालन करने से वे धर्मी साबित होंगे, जबकि ज़्यादातर कानून उनके अपने ही बनाए हुए थे। वे न्याय करते वक्‍त, बड़ी कठोरता से नियमों को लागू करते थे जिसमें दया और करुणा नाम की चीज़ ही नहीं होती थी।

6. यीशु ने किन तरीकों से सच्चा न्याय प्रगट किया?

6 लेकिन यीशु ने ज़ाहिर किया कि परमेश्‍वर की नज़र में न्याय क्या है। उसने अपनी शिक्षाओं और अपने जीने के तरीके से दिखाया कि सच्चा न्याय, दया और करुणा से भरा होता है। इसकी एक मिसाल है, उसका मशहूर पहाड़ी उपदेश। (मत्ती, अध्याय 5-7) इस उपदेश में उसने बड़ी कुशलता से समझाया कि न्याय और धार्मिकता से काम लेने का सही तरीका क्या है! सुसमाचार की किताबें पढ़ते वक्‍त, गरीबों और दुखियों के लिए यीशु की दया-भावना, क्या हमारे दिल को नहीं छू जाती? (मत्ती 20:34; मरकुस 1:41; 6:34; लूका 7:13) वह उन सभी लोगों तक अपना शांति का संदेश लेकर गया जो कुचले और लताड़े हुए नरकटों की तरह थे। वे टिमटिमाती बत्ती की तरह थे, जिनके जीवन की आखिरी चिंगारी बस बुझने ही वाली थी। मगर यीशु ने ना तो “कुचले हुए नरकट” को तोड़ा, न “टिमटिमाती बत्ती” को बुझाया। इसके बजाय, उसके प्यार और दया भरे शब्दों और कामों ने नम्र लोगों के दिलों में फिर से जान डाल दी।—मत्ती 11:28-30.

7. भविष्यवाणी में ऐसा क्यों कहा जा सकता था कि यीशु ‘न चिल्लाएगा और न सड़क में ऊंचे शब्द से बोलेगा’?

7 लेकिन, भविष्यवाणी में ऐसा क्यों कहा गया है कि “न वह चिल्लाएगा और न ऊंचे शब्द से बोलेगा, न सड़क में अपनी वाणी सुनायेगा”? इसलिए क्योंकि उसने अपने समय के ज़्यादातर लोगों की तरह अपने कामों का ढिंढोरा नहीं पीटा। (मत्ती 6:5) एक बार जब यीशु ने एक कोढ़ी को चंगा किया तो उसने उससे कहा: “देख, किसी से कुछ मत कहना।” (मरकुस 1:40-44) यीशु ने लोगों में मशहूर होना नहीं चाहा, न ही उसने चाहा कि लोग सुनी-सुनायी बातों के आधार पर उसके बारे में कोई राय कायम करें। इसके बजाय, यीशु चाहता था कि लोग ठोस सबूतों के आधार पर खुद यह पहचानें कि वही मसीह यानी यहोवा का अभिषिक्‍त दास है।

8. (क) किस तरह यीशु ने “अन्यजातियों के लिये न्याय” प्रगट किया? (ख) यीशु ने दयालु सामरी का जो दृष्टांत दिया उससे हम न्याय के बारे में क्या सबक सीखते हैं?

8 चुने हुए दास को “अन्यजातियों के लिये न्याय” प्रगट करना था। यीशु ने ठीक ऐसा ही किया। इस बात पर ज़ोर देने के अलावा कि ईश्‍वरीय न्याय में करुणा दिखाना शामिल है, यीशु ने यह भी सिखाया कि सभी जाति के लोगों को ऐसा न्याय मिलना चाहिए। एक बार यीशु ने मूसा की व्यवस्था के एक ज्ञानी को याद दिलाया कि उसे परमेश्‍वर और अपने पड़ोसी से प्रेम रखना चाहिए। उस ज्ञानी ने यीशु से पूछा: “मेरा पड़ोसी कौन है?” शायद उसे उम्मीद थी कि यीशु यह जवाब देगा: “तुम्हारे साथी यहूदी।” लेकिन जवाब में, यीशु ने उसे एक दयालु सामरी की कहानी सुनायी। उस कहानी में एक सामरी ऐसे आदमी की मदद करता है जिसे डाकुओं ने बुरी तरह मारा-पीटा था, जबकि एक लेवी और एक याजक उसकी मदद करने से पीछे हट गए। अब सवाल पूछनेवाले को मजबूरन मानना पड़ा कि इस कहानी में न तो लेवी और ना ही याजक बल्कि वह सामरी सच्चा पड़ोसी साबित हुआ, जिसकी जाति को यहूदी बहुत नीच समझते थे। तो यीशु ने अपने दृष्टांत को खत्म करते हुए उसे सलाह दी: “जा, तू भी ऐसा ही कर।”—लूका 10:25-37; लैव्यव्यवस्था 19:18.

“वह न थकेगा और न हियाव छोड़ेगा”

9. सच्चे न्याय के बारे में समझ हासिल करने से हम पर कैसा असर पड़ेगा?

9 यीशु ने यह बिलकुल साफ-साफ प्रगट कर दिया था कि सच्चा न्याय क्या होता है, इसलिए उसके शिष्यों ने भी सीखा कि यह गुण कैसे दिखाएँ। और हमें भी यह गुण सीखना चाहिए। इसके लिए सबसे पहले, हमें अच्छे-बुरे के बारे में परमेश्‍वर के स्तरों को स्वीकार करना होगा, क्योंकि सिर्फ यहोवा यह फैसला करने का हक रखता है कि न्याय और धार्मिकता के काम कौन-से हैं। इसलिए जब हम यहोवा के बताए हुए तरीके से काम करने की कोशिश करेंगे, तो हमारा अच्छा चालचलन और हमारे काम सच्चे न्याय की ज़ोरदार गवाही होंगे।—1 पतरस 2:12.

10. न्याय ज़ाहिर करने के लिए यह ज़रूरी क्यों है कि हम प्रचार और सिखाने का काम करें?

10 जब हम प्रचार और सिखाने का काम पूरी लगन के साथ करते हैं, तब भी सच्चा न्याय ज़ाहिर करते हैं। यहोवा ने दिल खोलकर अपने बारे में, अपने बेटे और अपने उद्देश्‍य के बारे में हमें ज्ञान दिया है, जिससे हमारी ज़िंदगी बच सकती है। (यूहन्‍ना 17:3) तो क्या यह सही और न्यायपूर्ण होगा अगर हम यह ज्ञान सिर्फ अपने तक ही रखें? सुलैमान कहता है: “जिनका भला करना चाहिये, यदि तुझ में शक्‍ति रहे, तो उनका भला करने से न रुकना।” (नीतिवचन 3:27) परमेश्‍वर के बारे में हम जो जानते हैं, आइए पूरे दिल से उस ज्ञान को सभी लोगों में बाँटें, फिर चाहे वे किसी भी जाति, भाषा या देश के क्यों न हों।—प्रेरितों 10:34,35.

11. यीशु की मिसाल पर चलते हुए, हमें दूसरों के साथ कैसा सलूक करना चाहिए?

11 इतना ही नहीं, एक सच्चा मसीही लोगों के साथ वैसा ही सलूक करता है जैसा यीशु ने किया था। आज बहुत सारे लोग समस्याओं की वजह से हताश हैं, उन्हें दया दिखाने और हौसला दिलाए जाने की ज़रूरत है। यहाँ तक कि कुछ समर्पित मसीही भी तकलीफों के बोझ तले इस कदर दब जाते हैं कि वे कुचले हुए नरकट या टिमटिमाती बत्ती की तरह दिखाई देते हैं। क्या उन्हें हमारी मदद की ज़रूरत नहीं? (लूका 22:32; प्रेरितों 11:23) सच्चे मसीहियों के साथ जमा होने से क्या ही ताज़गी मिलती है जो यीशु की मिसाल पर चलते हुए न्याय से काम करते हैं!

12. हम क्यों भरोसा रख सकते हैं कि बहुत जल्द सभी को न्याय ज़रूर मिलेगा?

12 लेकिन क्या कभी ऐसा वक्‍त भी आएगा, जब सभी को न्याय मिलेगा? बेशक, आएगा! यहोवा का ‘चुना हुआ’ जन तब तक “न थकेगा और न हियाव छोड़ेगा जब तक वह न्याय को पृथ्वी पर स्थिर न करे।” सिंहासन पर विराजमान राजा, यानी पुनरुत्थान पाया हुआ यीशु मसीह बहुत जल्द उनसे ‘पलटा लेगा जो परमेश्‍वर को नहीं पहचानते।’ (2 थिस्सलुनीकियों 1:6-9; प्रकाशितवाक्य 16:14-16) इंसान की सरकारों की जगह परमेश्‍वर का राज्य हुकूमत करेगा। तब हर तरफ न्याय और धार्मिकता का बोलबाला होगा। (नीतिवचन 2:21,22; यशायाह 11:3-5; दानिय्येल 2:44; 2 पतरस 3:13) इसलिए धरती के हर कोने में रहनेवाले यहोवा के सेवक, यहाँ तक जो दूर-दराज़ के “द्वीपों” में रहते हैं, उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं।

‘मैं उसे जातियों के लिए प्रकाश ठहराऊंगा’

13. यहोवा अपने ‘चुने हुए दास’ के बारे में क्या भविष्यवाणी करता है?

13 यशायाह आगे कहता है: “ईश्‍वर जो आकाश का सृजने और ताननेवाला है, जो उपज सहित पृथ्वी का फैलानेवाला और उस पर के लोगों को सांस और उस पर के चलनेवालों को आत्मा देनेवाला यहोवा है, वह यों कहता है।” (यशायाह 42:5) सिरजनहार यहोवा के बारे में दिया गया यह वर्णन क्या ही ज़बरदस्त है! यहोवा की शक्‍ति के बारे में इस तरह याद दिलाया जाना उसके वचन को और भी दमदार बना देता है। यहोवा कहता है: “‘मैं यहोवा हूं, मैंने तुझे धार्मिकता में बुलाया है, मैं तेरा हाथ थामकर तेरी रक्षा भी करूंगा, और मैं तुझे प्रजा के लिए वाचा तथा जातियों के लिए प्रकाश ठहराऊंगा, कि तू अन्धों की आंखें खोले तथा बन्दियों को बन्दीगृह से और अन्धेरे में पड़े हुओं को काल कोठरी से निकाले।”—यशायाह 42:6,7, NHT.

14. (क) यहोवा अपने चुने हुए ‘दास’ का हाथ थाम लेगा, इसका मतलब क्या है? (ख) ‘चुना हुआ दास’ क्या भूमिका निभाता है?

14 सारे विश्‍वमंडल का महान सिरजनहार, जीवनदाता और परवरदिगार, अपने ‘चुने हुए दास’ का हाथ थाम लेता है और उससे वादा करता है कि वह हमेशा उसके साथ रहेगा और उसे पूरी-पूरी मदद देगा। यह जानकर कितनी हिम्मत मिलती है! इसके अलावा, यहोवा उसकी रक्षा करता है ताकि उसे “प्रजा के लिए वाचा” के रूप में सौंपा जाए। वाचा का मतलब दो पक्षों के बीच किया गया करार, समझौता, एक सच्ची प्रतिज्ञा है। यह एक पक्का फरमान है। जी हाँ, यहोवा ने अपने दास को “लोगों के लिए एक ज़मानत” ठहराया है।—एन अमेरिकन ट्रांस्लेशन।

15, 16. किस मायने में यीशु ने “जातियों के लिए प्रकाश” बनकर सेवा की?

15 “जातियों के लिए प्रकाश” की हैसियत से, वादा किया हुआ यह दास ‘अन्धों की आंखें खोलेगा’ और “अन्धेरे में पड़े हुओं” को छुटकारा दिलाएगा। यीशु ने ऐसा ही किया। सच्चाई की गवाही देकर, यीशु ने स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता का नाम रोशन किया। (यूहन्‍ना 17:4,6) उसने धर्म की झूठी शिक्षाओं का परदाफाश किया, राज्य का सुसमाचार प्रचार किया और धर्म की बेड़ियों में जकड़े लोगों को आध्यात्मिक आज़ादी पाने का रास्ता दिखाया। (मत्ती 15:3-9; लूका 4:43; यूहन्‍ना 18:37) उसने अंधकार के कामों के खिलाफ चेतावनी दी और शैतान का नकाब उतारकर दिखा दिया कि वह “झूठ का पिता” और इस “संसार का सरदार” है।—यूहन्‍ना 3:19-21; 8:44 16:11.

16 यीशु ने कहा: “जगत की ज्योति मैं हूं।” (यूहन्‍ना 8:12) अपना सिद्ध मानव जीवन छुड़ौती में देकर उसने बेमिसाल तरीके से साबित कर दिया कि वही जगत की ज्योति है। इस तरह उसने छुड़ौती पर विश्‍वास करनेवालों के लिए मार्ग खोल दिया ताकि वे अपने पापों की माफी पाएँ, उन्हें परमेश्‍वर का अनुग्रह मिले और वे अनंत जीवन की आशा हासिल करें। (मत्ती 20:28; यूहन्‍ना 3:16) यीशु ने अपनी ज़िंदगी के अंत तक ईश्‍वरीय भक्‍ति दिखाकर यहोवा की हुकूमत का समर्थन किया और इब्‌लीस को झूठा साबित किया। यीशु वाकई अंधों को रोशनी और आध्यात्मिक अंधकार में पड़े लोगों को छुटकारा देनेवाला साबित हुआ।

17. किन तरीकों से आज हम ज्योति फैलानेवालों की हैसियत से सेवा करते हैं?

17 यीशु ने पहाड़ी उपदेश में अपने शिष्यों से कहा: “तुम जगत की ज्योति हो।” (मत्ती 5:14) क्या आज हम भी ज्योति फैलाने का काम नहीं करते? अपने जीने के तरीके और प्रचार काम के ज़रिए, हमारे पास दूसरों को यह सिखाने का बढ़िया मौका है कि यहोवा ही सच्चे ज्ञान की रोशनी देता है। यीशु के नक्शेकदम पर चलते हुए, हम यहोवा के नाम का ऐलान करते हैं, उसकी हुकूमत का समर्थन करते हैं और यह घोषणा करते हैं कि उसी का राज्य इंसानों की समस्याओं का एकमात्र हल है। इसके अलावा, ज्योति फैलानेवालों की हैसियत से हम झूठी शिक्षाओं का खंडन करते हैं, अंधकार के अशुद्ध कामों के खिलाफ चेतावनी देते हैं और उस दुष्ट यानी शैतान की असलियत सब पर ज़ाहिर करते हैं।—प्रेरितों 1:8; 1 यूहन्‍ना 5:19.

“यहोवा के लिये एक नया गीत गाओ”

18. यहोवा अपने लोगों को किन बातों की जानकारी देता है?

18 अब यहोवा अपने लोगों की तरफ ध्यान देते हुए कहता है: “मैं यहोवा हूं, मेरा नाम यही है; अपनी महिमा मैं दूसरे को न दूंगा और जो स्तुति मेरे योग्य है वह खुदी हुई मूरतों को न दूंगा। देखो, पहिली बातें तो हो चुकी हैं, अब मैं नई बातें बताता हूं; उनके होने से पहिले मैं तुम को सुनाता हूं।” (यशायाह 42:8,9) “मेरे दास” के बारे में भविष्यवाणी, किसी बेजान देवता ने नहीं की थी बल्कि एकमात्र जीवित और सच्चे परमेश्‍वर ने की। इस भविष्यवाणी को हर हाल में पूरा होना था और यह पूरी भी हुई। यहोवा सचमुच नयी बातों को जन्म देनेवाला परमेश्‍वर है और इन बातों के होने से पहले ही वह अपने लोगों को इनकी जानकारी देता है। ऐसी जानकारी पाकर हमें क्या करना चाहिए?

19, 20. (क) आज कौन-सा गीत गाया जाना चाहिए? (ख) यहोवा की स्तुति का गीत आज कौन गा रहे हैं?

19 यशायाह लिखता है: “हे समुद्र पर चलने वालो और उसमें की सब वस्तुओ, हे द्वीपो, और उनके निवासियो, यहोवा के लिए एक नया गीत गाओ, पृथ्वी के छोर छोर से उसकी स्तुति करो। जंगल और उसके नगर अर्थात्‌ केदार के लोगों की बस्तियां अपनी आवाज़ ऊंची उठाएं। सेला के निवासी ऊंचे स्वर से गाएं, वे पर्वतों की चोटियों पर से ऊंचे शब्द से ललकारें। द्वीपों में लोग यहोवा की महिमा करें, उसकी स्तुति करें।”—यशायाह 42:10-12, NHT.

20 नगरों, जंगल में बसे गाँवों, द्वीपों, हर जगह यहाँ तक कि “केदार” यानी रेगिस्तान में डेरा लगाकर रहनेवालों से आग्रह किया गया है कि वे यहोवा की स्तुति में गीत गाएँ। यह देखकर कितनी खुशी होती है कि आज लाखों लोगों ने इस भविष्यवाणी में की गयी अपील का जवाब दिया है! उन्होंने परमेश्‍वर के वचन की सच्चाई को अपनाया है और यहोवा को अपना परमेश्‍वर माना है। यहोवा के लोग आज 230 से ज़्यादा देशों में उसकी महिमा कर रहे हैं यानी यह नया गीत गा रहे हैं। आज अलग-अलग संस्कृतियों, भाषाओं और जातियों के लोग मिलकर जो यह समूहगान गा रहे हैं, उसमें अपनी आवाज़ मिलाने से हमारे अंदर कैसी सिहरन दौड़ जाती है!

21. परमेश्‍वर के लोगों के दुश्‍मन, यहोवा के स्तुति-गीत को खामोश करने में कामयाब क्यों नहीं हो सकते?

21 क्या परमेश्‍वर के विरोधी उसके खिलाफ खड़े होकर इस स्तुति-गीत को खामोश करा सकते हैं? कभी नहीं! “यहोवा वीर की नाई निकलेगा और योद्धा के समान अपनी जलन भड़काएगा, वह ऊंचे शब्द से ललकारेगा और अपने शत्रुओं पर जयवन्त होगा।” (यशायाह 42:13) यहोवा के खिलाफ दुनिया की कौन-सी ताकत खड़ी हो सकती है? करीब 3,500 साल पहले भविष्यवक्‍ता मूसा और बाकी इस्राएलियों ने यह गीत गाया था: “यहोवा योद्धा है; उसका नाम यहोवा है। फ़िरौन के रथों और सेना को उस ने समुद्र में डाल दिया; और उसके उत्तम से उत्तम रथी लाल समुद्र में डूब गए।” (निर्गमन 15:3,4) यहोवा उस वक्‍त की दुनिया की सबसे शक्‍तिशाली फौज पर जयवंत हुआ था। जब यहोवा एक महान योद्धा की तरह निकल पड़ेगा, तो उसके लोगों का एक भी दुश्‍मन टिक नहीं सकेगा।

बहुत काल से तो मैं चुप रहा”

22, 23. यहोवा ‘बहुत काल तक चुप’ क्यों रहा?

22 यहोवा पक्षपात नहीं करता। वह खरा है और हमेशा न्याय करता है, तब भी जब वह अपने दुश्‍मनों को दंड देता है। वह कहता है: “बहुत काल से तो मैं चुप रहा और मौन साधे अपने को रोकता रहा; परन्तु अब जच्चा की नाईं चिल्लाऊंगा, मैं हांफ हांफकर सांस भरूंगा। पहाड़ों और पहाड़ियों को मैं सुखा डालूंगा और उनकी सब हरियाली झुलसा दूंगा; मैं नदियों को द्वीप कर दूंगा और तालों को सुखा डालूंगा।”—यशायाह 42:14,15.

23 यहोवा बुराई करनेवालों को दंड देने से पहले कुछ समय की मोहलत देता है ताकि वे अपने बुरे तौर-तरीकों से फिर जाएँ। (यिर्मयाह 18:7-10; 2 पतरस 3:9) मिसाल के लिए, विश्‍वशक्‍ति बाबुल के लोगों की ही बात लीजिए। उन्होंने सा.यु.पू. 607 में यरूशलेम को उजाड़ दिया था। यहोवा ने बाबुलियों को ऐसा करने की इजाज़त इसलिए दी ताकि इस्राएली अपने विश्‍वासघात की सज़ा पाकर सबक सीखें। लेकिन बाबुली यह समझने में नाकाम रहे कि यहोवा उन्हें अपने मकसद के लिए इस्तेमाल कर रहा है। इसलिए परमेश्‍वर के न्याय ने जैसे व्यवहार की माँग की उससे कहीं ज़्यादा ज़ुल्म उन्होंने उसके लोगों पर ढाए। (यशायाह 47:6,7; जकर्याह 1:15) अपने लोगों को तड़पते देख सच्चे परमेश्‍वर के दिल को कितनी तकलीफ पहुँची होगी! लेकिन वह तब तक खुद को रोके रखता है जब तक कि उसका ठहराया हुआ समय नहीं आ जाता। तब वह मानो जच्चा की तरह पीड़ाएँ उठाते हुए अपने चुने हुए लोगों को छुटकारा दिलाता है और उन्हें आज़ाद देश के रूप में जन्म देता है। यह करने के लिए वह, सा.यु.पू. 539 में बाबुल की हिफाज़त करनेवाले महानद को सुखाकर बाबुल को झुलसा देता है।

24. यहोवा अपने लोगों, इस्राएल के लिए क्या रास्ता खोल देता है?

24 इतने सालों तक बंधुआई की सज़ा काटने के बाद, परमेश्‍वर के लोग यह जानकर क्या ही आनंदित हुए होंगे कि उनके लिए घर लौटने का रास्ता आखिरकार खुल गया है! (2 इतिहास 36:22,23) वे यहोवा का यह वादा पूरा होते देखकर खुशी से झूम उठे होंगे: “मैं अन्धों को एक मार्ग से ले चलूंगा जिसे वे नहीं जानते और उनको ऐसे पथों से चलाऊंगा जिन्हें वे नहीं जानते। उनके आगे मैं अन्धियारे को उजियाला करूंगा और टेढ़े मार्गों को सीधा करूंगा। मैं ऐसे ऐसे काम करूंगा और उनको न त्यागूंगा।”—यशायाह 42:16.

25. (क) यहोवा के लोग आज किस बात का यकीन रख सकते हैं? (ख) हमारा क्या फैसला होना चाहिए?

25 भविष्यवाणी के ये शब्द आज के समय पर कैसे लागू होते हैं? यहोवा ने एक लंबे अरसे तक या कई सदियों से राष्ट्रों को अपनी मन-मरज़ी करने दी है। लेकिन, अब मामले को सुलझाने का उसका ठहराया हुआ समय करीब आ गया है। हमारे दिनों में, उसने अपने नाम की गवाही देने के लिए एक जाति को तैयार किया है। उनके सामने आनेवाली हर अड़चन को दूर करते हुए, यहोवा ने उनका रास्ता साफ किया ताकि वे “आत्मा और सच्चाई से” उसकी उपासना कर सकें। (यूहन्‍ना 4:24) यहोवा ने वादा किया था: ‘मैं उनको न त्यागूंगा’ और उसने अपना यह वादा निभाया भी है। लेकिन जो लोग झूठे देवी-देवताओं की उपासना करना नहीं छोड़ते, उनका क्या होगा? उनके बारे में यहोवा कहता है: “जो लोग खुदी हुई मूरतों पर भरोसा रखते और ढली हुई मूरतों से कहते हैं कि तुम हमारे ईश्‍वर हो, उनको पीछे हटना और अत्यन्त लज्जित होना पड़ेगा।” (यशायाह 42:17) इसलिए यह कितना ज़रूरी है कि हम यहोवा के वफादार बने रहें, ठीक जैसा उसका ‘चुना हुआ दास’ वफादार रहा था!

‘एक दास जो बहिरा और अन्धा है’

26, 27. किस तरह इस्राएल ‘बहिरा और अन्धा दास’ साबित हुआ, और इसका अंजाम क्या हुआ?

26 परमेश्‍वर का ‘चुना हुआ दास,’ यीशु मसीह अपनी मौत तक वफादार रहा था। लेकिन यहोवा के चुने हुए इस्राएली लोग विश्‍वासघाती दास निकले, साथ ही वे आध्यात्मिक अर्थ में बहिरे और अंधे भी हैं। उनसे यहोवा कहता है: “हे बहिरो, सुनो; हे अन्धो, आंख खोलो कि तुम देख सको! मेरे दास के सिवाय कौन अन्धा है? और मेरे भेजे हुए दूत के तुल्य कौन बहिरा है? मेरे मित्र के समान कौन अन्धा या यहोवा के दास के तुल्य अन्धा कौन है? तू बहुत सी बातों पर दृष्टि करता है परन्तु उन्हें देखता नहीं है; कान तो खुले हैं परन्तु सुनता नहीं है। यहोवा को अपनी धार्मिकता के निमित्त ही यह भाया है कि व्यवस्था की बड़ाई अधिक करे।”—यशायाह 42:18-21.

27 यह कितने दुःख की बात है कि इस्राएल जाति नाकाम निकली! उसके लोग बार-बार दुष्टात्माओं की यानी परायी जातियों के झूठे देवी-देवताओं की उपासना करने लगते थे। बार-बार यहोवा उनके पास अपने दूत भेजता था, मगर इन लोगों के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी। (2 इतिहास 36:14-16) इसका उन्हें क्या अंजाम भुगतना पड़ता, इसके बारे में यशायाह बताता है: “ये लोग लुट गए हैं, ये सब के सब गड़हियों में फंसे हुए और कालकोठरियों में बन्द किए हुए हैं; ये पकड़े गए और कोई इन्हें नहीं छुड़ाता; ये लुट गए और कोई आज्ञा नहीं देता कि फेर दो। तुम में से कौन इस पर कान लगाएगा? कौन ध्यान धरके होनहार के लिये सुनेगा? किस ने याकूब को लुटवाया और इस्राएल को लुटेरों के वश में कर दिया? क्या यहोवा ने यह नहीं किया जिसके विरुद्ध हम ने पाप किया, जिसके मार्गों पर उन्हों ने चलना न चाहा और न उसकी व्यवस्था को माना? इस कारण उस पर उस ने अपने क्रोध की आग भड़काई और युद्ध का बल चलाया; और यद्यपि आग उसके चारों ओर लग गई, तौभी वह न समझा; वह जल भी गया, तौभी न चेता।”—यशायाह 42:22-25.

28. (क) यहूदा के निवासियों के उदाहरण से हम क्या सबक सीख सकते हैं? (ख) हम यहोवा की मंज़ूरी पाने की कोशिश कैसे कर सकते हैं?

28 यहूदा के निवासियों के विश्‍वासघात की वजह से सा.यु.पू. 607 में यहोवा ने उस देश को बाबुलियों के हाथों लुटने और बरबाद होने दिया। उन्होंने यहोवा का मंदिर फूँक डाला, यरूशलेम को उजाड़ दिया और यहूदियों को बंधुआ बनाकर ले गए। (2 इतिहास 36:17-21) इसलिए आइए हम चेतावनी देनेवाले इस उदाहरण को अपने दिलो-दिमाग में बिठा लें और यहोवा की हिदायतों को कभी-भी अनसुना न करें या उसके लिखित वचन से अपनी आँखें ना फेर लें। इसके बजाय, आइए हम परमेश्‍वर के ‘दास’ यानी यीशु मसीह की मिसाल पर चलें क्योंकि उसने यहोवा को खुश किया था और उसकी मंज़ूरी पायी थी। यीशु की तरह आइए हम अपनी ज़बान से और अपने व्यवहार से सच्चा न्याय प्रकट करें। ऐसा करने पर हम यहोवा के लोगों के बीच बने रहेंगे और ज्योति फैलानेवालों के तौर पर सच्चे परमेश्‍वर की स्तुति और महिमा करते रहेंगे।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 33 पर तसवीरें]

सच्चा न्याय, दया और करुणा से भरा होता है

[पेज 34 पर तसवीर]

दयालु सामरी की कहानी में यीशु ने दिखाया कि सभी लोगों को सच्चा न्याय मिलना चाहिए

[पेज 36 पर तसवीरें]

दूसरों की हिम्मत बँधाने और करुणा दिखाने से हम ईश्‍वरीय न्याय ज़ाहिर करते हैं

[पेज 39 पर तसवीरें]

प्रचार काम के ज़रिए हम ईश्‍वरीय न्याय ज़ाहिर करते हैं

[पेज 40 पर तसवीर]

यहोवा के चुने हुए ‘दास’ को “जातियों के लिए प्रकाश” ठहराया गया था