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यहोवा का हाथ छोटा नहीं हो गया

यहोवा का हाथ छोटा नहीं हो गया

बीसवाँ अध्याय

यहोवा का हाथ छोटा नहीं हो गया

यशायाह 59:1-21

1. यहूदा में हालात कैसे हैं, और इससे बहुतों के मन में क्या सवाल खटक रहा है?

यहूदा देश, यहोवा के साथ वाचा में बँधे होने का दावा तो करता है, मगर यशायाह के दिनों में जहाँ देखो वहाँ संकट-ही-संकट नज़र आता है। देश में कहीं न्याय नहीं मिलता, इसके बजाय हर तरफ अपराध और अत्याचार का बोलबाला है और हालात में सुधार आने के आसार भी नज़र नहीं आते। इस गंभीर हालत की कुछ तो वजह है। बहुतों के मन में यह सवाल खटक रहा है कि क्या यहोवा इस हालत को सुधारने के लिए कुछ करेगा? लेकिन यशायाह ने जो घटनाएँ लिखीं वे सिर्फ इतिहास की बातें नहीं बल्कि आज हमारे लिए भी मायने रखती हैं। उसकी भविष्यवाणी में ऐसे हर इंसान के लिए चेतावनियाँ दी गयी हैं जो आज परमेश्‍वर की उपासना करने का दावा तो करता है, मगर उसके नियमों को नज़रअंदाज़ कर देता है। साथ ही परमेश्‍वर की प्रेरणा से अध्याय 59 में दर्ज़ भविष्यवाणी उन सभी लोगों का हौसला बढ़ाती है जो इन मुश्‍किल और खतरनाक समयों में रहते हुए भी पूरी वफादारी से यहोवा की सेवा कर रहे हैं।

सच्चे परमेश्‍वर से दूर

2, 3. यहूदा के ऊपर से यहोवा का साया क्यों हट गया है?

2 हम यह सोच भी नहीं सकते कि यहोवा के साथ वाचा में बँधे उसके अपने लोग, उसे छोड़कर धर्मत्यागी बन गए हैं! जी हाँ, उन्होंने अपने सिरजनहार को छोड़ दिया है, इसलिए परमेश्‍वर का साया उन पर से हट चुका है। यही वजह है कि उन्हें भारी विपत्तियों का सामना करना पड़ रहा है। क्या वे इन मुसीबतों के लिए परमेश्‍वर को दोषी ठहरा सकते हैं? यशायाह उन्हें जवाब देता है: “सुनो, यहोवा का हाथ ऐसा छोटा नहीं हो गया कि उद्धार न कर सके, न वह ऐसा बहिरा हो गया है कि सुन न सके; परन्तु तुम्हारे अधर्म के कामों ने तुम को तुम्हारे परमेश्‍वर से अलग कर दिया है, और तुम्हारे पापों के कारण उसका मुंह तुम से ऐसा छिपा है कि वह नहीं सुनता।”—यशायाह 59:1,2.

3 चाहे ये शब्द कितने ही कड़वे क्यों न हों, मगर यह है तो सच्ची बात। यहोवा नहीं बदला, वह अब भी वही उद्धार करनेवाला परमेश्‍वर है। वह ‘प्रार्थना का सुननेवाला’ है और अपने वफादार सेवकों की प्रार्थनाएँ ज़रूर सुनता है। (भजन 65:2) लेकिन वह दुष्ट काम करनेवालों को हरगिज़ आशीष नहीं देता। यहोवा से अलग हो जाने के लिए ये लोग खुद ज़िम्मेदार हैं, यहोवा नहीं। उनकी दुष्टता की वजह से ही परमेश्‍वर ने उनसे मुँह छिपा लिया है।

4. यहूदा किन बुरे कामों का दोषी है?

4 सच्चाई तो यह है कि यहूदा के घिनौने कामों की लिस्ट बहुत लम्बी है। इनमें से कुछ का ज़िक्र यशायाह अपनी भविष्यवाणी में करता है: “तुम्हारे हाथ खून से और तुम्हारी उंगलियां अधर्म से अशुद्ध हो गई हैं। तुम्हारे होंठों ने झूठ बोला और तुम्हारी जीभ बुरी बातें बकती है।” (यशायाह 59:3, NHT) लोग झूठी और बुरी बातें कहते हैं। “तुम्हारे हाथ खून से . . . अशुद्ध” हैं, इन शब्दों से पता चलता है कि कुछ लोगों ने हत्याएँ भी की हैं। उन्होंने परमेश्‍वर का कितना घोर अपमान किया है जिसकी कानून-व्यवस्था न सिर्फ खून करने से मना करती है बल्कि ‘अपने भाई से हृदय में घृणा करने’ तक से मना करती है! (लैव्यव्यवस्था 19:17, नयी हिन्दी बाइबिल) यहूदा के निवासी जिस तरह पाप करते चले गए और उन्हें उसका जो अंजाम भुगतना पड़ा, उससे आज हमें यह सीखना चाहिए कि अपने पापपूर्ण विचारों और भावनाओं को काबू में रखना बेहद ज़रूरी है। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो हम भी दुष्ट काम करने लगेंगे और परमेश्‍वर से दूर हो जाएँगे।—रोमियों 12:9; गलतियों 5:15; याकूब 1:14,15.

5. यहूदा किस हद तक भ्रष्ट हो चुका है?

5 पाप एक बीमारी की तरह पूरे देश में फैल चुका है। भविष्यवाणी कहती है: “कोई धर्म के साथ नालिश नहीं करता, न कोई सच्चाई से मुक़द्दमा लड़ता है; वे मिथ्या पर भरोसा रखते हैं और झूठ बातें बकते हैं; उसको मानो उत्पात का गर्भ रहता, और वे अनर्थ को जन्म देते हैं।” (यशायाह 59:4) धार्मिकता की बात करनेवाला एक भी नहीं है। यहाँ तक कि अदालतों में भी ऐसा इंसान पाना मुश्‍किल है जो भरोसेमंद या वफादार हो। यहूदा ने यहोवा को छोड़ दिया है और वह दूसरे देशों के साथ की गयी संधियों, यहाँ तक कि बेजान मूर्तियों पर भरोसा रखता है। मगर ये सारी चीज़ें “मिथ्या” हैं, इनका कोई मोल नहीं। (यशायाह 40:17,23; 41:29) नतीजा यह होता है कि वे बड़ी-बड़ी बातें तो करते हैं, मगर ये खोखली साबित होती हैं। योजनाएँ तो बनाते हैं, मगर उनसे मुसीबतों और नुकसान के सिवा और कुछ हासिल नहीं होता।

6. किस तरह ईसाईजगत का इतिहास भी यहूदा जैसा है?

6 यहूदा देश में जो अधर्म और हिंसा देखी गयी थी वही आज हम ईसाईजगत में भी देखते हैं। (पेज 294 में “धर्मत्यागी यरूशलेम जैसा ईसाईजगत” देखिए।) इतिहास में दो भयानक विश्‍वयुद्ध, ज़्यादातर ईसाई कहलानेवाले देशों के बीच लड़े गए थे। तब से लेकर आज तक ईसाईजगत अपने ही सदस्यों के बीच होनेवाले जनसंहार और जातियों के बीच कत्लेआम को रोकने में नाकाम रहा है। (2 तीमुथियुस 3:5) हालाँकि यीशु ने अपने शिष्यों को परमेश्‍वर के राज्य पर भरोसा करना सिखाया था, मगर ईसाईजगत के देश अपनी सुरक्षा के लिए राजनीतिक संधियों और हथियारों पर भरोसा रखते हैं। (मत्ती 6:10) दरअसल, आज दुनिया में हथियार बनानेवालों में से ईसाईजगत के देश ही सबसे आगे हैं! जी हाँ, अगर ईसाईजगत को यकीन है कि इंसान और उसके बनाए संगठन सभी के लिए एक सुरक्षित भविष्य ला सकते हैं तो उसने भी “मिथ्या” पर भरोसा किया है।

बुरे का फल बुरा

7. यहूदा की हर योजना का फल बुरा ही क्यों होता है?

7 जिस समाज में मूर्तिपूजा और बेईमानी हो वह कभी खुशहाल नहीं रह सकता। विश्‍वासघाती यहूदियों ने इन्हीं का सहारा लिया था, इसलिए अब वे अपने किए की सज़ा भुगत रहे हैं। हम पढ़ते हैं: “वे सांपिन के अण्डे सेते और मकड़ी के जाले बनाते हैं; जो कोई उनके अण्डे खाता वह मर जाता है, और जब कोई एक को फोड़ता तब उस में से सपोला निकलता है।” (यशायाह 59:5) शुरू से आखिर तक, यहूदा की कोई भी योजना टिकती नज़र नहीं आती। जैसे ज़हरीले साँप के अण्डे से ज़हरीला सँपोला ही निकलता है, उसी तरह यहूदा की गलत सोच का फल भी बुरा होता है। नतीजा यह है कि सारे देश को अपनी बुराई का फल भुगतना पड़ता है।

8. किस बात से पता चलता है कि यहूदा के लोगों की सोच बिगड़ चुकी है?

8 अपनी हिफाज़त के लिए यहूदा के कुछ निवासी, शायद हिंसा पर उतर आएँ, मगर यह बेकार साबित होगी। हिफाज़त के लिए बल पर भरोसा रखना बेकार है। असली हिफाज़त यहोवा पर भरोसा रखने और धर्म के काम करने से मिलती है। बल पर भरोसा रखना, अपने शरीर को खराब मौसम से बचाने के लिए कपड़ों की जगह मकड़ी के जाले से ढकने जैसा है। यशायाह कहता है: “उनके जाले कपड़े का काम न देंगे, न वे अपने कामों से अपने को ढांप सकेंगे। क्योंकि उनके काम अनर्थ ही के होते हैं, और उनके हाथों से उपद्रव का काम होता है। वे बुराई करने को दौड़ते हैं, और निर्दोष की हत्या करने को तत्पर रहते हैं; उनकी युक्‍तियां व्यर्थ हैं, उजाड़ और विनाश ही उनके मार्गों में हैं।” (यशायाह 59:6,7) यहूदा के लोगों की सोच बिगड़ चुकी है। अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए हिंसा का रास्ता इख्तियार करने से उनमें और भक्‍तिहीन लोगों में कोई अंतर नहीं रह गया है। उन्हें इस बात की रत्ती भर भी परवाह नहीं कि कई बेगुनाह लोग उनकी हिंसा का शिकार हो रहे हैं, जिनमें से कुछ परमेश्‍वर के सच्चे भक्‍त हैं।

9. क्यों ईसाईजगत के अगुवों को कभी-भी सच्ची शांति हासिल नहीं होगी?

9 ईश्‍वर-प्रेरणा से लिखे ये वचन हमें ईसाईजगत के खून से रंगे इतिहास की याद दिलाते हैं। उसने मसीहियत के नाम पर जो कलंक लगाया है, यहोवा उसका लेखा ज़रूर लेगा! यशायाह के दिनों के यहूदियों की तरह ईसाईजगत ने ऐसा रास्ता अपनाया है जो नैतिकता से कोसों दूर है, क्योंकि उसके अगुवों को बस यही एक रास्ता सही लगता है। मुँह से तो वे शांति की बात करते हैं, मगर दूसरी तरफ अत्याचार करने से बाज़ नहीं आते। कितने बड़े धोखेबाज़ हैं ये! वे अपनी दोहरी चाल चलना नहीं छोड़ते इसलिए सच्ची शांति उन्हें कभी-भी हासिल नहीं होगी। उनके साथ वैसा ही होगा जैसा भविष्यवाणी में लिखा है: “शान्ति का मार्ग वे जानते ही नहीं और न उनके व्यवहार में न्याय है; उनके पथ टेढ़े हैं, जो कोई उन पर चले वह शान्ति न पाएगा।”—यशायाह 59:8.

आध्यात्मिक अंधकार में भटकना

10. यहूदा की तरफ से यशायाह क्या कबूल करता है?

10 यहूदा के कुटिल और विनाशकारी कामों पर यहोवा हरगिज़ आशीष नहीं दे सकता। (भजन 11:5) इसलिए पूरे देश की तरफ से यशायाह, उनका अपराध कबूल करते हुए कहता है: “न्याय हम से दूर है, और धर्म हमारे समीप ही नहीं आता; हम उजियाले की बाट तो जोहते हैं, परन्तु, देखो अन्धियारा ही बना रहता है, हम प्रकाश की आशा तो लगाए हैं, परन्तु, घोर अन्धकार ही में चलते हैं। हम अन्धों के समान भीत टटोलते हैं, हां, हम बिना आंख के लोगों की नाईं टटोलते हैं; हम दिन-दोपहर रात की नाईं ठोकर खाते हैं, हृष्टपुष्टों के बीच हम मुर्दों के समान हैं। हम सब के सब रीछों की नाईं चिल्लाते हैं और पण्डुकों के समान च्यूं च्यूं करते हैं।” (यशायाह 59:9-11क) यहूदियों ने परमेश्‍वर के वचन को अपने पाँव के लिए दीपक और अपने मार्ग के लिए उजियाला नहीं बनाया है। (भजन 119:105) नतीजा यह हुआ है कि उनका मार्ग अंधकार से भरा है। भरी दोपहर में भी वे ऐसे टटोलते फिर रहे हैं, मानो उनके लिए रात का अंधेरा हो। उनकी हालत मुर्दों जैसी है। राहत पाने के लिए, वे भूखे या घायल रीछों की तरह चिल्ला रहे हैं। और उनमें से कुछ तो झुंड से अलग हुए पंडुकों की तरह च्यूं च्यूं कर रहे हैं।

11. यहूदा के लिए न्याय और उद्धार पाने की उम्मीद करना क्यों बेकार है?

11 यशायाह अच्छी तरह जानता है कि यहूदा की ऐसी दुर्दशा इसलिए हुई है क्योंकि उसने परमेश्‍वर के खिलाफ विद्रोह किया है। वह कहता है: “हम न्याय की बाट तो जोहते हैं, पर वह कहीं नहीं; और उद्धार की बाट जोहते हैं पर वह हम से दूर ही रहता है। क्योंकि हमारे अपराध तेरे साम्हने बहुत हुए हैं, हमारे पाप हमारे विरुद्ध साक्षी दे रहे हैं; हमारे अपराध हमारे संग हैं और हम अपने अधर्म के काम जानते हैं: हम ने यहोवा का अपराध किया है, हम उस से मुकर गए और अपने परमेश्‍वर के पीछे चलना छोड़ दिया, हम अन्धेर करने लगे और उलट फेर की बातें कहीं, हम ने झूठी बातें मन में गढ़ीं और कही भी हैं।” (यशायाह 59:11ख-13) यहूदा के निवासियों ने अपने पापों का प्रायश्‍चित नहीं किया है, इसलिए उनका पाप बना रहता है। उन्होंने यहोवा को छोड़ दिया है, इसलिए देश से न्याय उठ चुका है। वे पूरी तरह झूठे साबित हुए हैं, यहाँ तक कि वे अपने भाइयों पर ज़ुल्म ढाते हैं। आज का ईसाईजगत उन्हीं के जैसा है! उसके अधिकतर लोग न सिर्फ न्याय को नकार देते हैं बल्कि यहोवा की इच्छा पूरी करनेवाले उनके वफादार साक्षियों को बुरी तरह सताते भी हैं।

यहोवा दंड देता है

12. यहूदा देश के न्यायी, कैसा रवैया दिखाते हैं?

12 यहूदा में न्याय, धार्मिकता और सच्चाई दूर-दूर तक नज़र नहीं आते। “न्याय तो पीछे हटाया गया और धर्म दूर खड़ा रह गया; सच्चाई बाज़ार में गिर पड़ी, और सिधाई प्रवेश नहीं करने पाती।” (यशायाह 59:14) यहूदा में शहरों के अंदर प्रवेश करते ही ऐसे चौक देखे जा सकते थे जहाँ पुरनिए मुकद्दमों की सुनवाई करने के लिए इकट्ठे होते थे। (रूत 4:1,2,11) इन पुरुषों को धार्मिकता और न्याय से फैसला करना था और रिश्‍वत नहीं लेनी थी। (व्यवस्थाविवरण 16:18-20) लेकिन ये पुरनिए पहले से ही अपने स्वार्थ को पूरा करने की बात सोच लेते हैं, फिर उसी के मुताबिक न्याय करते हैं। और-तो-और, अगर कोई ईमानदारी से भला काम करना चाहता भी है, तो वे उसे बलि का बकरा समझते हैं। जैसा कि लिखा है: “सच्चाई खो गई, और जो बुराई से भागता है सो शिकार हो जाता है।”—यशायाह 59:15क.

13. यहूदा के न्यायी अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में लापरवाह हो गए हैं, इसलिए यहोवा क्या करेगा?

13 जो लोग घिनौने अनैतिक कामों के खिलाफ आवाज़ नहीं उठाते वे यह भूल जाते हैं कि परमेश्‍वर अंधा नहीं है, ना ही वह अनजान और कमज़ोर है। यशायाह लिखता है: “यह देखकर यहोवा ने बुरा माना, क्योंकि न्याय जाता रहा, उस ने देखा कि कोई भी पुरुष नहीं, और इस से अचम्भा किया कि कोई बिनती करनेवाला नहीं; तब उस ने अपने ही भुजबल से उद्धार किया, और अपने धर्मी होने के कारण वह सम्भल गया।” (यशायाह 59:15ख,16) यहूदा में ठहराए गए न्यायी अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में लापरवाह हैं, इसलिए यहोवा मामलों को अपने हाथ में ले लेगा। और तब वह धार्मिकता और शक्‍तिशाली ढंग से काम करेगा।

14. (क) आज ज़्यादातर लोगों का रवैया कैसा है? (ख) यहोवा इंसाफ करने के लिए खुद को कैसे तैयार करता है?

14 आज की हालत भी कुछ ऐसी ही है। हम एक ऐसी दुनिया में जीते हैं जहाँ ज़्यादातर लोगों में से ‘लज्जा की भावना जाती रही है’ या मिट चुकी है। (इफिसियों 4:19, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) बहुत कम लोग यह मानते हैं कि दुनिया से बुराई मिटाने के लिए यहोवा कभी कोई कार्यवाही करेगा। लेकिन यशायाह की भविष्यवाणी दिखाती है कि यहोवा इंसानी मामलों पर पैनी नज़र रखे हुए है। वह इंसाफ करता है और फिर अपने ठहराए हुए समय में अपने फैसलों के मुताबिक कार्यवाही करने के लिए कदम उठाता है। क्या वह वाकई सच्चा इंसाफ करता है? यशायाह बताता है कि उसका इंसाफ सच्चा है। यहूदा के लोगों के मामले में उसने लिखा: [यहोवा ने] धार्मिकता को कवच के समान धारण किया और अपने सिर पर उद्धार का टोप रखा। उसने वस्त्र के स्थान पर पलटा लेने की पोशाक पहन ली, और जलजलाहट को चादर के समान ओढ़ लिया।” (यशायाह 59:17, NHT) भविष्यवाणी के इन शब्दों में यहोवा का वर्णन एक योद्धा के रूप में किया गया है, जो लड़ाई के लिए हथियार बाँध रहा है। यहोवा हर हाल में उद्धार करेगा, यानी उसने जो ठान लिया है उसे वह पूरा करके ही दम लेगा। उसकी धार्मिकता सर्वोच्च है जिस पर उसे पूरा भरोसा है और उसकी धार्मिकता में कोई नुक्स निकाल नहीं सकता। वह निधड़क होकर पूरे जोश के साथ इंसाफ को अंजाम देगा। तो फिर इसमें कोई शक नहीं कि सच्चाई की जीत होगी।

15. (क) जब यहोवा न्यायदंड देगा तब सच्चे मसीही क्या नहीं करेंगे? (ख) यहोवा के इंसाफ के बारे में क्या कहा जा सकता है?

15 आज कुछ देशों में सच्चाई के दुश्‍मन, यहोवा के सेवकों के काम में बाधा डालने के लिए उनके बारे में झूठा प्रचार करते हैं। सच्चे मसीही सच्चाई के पक्ष में गवाही देने से नहीं डरते और वे कभी-भी किसी से बदला लेने की कोशिश नहीं करते। (रोमियों 12:19) यहाँ तक कि जब यहोवा, धर्मत्यागी ईसाईजगत को न्यायदंड देगा तब भी उसके सेवक इसका विनाश करने में अपना हाथ नहीं लगाएँगे। उन्हें मालूम है कि बदला लेने का हक सिर्फ यहोवा को है जो वक्‍त आने पर सही कार्यवाही करेगा। भविष्यवाणी हमें आश्‍वासन देती है: “उनके कर्मों के अनुसार वह उनको प्रतिफल देगा, अर्थात्‌ अपने द्रोहियों पर कोप करेगा और शत्रुओं से बदला लेगा। द्वीप भी उसके द्वारा अपना उचित दण्ड भोगेंगे।” (यशायाह 59:18, NHT) यशायाह के दिनों की तरह आनेवाले समय में भी परमेश्‍वर एकदम सही और पूरी तरह इंसाफ करेगा। यहाँ तक कि “द्वीप” यानी दूर-दराज़ के इलाके भी उसकी पहुँच से बाहर नहीं होंगे। कोई चाहे धरती के कोने में भी क्यों न छिपा हो, वह उसके न्यायदंड से नहीं बच पाएगा।

16. यहोवा के न्यायदंड से कौन बच पाएगा, और संकट से बचने के बाद उन पर क्या असर होगा?

16 यहोवा ऐसे लोगों को धर्मी ठहराता है, जो तन-मन से सही काम करने की कोशिश करते हैं। यशायाह भविष्यवाणी करता है कि पूरी धरती पर सिर्फ ऐसे ही लोग आनेवाले विनाश से बच पाएँगे। और जब वे खुद यह देखेंगे कि यहोवा ने उन्हें बचाकर उनकी रक्षा की है तो उनका दिल उसके लिए श्रद्धा और आदर से उमड़ पड़ेगा। (मलाकी 1:11) इसके बारे में हम पढ़ते हैं: “पश्‍चिम की ओर लोग यहोवा के नाम का, और पूर्व की ओर उसकी महिमा का भय मानेंगे; क्योंकि जब शत्रु महानद की नाईं चढ़ाई करेंगे तब यहोवा का आत्मा उसके विरुद्ध झण्डा खड़ा करेगा।” (यशायाह 59:19) जैसे आँधी-तूफान बड़ी बाढ़ के साथ रास्ते में आनेवाली हर चीज़ को बहा ले जाता है, उसी तरह परमेश्‍वर की आत्मा उसके मकसद के आड़े आनेवाली हर बाधा को बहा ले जाएगी। उसकी आत्मा, इंसान की किसी भी ताकत से कहीं बढ़कर है। जब वह लोगों और देशों को दंड देने के लिए इसका इस्तेमाल करेगा तो उसे पूरी तरह कामयाब होने से कोई रोक नहीं सकेगा।

पश्‍चाताप करनेवालों के लिए उम्मीद और आशीष

17. सिय्योन का छुड़ानेवाला कौन है, और वह उसे कब छुड़ाता है?

17 मूसा की कानून-व्यवस्था के मुताबिक जो इस्राएली खुद को गुलामी के लिए बेच देता था, अगर उसका कोई छुड़ानेवाला हो तो वह उसे गुलामी से आज़ाद करवा सकता था। यशायाह की किताब में पहले भी बताया गया है कि जो लोग पश्‍चाताप करते हैं यहोवा उन्हें छुटकारा देता है। (यशायाह 48:17) अब उसे एक बार फिर पश्‍चातापी लोगों का छुड़ानेवाला कहा गया है। यहोवा के इस वादे के बारे में यशायाह लिखता है: “याकूब में जो अपराध से मन फिराते हैं उनके लिये सिय्योन में एक छुड़ानेवाला आएगा, यहोवा की यही वाणी है।” (यशायाह 59:20) यकीन दिलानेवाला यह वादा सा.यु.पू. 537 में पूरा हुआ। मगर इसकी एक और पूर्ति भविष्य में होनेवाली थी। इस वादे के बारे में प्रेरित पौलुस ने सेप्टुअजेंट वर्शन से हवाला दिया और इन शब्दों को मसीहियों पर लागू करते हुए लिखा: “इस रीति से सारा इस्राएल उद्धार पाएगा; जैसा लिखा है, कि छुड़ानेवाला सिय्योन से आएगा, और अभक्‍ति को याकूब से दूर करेगा। और उन के साथ मेरी यही वाचा होगी, जब कि मैं उन के पापों को दूर कर दूंगा।” (रोमियों 11:26,27) जी हाँ, यशायाह की भविष्यवाणी की पूर्ति हमारे समय में और भविष्य में भी होगी। कैसे?

18. यहोवा ने “परमेश्‍वर के इस्राएल” की स्थापना कब और कैसे की?

18 पहली सदी में, इस्राएल जाति में ऐसे बहुत कम लोग थे जिन्होंने यीशु को मसीहा स्वीकार किया। (रोमियों 9:27; 11:5) सा.यु. 33 के पिन्तेकुस्त के दिन, यहोवा ने अपनी पवित्र आत्मा इनमें से करीब 120 विश्‍वासियों पर उंडेली और उनके साथ एक नयी वाचा बाँधी जिसका मध्यस्त यीशु मसीह है। (यिर्मयाह 31:31-33; इब्रानियों 9:15) उसी दिन, ‘परमेश्‍वर का इस्राएल’ स्थापित हुआ। यह एक नयी जाति थी जिसकी सदस्यता इब्राहीम का वंश होने पर नहीं बल्कि परमेश्‍वर की आत्मा से जन्म लेने पर निर्भर थी। (गलतियों 6:16) कुरनेलियुस से, जो इस नयी जाति का सबसे पहला गैर-यहूदी सदस्य बना, अन्यजाति के लोग भी इसमें शामिल होना शुरू हो गए। (प्रेरितों 10:24-48; प्रकाशितवाक्य 5:9,10) इस तरह यहोवा परमेश्‍वर ने मानो उन्हें गोद ले लिया और वे उसकी आत्मिक संतान, और यीशु के संगी वारिस बने।—रोमियों 8:16,17.

19. यहोवा, आत्मिक इस्राएल के साथ क्या वाचा बाँधता है?

19 अब यहोवा परमेश्‍वर, अपने आत्मिक इस्राएल के साथ एक वाचा बाँधता है। इसके बारे में हम पढ़ते हैं: “यहोवा ने कहा है, ‘जो वाचा मैंने उनसे बान्धी है वह यह है: मेरा आत्मा जो तुझ पर ठहरा है, और अपने वचन जो मैंने तेरे मुंह में डाले हैं वे तेरे मुंह से, तेरे वंश के मुंह से, और तेरे वंश के वंशजों के मुंह से आज से लेकर सदा तक कभी न हटेंगे।’ यहोवा की यही वाणी है।” (यशायाह 59:21, NHT, फुटनोट) चाहे ये शब्द यशायाह के मामले में पूरे हुए हों या ना हुए हों, मगर यीशु में बेशक पूरे हुए थे। उसे विश्‍वास दिलाया गया था कि ‘वह अपना वंश देख पाएगा।’ (यशायाह 53:10) यीशु ने वही उपदेश दिया जो उसने यहोवा से सीखा था और यहोवा की आत्मा उस पर थी। (यूहन्‍ना 1:18; 7:16) इसलिए यह कहना सही होगा कि परमेश्‍वर के इस्राएल के सदस्य यानी यीशु के भाई और संगी वारिसों को भी यहोवा की पवित्र आत्मा मिलती है और वे भी वही संदेश प्रचार करते हैं जिसकी शिक्षा स्वर्ग में रहनेवाले उनके पिता ने उन्हें दी है। वे सब “यहोवा के सिखलाए हुए” हैं। (यशायाह 54:13; लूका 12:12; प्रेरितों 2:38) यशायाह या महान यशायाह, यीशु के ज़रिए यहोवा अब प्रतिज्ञा करता है कि वह आत्मिक इस्राएल को कभी नहीं त्यागेगा और वह उन्हें अपने साक्षियों के तौर पर सदा सर्वदा तक इस्तेमाल करेगा। (यशायाह 43:10) लेकिन उनके ‘वंशज’ कौन हैं जो उनके साथ-साथ इस वाचा से फायदा पाते हैं?

20. इब्राहीम से किया गया यहोवा का वादा पहली सदी में कैसे पूरा हुआ?

20 प्राचीन समय में, यहोवा ने इब्राहीम से वादा किया था: “पृथ्वी की सारी जातियां अपने को तेरे वंश के कारण धन्य मानेंगी।” (उत्पत्ति 22:18) इस वादे के मुताबिक मसीहा को माननेवाले पैदाइशी इस्राएलियों में से मुट्ठी-भर ने पहली सदी में, देश-देश में जाकर मसीह के बारे में सुसमाचार सुनाया। कुरनेलियुस के बाद अन्यजाति के कई खतनारहित लोगों ने भी इब्राहीम के वंश, यीशु के ज़रिए खुद को “धन्य” किया। वे परमेश्‍वर के इस्राएल के सदस्य और इब्राहीम के वंश का दूसरा भाग बने। वे यहोवा की “पवित्र जाति” हैं जिनका काम ‘उसके महान्‌ गुणों को प्रगट करना है जिसने उन्हें अंधकार में से अपनी अद्‌भुत ज्योति में बुलाया है।’—1 पतरस 2:9, NHT; गलतियों 3:7-9,14,26-29.

21. (क) आज, परमेश्‍वर के इस्राएल ने कौन-सा “वंश” उत्पन्‍न किया है? (ख) परमेश्‍वर के इस्राएल के साथ बाँधी गयी यहोवा की वाचा, इस “वंश” को क्या यकीन दिलाती है?

21 आज, ऐसा लगता है कि परमेश्‍वर के इस्राएल की पूरी संख्या इकट्ठी की जा चुकी है। इसके बावजूद इस भविष्यवाणी का पूरा होना जारी है। आज बड़े पैमाने पर देश-देश के लोग खुद को धन्य कर रहे हैं। कैसे? इस मायने में कि परमेश्‍वर के इस्राएल के ‘वंशज’ उत्पन्‍न हुए हैं यानी यीशु के वे शिष्य जिन्हें पृथ्वी पर फिरदौस में अनंत जीवन पाने की आशा है। (भजन 37:11,29) यहोवा इन “वंशजों” को सिखा रहा है और उन्हें अपनी राहों पर चलने की हिदायतें दे रहा है। (यशायाह 2:2-4) हालाँकि उन्होंने पवित्र आत्मा से बपतिस्मा नहीं पाया है, ना ही उनके साथ नयी वाचा बाँधी गयी है, मगर फिर भी यहोवा की पवित्र आत्मा उन्हें उन सारी रुकावटों को पार करने की ताकत देती है जो प्रचार काम को रोकने के लिए शैतान उनकी राह में खड़ी करता है। (यशायाह 40:28-31) उनकी गिनती आज लाखों तक पहुँच गयी है और यह गिनती बढ़ती ही जा रही है क्योंकि वे भी संतान को उत्पन्‍न करके वंश बढ़ाते जा रहे हैं। अभिषिक्‍त जनों के साथ बँधी यहोवा की वाचा इन “वंशजों” को यकीन दिलाती है कि यहोवा उन्हें भी हमेशा तक अपना संदेश सुनाने के लिए इस्तेमाल करेगा।—प्रकाशितवाक्य 21:3,4,7.

22. यहोवा पर हम क्या भरोसा रख सकते हैं, और इसका हम पर कैसा असर होना चाहिए?

22 ऐसा हो कि हम सब यहोवा पर पूरा भरोसा बनाए रखें। वह हमारा उद्धार करने की इच्छा भी रखता है और ताकत भी! उसका हाथ कभी-भी छोटा नहीं हो सकता, वह हमेशा अपने वफादार सेवकों को बचाएगा। जो उस पर भरोसा रखते हैं, वे “आज से लेकर सदा तक” अपने मुँह से सुहावने वचन सुनाते रहेंगे।

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 294 पर बक्स]

धर्मत्यागी यरूशलेम जैसा ईसाईजगत

यरूशलेम, परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों की राजधानी था। यह परमेश्‍वर के स्वर्गीय संगठन को दर्शाता है जिसमें आत्मिक प्राणियों के अलावा वे अभिषिक्‍त मसीही भी हैं जो पुनरुत्थान पाकर मसीह की दुल्हन बनते हैं। (गलतियों 4:25,26; प्रकाशितवाक्य 21:2) मगर प्राचीन यरूशलेम नगर के निवासियों ने बार-बार यहोवा से विश्‍वासघात किया, इसलिए इस नगरी को वेश्‍या और व्यभिचारिणी कहा गया है। (यहेजकेल 16:3,15,30-42) यरूशलेम का यह रूप आज के धर्मत्यागी ईसाईजगत से हू-ब-हू मिलता है।

यीशु ने यरूशलेम को ‘भविष्यद्वक्‍ताओं को मार डालनेवाली और उसके पास भेजे हुओं पर पत्थरवाह करनेवाली’ कहा था। (लूका 13:34; मत्ती 16:21) विश्‍वासघाती यरूशलेम की तरह ईसाईजगत भी सच्चे परमेश्‍वर की सेवा करने का दावा तो करता है, मगर वह उसके धर्मी मार्गों से कितना भटक गया है। हम इस बात का यकीन रख सकते हैं कि यहोवा धर्मत्यागी ईसाईजगत को उसी धर्मी कसौटी पर कसकर दंड देगा जिस पर कसकर उसने प्राचीन समय के धर्मत्यागी यरूशलेम को दंड दिया था।

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एक न्यायी को धार्मिकता से न्याय करना और इंसाफ दिलाना था, और उसे रिश्‍वत नहीं लेनी थी

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बाढ़ की तरह यहोवा के न्यायदंड उन सभी बाधाओं को बहा ले जाएँगे जो उसके मकसद के आड़े आती हैं

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यहोवा वाचा बाँधता है कि साक्षी होने का सम्मान उसके लोगों से कभी छीना नहीं जाएगा