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यहोवा दीन-हीन लोगों में नयी जान फूँकता है

यहोवा दीन-हीन लोगों में नयी जान फूँकता है

अठारहवाँ अध्याय

यहोवा दीन-हीन लोगों में नयी जान फूँकता है

यशायाह 57:1-21

1. यहोवा ने क्या कहकर हिम्मत बँधाई, और इससे क्या सवाल उठते हैं?

“जो महान और उत्तम और सदैव स्थिर रहता, और जिसका नाम पवित्र है, वह यों कहता है, मैं ऊंचे पर और पवित्र स्थान में निवास करता हूं, और उसके संग भी रहता हूं, जो खेदित और नम्र है, कि, नम्र लोगों के हृदय [“दीन-हीन लोगों में नयी जान फूंक दूँ,” NW] और खेदित लोगों के मन को हर्षित करूं।” (यशायाह 57:15) यह बात भविष्यवक्‍ता यशायाह ने सा.यु.पू. आठवीं सदी में लिखी थी। उस दिनों यहूदा देश में क्या हो रहा था जिसकी वजह से यह संदेश इतना हौसला दिलानेवाला साबित हुआ? आज मसीही भी इन ईश्‍वर-प्रेरित शब्दों से कैसे हिम्मत पाते हैं? यशायाह के अध्याय 57 की जाँच करने पर हम इन सवालों के जवाब पा सकेंगे।

‘हे पुत्रो, यहां निकट आओ’

2. (क) यशायाह 57वें अध्याय के शब्द, शायद किस वक्‍त के लिए थे? (ख) यशायाह के दिनों में धर्मी जनों की क्या हालत थी?

2 ऐसा लगता है कि यशायाह की भविष्यवाणी का यह भाग, यशायाह के दिनों के लिए ही था। ज़रा गौर कीजिए कि उन दिनों दुष्टता कैसे सारी हदें पार कर गयी थी: “धर्मी जन तो खत्म हो गया, मगर कोई इसकी चिंता नहीं करता। और भक्‍त मनुष्य मरे हुओं के साथ इकट्ठे किए गए, मगर कोई यह नहीं समझता कि विपत्ति के कारण धर्मी जन इकट्ठा किया गया है। वह शांति में प्रवेश करता है; जो सीधी चाल चलते हैं वे अपने बिस्तर पर आराम करते हैं।” (यशायाह 57:1,2, NW) अगर कोई धर्मी जन गिर जाता है, तो उसकी कोई परवाह नहीं करता। वह बेवक्‍त मर जाता है, मगर कोई ध्यान नहीं देता। धर्मी मौत की नींद सोकर शांति पाता है क्योंकि वह अधर्मियों के ज़ुल्मों से और विपत्ति से छुटकारा पाता है। सचमुच, परमेश्‍वर की चुनी हुई जाति इस कदर गिर चुकी है कि देखकर अफसोस होता है। लेकिन उनमें जो चंद वफादार जन बचे हैं, उन्हें यह जानकर कितना हौसला मिला होगा कि यहोवा सब कुछ देख रहा है और वह ज़रूर उनकी मदद करेगा!

3. यहूदा की दुष्ट पीढ़ी को यहोवा किन नामों से बुलाता है, और क्यों?

3 यहोवा, यहूदा की दुष्ट पीढ़ी को यह बुलावा देता है: “परन्तु तुम, हे जादूगरनी के पुत्रो, हे व्यभिचारी और व्यभिचारिणी की सन्तान, यहां निकट आओ।” (यशायाह 57:3) उन्होंने जादूगरनी के पुत्र, और व्यभिचारी और व्यभिचारिणी की संतान होने का खूब नाम कमाया है। जिस झूठी उपासना में वे बहक गए हैं, उसमें मूर्तिपूजा और जादू-टोना जैसे घिनौने काम ही नहीं बल्कि अनैतिक यौन क्रीड़ाएँ भी की जाती थीं। इसलिए यहोवा इन पापियों से पूछता है: “तुम किस पर हंसी करते हो? तुम किस पर मुंह खोलकर जीभ निकालते हो? क्या तुम अपराध की सन्तान, झूठ का वंश नहीं हो, तुम, जो सब हरे वृक्षों के तले देवताओं के कारण कामातुर होते और नालों में और चट्टानों की दरारों के नीचे बाल-बच्चों को बध करते हो?”—यशायाह 57:4,5, फुटनोट।

4. यहूदा के दुष्ट लोग, किन अपराधों के दोषी हैं?

4 यहूदा के दुष्ट लोग खुल्लम-खुल्ला घृणित झूठी उपासना करते और “हंसी करते” हैं। उन्हें सुधारने के लिए परमेश्‍वर जिन भविष्यवक्‍ताओं को उनके पास भेजता है, उन्हें वे ठुकरा देते और उनकी खिल्ली उड़ाते हैं। वे उनकी बेइज़्ज़ती करने लिए जीभ चिढ़ाते हैं। कहने को तो वे इब्राहीम की संतान हैं, मगर परमेश्‍वर के खिलाफ विद्रोह करके उन्होंने साबित कर दिया है कि वे असल में, अपराध की संतान और झूठ का वंश हैं। (यशायाह 1:4; 30:9; यूहन्‍ना 8:39,44) वे नगर के बाहर, बड़े-बड़े पेड़ों तले मूर्तिपूजा के लिए धूम-धड़ाका करके लोगों में उपासना का जोश पैदा करते हैं। और उनकी उपासना क्या ही क्रूरता से भरी है! यहाँ तक कि वे अपने बच्चों की हत्या करके उनकी बलि चढ़ाते हैं। वे उन्हीं जातियों के नक्शे-कदम पर चल रहे हैं जिनके घिनौने कामों की वजह से यहोवा ने उन्हें उस देश से निकाल दिया था जिसमें अब वे बसे हुए हैं!—1 राजा 14:23; 2 राजा 16:3,4; यशायाह 1:29.

पत्थरों को तर्पण देना

5, 6. (क) यहूदा के निवासियों ने यहोवा की उपासना करने के बजाय क्या करने का चुनाव किया है? (ख) यहूदा देश में मूर्तिपूजा किस हद तक फैल चुकी है?

5 ज़रा देखिए कि यहूदा के निवासी, मूर्तिपूजा के दलदल में कितना धँस चुके हैं: “तंग घाटियों के चिकने पत्थर ही तेरा भाग, हां, तेरी नियति ठहरे हैं; तू ने तो उन्हीं के लिए तर्पण उण्डेला है और अन्‍नबलि चढ़ाई है। क्या मैं इन बातों के होते हुए भी शान्त हो जाऊं?” (यशायाह 57:6, NHT) परमेश्‍वर के चुने हुए लोग होने पर भी यहूदी, उसकी उपासना नहीं करते बल्कि नदी-नालों से पत्थर उठाकर उनसे देवता बनाते और उनकी पूजा करते हैं। दाऊद ने सरेआम यह कहा था कि यहोवा मेरा भाग है, मगर इन पापियों ने पत्थर से बनी बेजान मूर्तियों को अपना भाग चुना है और उन्हीं के लिए वे तर्पण उंडेलते हैं। (भजन 16:5; हबक्कूक 2:19) यहोवा का नाम धारण करनेवाले लोग जब ऐसी घिनौनी पूजा करते हैं, तो भला यहोवा का मन कैसे शांत रह सकता है?

6 यहूदी, बड़े-बड़े पेड़ों के नीचे, घाटियों में, पहाड़ियों पर, नगरों में, जहाँ देखो वहाँ मूर्तिपूजा करते हैं। यहोवा की नज़रों से कुछ भी नहीं छिपा है और यशायाह के ज़रिए उनकी बदचलनी का परदाफाश करते हुए वह कहता है: “एक ऊंचे और विशाल पर्वत पर तू ने अपना बिछौना बिछाया है। वहां भी तू बलि करने के लिए चढ़ गई। तू ने अपना भक्‍ति-चिह्न द्वार और चौखट के पीछे रखा।” (यशायाह 57:7,8क, NHT) यहूदा ने ऊँचे स्थानों पर अपनी आध्यात्मिक अशुद्धता का बिछौना बिछाया है और वहाँ वह पराए देवताओं को बलि चढ़ाती है। * यहाँ तक कि लोगों के घर के द्वारों और चौखटों के पीछे भी मूर्तियाँ रखी हैं।

7. उपासना में घृणित काम करते वक्‍त यहूदी जाति कैसा महसूस करती है?

7 कुछ लोग शायद दंग रह जाएँ कि आखिर यहूदी जाति इस कदर अशुद्ध उपासना में कैसे उलझ गयी। क्या किसी अलौकिक शक्‍ति ने उसे यहोवा को छोड़ने पर मजबूर किया था? नहीं। वह अपनी मरज़ी से और पूरे शौक से ऐसा करती है। यहोवा उससे कहता है: “निश्‍चय ही तू ने मुझ से दूर जाकर अपने आपको निर्वस्त्र किया, और ऊपर चढ़कर अपनी सेज सजाई। और तू ने उनके साथ अपने लिए वाचा बान्ध ली। उनका तेरे साथ लेटना तुझे पसन्द आया और तू ने उनके पुरुषत्व [“पुरुष के लिंग,” NW] को देखा।” (यशायाह 57:8ख) यहूदा ने अपने झूठे देवी-देवताओं के साथ एक वाचा बांधी है और उनके साथ नाजायज़ संबंध रखने में उसे आनंद आता है। उसे इन देवताओं की उपासना में होनेवाली लैंगिक बदचलनी खासकर पसंद है, जिसमें शायद लिंग की निशानियाँ भी इस्तेमाल की जाती हैं।

8. खासकर किस राजा के शासनकाल में यहूदा देश में मूर्तिपूजा हद-से-ज़्यादा बढ़ गयी?

8 मूर्तिपूजा में की जानेवाली क्रूरता और नीच लैंगिक कामों के बारे में यहाँ दिया गया ब्यौरा, हमें यहूदा के कई दुष्ट राजाओं की याद दिलाता है। उदाहरण के लिए, मनश्‍शे ने बाल देवता के लिए ऊँचे स्थान बनवाए, वेदियाँ खड़ी करवायीं और यहोवा के मंदिर के दोनों आँगनों में झूठे देवताओं की उपासना के लिए वेदियाँ बनवायीं। उसने अपने बेटों को आग में होम करके चढ़ाया, जादू-टोना किया, शुभ-अशुभ मुहूर्तों को माना और प्रेतात्मवाद को बढ़ावा दिया। वह यहोवा के मंदिर में अशेरा की खुदी हुई मूरत भी ले आया जिसे खुद उसने बनवाया था। * उसने यहूदा के लोगों को इस कदर गुमराह कर दिया कि उन्होंने “उन जातियों से भी बढ़कर बुराई की जिन्हें यहोवा ने . . . विनाश किया था।” (2 राजा 21:2-9) हालाँकि, यशायाह 1:1 में मनश्‍शे का ज़िक्र नहीं है, मगर फिर भी कुछ लोगों का मानना है कि उसी ने यशायाह को मरवाया था।

‘तू ने अपने दूत भेजे’

9. यहूदा अपने दूतों को “दूर तक” क्यों भेजता है?

9 यहूदी जाति का गुनाह सिर्फ इतना ही नहीं कि वह झूठे देवी-देवताओं की पूजा करती है। अपने वक्‍ता, यशायाह के ज़रिए यहोवा कहता है: “तू तेल लिए हुए राजा [“मेलेक,” NW] के पास गई और बहुत सुगन्धित तेल अपने काम में लाई; अपने दूत तू ने दूर तक भेजे और अधोलोक तक अपने को नीचा किया।” (यशायाह 57:9) इब्रानी में “मेलेक” शब्द का मतलब है, “राजा।” यह शायद किसी पराए देश का राजा है जिसके पास विश्‍वासघाती यहूदा देश गया था। यहूदा उसे तेल और बहुत सुगन्धित तेल यानी कीमती और लुभावने तोहफे देता है। वह अपने दूतों को दूर-दूर तक के देशों में भी भेजता है। क्यों? ताकि पराए देशों को अपने साथ राजनीतिक संधियाँ कायम करने के लिए मना सके। यहूदा ने यहोवा को छोड़ दिया है और अब पराए राजाओं पर भरोसा रखता है।

10. (क) राजा आहाज, अश्‍शूर के राजा से संधि करने के लिए क्या करता है? (ख) यहूदा “अधोलोक तक अपने को नीचा” कैसे करता है?

10 इसकी एक मिसाल, यहूदा के राजा आहाज के दिनों में देखी जा सकती है। जब उसे इस्राएल और अराम की आपसी संधि से खतरा महसूस होने लगा तो उस विश्‍वासघाती राजा ने अश्‍शूर के राजा, तिग्लत्पिलेसेर III के पास अपने दूतों के हाथों यह संदेश भेजा: “मुझे अपना दास, वरन बेटा जानकर चढ़ाई कर, और मुझे अराम के राजा और इस्राएल के राजा के हाथ से बचा जो मेरे विरुद्ध उठे हैं।” आहाज ने अश्‍शूर के राजा को रिश्‍वत के तौर पर सोना-चाँदी भी भेजा जिसे लेने के बाद अश्‍शूर के राजा ने अराम पर चढ़ाई करके उसे तबाह कर डाला। (2 राजा 16:7-9) अन्यजातियों के साथ दोस्ती करके, यहूदा दरअसल “अधोलोक तक अपने को नीचा” करता है। इस दोस्ती का अंजाम उसकी मौत होगी यानी इसके बाद वह अपने एक राजा के अधीन आज़ाद देश के तौर पर हमेशा के लिए अस्तित्त्व खो देगा।

11. यहूदा, खुद को सुरक्षित समझकर कैसे धोखे में पड़ा है?

11 यहोवा, यहूदा से आगे कहता है: “तू अपनी लम्बी यात्रा के कारण थक गई, फिर भी तू ने यह न कहा कि यह व्यर्थ है। तू ने नया बल प्राप्त किया, इसलिए तू मूर्छित नहीं हुई।” (यशायाह 57:10, NHT) जी हाँ, यह देश यहोवा को छोड़कर गलत राह पर चलते-चलते थक गया है, फिर भी वह यह नहीं समझ पाता कि उसकी सारी कोशिशें बेकार हैं। इसके बजाय, वह खुद को इस धोखे में रखता है कि वह अपने ही बल पर कामयाब हो रहा है। उसे लगता है मानो उसने नया बल पा लिया और वह पूरी तरह स्वस्थ है। कितनी बड़ी मूर्खता!

12. ईसाईजगत में मौजूद कौन-से हालात, यहूदा के हालात से मिलते-जुलते हैं?

12 हमारे दिनों में एक संगठन मौजूद है जिसके तौर-तरीके, यशायाह के दिनों के यहूदा देश से काफी मिलते-जुलते हैं। वह संगठन है ईसाईजगत, जो एक तरफ तो यीशु का नाम लेता है, मगर दूसरी तरफ दुनिया के नेताओं के साथ दोस्ती बढ़ाने में लगा हुआ है। उसने अपने गिरजों को मूर्तियों से भर लिया है। ईसाईजगत ने देश-देश के बीच होनेवाले युद्धों में अपने जवानों की बलि चढ़ायी है। ये सब देखकर सच्चे परमेश्‍वर को कितनी घिन आती होगी जिसने मसीहियों को यह आज्ञा दी: “मूर्त्ति पूजा से बचे रहो”! (1 कुरिन्थियों 10:14) ईसाईजगत ने राजनीति में शरीक होकर ‘पृथ्वी के राजाओं के साथ व्यभिचार’ किया है। (प्रकाशितवाक्य 17:1,2) दरअसल, वह संयुक्‍त राष्ट्र का खास हिमायती है। वेश्‍या जैसे चरित्रहीन इस धर्म-संगठन का आगे चलकर क्या होगा? यह जानने के लिए आइए देखें कि यहोवा, विश्‍वासघाती यहूदा और खासकर उसकी राजधानी, यरूशलेम से क्या कहता है, जिनका जीता-जागता नमूना आज का ईसाईजगत है।

‘जिन को तू ने जमा किया है वे तुझे न छुड़ाएंगी’

13. यहूदा ने किस अर्थ में “झूठ” कहा है, और यहोवा की सहनशीलता देखकर भी वह कैसे पेश आता है?

13 यहोवा पूछता है: “तू ने किस के डर से झूठ कहा, और किसका भय मानकर ऐसा किया?” कितना सही सवाल! यहूदा के लोगों के दिल में यहोवा के लिए सही किस्म का भय हरगिज़ नहीं है। वरना यह पूरा देश, झूठे देवी-देवताओं की उपासना करनेवालों और झूठ बोलनेवालों का देश नहीं बन जाता। यहोवा आगे कहता है: [तूने] मुझ को स्मरण नहीं रखा न मुझ पर ध्यान दिया। क्या मैं बहुत काल से चुप नहीं रहा? इस कारण तू मेरा भय नहीं मानती।” (यशायाह 57:11) यहोवा अब तक चुप रहा है, उसने यहूदा को फौरन दंड नहीं दिया। मगर क्या यहूदा के लोग, यहोवा की सहनशीलता की कदर करते हैं? नहीं, वे तो उल्टा यह सोचते हैं कि परमेश्‍वर उन पर ध्यान नहीं दे रहा है। उन्हें यहोवा का ज़रा भी डर नहीं।

14, 15. यहूदा के कामों और ‘जिन मूर्तियों को उसने जमा किया है,’ उनके बारे में यहोवा क्या कहता है?

14 मगर वह दिन ज़रूर आएगा जब यहोवा के सब्र का बाँध टूटेगा। उस वक्‍त के बारे में यहोवा साफ-साफ कहता है: “मैं आप तेरे धर्म और कर्मों का वर्णन करूंगा, परन्तु, उन से तुझे कुछ लाभ न होगा। जब तू दोहाई दे, तब जिन मूर्त्तियों को तू ने जमा किया है वे ही तुझे छुड़ाएं! [“वे तुझे न छुड़ाएंगी,” NW] वे तो सब की सब वायु से वरन एक ही फूंक से उड़ जाएंगी।” (यशायाह 57:12,13क) यहोवा, यहूदा देश के धर्म-कर्म के ढोंग से परदा उठा देगा। यहूदा को अपने कपट भरे कामों से कोई फायदा नहीं होगा। ‘जिन मूर्तियों को उसने जमा किया है,’ उसका अम्बार यहूदा को बचा नहीं पाएगा। उसे जिन देवी-देवताओं पर एतबार है वे, मुसीबत की आँधी आने पर हवा के बस एक ही झोंके से उड़ जाएँगे।

15 यहोवा के ये शब्द सा.यु.पू. 607 में पूरे हुए। उसी साल बाबुल के राजा, नबूकदनेस्सर ने यरूशलेम को नाश कर डाला, मंदिर को जला दिया और बहुत-से लोगों को बंदी बनाकर ले गया। “यों यहूदी बन्धुआ बनके अपने देश से निकाल दिए गए।”—2 राजा 25:1-21.

16. ईसाईजगत और ‘बड़े बाबुल’ के बाकी धर्मों पर क्या बीतनेवाली है?

16 उसी तरह, ईसाईजगत ने जो मूर्तियों का अम्बार लगा रखा है, वह उसे यहोवा के क्रोध के दिन बचा नहीं सकेगा। (यशायाह 2:19-22; 2 थिस्सलुनीकियों 1:6-10) ‘बड़े बाबुल’ यानी संसार भर में साम्राज्य की तरह फैले सभी झूठे धर्मों के साथ-साथ ईसाईजगत का भी नामो-निशान मिट जाएगा। किरमिजी रंग का लाक्षणिक जंगली पशु और उसके दस सींग “[बड़े बाबुल को] लाचार और नङ्‌गी कर देंगे; और उसका मांस खा जाएंगे, और उसे आग में जला देंगे।” (प्रकाशितवाक्य 17:3,16,17) लेकिन हम कितने खुश हैं कि हमने इस आज्ञा का पालन किया है: “हे मेरे लोगो, उस में से निकल आओ; कि तुम उसके पापों में भागी न हो, और उस की विपत्तियों में से कोई तुम पर आ न पड़े”! (प्रकाशितवाक्य 18:4,5) आइए हम संकल्प कर लें कि हम बड़े बाबुल या उसके मार्गों की ओर कभी वापस न लौटें।

“जो मेरी शरण लेगा वह देश का अधिकारी होगा”

17. ‘जो यहोवा की शरण लेते हैं’ उनसे क्या वादा किया जाता है, और यह कब पूरा होगा?

17 लेकिन यशायाह की भविष्यवाणी के अगले शब्दों का क्या मतलब है? “जो मेरी शरण लेगा वह देश का अधिकारी होगा, और मेरे पवित्र पर्वत का भी अधिकारी होगा।” (यशायाह 57:13ख) यहाँ, यहोवा किससे बात कर रहा है? यहोवा उन चंद यहूदियों से बात कर रहा है जो अब भी उसके वफादार हैं। वह उस समय का ज़िक्र करता है जब यहूदियों पर आनेवाली विपत्ति टल जाएगी। वह भविष्यवाणी करता है कि उसके लोग बाबुल से छुड़ाए जाएँगे और उसके पवित्र पर्वत यरूशलेम में दोबारा शुद्ध उपासना शुरू करेंगे। (यशायाह 66:20; दानिय्येल 9:16) यह सुनकर उन वफादार यहूदियों का दिल कितना मज़बूत हुआ होगा! यहोवा आगे कहता है: “यह कहा जाएगा, पांति बान्ध बान्धकर राजमार्ग बनाओ, मेरी प्रजा के मार्ग में से हर एक ठोकर दूर करो।” (यशायाह 57:14) जब अपने लोगों को छुड़ाने का परमेश्‍वर का ठहराया हुआ वक्‍त आएगा, तब मार्ग तैयार हो जाएगा और सारी बाधाएँ दूर हो जाएँगी।—2 इतिहास 36:22,23.

18. यहोवा की महानता का वर्णन किन शब्दों में किया गया है, लेकिन इतना महान होने के बावजूद वह कैसे प्यार और परवाह दिखाता है?

18 अब यशायाह, अपनी भविष्यवाणी में वही बात कहता है, जिसका हवाला शुरू में दिया गया है: “जो महान और उत्तम और सदैव स्थिर रहता, और जिसका नाम पवित्र है, वह यों कहता है, मैं ऊंचे पर और पवित्र स्थान में निवास करता हूं, और उसके संग भी रहता हूं, जो खेदित और नम्र है, कि, नम्र लोगों के हृदय [“दीन-हीन लोगों में नयी जान फूंक दूँ,” NW] और खेदित लोगों के मन को हर्षित करूं।” (यशायाह 57:15) यहोवा का सिंहासन सबसे ऊँचे स्वर्ग में है। उससे ऊँचा या उससे महान पद और किसी का नहीं हो सकता। यह जानकर हमें कितना सुकून मिलता है कि वह स्वर्ग से सबकुछ देखता है, सिर्फ दुष्टों के पापों को ही नहीं बल्कि उसके सेवकों के धार्मिकता के कामों को भी! (भजन 102:19; 103:6) इतना ही नहीं, वह ज़ुल्म सहनेवालों की कराहें भी सुनता है और खेदित या कुचले हुओं के मन में नयी जान फूँक देता है। ये शब्द, प्राचीन समय के उन यहूदियों के दिल को किस कदर छू गए होंगे जिन्होंने पश्‍चाताप दिखाया था। बेशक, आज इन शब्दों का हम पर भी गहरा असर पड़ता है।

19. यहोवा का क्रोध कब शांत होता है?

19 यहोवा के ये अगले शब्द भी मन को राहत पहुँचाते हैं: “मैं सर्वदा प्रतिवाद करता न रहूंगा, न सदा क्रोधित रहूंगा कहीं ऐसा न हो कि जिनकी मैंने सृष्टि की है उनकी आत्मा तथा उनके प्राण मेरे सामने मूर्छित हो जाएं।” (यशायाह 57:16, NHT) अगर यहोवा का क्रोध सदा बना रहता तो उसका एक भी प्राणी ज़िंदा नहीं बचता। लेकिन हम कितने शुक्रगुज़ार हैं कि परमेश्‍वर का कोप सिर्फ कुछ समय के लिए होता है। वह जिस मकसद से क्रोध करता है, उसके पूरा होने के बाद उसका क्रोध शांत हो जाता है। परमेश्‍वर के वचन से मिलनेवाली इस समझ से हम देख सकते हैं कि यहोवा को अपनी सृष्टि से कितना प्यार है और इसी समझ से हमारे अंदर उसके लिए गहरी कदरदानी पैदा होती है।

20. (क) जो अपराधी पश्‍चाताप नहीं दिखाता, उसके साथ यहोवा कैसे पेश आता है? (ख) पश्‍चाताप दिखानेवालों को यहोवा कैसे शांति देता है?

20 यहोवा आगे जो कहता है, उससे हमें और भी समझ मिलती है। सबसे पहले वह कहता है: “उसके लोभ के पाप के कारण मैं ने क्रोधित होकर उसको दु:ख दिया था, और क्रोध के मारे उस से मुंह छिपाया था; परन्तु वह अपने मनमाने मार्ग में दूर भटकता चला गया था।” (यशायाह 57:17) जिन लोगों ने लालच में आकर अपराध किए हैं, उनसे परमेश्‍वर का क्रोधित होना वाजिब है। जब तक एक इंसान का मन ढीठ होकर पाप की राह में यहाँ-वहाँ भटकता रहता है, तब तक उस पर यहोवा का क्रोध बना रहता है। लेकिन अगर वह भटका हुआ इंसान यहोवा की ताड़ना स्वीकार करे, तब क्या? तब यहोवा बताता है कि वह अपने प्यार और करुणा की वजह से क्या कार्यवाही करेगा: “मैं उसकी चाल देखता आया हूं, तौभी अब उसको चंगा करूंगा; मैं उसे ले चलूंगा और विशेष करके उसके शोक करनेवालों को शान्ति दूंगा।” (यशायाह 57:18) यहोवा पहले ताड़ना देने का कदम उठाता है, फिर पश्‍चाताप करनेवाले के ज़ख्म पर मरहम लगाता है और उसे और जो उसके साथ शोक मना रहे हैं उन्हें सांत्वना देता है। ऐसे ही कदम उठाने की वजह से सा.यु.पू. 537 में यहूदी वापस अपने देश लौट पाए थे। यह सच है कि इसके बाद फिर कभी यहूदा, दाऊद के वंश के किसी राजा के अधीन आज़ाद देश नहीं बन सका। फिर भी, यरूशलेम में मंदिर का दोबारा निर्माण किया गया और शुद्ध उपासना फिर से शुरू की गयी।

21. (क) यहोवा ने 1919 में अभिषिक्‍त मसीहियों में कैसे नयी जान फूँकी? (ख) अपने अंदर कौन-सा गुण बढ़ाना हममें से हरेक के लिए अच्छा होगा?

21 “महान और उत्तम” परमेश्‍वर यहोवा ने सन्‌ 1919 में अभिषिक्‍त शेष जनों की हालत के लिए भी चिंता ज़ाहिर की। जब उन्होंने पश्‍चाताप और नम्रता दिखायी तो महान और दयालु परमेश्‍वर, यहोवा ने उनके दुःख को देखा और उन्हें बड़े बाबुल की बेड़ियों से आज़ाद किया। उसने उनके रास्ते में आनेवाली हर बाधा दूर की और उन्हें आज़ाद किया ताकि वे उसकी शुद्ध उपासना कर सकें। इस तरह यशायाह के कहे यहोवा के शब्द उस वक्‍त भी पूरे हुए। और उन शब्दों में हम ऐसे सिद्धांत पाते हैं जो सदा कायम रहेंगे और जिन पर हममें से हरेक को चलना चाहिए। यहोवा सिर्फ ऐसे लोगों की उपासना कबूल करता है जो मन के दीन हैं। और अगर परमेश्‍वर का कोई भी सेवक पाप करता है, तो उसे फौरन अपनी गलती मानकर, ताड़ना स्वीकार करनी चाहिए और अपने तौर-तरीके बदलकर गलतियों को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए। हम यह कभी न भूलें कि यहोवा नम्र लोगों को चंगा करता और उन्हें शांति देता है, मगर वह “अभिमानियों से विरोध करता है।”—याकूब 4:6.

‘दूर और निकट रहनेवालों को शान्ति’

22. (क) पश्‍चाताप दिखानेवालों, और (ख) दुष्टों के भविष्य के बारे में यहोवा क्या बताता है?

22 अब यहोवा बताता है कि पश्‍चाताप दिखानेवालों का भविष्य उन लोगों से कितना अलग होगा जो अपने बुरे कामों में लगे रहते हैं: [मैं] उनके होंठों का फल से स्तुति उत्पन्‍न करूंगा। . . . जो दूर है उसे शान्ति मिले और जो निकट है उसे भी शान्ति मिले, और मैं उसको चंगा करूंगा।’ परन्तु दुष्ट तो अशान्त समुद्र के समान है; क्योंकि वह चुप रह ही नहीं सकता, और उसकी लहरें कूड़ा-करकट और कीचड़ उछालती हैं। ‘दुष्टों के लिए शान्ति है ही नहीं।’”—यशायाह 57:19-21, NHT, फुटनोट।

23. होठों का फल क्या है, और यहोवा कैसे इस फल को “उत्पन्‍न” करता है?

23 होठों का फल वह बलिदान है जो परमेश्‍वर को स्तुति के रूप में चढ़ाया जाता है यानी सबके सामने उसके नाम का ऐलान करना। (इब्रानियों 13:15) यहोवा कैसे होठों के इस फल को “उत्पन्‍न” करता है? एक इंसान यहोवा को स्तुति का बलिदान तभी चढ़ा सकता है, जब पहले वह उसके बारे में ज्ञान हासिल करता है, फिर उस पर विश्‍वास दिखाता है। विश्‍वास ही से—जो परमेश्‍वर की आत्मा का फल है—इंसान को प्रेरणा मिलती है कि उसने जो सुना है, वह दूसरों को बताए। दूसरे शब्दों में वह सबके सामने परमेश्‍वर के नाम का ऐलान करता है। (रोमियों 10:13-15; गलतियों 5:23) इसके अलावा, हमें यह भी याद रखना चाहिए कि यहोवा के सेवकों को उसकी स्तुति करने का ज़िम्मा किसी और ने नहीं बल्कि खुद उसने सौंपा है। और यहोवा ही अपने लोगों को छुटकारा दिलाता है ताकि उनके लिए ऐसे स्तुतिरूपी बलिदान चढ़ाना मुमकिन हो। (1 पतरस 2:9) इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए, हम कह सकते हैं कि यहोवा ही होठों के इस फल को उत्पन्‍न करता है।

24. (क) परमेश्‍वर की शांति कौन पाएँगे, और इसका नतीजा क्या होगा? (ख) कौन शांति नहीं पाएँगे, और उनका क्या अंजाम होगा?

24 जब यहूदी बड़े आनंद से यहोवा की स्तुति में गीत गाते हुए वापस अपने देश लौटे होंगे, तो उन्होंने क्या ही उत्तम होठों के फल चढ़ाए होंगे। वे चाहे “दूर,” यहूदा देश लौटने के इंतज़ार में हों या फिर “निकट” यानी अपने देश में पहुँच गए हों, वे परमेश्‍वर की शांति पाकर कितने हर्षित होंगे। दूसरी तरफ, दुष्टों का अंजाम कितना अलग होगा! यहोवा की ताड़ना को ठुकरानेवाले इन दुष्ट लोगों को किसी भी हाल में शांति नहीं मिलेगी, फिर चाहे उनकी हैसियत जो भी हो और वे कहीं भी क्यों न रहते हों। वे अशांत समुद्र की तरह हलचल मचाते रहेंगे और होठों के फल के बजाय “कूड़ा-करकट और कीचड़” यानी हर किस्म की गंदी चीज़ उछालते रहेंगे।

25. आज दूर और निकट रहनेवाले लोग कैसे शांति पा रहे हैं?

25 आज भी, यहोवा के उपासक संसार भर में परमेश्‍वर के राज्य का सुसमाचार सुना रहे हैं। दूर और निकट के 230 से भी ज़्यादा देशों में, मसीही एकमात्र सच्चे परमेश्‍वर, यहोवा की स्तुति करते हैं और इस तरह होठों का फल चढ़ाते हैं। उनकी स्तुति के बोल “पृथ्वी की छोर से” भी सुनायी पड़ते हैं। (यशायाह 42:10-12) जो उनके बोल सुनते और उसके मुताबिक कदम उठाते हैं, वे परमेश्‍वर के वचन, बाइबल की सच्चाई को कबूल करते हैं। वे ऐसी शांति पाते हैं, जो ‘शान्ति के परमेश्‍वर’ यहोवा की सेवा करने से मिलती है।—रोमियों 16:20.

26. (क) भविष्य में दुष्टों का क्या होगा? (ख) नम्र लोगों से कौन-सा शानदार वादा किया गया है, और हमारा संकल्प क्या होना चाहिए?

26 यह सच है कि आज दुष्ट लोग, राज्य के संदेश पर ज़रा भी ध्यान नहीं देते। मगर जल्द ही ऐसा वक्‍त आएगा जब उन्हें धर्मी लोगों की शांति भंग करने की और इजाज़त नहीं दी जाएगी। यहोवा वादा करता है: “थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं।” जो यहोवा की शरण लेते हैं, उन्हें देश के वारिस होने का बढ़िया मौका मिलेगा। “नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे।” (भजन 37:10,11,29) उस वक्‍त धरती की रौनक वाकई देखने लायक होगी! तो आइए हम सब यह संकल्प कर लें कि हम परमेश्‍वर की शांति को कभी नहीं गवाएँगे ताकि हम परमेश्‍वर का गुणगान सदा-सर्वदा करते रहें।

[फुटनोट]

^ पैरा. 6 यहाँ शब्द “बिछौना” शायद झूठी उपासना की वेदी या उपासना की जगह के लिए इस्तेमाल हुआ है। उसे बिछौना कहकर हमें यह ध्यान दिलाया जाता है कि ऐसी उपासना आध्यात्मिक मायने में वेश्‍यावृत्ति है।

^ पैरा. 8 अशेरा की मूरतें शायद नारी-तत्त्व का प्रतीक थीं और लाठें शायद पुरुष के लिंग की निशानियाँ थीं। यहूदा के विश्‍वासघाती लोग इन दोनों की पूजा करते थे।—2 राजा 18:4; 23:14.

[अध्ययन के लिए सवाल]

[पेज 263 पर तसवीर]

यहूदा के लोग सभी हरे-भरे वृक्षों के तले अनैतिक कामों से भरी उपासना करते हैं

[पेज 267 पर तसवीर]

यहूदा ने अपने देश को वेदियों से भर रखा है

[पेज 275 पर तसवीर]

‘मैं उनके होंठों का फल उत्पन्‍न करूंगा’